शनिवार, 13 अगस्त 2011

बुझ गयी जमींदारी की आग

बुझ गयी जमींदारी की आग     

कवि वैद्यमुनि का गोप के निधन से समूचा क्षेत्र मर्माहत
वारिसलीगंज (नवादा) :‘‘अगिया लगइवो जमींदरिया में,काली कुतिया घुसइबो कचहरिया में, लोदीपुर कचहरिया के जुल्मी जमींदरवा, से रोज ले हकय बेगरिया हो, आबो भैया जुटो भइया, अजिया लगैबय जमींदरिया के हो‘‘जमींदारों के जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद करनेवाले किसान आंदोलन के पुरोधा स्वामी सहजानंद सरस्वती को अपना आदर्श मान कर जिंदगी भर मगही लोक भाषा को समृद्ध बनाने वाले कवि वैद्यमुनि का गोप के निधन से समूचा क्षेत्र मर्माहत है.
किसान आंदोलन के दिनों में वे गीत मंडली के साथ लोदीपुर, मोसमा, कोनंदपुर व थालपोस आदि गांवों के किसानों के बीच मगही गीत गा कर उनमें राष्ट्रभक्ति की भावना भरने का काम करते थे. शिक्षक के रूप में उन्होंने विद्यार्थियों को अनुशासन,चरित्र तथा संगीत का जो पाठ पढ़ाया, उसे लोग आज भी श्रद्धापूर्वक याद करते हैं.
उनकी रचना हरि संकीर्तन, ज्ञात गीत माला तथा फुलंगी के खोता प्रकाशित है. फुलंगी के खोता को मगध विश्व विद्यालय की पाठय पुस्तक में भी स्थान मिला है. 1959 में कौआकोल प्रखंड के सेखोदेवरा आश्रम में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के सम्मान में आयोजित समारोह में गीत-संगीत के ढोलक वादन पर उन्हें प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया था. का गोप बिहार मगही मंडप के बैनर तले आयोजित होनेवाले कार्यक्रमों में जीवन र्पयत जुडे रहे.
साक्षरता अभियान को समर्पित उनकी रचना तोहर जिनगी सुधर जइतो रे मैना आज भी लोगों की जुबान पर है. स्व गोप को वीर रस, श्रंगार रस तथा भक्ति रस की विद्याओं में महारत हासिल थी. वे हारमोनियम,ढोलक तथा तबला भी बजाते थे. आयुर्वेद तथा आध्यात्मिक क्षेत्र में भी उनकी गहरी रुचि थी.
ककोलत महोत्सव के मौके पर मगध वंदना के कर्ण प्रिये गीतों के साथ उन्होंने जो नृत्य प्रस्तुत किया,उसकी प्रशंसा वहां उपस्थित लोगों के अलावा बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने की थी. बिहार मगही मंडप के अध्यक्ष राम रतन सिंह रत्नाकर ने दुखी मन से कहा कि उनके निधन से मगही लोक भाषा को गहरी क्षति पहुंची है तथा मंडप ने अपना अभिभावक खो दिया है.
- चंद्रमौलि शर्मा -