रविवार, 25 अगस्त 2013

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-१३

मगही मनभावन
मगही साहित्य ई-पत्रिेका

       वर्ष -                अंक - १३             माह – जुलाई २०१३

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संपादक   --- उदय कुमार भारती
प्रकाशक  --- मगही हिन्दी साहित्यिक मंच ‘शब्द साधक’
                    हिसुआ, नवादा (बिहार)
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ई अंक में

दू गो बात.......
संपादकीय
बतरस

कहानी
फगुनी के याद – रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर
सुहागिन – घंमडी राम
स्वर्ण किरण के दू गो लघु कथा
1.हजामत  2.हिकमत

संस्मरण
सबरी मंदिर के सपना - मसीहउद्दीन

कविता-कियारी
मिथिलेश के पांच गो नवगीत
एकलव्य से – डॉ. शेष आनंद मधुकर
दशरथ मांझी – राजेश मंझवेकर
बंद करऽ अब भ्रूणहत्या – वीणा कुमारी मिश्रा
 धूप कहीं छाया हे – डॉ. व्रज पांडेय नलिन
हमरो एक तान सुनावो दा – डॉ किरण कुमारी
जात धरम के दीया – गोपाल निर्दोष
बन गेल नारी के नौकर - भागवत प्रसाद

मगह के आयोजन
‘फगुनी के याद’ के लोकार्पण
हिसुआ के साहित्यिक गोष्ठी आउ कवि सम्मेलन
वारिसलीगंज के साहित्यिक गोष्ठी आउ सम्मेलन

विविध
पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात

निहोरा
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दू गो बात....
        
                ई अंक 'श्रम के देउता' दशरथ मांझी के समर्पित अंक हइ. मगही मनभावन के ई अंक लेल भी अपने सब्भे के कुछ जादे आसरा देखे पड़लै. क्षमा चाहबै. हमरा विश्वास हइ कि अंक अपने सब्भे के सामने ऐते अपने सउ कुछ भूला के एकरा पढ़े लगथिन आउ हमरा क्षमा कर देथिन.
    ई अंक के दशरथ मांझी विशेषांक अंक बनावे के मन में हिंछा रख के भी एकरा विशेषांक नञ् बना सकलिऐ. हमरे से कोताही भेलै. हम अप्पन ई हिंछा के आगू के कोय दोसर अंक में पूरा करबै. ओकरा लेल कुछ खास आउ संजोगे जुकुर सामग्री जुटावे के जरूरत हइ. हम निहोरा करबै कि जिनखा पास ‘दशरथ मांझी’ से जुड़ल रचना आउ सामग्री हइ ओकरा हमरा तलूक पहुंचावे के कोरसिस करथिन. तऊ ले हम ‘श्रम के देउता’ के कहानी आउ कविता के थोड़े सुन अक्षत रखके नमन करऽ हिऐ. मगही मनभावन के तरफ से उनखा श्रद्धा सुमन अर्पित करऽ हिऐ.
    रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर के लिखल कहानी ‘फगुनी के याद’ दशरथ मांझी के जिनगी के कहानी हइ. फगुनी उनखर मेहरारू के नाम हइ. कहानी में दशरथ मांझी के फगुनी के शादी से लेके ओकर इयाद में दशरथ मांझी के हालत आउ गहलौर पहाड़ी तोड़ के फगुनी के हिंछा के पूरा करे के कथा हइ. फगुनी के इयाद में दशरथ मांझी पर की गुजरऽ हइ.....कैसे उनखर जिनगी बेरंग हो जा हे आउ जइसे शाहजहां मुमताज बेगम के इयाद में ताजमहल बनावऽ हइ ओसहीं फगुनी के इयाद में ऊ गहलौर पहाड़ के 22 बरिस में तोड़ के रस्ता बना दे हथ. इयाद रहे फगुनी ई पहाड़ के पार करे घड़ी फिसल के गिर जा हे आउ ई दुनिया से चल बस हे. दशरथ मांझी के पहाड़ तोड़ के रस्ता बनावे के पीछे जनसेवा आउ कल्याण के भावना भी छुपल हइ.
    ककोलत विकास परिषद् के अध्यक्ष मसीहउद्दीन दबल कुचलल आउ नेपथ्य में रहे वला लोगन के मसीहा हथ. ऊ दशरथ मांझी के बड़ी करीब रहला. परिषद् के ककोलत के काजकरम में उनखा सम्मानित कैलका. ऊ मगही में दशरथ मांझी पर संस्मरण लिख के उनखा श्रद्धासुमन अर्पित कैलका हऽ. ऊहे रचना इहां रखल गेल हऽ. राजेश मंझवेकर पत्रकारिता वला कलम के जोर पर अइसन ‘हरकुलीयन टास्क’ पूरा करेवला आईकॉन के हमेशा उभारते रहला हऽ. भला ऊ दशरथ  मांझी पर कोय रचना लिखे से कैसे चुक जैता हल. मगही में ऊ दशरथ मांझी पर कविता लिख के सोने पर सुहागा चढ़ावे के काज कैलका हऽ. ऊ ई रचना बहुत पहिले हमरा एगो दोसर जगह से निकसे वला मगही पत्रिका में छपावे लेल देलका हल. रचना बड़ी दिन से हमरा हीं ओयसहीं रखल हल. हम ओकरा इहां रख के इनखर करजा से उऋण हो रहलूं हऽ. मंझवेकर जी के तो ईहे विश्वास होत कि हम्मर रचना रद्दी के टोकरी में फेंका गेल होत. पर शायदे साहितकार अइसन करऽ हइ? ....काहे कि रचना के कीमत साहितकार जानऽ हे. ओकरा मोका मिले के चाही.
     स्वर्ण किरण के दू गो लघु कथा मगही लघुकथा के बेजोड़ बानगी हे. स्वर्ण किरण के दमदार कलम के अपने सब्भे परिचित होथिन. मगही मनभावन के कोय अंक लघुकथा विशेषांक भी रहतै. खाली अपने के प्रेरणा आउ संबल चाही. घमंडी राम मगही साहित के एगो दमदार स्तंभ हथिन. उनखर मगही में कृति आउ रचना बिखरल पड़ल हइ. उनखर कहानी सुहागिन इहां रखला जा रहल हे. सुहागिन आझ के संदर्भ के बेटी के हर बुराई आउ कुरीति के खिलाफ अवाज उठावे के प्रेरणा हइ. हम्मर समाज के बेटी के ई कहानी से बल मिलतै.   
    मगही साहित के कुशल चितेरा आउ मगही में हर विधा पर काम करे वला मगही के मगधेश मिथिलेश के पांच गो नवगीत ईहां रखल गेल हऽ. श्री मिथिलेश अखनी मगही में दिन रात नवगीत रच रहला हऽ. ऊ अप्पन धुन में इतिहास रचे में मगन हका. मगही में नवगीत लिखे के पहिला श्रेय उनखे मिलत. सबसे पहिले नवगीत रच के ऊ नयका पीढ़ी के रचनाकार के आंख खोले के काम कैलका हऽ. उनखर नवगीत ईहां रख के हम धन्य हो रहलूं हंऽ.
    डॉ. शेष आनंद मधुकर ‘एकलव्य’ खंड काव्य आउ `मगहे भुलाल ह कविता सेंगरन रचके मगही के बड़गो सौगात देलका हऽ. संत कोलम्बा महाविद्यालय हजारीबाग के प्राचार्य आउ पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष श्री मधुकर मगही लेल अखनी समर्पित होके काम कर रहला हऽ. ईहां ‘एकलव्य’ से कुछ पंक्ति रखल गेल हऽ.
    एकर अलावे ई अंक डॉ. ब्रजमोहन पांडेय नलिन के धूप कहीं छाया हे, वीणा कुमारी मिश्रा बंद करऽ अब भ्रूणहत्या, डॉ. किरण कुमारी के कविता ‘हमरो एक तान सुनावे दा’, गोपाल निर्दोष के जात-धरम के दीया, आउ डॉ. भागवत प्रसाद के ‘बनगेल नारी के नौकर’ रचना रखल गेल हऽ. समदर्शी मंझल मगही गज़लकार हका. मगही के प्रोफेसर डॉ. किरण कुमारी गद्य आउ पद्य  दुन्नूं विधा में अखनी दमदार उपस्थिति दर्ज कैले हका. गोपाल निर्दोष मगही आउ हिंदी दुन्नो भासा में लिख रहला हऽ. भागवत प्रसाद पुरान मगही के रचताहर हका.
    संपादकीय, बतरस, मगह के आयोजन आउ बाकि सऊ स्तंभ अप्पन पहिला तेवर-कलेवर में प्रस्तुत कैल गेल हऽ. पढ़ के आउ सुन के एकरा पर अपने विचार देथिन. एही आशा के साथ......
                                                             
                                                                                                                                 अपने के                       
                        उदय कुमार भारती
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संपादकीय......
साहित सतत् हे निरंतर हे
    
                     हम्मर मेहरारू के जादे बात तऽ बेकारे रहऽ हइ पर कभियो कभियो ओकर बात हम्मर दिमाग के चक्करधिन्नी बनाऽ दे हइ. एक रोज पूछ बैठली....‘‘अयं जी! तोहन्हीं साहित में एतना दिन से की तीर मार रहलो हऽ....की बम गिरा रहलो हऽ....अभी तलूक तो कोय अवाज नञ् भेलो आउ दखो तऽ दोसर एक्के दू साल में साहित में बड़का-बड़का धमाका कर के छा गेलन. तोहर आदरणीय दीनबंधु जी चालीस साल से मगही के झोल ढो रहलथुन हऽ आउ करलथुन कुच्छो नञ्. नञ् तो बेचारी विमला भाभी के साहित से कोय सौख पुरैलथुन आउ नञ् कमाय-धमाय देलथुन. अपने भले दू-चार गो अंगवस्तर पा के आउ चद्दर ओढ़ के मगन हथुन. विमला भाभी के साहित के कमाय से साड़ी-लुग्गा पावे के सरधा सरधे बनल रह गेल.’’
   हम चिहुंक के पूछ बैठलू, ‘‘तू कहे की चाहऽ हका. साहित की कौनो कल-कारखाना हे, जेकर प्रोडक्ट के बेच के हमन्हीं बड़का सेठ आउ साहुकार बन जैतूं हल. ई तोहर समझ के बाहर के बात हे. एकरा में दिमाग नञ् लगावऽ. हम साहित के साधक ही. बजार के व्यापारी नञ्.’’ हम चिड़चिड़ाके ओकर मुंह बन करावे के कोरसिस कैलूं.
    ऊ फिर ठुमकली....‘‘जे साहित से पेट नञ् भरे, मेहरारू आउ बच्चन के झूल्ला, लुग्गा नञ् मिले ऊ साहित की काम के?’’ हम चुप भे गेलू. गुम अप्पन साहित्यिक सोंच में गंभीर भे गेलूं.....कि साहित खाय-कमाय के चीज हे?....अपने के चमकावे के चीज हे?......इया समाज के आईना दिखावे के चीज हे?......संस्कृति के जिंदा रखे के चीज हे?.....संस्कृति पैदा करे के चीज हे, संवेदना जगावे के चीज हे?..... आत्म बोध के चीज हे?.... की ई सब्भे से उपर के कोय आउ दोसर चिजोर.
   अप्पन अतर्मन के रूप आउ प्रतिरूप में विवाद होवऽ लगल. हम सच्चा आउ जुगाड़ु साहित आउ साहितकार में भेद विभेद करऽ लगलूं पर साहित के अंगद मन फिनू से अप्पन पांव ओसहीं जमा लेलक.
   सच्चा साहित आउ साहितकार चिर शाश्वत होवऽ हइ आउ जुगाड़ु साहित आउ साहितकार क्षणिक. सोडा वाटर के जइसन. ऊ लमहर रेस के घोड़ा नञ् बन सकऽ हइ. हम्मर मन कहलक....तोहर दीनबंधु आउ दीनबंधु जइसन साहितकार मंथर गति झर-झर बहे वला निर्झर हथुन, जेकरा से दुनिया के पियास बुझऽ रहल हऽ. जेकरा से धरती के सिंचाई आउ श्रृंगार होवऽ हइ. ऊ सेवा, त्याग, कल्याण के बोसाह लेले निरंतर बहऽ हथिन. ऊ सतत् हथिन. जुगाड़ु साहित आउ साहितकार दरिया के सैलाब हइ, जेकरा से जग के कल्याण नञ् विनाश होवऽ हइ. क्षणभंगुर अप्पन दम दिखावे आउ उल्लू सोझ करे लेल बड़का-बड़का धमाका कर के अदृश्य हो जा हइ. झरना के रवानगी और सततता ओकरा में कहां?
   साहित साधना के नाम हे. ई सत्यमुखी होवऽ हे आउ साधना आउ सत्य के चाल तऽ सदाय से मंथर हइ.
                                 
 उदय कुमार भारती
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बतरस
          अजी पत्रकार जी महारज...! जय होवइ तोहर पत्रकारिता धरम के, नीके सुखे रहे तोहर कुल परिवार!
   अप्पन दुःख हम केजऽ से कहे ले शुरू करिअइ समझ में नञ् आवऽ हइ. ई समाज हमरा देहिया के गिद्ध अइसन नोच-नोच के एतना घाव बना देलके हऽ कि ओकर टीस आउ दरद  से हम अप्पन पहचान भूलाल जा ही. ई मेहरारू के जात ई समाज में कहिया तलूक नोचात.....? दूर-दूर तलक एकर कोय जवाब नञ् सुझाय पड़ रहल हऽ. बाबू, एक दन्ने समाज के ऊ भेड़िया हमरा नोचऽ हइ.....जे हम्मर संरक्षक हइ, हमरा से कंधा से कंधा मिला के ई सृष्टि के सृजन करे वला हइ. ई दुनिया के इंद्रधनुषी रंग में रंगे वला हइ. तऊ दोसरा दन्ने हमरा ऊ नोचऽ हइ जेकरा पर हम आध्यात्म आउ आस्था के विश्वास रखऽ हिऐ. बार-बार हमन्हीं के साथ विश्वासघात हो रहल हऽ. हम्मर आस्था अउ हिले लगल हऽ बाबू. केकरा पर हमन्हीं विश्वास करियै आउ कि जुगत लगैइऐ. जे देश में औरत सरस्वती, लक्ष्मी आउ दुर्गा मानल जा हइ, देवी तुल्य हे, सर्वदा पूजल गेल हे...ऊ नार पर ई जुग में दिनोदिन प्रकोप बढ़ले जा रहल हऽ. तोहनिये साहितकार आउ पत्रकार कुच्छो उपाय निकालाहो बाबू...हमन्हीं के अपने से बड़ी आशा हइ.
     कुच्छो अइसन संदेश देहो कि हम्मर समाज के बेटा सउ संवेदनशील बनै. ओकर दीदा पर लगल पट्टी खुलै. ओकरा सुझै कि जरी सुन बहशी उन्माद के पूरा करे के फेर में ऊ की बिगाड़ के रख दे हइ? एगो औरत के जिनगी की से की की भे जा हइ? ऊ फूल अइसन बेटी के जिनगी कइसे आग के दरिया बन जा हइ? हम्मर समाज के बेटा में कइसे संवेदना के संस्कार अयतै बाबू? कुछ करऽ हो , ई समाज से संवदेना मर रहले हऽ बाबू।
      केकरो बेटी भी स्कर्ट, जीन्स आउ छोटगर कपड़ा पेन्ह के चलऽ हइ तब युवा आउ पुरूष के नजर ओकर टांग आउ हीप पर काहे फिसलऽ हइ बाबू? बाबू, ई युवा में बहशी सेक्स आउ अपराध कहां से पनपऽ हइ? एकरा के परोसऽ हइ? एकरा बढ़ावा देवे वला समाज में की की उद्दम चल रहल हे? ओकरा रोके के की उपाय हइ? एकरा पर अंकुश लगावे लेल की हो सकऽ हे?,..कड़ा कानून एकरा लेल काफी हइ कि आत्म-बोध करावे के जरूरत हइ. की खाली कानूने से हम्मर समाज में सुरसा के मुख के जइसन फैलल जा रहल ई विकृत्ति खतम हो जयतइ? जऊ बीच सड़क पर एगो आउ बेटी के गिद्ध नोच-नोच के खा जा हइ, मरणासन्न करके छोड़ दे हइ. देश में खूमे हो-हल्ला होवऽ हइ. राजनीति और सहतर गो उतार-चढ़ाव होवे लगऽ हे तउ सरकार एगो आउ कानून बना दे हे. मगर ई कानून से सजा केतना के मिलऽ हइ. बड़का-बड़का टीकाधारी बाबा पर जुउ मामला दर्ज हो जाहे तउ ऊ बाबा गायब हो जा हथिन आउ हम्मर देश के पुलिस उनखा खोज नञ् पाबऽ हे. की हम्मर देश के पुलिस एतना अक्षम हे? बड़का-बड़का पगड़ी वला आउ मोंछ वाला के बेटा के गुनाह साबित होवे के बखत आवऽ हे तउ हम्मर देश के बड़का-बड़का वकील ओकर पक्ष में खड़ा हो जा हथिन. काहे बाबू, जउ पूरा देश अइसन पापी के हत्या आउ फांसी के मांग करऽ हे. तउ ओकरा बचावे के उपाय काहे? ओकरा बचावे वला वकील ई देश के नागरिक नञ् हथिन इया ओकरा हमरा अइसन बेटी नञ् हे? ओकरा ई समाज के संरक्षण काहे मिलऽ हे बाबू? ओकर बहिष्कार काहे नञ् होवऽ हे? ओकर विरोध काहे नञ् होवऽ हे? पापी आउ पापी के साथ देवे वला के ई समाज काहे नञ् दंड दे हे? ओकर सामना काहे नञ् करऽ हे? मोमबत्ती आउ टायर जला के विरोध जतावे वला में ओहो पापी शामिल हो जा हे बाबू, जे ओकर संरक्षक हे. हम्मर देश के कानून भी तो अप्पन औपचारिकता के बंधन में कसमसाईत रह जा हे बाबू. पापी के सजा मिले में कय साल लग जा हे? हम्मर देह के बेधे वला के तुरते सजा कइसे मिलते बाबू?..... तनी झकझोरहो ई समाज के ..... ई समाज के ठीकेदार के..... सरकार के..... आउ अप्पन अतमा के बाबू.
                                                   
तोहरे.....
                              
दुखछल एगो बेटी
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कहानी
फगुनी के याद
                        
                                                     रामरतन प्रसाद सिंह रतनाकर
         
                 फागुन के महीना हल. गहलौर पहाड़ के ऊपर यादोपुर आउ बेला गांव में गेहूं कटो लगल, बूंट आउ खेसाड़ी गदरा गेल हल. दशरथ बेला में किसान के भैंसा आउ भैंस चरोवो हल. दशरथ फरहर हल आउ तेजी से काम करो हल से गुनी किसान के पत्नी मानो  मट्टा भात, मट्टा रोटी खाय ले दे हल. सांझ में मकई के भूंजा भी मिल जा हल से गुनी दशरथ के मन लग गेल हल.
 दशरथ के बाप भदाय मांझी अप्पन जनी के साथ बेला गांव आके किसान से बोलल – किसनमा दशरथवा के शादी करे के मन हे, पुरा गांव के बरतुहार से बात तय होल हे, अब तो दशरथवा तोहर हलवाही करतो आउ ऐकर माउग धनरोपनी करतो. तोहरे जन हो जईतो.
 किसान भदाय मांझी के चावल-दाल आउ रूपइया दे देलक तो भदाय मांझी बोलल दशरथवा के हम्मरे साथ जा दे हो. अब तो शादी होला के बाद अइतो. किसान के पत्नी दशरथ के सतुआ आउ भूंजा देके बोलल – दशरथ शादी होला के बाद चल अहिया, तोहर माउग के लेल एगो साड़ी रखले हिओ. प्रसन्न चित्त से भदाय आउ दशरथ पहाड़ पार करके गहलौर आ गेल. घर में मामू आल हल. मनरा, घघरा आउ टुनटुनिया मंगावल गेल. बारात पांच मील दूर पूरा गांव जा लगल – चाचा घघरा पहिने के नटुआ के नाच करो लगल, मामु मनरा बजाबो लगल आउ भदाय मांझी टुनटनियां बजावो लगल. दशरथ पीयर धोती आउ कुर्त्ता, गमछी पहिनले आउ रखले हल. सांझ बारात आ गेल – एगो दिया आउ एगो लालटेन के व्यवस्था हो सकल हल. भदाय मांझी नाराज होके बोलल एगो लाईटो के व्यवस्था नय हो सकलो हल. घर में शादी के नेग आउ दरवाजा पर नेटुआ के नाच-ताक धिना धिन बजैत रहल. खैयला पिला के बाद सभे सुत गेल. दशरथ के पास ओकर पत्नी हल – दून्नू एक दोसरा के देखे में मशगूल रहल. दशरथ के उमर बारह साल के आउ ओकर माउग फगुनी के उमर दस साल के हल.
 भदाय मांझी दशरथ के आउ फगुनी के ले के गहलौर से बेला पहाड़ पर पार करके चलो लगल. फगुनी बोलल हम्मर गांव तर छोटगर पहाड़ी हे, ई तो बड़गर पहाड़ हके. दशरथ बोलल – ई पहाड़ के रोज हम्मर बाउ पार करके खेती करे लेल यारपुर बेला जा हथ. फागुनी बोलल – तोर गांव से अच्छा हमरे गांव हे. तीनों किसान के घर पहुंच के किसान आउ किसैनी के गोड़ लगल. किसान गोड़ लगाय फगुनी के दस रूपइया और किसैनी एगो साड़ी आउ झुला देलक. तीनों के मट्टा भात आउ आलू के चोखा खाय ले देलक. प्रसन्न हो के तीनों फेर पहाड़ पार हो के गहलौर आ गेल.
 गहलौर छोट गांव हे. पासे में वजीरगंज बाजार हे, मुदा गहलौर पहाड़ के कारण आवे जाय में परेशानी हे. रोज-रोज किसान के गांव जाय में आउ बाजार जाय में पहाड़ के कारण सोचो पड़ो हे. लंगा पहाड़ गर्मी में तप जा हे तो बरसात में सांप-बिच्छा के डर रहो हे. ए हे रूप में जिनगी के गाड़ी चल रहल हे. फगुनी कभी नैहर तो कभी ससुराल रहो हे. दुन्नु अब जवान हे. पहाड़ पार करके किसानी के काम करे लेल दशरथ के यारपुर बेला जा पड़ो हे, तो खाना बनाके खाय लेके फगुनी के ऊ पार पति के पास जा पड़ो हे. दुन्नु खाना साथे खा हे. एक दिन किसैनी बोलल-दशरथ अउरत मन लायक हो ने. फगुनी बोलल – मलकिन हम इनखर मन लायक ही नय ई तो ई जानो हथ मुदा हम्मर मन आउ तन दुन्नो इनखर साथ हे.
 दशरथ आउ फगुनी साथे-साथ रहो हे. अब जब फगुनी नैहर पुरा जाय के बात बोलो हे, तो दशरथ नाराज हो जा हे. बहुत कहला पर जब ऊ नैहर चल जा हे तो तीसरका दिन दशरथ भी पुरा पहुंच जा हे. दुन्नु के मन एक दोसरा के बिना नय लगो हे. ई बीच फगुनी के बच्चा भी होल मुदा अपंग. दशरथ रात-दिन मिहनत करके पत्नी के खुश रखे के काम करो हे. साथ बाजार जा के साड़ी-ब्लाउज खरीदो हे. दवा-दारू भी साथे साथ जा के खरीदो हे.
 एक दिन फगुनी रात में गर्मी से परेशान हो के पहाड़ के चट्टान पर बैठ गेल. ओकर गोड़ में सांप काट लेलक. जब दशरथ के मालूम होल, ऊ परेशान हो के झाड़-फूंक करे वाला के पास ओकरा गोद में उठा के ले गेल. एक मील पर यारपुर जा के रात भर झाड़-फूंक करैलक. फगुनी ठीक हो गेल मुदा दशरथ के कलेजा धक-धक करते रहल जब तकल फगुनी नय बोलल. ई घटना के याद करके फगुनी रो जा हे. हम्मर मालिक हमरा एक मील अकेले उठा के ले अयला हल. ई नटगर मरद के भगवान खूब शक्ति देलथिन हे – तबे तो अकेले उठा लेलथिन.
 फगुनी अप्पन पति के दीर्घ जीवन के लेल मधूचक के पींडी पर छौना के बलि देलक आउ गाछ के पूजा कैयलक. धीरे-धीरे दशरथ आउ फगुनी के प्यार के चरचा गांव में होवो लगल. मईया गहलौर के पींडी पर दूध चढ़वो लगल आउ भूत-प्रेम योनि से मुक्ति के लेल पीपल वृक्ष के जड़ के पास शनिचर के जल देवो लगल.
 दिन आउ महीना, साल आउ व्यतीत होते रहल. कभी खुशी तो कभी गम के धूप-छां आते आउ जाते रहल. ई रूप से आठ साल व्यतीत हो गेल. दशरथ के माय-बाप दुन्नु मर गेल. मिट्टी आउ फुस के बनल घर प्रत्येक साल बरसात आवे के पहिले बनावे के काम भी करो पड़ो हके.
 ई साल जोरदार बरसा प्रारंभ होल. नागपंचमी के त्योहार मनबल गेल. कल से धान के रोपा लगत किसान में धान रोपन के ललक हके. मजदूर सबके गांव में कजरी के गीत देर रात तक होवो लगल. कल फगुनी के सबेरे किसान के घर जा के धनरोपनी के पहिला दिन पंचऔटी करेके हे. सबके काजल लगावे के आउ माथा में तेल, मांग के लेल सिंदूर लगावे के हे. इंद्र बाबा के खुश रहेले गीत भी गावे के हे. तहिना रात भर मउग-मरद धन रोपनी के बात करते रहल. दशरथ बताबो हथ कि हम्मर माय तो पांच कट्टा धान अकेले रोप दे हल. फगुनी बोलो हे – हम भी पांच कट्टा रोप देम. एहे ढंग के बात करैत दुन्नु एके साथ चटाय पर सुत गेल.
 भोर हावे के साथ दशरथ पर-पैखाना, मुंह, हाथ धोला के बाद यारपुर बेला जाय लेल पहाड़ पर चढ़ के ऊ पार हो गेल. ऊ किसान के घर से हल आउ भैंसा लेके चल दे हे. मानल जा हे कि सावन आउ भादों के तीखा धूप के बीच कादो करे में भैंसा आउ मुसहर जन के बराबरी कोय नञ् कर सको हे. जे किसान के भैंसा के हल हे आउ मुसहर जन हे. मानल जा हे ओकर घर में अन्न भरल रहो हे. जन सब में दशरथ के नाम हे. सब किसान के सुबहे जन के उठावो पड़ो हे, मुदा दशरथ सब दिन अपने उठके किसान के जगावो हे, ए गुन्नी दशरथ आउ फगुनी के किसान जन नय अप्पन परिवार के सदस्य मानो हथ. प्रत्येक साल नागपंचमी के दिन बीस गो आम, रसिया आउ धाना के लावा फगुनी किसान के घर से मिलो हे. किसैनी बोलल – ई साल ठीक से धान रोपन हो जात तब फगुनी के साड़ी आउ झूला आउ दशरथ के धोती जरूर देम. ई सब बात के कारण फगुनी के मन में उत्साह हल.
 धनरोपनी आउ रोपनी के गीत-हास्य परिहास भरल होइत रहल. रोटी-सतुआ आउ रसिया सभी जन आउ रोपनी अलंग पर बैठ के खैला के बाद फेन काम में लग गेल.
 तहिना दूगो हरवाहा, दूगो कुदरवाहा आउ दस गो रोपनी दशरथ के किसान के हल.
 किसान के घर से मजदूरी में मिलल धान आउ फगुनी के लेल धान के साथ मठझोर आउ सत्तू भी मिलल. सब रोपनी आउ मोरी उखाड़े वाला, कुदार चलावे वाला के संग फगुनी पहाड़ पर चढ़ो लगल. ऊ घूर-घूर के पीछे अप्पन मरद के देखते चल रहल हल – रिश्ता में देवर भतु मांझी अप्पन भाभी के भाव समझ के एगो गीत गावो लगल –
धीरे-धीरे चलगे रोपनियां,
दशरथ हथिन पीछे परिया.
एन्ने ओन्ने मत देख रोपनियां,
राते करिहां खूब बतिया.
तेजी से चलगे रोपनियां,
सूरज डूबल ए ही परिया.
पहाड़ के देश गे रोपनियां,
कठीन हकय सभे रहिया.
फगुनी के साथ सभी रोपनी ठहाका मार के हंस गेल. फगुनी बोलल – पहाड़ वला गांव में तोर बाप दादा काहे बसलो – देखो हम्मर नैहर, पास में बाजार, सब राह असान हे. एहे सब बात करैत आधा पहाड़ पार लगल कि फिर पीछे देखे के कारण फगुनी के पैर फिसल गेल आउ ऊ लूढ़क गेल. जब तकल सब बात समझ सकला हल – फगुनी साठ फीट धक्का खायत गिर गेल. माथा से खून बहो लगल – बेहोश हो गेल. दौड़ के एक अदमी दशरथ के किसान भागो सिंह घर पहुंच के हाल कहलक. भागो अप्पन अउरत मंजू से धोती-कुर्ता आउ ईलाज के ले रूपइया लेके दशरथ के साथे वजीरगंज पहुंचल. भागो दवा लावे ले दुकान गेला आउ दशरथ फगुनी के खाट के पास खड़ा होके देखो लगल. फगुनी के होश आल आउ दशरथ के हाथ पकड़ के मुश्किल से बोलल. ई पहाड़ के हमनी के सुख मंजूर नय हल तों अच्छा से रहिया – अप्पन किसान आउ किसैनी के नञ् छोड़िया – ओतने में भागो सिंह आके माथा छुओ लगला – दवा देलका मुदा फगुनी के प्राण-पखेरू उड़ चुकल हल. दशरथ बेहोश हो के फगुनी के शरीर जे लाश हो चुकल हल पर गिर गेल. होश अइला के बाद लाश गहलौर आल आउ दाह संस्कार पहाड़ के किनारे संपन्न भेल.
 फगुनी के मरला साल गुजर गेल मुदा दशरथ के मुंह पर हंसी गायब हे. ऊ उदास पहाड़ के देखते रहो लगल. जब ऊ किसान के घर जा हल तब ओकर किसैनी मंजू समझावो हथिन – दशरथ एतना उदास आउ दुखी रहवा तो कैसे जिनगी चलतो. तों करतू जात ह, तोहर बाप-चाचा दुन्नू दू आउ तीन विवाह कैयलथून हे, तों भी बिआह कर लऽ. ढेर रोयला से ऊ फेन आबे वाली नञ् हे.
 दशरथ के उदासी आउ बेचैनी देख के गहलौर, यारपुर, बेला गांव के लोग दशरथ से शादी करेके सलाह मिलत रहल, मुदा दशरथ बोलल जे पहाड़ हम्मर देवी जैसन फगुनी के मार देलक ऊ पहाड़ के छाती बिना फाड़ले, हमरा चैन नञ् लेम. ई बात जे भी सुनल सबके एके राय – कि दशरथ पागल हो गेल हे. पहाड़ के छाती कैसे फाड़ल जा सकल हे – दशरथ बोलल पहाड़ के तोड़ के बीच से रास्ता बनावल जा सको हे. हम्मर फगुनी तो मर गेल मुदा आगे फेर कोय नञ् मरे एक्कर बात बतावो?
 गर्मी के दिन आ गेल. किसान के घर काम कम गेल.  दशरथ वजीरगंज आ के बी.डी.ओ. से मिलल आउ बोलल साहेब गहलौर पहाड़ के काट के रास्ता बनावल जाय तबे हमनी के गांव के विकास होत. बी.डी.ओ. बोलला – ई अभी संभव नञ् हे. दशरथ बोलल – साहेब मरद के लेल कुछे असंभव नञ् हे. हमरा एगो हथौड़ी, एगो छेनी, एगो कुदाल आउ गैता आउ एगो डेली देल जाय साहेब – हम रास्ता बना देम. उपस्थित लोग ठहाका मार के हंस देलथिन एकर जहिना से माउग मरल हे तहिया से ई पागल हो गेल हे. भला ई पहाड़ काट के रास्ता बनना बच्चा के खेल हे. बी.डी.ओ. भावुक आदमी हलथिन बोललथिन आवा – अभी हम तोहर समान देहियो – आगे तों जानिहा.
 दशरथ सूरज देवता के सामने हाथ जोड़ के बोलल – हे सविता, शक्ति दा, हम अपने लेल नञ् सभी के लेल ई पहाड़ काटके रास्ता बनावे के अनुस्ठान शुरू करो हियो – बाकी माता-पिता-देव पितर हमरा शक्ति दा. दशरथ लग गेला पहाड़ काटे लेल. पांच साल तक काटला के बाद एक चौथाई पहाड़ कट गेल. ई बात के जानकारी ई क्षेत्र के एक साहित्यिक मन के विधायक के होल – ऊ खादी भंडार से दूगो धोती, दूगो कुर्ता आउ गमछा के साथ एगो गांधी टोपी लेके गहलौर आ गेला. साथ कईगो साहेब भी हला. सबके उपस्थिति में विधायक जी वस्त्र आउ अपने हाथ से टोपी पहना के दशरथ के मान बढ़ा देलथिन आउ 21 सौ रूपईया भी देलथिन. दशरथ के लगल अच्छा काम करेवला के साथ भी आदमी हथ.
 जोश आउ उमंग के साथ दशरथ पहाड़ काटे में लगल रहल. ई बीच कबीरदास के माने वला संत एता एगो कुटिया बना देलथिन आ कबीर दास के गीत गावो हलथिन. दशरथ भी कबीर पंथी हो गेल. ऊ निर्गुण खूब गावो लगल. डफली के साथ कबीर के भजन आउ फिर छेनी – हथौड़ी के खट-खट के अवाज सुने के लोग अभ्यासी हो गेलथिन.
 22 साल में दशरथ गहलौर के पहाड़ के तोड़ के रस्ता बना देलथिन. ई बीच इनखर नाम लिंबका बुक में दर्ज हो गेल आउ दशरथवा मांझी आउ दशरथ बाबा आउ प्रेम दीवाना दशरथ मांझी के नाम सगोरो नाम फैल गेल. बिहार सरकार दशरथ के पांच एकड़ जमीन देलक तो ऊ लिख के दे देलक एकरा में अस्पताल खोलल जाय.
दशरथ आउ फगुनी के प्रेम कहानी के गीत आझ भी गहलौर के आस-पास गाबल जा हे कि प्रेम में त्याग होला के बाद ऊ अमर हो जा हे. जे धरती पर तपस्या के बल सिद्धार्थ बुद्ध होलथिन ओहे धरती पर श्रम शक्ति के बल जेकरा में फगुनी के प्यार के प्रेरणा हल प्रेम के बड़गर – यादगार उदाहरण दशरथ मांझी उपस्थित करके विदा हो गेलथिन.                      मगह के शान दशरथ बढ़ा के
प्रेम के गीत बजा के
मरद के लेल सब संभव हे
के भाव जगा के
ऊ चल गेला, सुतल के जगा के.
                                         
                                                                         -बिहार मगही मंडप, वारिसलीगंज,(नवादा).
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संस्मरण
सबरी मंदिर के सपना
                               
                                                              मसीहउद्दीन
     
               21वीं सदी के पहिला महीना कुहासा से भरल हल. एगो तो जाड़ा के दिन आउ फेन कुहासा दिन तकल गरम कपड़ा के जरूरत हल ओहे मौसम में एगो मैल चादर ओढ़ले आउ एगो टोपी पहिनले दशरथ मांझी हम्मर गांव शेखपुरा अइला. नाम सुनलूं हल मुदा भेंट पहिले होल. उनखर नाम आउ काम जाने के कारण कुर्सी छोड़ के खड़ा होके सलाम कयलूं, ऊ बोलला हम तोहरे से मिले अयलूं हे. हमरा मालूम होल कि तोहीं सीतामढ़ी विकास परिषद् के अध्यक्ष हऽ. हम बोललूं कि आदेश हे तब ऊ भाव के साथ बोलो लगला कि हम सबरी मंदिर सीतामढ़ी में बनावेले चाहऽ ही. सबरी राम भगवान के भगत हलथिन. उनखर घर जब भगवान राम अयलथिन तब भगवान के सोवागत में बैर फल लयलथिन, उनखा लगल कि हो सको हे बैर खट्टा रहे से गुनी बैर चख-चख के भगवान के देवो लगली आउ भक्ति के बस में भगवान बैर खैलथिन. भक्ति के बस में भगवान सबरी के घर अयलथिन.
 जे भगवान राम सबरी के जूठा बैर खैलथिन ऊ भगवान राम के नाम पर समाज के तोड़े में कुछ लोग लगल हथ से गुनी हमरा लगल कि सबरी के एगो मंदिर सीतामढ़ी में बनाबल जाय.
 दशरथ मांझी बोलला कि सीतामढ़ी में सीता जी रहलथिन आउ एहें लव आउ कुश के जनम होल से गुनी सीतामढ़ी पुण्य के धाम हे.
 उनखर आग्रह मान के सीतामढ़ी नया थाना भवन के दक्षिण में उनखा जमीन देखवल गेल आउ आगे ईंटा, बांस मांग के लाल गेल आउ ढांचा कुटिया के बन गेल मुदा ऊ मंदिर नय बन सकल आउ अब तो ऊ कुटिया बी अस्त-व्यस्त हालत में रहल. एन्ने फिनू मंदिर बना के उनखर सपना पूरा करे के प्रयास करल जा रहले हऽ. ऊ साल में कम से कम सीतामढ़ी मेला जाड़ा जाड़ा के मौसम में लगऽ हे. मेला में ऊ बराबर आवो हलाऽ आउ ओहे कारण हमरे पास भी आवो हलाऽ. ई संजोग हे कि जब दिल्ली एम्स में जीवन आउ मौत से ऊ जूझ रहला हल हम उनखा पास हलूं आउ आझ जब उनखर याद में बोल के जरूरत होल तब लगो हे आदमी उमर से नञ् काम से जानल जा हथ ई कसौटी पर दशरथ मांझी अमर हथ।
                                                             
                                                                                                                           अध्यक्ष
                                                                                                              ककोलत विकास परिषद्
                                                                                                                             नवादा.
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कहानी
                                                  सुहागिन
                                 
                                                                                                  घमंडी राम
    
            ‘सुनऽ लछुमन! अप्पन साथी लोग के कह दऽ कि बारात में शराब पी के कोई नञ् जायत’ – राम टहल दुन्नो हांथ जोड़इत गिड़गिड़ा के कहलन. अनमनयला लेखा बोललन.
 ‘देखऽ बबुआ अगर हम गलत कहित होयम तो चार जूता मारिहऽ. आज बारात जुद्ध में बदल जाइत हे, ओकर कारण दारू के निशा हे.’ अपराधबोध से ग्रस्त होके रामटहल निहोरा कैलन.
 ‘‘ए काका! सांच कहला पर लोग तिरमिराये लगऽ हथ.’’.....
लछुमन के बात बीचे में काट देलन आ रामटहल कह बइठलन – ‘‘तिरमिरी तो हमरा लगवे करत. डंक मारला पर हो बबुआ बिसबिसयबे करऽ हे आ ऊ उंक तो हमरे लगत.’’
 एही बीच में सोनामति फुआ लकुटी टेकइत आ गेल आउ रामटहल से एगो बीड़ी मांग देलक – ‘‘का दुखछल सुनाऊं बबुआ! दुगो बीड़ी ताखा पर धयल हलवऽ, छोटका पोतवा चोराऽ के फूंक देलकवऽ.’’
 ‘‘इज्जत बचावल मोसकिल हवऽ फुआ. अब तो सबके मुंह से एक्के बहार निकस रहल हे – ‘‘डूबल-डूबल भंइसिया पानी में.’’
 ‘‘मत पूछऽ बबुआ बेर डूबलवऽ कि टीन के टीन कलजुगिया दूध बिगहा पर ढोआये लगतवऽ.’’ कपार ठोकइत फुआ बोललन.
 ‘‘आय फुआ! आगे तो बयवते न कैलऽ. कलजुगिया चौपाल सबके दलान पर लग जायत. बड़ जेठ मुंह लुका लेतन. उधर नया-नया होरी-चइता गवाये लगत. दस बजल कि सब झूमइत अप्पन मेहरारू के गोड़थारी में.’’ रामटहल कहइत-कहइत बेयग्गर हो गेलन.
 आ मार बढ़नी रे! भिछनी मेहरारूओ ओही लगन के. माथ पर भर चुरूआओ तेल थोप देत आ सुतले-सुतले दाल-रोटी कांड़ी से पिया देत.’’ सोनामति फुआ बीड़ी लेलन आ धूंक मारइत टुघरइत चल देलन अप्पन पलानी में.
 इधर रामटहल घरे अयलन. बेटा हरदेव के बइठाके बराती के सरजाम पर विचार करे लगलन. उनकर मेहरारू महेसरी भी आ गेल. बेना डोलावित फुसुकलक – ‘‘तू गांव में रेंगनी के कांट लगावइत चलइत हऽ. गांव के नवही बिरबिरायल हथुन सब. ऊ सब का खा-पी के जयतइ, का पेन्ह-ओढ़ के अप्पन मुराद पूरवतइ एकरा से तोरा लेना-देना का! ’’
 रामटहल लाल-पीयर होके बोललन – ‘‘तू अउरत हऽ, तोरे काम हे घर के हीत-नाता के सोवागत-सत्कार करना. कन्या ला कउन-कउन गहना जायत, सर-समान का-का इन्तजाम करना हे, ई सब तू सोंचऽ. कान के बहकावऽ मत. आज गली के झिटको तोर पांव के घवाहिल करे ला इयार है. बाहर के इज्जत-मरजाद हमरा देख दऽ. पगड़ी बान्ह के बाराती साज के लखन बिगहा तू न जयबऽ. हमहुं सबके रंग-ढंग देख रहल ही. आन्हर-कोतर न ही. कान में ठेपी लगा के बइठल नञ् ही. हमरा ऊपर का गुजर रहल हे, का गुजरत – जुग-जमाना देख के कदम बढ़ावे के जरूरत हे. बराती ले जायला हे, फउज न. ई हम सोंच रहल ही, तू चुप रहऽ.
 ‘‘तोर तो भोंपा खुलऽ हे तो बंद होवे के नामे न लेवे. लऽ हम जाइत ही, बाप-बेटा मिलके, नौ-छो कर लऽ’’! अतना कह के महेसरी देवपूजी के सरजाम में जुट गेल.
 आज बारात जा रहल हे. दूगो बस, चार गो कार आउ एगो टरेक्टर के बेवस्था कैल गेल हे. बस पर नवही लोग पहिलहीं से अधिकार जमा लेलन. एगो कार पर दुल्हा दिनेश आउ सब पर हित-नाता, भववधी लोग. टरेक्टर पर  बजनियां आउ सर-समान.
 बारात के लोग झूम उठलन. गांव के ई पहिला बारात हे, जेकरा में खाली झार-फानुस में पच्चीस हजार रूपइया पर तितकी रख देवल गेल. बैंड बाजा आउ नाच समियाना में जे पैसा लगावल गेल, ऊ बेटिहा के तीन कट्ठा जमीन के बंधक रखे से आयल हे. रामटहल भी भुलाऽ गेलन कि बाराती में शामिल लोग पर शराब पीए में पाबंदी हल. चोखालाल उनका भी अप्पन दल शामिल कर लेलन. ई ठीक हे कि बोतल में शराब न खांटी ताड़ से चुअल ताड़ी भर के होटल में आयल हल. भांग आउ गांजा के नीसा अलग से.
 ऊ भुलाऽ गेलन अप्पन संस्कार आउ परंपरा. काना-कानी नवही के मालूम हो गेल कि रामटहल आउ चोखालाल होटल में बइठ के कुछ चिखना के सबाद लेलन हे. फिन का! सउंसे बारात डगमगाये लगल. लगे भूकंप आयल हे. लोग एक-दूसरा के पकड़ के झूम रहलन हे. होश-हवाश खो बइठलन हे.
 दुल्हा के भाई हरदेव बैंडबाजा पर नाचे लगल तो मुंह से गाद चुए लगल. बाराती के शान-शउकत आज बैंडबाजा, झार-फानुस के तिलंगी पर टिकल हे. बारात झूमल न तो बारात का. कमर लचकल न तो बारात के आनंद का?
 बेचारा बेटिहा के नीन उपह गेल हे. खेवा-खेरची चलावेला परिवार के जे थुंम्ही हल ओहो भरभरा के धरती धयले हे. दस कट्ठा नफीस जमीन देखते-देखते रजिस्ट्री ऑफिस में गोल हो गेल. जमीन तो गोल होयबे कैल चेहरा भी गोल, चश्मा भी गोल, मेहरारु के लुग्गा-फट्टा भी गेल. थारी में माड़-भात भी परोसायत तो बिख से भरल. बेटी आयल तो जमीन-जायदाद ला आग के टिकिया भी साथे लेते आयल. चंद्रकांती के का पता माय-बाप के एतना सासत फोगे पड़ीत हो. देह में हरदी के ऊबटन तो लगल हे बाकि दिल-दिमाग पियरा गेल .
 चंद्रकांती इतिहास विषय से एम.ए. पास हे. पटना विश्वविद्यालय के पढ़निहार ठेसो लगला पर अशोक राजपथ जाम कर देवऽ हे. चंद्रकांती के दिल-दिमाग पर जे ठेस लगल हे, ऊ का जाम करत इतिहास बनावत. लखन बिगहा आज कउन इतिहास लिखत सबके हिरदा कांप जाइत हे. चंद्रकांती दहेज के चलते अप्पन बाप के दुरगति देख रहल हे.
 ‘‘का जरूरत हे पढ़ावे-लिखावे के! आज लइका के बाजार लगल हे. जेतना दाम ओइसन लड़िका खरीद लावऽ. सती प्रथा बंद हो गेल. दास प्रथा इतिहास के विषय बन के रह गेल. जमींदारी पेटुकनियां नाधले हे. सामंती प्रथा घुनसारी में झोंकल जा रहल हे. गान्ही जी अजादी दिऔलन बाकि औरत के उद्धार अबले न होल. जउन लड़की पढ़इत हे, ओहो खाठ के गुड़िया बन के साज-सिंगार में डूबल जाइत हे. एको गो लड़की झंडा खड़ा करइत! एको गो दुल्हा के खंभा में बान्ह के पिटरइत!! एको गो दुल्हा के बाप के गोली मारल जाइत!!! पढ़ल-लिखल सब गुड़-माटी. पनरह दिन से घर में चुंटियो संसरे जगह न हे. सब तो अउरते हे, पढ़ले-लिखले हे. भोंदू भाव न जाने, पेट भरे से काम. मंड़वा गड़ा गेल, माटी कोड़ाऽ गेल, कोहबर सज गेल, हरदी हाड़ में लगावल जाइत हे. बिआह के गीत केकरो इयाद न, कैसेट बज रहल हे. ‘देह देइते गे माय जनमते जहरवा’-जइसन गीते के कैसेट बज रहल हे बाकि कोई असर न.’’
 चंद्रकांती मधुमास में जेठ के दुपहरी लेखा दहक रहल हे. दिल में एगो घाव टभक रहल हे. पीव-मवाद भरल हे, बह जाइत तो दरद कम हो जाइत. बाबूजी के हलकानी देखके, माय-बहिन के दहदही महसूस के ऊ अबले कोई निरनय तक न पहुंच सकल, एकरा ला अपना के कोस रहलन हे, आंसू को घूंट पी रहल हे बाकि ई जिनगी के लाश कबले ढोयत. बाबू बलेसर एक गिलास सत्तू पीके जी रहल हथ – खेत बंधिक धरा गेल – हिरदा के एक टुकड़ा बिका गेल. बाप-दादा आझले रजिस्ट्री ऑफिस में पैर न धैलन, बाकि बलेसर अप्पन जिनगी के कफन जियते ओढ़ा देलन. तिलेसरी माय दिन-रात चटाई में मुंह छिपा के सिसक रहल हे. देवी-देवता के गोहरा रहल हे कि नीके-नीके बिआह पार लग जाय. आसाढ़ माह में अकास में बादर देख के किसान जतने खुश होके मोर लेखा नाचऽ हे ओतने सुखाड़ के अंदेशा से घबड़ाइत भी रहऽ हे. तिलेसरी माय के हिया हांड़ी के अदहन लेखा खउलइत रहइत हे.
 बलेसर घिढ़ारी करके उठवे कैलन कि धोती  के पिअरी चेहरा पर चढ़ गेल. रंगल पांव उदास हो गेल. कान से मोबाइल लगैलन तो ऐसन लगल जइसे चमगादड़ सट जाहे. उधर से समाचार आ रहल हल – ‘‘बारात चल चुकल हे. लछु-बिगहा होटल में ठहर के नास्ता-पानी करत. अप्पन अदमी के उहां भेज देवल जाय.’’ हर अदमी के प्लेट मछली के छानल गुड़िया से भरल होवे के चाही. ई तो चिखना भेल. चिखना के बाद हर अदमी के टेबुल पर एक बोतल भिस्की के दिमागी खोराक चाही. अपने ई सब गछले ही. राह खरचा, नास्ता-पानी के जिमवारी अपनेहीं लेली हे. आठ बजे बारात ऊहां से चलत. बारह बजे दरवाजा लगत. कमनिटी हॉल अपने बुक करा देले होम. उहां हम्मर बाराती के कोई कष्ट नञ् होवे के चाही. हांथी पगला हे तो का हाल होवऽ हे, ई अपने के समुझावे के जरूरत नञ् हे. दुल्हा के डिमांड भी अलग. बेचारे बलेसर मोबाइल पर ‘हुंकारी’ भरइत गेलन.
 बारह बजे बाराती आ गेल. कमनिटी हॉल में जगह न. बाहर दरी बिछावल गेल. सब बरतिया बेंग लेखा एक दूसर के पांव से लपटायल जइसे बोरा में बान्ह के लावल गेल हे. बैंड-बाजा आउ पड़ाका के अवाज से टोला-पड़ोस हिल गेल. रोड जाम, पुलिस परेशान – सबके नाक से पसेना चू रहल. रामटहल भी होश में न हथ. चमरौंधा जूता पहिन के, खेसारी के सत्तू पी-पी के, पलानी में भइ, स गार-गार के, मकनियां के घर टीन के टीन दूध पहुंचावे वाला, गोरस को नाम पर ताड़ी घोंकेवाला लड़कीवाला से पच्चीस लाख नगद, कार, चेन लेके ढेकारो न लेलन. आज गांव के बूढ़-पुरनिया से लेके नवही-जुआन तक पर पड़ल हे. सब एक-दूसरा के ललकरे में अपना के बुद्धिमान समझित हे. ‘कर पैर न फाटल पांव बेवाई से का समझे पीर पराई’ वाला हाल. भेंड़ी के दूध से सब पहलवानी दिखावे में माहिर हथ.
 बाराती देखेला सड़क के दुन्नो ओर अदमी टूट पड़ल. मरदे-मेहरारू के मुंह पर लखन बिगहा आउ रामटहल के अनुप्रास अलंकार नाच रहल हे. सड़क पटाखा से पट गेलन. बैंडबाजा पर सड़क के किनारे चुहो-चुटरी डांस कर रहल हे. रामटहल लौंडा के फेल कयले हथ.
 बारात दरवाजा लगावे आ गेल. नाचित-गावित आवे में दू बज गेल. एन्ने चंद्रकांती कूबड़ बनल जाइत हे बाकि मन ताड़ के पेड़ लिखा. समुंदर के ज्वार-भाटा लेखा असमान छूवल चाहित हे. मनके सोखी कहल जायत कि ईंट के जवाब पत्थर. सभे बाराती के दुआर लगावे में परेशान. केकरो दिल-दिमाग हांथ में नञ्. बाराती हे मर-मजाक होयबे करत. कोई तनिक भुनुक देल कि ओकर थोथुन फुला देवल गेल. कोई ओन्ने से ढेला फेंक देलक तो एन्ने से ईंट-पत्थर चले लगल. देखते-देखते बाराती-सराती कौरव-पांडव बन गेलन. जयमाला के जगह कुरूक्षेत्र में बदल गेल. बड़ी समझौला-बुझौला पर बाराती शांत भेल.
 चंद्रकांती लगनौती कपड़ा उतार के माय के सूतीवाला साड़ी पेन्ह लेल. सिंगार-पटार खंखोर-खंखोर के चूल्हा में झोंक देल.
बलेसर कहलन ‘‘चलऽ बेटी जयमाला के असरा पर सब केऊ टिकल हे.’’
 माय महेसरी लोर चुआवित घिघिआयल – ‘चंद्रकांती बाप के पगड़ी के लाज बचा लऽ. तोरे ला नफीस दस कट्ठा क पलौट पर टिकिया रख देली. जा सबके बिआह में आझ एहे देखे के मिलइत हे. घर-घर देखा एके लेखा. घूरन बाबा से जादे हुरदंग मचल हे. तइयो धनेसरी के मांग में सेन्नुर पड़लइ कि नञ्?’
 सोनामति फुआ गोदी में उठा लेलन. टांग के कोहबर में ले अयलन भीतरे से छिटकिनी लगा देलन. का जानी कउन मंतर पढ़वलन कि चंद्रकांती जयमाला मजलिस में जाय ला तइयार हो गेल. फिना से सब लगनउती साड़ी-लहंगा, चोली-ओढ़नी धारन करके ‘खटपरूस’ अउरत लेखा पांव बढ़ावित गेल.
 उधर बाराती के चेहरा काटऽ तो खून नञ्. सबके होश-हवाश गुम. उधम मचावल बोतल में सईंताय लगल. ऊ एकरा, इ ओकरा पर कीचड़ उछाले में मशगुल. धीरे-धीरे बोतल के निशा चढ़इत सूरज लेखा ढले लगल. सबके चेहरा पर ढिबरी जरइत हल. तरूआठी के आग अपने आप बुझा जा हे, ओइसहीं शराब के नीसा. सबके मन में डर बेआपल हे. कोई अनहोनी होयत. रामटहल घूम-घूम के सबके ओठ पर अंगुरी रखे के इशारा कर रहल हथ – ‘कोई मुंह से बकारो न निकालत.’
 कोई कह रहल हे – ‘अरे भाई लड़कीवाला के भी इज्जत हे जइसे लगइत हे तूं सब लोग बक्सर के बानर पकड़-पकड़ के जुटावल गेलऽ हे.’
 कोई कह रहल हे – ‘‘का समझित हऽ लोग. लड़किए वाला खाली गरजू हइ. ओकरा मरदाना चाही तो का तोरा लोग के औरत न चाही. केकर जिनगी बिना औरत के कटल हे, तनि हमरा समझा के कहऽ.’’
 तिसरा भुनुकलक – ‘‘अरे रामजी भी सीता के अपहरण हो गेला पर औरत ला फिफिहिया बनल चलित हलन.’’ एगो बूढ़ बोलल – ‘बतकही छोड़ऽ. जयमाला के आनंद उठावऽ. लड़की पढ़ल-लिखल गुनगर हे. जयमाला के कोई नया तौर-तरका देखावत. सब कोई मुंह में पान के पिल्की रखले रहऽ. आंख फाड़ के देखऽ.’
 चंद्रकांती धीरे-धीरे जयमाला के मंच तक पहुंच गेल. ठिठक गेल. ओकर होश-हवाश गुम हो रहल हे. सखी-सलेहर पकड़ के मंच पर चढ़ौलन. बकि ऊ हाथ में जयमाला न लेलक. माइक पकड़ लेल.
 ई का ? सब कोई चेहा गेल. लड़की पढ़ल-लिखल हे. हमनी जे उधम मचौली हे, ऊ जरूर कोई जवाब देत.
 पांच मिनट ले ऊ हाथ में माइक पकड़ले रहल. सगरे नजर घूमौलक फिनो माइक मुंह से सटौलक तो सटासट बोलइत गेल – ‘‘इहां अधिकतर लोग विवाहित हऽ. हम्मर दादा-नाना के उमिर के लोग भी मौजूद हऽ. उधर चाची आउ दादी भी ओंठगल हथ. सोहाग केतना अनमोल हे, केतना टुनकी हे – सात तह के भीतर सोहाग के सेन्नुर लुका के रखल जा हे. अपने लोग ओकरा सात तह से भी निकाल निकाल के ‘बिधुन’ के छोड़ देली. शराब के नीसा में हमरा सुहागिन बने के सब अरमान अपने लोग चकनाचूर कर देली. अब हम्मर बचिए का गेल? ई गजरा? ई आरती के थार?
 ई चंद्रकांती के धधकित हिरदा के कलपित रोआं के निरनय सुन लिहु – ‘‘हम शराबी घर में जा के अप्पन सुहाग के दुबारे दुरघटना करे के मौका न देम.’’ एतना कह के दउड़ल तो कोहबर में पेटकुनिएं आके तबतक सुबकइत रहल जबले बारात लवट न गेल.
                        - बल्लमी चक, अनीसाबाद, पटना.
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लधु-कथा
डॉ. स्वर्ण किरण के दू गो लघुकथा

१. हजामत     
     रूसी इंबैसी के प्रतिनिधि के रूप में जैक्सन साहब शहर के डाकबंगला में ठहरलन. महंगा किराया, महंगा खान-पान, महंगा कपड़ा-लत्ता. एक ठो हिन्दी में पत्रिका लेले हलन, जे मास्को से निकलल हल. ऊ ओकर सलाना आउ ताजिनगी गाहक शुल्क लेले के पाठक बना रहलन हल. जे जे उनकर सदस्य बनलन, ओकरा में जादेतर प्रोफेसर आउ विद्यार्थी हलन. एक-एक ठो कलेंडर भी ऊ मुफ्त में देते गेलन.
 हमहुं पांच सो रूपइया देके ओकर ताजिनगी गाहक बन गेली. रसीद के साथे कलेंडर लेके घरे आ गेली.  छव महीना तकले जब एक्को पत्रिका न मिलल, तब संदेह भेल.
 हम्मर एगो परिचित सांसद हलन. जब हमरा दिल्ली जाय के मौका मिलल, तब उनका से जैक्सन साहेब आउ पत्रिका के बारे में पता लगावेला कहली. पता चलल कि जैक्सन साहेब के रूसी इंबैसी से कोय संबंध न हे. ऊ फर्जी प्रतिनिधि मालूम पड़ऽ हलन.
 हम अप्पन सिर पीट लेली कि फर्जी रसीद आउ कलेंडर देके एगो विदेसी ढेर लोग के हजामत बना के चल गेल. फिर सोचे लगली कि मगहियो में तो एक-दू अंक निकाल के केतना लोग सैंकड़ों आजीवन सदस्य बनावऽ हथ आउ पत्रिका न निकसे.
  
२. हिकमत
        
         वाई के दोकान चलइत न हल. एही से ऊ बहुत दुखी रहऽ हलन. सोचइत रहऽ हलन कि कउन महूरत में दोकान खुलल कि गहकीये न आवऽ हथन. दोकान सड़क के मोहरा पर न हे, ई भी एगो कारन हो सकऽ है. कुछ दवाई तो बहुत जरूरी वला रखऽ हलन. तइयो अइसन बुझा हल कि गहकी लोग रस्ते भूल गेलन हल. केतना दवाई तो रखल-रखल एक्सपायरी डेट भी पार कर गेल हल.
 एक दिन उनकर एगो दोस्त अयलन. दोकाने पर उनकर स्वागत-सत्कार भेल. दोस्त बड़ी खुश होलन आउ दोकान के हाल-चाल पूछे लगलन. जब उनका, दोकान के दयनीय स्थिति के पता चलल, तब ऊ एगो सलाह देलन. कहलन कि ई इलाका के ड्रग इंस्पेक्टर उनकर दोस्त हथ. ऊ तोहर दवाई बिकवाबे में मदद कर सकऽ हथ.
 दोकानदार आउ ड्रग इंस्पेक्टर में आधा-आधा नफा पर बात हो गेल. ड्रग इंस्पेक्टर उहां के लोकल सरकारी अस्पताल से सांठ-गांठ करके उनकर एक्सपायरी डेट पार करल सब्भे दवइयन के एक्के दिन में बिकवा देलन.
 उनकर दोस्त के हिकमत काम आयल आउ आगे से दोकान चले के उमेद बंध गेल. अफसोस एही बात के हल कि पहिलहीं ऊ ई जोगाड़ काहे न फिट कैलन.
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नवगीत
मिथिलेश के पांचगो नवगीत

१.
केक्कर ई देन हइ
केक्कर ई दान हइ
छोटकी मछलियन के
सांसत में जान हइ
धोखरल देवाल में
लग रहल नोनी
साल, दरसाल
छारऽ ही छउनी
केकरो इमारत छू
रहल असमान हइ
जरला घर निम्मक
रगड़ऽ ह महगी
ढोवऽ ही कंधा पर
जिनगी के बंहगी
ऊंच-नीच देख-देख
देवी मझान हइ
लगऽ हइ एकरा में
बड़हन-सन साजिस हइ
बिस्फोट हो रहलइ
घरे-घर माचिस हइ
लिबिर-लिबिर ‘लिबिया’ से
झांक रहल हे उक्का
‘गद्दाफी’ खिस्सा से
जग कि अनजान हइ?

२.
चिरीचोंथ करि
देलक बदरा
अभी जमल हल
मोटगर छाली
लगल कि बरसत
अबकी हाली
दाव लगइले
हल दुसमनमां
उधिअइले चलि
गेल कुभदरा
मेहिय- मेहिया
निखमन करि-करि
बीचा बुनलूं
पानी भरि-भरि
आर-पगार
बनावे खातिर
खलूं पिजा-पुजा
के कुदरा
रोहनियें के
गेल न पलटल
अदरो में नञ्
तरवा लेटल
क्वांरी कन्यां
बेवस्तर हो
हर नोते
नञ् पिघलल इन्दरा.

३.
पर्वत ऊंचा हे
ऊंचे ऊ बनल रहे
बामन के हम
डेग नापते सुनलूं हे.
एक डेग भर भी
बौसाह बचल हे जो
एवरेस्ट पर भी
उत्साही पहुंचल हे
गाड़ देलक चढ़ चोटी
पर दम साध मगर
सुनहर-सन इतिहास
बनइते सुनलूं हें
सागर मथ दुर्लभ
अमरित भी चाखल हे
प्रथम गीत रच
वेद मंत्र भी बांचल हे
हम की कहियो
कौतुक में भी
नागनाथ फन चढ़के
वीन बजइलूं हें
कउन विधिन अइसन
जेकरा नञ् टार सकूं
सागर तक
अजमावल हमरा
हे कहियो
अंजुरी में भरि
हमहीं घूंट बनइलूं हे.

४.
तिनका तिनका
चुन-चुन खोंथा
लगा रहल गरवइया
ओदा-वादी दौड़ि-दौड़ि के
दुन्नूं प्रानी लावे
लसर-फसर ओलती के नीचे
फट्टी पर सरियावे
फुरफुर गिरवे हे दुशमनमां
जरलाही पुरवइया
एक्कक टुंगना में सपना के
ताना-वाना पिरवल
सिरजन के अंगड़ाई ले-ले
महुआयल रंग मिलवल
रोम-रोम सिहरन थिरकन हे
खेपे-खेप लगइया
राग रंग ममता में बदलत
चहकत जब घर अंगना
प्रेम ऊंचाई पावत, बाजत
टोला-टाटी बजना
लाल चोंच में दाना डालत
घुर-फिर लेत बलइया.

५.
 घुप्प अन्हरिया टोइया मारे
तेल उपह गेल लोधवर
बिजुरी रानी पहुना पाही
सरकारो हे, आन्हर, टाही
कोढ़-खाज-सन महगी उमहल
सपरल भे गेल गोबर
सब राहत दुब्बर ले आवे
इनरासन में भोग लगावे
दुब्बर तऽ दुबरे के दुबरे
दुख बढ़ भे गेल दोबर
चौकहे  बातर हाही
लंगो-तंगो थउआ राही
परकिरति भी दुनेतियाही
सन गलगल पर बलगर.

-अखिल भारतीय मगही मंडप, वारिसलीगंज
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कविता-कियारी

डॉ. शेषानंद मधुकर के खंड काव्य एकलव्य से

अइसन कोई दिव्यास्त्र न हे ई जग में,
जे फूल बिछा दे मात्र मनुज के पग में.
चिंता अभाव के सब माया ऊ हर ले,
सब लोर खींच अप्पन अंखियन में भर ले.

शत्रुता के जगह प्रेम भरे जे मन में,
सद्भाव जगावे महाशक्ति जन-जन में.
नित देख अन्य के सुखी, भरे सब सुख से,
हर ओर अदमी श्रद्धा ला हो उत्सुक से.
(एकलव्य छठा सर्ग)

ई राजनीति जब से आ बइठल शिक्षण में,
सत्ता, अनीति के भय से सब घबरा जा हथ.
अभ्यास, ज्ञान, जिज्ञासा, शब्द जे न सुनलन
सर्वोच्च शिखर शिक्षा प्रतीक, ऊ बन जा हथ.
************************
शिक्षक ही जब आदर्श छोड़ गिर जयतइ,
पूरा समाज पर अंधकार छा जयतइ,
फिर ज्ञान ज्योति तक सब के-के ले जयतइ?
फिर दया, त्याग, तप कइसे ई जग पयतइ.
************************
तब सच्चा शिष्य न गुरू मिलतन ई जग में,
फिर भाग के शिक्षा जयतो कंटक मग में,
जन-जीवन ओकर श्रद्धा कभी न देतइ,
पशुबल से सब कुछ छीन शिष्य सब लेतइ.
************************
जब ज्ञान लोभ के संगम होइत जा हे,
आलोक चित्त के तम में खोइत जा हे,
तब न्याय न कर पयतइ शिक्षक जीवन से,
ऊ कभी न जुड़तइ दिव्य आत्मचिंतन से.
*************************
                        (एकलव्य से)
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कविता-कियारी

                                       दशरथ मांझी
                                    
                                                         राजेश मंझवेकर


प्रेम के एगो दीवाना,
कभी रहल शाहजहां,
बाईस हजार मजदूरन के,
संग में जोर धन के,
पूरा बाईस बरस में,
अप्पन पत्नी के प्रेम में,
ताजमहल एक बनवयलक,
बरसों बीतल, फेर अयलक,
प्रेम के एगो अजबे दीवाना,
दशरथ मांझी ओकर नाम जाने जमाना,
पत्नी के कष्ट जरूर बनल प्रेरणा,
पर जनहित के रहल असल भावना,
बाईस बरस में सीना पहाड़ के चीर देलक,
साढ़े तीन सौ फीट सड़क अकेले दम बना देलक,
एजै श्रेष्ठ हो जा हथ, ई दशरथ,
शाहजहां से बड़ रहल काहे कि ओकर मनोरथ।
++++++++
याद आवऽ हे, फरहाद के भी कहानी,
शीरी खातिर ओकर चाहत के रवानी,
पहाड़ फरहाद भी काटलक,
तूर के नदी बहा देलक,
पर छूट गेल ऊ भी पीछे,
ओकर फिकिर हल खाली खुद के,
दशरथ जे कुछ भी पयलक,
‘स्व’ नय ‘परहित’ में लुटयलक।
++++++
रघुकुल के भी रहलन एक दशरथ,
पत्नी प्रेम में वन भेज देलन स्वसुत राम के,
पर ई दशरथ पत्नी प्रेम में,
लक्ष्य खातिर छोड़ देलक आराम के,
ऊ दशरथ के पत्नी प्रेम पर,
ऊठ जा हे अंगुली,
ई दशरथ के कीर्तिमान से,
पुलकित हर कूचा, हर गली,
तऽ बोलऽ - काहे हऽ मौन,
श्रेष्ठ दून्नों में दशरथ कौन?
दशरथ मांझी –
ऩञ् खाली हाड़ मांस के इंसान,
दशरथ मांझी –
श्रम, धुन, लक्ष्य के दोसर नाम,
दशरथ मांझी-
भटकल के आदर्श, नया पीढ़ी के जान,
दशरथ मांझी –
तू रहबऽ जिंदा, जब तक ई धरा-धाम।
                              
                                                                                            -पत्रकार, हिंदुस्तान, हिसुआ (नवादा).
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कविता-कियारी
बंद करऽ अब भ्रूणहत्या
                                
                                                                   वीणा कुमारी मिश्रा

बंद करऽ अब भ्रूण हत्या के,
कब तक बेटी के मारबा,
अप्पन हाथ से अपने दुनियां,
कब तक तों विरान बनैबा?
बेटी गर नय जग में रहतो,
बेटा कहां से तों पइबा,
सृष्टि के ई सुन्दर रचना में,
कब तक बोलऽ सींघ लगैबा?
भरल-पुरल ई बगिया के,
कब तक विरान बनैबा?
अप्पन हाथ से अपने दुनियां,
में कब तक तों आग लगैबा?
बेटी-बेटा से तनियो कम नञ्,
सृष्टि के आधार ईहे हे,
बेटा-बेटी के अंतर के,
कब तक मन में भरमैबा?
अप्पन हाथ से.........?
बेटी घर-घर के लक्ष्मी हे,
माय-बाप के शान बढ़ाबे,
अंतरिक्ष में भी जाके,
अप्पन परचम लहरावे हे
दानवता के मार भगावऽ,
मानवता के अपनाबऽ,
अप्पन हाथ से अपने दुनियां
में कब तक तों आग लगैबा?
                              
                                          -बुधौल, नवादा
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कविता-कियारी
धूप कहीं छाया हे
              
                                                 डॉ. ब्रजमोहन पांडेय ‘नलिन’

उगल सुघर हे किरिन सुरूज के निरमल जोत जगल हे,
दूब-दूब पर मोती जइसन ओस बूंद बिंहसल हे.
देख गगन में सुरूज-कंत के उसा नेह में डोले,
भर हुलास परिमल – मद मोहक हिय के मोती खोले.
धरा-धाम में वन-उपवन में राग-रंग उभरल हे,
पर पोखर में खिलल कुमुदनी के आभा उपहल हे.
मन के मोद छोड़ के उलुआ वन-वन भटक रहल हे,
पिउ वियोग में बाउर रैनी चंदा ला हहरल हे.
पो फटते अनगुत्ते भोरे चकवा मोद मनावे,
भर उछाह झट मिलन-लगन में चकई गीत सुनावे.
खिलल कमल दल पर रसलंपट भंवरा भीड़ लगावे,
भर अयोर गुंजन मनरंजन सगरो टोह लगावे.
ढर-ढर लोर ढरे अंखियन से सिसके जग में दुखिया,
रोवे-कलपे-ठुनके भुवखल मड़ई में अधरतिया.
कहीं अटारी में सुख-सोहर, झूमर, गीत, नचारी,
कहीं झोपड़ी में उदबासल काने-कालपे बारी.
विधि विपाक अजगुत हे जग के, सुख-दुख के माया हे,
कहीं मोद आउ कहीं उदासी, धूप कहीं छाया हे.
                                                    
                                                                                                              -गया
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कविता-कियारी
हमरो एक तान सुनावे दा

डॉ. किरण कुमारी शर्मा

ई कृष्ण कलुश कालीदह में, एक झंझावात उठावे दा,
हे श्याम तनी बंसी दे दऽ, हमरो एक तान सुनावे दा.
जग जमुना के निरमल जल में ई कलिया रार मचैले हइ,
अनगिन फन से विष उगल-उगल, हमनी सन के हदसैले हइ.
मद से आन्हर हो ई दंशी, चउगिरदा नागिन से घिर के,
अधिकार क्षेत्र विस्तार हेतु प्रतिशोध-अगन धधकैले हइ.
नाथ के अइसन कलियन के, फन पर हमरो सहजावे दा.
हे श्याम तनी बंसी........
जखने फुफकारइत ई पापी, मुरली के तान सुना देवइ,
आउ कटु-वचन संभाषण पर, अनहद के गान सुना देवइ.
विकराल काल जइसन फन पर, जब चिन्ह चरण के पड़ जइतइ,
हमहूं तोहरे जइसन ओकरा, गीता के ग्यान बुझा देवइ.
शत कमल पुष्पदल लाद-लाद मथुरा तक तऽ पहुंचावे दा.
हे श्याम तनी बंसी....
अनथाही विष संचित करके, ई मातल हे, हम जानऽ ही,
फुफकार कला में पारंगत, ई पागल हे, हम मानऽ ही.
जमुना-जल के कलुसित करके, ई सोचित हे, हम डर जइबइ,
भट्ठा दे देके जड़ियन में, हम कुश के वंश उकानऽ ही.
विष-दांत तोड़ के, एकरा में नटुआ के नाच नचावे दा.
हे श्याम तनी बंसी....
गरल रहित हो के जमुना जल होके, सर्व सुलभ जब हो जइतइ,
नर-नारी, पसुधन, पंछी के जब अंश बरोबर हो जइतइ.
तब मुरली बादन के सम्मोहन, छा जइतइ ई धरती पर,
राम राज के मधुर स्वप्न, सौ पइसा सच्चे हो जइतइ.
तखने तक ले, ई पागल मन के, बस, अइसहीं बहलावे दा.
हे श्याम, तनी बंसी दे दऽ, हमरो एक तान सुनावे दा.
                             
                                                   -प्रो. मगही विभाग, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया.
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-कविता-कियारी
जात धरम के दिया
                             
                                                                     गोपाल निर्दोष

जात-धरम के दिया, इंसानियत के पूंज में मत सटावऽ,
बड़ी जतन से अदमी बनलूं, कोना-कुद्दी में मत बंटावऽ.
तूं ऊंचा हऽ, तू महान हऽ, जा तू सबसे अच्छा हऽ,
हम खराब हूं, हमरा से मत सटऽ, छोड़ऽ हमरा हटावऽ.
बाकी मगर तू सोंच ला, हम खराब नञ् तो तू ठीक कइसे,
हमरा भी तो गिनहे पड़तो, चाहे जोड़ऽ चाहे घटावऽ.
ईयाद रखऽ एहो भी तू, हम खटऽ हियो तऊ तू खा हऽ,
अपने खा के भर-भर लादा, हमरा जूठा मत चटावऽ.
बड़ी भरम में पड़ल हलूं , तोहरा अप्पन समझ रहलूं हल,
जाय दऽ हमरा छोड़ दा, अप्पन भिजुन कुतवे के बइठावऽ,
राजनीति के कुचक्कर से, पहिले से चकरा रहलूं हल,
कभी बंबई में, कभी असम में, एकक करके मत कटावऽ.
जात-धरम के दिया, इंसानियत के पूंज में मत सटावऽ,
बड़ी जतन से अदमी बनलूं, कोना-कुद्दी में मत बंटावऽ.

                                             -सी.पी. निवास, मालगोदाम
                                                    नवादा-805110.
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कविता-कियारी
बन गेल नारी के नौकर जुआनी में
                              
                                                                                       डॉ. भागवत प्रसाद

बन गेला नारी के नौकर जुआनी में,
ए बाबू! डूब मरऽ चुरू भर पानी में.
लिख लोढ़ा-पढ़ पत्थर सोलह दूनी आठ हका,
पर देखे सुन्ने में सुत्थर समाठ हका,
समय तू गमा देला, फट्टल फुटानी में,
ए बाबू! डूब मरऽ........
पढ़े घड़ी घूमऽ हलऽ लड़किन के पीछे तू,
रहा अब जिनगी भर नारी से नीचे तू,
करनी के फल पैला, ईहे जिनगानी में,
ए बाबू! डूब मरऽ........
अपने कुछ नञ् बनला, घरवाली नौकरी में,
बीबी के देल दस गो रूपया हो घोकड़ी में,
जिनगी भर रहवा, मेहरी के मेहरवानी में,
ए बाबू! डूब मरऽ........
बनल हऽ डलेवर तू, मैडम जी के अखने,
पहुंचावऽ ले आवऽ जब कहे तब तखने,
डांट रोज सुना हऽ जरी सुन आनाकानी में,
ए बाबू! डूब मरऽ.........
अब तो तोहर मैडम जी लेलथुन स्कूटी,
घरवे में दे देलथुन तोहरा के ड्यूटी,
बाल-बच्चा, खानपान तोहरे निगरानी में,
ए बाबू! डूब मरऽ.........
बन के गुलाम तू रह गेला जनाना के,
नाक कटा देला तू सब्भे मरदाना के,
घर छोड़ बेदाम बेचा जाके राजधानी में,
ए बाबू! डूब मरऽ.........

                                                       -    मालगोदाम रोड, नवादा  
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मगह के आयोजन

हिसुआ के साहित्यिक गोष्ठी आउ कवि सम्मेलन
   
                       हिन्दी मगही साहित्यिक मंच ‘शब्दसाधक’ के तत्वावधान में 28 जुलाई 2013 रविवार के आर्य समाज मंदिर में साहित्य में पावस ऋतु पर साहित्यिक परिचर्चा आउ कवि सम्मेलन के आयोजन भेल. काजकरम के अध्यक्षता दीनबंधु आउ मंच संचालन व्यंग्यकार उदय कुमार भारती कैलथिन. दीनबंधु अप्पन संबोधन में कहलका कि कविता सागर में गागर होवऽ हइ. कविता से कविता जलम ले हइ. ई जिनगी के सुखद अनुभूति हइ. ई समाज के ओकर रूप के आईमा दिखावऽ हइ. टीएस कॉलेज के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. नवल किशोर शर्मा, अर्जक संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र पथिक, अरूण देवरसी, आउ दोसर वक्ता सब्भे वर्षा ऋतु से जन जीवन के सीधे प्रभावित होवे के बात कहलका. वर्षा जीवन दायिनी हे. धरती के श्रृंगार हे. मस्ती आउ आनंद दायिनी हे. ईले ई साहित के प्रमुख अंग हो जा हे. जन सरोकार के सीधा संबंध वर्षा से रहे के वजह से कवि व साहितकार एकरा साहित में ऊंचगर जगह दे हथिन. साहितकार पर्यावरण के असंतुलित होवे के बात के चरचा कैलथिन. उतराखंड आउ केदार नाथ में बादर फटे के घटना के प्रकृति के प्रकोप बतावल गेल. प्रकृति के असंतुलित होवे से कन्हु बाढ़ आउ कन्हु सूखा के स्थिति हो रहल हे. परकिरति बचावे के संदेश से जुड़ल रचना करे के साहितकार से निहेरा कैल गेल.
    दोसर सत्र में दीनबंधु, प्रो. नवल किशोर शर्मा, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, अरूण देवरसी, शफीक जानी नादां, अनिल कुमार, राजेश मंझवेकर, प्रवीण कुमार पंकज, रामभजन शर्मा बटोही, देवेन्द्र विश्वकर्मा, सुन्दर देव शर्मा, कुलेश्वर मेहता, कविता पाठ करके ऊहां पहुंचल लोगन के मन मोह लेलथिन. नयका पीढ़ी के चार युवा कवि दयानंद चौरसिया, राजेश शांडिल्य, संजय प्रकाश व नरोत्तम कुमार ने नया-नया रचना सुनाके अप्पन प्रतिभा के लोहा मनवैलका. अतिथि कवि नरेंद्र कविता पाठ कैलथिन. राजेश मंझवेकर क्षणिका आउ हाइकू सुना के खूब वाहवाही लूटलका. ढोंगी बाबा आउ पाखंडी धर्म गुरूओं पर कविता सुना के व्यंग्यकार उदय भारती ओकर पाखंड पर जमके प्रहार कैलका आउ ताली बटोरलका. काजकरम में वरीय नागरिक संघ के सचिव रामाचंद्र प्रसाद शर्मा, देवनंदन सिंह, नगर विकास समिति के अंजनी कुमार वर्मा, साहित प्रेमी अरविंद कुमार, नंदकिशोर प्रसाद, रोहित कुमार पंकज, आर्य समाज के सचिव यदुलाल आर्य, नारायण साहु वगैरह उपस्थित हलथिन.
प्रस्तुति - हर्ष भारती
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मगह के आयोजन
फगुनी के याद के लोकार्पण
           
                   11 अगस्त 2013 दिन रविवार के स्वामी सहजानंद सरस्वती भवन सूर्य मंदिर परिसर में मगही साहित्यकार, अतिथि आउ गणमान्य लोगबाग के जुटान भेल. मोका दशरथ मांझी के जिनगी के अनछुअल पहलू से जुड़ल रामरतन सिंह रत्नाकर के लिखल ‘फगुनी के याद’ मगही कहानी सेंगरन आउ मगही संवाद के २१ वां अंक के लोकार्पण के. काजकरम के मुख्य अतिथि बिहार विधानसभा परिषद् सदस्य नीरज कुमार, विशिष्ट अतिथि मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा उर्फ कवि जी हला. किताब के लोकार्पण आउ अतिथि के संबोधन से काजकरम शुरू भेल. विधान पार्षद, कवि जी, कृष्ण मुरारी सिंह किसान आउ संपादक रामरतन सिंह जी जौरे किताब के लोकार्पण कैलका. विधान पार्षद नीरज कुमार कहलका कि ई हम्मर पहिला मोका हे जउ हम मगही में संबोधन कर रहलूं हऽ. ई हमरा लेल गौरव के बात हे. श्री नीरज मगहियन कवि के ग्रामीण परिवेश, समस्या आउ बुनियादी जरूरत के कुशल चितेरा बताबइत जनजागरण आउ जनहित लेल काज के वास्ते साधुवाद देलका। ऊ रामरतन सिंह रत्नाकर के जमीन के रचनाकार बतावइत मगही भाषा के विकास लेल निरंतर काज करे के प्रशंसा कैलका. लोकभाषा के जीवंत रखे में मगही साहितकार के निरंतर काज करे के उत्साह बढ़ावे के साथ सृजन करे पर बल देलका। दशरथ मांझी अइसन ‘श्रम पुरूष’ के जिनगी से जुड़ल कहानी लिखे लेल और अइसन विषय के चुनाव करे लेल रत्नाकर जी के खुलके प्रशंसा कैलका.
 मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा ‘फगुनी के याद’ लिखे लेल रत्नाकर जी के साधुवाद देलका, ऊ कहलका कि ई श्रम पुरूष के सच्चा श्रद्धांजली हे. रत्नाकर जी के मगही भाषा के विकास लेल निरंतर काज करते रहला. उनखर काज के खुल के  सराहना करऽ ही.
 मंच संचालन करैत मंडप के अध्यक्ष रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर दशरथ मांझी के पत्नी से प्रेम के तुलना शाहजहां आउ नूरजहां के प्रेम से कैलका. शाहजहां राजा हला ऊ अप्पन पत्नी के इयाद में ताजमहल बना देलक आउ दशरथ मांझी के मेहरारू फगुनी जउ गहलौर पहाड़ से फिसल के गिर पड़ल आउ अप्पन जान गंवा बैठली तउ ओकर इयाद में दशरथ ऊ पहाड़ के सीना चीर के ऊहां रास्ता बना देलका. 22 बच्छर दशरथ मांझी दिनरात हथौड़ी-छेनी चलाकर ऊ अप्पन बौसाह से इतिहास रचलका.
काजकरम में मगही भाषा के सरकारी उपेक्षा आउ विश्वविद्यालय के अनदेखी के बात उठल. ग्रामीण रचनाकार के उपेक्षा आउ उचित सम्मान नञ् मिले के निंदा करल गैल. मगही के अप्पन स्थान देलावे लेल जनप्रतिनिधि से विधान सभा में बात उठावे के मांग करल गैल. दोसर सत्र में दीनबंधु के अध्यक्षता में कवि सम्मेलन भेल जेकरा में कवि एक से एक हास्य, व्यंग्य, गीत-गज़ल सुना के सबके मन मोह लेलका. कविवर दीनबंधु, व्यंग्यकार उदय भारती, शफीक जानी नादां, जयराम देवसपुरी, राभजन शर्मा बटोही, कृष्ण मुरारी सिंह किसान, डॉ, संजय कुमार, लालमणि विक्रांत, कृष्ण कुमार भट्टा, उदयशंकर, शोभा कुमारी ऱामस्वरूप दिप्तांशु सब्भे कवि कविता पाठ कैलका. काजकरम में अतिथि डॉ, शालीग्राम मिश्र निराला, प्रो, धीरेंद्र कुमार धीरू सहित वारिसलीगंज क्षेत्र के गनमान्य लोग पहुंचल हला.  शांति, सद्भावना के पैगाम के तहत ई ‘बिहार मगही मंडप’ के ९७ वां आयोजन बतावल गेल. नवादा में अखनी चल रहल. अशांति आउ उपद्रव पर शांति सद्भावना के अपील के प्रस्ताव लेल गेल. धन्यवाद ज्ञापन बीके साहु उच्च विद्यालय के प्राचार्य गोविंद जी तिवारी कैलका. ऊ अइसन काजकरम लेल अप्पन समर्पण आउ सेवा के संकल्प दोहरैलका आउ काजकरम में पहुंचे वला सब्भे साहितकार, कवि के ह्रदय से साधुवाद देके बार बार आवे नेउता देलका.
                                                             प्रस्तुति - हर्ष भारती
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मगह के आयोजन

अ.भा. मगही मंडप के स्वतंत्रता दिवस काजकरम
      
                         अखिल भारतीय मगही मंडप के तत्वावधान में ६७ वां स्वतंत्रता दिवस के मोका पर राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत साहितकार चर्चा आउ कवि सम्मेलन के आयोजन मंडप के कार्यालय में भेल. काजकरम के मुख्य अतिथि वारिसलीगंज कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. शालिग्राम मिश्र निराला जी हला. मंच संचालन सारथी पत्रिका के संपादक श्री मिथिलेश जी कैलका. अध्यक्ष, संचालक सहित उपस्थित वक्ता आजादी के ६७ बरिस पुरला पर ‘हम कहां ही’ पर अप्पन-अप्पन वक्तव्य देलका. अध्यक्ष निराला जी कहलका कि आजादी मिलल तऽ ६७ साल भे गेल, देश में लोकतंत्र हे पर आम अदमी आझ भी जहां के तहें खाड़ हे. ओकर धोती आउ लुग्गा आझो फटल के फटले हे. तंत्र अप्पन उल्लू सीधा करे में, नेता आउ जनप्रतिनिधि के पेट भरे में लगऽ हइ. कवि मिथिलेश कहलका कि आजादी तऽ मिल गेल, लेकिन आर्थिक आजादी अभी मिले लेल बाकि हे. आजादी से जादे जरूरी हे जनता के सुख, संपंनता आउ रोजगार. जहिया जहां के दुन्नूं हाथ के काम आउ सब्भे जन के पेट भर जात तहिये सच्चा सपना पुरन होवत. विचार गोष्ठी में श्री निराला जी, श्री मिथिलेश जी, राम किशोर शर्मा, सुखदेव सिंह, लालो विद्यार्थी, रामखेलावन सिंह जी बोललका.
दोसर सत्र में दीनबंधु के अध्यक्षता में कवि सम्मेलन भेल, जेकरा में परमेशरी, जयराम देवसपुरी, नागेंद्र शर्मा बंधु, प्रो. अनिरूद्ध, परमानंद, कृष्ण कुमार भट्टा काव्य पाठ कैलका. अजादी, देशभक्त्ति गीत के समां बंध गेल. देश के शहीदन के कविता के पंक्ति से श्रद्धासुमन चढ़ावल गेल.                       
प्रस्तुति – हर्ष भारती
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रचना साभार लेल गेल –

 पुरहर पल्लो, कविता सेंगरन, एकलव्य खंडकाव्य आउ मगही पत्रिका से.

पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात

रचना मगही साहित के प्रचार-प्रसार के लेल ईहाँ रखल गेल हऽ. कौनो आपत्ति होवे पर हटा देल जात. मगही देश-विदेश जन-जन तलुक पहुंचे, ई प्रयास में सब्भे के सहजोग के जरूरत हइ.

निहोरा

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रचना भेजे में संकोच नञ् करथिन, रचना सहर्ष स्वीकार करल जितै.

मगहिया भाय-बहिन से निहोरा हइ कि मगही साहित के समृद्ध करे ले कलम उठाथिन आऊ मगही के अप्पन मुकाम हासिल करे में जी-जान से सहजोग करथिन.

मगही मनभावन पर सनेस आऊ प्रतिक्रिया भेजे घड़ी अप्पन ई-मेल पता जरूर लिखल जायताकि ओकर जबाब भेजे में कोय असुविधा नञ् होवै.

मगही मनभावन ले रचना ई-मेल से इया फैक्स से हिन्दी मगही साहित्यिक मंच ‘शब्द साधक’ के कारजालयहिसुआ पहुँचावल जा सकऽ हे.

शब्द साधक
हिन्दी मगही साहित्यिक मंच
हिसुआनवादा (बिहार)

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