सोमवार, 15 अप्रैल 2013

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-१२



मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-१२

मगही मनभावन

मगही साहित्य ई-पत्रिेका
वर्ष -                               अंक - १२                  अप्रैल २०१३
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ई अंक में

दूगो बात....
संपादकीय
बतरस

कहानी

एगो आउ जग  के तैयारी - उदय कुमार भारती
दया के पात्र – प्रो. शोभा कुमारी

यात्रा-संस्मरण

कला बसे बंगाला – मिथिलेश

कविता-कियारी

झूमर – केशरी नन्दन
ग़ज़ल – अशोक समदर्शी
दीनबन्धु के दूगो होली गीत
शिव खेलत होली, लूटऽ फागुनी बहारी
सुनऽ होली के चौपाई – उदय कुमार भारती
होली खेलऽ है जवान – शफीक जानी नादां
होली गीत – परमेशवरी
खींच मुखौटा जेकर देखलूं – उमेश बहादूरपुरी
नून रोटी – अशोक कुमार अंज

मगह के आयोजन

शिक्षा दिवस पर मगही अकादमी के काजकरम
मगध नागरीक संघ के मगही महोत्सव
गणतंत्र दिवस पर राजगीर के कवि सम्मेलन
हिसुआ के साहित गोष्ठी आउ कवि सम्मेलन
मगह के मांजर के लोकार्पण

विविध

पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
निहोरा
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दूगो बात......
    
        मगही मनभावन के ई अंक लेल अपने सब्भे के जरी जादे इंतेजार करे पड़ल, एकरा लेल माफी चाहवइ. मति गति ठीक नञ् रहे से अंक समय पर नञ् दे सकलिऐ। ई अंक पत्रिका के तेसर साल 2013 के पहिल अंक हइ, जेकरा ओही पुरनके कलेवर आउ तेवर जैसन रूप रंग में अपने सब के आगू रख रहलिए हऽ। एकर संपादकीय में मगही के साल भर के उपलब्धि के संक्षेप में चरचा करलिए हऽ। 2012 के हम मगही के उपलब्धि के साल बतैलिए हऽ। ई अंक में दूगो कहानी ‘एगो आउ जग के तइयारी’ हम्मर पहिल कहानी हइ। एकरा में महाजग आउ बेटी के बियाह के जग से तुलना करल गेल हऽ। एगो औरत के काज के संदेश आदर्श प्रस्तुत कैल गेल हऽ। प्रो. शोभा कुमारी के कहानी, दया के पात्र के? मेहरारू आउ मरदाना के अंतर संबध के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण हे। औरत आउ मरद दुन्नूं के एक-दोसर के मनोभाव के समझे के संदेश देल गेल हऽ। एक-दोसर के चाह आउ भावना के जदि खेयाल रखल जाय तउ गृहस्थ जीवन स्वर्ग बन जा सकऽ हइ। जतरा-संस्मरण में मगही साहित के कुशल चितेरा मिथिलेश के लिखल ‘कला बसे बंगाला’, बंगाल के कलाकार के सराहनीय प्रस्तुति से जुड़ल प्रभावकारी रचना हइ, जेकरा पढ़े के बाद भुलाल नञ् जा सकऽ हइ। ई यात्रा-वृतांत से शुरू होवऽ हइ आउ बंगाल के कलाकार नृत्य, संगीत, नाटक में कइसन बेजोड़ प्रस्तुति करऽ हथिन, ओकर वर्णन हइ। जतरा-वृतांत के बड़ी सहजता से श्री मिथिलेश कागज पर उतार के रख देलका हऽ। ईहे उनखर साहित्यिक दक्षता हे।
    कविता कियारी में किसान मजदूर के दरद केसरीनन्दन के झूमर में दिखऽ हइ। मगह नटराज चरौल के इप्टा के सदस्य आउ मगही जन कवि केसरीनन्दन अर्जन करेवला किसान मजदूर के जीवन एगो झूमर में उतार के रख देलका हल। कालजयी उनखर ई रचना इहां उनखा श्रद्धा सुमन के रूप में रखल गेल हऽ। हिन्दी मगही के मंझल गज़लकार अशोक समदर्शी के गज़ल मिल के पत्थर हइ. अशोक कुमार अंज के ‘नून रोटी’ निर्धन-बेवस के दर्द आउ उमेश बहादुरपुरी के रचना उनखर भीतर के उमड़-घुमड़ रहल उद्गार हे।
   दीनबंधु, उदय भारती, शफीक जानी नादां, परमेश्वरी के कलम के धार अखनी तेज हइ। उनखर होली अपने सब्भे के कई रस के संग से सराबोर करतै। मगह के आयोजन मगहिया हलचल से भरल हइ।
   ई अंक से आम आदमी के दुख...व्यंग्य आउ कटाक्ष के जइसन बतरस कॉलम शुरू कैल गेल हऽ। एकरा पर अप्पन विचार दिहऽ। एकरा लेल आम अदमी के दुख-तकलीफ से जुड़ल प्लॉट बतावे के कष्ट अपने सब्भे करथिन। ईहे आशा के साथ तोहर...
                                                  
 उदय कुमार भारती.
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संपादकीय.......
 मगही साहित के सुनहर साल 2012
   
           साहितकार आउ मगही साहित के लेल साल 2012 खुमे बेस गुजरल। मगही साहितकार, संपादक, संस्था सब्भे के काम लगभग जी जुड़ावे वला आउ बैसाह बढ़ावे वला साबित होल। मगही अकादमी के छोड़ के लगभग सब्भे संस्था, मगह, झारखंड आउ कोलकाता में मगही के परचम खूमे लहरैलका। मगही आयोजन, संगोष्ठी, परिचर्चा, कवि सम्मेलन से लेके किताब आउ पत्र-पत्रिका के क्षेत्र में अप्पन झंडा गाड़लक। साल 2012 के मगही के उपलब्धि के साल कहइ में तनिको अतिशियोक्ति नञ् होतइ। साल मगही आन्दोलन में भी कामयाबी के साल रहल। मगही से जुड़ल मांग के मंत्री आउ जनप्रतिनिधि तक पहुंचावल गेल।  
  अखिल भारतीय मगही मंडप के काजकरम के साथ ‘सारथी’ पत्रिका के जतरा फेन से शुरू भेल। अंक 17 आउ 18 नया कलेवर आउ तेवर के साथ आके मगही साहितकार के झकझोर के रख देलक। बिहार मगही मंडप वारिसलीगंज के मगही संवाद तीन अंक 17 से 19 देके अप्पन सतत प्रयास जारी रखलक। मगही पत्रिका परिवार मगही के 5 अंक देके भासा के मजगूत करे के काम कैलका। बिहार शिक्षा विभाग ‘मगही मंजूषा’ मगही के लुप्तप्राय गीत के संग्रह आउ सीडी बना के सराहे जुकुर काम कैलक। मगध विश्वविद्यालय के मगही विभाग मगही सुजाता के दोसर अंक देके मगही शोध के मजगूत करे के कड़ी के आगू बढ़ैलक। मगही साहित के पहिल ई-पत्रिका ‘मगही मनभावन’ सालभर में 6 अंक जारी करके मगही के देश विदेश पहुंचावे के काम कैलक। पटना से अभिमन्यु कुमार मौर्य के संपादन में निकसे वला मगही पत्रिका ‘अलका मागधी’  200 वां अंक देके अप्पन रेकार्ड कायम करलक। गया से सुमंत के संपादन से निकसे वला ‘टोला-टाटी’ लगातार अप्पन अंक पहिले के तरह निकसते रहल। मगध नागरिक सेवा संघ कोलकाता ‘मगह के आवाज’ स्मारिका के अगिलका अंक निकसलक। जहानाबाद से ‘मगही टाइम्स’ अखबार निकसल। ललित प्रकाशन से मनोज कुमार कमल के ‘मगही-विरंज’, उमेश बहादुरपुरी के ‘संगम’ किताब निकसल। डॉ. शेषआनंद मधुकर आउ बहुते साहितकार के किताब निकसे के जानकारी मिलल। कुछ किताब हमरा भीर नञ् पहुंचे से ओकर ब्योरा नञ् दे पा रहलिये हऽ। मगही अकादमी से निकसे वला पत्रिका ‘निरंजना’ तइयार होके भी नञ् निकसे सकल ई दुर्भाग्य हे आउ दुर्संयोग हे। ई अकादमी आउ अकादमी के सदस्य के आलस्यता आउ नाकामी के दरसावे हे।
    नरेन, मिथिलेश, रत्नाकर, दीनबन्धु, डॉ. भरत, अजय, शेखर, डॉ. दिलीप कुमार, पवन तनय, जयनन्दन, घमंडी राम, सुधाकर राजेंद्र, नागेंद्र बंधु, शोभा रानी, कृष्ण कुमार भट्टा, उदय भारती समेत कवि आउ साहितकार के कलम खूब चलल। संपादन आउ लेखन के काम जोर-शोर से भेल। मगही के समृद्ध करे लेल मगहिया सालोभर समर्पित रहला।
     2012 में काजकरम आयोजन के भरमार रहल, कौनो महिमा आयोजन से खाली नञ् रहल. मगह के झलके वला ई सब्भे मगही आयोजन मील के पत्थर से कम नञ् मानल जात।
   14 जनवरी के मगही लोक संस्कृति के तपोवन महोत्सव, 20 जनवरी के कारूगोप विशेषांक मगही संवाद के लोकार्पण, 5 फरवरी के प्रगतिशील लेखक संघ के नवादा आयोजन, 3-4 मार्च के बरबीघा के मगही पत्रिका परिवार के ‘वसंत महोत्सव’, 4 मार्च के पटना के हास्य मगही कवि सम्मेलन, 8 मार्च के हिसुआ के काजकरम, 15 मार्च के दैनिक जागरण अखबार के जागरण ज्योति महोत्सव, 22 मार्च के एसएन सिन्हा कॉलेज वारिसलीगंज के बिहार दिवस पर मगही कवि सम्मेलन, 20 मार्च के भदसेनी गांव के चैता आउ मगही कवि सम्मेलन, 7 जून के विकास इंटरनेशनल स्कूल बरबीघा के वार्षिकोत्सव में मगही कवि सम्मेलन, 10 जून के हरनौत में मगही कवि सम्मेलन, 1 सितम्बर के राजगीर मलमास मेला में कवि सम्मेलन, 1 जुलाई 2102 के विरसा मुंडा नगर भवन, सिदगोड़ा, जमशेदपुर में मगही एकता मंच के दोसर स्थापना दिवस ,पावापुरी में 14 जुलाई के मगही पत्रिका परिवार के ‘मगध के धरोहर बचावऽ’ आयोजन, 2 दिसंबर के शेखपुरा में लालमणि विक्रांत के ‘मगही के मंजर’ के लोकार्पण, 10 दिसंबर के मगध विश्वविद्यालय बोधगया मगही विभाग के स्थापना वर्षगांठ, 23 दिसंबर 2012 के मगध नागरिक सेवा संघ कोलकाता के ‘मगह महोत्सव’ नञ् भुलाल जा सकऽ हे, एकर अलावे यूजीसी के तत्वावधान के कामेश्वर सिंह महाविद्यालय नदवां में 30 एवं 31 मार्च के मगही भाषा के इतिहास एवं इसकी दशा-दिशा पर दू दिन सेमिनार होल।  एकर अलावे दर्जनों काजकरम के भरमार रहल। हम कामना करऽ ही कि साल 2013 भी मगही लेल अइसने गुजरइ।

उदय कुमार भारती

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बतरस
     
    जी पत्रकार जी महाराज! जय होवइ तोहर पत्रकारिता धरम के! नीके, सूखे रहे तोहर कुल-परिवार!
             अपने से हमन्हीं दीन-दुखिया के बड़ी आसा हइ, अपने तो लोकतंत्र के चउथा खंभा हथिन। तोहर जड़ मजबूत होवइ, अपने पोठगर रहथिन तभिये ने हमन्हीं के बात-गलबात जनजन तक पहुंचैथिन, अखनी तऽ हम्मर लोकतंत्र में अंधेरा गहराल जा रहल हे, तोहर मजगूत खम्भा जरी एकरा थमले हइ, नञ् तऽ देश के नेता इकरा लड़खड़ावे में जरिको कसर नञ् छोड़ रहलथिन हऽ। सरकार के हाथ गोड़ तऽ नेते होवऽ हथिन आउ नेता जनता के दुःख दूर करवैया। ओकर मझधार में अटकल नाव के खैवैया लेकिन नेता लोग अप्पन नैया पार करे में लगल हथिन ई कहके कि अभी हमरा आगू जाय दे, हम किनारा पर अप्पन नाव पहुंचा के आवऽ हियौ तउ तोरो पार लगा देवौ। खाली आश्वासने आउ आश्वासन हको। चाहे ऊ केन्द्र सरकार रहथुन इया राज्य सरकार अप्पन कुर्सी मजबूत करे के हथकंडा अपनैले हथुन। देश में बड़गो-बड़गो घोटाला पर घोटाला हो रहल हे, हमनी के पइसा हड़प नारायण हो रहल हे, हमन्हीं पर सरकार के शिकंजा दिनो-दिन आउ कसल जा रहल हे। टैक्स पर टैक्स बढ़ रहलो हऽ पर जन-सुविधा आउ सब्सडी गायब हो रहलो हऽ। हमन्हीं के मचोड़ के कत्ते तेल निकालत ई सरकार? साल में दर्जनों दफे तो पेट्रोल आउ डीजल के दाम बढ़ऽ हे। महँगाई से हाड़ बिकल जाइये रहलो हे, जे जरी एगो गैस सिलिंडर सब्सिडी पर मिलऽ हलो ओकरो में बारह ब्याध लग रहलो हे। घोषणा होलो कि साल में छोवे गो सिलिंडर मिलत, फिनू बिरोधियन के हिल-हुज्जत आउ 2014 के चुनाव के दबाव से छो से नो गो भेलो। चला तइयो संतोष कइले ही लेकिन अबरी एगो दूसरा लफड़ा लगलो कि ओकरो भेरिफिकेशन होतो, बैंक में खाता खोलवाहो, पहचान पत्तर देहो, ई चौदह गो बखेड़ा तऽ हमन्हीं अनपढ़वन के समझ में नै आवऽ हइ बाबू कि करियै? बैंकवा में खतवा कि मुफति में खुलतइ? ओकरा ला हजार-दू हजार गलावे पड़तइ आउ सरकार के पहिले तो ई चाही कि हमनी के बाल-बुतरू के पढ़ा-लिखा के एकर लाईक बना देथिन हल कि बैंक में खाता अपने जाके खोलवा लेत हल, गैस के फारम अपने भर लेत हल। हम्मर गांव-जवार में सरकार के पढ़ावे-लिखावे के पिलान तो कागजे पर चल जा हे। ओहे एके मंगरू वयसक शिक्षा लालटेनवा वला इसकूलवा में भी साक्षर बनावल गेल हल आउ ओहे मंगरू अभियो साक्षर भारत मिशन वला केन्द्रवा पर पढ़ावल जा रहले हे। चौदह गो अभियान आवऽ हे जा हे, हम्मर गांव के मंगरू आझ भी अनपढ़ के अनपढ़े हे।
    आउ सरकार हम्मर जिनगी के रोज के काम में चौदह गो बखेड़ा खड़ा कर रहल हऽ। बताहो ने ई आरम-फारम भरे के आउ सब्सिडी के पइसा खाता में डाले के सरकारी पिलान हमनी के जलकनन कइले हे आउ गैस के कालाबजारी करके कमाई करेवला के भाग्य खुलल हे। हम अप्पन हाल कि कहियो? हम्मर तो मइये के नाम से गैस के कनेक्शन हे। जे मइया जिनगी भर बैंक के मुंह नऽ देखलक, एगो ढेला भी बैंक में नऽ रखलक, अनपढ़ अंगूठा छाप हे, खटिया पर पड़ल हे ओकर नाम से खाता खोलावे के आफत आ गेल हे। गैस डीलर तऽ नाम बदले लेल तैयार नऽ हे, कहऽ हे जे मांगल गेल हऽ दऽ नञ् तऽ कनेक्शन बन कर दऽ। एन्ने देखऽ रमेशर वाली के, ओकर मरद तो गुजरात में रहऽ हे। गैस वला ओकर कनेक्शन बन कर देलक हऽ। बेचारी ओकर जोरू फिफिया होल हे, रमेशर के गुजरात से बोलावे के तैयारी होल हे।
   सामाजिक सुरक्षा, विरधा पेंशन चाहे कौनो मुख्य मंत्री योजना के काम रहै, बड़ा बखेड़ा हकइ आरम-फारम भरे लेल पंचायत आउ बिलौक के चक्कर लगैते-लगैते दम फुल जाहे। अफसर बाबु के तऽ कुछ कहने नञ् आउ मुखिया पंचायत सेवक ई सब्भे के तऽ दरसने दुरलभ हे। सरकारी अनुदान, राहत, भूखल मरे चाहे कौनो योजना के लाभ लेवे के रहे, दिनो-दिन सरकार एतना बखेड़ा बढ़ैले जा रहल हऽ कि नानी इयाद आ जाहे। चाहे डीजल अनुदान के पइसा लेवे के रहो, चाहे बैंक से किसानी लोन। चौदह गो बखेड़ा हे। 25 रुपइया के डीजल अनुदान लेवे में 55 रुपइया भाड़ा खरचा भेल। खाद सरकारी दाम पर कहियो न मिलल। ई तऽ धान अबरी कम रोपाल नऽ तो परकी साल अइसन अबरियो खाद ले मार खैतूं हल।
   बाबू दिनो-दिन हम्मर जरूरत के कम्मा में जे एतना विधान लगा देलक हऽ सरकार ओकरा से हमनी के परेशानी आउ बढ़ गेल हऽ। कोय कारज असानी से नऽ सधऽ हे। आम अदमी के दिन तऽ कारजालय आउ बाबूए के चक्कर लगावे में कट जा हे। अइसहीं हमनी के जिनगी के व्यस्तता नै बढ़ल हऽ बाबू, जरी तोहनियो कुछ करहो जेकरा से आम अदमी के काम जल्दी सध जाय।                      
                                            - तोहरे
                                           
एगो दुखछल आम अदमी.
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कहानी        
एगो आउ जग के तइयारी
                                        
                                                                 उदय कुमार भारती
    
          चनगर में जग नधा गेल हल। आझ शोभा जतरा हे। पंद्रह-बीस विगहा में दूर-दराज से आवल हजारन श्रद्धालु उमड़ पड़ला हे। परिसर खचाखच भरल हे। जन्नी-मरदाना, बाल-बुतरू, बूढ़ा-जुआन के उत्साह भरल समर्पण भाव देखते बनऽ हे। शोभा-जतरा में सामिल होबइ से इर्द-गिर्द के सैंकड़न कन्या आउ सुहागिन कलश उठावे ले खाड़ हथ। सोबो घोड़ा, बोलेरो, मार्शल आउ लाव-लश्कर अगुआनी-पीछुआनी करइ ले तइयार हे। कय गो गाम के मंडली ढोल-बाजा के साथ जय-जयकार करे ले ट्रैक्टर आउ पिकअप भान में बइठावल गेल हे। नेउतल पंडितन आउ विद्वानन के एसी विक्टा, क्वालिश, जाइलो जइसन चमचम गाड़ी पर बइठावल गेल हे। पीयर-पीयर धोती-कुर्ता पहिनले जग के काजकर्ता जतरा में शामिल होवे वला के आगू-पीछू कताबद्ध करे में जुटल हथ। नगर आउ गाम-गिराम के धनी-मानी, गणमान्य, व्यापारी, प्रोफेसर, नेता जइसन लोगन भी पीरे-पीरे धोती-कुर्ता में टहल-बुल रहला हें।
    जलभरनी नगर के सटले नदी के किछार से होवत। एहमा श्री श्री एक सो आठ स्वामी श्री अंज कुंजानन्द जी महाराज खुदे नञ् जा रहला हऽ। उनखर परम शिष्य आउ प्रतिनिधि श्री कपिलानन्द जी ई काज के अगुआनी करता। स्वामी जी के जय-जयकार शुरु हो गेल हऽ। समिति के तरफ से जलभरनी लेल मट्टी के कलश मंगावल गेल हऽ, जेकरा धो-धा के जग-मंडप के चारो पट्टी रख देवल गेल हऽ। कलश उठावे के अनुमति के इंतजार हो रहल हऽ। श्री श्री एक सो आठ स्वामी जी महाराज अभी विश्राम-गृह में नहा-धो के ठाकुर जी के पूजा कर रहला हें। पूजा-पाठ के बाद इहां अइता आउ कलश उठावे के विधि-विधान शुरु करइता। परिसर से लेके शहर के चारो मुख्य मार्ग में कोसों दूर तलुक लगावल लौडस्पीकर से स्वामी जी के जय-जयकार हो रहल हे। समूचा नगर तैलफैल, भक्ति के रंग में रंगल हे। गली-गली, मुहल्ला-मुहल्ला में शोभा-यात्रा के उमंग-उत्साह छलक रहल हे। भिनसरे से सगरो एक्के धूम....एक्के चर्चा...
   दस बजे के करीब स्वामी जी आके आरती-पूजा कइलका आउ शंख बजा के कलश उठावे के अनुमति देलका। एक-एक करके सब कलश उठ गेल आउ हजारन भक्त-श्रद्धालु के भीड़ कतार में आगू बढ़ऽ लगल।
     सगरो जोर-शोर से चर्चा हे कि ई नगर में महाजग करावल जा रहल हें, जेकरा में अयोध्या, बनारस, पुरी के पहुंचल-पहुंचल पंडित, साधु, संत, महात्मा के भारी जुटान हो रहल हे। समिति में विधानसभा क्षेत्र के बड़का-बड़का धनी दिग्गज जुटल हथ। करोड़न रुपइया के बजट हे। देताहर एकरा में एक्कक श्रद्धालु लाख-लाख रुपइया चंदा में देलका हे। बड़का हाता हापल गेल हें, जेकरा में साधु संत के ठहरे ले कक्ष, भोजनालय, महाराज जी के आश्रम-विश्राम गृह, प्रवचन सदन, बड़का-बड़का पंडाल, भंडार-घर, शौचालय, श्रद्धालु के ठहराव आउ उनखनी के खाय-पीये के प्रबंध कइल गेल हे। ई जग पनरह दिन चलत। देश के दिग्गज-पहुंचल शंकराचार्य, संत, ऋषि, मुनि, आचार्य के प्रवचन होवत। मंत्री, विधान पार्षद आउ सांसद सब के नेउतल गेल हे। ऊ सब काजकरम के मानिन्द अतिथि होतन। भक्ति-गीत आउ भजन गावे ले चोटी-चोटी के गायक संगीतज्ञ बोलावल गेल हे। सचेमुचे ई जग क्षेत्र में एगो नया इतिहास गढ़त। अइसन जग के आयोजन से क्षेत्र के सब संकट दूर भे जात, आदमी में प्रेम आउ सौहार्द बढ़त, मनकामना पूरत। क्षेत्र धनमान्य से परिपूर्ण, बाढ़-सुखाड़ से मुक्त, आतंक-भ्रष्टाचार रहित हो जात। रोग बलाय सब दूर परजात।
    शोभा जतरा बढ़ल जा रहल हे। जतरा के कवर करेला प्रिंट आउ इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकार आगू-पीछू दौड़ रहला हें। कय गो चैनल जतरा के लाइव देखा रहलन हे।
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     आउ ई जग के गहमागहमी से दूर वीणा जी डॉ. रमेश के पास पारो के माय सबरी के साथ बइठल हथ। ऊ डॉक्टर साहब से सबरी के दुख बेयान कर रहला हें, ‘‘बाबू, बड़ दुख सहलकइ सबरी। अप्पन मरदाना साथ एही चौक पर छोटगो होटल चालवऽ हलन। इनखर दोकान के घुघनी, सेव, चाह के चउबगली चर्चा हल। सांझ के चना-छोला के घुघनी खाय खातिर बुढ़-जुआन, बुतरुन के भीड़ दोकान पर जुम जा हल। चारे-पांच घंटा में माहो आउ सबरी बेस पइसा कमा लेहल, जेकरा से जिनगी के गाड़ी चल जा हल। मुदा विधाता के ई मंजूर न हल। माहो के अइसन बेमारी पकड़लक कि बेचारा फिर न उठ सकलन। माहो के गुजरला से सबरी बिखर गेल। दोकान दोसर कोय हथिया लेलक। सबरी घरे पर बरतन-बासन गिरथामा करके पारो के पाललक। आझ पारो जुआन हो गेल। लड़का ठीक हो गेल हें। हम बेटी के बियाह लेल तोहरा से सहयोग मांगे अइलूं हें। तोहरा से जे बन सकइ, सहयोग करथिन। हम नगर के तोहरा नियन कइएक गो डॉक्टर, वकील, प्रोफेसर, मास्टर के घर गेलूं , अप्पन हाथ पसारलूं बकि जेतना उमेदल हल, नञ् मिलल’, ऊ बोलते-बोलते भावुक होके आगू कहऽ लगलन, ‘लड़का के बाप कहियो बुझलक कि लड़की के बियाह लेल ओकर माय-बाप के की-की गंजन सहऽ पड़ऽ हे। ई बेचारी विधवा अपना बेटी के बियाह कइसे करत? एकरा से लइका वला के भला की लेना-देना उनखा तऽ अप्पन मांग पूरा होवे के चाही.... चाहे जइसे भी होवे लइका के अप्पन सपना होवऽ हे। सब कुछ देखा-हिसकी हे डॉक्टर साहब। सूट-बूट, घड़ी, अंगूठी तऽ देबहे पड़त। सब बेचारी लावा-फरही हो रहल हे। एकर हाल के अंदाजा के लगावत? जर-जमीन रहते हल तऽ बेचारी ओकरो उलट-पलट के गंगा नहा लेत हल।’’
    वीणा जी के मुंह से सबरी के लोर भरल खिस्सा सुन के रमेश बाबू पसीज गेला। ऊ गील होके कहलका, ‘‘हम तऽ ई काज में सहयोग करबे करबो। एगो चिट्ठी दे हियो। तू एकरा लेके हमर घर चल जा। डॉ. उमा जी, हमरा घरनी भी तोहरा सहयोग देथुन आउ देलइथुन।’’
 तखनइ डॉक्टर साहब के पत्रकार मित्र उदय उनखर चैम्बर के परदा उठाबइत प्रवेश कइलका।
  ‘‘बड़ी पसेने-पसेने हा। शोभा-जतरा के कवर करइत हला की?’’ डॉक्टर साहब मुसकइत पूछलका।
  पत्रकार मित्र रुमाल से पसेना पोछइत कुरसी में धंस गेला आउ स्वाभानुसार तफसील से सुनावऽ लगला, ‘‘तट पर पहुंचते-पहुंचते छक्का छूट गेलो। बड़की भारी शोभा-यात्रा हलो। अभी तऽ काजकरम घंटो चलतो। हम लौट गेलियो। सचमुच बड़का बजट के ऐतिहासिक जग हो रहलो हें तोहरा शहर में। राष्ट्रीय स्तर के विद्वान के जमकड़ा जुट रहलो हें।’’
 डॉक्टर साहब पत्रकार मित्र से वीणा जी के परिचय करइलन आउ कहलन, ‘‘ई समाजसेवी हथ। उनका बेटी के बियाह लेल ई फिफिद्दा हथ।’’
 पत्रकार तऽ पत्रकार ठहरला। ऊ पूछ बइठला, ‘‘वीणा जी, अपने बड़ नेक काम कर रहलथिन हें। अपने दोसर के बेटी के बियाह लेल हाथ पसारले चल रहलथिन हे। हम अपने के ई सराहनीय काज के समाज के सामने लावे चाहऽ ही। अपने अनुमति देथिन तऽ ई समाचार अखबार में छपे ले भेज दिअइ। कहथिन तऽ फोटू भी खींच लिअइ।’’
   वीणा जी खुश हो गेली, कहलकी, ‘‘डॉक्टर साहब कहथिन तऽ हमरा कोय उजुर नञ्, छाप देथिन।’’
 फोटू खिंचा गेल। वीणा जी सबरी साथ चल गेली। पत्रकार मित्र के अंतर में वीणा जी के प्रति जिज्ञासा बढ़ रहल हल। ऊ वीणा जी के इतिहास भूगोल जाने ले डॉक्टर साहब के कुरेदे लगल।
‘‘वीणा जी के पारिवारिक आर्थिक पृष्ठभूमि कइसन हे?
 लमहर सांस लेके डॉक्टर साहब कहऽ लगला, ‘‘वीणा जी कउनो बड़का घराना से जुड़ल समाजसेवी महिला नञ् हथ। ई भी बखत के मारल, घर-परिवार के समस्या से जूझइवली सामान्य मेहरारू हथ। इनखर पति के अपाहिज होला एगो जुग बीत गेल। कृपाशंकर चूड़ी बेच के परिवार के परवरिस करऽ हल। पति के लकवा मारे के बाद वीणा दुकान के सम्हार लेलकी आउ कठिन से कठिन हालत में भी हार नञ् मानलकी। पति के बेहतर इलाज करइलकी आउ सेवा कर के ओकरा चले-बुले जोग कर देलकी। चार गो बाल-बुतरू के चूड़िये के दोकान चला के पाल-पोस लेलकी। दुन्नो बेटा आउ दुन्नो बेटी के कॉलेज में पढ़ा रहली हें। उनखनी के ऊंचगर शिक्षा देलावे के हिम्मत जोगइले हथ। वीणा एगो छोट गृहिणी होके भी अपना पर आवल विपति के संभाल लेलकी आउ दोसरा ले प्रेरणा बन गेली हें। टोला-महल्ला इनखर पति-धर्म के कायल हे। सब इनखा सावित्री कहऽ हे। इनखर रहन-सहन के सुलझल स्तर के चलते समाज में सम्मान बढ़ गेल हें। ई जिनगी से जूझइत-जूझइत जीये ले सीख गेलन हें आउ अप्पन परिवार के समाज के मुख्य धारा से जोड़ लेलन हें। ई दोसरा लेल खाली प्रेरणा नञ्, बलुक सुख-दुख के साथी भी बने लगलन हें। ईहे सबरी के हौसला बढ़इलन आउ कहलन, ‘‘केकरो बेटी दुनिया में अजग रहल हें? तू लड़का पता लगावऽ, हम तोहरा साथ देबो।’’
     ऊ आगू कहलका कहलका,‘‘आउ दुन्नो मिल के पारो के रिश्ता खोज लेलन। लेन-देन के बात तय हो गेल। अब ई ओकर बियाह के इंतजाम में जुट गेलन हे। समाज के सामने हाथ फइलइले चल रहलन हे। जे अप्पन पति के इलाज लेल केकरो भिर हाथ नञ् पसारलन, उ उनका बेटी के बियाह लेल चंदा उगाही कर रहलन हे। एकरा से पहिले भी कत्ते दुखछल के सहयोग कर चुकलन हे। इनखर नजर में जब भी जिनगी से टूटल कोय गुजरऽ हे, ओकर आशा, उत्साह आउ हौसला जगा के, ओकर जिनगी संवारे लेल आगू आ जा हथ। कन्या विवाह खातिर तऽ हरसट्ठे आगू आबइत रहऽ हथ आउ दोसरो के प्रेरित करऽ हथ।’’
  पत्रकार साथी दम साध के कहानी सुन रहलन हल। ऊ वीणा जी के इतिहास जान के नतमस्तक हलन। ऊ सोंच रहलन हल,‘‘वीणा जी तऽ नारी शक्ति के एगो नमूना हथ। इनखा पर एगो बेस खबर बन सकऽ हे। ई खबर समाज के सामने आवे के चाही। अइसन प्रेरक खबर बनाना तऽ हमनी के सचकोलवा धरम हे। संयोग से हम अखने एहिजा पहुंच गेली।’’
  ईहे बीच डॉ. रमेश मित्र चाय मंगबइलन आउ दुन्नो दोस्त बतियायत चाय के चुस्की लेवे लगलन।
 ई की? परदा उठाके वीणा जी दोबारे झलक गेली। डॉक्टर साहब अकचका के पूछलथिन,‘‘की हलइ वीणा जी? कुछ आउ कहे के हलइ की?’’
 वीणा जी सकुचइत कहऽ लगली, ‘‘बाबू, हम्मर जे फोटूआ खीचला हा से दे दा। ई खबर अखबार में नञ् छपे के चाही?’’
  पत्रकार जी अकचका गेला। ऊ पूछ बइठला,‘‘काहे?’’
  ‘हम अखबार में फोटू सहित छपे के हिंछा नञ् रखऽ ही’’, महिला बोल गेलन।
   दुन्नो दोस्त वीणा जी के बात सुनके सन्न रह गेला। पत्रकार कहां हिम्मत हारे वला जीव हला ! ऊ फिर पूछ बइठला, ‘‘काहे वीणा जी, अइसन काहे? तोहर फोटू अखबार में छप जात तऽ तोहर की बिगड़ जात? ई खबर से समाज के प्रेरणा मिलत आउ दोसर कोय भी अइसन काज में आगू आबत।’’
  मुदा वीणा जी न मानलन। ऊ फोटू हंटावे के निहोरा करइत रहलन। डॉक्टर साहब उनखा मनावे के कोशिश करऽ लगलन। अकुला के वीणा जी कहलन, ‘‘बाबू, खबरिया तऽ अखबार में छप जइतइ, मुदा ई खबर जब पारो के होबइ वला ससुरार के अदमी पढ़तइ त ऊ लोगन जान जइतइ कि पारो के बियाह लेल पइसा मांग-चांग के जुटावल गेलइ हें। अगर उनखनी के नागवार गुजरलइ, तऽ बनल-बनावल काम बिगड़ जइतइ। हमरा पारो के बियाह से मतलब हे, अप्पन प्रचार-प्रसार से नञ्। कोय हालत से ई खबर नञ् छपे के चाही। हम एकरा ले अपने के हाथ जोड़ऽ हिअन।’’ उनखर चेहरा मन के पीड़ा बखान रहल हल।
 दुन्नो दोस्त के काटऽ तऽ खून नञ्।
     वीणा जी अप्पन फैसला सुनाके चल गेली बाकि चैम्बर में एगो प्रश्न चिह्न छोड़ गेली। उनखर आग्रह के आगू पत्रकार के हिम्मत पस्त हो गेल। ऊ सोच रहलन हल,‘‘एक तरफ बड़का-बड़का धनाढ्य, गणमान्य आउ दिग्गज मिल के एतबड़ जग के आयोजन में जुटल हथ आउ दोसर तरफ ई औरत एकल्ले एगो सामाजिक जग के ठानले हे। ओकर पूरन लेल ई आम आदमी के सामने अप्पन हाथ पसारले चल रहल हे। समाज में आझ केतनी बेटी बियाह के आस में, धन के अभाव में माय-बाप के सीना पर पहाड़-सन पड़ल हे। अइसन में वीणा जी के काज जनप्रतिनिधि, धर्मसेवी आउ धनकुवेरन के धिक्कार रहल हे। कल जग के खबर तऽ अखबार में बड़का-बड़का फोटू सहित सुर्खी में छपत, मुदा वीणा जी के ई महायज्ञ के बारे में के जानत?’’
                             
 -मगही-हिन्दी साहित्यिक मंच, हिसुआ, नवादा
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कहानी

                                                     दया के पात्र के?
                                                                                           
                                                                                   प्रो. शोभा कुमारी
               म नित्तम सांझ के टहले निकल जा हली, सिकन्दरा बजार से पूरब, जमुई रोड में। हमरा डागडर सलाह देलक हल – ‘‘स्वस्थ रहे चाहऽ हा तऽ सुबह-शाम टहलल करऽ।’’ पहिले तऽ हम अनठिअइले रहली, बाकि जहिया से शरीर के कपड़ा तंग होवऽ लगल, हम्मर चिंता बढ़ऽ लगल। मोटाय भी रोग हे। बड़का-बड़का शहर में तऽ जीरो फीगर के नशा अइसन अजमावल जा रहल हे। होती के धोती हे। छोट जग में ऊ सब सुविधा कहां? भला होवे रामदेव बाबा के, जे पतंजलि ऋषि के अजमावल नुस्खा के जन-जन तक पहुंचावे में कुछ अप्पन रंग मिला के हमनी नियन के भी जीना सुलभ बना देलन। से-से हम सुबह योग-व्यायाम आउ सांझ टहलना शुरू कर देलूं।
    हां तऽ टहले के टहले, साथ-साथ जन-जीवन से जुड़ाव के भी तऽ अवसर मिलऽ हे। कॉलेज के जिनगी, छात्र-छात्रा के संगति ढेर भेल । स्टाफ रूम में बैठ के साथी साथ हंसी मजाक, देश-विश्व के राजनीति पर बहस, सरकार के शिक्षा नीति पर क्षोभ इया चानन-चुगली कटाक्ष व्यंग्योक्ति बक्रोक्ति के प्रयोग तक सीमित रहलो। हमरा ई सब में मन की लगतो। कानी गइया के अलगे बथान। हम अप्पन विभागीय कक्ष में बइठल उपन्यास कहानी पढ़े में समय बितइबो, डेरा चल अइबो।
    एक दिन सांझ के टहले निकललूं। आम दिन कोय ने कोय साथ हो जा हलन। साथ टहलइ के अलग मजा हे। प्रसन्न चित्त रहला पर इर्द-गिर्द के जन-जीवन से जुड़ल सवाल मन में उतर जाहे आउ जुवान पर उतर आवऽ हे। बेवाक आदान-प्रदान चलइत रहऽ हे आउ दूरी तय होबइत जाहे। अइसे राह में राम-सलाम तऽ आम बाते हे। कभी-कभी ठहर के बतियाना जरूरी हो जाहे। नञ् तऽ गुमानी बूझतन कॉलेज से जुड़ल रहे के चलते आते-जाते ‘‘प्रणाम मैडम’’ सुने के तऽ आदि हो गेली हे। जादे तक हम मुस्कुरा के मन के भाव व्यक्त करऽ ही आउ आगू बढ़ जाही।
     तहिया हम एकल्ले चलइत-चलइत बिगहा पर से आगू बढ़ गेली। अजीब संयोग बूझऽ कि तहिया प्रणाम पाती भी कमे से भेल। हम मूड़ी गोतले चलइत रहलूं। अचक्के ध्यान टूटल तऽ हम पुल के नगीच पहुंच गेली हल। उहां से लउटे में लगभग चार किलोमीटर तय करऽ पड़ल हल। हमरा थकान सन लगल। सुस्ताय के खेयाल से ओतुने बइठ गेली। चिरइं चुरगुन अप्पन-अप्पन खोंया दने मुहिया गेलन हल। झिर-झिर पछुआ पसेना से लग के एसी के मजा दे रहल हल। हम्मर नजर एगो बोझा लेले मेहरारू पर पड़ल। ऊ सड़क दने बढ़ल आ रहलन हल। माथा पर हरियर कचूर नकटिया के डांट हल, जे एने अमूमन जनावर के चारा में काम आवऽ हे। हम ओकरे बदे सोंचऽ लगली – ‘गाय-भैंस पालऽ होतन। खेत-पथारी हे तऽ बैल भी रखऽ होतन। अइसन आजकल खेती तऽ टरेक्टरे से जादे होवऽ हे।’
    ऊ मेहरारू पुल के दक्खिन सड़क पर चढ़ गेलन आउ हमरे दने बढ़इत आ रहलन हल। नगीच आल तऽ ओकर चेहरा साफ जना लगल – गेहुंआ रंग, सुतवां नांक, माथ पर हिकली, कस्सल देह, लगल तीस-पैंतीस से जादे के न होत।
   अचक्के ओकर बोझा हमरा से दू-डेग पर फसक गेल। ऊ हकबका गेल। डांट ओकर गोड़ भिजुन बिखर गेल हल। ओकर चेहरा पर चिंता भरल लाली उभरल आउ हमरा दने देख के डांट के समटऽ बांधऽ लगल। हम सोंच रहली हल उठावे जरूर कहत। हम्मर पेन्हावा-ओढ़ावा देख के संकोच भी कर सकऽ हे।
   बोझा बन्हा गेल। ऊ एन्ने-ओन्ने ताकऽ लगलन दूर में तीन चार आदमी ठाढ़ गलबात कर रहल हल। हम सोचऽ लगली कि ई औरत चिंता में होत। हमरा से उठ सकऽ हे कि नञ्? उठा देवे में हरजे कि हे? अन्दर से हमरा आदमियत जाग रहल हल। विलम्ब देख के हम कहली, ‘‘उठा दियो बहिन?’’
 ऊ हमरा गौर से देखलन आउ मुसकइत कहलन, ‘‘अपने से उठतन?’’
 ‘‘उठा के देखऽ ही’’, कहके हम हाथ लगइली आउ जरूरत से जादे जोर लगा के उठइली, उठ गेल। परीक्षा में पास होबइ के आनन्द जइसन बोध भेल आउ हम डेरा दने लौट गेली।
 तहिया से ऊ मेहरारू जब भी मिले, परनाम मैडम जरूर कहे। एक दिन ऊ हमरा देख के चारा कटनइ छोड़ के हंसुआ लेले नगीच आ गेल आउ परनाम मैडम कह के हम्मर बगल में बैठ गेल। हमरा लगल ऊ जरूर कुछ कहे चाह रहल हे। हमहीं पहल कइली, ‘‘परनाम पाती नित्तम होवऽ, बकि हम तोहर हम नाम नञ् जानऽ ही।’’
 ‘‘हम्मर नाम शान्ति हे,’’ ऊ बूझल-सन बोलल।
‘‘आज तू भीतर से अशान्त लग रहली हे, की बात हे?’’
ऊ सुबकि गेल। हम ओकर कंधा पर हाथ रख देली। ओकर आंख झर-झर बहऽ लगल। हम धीरजा बन्हाबइत कहली, ‘‘तोरा नियन कमासुत मेहरारू के आंख में आंसू न सोभऽ हे बहिन।’’
 ‘‘मैडम, हम्मर सब कैल-धैल अकारथ हो। सब कुछ मरदे पर सोभऽ हे। ऊहे जब कुमेहर हे तऽ हमरा लेल दुनिया अन्हार हे’’, ऊ अंचरा से लोर पोछइथ कह गेलन।
 ‘‘अइसन काहे कहऽ हा?
 ऊ अप्पन बामे-बाम हाथ-पीठ देखाबइत कहलन, ‘‘एतना नित्तम के परसाद हो मैडम। हमरा तब डूब मरे के मन करऽ हो। की करियो कुछ नञ् सूझऽ हो।’’
 ‘‘आदमी गोसाहा बुझा हथुन। उनखा से मुंहलग्गत न बोलल करऽ। अपनइं बोलइत-बोलइत गोस्सा सथा जइतनु’’, हम जीअइ के गुर बतइली।
‘‘ओकर मथवे ओझरा गेलइ हें। लगऽ हइ कोय कुछ कर-करा देलकइ हे’’, ऊ पछताल सन बोलल।
‘‘ई सब बहम हो। हमरा लक्षण बतलावऽ तब बूझवो’’, हम कहली।
 ‘‘हमरा देखलको तकब कि ओकर रंग बदलऽ लगलो। आंख लाल-ला गुल्लड़ सन, गुड़ार के ताकलको। जे कुछ मिललो, चला देलको। बालो बचवा नञ् सोहा हइ। इगो ठेना-ढेनी हो, ओकरा तऽ लात-मुक्का के धोकड़ा बना देलको हे। सब ओकर डर से थरथर करइत रहऽ हो। सयान बेटिया तक के नञ् छोड़ऽ हो। हम तऽ ओकर पिटना हइये हइ। पगला गेलइ हे मैडम,’’ शान्ति बोल के एन्ने-ओन्ने ताकऽ लगल।
 ‘‘हमरा खिस्सा नियन सुनावऽ’’, हम कहली।
 ‘‘तऽ टटके आज के खिस्सा कहऽ हियो। भोरे बड़की बेटी रधिया के गोयठा ठोके में लगा देलियो हल। ऊ बेचारी गोबर में पानी देके सान रहलो हल। एक पीठिया छौंड़ा-छौड़ी अंगनमा में खेल रहलो हल आउ हम चूल्हा जरा के नस्ता बनावइ के सूर-सार कर देलियो तहिया घरे के कैंता टूटलो हल, ओकरा काट के रखलियो। आज लहस गेलो हल। कड़ाही चढ़ा देलियो कि रधिया के बाऊ दम दाखिल हो गेलो। बूझ ला कि घर में हड़कंप मच गेलो। रधिया के गोबर सानइत हाथ रूक गेलो। छौंड़न जजइ-तजइ सकदम ठाढ़ हो गेलो।
     ओकरा भोरे दूध पीये के आदत हो। दम हांक देलियो, ‘‘रधिया, बाऊ ले दूध ठार के लाव।’’ रधिया धनपथाल हाथ धोके दूध हमरा भिजुन रख के लपकल गोबर के ढेरी भिजुन चल गेलो। हम धीपल कड़ाही में दूध ठार के सुसुम कैलियो आउ कटोरा में लेके देवे गेलियो। ऊ ओसरा के खटिया पर गुमसुम बैठल हलो। ओकर तरवा के धूर कपार चढ़लो आउ हम्मर हाथ पर अइसन मारलको कि कटोरा भर दूध उझला गेलो। ऊ हमरा धकेल देलको आउ ओतुने रखल फराठी से हम्मर देह बामे-बाम करके घर से बहरा गेलो।’’
 हम सुन के सोंचऽ लगली ई कइसन मरद के लक्षण हे? पागल हे कि गोसाहा? हम पूछली, ‘‘पीअइ के भी आदत हो उनखा?’’
 ‘‘नञ् मैडम, मुहों नञ् लगबो हो। खैनी भले खाहो,’’ शान्ति जवाब देलन। हमरा गुम देख के ऊ बोलल, ‘‘एक मन भाग जाय के करऽ हो फिर हमरा दया आ जा हो माय-बाप के टूअर, के सम्हारतइ  हमरा मार दे कि काट दे, भागम तऽ नञ्।’’
 ‘‘भगला से नञ् होतो, सम्हारला से होतो। धीरज से सहऽ, दिन फिरवे करतो,’’ हम कहली।
 ‘‘हां मैडम एकर सुख में साथ देलिअइ, दुख में छोड़ दिअइ गांव के आदमी तऽ देख के छीहर काटऽ हइ, हम कने जइअइ’’ शान्ति बोल के गांव दने ताकऽ लगल। ऊ अचक्के उठ गेल, ‘‘देखऽ मैडम, रछछा आ रहलो हे। देख लेतो तऽ एजउ तेरहो निनान करतो, जा हियो, कह के ऊ सड़क से नीचे उतर गेल।
 आसिन के महीना हल। मगह के भारी परब जितिया पसरल हल। मड़ुआ के रोटी आउ पोठिया के झोर न लगल तऽ जितिया की। से हम तहिया भोरगरे टहले के बहाने डेरा से निकल गेली, सोंचली बिगहा पर के शान्ति मिल जइतन, तऽ उनखे कहम। पांच दाना भी मिल जात, तऽ विधान तऽ हो जात।
    आसमान में छिटपुट बादर से छिटही चदनी सन लग रहल हल। सड़क के किनारे धान के पौधा पुरबइया हवा में लहरा रहल हल। सड़क पर आवा-जाही शुरू हो गेल आउ हम बढ़ल जा रहली हल पकिया सड़क पर। संयोग देखऽ तहिया शान्ति के जगह ओकर पगला पति बिसेसर दूर से आबइत जना गेल। हम्मर रोआं गनगना गेल-पागल आदमी के कोय ठेकान नञ्। हम दहिने से बामे मूड़ी गोतले बढ़इ लगली बाकि तरे आंख से बिसेसर के गतिविधि देखले जा रहली हल। जइसे-जइसे नगीच पहुंचल जा रहली हल, हम्मर धड़कन बढ़इत जा हल। आमने-सामने होला पर ऊहे पट्टी से बिसेसर मिसरी घोरइत बोलल, ‘‘परनाम मैडम! आज भोरे टहले ले निकललथिन?”   
 हमरा आश्चर्य भेल उनखर सहज व्यवहार कुशलता से। हम उनखा देख के बोलली तऽ कुछ नञ्, खाली मुसक के उनखर अभिवादन के जवाब देली।
 ‘‘लगऽ हे आज अपने कोय परोजन से एने जा रहली हे,’’ ऊ बोललन।
 हम ठमक गेली। आश्चर्य भेल ऊ आदमी पर। एकरा दुनिया पागल कइसे कहऽ हइ? जे आदमी दोसरा के मन के भाव ताड़ सकऽ हे, ऊ पागल कइसे हो सकऽ हे?  हम मुस्कुरायत कहली, ‘‘तू ठीके ताड़ला। जितिया ले मड़ुआ के इन्तजाम में निकलली हे।’’
 ‘‘तऽ हम्मर पगली घारावली के नञ् कहलहो, पहुंचा देतो हल। ऊ तऽ रोज तोहरा भेंटबे करऽ हो। ठहरऽ एजइ, हम दरबर मारले ले आबऽ हियो।’’
 हम कुछ बोली, एकर पहिलइ बिसेसर घर दने दौड़ पड़ल, हम तऽ चकरा गेली।
 आउ ठीक, ऊ एक किलो मड़ुआ के आंटा एगो पोलिथिन में झुलइले दौड़ल लाके हमरा थमाबइत बोलल, ‘‘एतना में काम चल न जइतन?’’
 ‘‘ई तऽ बहुत हे! पांच दाना से भी विधान हो जा सकऽ हल। अच्छा, एकर केतना पइसा दे दियो?’’  हम पूछली।
 आउ बिसेसर हाथ जोड़इत दांत से जीभ काट लेलल,‘‘ई हम्मर पसेना के हइ मैडम!”
 ‘‘पसेना अनमोल हे बिसेसर।’’
 ‘‘आउ संवेदना?’’
 पागल बिसेसर हमरा निरूत्तर कर देलन। ऊ शान्त भाव से एगो गूढ़ सवाल छोड़ के अप्पन राह चल देलन।
 बिसेसर के माथा ओझराल रहे इया नञ्, बिसेसर हम्मर माथा जरूर ओझरा देलन – पागल आउ सुलझल में कि अन्तर हे?
 खैर, परब बीत गेल। एक सांझ हम बिगहा पर के पुल पर पहुंचूलं कि शान्ति के नजर हमरा पर पड़ गेल। तहिया ऊ खंचिया में घास लेले घर दने जा रहलन हल। पुल पर खंचिया रख के ऊ बगल में बैठलन। हम शिष्टाचार बस पूछली, ‘‘परब निम्मन से बीत न गेल?”
 ‘‘दुक्खी के जी उक्खी बिक्खी! कइसउं रो पीट के मनाइये लेलियो मैडम।’’
 ‘‘एक बात जानइत हा कि हम्मर घर में तोहरे मड़आ के आंटा के रोटी पकल हे?”
 ऊ अचकइलन। हम सब खिस्सा सुना देली तऽ ऊ बोललन, ‘‘अंटवा तऽ अपनइं निकाल के लेबे कैलकइ हल। हम देखबे कैलिए हल, बाकि डर से नञ् पूछलिअइ.....के मार खाहे!’’
 ‘‘अइसन स्वभाव के आदमी पागल होवऽ हे?’’ हम कहली।
 ‘‘बाहर में तऽ सबसे निमने से बतिअइतो, बकि घारा में न भूता भरो लगतो मैडम!’’, मूड़ी हिलाबइत शान्ति बोलल, ‘‘हम ओकरा से निराश हो गेलियो दीदी जी! ओकरा पर से हम्मर भरोसा उठ गेलो। ऊ तऽ हमरा देखहे नञ् चाहऽ हो। नजर पड़लो कि झरना भैंसा नियन मारे दौड़लो।’’
 ‘‘ई कहिया से अइसन करऽ हो?, शुरूए से अइसने हलो?’’
 ‘‘नञ् दीदी जी, मुंहे पोछइत रहऽ हलो’’, मुस्कइत शान्ति बोलल, ‘‘जहिया से अइसन रूप धइलको हे, हम सब गल्ला पाती बेच के हथिया ले हियो आउ बैंक में जमा कर दे हियो। एकरा पता भी नञ् चले दे हियो।’’
 थोड़े देरी चुप रहली। हम्मर मुंह से निकल गेल, ‘‘तोरा भीर कभी जा हथुन?”
 शान्ति बोलल, ‘‘देखऽ दीदी, बेटी सेयान हो गेल हे। बेटा भी दस बच्छर के हो गेलो हे, बेटिया आठ के। झूठ नञ् कहबो, जहिया से हम्मर छोटकी होलो हे, ओकरा हम अपना भीर आवे न दे हियो। खा-पीके बाले-बच्चे केबाड़ी लगा लेलियो। ऊ पट्ठा सेया बाल-बच्चा भिजुन की बोलता, घुरिया के दलान चल जा हथ।’’
 ‘‘अइसन काहे?’’ हम गंभीर होके पूछली।
 ‘‘माय-बाप कमसिन में बियाह देलन। जल्दी-जल्दी तीन बुतरू हो गेलो। हमरा एकरा से फाजिल नञ् चाही। हम्मर ओकरा दून्नू के अपरेशन से डर लगतो। गोली-तोली हमरा बूझे न आवऽ हे। की करी, सटहे न देही इयार जी के’’, ऊ मुस्कइत बोलल।
 हम सुन के दंग रह गेली। हम पूछली, ‘‘ऊ अभियो तोहरा भिजुन जाय के परियास करऽ हथुन?’’
 ‘‘हां दीदी, करबे करऽ हइ। ई उमर में सेयान बेटा-बेटी के ऊंच पेट देखावे में कइसन लगत?’’, शान्ति मुस्कइत बोलल।
 ‘‘हमरा लग रहलो हे कि बिसेसर के तू पगलइले हा। तू चाहऽ तऽ बिसेसर, बिसेसर हो जा सकऽ हथ, पहिलउका बिसेसर, मान करइवला बिसेसर, लाड़-पियार करेवला बिसेसर, माउग के इसारा पर तारा तोड़इ वला बिसेसर। तू उनखा अप्पन नजर से गिराइये देली, गांव-जवार के नजर से भी उतरवा देली। सब तऽ उनखे दोस देहे, तोहरा तऽ कुल लक्ष्मी बूझऽ हथ, सहनशीलता के प्रतिमूर्ति, पतिव्रता! हम दू नेतियाह न बोलबो शान्ति! तोहर मुंह से सच सुनके हमरा तोहरा पर दया न आवऽ हो, दया आवऽ हो तऽ बेचारा बिसेसर पर। तू ई बात काहे न बूझऽ हो कि ऊ भी हाड़ के मांस के प्राणी हे, जेकर कुछ इच्छा होवऽ हे, आवश्यकता होवऽ हे। तू अपना के बदलऽ, तोहर जहान बदल जइतो’’, हम लमहर वक्तव्य देके शान्ति के पीठ पर हाथ रखइत उठ गेली।
                                  एस.के. कॉलेज लोहंडा, सिकंदरा(जमुई). 
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यात्रा-संस्मरण
कला बसे बंगाला
                                               
                                                     मिथिलेश
हैलो!’’
‘‘के हऽ?’’
‘‘प्रणाम श्रीमानजी! हम दीनबन्धु!’’
‘‘कहऽ कुशल छेम।’’
‘‘निम्मन हइ श्री मान जी! एगो कोलकाता के प्रेमी जीव अपने से मिले चाहऽ हथिन, भेज   दियन?’’
‘‘आंय महाराज! नेकी पूछ-पूछ! हमरा नियन छोट जगह के जीव लेल एकरा से बढ़के सौभाग्य के बात की होबत कि महानगर के भद्रालोक के दर्शन होवत।’’
‘‘इनखा अपने के पता दे रहली हे, कल्ह जइतन!’’
‘‘स्वागत हे। उद्देश्य?’’
‘‘इनखे से बतिया लेथिन।’’
आउ जाने के खुशी के ठेकाना नञ् रहल कि कोलकाता में मगध संस्कृति के अलख जगावे ले एगो नवसृजित मगध नागरिक सेवा संघ के संस्था हे, जेकर कर्ता-धर्ता-सकरी किछार बसल पौरा गांव के उत्साही नौजवान पारस जी हथ। दूरभाष से उनखर चुनियाल बोली के सहारे इन्सानी मुठान बनइत बिगड़इत रहल। हम तरह-तरह के रूप-रंग-आकार के मानुख सिरजइत, संशोधन करइत रहलूं। मन थिर तभिये भेल, जब अचक्के छो बरिस के पोती मीनू हमरा कमरा में आके कहलक, ‘‘बाबा, एगो अदमी खोजऽ हथुन।’’
 हम्मर धड़कन बढ़ि गेल,जरूर लोहा के सोना बनावइला पारस जी होलन। हम झपटि के गेट पर चलि गेली। जीन्स-पैंट पर घुटना से नीचे तक झूलइत मैचिंग कामर के बेल-बूटा वाला नीला कुरता पर खिलल मुस्कान हाथ फइला देलन आउ हम बांह में समेटइत अप्पन कमरा तक उनखर पीठ हंसोतइत पहुंच गेलूं। हम्मर मुंह से अचक्के निकलल, जा-जा नास्ता पानी के इन्तजाम करऽ हो, बड़ी दूर के अदमी मिले अइलन हे।’’
‘‘जी हम तऽ घरे के ही’’ पारस जी मुस्कुरायत बोललन।
‘‘ई आउ गौरव के बात हे कि हम्मर घर के बेटा कोलकाता में अप्पन संस्कृति के महक बिखेर रहलन हे’’, बोलइत हम उनखा कुरसी पर बइठइली आउ बोलली,‘‘तूं जीवट के अदमी हऽ नुनु। बोलऽ, हमरा से की सहयोग के कामना करऽ हऽ?’’
‘‘अपने के आशीर्वाद चाही....दू अच्छर....बस।’’
‘‘ई तऽ तोहर हक बनऽ हो बउआ! तूं दूर देश में रहिके बीहड़ बीड़ा उठइला हे। संवेदना सहित शुभकामना प्रकट करऽ ही कि तोहर उद्देश्य के पंख लगे।’’
‘‘एतने सुनि के हमरा में असीम उत्साह भरि गेल गुरूदेव! हम गद्गद् ही’’, पारस जी पिघलइत बोललन। उनखर आंखि में आनन्द के आखर बून्द बनि के ढुलकि गेल। हम ऊन भावुक संस्कृति कर्मी के हाथ पकड़ि के ढेर देरी सहलाबइत रहली।
 ईहे बीच हम्मर बड़का लड़का निशान्त चाह-बिस्कुट के साथ आल आउ टेबुल पर रखि के पांलग्गी कइलक, बगल में ठाढ़ भे गेल। दुन्नु एक पिठिया बुझा हलन। प्रेमी जीव पारस जी, क्षण में निशान्त से घुल मिल गेला।
 चाह के बाद हम बोलली, ‘‘अप्पन कार्य-योजना बतावऽ।’’
 ‘‘जी, एगो मगही में पत्रिका निकाले चाहऽ हिअइ। अपने प्रारूप तैयार करि देखिन। दीनबंधु जी से प्रस्ताव कैलिअइ, तऽ ऊ अपने भिजुन भेज देलथिन।’’
 ‘‘देखऽ, पत्रिका के कलेवर पर सामग्री निर्भर करऽ हो। गुड़ जेतना दे हो, ओतने मीठ होतो। प्रकाशन अर्थ पर निर्भर करऽ हो। तोहर संस्था के सामर्थ्य जानले बिना प्रारूप तैयार करना मुश्किल हो।’’
 ‘‘तीस-बत्तीस पेज के बुक साइज कइसन रहतइ?’’
 ‘‘आरंभ दुब्बर रहे, कोय हरज नञ्...सले-सले घी-दूध खाके मोटा जात, कोय चिन्ता नञ्!’’
 ‘‘एक आग्रह आउ हइ! अपने के जमात साथ कोलकाता आवऽ पड़तइ!’’
 ‘‘हम आव, जरूर आव! जमात के सीमा भी बोलदऽ तऽ निम्मन रहे।’’
 ‘‘पांच आदमी तऽ एनउका रहले के चाही।’’
 ‘‘ठीक हे। हम जमात के साथ पहुंच जाव।’’
आउ पारस जी अप्पन छपल कार्ड हाथ में थमा के कहलका, ‘‘जिनखा-जिनखा साथ लेथिन, आमंत्रित करि देखिन। दीनबंधु आउ उदय भारती जी के कार्ड मिल गेलन हे।’’
 ‘‘बड़ बेस! हमरा तीन गो दे दा!’’
 आउ उन्हें निमंत्रण पर जमात के रिजर्वेशन भे गेल। दू आदमी तिलैया से, तीन आदमी वारिसलीगंज से। गया-हाबड़ा तहिया लेट हल। तीन के जगह पांच बजे वारिसलीगंज पहुंचल। दीनबंधु आउ भारती जी हमनी तीनों के जगह टेब लेलन हल। हल तऽ एक्सप्रेस बकि जमालपुर तक पसिंजर रहऽ हल। सीट के अधिकार जमालपुर के बादे!
 लखीसराय तक तऽ खुश फैल से गेलूं बकि वहां तऽ कोचमां कोच भे गेल। औफिस करइवला डेली पसिंजर के रेला से डिब्बा ठसमठस भे गेल। डेली-पसिंजर के रूतवा अलग होवऽ हे। घर भिजुन कुतवो बरियार। बोलिये-चलिये से पता चलि जइतो...आ गेलथुन लइन के रंगदार...सम्हल के...नञ् तऽ बतकुच्चह भेलो कि ठोकइला। हम सब भय से सिमटि गेलूं। नधि गेल चाथन-चुगली, औफिस के अन्दरूनी खिस्सा, हाकिम के शिकायत...भुनुर-भुनुर नञ् गोहार गोहार! हम आउ भारती जी ‘आजकल’´के उपेन्द्र नाथ अश्क विशेषांक पर चर्चा करि रहली हल, बन्द करि देली...नकारखाना में तूती!
 ईहे बीच हम्मर बगल में ताश नधि गेलो। दूतरफी जुड़ल घुटना पर बिछ गेलों तौलिया आउ बंटऽ लगल पत्ता। ताश से एतना तऽ भेल कि हल्ला शान्त भे गेल। खेलबइया चारियो तऽ पत्ती के दुनियां में खो गेलन, बकिये देखबइया एकटक बगुला नियन ध्यान लगा देलन। शेष रहि गेल गाड़ी के हड़हड़ी आउ हिलनइ-डुलनइ। रात गहरा गेल हल। जमालपुर जंक्शन नगिचाल का हल। डिब्बा रस-रस ढील भेल जा हल। गोड़ पर चढ़ल गोड़ पलखत पइलक, राहत लेलक। जुत्ता से गोड़ निकाललूं, आगू-पीछू कइलूं आउ मोड़ के सीट पर चढ़इलूं! दीनबंधु जी पूछलका, ‘‘तबीयत ठीक हइ ने श्रीमान जी?’’
 ‘‘जमालपुर के सुमरनी जाप में सब मनपीड़ा भुलाल हलियो’’, मुस्कुरायत कहली आउ ‘आजकल’ पत्रिका के कभर देखे लगली। उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’´के पहचान अगर अप्पन कथ्य आउ शिल्प में ह तऽ फरवली टोपी ‘मरना और मारना’ इयाद आ गेल। अइठ जोठ में नीचे गिर पड़ल...अस्त-व्यस्त। ओकर उघड़ल अंक देख कै एगो भाभी के अप्पन एकनी बोगी में कइल हनीमून जतरा के इयाद आ जा हे। ऊ सोंचऽ लगऽ हे-लिजलिजा कीड़ा जब सृष्टि के अंगड़ाई लेके तीर-सन तनऽ हे, तब उन शिवलिंग-सन् पूज्य होवऽ हे। हम भारती जी के साथ ऊ पढ़ल कहानी पर चर्चा करइत रहली आउ गाड़ी जमालपुर रेल फैक्ट्री के नगीच रूकल जिरा रहल हल। हम्मर ध्यान ओन्ने गेल तऽ समझली-सिगनल न भेल हे। लम्बा सफर हल। धड़फड़ी के कोय बात नञ्।
 गाड़ी खुलल आउ जंक्शन में लगि गेल। सब अप्पन-अप्पन सीट हथियावे लगला। राय जमल  खा-पी के बिछौना लगावल जाय। फेन की हल, अप्पन-अप्पन थैला के चेन सरकावे लगलन, डिब्बा-डिब्बी खुले लगल, अखबार के प्लेट बिछे लगल, समूह में प्रकार बंटे लगल...लिट्टी, मकुनी, पूरी, सब्जी, अंचार, निमकी। दीनबंधु जी जे भी से हरियर-हरियर पोकढाल मिरचाय निकाल के पूछलका, ‘‘किनरवा-किनरवा लंका चाहियो?
 ‘‘राम-रस के बिना लंका के लहर बरदास्त करत दीनबंधु जी?’’ हम कहली।
 ‘‘जी नञ्, रामरस के डिबिया साथे हइ श्रीमान जी, ‘‘भारती जी मुस्कुरायत अप्पन थैला टटोलइत बोलला।
 ‘‘लाख लंका जारऽ, रावण निखमन होबइवला नञ् हो,’’
हम कहली – ‘‘तखनी तऽ एक राम हला, अब हम सब रामेराम(भोजन आरंभ) करी, निखमन होके रहत’’, कहिके दीनबंधु जी पूरी में सब्जी लपटलका आउ मुंह में डालके चलावे लगला। गाड़ी खुल चुकल हल। अन्हार के छाती पर खिड़की से कुदकि के रोशनी के रेल समानान्तर होड़ लगइले हल।
 नीन्द भरले-पेट के ई भार! पेट में कुछ गेलो नञ् कि पिपनी पर घुरिया लगलो! रात के रेल जतरा गोंगा के गुंड़ बूझऽ...तीत-मीठ के कतोय अभिव्यक्ति नञ्। नीन आल खिरखिरिया पहाड़ भिजुन आउ टूटल हावड़ा जाके।
 पारस जी के फोन घनघनाल, ‘‘हैलो, हम छो नम्बर गेट पर ही, आथिन!’’
 हाबड़ा-हाबड़े हे...! हड़बड़इला कि हेरइला। खैर, पारस जी नियन कुशल गाइड मिलि गेला आउ हावड़ा के होटल में ठहरा के आव-भगत में लगि गेला। चाय पीके एकाएकी सब नहा-सोना लेलका। कचौरी, छोला आउ इमिरती देखि के अप्पन कस्बा इयाद आ गेल। सच कहऽ हे, कोलकाता माने हिन्दुस्तान, माने भारतीयता के संगम!
 हाबड़ा पुल पार नञ् कइला तऽ जिनगी अकारथ बुतरू बानर के बुझउअल बुझावल जा हे-बिन पाया के पुल कउने?
 कोलकाता के जोड़ा साक मोहल्ला, जहां के पावन भूमि पर गुरूदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के निवास स्थल हे, हमरा सब के बुला रहल हल। वह ई मगध नागरिक सेवा संघ के वार्षिक सम्मेलन आयोजित हल। आजकल ऊ कला विश्वविद्यालय के रूप में ख्यात हे। देश-विदेश के विद्यार्थी उहां कला, नृत्य, संगीत, नाटक के शिक्षा ग्रहण करे आवऽ हथ।
 कार मुख्य द्वार पर रूक गेल। उतर के पारस जी नेतृत्व कइलन आउ एगो कलामंच पार करइत हाल में ले जाके बइठा देलन। तखनइ महिला कलाकार के एगो जत्था पहुंचल आउ बगल के निर्धारित कमरा में चलि गेल। उहां के शान्त वातावरण हमरा अभिभूत करि रहले हल। हम चहलकदमी करऽ लगली। थियेटर होल के बरामदा पर घूम रहली हल कि हरियर कचूर लोन के एक छोर पर गुरूदेव के आगू में हाल जोड़ले झुकि गेली। हम्मर आंखि बन्द हल आउ होठ ‘गीतांजलि’ के बंध बुदबुदा रहल हल – ‘आभार तुमि अशेष।

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कविता-कियारी
झूमर
                                       
                                                            केसरीनंदन

अब नहीं सहल जाहे एते रे विपतिया से टुटि गेले धिरिजा मोर।
अंखिया से सुखै नहीं लोर से टुटि गेले धिरिजा मोर॥
हमें उपजैलूं सभे रे अजनबा से करि मेहनत हड़फोर-
लमरौ से लेहै छिनछोर से टुटि गेलै धिरिजा मोर।
चार सांझ पर पकलै मंड़ुआ के रोटिया से बाल-बच्चा लेलै छिनछोर-
रहि गेलूं जिया के मचोर से टुटि गेलै धिरिजा मोर॥
हमरे बनावल सभे रे कपड़वा से रंग-रंग लहंगा पटोर-
हम मरलूं जाड़ा में ठिठोर से टुटि गेलै धिरिजा मोर।
हमरे उठावल ऊंचे रे महलिया से हमरे से होवो हे इंजोर-
हमर घर सुअर के बखोर से टुटि गेलै धिरिजा मोर॥
गांव केर बड़ जमींदार महजनमां से होइ गेलै बड़ सुदखोर-
सुद-दर-सुद लेहै जोड़ से टुटि गेलै धिरिजा मोर।
एक मन लेलिए बिझल खेसड़िया से तीन दिन दुअरा अगोर-
गोड़ परी दंतवा खिसोड़ से टुटि गेलै धिरिजा मोर॥
डेढ़ मन देलिए झलझल धनमा से तइयो करै छिलन पछोर-
धन ओकर हिरदा कठोर से टुटि गेलै धिरिजा मोर।
अब नहीं सहल जाहै एते रे बिपतिया मोर-
मिलिजुलि लड़वै दुसमनमा से करि लेबै हिरदा कठोर॥

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कविता-कियारी
गजल
                      
                     अशोक समदर्शी

बादर से किरिन लिपटल अइसन, रंग सात धनक के की कहना,
पारस के परस होलइ जखनी, लोहा से कनक के की कहना॥
ऊ नैन के बैन के की कहियइ, हल नीन भरल ओदा डबडब,
छन में जे लपक के झपक गेलइ, ऊ नैन उरेहल हल सपना॥
कभी नेह के सागर के लहरा, कभी नफरत के छिप्पल सहरा,
अब हाल उभयचर हो गेलइ, दिलवर के सनक के की कहना।
चूल्हा पर चढ़ल जखनी हड़िया, नान्हे चेहरा बड़गो अंखिया,
हल टंगल, परोसल गेल थरिया, भंफाल महक के की कहना॥
कर में हंसुआ, लोढ़ी-पाटी, अब कलम उठइले बंदूक भी,
श्रम से जुड़लइ ई संस्करिति, चूड़ी के खनक के की कहना॥

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कविता-कियारी
खेलय हो शिव होली
             
                                   दीनबन्धु

खेलय हो शिव होली, गौरा पारवती संग।
एक हाथ लेले भोला, डिमक डमरूआ,
एक हाथ भंगिया के झोली॥
माथे जटा आउ गंग बिराजे,
गलवा नगिनियां के जोड़ी॥
अबीर गुलाल उड़त अंगना में,
लपट झपट रंग बोरी॥
भूत-प्रेत सब मिल जुल नांचे,
बम बम हंथवा के जोड़ी॥
बाघ, बसह, मोर, नाग रंग खेले,
मूसक दांत खिसोड़ी॥

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कविता-कियारी
लूटऽ फागुनी बहारी
       
                               दीनबन्धु

लूटऽ फागुनी बहार, लूटऽ फगुनी बहार, हमहूं तैयार हकूं सइंया॥
आजा मंजरे महुआ को चिआएल,
कोयली करऽ हय पुकार हो॥ अहो.......
राउआं पोखरिया कमलदल खीलल,
मंउरा करऽहय गुंजार हो॥अहो.......
सहजन सहकल सले सले बोलवे,
देउरा देखावे दुलार हो॥अहो.......
बूटा केरइया मंसूरी गदरायल,
रसवा बहावे कोलसार हो।अहो.......
रंग अबीर गुलाल के झोली,
तोहरा लगइवो गोथार हो।अहो......

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कविता-कियारी
सुनऽ होली के चौपाई
              
                                  उदय कुमार भारती

आव एन्ने आ के सुनऽ होली के चौपाई,
कल्हे रतिया फेर भेलो महंगी से हाथपाई।
सौ रूपैये करूआ तेल आउ अस्सी रूपैये बेसन,
बैंगन-प्याज खरीदम् नञ् तउ फुलौड़ी बनत कैसन।
एक रोज के मजूरी में हम की-की करबै भाई,
आवऽ एन्ने आ के सुनऽ होली के चौपाई।
बुतरू नगीच आ के पूछे कल्हे की पेन्हबै गे माई।
दीदी के अंगिया फटल हइ आउ भैया के अंगा,
रद्दी कागज बेच के तऽ ले अयलूं हल रंगा।
भोरे से हम ठुनक रहलूं आउ तो बनल कसाई,
आवऽ एन्ने आके सुनऽ होली के चौपाई।
ई होवऽ हे हम्मर देश में अभियो हे बड़का खाई
एक दने नीनर-दूबर , एक दने कसाई,
ई देश के बेच-बेच के जे खाहे दूध मलाई।
कईसे उड़े गुलाल अबीर हउ दू पाट हइ भाई,
आवऽ एन्ने आके सुनऽ होली के चौपाई।
होली तभिये होली होवत, जउ भेद मिटे सब भाई,
आवऽ एन्ने आके सुनऽ होली के चौपाई।

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कविता-कियारी
होली खेलऽ हइ जवान
           
                                       शफीक जानी नादां

होली खेलऽ हइ जवान करगिल में अप्पन लहू से होली खेलऽ
सीमा पर जवान हम्मर खेले रोज होली,
खाके अप्पन छतिया पर दुश्मन के गोली।
देशवा के बढ़वऽ हइ शान करगिल में अप्पन लहू से॥होली खेलऽ हइ.......
केते रे जतन से देश के लजिया बचैल थी,
दुश्मन के छतिया पर झंडा फहरैलथी।
मिल के हिन्दु मुसलमान करगिल में अप्पन लहू से॥होली खेलऽ हइ.......
चीन-पाकिस्तान भेतै लाख सतरू,
हंस-हंस के भारत मैया लागी हम्मर बुतरू।
जाके करतै स्नान करगिल में अप्पन लहू से॥होली खेलऽ हइ.......
तिरंगा के रंग नांदा फीका कैसे भेतै,
अब्दुल हमीद भगत जलम घर-घर लेतै।
करतै पूरा अरमान करगिल में अप्पन लहू से॥होली खेलऽ हइ........

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कविता-कियारी
होली गीत
            
                  परमेश्वरी

पियवा न अइलै सखी बीतलै फगुनमा
सूना मोर घर लागे सूना अंगनमा
छोटे-छोटे बगिया के गछियो फुला गेल
महुआ कोचरि गेलै आम मंजुरा गेल
सजि गेलै सेंमल के बदनमा
सूना मोर घर लागे सूना अंगनमा
छोटी-छोटी सखिया के पिया घर आ गेल
हमरी अभागली के पियवा परा गेल
करियै हम कौन जोगनमा
सूना मोर घर लागे सूना अंगनमा
नस-नस पवन बसंती समा गेल
काम के अगिनि अंग-अंग में जगा गेल
उख-बिख लागै परनमा
सूना मोर घर लागे सूना अंगनमा

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कविता-कियारी
खींच मुखौटा
         
                                 उमेश बहादूरपुरी

खींच मुखउटा जेक्कर देखलूं ओकर चेहरा काला हे।
घर के भितर जहर भरल मुंह पर मधुआ के प्याला हे॥
इहे प्यार के रूप अगर हे अइसन प्यार नञ् चाहि।
प्यार पर जान लुटावेवला प्यार के ही हम राही।
सबके दिल दरवज्जा पर लटकल अलीगढ़िया ताला हे॥
सहुलियत के कोय बात करे नञ् चहूं ओर हे शोर-शराबा
जान के दुश्मन भाई-भाई कर रहलन हे खून-खराबा।
नीमक छिटे जे जरलो पर ऊपर से मिर्च मसाला हे॥
बीच बजरिया माय-बहिन के राह चले में मोसकिल हे।
की जाने ऊ बेदरदी जेक्कर खुद के पत्थर-दिल हे।
उनखर धन के अइसे समझे जइसे ओकर केवाला हे॥
उज्जर बग-बग कपड़ा बहिन के कहलाबे जे नेताजी।
कलयुग के भगवान बनल हे मिनट-मिनट अभिनेता जी।
नेता दूल्हा बन के बइठल पुलिस ओकर सहवाला हे॥
कर रहलन जे महाघोटाला ओकरे जय-जयकार हे।
दर-दर ठोकर खा रहलन हे जे बड़का फनकार हे।
पांव के नीचे कलमकार शइतान गले वरमाला हे॥

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कविता-कियारी
नुन रोटी
          
                                          अशोक कुमार अंज

झेलैत-झेलैत झेलैत ही, महगी मार दीदी
बस सुखल नुन रोटी हे, जियै के आधार दीदी॥
पेटा में चूहा कूदै, महगी छुए असमान
साग-सब्जी सब महंगा, दिवस बितै आफत समान
घर बाल-बुतरू भुखल, करासन बिन अन्हार दीदी॥
खाऊं की छप्पर छारूं, बिकराल महगी तोड़ल कम्मर
बड़हल बेतन सब के, नै बड़हल मजुरिया हम्मर
फटल पुरान देह ढकले, गुदड़ी लचार दीदी॥
बिगड़ल बजट, बिगड़ल बजरिया, महंगा-महंगा सब
की किनू कि नै किनू, कुच्छो समझ आवै नै अब
तेल बिन केस ओझराल, विपतेबिपत सार दीदी॥
गौ गौत कीनू की खाय अनाज, विपत भारी
लुगा बिन उघार बौआ, बाबु के बिमारी
गौत बिन गौ, हिर्दा हहरावे गोरू भोकार दीदी॥
दुकनदार भैया, दे दे उधार आझ, बुतरू सब भुखल
मिलैत मजुरी दे देबौ हम, आझ दे दे रासन सुखल
बेला बड़ हे बिसम, देबो नै करै उधार दीदी॥
                                       
                                                                                     -वजीरगंज, गया.
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मगह के आयोजन

शिक्षा दिवस पर मगही अकादमी के काजकरम
   
                 शिक्षा दिवस के मोका पर शिक्षा विभाग बिहार सरकार के तत्वावधान में 9 से 11 नवंबर तक श्रीकृष्ण मेमोरियल पटना तक शिक्षा दिवस समारोह के आयोजन भेल, जेकरा में बिहार मगही अकादमी अप्पन दमदार उपस्थिति दर्ज कैलक। अकादमी के तरफ मगही पुस्तक के से स्टॉल और मगही के उपलब्धि के प्रदर्शनी लगावल गेल। मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा के नेतृत्व में अकादमी के कर्मी तीनों दिन ओहां जुटल रहलथिन आउ मगही के प्रचार-प्रसार कैलथिन। प्रदर्शनी देखे लायक हलइ आउ अन्य अकादमी आउ संस्था से एक्कर प्रदर्शन बेहतर मानल गेल। प्रदर्शनी देखे लेल शिक्षा विभाग के अधिकारी, मंत्री आउ प्रदेश के जनप्रदर्शनी अकादमी के निदेशक सब्भे पहुंचलथिन। तहिया श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल के भीतर आउ बाहर रंगारंग साहित्यिक, विज्ञान, संगीत, इतिहास, पुरातत्व से जुड़ल बड़ी मनी काजकरम के आयोजन उहां हलै।
    11 नवम्बर के 2 बजे दिन से मगही अकादमी के संयोजन में कवि सम्मेलन के आयोजन भेल। अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा के मंच संचालन में जोरदार मंच जमलइ। श्रोता आउ दर्शक मगही के कवियन के कविता के प्रभाव के लोहा मानलथिन। काजकरम में दीनबन्धु, जयराम देवसपुरी, दयानन्द बेधड़क, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, शफीक जानी नादां, कृष्ण कुमार भट्टा, सुमंत, भाई बालेश्वर, उमेश बहादुरपुरी सहित दर्जन भर कवि जौर होलथिन हल।
 सब्भे के अंगवस्त्रम देके सम्मानित कैल गेल.

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मगह के आयोजन

मगध नागरिक सेवा संघ के मगही महोत्सव
      
                23 दिसंबर 2012 के मगध नागरिक सेवा संघ कोलकाता के तत्वावधान में संघ के तेसर वर्षगांठ के मोका पर हावड़ा के शरत सदन में मगही महोत्सव के आयोजन भेल जेकरा में मगध आउ कोलकाता के मगहियन के जुटान भेल। काजकरम में मुख्य अतिथि बिहार के नगर विकास मंत्री डॉ. प्रेम कुमार, विशिष्ट अतिथि मगध विश्वविद्यालय बोधगया के मगही विभागाध्यक्ष डॉ. भरत सिंह हलथिन। संघ के अध्यक्ष पारस कुमार सिंह के मंच संचालन में दीया जरा के काजकरम के शुरूआत भेल। डॉ. भरत अप्पन संबोधन में कहलका कि मगह ज्ञान के केन्द्र हइ। मगही एकर विरासत हइ। मगह के पुरनका गौरवशाली स्थान पावे लेल मगहियन के एकजुट होवे पड़तै। ऊ भारतीय संस्कृति के मगह के देन, इतिहास पर मगही सब्भे परिवार के बोले, लिखे-पढ़े के अपील कैलका। डॉ. प्रेम कुमार कहलका कि मगही के बिना देश के संस्कृति आधा-अधूरा हे जउकि केन्द्र सरकार मगही के विकास आउ भाषा के दर्जा देवे में कोताही बरत रहल हऽ। ऊ खास कर युवा से अपील कैलका कि मगही के भाषा के तौर पर सब्भे अपनैथिन तब्बे मगही के विकास होतै।
     काजकरम में मगही भाषा को राज्य भाषा के दर्जा दिलावे लेल हस्ताक्षर अभियान चलावे के आउ दिल्ली के जंतर-मंतर के आगू धरना प्रदर्शन के लेल प्रस्ताव पारित करल गेल। पारस सिंह कहलका कि मगही सम्मान लौटावेले सब्भे मगहियन के एकजुट होके आन्दोलन करे के जरूरत हइ।
     काजकरम के दोसर सत्र में व्यंग्यकार उदय कुमार भारती के लिखल ‘जरासंध के महादान’ आउ कृष्ण कुमार भट्टा के लिखल ‘हाय रे प्रशासन’ मगही नाटक खेलल गेल. ऊंहा के बंगाली कलाकार बड़ी बेस अंदाज में नाटक में मंथन कैलथिन. ‘मगह के आवाज’ स्मारिका के लोकार्पण कैल गेल।
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मगह के आयोजन

गणतंत्र दिवस पर राजगीर के मगही कवि सम्मेलन
     
               26 जनवरी के दिन जवाहर नवोदय विद्यालय राजगीर के सभागार में मगह के कवियन के जुटान भेल आउ एगो इयादगार कवि सम्मेलन अनुमंडल प्रशासन आउ विद्यालय प्रबन्धन के उपस्थिति में भेल। दिन के अनुमंडल के कयगो विद्यालय के बुतरून के रंगारंग काजकरम चलल आउ सांझ छो बजे से कवि सम्मेलन शुरू भेल। वरिष्ठ कवि दीनबन्धु के अध्यक्षता आउ उमेश प्रसाद सिंह के मंच संचालन में जयराम देवसपुरी, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, कवि रंजीत, शफीक जानी ‘नादां’, राजेन्द्र सिंह, डॉ. अखिलेश्वर सिंह, कृष्ण कुमार भट्टा, उमेश बहादुरपुरी, संयुक्ता कुमारी अप्पन अप्पन कविता पाठ से अप्पन विधा हास्य व्यंग्य, गीत, गजल के प्रभाव छोड़लका। सब्भे के प्रस्तुति खूबे सराहल गेल। विद्यालय के छात्र-छात्रा शिक्षक-शिक्षिका वाह-वाह कर उठला। मोका पर एसडीओ रचना पाटिल, अतिथि धीरेन्द्र सनतेका, एलआडीसी संतोष कुमार, विद्यालय प्राचार्य सहिते प्रशासन के अधिकारी उपस्थित हला। सब्भे के शॉल देके सम्मानित करल गेल।
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मगह के आयोजन

हिसुआ में साहित्यिक गोष्ठी एवं कवि सम्मेलन
      
          24 फरवरी के हिन्दी मगही साहित्यिक मंच शब्द साधक के तत्वावधान में आर्य समाज मंदिर में साहित्यिक गोष्ठी व कवि सम्मेलन के आयोजन भेल. दीनबन्धु के अध्यक्षता, उदय भारती के मंच संचालन आउ अतिथि मगध विश्वविद्यालय के मगही विभागाध्यक्ष डॉ. भरत सिंह के उपस्थिति में काजकरम के शुरूआत भेल. डॉ. भरत कहलका कि मगही साहित्य के समृद्ध करे में हिसुआ के योगदान बड़ी अहम हे. यहां के दिवंगत साहित्यकार मगही के समृद्ध करवे करलका आउ अब नयका पीढ़ी एकरा समृद्ध कर रहला हऽ.
 मोका पर ई-पत्रिका मगही मनभावन, सारथी आउ मगही संवाद तीन पत्रिका के समीक्षा भेल. मगही मनभावन के मगही कोकिल जयराम सिंह अंक के सराहना डॉ. भरत आउ दोसर वक्ता कैलथिन.
 दोसर सत्र में वसंत आउ समसामयिक विषय पर काव्य पाठ करल गेल. कवि दीनबन्धु, डॉ. नवल किशोर शर्मा, उदय भारती, अमरेन्द्र पुष्प, अनिल कुमार, देवेन्द्र कुमार पांडेय, हरिहर प्रसाद, शादिक नवादवी, ओंकार शर्मा, प्राणेश कुमार, रामनरेश प्रसाद, सच्चिदानन्द पांडेय, हर्ष भारती कविता पाठ करलथिन. मोका पर अरूण देवरसी, भाजपा नेता पवन कुमार गुप्ता, शिक्षक जयप्रकाश मेहता आदि मौजूद हलथिन.

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मगह के आयोजन
          
                  मगह के मांजर कविता संग्रह के लोकार्पण
     
            02दिसंबर 2012 शेखपुरा जिला मुख्यालय के राजो सिंह सेवा सदन में मगही कवि प्रो. लालमणि विक्रांत के संपादन में निकसल ‘मगह के मांजर’ कविता संग्रह के लोकार्पण बिहार मगही मंडप के अध्यक्ष रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर कैलथिन आउ अध्यक्षता कृष्ण मुरारी सिंह किसान कैलथिन जेकरा में बीस के संख्या में मगही कवि आउ सैंकडों बुद्धिजीवी उपस्थित हलथिन। मुख्य अतिथि रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर कहलथिन कि मगही के साहितकार दशरथ मांझी के जइसन संकल्प के साथ साहित के सृजन करथिन एकरे से हमनी के संस्कार कायम रहत। साहित के विषय ऊ नारी पात्र के बनावे जरूरत हे जे ढेर दिन से उपेक्षित हे। जेकर शादी वैशाख आउ जेठ में होल आउ सावन-भादो महीना के गर्मी आउ वर्षा के बीच धान रोप के अन्न पैदा कर रहलथिन हे। ऊ गांव के लक्ष्मी हथ।
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