रविवार, 19 जनवरी 2014

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-१४

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-१४
मगही मनभावन
मगही साहित्य ई-पत्रिेका
      
वर्ष -                अंक - १४                   दिसम्बर    २०१३
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संपादक   --- उदय कुमार भारती

प्रकाशक  --- मगही हिन्दी साहित्यिक मंच शब्द साधक
                    हिसुआ, नवादा (बिहार)
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ई अंक में

      दू गो बात.......
संपादकीय
बतरस

कहानी
जुलुम के आग- सुधाकर राजेंद्र
काक कथा- डॉ. किरण कुमारी शर्मा
चरगोड़वा- मिथिलेश कुमार सिन्हा

परियानी
पर कतरइ पर परवाज की- परमेश्वरी

कविता-कियारी
, जे खाड़ हे - पवन तनय
एगो पंचइती अनिल कुमार सिंह
कइसे मिटतइ भ्रष्टाचार - परमानंद
मंदिर-मस्जिद प्रो. धीरेंद्र कुमार धीरू
सरगो से सुंदर हमर गाम डॉ. रामश्रय झा

कुंडलियां
योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश
                                         डॉ. देव मुकुंद पाठक
अवधेश कुमार सिन्हा
पं. महावीर प्रसाद दुबे

मगह के आयोजन
मगध विश्वविद्यालय के मगही विभाग के तेसर स्थापना दिवस
महाकवि योगेश की जयंती समारोह 2013
हस्तलिखित पत्रकारिता के अंत

विविध
पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
निहोरा
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दू गो बात....
             
         14 वां अंक ई साल के मगही मनभावन के आखिरी अंक हइ। ई चौदह अंक के साथ मगही मनभावन अप्पन तेसरका साल के जतरा पूरा कर लेलकइ। पर हमरा असंतोष हइ कि एतना दिन में पत्रिका के चौदहे अंक निकस पइलइ। अदमी जे सोचऽ हइ से नञ् हो पावऽ हइ काहे कि अदमी परिस्थिति आउ समय के गुलाम हइ, कखनी कउन बाधा आ जइतइ कहल नञ् जा सकऽ हइ। रचना आउ पत्रिका के सामग्री जुटावे के काम भी बड़ी दुरूह हइ। साहितकार रचना देवे आउ भेजे में आलस दिखावऽ हथिन जेकरा से समय पर काज करना आउ कठिन भे जा हइ।
   ई अंक में तीन गो कहानी हइ। सुधाकर राजेंद्र के जुलुम के आग’, डॉ. किरण कुमारी शर्मा के काक कथाआउ मिथिलेश कुमार सिन्हा के चरगोड़वा। जुलुम के आग में घुटन और भीतर के आग से निकसल ज्वाला के कहानी हइ। कथाकार मजदूर के बहु-बेटी पर ओकर मालिक जमींदार के नजर और कुकृत्य के उभारे के प्रयास कैलका हऽ। ओकर परिणाम के ऊ रेखांकित कैलका हऽ। ई कहानी में नक्सलवाद पनपे के संकेत देवल गेल हऽ। काक कथा डॉ. किरण कुमारी शर्मा के सार्थक कहानी हे जेकर माध्यम से पर्यावरण के संरक्षण के संदेश देल गेल हऽ। प्रकृति और पर्यावरण के बिगाड़े के कमोबेश सब्भे दोषी हे। मट्टी, पानी, हावा सहित प्रकृति के सउ तत्व में विकृति हे, जेकर खामियाजा अउ सब्भे जीव-जंतु के भोगे पड़त। कउवा के प्रतीक बना के किरण जी बहुत कुछ संदेश ई कहानी में दे देलथिन हऽ।
 चरगोड़वा मिथिलेश कुमार सिन्हा के सच के आधार पर लिखल कहानी हे। इनके एगो निःशक्त शिष्य के संघर्ष आउ पढ़ाई के बुलंदी तक जाय के कहानी हइ, जे हमन्हींये के क्षेत्र के रहेवला बेटा हे।
 कविता कियारी में पवन तनय के कविता , जे खाड़ हेमगही के समकालीन धार के प्रतिनिधित्व करेवला रचना हे। अनिल कुमार सिंह के एगो पंचइतीकविता गांव में आझ हो रहल मुख देखउअल हो रहल पंचायत पर करारा प्रहार हे। पंच अउ पंच परमेश्वर के भूमिका में नञ् रहल। बड़कन आउ दबंग के मुंह देख के अउ इंसाफ के बात होवऽ हइ।
 ‘सगरो से सुंदर हम्मर गामबाढ़ जिला के रहेवला डॉ. रामाश्रय झा के मनमोहक कविता हइ, जेकरा में ऊ गाम के नैसर्गिक सुंदरता, सरस छटा, प्रेम आउ परिवेश के चित्रण कैलका हऽ। डॉ. योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश, डॉ. देव मुकुंद पाठक, अवधेश कुमार सिन्हा आउ पं. महावीर दुबे के कुंडलियां मगही में ई विधा के बानगी हइ। ऐसन कुंडली मगही में भी खूमे लिखल जा हइ। एकर माध्यम से देश के नेता आउ वर्तमान तंत्र के दुर्दशा पर प्रहार कैल गेल हऽ।
 मगह के आयोजन में मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के स्नातकोत्तर मगही विभाग के तेसर स्थापना दिवस, महाकवि योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश के 2013 के पटना में आयोजित जयंती समारोह के आयोजन के रपट हइ। कय गो रपट आउ आयोजन के जानकारी नञ् रहे आउ सामग्री नञ् जुट पावे से ओकर प्रस्तुति नञ् भे पइलइ, एकरा लेल क्षमा चाहवइ। लेकिन हम बार-बार निहोरा करऽ हियै कि मगह के रचनाकार आउ पत्रकार अप्पन-अप्पन क्षेत्र में होवे वला साहितिक आयोजन के जानकारी इया रपट बना के जरूर भेजथिन जेकरा से हमरा सहयोग मिलइ आउ हम्मर काम आसान होवइ। पूरा रपट आवे से ऊ रपट उनके नाम आउ प्रस्तुति से छपतइ।
 ई साल के आखिरी महीना हिसुआ लेल अच्छा नञ् रहलइ। हिसुआ के हस्तलिखित पत्रकारिता के अंत भे गेलइ। हमरा बीच से कय दशक से हाथ से लिखके पत्रकारिता करइ वला व्यक्तित्व वयोवृद्ध आर्य समाजी बलदेव सिंह हिमालय के निधन कोलकाता में भे गेलइ। उनखा हिन्दी मगही साहित्यिक मंच शब्द साधक आउ मगही मनभावन पत्रिका परिवार श्रद्धासुमन अर्पित करऽ हइ।
                                                                   
                                                                                                                                 अपने के
                             उदय कुमार भारती
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संपादकीय......
           
               ईहो साल 2013 बीत गेल आउ हम जेजऽ हलूं ओजे खाड़ ही। हम्मर साहित, हम्मर माय के बोली, हम्मर भासा के विकास आउ मंजिल तलूक पहुंचावे लेल जे काम साल भर में भेल ओकरा से हमन्हीं साहितकार के हिरदा में जरीको संतोष नञ् हे। साल भर में जे कुछ मगही के गतिविधि भेल ऊ मगही आंदोलन के पुख्ता काम नञ् कहल जा सकऽ हइ। कवि सम्मेलन आउ दर्जनों किताब छपा लेवे से मगही के मकाम नञ् मिलतइ। ई अपने सब्भे भी जानऽ हथिन।
 लोगबाग के साथे-साथे अपने साहितकारन सउ भी कहथिन कि....दूत....भारती जी ई की बुझल बात कहऽ हऽमगही के तऽ ई चरम काल हे। मगही में बड़ी काम भे रहले हऽ। केतना किताब छपलइ, जगह-जगह आयोजन भेलइ। फलन जगह मगही के सराहल गेल, फलन नेता मगही के विकास के आश्वसान देलथिन, फलन मंत्री एकर मुद्दा विधानसभा आउ लोकसभा में उठावे के आश्वासन देलथिन आउ तों अप्पन संपादकीय में ऐसन निगेटीव बात लिख रहला हऽ। भले साल पर साल बीतल जाय, सृजनकर्ता आउ साहितकार के बौसाह रीतल जाय पर मगही से जुड़ल लोग बड़ी आत्ममुग्ध हथिन कि हम्मर मगही तऽ मुकाम पर पहुंचए रहल हऽ। ई भेलई... ऊ भेलई गिनावे लगऽ हथिन।
 हम ईहां जादे कुछ तऽ नहींये कहवइ बकि दू-चार गो बात के रेखांकित जरूरे करवइ। पहिल बात ई कि हम्मर मगही क्षेत्र बड़कन-बड़कन नेता आउ मंत्री से भरल हइ। एकरे सांसद आउ विधायक हथिन। कय गो विधायक, सांसद आउ मंत्री हम्मर मगही लेल विधानसभा, लोकसभा में मुद्दा उठैलथिन। मगही के गूंज कहां-कहां तक पहुंचलई जरी बताथिन आउ अप्पन-अप्पन छाती पर हाथ धर के सोचथिन।
 दोसर बात ई कि मगही साहितकार के कय गो शिष्ट मंडल आउ प्रतिनिधि मगही के आठवीं अनुसूची में शामिल करइ के मुद्दा लेके मंत्री, सांसद आउ विधायक के दरवाजा खटखटैलथिनसाहितकार जौरे होके सरकार तक साल भर में कय गो ज्ञापन आउ मांग पहुंचैलथिनहम्मर समझ से कय साल से मगह के कउनो जिला के साहितकार आउ ऊहां के शिष्ट मंडल ऐसन कोय काम नञ् करलथिन हऽ। मगही के भासा के दर्जा दिलावे लेल पहिले धरना प्रदर्शन भी शुरू होल हल....एन्ने तऽ ऊहो बंद भे गेल हऽ। राजधानी पटना रहइ इया जिला मुख्यालय इया कोय विश्वविद्यालय अभी तऽ मगही आंदोलन के धरना-प्रदर्शन बन्दे भे गेल हऽ।
 मगही के उतरोत्तर विकास के लेल सरकारी मगही अकादमीहे....पर मगही अकादमी के कार्यशैली आउ साहित शून्यता पर भी सवाल हे। साल-साल भर के एकर लेखा-जोखा जदि कइल जाय तऽ ईहों से कुच्छो नञ् भेल। अकादमी के जे वायलॉज हे....जे काज के मापदंड हे ओकर हिसाब से कुच्छो नञ् भेल। कार्य समिति के बैठक में लेवल गेल कय गो प्रस्ताव....खाली प्रस्तावे बन के रह गेल। मगही अकादमी जदि चाहत हल तउ मगही के झमठगर-झमठगर कत्ते साहितकार के उद्धार भे जात हल। साहितकार के कय गो विधा के अमर कृति जनमानस के सामने आ जात हल। साहित जगत में मगही के दमगर उपस्थिति दर्ज करे लायक कय गो पुस्तक आउ पत्र-पत्रिका के प्रकाशन होल रहत हल। पर जे कुछ भेल ओकरा से मगही के उद्धार नञ् होतइ। मगही अकादमी पर सरकारी खरचा जे भे रहल हऽ....ऊ कउन काम के। सरकारी कोष समस्या नञ् बुझा हे बलूक काम करे वला टीम के कमी हे। ईहां ईहे रेखांकित कइल जा रहल हे। अकादमी के कार्यशैली के खिलाफ भी साहितकार दबल जुबान में बोले लगला हऽ आउ उनखा सब्भे के मलाल हइ।
 मगही लेल जे साहितकार अप्पन धन लूटा के साहित के जे कुछु दे रहला हऽ....ऊ मगही के सच्चा तारणहार हका। पर जे मगही में अप्पन महत्वाकांक्षा पूरा करे के काम कर रहला हऽ उनखा इतिहास माफ नञ् करतइ....कुछ ऐसनो हका जे भरमावे आउ कमावे के काम करके....निराशा के माहौल बना रहलाऽ हऽ उनखा भी साहित जगत ईयादे रखतइ।
 हम ई सउ के रेखांकित करइत अपने सब्भे से कहे चाहऽ हिअइ कि मगही में सउ कुछ हइ। हर कसौटी पर हम्मर मगही खरा हइ एकरा में सउ अहर्ता हइ जेकर बदौलत एकरा मुकाम मिल सकऽ हइ। एकर बावजूद हम्मर अप्पन कमी, हम्मर लोगन के कमी आउ हम्मर जनप्रतिनिधि के कमी के कारण मगही पीछु के पीछुए हइ। तनी सब्भे मिल के जोर लगा देथो हल तउ मगही अप्पन मकाम तक पहुंचे जइतइ हल। आमजन, साहितकार, नेता, जनप्रतिनिधि सउ अप्पन-अप्पन करतप के समझथिन ईहे निहोरा हइ।
 मगही के पढ़ाय स्कूल से लेके विश्वविद्यालय तलूक होवे लेल सरकार द्वार खोल देलक हऽ पर मगही के पठन-पाठन से जुड़ल अधिकारी के कोताही भी सामने आवऽ हइ। चाहे ऊ मगही भासा के सिलेबस बनावे के काम रहइ इया पुस्तक के चयन के। उनखा भी मगही के स्तर के ख्याल रख के....मगही के दमगर साहितकार के जगह देव के काम करे पड़तइ। जुगाड़ आउ भाय भतिजा बाद से ऊनखो बाहर आवे के चाही। सरकारी किताब में, आकाशवाणी में, टीवी पर जुगाड़ु साहितकार दिख जा हथिन आउ सच्चा साहितकार घरे में घुट के रह जा हथिन। उनखर कृति दीमक खा रहले हऽ, मगही धरोहर बरबाद हो रहल हऽ। मगही प्रतिभा मर रहल हऽ।
                                                  उदय कुमार भारती
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बतरस
         
                      बड़कन पार्टी से हम्मर विश्वास टूटल हे बाबू
        
         अजी पत्रकार जी महारज...जय होवइ तोहर पत्रकारिता धरम के, नीके सुखे रहे तोहर कुल परिवार!         
     हमन्हीं ऐसन आम अदमी के अभियो पत्रकार पर बड़ी विश्वास हइ बाबूतंत्र, सरकार आउ प्रशासन से भले विश्वास उठ रहल हऽ पर अपने पर भरोसा हइ। अपन्हींये सउ ई बड़कन नेतवा के घोटाला, भ्रष्टाचार आउ कारगुजारी के पर्दाफाश करऽ हथिन हऽ। अपने सब्भे के दमखम के बदौलत ई देश के तंत्र पर अंकुश लगल हइ नञ् तऽ ई देश के बेच के खा जइथिन हल हम्मर मानिंद नेता।
 ईहां हम आझ अप्पन दिल के एगो आउ बात बतावे चाहऽ हिअइ। हमन्हीं के अउ देश के बड़कन पार्टी आउ बड़कन नेतवन से विश्वास बिल्कुल उठ गेले हऽ बाबूहमन्हीं के हार्दिक हिंछा हे कि देश के चलावेवला कोय आम अदमी होवइ, जे पारदर्शिता आउ जनभावना से देश चलावइ।  स्वच्छ चरित्र वालन आउ सच्चा सेवक के जौर करि के लोकहित के रक्षा करे वला सचकोलवा लोकतंत्र के स्थापना करइ। हम्मर विश्वास के जीता जागता सबूत तो अपने सब्भे देखिये लेलहो। 8 दिसंबर के दिल्ली में आम अदमी पार्टी के सरकार के बनलइ। ई पार्टी के जनमत मिले के पीछे सिरिफ एक्के गो कारण हइ बड़कन पार्टी से हम्मर विश्वास के धक्का। हम आम आदमी कैसन पार्टी, कैसन लोगन आउ कैसन सरकार के चाहऽ हिअइ ई तऽ एकरा से बिलकुले साफ भे गेलइ।
 खाली दिल्लीये नञ् आझ सगर देश में आम अदमी महंगाई, सरकार के करतूत, नेता के घोटाला आउ भ्रष्टाचार से कराह रहल हऽ। कोय सुनबैया नञ् हे बाबूसरकार में बैठल पार्टी अप्पन भोट बैंक बढ़ावे लेल ऐसन-ऐसन नियम आउ जोजना बनावऽ हे जेकरा में चौदह गो छेद हे। एक जोजना के कार्यान्वयन लेल चौदह गो जनप्रतिनिधि, निगरानी समिति, अनुश्रवण समिति आउ सामाजिक अंकेक्षण समिति बनावल जा हे ताकि जोजना से एकरा से जुड़ल सउ लाभांवित होवइ। चहुं ओर बंदरवाट खुल के दिखऽ हइ, जोजना जमीन पर उतरऽ हइ कम, ठीकेदार आउ संबंधित लोगन के पेट में जादे जा हइ। सरकार अप्पन विकास आउ काम के ढिंढोरा पीटऽ हइ आउ आम अदमी आझो भी फटल के फटलेहाल हइ। घोटाला पर घोटाला आउ नेता के मुंह काला हइ। आझ ऐसन कालीख अउ जनता के भी लगल जा हे बाबूदेखा देखी से जनतो भ्रष्ट भेल जा हे। आम अदमी भी अप्पन सोवारथ देखे लगल हऽ - परहित और देशहित केकरो नञ् सुझऽ हइ। बड़कन के भ्रष्ट संस्कृति के असर हम्मर पीढ़ी पर पड़े लगल हे। ऐसन में ई भ्रष्ट तंत्र के बदले के जरूरत आउ बढ़ जा हे। ई तंत्र जदि नञ् बदलत तऽ समूचे देश भ्रष्ट हो जात बाबू!
 हमन्हीं आम अदमी अप्पन हिरदा के हिंछा प्रकट कर के देखा देलियो हऽ, अउ अप्पन सब्भे के धरम बनऽ हइ कि एकरा उजागर करहो। वैसे जेतना अपने सब्भे उजागर कर रहलहो हऽ आउ जनजन तक पहुंचा रहलहो हऽ, ऊ कम नञ् हइ। अपने सब्भे के बदौलत ही दिल्ली के तख्ता पलटैलै आउ जनता के भावना खुल के एक दोसर के प्रेरणा बनलइ।
 बड़कन पार्टी आउ ओकर नेता कुरसी के केतना भूखल हथिन ई तो रोज सामने आ रहले हऽ। नेता अप्पन सोवारथ में जेतना नीचे गिर सकऽ हे गिर रहला हे, ई लोकतंत्र पर कलंक हे। ई कलियुग के नेता लोगन भठयुग बना देलथिन हऽ। अपने में गारा-गारी करता हल तउ थोड़े देर लेल बेस हल लेकिन ई तउ मंच से भरल सभा में गारा-गारी करे लगलन हे। ऊ जनप्रतिनिधि जेकार हमन्हीं मर-धस के, समर्पित होके सिरमौर बनावऽ ही, ऊहे ऊहां पहुंच के अप्पन असली चेहरा देखावे लगऽ हथिन। अप्पन पद-प्रतिष्ठा के भी गरिमा नञ् रखऽ हथिन बाबूतउ हमरा केतना चोट लगऽ हइहम्मर अगलका पीढ़ी आउ आगे बनै वला नवसिखियन नेता पर एकर की असर पड़तै बाबू?
 जनता अउ नयका तंत्र के हिंछा रखऽ हइ। भ्रष्ट लोकतंत्र के नञ् स्वच्छ लोकतंत्र के। जहां जनहित आउ लोकसेवा के काम होवइ, आम आदमी पार्टी के चाहत लोग बाग के हइ। जदि आप पार्टी अप्पन घोषणा के अनुकूल जनहित के काम करि के देखा दे हइ तऊ आवेवला समय में ई देश के एगो बड़गर विश्वासी पार्टी के रूप में उभरतै आउ जदि ई आम आदमी के कसौटी पर खरा नञ् उतरलइ तऊ.....आम अदमी के हिंछा घुट के रह जितइ बाबूअभी तऽ जनता ई पार्टी के अगुआ पर बड़ी आशा आउ विश्वास से नजर जमैले हइ। जेजा देखहो ओज्जे एकरे चरचा हइ। हमन्हीं समझ रहलिये हऽ ई हम्मर अप्पन बनावल, हमरा लेल काम करे वला, हम्मर पार्टी हे। कोय अदमी आगू आवऽ हथिन ईया कोय पार्टी बनऽ हइ तऽ ऊ कुरसी लेल। जदि ई पार्टी के भी कुरसी के भूख आउ उनखर महत्वाकांक्षा खुले लगतै तऊ हमन्हीं इनखा भी जल्दीये नकार देवै....ई तउ अपने जानबे करऽ हथिन.... अउ समय बदल गेल हऽ बाबू.....अउ धीरे-धीरे हमन्हीयों जागरूक भे रहलिये हऽ। अपने सब्भे जैसन मीडिया के साथ रहे के चाही....
                                                                                                                                       तोहरे.....
                                                                                                                       एगो दुखछल आम अदमी
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कहानी
                              जुलुम के आग
                                   
                                                                   सुधाकर राजेंद्र
            
               बोझा ढोबाऽ हल। सेखर बाबू आरी पर बइठल बोझा गिनइत जा रहलन हल। रधिया चार अदमी के बोझा उठा देलक हल। दू मजूर पहिलहीं बोझा उठा के चल देलक हल। अब बच गेल हल एगो रधिया, मगर ओकरा बोझा उठावऽ हे कउन? रधिया के सुथरई आउ जवानी सेखर बाबू के आंख में बसल हल। रधिया सेखर बाबू से बोलल – ‘‘जरी बोझवा उठा देथिन।’’ सेखर बाबू तो ऐसने मोका के तलास में हइए हलन। ऊ बोललन – ‘‘काहे न उठा देम’’, रधिया के चढ़ल जवानी, चान के लजावेवला चेहरा देख के आउ हाथ के छुअन से सेखर बाबू के धड़कन बढ़ गेल। बोझा रधिया के माथा पर उठावो न कएल हल कि गिर परल। बोझा से भरभरा के अनाज झर गेल। सेखर बाबू के हरकत से रधिया के तनिको न सोहाएल, ओकर चेहरा गरम लोहा जइसन तपे लगल। लाल-लाल आंख सेखर बाबू पर तनल हल ओकर – ‘‘छीः, लखेरा नियन करवऽ, तनको सरम न लगऽ हवऽ, ससुरार में का हहूं? रोसियाएल बोलल रधिया आउ एन्ने ओन्ने निहारे लगल। एतने में देखलक कि बटेसरा खरिहान से बोझा धर के आ रहल हे। ऊ चुप हो गेल। बटेसरा के खेत में पहुंचतहीं कुछ अजीब अइसन लगल। मगर ऊ एकरा पर विसेस धेयान देलक।
 दुपहरिया में घरे अयला पर जब रधिया के माय ई सब बात जानलक तऽ जेठ के तपल दुपहरिया अइसन गरम हो गेल बकि अप्पन मरद मंगरू से समझयला पर ऊ सांत हो गेल हल।
 रधिया खाए बान्हले कटनी खेत जाए के तइयारी कर रहल हल आउ लोग कटनी करे खेत में चल गेलन हल। घर में अकेले हल ऊ। अरिआते के बहाना से सेखर बाबू रधिया के घर तक पहुंच गेलन फेर मजूर सब में रधिया के अकेले पा के ओकर घर में घूस गेलन – ‘‘का रधिया आज तों काटे नञ् गेले।’’ बात करे के बहाना ढूंढते ऊ बोललन। उनका देखतहीं रधिया सब समझ गेल। ऊ बोलल – ‘‘निकलऽ हऽ हम्मर घर से की न?’’ सेखर बाबू धीरे-धीरे अंगना से डेयाढ़ी में पहुंच गेलन हल। रधिया उनखर हरकत देख के बगल में रखल हंसुआ उठा लेलक। सेखर बाबू रधिया के काली अइसन रूप देख के दवले पांव लौट गेलन। ई सब बात जब बटेसरा जानलक तऽ भादो के बरसाती नदी अइसन किनारा तोड़े लगल। बकि मंगरू के काफी समझौला पर सांत हो गेल। एकर बदला लेवे के बात ऊ मन में ठान लेलक।
 अब बात-बात में सेखर बाबू से बटेसरा के तकरार होवे लगल। ई तकरार बढ़ते जा रहल हल। सेखर बाबू बटेसरा के अप्पन राह के कांटा समझ रहलन हल। कुछ दिन पहले गांव में मडर हो गेल। बस ऊ मडर में बटेसरा के नाम दिया गेल। ओकरा पुलिस-दरोगा पकड़ के ले गेल। जेहल भेज देल गेल ओकरा। इधर सेखर बाबू के जुलुम आउ बढ़े लगल।
 बटेसरा के माय ओकरा जेहल से छोड़ावेला अप्पन भाई किहां गेल हल। घर में रधिया आउ मंगरू बाप बेटी बच गेलन हल। बुढ़ारी के जान, दूसरे खांसी से परेशान मंगरू, टूटल चटाई पर डेयाढ़ी में पड़ल हलन। दवाई पिला के रधिया भी उनखे बगल में गेंदरा बिछा के सुतल हल। दिन भर के थकल रधिया के नीन पड़ गेल। अब मंगरू भी फोफकार मारे लगलन हल। चौकीदार के जाग सोइहऽ सुनइते छोटकी गली में कुत्ता झंझुआए लगल हल। ओही घड़ी कुछ अदमी छानी फान के मंगरू के घर में घुसल। ऊ सब गलमोछी लगइले हल। रधिया के मुंह बंद के पुरवारी घर में ले जाके धर दबोचलक। मंगरू के नीन टूटल तऽ उनखर छाती पर राइफल तनल हल। ऊ रधिया के चीख-चिल्लाहट आउ कराह सब सुनते रहलन। उनखर आंख में लोर डबडबाएल हल, जेकरा में जुलुम के जहर घुल रहल हल। आधा घंटा के बाद जब रधिया के होस आयल तऽ देखलक कि ओकर सब कपड़ा फटल हे। जहां-तहां खून के दाग लगल हल। ओकरा चलल न जा रहल हल। तइयो हिम्मत करके अप्पन बाप मंगरू के पास पहुंचल। मंगरू खांसते-खांसते परेशान हलन। उनखर परान आ-जा रहल हल। ऊ जइसहीं रधिया के हाथ अप्पन हाथ में लेके कुछ कहेला चाहलन कि उनखर परान निकल गेल। बिहने ई खबर सउंसे गांव में फैल गेल। रधिया के घर में टोला-पड़ोस के भीड़ जुटल हल। अइसे तो रधिया राते में सेखर बाबू के पहचान लेलक हल पर छुटल गमछी से आउ पहचान हो गेल। मगर हिम्मत केकरा कि कुछ बोले। ई घटना से चमटोली के जवान लोग के खून खौल गेल हल। सब जवान ई जुलुम के खिलाफ सुगबुगाए लगलन हल। जुगेसरा तो अकेलहीं फरिआवे ला तइयार हल। मगर ओकरा समझावल गेल। उधर सेखर बाबू ई सबसे फरिआवेला अपना के अकेलहीं काफी समझ रहलन हल। टेंगरा, रमेसरा, भुनेसरा, बलेसरा आउ जुगेसरा ई सब के बोला के सेखर सिंह के दादा मान सिंह डांटलन – ‘‘देख तोहनी सब, गांव में कहीं कुछ होलउ तऽ तोहनिए जानमे, अब आगे बात न बढ़े के चाही।’’
 ‘‘बात कइसे न बढ़ते मालिक। गरीब लोगन के इज्जत लुटाइत रहे आ हमरी टुकुर-टुकुर देखित रही’’ – जुगेसरा बोलल। चमटोली के नौजवान सब मीटिंग कयलन जेकरा में जुगेसरा, फुलेसरा, टेंगरा, रमेसरा, बलेसरा, भुनेसरा, जुगिया, गुनिया, आउ घुरिया भी हल। मीटिंग में पास होल कि अबकि कोई के साथ सेखरवा तनिको कुछ गलती करे तऽ अबकी नञ् डरना हे। सब मिलके चढ़ जाना हे चाहे नौए चाहे छौए। ई सब बात सेखर बाबू के कइसहुं मालूम हो गेल। ऊ सब के ठंढा कर देवे के धमकी देलन हल।
 रात के बारह बजल होत। घूच अन्हरिया। अचानक राइफल के फायर होल। ठांयऽऽऽ समूचे गांव खलबलाए लगल। एतने में सऊंसे चमटोली धधके लगल। रोते-पीटते सब बाहर भागल। पर रधिया घरहीं छेंका गेल। धधकइत आग से ओकर सउंसे देह झुलस गेल। ऊ छटपटा-छटपटा के परान तेयाग देलक। बिहने चमटोली के लहास पर गिध अइसन पुलिस उतरल। खींच-खींच के लहास निकालल जा रहल हल जेकरा में रधिया के लहास भी आग से जरल निकलल।
 डेढ़ महीना बाद बटेसरा जब जेहल से छुटके आयल तऽ चमटोली में एक विसाल सभा होल। ऊ सभा लाल झंडा से पटल हल। ई सभा में सेखर बाबू के बोलावल गेल पर सेखर बाबू गांव छोड़ के फरार हलन।
  
-    दत्तमई, नेतौल, पटना 
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कहानी
                       
                                                             काक कथा
                               
                                                                        डॉ. किरण कुमारी शर्मा
           
                 गो हलइ कउवा। ओकरा बड़ी कस के पियास लगल हलइ। पियासल हल तऽ एने-ओने बौखवे कैल होत। चारो पट्टी चक्कर लगइलक मुदा कहइं पानी के दरस नञ् भेल। थक-हार के ऊ गांव दने रूख कइलक। ऊ एन्ने-ओन्ने नजर दउड़इले जा रहल हल। संजोग से एगो घइला जनाल। ओकर उमेद बढ़ गेल। ऊ उड़ल-उड़ल आल आउ घइला के कनखा पर बइठ के हुलुक-बुलुक करऽ लगल।
 हां, एक बात पहिलइ कह देवे चाहऽ हियो कि ई ऊ कउवा न हल, जे कंकड़ चुन-चुन के डाललक हल आउ तलछट पानी के उपरा के पियास बुझइलक हल। हम ई बात पहिलइ साफ कर देवे चाहऽ ही, जहमां तूं सब भ्रम में न पड़ऽ। ई तऽ आज के एगो बेचारा कउवा के खिस्सा हे।
 जहां, तऽ ओकरा घइला के पेंदी में चुरूभर पानी जनाल। ओकरा अप्पन पुरखा के इयाद आ गेल। ऊ आनन्द से नाचऽ लगल। ऊ पुरखने के अजमावल नुस्खा के फेनों से प्रयोग करे ले ठानलक। ऊ एने-ओने कंकर तलाशऽ लगल बकि अगल-बगल में कंकर नजर न आल। ऊ नजर के दायरा बढ़इलक। थोड़के दूर में एगो सड़क बन रहल हल। जोर-शोर से काम लगल हल। टरक के टरक गिट्टी-छर्री गिरावल जा रहल हल। कउवो ओतुने से ललकी गिट्टी ला-ला कनखा पर चढ़-चढ़ डालऽ लगल। ऊ हुलुक के देखऽ लगल ई कि होलपानी उपर नञ् चढ़ के नीचू पसर गेल आउ सोख लेलक पियासल धरती। घइला के पेंदी जनु दरक गेल हल, जे से पानी नीचू बह गेल। ओने कउवा के तरास बढ़ल गेल आउ पानी बिन बेचारा टें बोल गेल।
 जमदूत तऽ ताक में रहवे करऽ हथ। ऊ चट आ धमकला आउ कउवा के परान से कहलका, ‘‘अब चलऽ हमरा साथ जमलोक।’’
 कउवा के आतमा अकचका के कहलक, ‘‘हम तोरा साथ नञ् जइबो।’’
‘‘काहे?’’ दूत अकबका के पूछलक।
‘‘ई कउवा मरल हें नञ्, खडयंत्र से मारल गेल हें। तूं जा आउ जमराज के भेजऽ।
 दूत ठिसुआ गेल आउ जाके जमराज से सौंसे खिस्सा कह सुनइलक। जमराज गोस्सा से तमतमाल भइसा पर सवार होला जमपास हाथ में लेले। ऊ भर राह मसमसावत, बुदबुदायत आ रहला हल, ‘‘नाचीज कउवा-तउवा के ई हिमाकत ’’
 जमराज के भइसा कउवा भिजुन ठमकल। जमराज भंइसे पर से कड़क आवाज में कहलका, ‘‘संसार में एगो तोहीं मरले हें। सब भिजुन हम जा लगली तऽ भेल। चल जल्दी। हमरा संसार के नियम पालन करऽ दे। तोरा जे कुछ कहइ के हउ, उहइं चल के कह।’’
 आउ कउवा के आत्मा जम पास में जकड़ल धर्मराज भिजुन पहुंचा देवल गेल। धर्मराज काम के भीड़ सलटा के कउवा के आत्मा से पूछलका, ‘‘तोरा की होलउकी कहना हउ, जल्दी कह।’’
 ‘‘महाराज हमर आयु अभी खतम न होल हें। हम पियासल मरलूं हें। ई हमरा साथ साजिश होल हें’’, कउवा के आत्मा निठुरे सन जवाब देलक।
‘‘कइसन साजिशजमराज अकचकइला।
‘‘ई साजिश नञ् तऽ आउ की हे महाराज। हम्मर पुरखन पियास बुझइलन हल घइला में अपनइलूं मुदा हम्मर पियान न बुझल सरकार। हम ऊहे साजिश के अजमावल तरीका अपनइलूं मुदा हम्मर पियास न बुझल सरकार। हम ऊहे साजिश के तहत तोहरा भिजुन ले आवल गेलूं हें, एकरा में हम्मर कसूर की हेजब हम्मर कसूर नञ् हे तऽ एकर सजाय हम काहे भोगम?’’ कउवा तर्क देके अपना के निर्दोष साबित करइ के कोशिश कइलक।
 अब तऽ धर्मराज पड़ गेला फेरा में। ई बात तऽ सच हे कि कोय भी करनी के फल भोगऽ हे। कउवा तऽ ठीके कह रहल हें। एकर तर्क में तऽ जान हे। विषय गंभीर हे। एकरा में आनन-फानल फइसला देना अन्याय हे। से-से दुन्नूं बिसुन भगवान भिजुन चलला।
 बिसुन भगवान के दरबार सजल हल। सब देवतन अप्पन-अप्पन आसन पर विराजमान हला। तखनइ धरमराज आउ कउवा के आतमा दरबार में उपस्थित होला। असमय उपस्थिति से अकचकायत बिसुन भगवान पूछलन, ‘‘की परयोजन हे जमराजतोहर मुंह पर बारह काहे बज रहल हें?
 जमराज अप्पन लमहर गमछी से मुंह पोछ के कहलका, ‘‘बात ई हे भगवन कि हमरा साथ कउवा के आतमा भी हे। एकर कहनइ हे कि एकरा आयु अभी बचल हे। ई खंडयंत्र के शिकार होल हें। ईहे बड़का समस्या हल स्वामी।’’
 बिसुन भगवान कउवा के आत्मा के ऊपर से नीचू तक देखलका आउ पूछलका, ‘‘की होकी बात हउ?’’
 ‘‘हमरा धरती पर वापस भेज देवल जाय, जेकर बदमासी से घइला फूटल’’, आतमा तन के बोलल।
 ‘‘हमरा धरती पर वापस भेज देवल जाय। हमरा बदली सजा ऊ कुम्हार के देवल जाय, जेकर बदमासी से घइला फूटल’’ आतमा तन के बोलल।
 बिसुन भगवान गंभीर हो गेला। ऊ क्षण में कड़क के हुकुम देलका, ‘‘कुम्हार के बोलावल जाय।’’
 ऊहां तऽ सब साधन मौजूद हल। झट कुम्हार के हाजिर कैल गेल। कुम्हार बेचारा हाथ जोड़ले घिघिया के बोलल, ‘‘हुकुम माय-बाप।’’
 ‘‘तू काहे अइसन घइला बनइलें, जेकरा चलते कउवा टें बोल गेल। एकरा ले तोरा सजा भुगतऽ पड़तउ’’, बिसुन भगवान तेवरी चढ़ा के बोलला। कुम्हार दौड़ के बिसुन भगवान के गोड़ धर लेलक, ‘‘छमा हो माय-बाप। एकरा में हम्मर कोय दोख नञ्। हमरा तऽ कतेक कुरसी से पुरखन घइला बनावऽ हलन आउ ऊहे घइला के पानी से कउवा के पुरखन तिरपित होलन हल। हम की करि मालिक, आझकल जे मट्टी मिलऽ हे, ओकरा से मजगुत घइला बनिये नञ् सकऽ हे। न विसवास होवन तऽ अप्पन किनखो से पता लगवा सकऽ हथिन सरकार।’’
 ‘‘तोर कहना हउ कि मटिये के दोस हइ?’’ विसुन भगवान चकरायत पूछलका। उनखा समझ में नञ् आ रहल हल कि मट्टी के भी दोस हो सकऽ हे?’’
 ‘‘हां हूजूर।’’ कुम्हार विसवास से भर के बोलल।
 ‘‘से कइसे?’’
 ‘‘बात ई हे भगवन कि अदमी के बिरधी जादे हो गेल हें। जे रफ्तार से अदमी बढ़ रहल हे, ऊ दर से तऽ धरती के तलारल नञ् ने जा सकऽ हे। ई से जादे से जादे अनाज कइसे उपजे, एकरे में अदमी के माथा लगल हे भगवन। एतना ने सलफिट, फोसफिट, कीड़ा मारइ वला दबाय, खर-पुआर नासे बली बुकनी छीट रहलन हें कि अब मट्टी के उर्वरा शक्ति घटल जा रहल हें’’, कहके कुम्हार चुप हो गेल। भगवान के ठकमुरकी लग गेल। अइसन शिकायत पहिले भी भगवान सुन चुकला हल। आजिज आके बिसुनदेव जी एगो उच्च स्तरीय कमेटी बना देलन, जेकरा में पवन देव, सुरूज देव आउ वरूण देव के रखल गेल। उनखनी के हुकुम मिलल कि पता लगावऽ कि कउवा के वास्तविक हत्यारा के हे?
 तीनों पृथ्वी लोक के चप्पा-चप्पा छानऽ लगला। समस्या हल कि कहां से शुरू कैल जायवरूणदेव कहलका, ‘‘ई धरती पर धरती के ज्ञान सबसे जादे गंगा जी के हे। ऊ कत्तेक सभ्यता-संस्कृति के बनते-बिगड़ते देखलन हें। काहे नञ् उनखे से चल के पता लगावल जाय।’’
 तीनों गंगोत्री पहुंच गेला। गंगा के अमृत जल के श्रद्धापूर्वक नमन करके आचमन कैलका। तीनों के ताप मिट गेल। तनी सुस्ता के गंगा माय के सब हाल सुना देलका। सुन के गंगा के निर्मल-मंद धार में तनी आवेग आ गेल। ऊ कहऽ लगलन,‘‘हियां के लोगन के तऽ आउर विचित्र हाल हे। जे थरिया में खइतो, ओकरे में भूर कर देतो। हम्मर धार राज सगर के साठ हजार बेटन के तार देलक। हमरा सब मायकहऽ हे आउ हमरे गोदिया में झाड़ा-पैखाना, थूक-खखार, अचरा-कचरा फेंकऽ हे। हम्मर किरछा पर बड़गो-बड़गो नगर बसल हे, कल-कारखाना के अंबार लगल हे। सभे के गंदगी साफ करइत-करइत हम खुदे गंदा हो गेलूं। हम्मर जल अमरित हल। ओकरा में कीड़ा नञ् पड़ऽ हल, मुदा आझकल हम्मर सभे घाट पर जहर के धार बह रहल हे। बिना नाक मूंदले घाट पर खड़ा रहे के हिम्म्त नञ् पड़तो। हम अपने पूतन के करतूतन से मोक्षदायिनी से पाप प्रदायिनी बन गेलूं हें। देवतन के नदी आझे नरक कुंड हो गेलूं हें। हम अप्पन दुख केकरा सुनावीपूछ लह न पवनदेवप से।’’
 ‘‘एकदम सोलहो आना सच कहऽ हो गंगा। हमरे से अदमी के सांस चलऽ हे, फेफड़ा में भर के अदमी चान पर गोड़ धइलक बकि हम्मर कौन दुर्दशा बना के रख देलक हे ई अदमी, कहल नञ् जा सकऽ हे। कल-कारखाना से एतना जहर भरल गैरन निकस रहल हें कि ओजोन मंडले फट गेल हें। एकरे फल हइ कि सुरूज से निकसे वला पराबैंगनी किरन अब सीधे धरती पर आ रहल हें’’, पवन देवता चिंता जताबइत कहलका।
 सुरूजदेव के मुंह रसे-रसे तपावल सोना-सन लाल होल जा हल। भोरे धरती पर अइलन हल तऽ केतना सोहनगर लगऽ हला। उनखा पर तऽ गोस्सा सबार होल जा हल। ऊ तमतमा के कहलन, ‘‘एकर दुर्गति भी तऽ उनखनियें के न भोगऽ पड़तन। तोहनी के तऽ पते हो कि ऊर्जा के सबसे बड़का श्रोत हम ही। हमरे सौर ऊर्जा लेके गाछ-बिरछ के पत्तन कार्बोहाइड्रेड के संश्लेषण करऽ हे। ऊहे संचित ऊर्जा लेके संसार के जदब जीव अप्पन भरण-पोषण करऽ हे। अइसहीं ऊर्जा के प्रवाह चल रहल हे धरती पर। अदमी ऊर्जा के जेतना दुरूपयोग अभी कर रहलन हें, पहिले कभियों नञ् होल हल। एक से एक परमाणु बम, अणु बम, मिसाइल आउ जैविक हथियार बनाके अदमी अप्पन मकड़ जाल में फंसइत जा रहल हे। जंगल के जंगल साफ कर के ग्रीन हाउस बना रहलन हें, बुड़बक कहां के। पंचवटी, चित्रकुट, वृंदावन के कुंज गली के कहानी भुला के उद्यान आउ पार्क के बनावटी दुनिया में मस्त हे।’’
 तीनों धरती के गहन निरीक्षण करके एक ठइयां सम्मिलित रिपोर्ट तैयार कइलका आउ देवलोग लौट गेला। रिपोट लमहर हल। ओकरा संक्षेप में लिखल गेल आउ बिसुन देव के हाथ में दे देवल गेल। संक्षिप्त रूप ई तरह तैयार कइल गेल हल।
 ‘‘धरती पर प्रकृत्ति आउ पुरूष एक दोसरा के पूरक हे। पृथ्वी के चौगिरदी एगो आवरण हे, जेकरा पर्यावरण कहल जाहे। ई पर्यावरण के संतुलित करइ ले नियम बनावल गेल हें। अदमी अप्पन-अप्पन सोवारथ ले नियमन के खुल्लम-खुल्ला उलंघन कइलन हें, जेकरा से वायु, जल, भूमि, ध्वनि-प्रदूषण वगैरह ढेर मनी समस्या सुरसा नियन मुंह फारले ढाढ़ हो गेलन हें। प्रकृत्ति के देल हवा, पानी आउ माटी आझ जानलेवा बन गेल हें। औद्योगिक क्रांति के चलते ऊर्जा के अनवीकरन श्रोत समाप्त हो रहल हें। उन्नीसवीं आउ बीसवीं सदी के शुरूआती दौर में यूरोप आउ अमेरिका के ऊपर करिया आवरण छा गेल हल। पिट्सबर्ग आउ पेंसिलवेनिया जइसन ढेर शहर में तऽ दिन में अन्हार लगऽ हल। अदमी अप्पन विलासिता ले जे-जे उपकरण बनइलन हें, ओकरा से पर्यावरण में क्लोरो-फ्लोरो कार्बन गैस के मात्रा एतना बढ़ रहल हें कि ओजोन मंडल में छेद हो रहल हें। अदमी अप्पन ताकत जतलावे ले लगातार आण्विक विस्फोट कर रहल हे, जेकर रेडियोधर्मी प्रभाव से अदमी शारीरिक आउ मानसिक रूप से विकृत हो रहल हे। पर्यावरण के अनावश्वयक दखलंदाजी कइला के चलते एकर तापमान लगातार बढ़ रहल हें। जदि ईहे रबइया रह गेल, तऽ एकैसवीं सदी के मध्य तक धरती के तापमान साढ़े तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ जात। गरमी बढ़ला से आर्कटिका, अंटार्कटिका, हिमालय आदि के बरफ पिघल जात आउ समुन्दर के जलस्तर तीन फीट ऊपर आ जात। हरेक बरिस वायुमंडल से करीब दू अरब टन कार्बन डाय ऑक्साईड के समुंदर पी जा हे, बकि ई गड़बड़ी के चलते समुंदर के क्षमता पचास फीसदी घट जात। हरेक साल लगभग छो अरब टन कार्बन कोयला, पेट्रोल, डीजल आदि के जरला से वायुमंडल में मिल जाहे। अगला सो-डेढ़ सो बरिस में कार्बन के स्तर हरेक बरिस एक फीट सैंकड़ा
बढ़त।
 ई तरह से स्वर्ग से सुत्थर पृथ्वी पर प्रदूषण असुर के साम्राज्य अइसन फैल रहल हें, जेकर राज में कोय सुखी नञ् रह सकऽ हे। ईहे से हमनी के लगऽ हे कि कउआ के मारइ में सभे अदमी के प्रत्यक्ष-परोक्ष हाथ हे। थोड़े-थोड़े अपराध सब कइलन हे।’’
 रिपोट पढ़ला के बाद बिसुनदेव चिंतित हो गेला। उनखा पसेना आ गेल। ऊ पहिले लक्ष्मी जी से मांग के एक गिलास पानी पीलका आउ खखस के कहलका, ‘‘तऽ एकरा रोके के उपाय भी तऽ सुझावे के चहतियो हल।’’
 देवतन चुप हो गेला। सगरो सन्नाटा छा गेल। बड़ी हिम्मत करके इन्दरदेव बोलला, ‘‘ई समस्या के मूल जड़ के आबादी। अब देखऽ ने, उनैस सो सैंतीस में संसार के आबादी लगभग दू अरब हल। पचास बरस के बाद हो गेल पांच अरब। एकरे रोके के जरूरत हे, काहे कि आबादी बढ़त, तऽ ओकरा ले भोजन चाही, पानी चाही, हवा चाही आउ रहइ ले धरती चाही। एकरा ले प्रकृत्ति के दोहन होबे करत, खेत में रसायनिक उर्वरक पड़बे करत, कल-कारखाना लगबे करत, बस, रेल, मोटर चलवे करत, परमाणु परीक्षण होबे करत, केकरा-केकरा रोकल जात?’’
 दोसर उपाय हे कि गाछ बिरिछ कटे कम, लगे जादे। विज्ञान के नियम आउ साहित्य के मर्म से इंसान के बांधल जाय। साहित्य के बिना विज्ञान पजावल दुधारी तलवार हो गेल हें, जेकरा से खिलवाड़ करइ वला अदमी अपने हाथ से कटइ ले तैयारी हे।’’
 ध्यान मग्न सुनइत बिसुन भगवान सहमति में मुड़ी हिलइलका आउ आदेश देलका
 ‘‘ब्रह्माजी आबादी रोकथ आउ धरती पर बसय बलन मानव के कह दा कि प्रदूषण के रोकऽ। खुलल जगह में असभ्य नियन शौच न करऽ, जंगल लगावऽ, कूड़ा-कचरी के पानी में नञ् डालऽ, ओकरा से कंपोस्ट बनावऽ। नदियन के जीव सोंस के मत मारऽ। खेत में रसायनिक उर्वरक के जगह पर कंपोस्ट डालऽ। परमाणु परीक्षण तऽ तत्काल बंद करऽ आउ शांति से रहऽ। बुद्ध वचन इयाद करऽ। धरम, मानवता, सहनशीलता, भाईचारा, कबीरा के प्रेम आउ वेद के वसुधैव कुटुम्बकम के संदेश धरती पर फइलावऽ, नञ् तऽ सृष्टि के लीला समाप्त कर देबो।’’
 तनी सुस्ता के भगवान बोलला, ‘‘जहां तक ई कउवा के सवाल हे, तऽ एकर कोय दोष नञ् हे। मृत्यु तऽ प्रकृत्ति के नियम हे। हम ई नियम के उलंघन न कर सकऽ ही। एकरा तोड़ला से सृष्टि समाप्त हो जात। एही से एकरा हमरे परमधाम में रहऽ दा। एकर वंशज सबे पछियन में तेज, चतुर आउ सगुन उचरइ के आसिरवाद से पूर्ण है।’’
 कउवा के आतमा आसिरवाद सुनके हरखित हो देवलोक में शुभ, शुभ उचरऽ लगल। ऊ सोंचऽ लगल, ‘‘अब धरती प्रदूषण मुक्त हो जात। सब जीव के कल्याण होबत। धरती पर शुद्ध हवा, पानी आउ मट्टी मिलत। शांतिमय खुशहाली के साम्राज्य छा जात....आउ की  चाही?’’
 भगवान जमराज जी के हुकुम देलका, ‘‘आझ के बाद ऊहे जीवात्मा स्वर्ग में अइतन, जे पर्यावरण के स्वच्छ रखे ले प्रयत्न करतन, प्रदूषण के मेटाबइ ले सक्रिय रहतन। जे प्रदूषण बढ़ाबइ में योगदान करतन ऊ नरक के भागी बनतन।’’
 एगो कार कउवा मर के भी सभे जीव ले मोक्ष आउ मुक्ति के रस्ता निकाल के परमधाम चल गेल।
                                    
ग्रा.+पो. नीमी (शेखपुरा)
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कहानी                                
                
                                                चरगोड़वा
                       
                     मिथिलेश कुमार सिन्हा
           
                     पन तिनचकवा स्कूटर जब एगो नौजवान, हम्मर घर के सामने लगैलक तऽ हम थोड़े देर तक ओकरा निहारते रहली। पहचाने को कोरसिस करते रहली बकि पहचाने नञ् सकली। हलांकि छहंक से लग रहल हल कि ई नउजवान हम्मर चिन्हल हे। फेर जब ऊ अप्पन स्कूटर से उतर के दुनहूं हांथ में हवाई चप्पल घुसा के गोरिल्ला नियन चरगोड़वा जइसन चलते हमरा दने आवे लगल तऽ हमरा पहचानते देर नञ् लगल कि ई हम्मर विद्यालय के पूर्व छात्र मनोज हे, जेकरा पर आझ इलाका नाज करऽ हे। इनफोसिस जइसन नामचीन कंपनी के सफल आईटी प्रोफेसनल। आगे बढ़के मनोज के उठावे के कोरसिस करे लगली तऽ ऊ दहिना हाथ के चप्पल निकाल के हम्मर दुनहूं गोड़ छू के अप्पन निररा से लगावे लगल। ई देख के हम निहाल हो गेली। पत्नी के मुंह से बेर-बेर सुने ले मिलऽ हल – ‘‘गया मर्द जो करे पढ़ौनी, गयी औरत जो करे पिसौनी।’’
 काश इलाका के वजनगर बुद्धिजीवी के कभी ई पल देखे के मोका लगत हल, निहाल होवे के मोका लगत हल, तब मास्टर समाज के, दोयम दरजा के बुद्धिजीवी नञ् समझल जात हल।
 मनोज के बाबूजी फौज में हलन। दुर्भाग्यवश छुट्टी काटे लऽ घर अयलन, जहिया गांव जल रहल हल। शासन नाम के कोय चिड़ियां गांव में निवास नञ् करऽ हल। एक दिन छोट-मोट बात पर मनोज के घर से चौधरी टीकम सिंह के घर से भिड़ा-भिड़ी हो गेल। फौज के जोश, मोहन सिंह टिक्कर सिंह के भाय-गोतिया के भदार के रख देलन। आठ दिन तक शांति रहल। फेर एक दिन टिक्कर सिंह के गैंग, मोहन सिंह के धोखा से पकड़ के काट के कुट्टी-कुट्टी कर देलक।
 शुरू-शुरू में मनोज के चाचा हीरा सिंह और बल्ली सिंह के मनोज के माय ऊषा देवी के प्रति रूख-रवैया बड़ी अच्छा रहल बकि फेर बात गोतिया-गोतिया के हो गेल। मनोज के माय मरदाना के पेंसन आउ सरकार के थोड़े-थाक सहयोग के बल पर तीनों बेटी आउ फोहा बुतरू के पाले लगलन। भगवान तो परीच्छा ले हथ। एक दिन ओकर बेटा के हांथ-गोड़ घीचे लगल, डागडर हीं गेला पर मालूम होल कि ऊ फलिस्ता के पोलियो मार देलक हे। ऊषा अप्पन बेटा के ईलाज में पटना-दिल्ली एक कर देलन बकि मनोज चंगा नञ् हो सकल।
 समय बितते गेल। ऊषा जैसे-तैसे अप्पन पूंजी-पगहा आउ नाता-रिश्ता के सहजोग से तीनों बेटी के बिआहलन आउ बेटा मनोज के अच्छा से अच्छा पढ़ाय देवे ले मेहनत मजूरी तक करे लगलन। काहे कि पेंसन के पइसा से शहर के स्कूल के होस्टल में मनोज के रहे के खरचा पूरा नञ् हो पावऽ हल। ऊषा के केस कार से ऊजर होवे लगल आउ मनोज बुतरू से सयान। ऊषा के जे गोतनी-नैनी ताना देते नञ् थकऽ हलन कि गोयठा में घी सुखा रहल हे, अब अंदर-अंदर कुढ़ते रहऽ हलन के ऊषा के बेटा आइटीयन हे। हलांकि अधिकांश के ई मालूम नञ् हल कि आइटीयन कौन चिरैं के नाम हे। बकि बेटा-बेटी के इजहार कैला पर ओकरा पता चल जा हल कि मनोज इन्जीनियर में भी उपरका दरजा के इन्जीनियर बने के पढ़ाय कर रहल हे। कउची तो माउस की चूहा होवऽ हे, जेकर बटम दबैला से बड़का देस-दुनियां हिल जाहे। वाह रे बेटा। वाह रे पढ़ाय। बहुत औरत के मानना हलै कि ऊषा पर दुर्गा माय आवऽ हथिन आउ उहे ओकर बेटा के जसबली बना रहलथिन हे। काश, उनका मालूम होतै हल कि मेहनत सफलता के कुंजी है या – ‘‘मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।’’
 खैर, मनोज के कुरसी पर बैठावे लगलूं बकि दुनहूं हांथ जोड़ के ऊ कहे लगल कि ‘‘सर अपने के सामने कइसे बैठ सकलिए हे।’’ हमरा तो लगे कि आंख से लोर छलक जात। एतना बड़गो अदमी हीं एतना बड़का बात सोच सकल हे गुरू के बारे में। सर-समाचार पूछली, ओकर बाद बुलबुल से भइया ले चाय-नस्ता लावे ले कहली।
 मनोज अप्पन आवे के कारण बतैलक, सुनके बोली नञ् निकसे हम्मर, ओकर कहल शब्द याद आ रहल हे
 ‘‘ सर, बाबूजी के मरला के बाद हम तऽ अपनेहीं के बाप समझलियै आउ अपनेहीं बाप के प्यार देते ऐलथिन सबदिन। अब माय कहऽ है कि हमरा से अकसरूआ रहल नञ् जयतौ, जल्दी से कनियाय लाव, पोता-पोती देखूं आऽ गंगा नहाम। सर मम्मी के मंदिरवा पर बैठा के अयलिए हे, साथे चलथिन आउ अप्पन बहू के पसंद करथिन। शिवाला में देखावे आ रहलथिन हे सब। गुड्डी हमरे साथे इनफोसिस में काम करऽ हे। हमरा नियन विकलांग नञ् हे। पता नञ् हम्मर कौन गुन भा गेलै ओकरा, जे दू हांथ-गोड़वाला के छोड़के ई चरगोड़वा के पसंद कैलकै आईटीयन होके। जानऽ हखिन सर, गुड्डी टिक्कर सिंह के सगा साढ़ू के बेटी हे। आउ सर, अगुआ भी टिकरे सिंह हथिन। मम्मी के गोड़ धर लेलथिन तब मम्मी हमरा खातिर सब पुरनका दरद भुला के गुड्डी के बहू बनावे ले तैयार हे। ई सब अपने के कोरसिस आउ असिरवाद के फल हे।
                                              
                                                                                                           प्रभारी प्राचार्य
                                प्रोजेक्ट एम.पी.एस. कन्या
                                इंटर विद्यालय, हिसुआ.
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परियानी 
                
                                     पर कतरइ पर परवाज की
                                             
                                                                                                                                                                                                            परमेश्वरी
          
                कोय चीज के खामी उजागर करना आलोचना हे। गोस्सा में या घिरना में जे आलोचना हो हे, सेकरा परनिन्दा कहल जा हे। मगही में एकरा उतरा-चौली भी कहल जा हे।
 उतरा-चौली बेइमान आलोचना हे दुसमन के लिए। मित्र के लिये इमानदार आलोचना ओकरा खामी ओकरा सामने रख देना ताके ऊ सुधर जाय। ऐसन ईमानदार आलोचना के सोवागत होवै के चाही। सेहे सेती कबीर दास कहलखिन
   निन्दक नियरे राखिये, आंगन कुटी छबाय।
   बिन पानी साबुन, बिना निरमल करे सुभाय॥
 सचमुच ईमानदार आलोचना जीवन में चार चान लगा दे है। खास के साहित में तो बहुत जरूरी हे। आलोचना रचना के बनावे हे।
 उतरा चौली मनुस के सुभाव में बसल हे, मांस-मज्जा में समायल हे। एक मित्र जब दोसर मित्र से मिले हे, तो बात परनिन्दा से सुरूह होवऽ हे। अगर गलबात परनिन्दा से सुरूह नै भेल कोय कारन बस, तो अंत जरूर ओकरे से होत, या बीच में, जब आबे-आको रहत।
 मगही में एगो मोहवरा हे एहना-मेहना मारना। जेकर माने है, बिना नाम लेने कटु निंदा करना। इतना ज्यादातर दुसमन के साथ होवऽ हे। ऊहो मने-मने समझ के, ओइसने जवाब दे हे।
 सुन्नर के सुन्नर कहना, आर कुरूप के कुरूप एकर नाम समालोचना हे। साहित के रचना के समालोचना होय के चाही। नै कि निन्दा या खाली आलोचना।
 ईमानदार आलोचना के एक उदाहरन देखहो संसकिरीत के पंडित भगवान के आलोचना करऽ हथिन
गंधः सुवर्णे, फलु भिक्षु दंडे, नकारि पुष्पं खलु चन्दनेषु विद्वान धनाढ्यं नतुः दीर्घजीवी, धातुः पुरा कोपि ना बुद्धि दो भूत।
 माने भगवान जब संसार बनाबो लगला तब सायत कोय बढ़ियां सलाहकार नै रखलका। बढ़िया सलाहकार रहने तो सलाह देत हल सोना में सुगंध, केतारी में फल, चंदन में फूल, विद्वान के जादे दिन जीये के आउ धनगर होय के मुदा ई नै करि सकला। ऐसन होत हल तब कतना अच्छा....ई गलती भगवान से भेलन।
 जे चीज हमरा अच्छा लगे है, कोय जरूरी नै है कि ऊ चीज तोहरा भी अच्छा लगे। ऐसन खूब होवऽ हे। घी केकरे बहुत अच्छा लगे है, केकरे ओतने खराब। एक बेरी नामी-गिरामी चित्रकार पिकासो जानै ले एक लड़की के सुन्नर चित्र एक चौराहा पर लगा देलका। चित्र के नीचे लिखलका जिनका इ चित्र के जे अंग सुन्नर लगो सेकरा पर चिन्ह लगा दा। कुछ दिन बाद ऊ चित्र के देखलका। देखै हथ चित्र के कोय अंग बिना चिन्हा के नै हे।
 ऊहे चित्र के साफ करि के फेर दोसर चौराहा पर लगाके नीचे लिखलका ई चित्र के जे अंग कुरूप लगो सेकरा पर चिन्हा लगा दा। कुछ दिन मे उहे हाल।...चित्र के कोय अंग चिन्हा के बिना नै हल। ऊ असमंजस में पड़ गेला केकर बात मानी?
 से कलाकार के आतमालोचन भी करै के चाही। हम अप्पन बात कहऽ ही हम अपने रचना के जब दोबारा देखऽ ही तब ढेर मनी गलती लगे हे। कभी-कभी पूरा रचने बेकार लगो लगे हे। ई बात हमरे साथ खाली नै हे। हिन्दी के बढ़ियां कवि सुमित्रानंदन पंत पल्लवलिखला के बाद उनकरा लगो लगलन कि हाय रे। जनता ले हम कुछ नै लिखलोंतब लिखखिन – ‘‘ग्राम्या’’‘‘ग्राम्या’’ में अपसोच कैलखिन, कहलखिन
 भारत माता ग्रामवासिनी। मिट्टी की प्रतिमा उदासिनी।
 ओतने नै, कवि से कहलखिन
 ताक रहे हो गगन, शून्य नीलिमा गहन गगन।
 ताको भू को, स्वर्गिक भू को, मानव पुण्य प्रसू को।
 मगही आलोचना के सवाल पर हमरा कहना है कि मगही के लोग हिन्दी के आलोचक आयात करै ले चाहऽ हथि। ऊ तो बेचारा अन्हा भोट हे, छो-पांच कि जानेअंग्रेजी के लेखक छींकऽ हे तऽ इ छींको लगे हे। अप्पन रचना के समझे के तो एकरा लुरि नै हे। कोय बिदेस वाला जब कहऽ हे कि एकर रचना बेजोड़ हे, तब इ ओकरा फूलमाला चढ़ावो लगे हे। उदाहरन ले रवि बाबू के साथ इहे भेलै। जब उनका नोबेल पुरस्कार मिललन, तब सब गरियाबै वाला माला पिन्हाबै ले गेलन। ओकर हाथ से माला ले को ओकरे पिन्हाबैत कहलखिन इ माला तोरे लायक हे। हम्मर साहित आलोचना के ई मान दंड हे।
 वैसने अरूंधती राय के देखहो - जब तक ऊ भारत के लेखक के सुनाबैत रहल, तब तक कुछ नै। दि गॉट ऑफ स्मॉल थिंगके बुकर पुरस्कार मिलला के बाद कि कहना?...
 हिन्दी कविता में निराला रबर छन्द लिख के एक करान्ती कैलका। उनकर देखसी में, साठ के दसक में, एक आंदोलन सन चलल। लोग नया-नया कविता करो लगला जेकरा में चालीस तरह के कविता लिखल गेल। ओत्ते तो आद नै हो, कुछ देखहो जैसे नई कविता, सुकविता, कुकविता, गद्य कविता, अकविता, बीट कविता आदि।
 निराला तुक तोड़लका, मुदा प्रवाह जिन्दा रखलका। उदाहरन ले उनकर भिखारीआर रामके सक्ति पूजा, देखल जा सके हे।
 साठ के दसक वाला चालीस किसिम के कविता कहां गेल, पता नैई केवल कविते के बात नै हे। कहानी में भी इहे भेल। साहित में अब प्रतीक-बिम्ब में बात चल रहल हे। जनता समझि नै रहल हे। लेखक परेशान हथ। काहे तऽ हम्मर कोय नै पढ़ै हे। जनते के मूरख कह रहला हे। अपना के नै देख रहला हे। जो ऊ अपना के देकोथि।
 प्रतीक-बिम्ब में बात करना कुछ नया नै । पहिलौ प्रतीक-बिम्ब में बात भेल है। नया प्रतीक-बिम्ब भी गढ़ल गेल। देखहो जयशंकर प्रसाद के
 मुख कमल समीप सजे थे दो किसलय दल पुरइन के।
 कैसे उस पर अटकेंगे दुख के जल के ये किनके।
 ई सुन्दरी के कान के प्रतीक है लाल-कोमल पुरैन के पत्ता। मृगनैनी, पिकबैनी, खंजन नैनी, चान सन मुंह, घटासन केश आदि। नया प्रतीक-बिम्ब कुछ ऐसने दहो, चलतै। अब विग्यान से देभोकि देभोरोबोट बनैला हे। लोहा के अदमी। ओकर आंखि से मेल बैठतोबैठाभोदेखियो (तों प्रतीक-बिम्ब गढै हा, अपना मन के, जे दोसर नै जानै हे। आर समझैवो नै करे, इ हाल में तोहर कोय कइसे सुनतोतों अपने पढ़ो, अपनै अप्पन पीठ ठोको।) एकाध मित्र के समझा दहो, ऊ वाह वाह करतो। बाकी ले कुछ कहल्हो नहियें, तब कि होतोआय सहित में ईहे तो हो रहल हे।
 लगभग एक डेढ़ साल के बात हे। पटना में नरेन के डेरा पर बैठल हलों। हम, नरेन, पंकज, एक आर कोय पत्रकार हला। नरेन एक पत्रिका निकाललका सायद पहलया वसुन्धरानाम, आद नै हो। ओकरा में एक कविता खूब लम्मा-चौड़ा, चारि-पांच पन्ना में। पंकज जी नई कविता के कवि, अच्छा समझ वाला, राजकमल चौधरी के गुरू मानै वाला। हम्मर तो कोय कीमत वहां नै हल। मानो एक मूरख वहां टुकुर-टुकुर ताक रहल हल।
 नरेन ऊ पत्रिका से ऊ कविता पढ़लका, पूछलका पंकज से, ‘‘तों कुछ समझल्हो पंकज जी?’’
 पंकज बोलला, ‘‘नैं तों?...
नरेन बोलला – ‘‘हमहूं नै समझलियै। एकर बड़ी बड़ाय सुनि को पत्रिका खरीदली सेकर ई हाल।’’
 फेर हम हाथ में लेकी ऊ कविता पढ़लीं। कविता के शीर्षक आर कवि के नाम भी आद नै हो। एतना आद हो कि कोय मिसिर जी के कविता हल। कविता के एक टुकड़ा जिन्दगी उपन्यास होकर रह गेली। ई टुकड़ा के माने हम पूछलीं नै बता सकला। शायत हमरा मुरूख समझ के आन-कान कर देलका।
 ई हालत हे हिन्दी लेखक के। उनका से कि उमेद करै हऽउनका से कुछ के उमेद छोड़हो। जब हिन्दी के आधुनिक विधा के लेखक आज के रचना नै समझै?....आज के आलोचक अप्पन चसमा से रचना के देखै हथ। होय के चाही रचनाकार के चसमा से रचना के देखहो। मान ला हम प्रेम कविता लिखलों। ओकरा में कतना कोमल भाव अइले हे। परेमी के दिल में कतना परेम जगा सकऽ हे कि कुछ कमी हे। सेकरा सुधार दहो। उहे अंग पर चोट करहो। जे बदसूरत लगै। हम वीर रस के कविता लिखलों कतना हम जोश जगा सकली हैं, तौल एकर होय के चाही। सीरे खारिज करि देना, तो कोय आलोचना नै भेलै।
 हम्मर प्रिय मित्र मिथिलेश जी रात दिन फिकिर से दुब्बर हो रहला हे। काहेतऽ उनका मगही साहित के आलोचक नै मिल रहलन हे। ऊ हिन्दी साहित के आलोचक से बार-बार निहोरा करै हथ हम्मर मगही साहित के आलोचना करहो।
 हिन्दी के आलोचक कहऽ हथिन मगही में साहित कहां होआर साहित आबो दहो मगही आलोचना के अभी मोहवरा नै बनलो हे। मोहवरा बनो दहो।
 हम्मर कहना हे
 खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर के पहले
 खुदा बन्दे से खुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है?
 अपने आप में आलोचक पैदा करहो। सबसे बड़ा आलोचक जनता हे। जे तोरा सुनै हो, तोरा पढ़ै हो। ओकरा जिमा सबसे बड़ा नपना हे। ऊ जे नापि देतौ से परियानी पर सोमें सो उतरि जइतो।
 मगही साहित ले मगहिया मान दंड गढ़ो पड़तो। जैसे दलित साहित वाला कैलखिन। आय दलित साहित के मान्यता दोसरो के दियो पड़लन। ईहे ऊंचा मनोबल तोहरा बहुत ऊंचा तक ले जइतो।
 अंत में एक उदाहरन के साथ हम अप्पन बात खतम कर देही। उरदू के कवि तकी मीर साहब के पास एक नौतुन कवि एक शेर सुनैलक
 पर कतर के कहता है, मौसिमे गुल से निकल
 ऐसे परवाज उड़ाता नहीं शैय्याद कभी
 छूटते दम मीर साहब कहलखिन बेटा पर कतरने के बाद परवाज रह गया क्यापरवाज की जगह वेपर कर दो, शेर जिन्दा बोल उठेगा।
 आय मगही में ऐसन आलोचना के जरूरत हे। ऐसने आलोचक चाही मगही साहित के।
                            
 -- लोदिया, लखीसराय
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कविता-कियारी


                                                     , जे खाड़ हे
       
                                 पवन तनय


, जे खाड़ हे
पांति में सबसे पाछे
रह जा हे छूछे
अपन हक से।
कइसे ऊ लड़त
अपन हक के लड़ाई 
जब तुहीं हचुप
देखइत अपन भलाई।
कभी गरजतो
ओकर आवाज बनके
हजार कंठ साथ देत 
साज बनके।
मंथन के अमृत ला
छीना-झपटी
अनबेगल नियन पड़ल
बिख के कपटी।
महादे तोरे बने पड़त
पिछुअएलका के हक ला 
अड़े पड़त।
समरसता के भाषण नs
जीवन-शैली बनावs
महादे के कैलास से
नीचे उतारs
सच हे 
कि बिख अमृत न बनत
बाकि बिख के इलाज तो करत ।
अपन दृष्टि के हाथ दs
जे पिछुआएल हे 
ओकर साथ दs
तोर उठल डेग साथे
ऊ दउड़ जाएत
जहिना पिछुअएलका बढ़ जाएत
ई देश सब पर चढ़ जाएत।
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कविता-कियारी

                                                                  एगो पंचइती
                       
                                         अनिल कुमार सिंह

एगो पंचइती होलो हाले,
हम्मर गांव में।
बेटा सब हिस्सा लेलक,
माई बाप के कहलक,
भागना हो तो भाग जा,
नय रहो दबों गांव में।
एगो पंचइती....
                                                                     मुखिया जी अईला,
सरपंचो जी अईला,
भुनुर-भुनुर कर के सब,
मतिया मेरैलका,
आझे बुढ़वा अईलो
हमनी के दाव में।
एगो पंचइती....
न्यासन पर बैठे,
ई कईलका अन्याय।
जेकरे कमाय, देलका,
ओकर बिदाय।
ओकरे ऐता अरजी सुनके
उलटे अईला ताव में।
एगो पंचइती....
हिस्सा-हिस्सा रट रहला,
हिस्सा नय मिलतो।
बेटा सब जवान होलोऽ,
बोलबा तब पिटतो।
क्षण भर में भेज देतो,
भव सागर नाव में।
एगो पंचइती....
खबरदार चुप रह,
बदरंग होतो घरवा।
नय मिलतो जोत-जजात,
नय मिलतो हरवा।
झोपड़ी अपन छार ला,
तों पिपरा के छांव में।
एगो पंचइती.....
बाप खा के मार,
बेटा टुकुर-टुकुर ताके हे।
घर में बहु हंसैयत,
झरोखा से झांके हे।
कइसन बदलाव आल,
बेटा-पुतहु के भाव में।
एगो पंचइती....
ईहे दुःख देखै ले  बेटा,
तोरा हम पाललियो हल।
अपने निमक चाट-चाट,
घीये खिलौलियो हल।
आटा-दाल ढोते, ढोते,
फोड़ा पड़ल पांव में।
एगो पंचइती....
बेटा बनके दुःख देबा,
अगर हम जानतियो हल।
जनम घरी सौर में,
निमक चटैतियो हल।
विष के कीड़ा बनके पड़ला,
हम्मर दिल के छाव में।
एगो पंचइती....
अइसन पंचइती देख,
दिल हम्मर कहड़े हे।
कईसन युग-जवाना आल,
मन नय तनिको बहले हे।
लगहे कि विष भरल हे,
ई पंचनन के भाव में।
एगो पंचइती.....।
                                     -कोचगांव, वारिसलीगंज, नवादा
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कविता-कियारी

कइसे मिटतइ भ्रष्टाचार
               
                              परमानंद

कइसे मिटतइ भ्रष्टाचार,
जब समाज पइसे वला के पूजई ले तईयार।
कर चोरी, घूसखोरी जे कइले, पईसा के भरमार,
बन समाज के नायक उहे, रहलई सगर दहाड़,
कईसे मिटतइ भ्रष्टाचार।
सत-ईमान पर चले जे, ओकरा कोय नञ् पूछनहार,
घर-बाहर सगरे से, ओकरा मिल रहलई दूतकार,
कईसे मिटतइ भ्रष्टाचार।
राजनीति सेवा नञ् बनके, बन गेल जब रोजगार,
जनप्रतिनिधियन जन के हिस्सा रहलई सगर डकार,
कइसे मिटतइ भ्रष्टाचार।
रोज घोटाला करे, डरे नञ्, कहे ही हम सरकार,
जनता जपे जात के माला, करे नञ् ठोस विचार,
कइसे मिटतइ भ्रष्टाचार।
घर कइले जन-जन के मन में, लोभ-लोभ कुविचार,
परमानंद कहे सब मिल-जुल, सोंचो कुच्छ उपचार,
कइसे मिटतइ भ्रष्टाचार।
                      
ग्राम पारमी,
                      पता काशीचक,
                       जिला - नवादा
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कविता-कियारी

कुण्डलियां

योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेशकी कुंडलियां

जनमन्तर माथे मुकुट, पइलक धूर्त सियार
चिता सेर ओ, बाघ के भेलन बन्द ढकार
भेलन बन्द ढकार, हाथ में जेकर लाठी
पइलक बोगस वोट’, न तजलक अप्पन ढाठी
कह कविवर योगेश’, मूढ़ ऊपर सब तर में
जन के सोसन भेल, हमेसा जनतन्तर में॥१॥
जनमन्तर में घूस के, सगरो गरम बजार
अफसर मांगे एक तो, मंत्री मांग चार
मंत्री मांगे चार, बांह धइले चपरासी
आफिस के बाबू लटकावे लगलो फांसी
कह कविवर योगेश’, जरल सब घूस लहर में,
बिना रूपइया काम कहां ई जनतन्तर में॥२॥
जनतन्तर के अर्थ हे, बने जहां तक लूट
धड़ले अप्पन ऊंट सिर जहां ढेर हे बूट
जहां ढेर हे बूट, कउन हे रोके वला
कालाधन वला देलक सबके वरमाला,
कह कविवर योगेशपूछ सगरो धनगर के,
निम्नल के सोसन माने हे जनतन्तर के॥३॥
*********
               
डॉ. देवमुकुंद पाठक की कुण्डलियां

नेता वोही घाघ हे लूट सके जे बूथ।
पहिले माला जीत के केते गरदन गूंथ॥
केते गरदन गूंथ टैक्स गढ़े रंगदारी।
भय से कांपे लोग तंग होवे बेपारी॥
तंग होय बेपारी जनता इज्जत गंवावे।
एक माई के लाल डाल के फूट लड़ावे॥
कर जाए स्कीम चट योजना पड़े खटाई।
मुकुन्दबढ़े बेकारी बानर पोंछ महंगाई॥
**********

अवधेश कुमार सिन्हा की कुण्डलियां

सीना पर चढ़ डोल रहल, सब्जी के सरताज,
आसमान में भाव हे, अंतरिक्ष में प्याज।
अंतरिक्ष में प्याज, आज पहुंचसे बाहर,
का करतन सब बइठ के, धरती पर छीलताहर।
चरचा हे बस आज, स्वाद ला तरसे तीना,
बिना झांस के लोर चुए, सुन भाव पसीना।
*********

पं. महावीर प्रसाद दुबे की कुंडलियां

गोस्सा

गोस्सा चीज खराब हे, कर दे हे कमजोर,
पावे हे धोखा सदा, ऊ तो चारो ओर,
ऊ तो चारो ओर, घोर अनरथ कर दे हे,
पढ़लो-लिखलो में गोस्सा अपजस भर दे हे,
महावीर, कविराय, गोसब्बर के न भरोसा,
बनल काम दे हे बिगाड़ अदमी के भरोसा॥

आलसी किसान

टंगरी अगर पसार के, सावन सुते किसान,
कहल घाघ के बात हे, खेती बने मसान,
खेती बने मसान, धान के आस तेयागे,
बंटल सूत ओझराय, भाग कहियो नय जागे,
महावीर कविराय, चुये पानी जब अगरी,
सुत्ते नय कउनो किसान फइलाके टंगरी॥

माउग के दुलार

माउग दुलारे ओतने, हो जेतना से काम,
नइतो सहकल माउग से होवे नीन हराम,
होवे नीन हराम, चाम सूखे झगड़ा में,
रहे रोज मुंह फुललन, पड़े जिनगी रगड़ा में,
महावीर कविराय, सांप अइसन फुंफकारे,
बिख से मातल रहे, बहुत जे माउग दुलारे॥


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कविता-कियारी             
                                   मंदिर मस्जिद
                               
                                                                      प्रो. धीरेन्द्र कुमार धीरू

मंदिर मस्जिद के ई झगड़ा सुलझे के आसार नञ्,
डेग डेग भगवान खड़ा, कोय बुझे ले तैयार नञ् ।
निराकार सब जगह व्यापे, सभे शास्त्र बतलावे हे,
अदमी सबके एक बाप, सब धर्म ग्रन्थ समझावे हे।
सचे धरम के एक मरम, कोय समझे ले तैयार नञ् ।
डेग डेग....
कत्ते मंदिर सुन परल, कोय दिया जलावे वाला नञ्,
बिन अजान के कत्ते मस्जिद, जेकर कोय रखवाला नञ्।
एगो लागी एतना हल्ला बाकी से सरोकार नञ्
डेग डेग....
भूखा नंगा अदमी हइ, ओकरा खाना कपड़ा नञ्,
कत्ते छप्पर पर फुसो नञ् हे, कत्ते छप्पर पर खपड़ा नञ्।
दूधमुंहां के दूध नञ् जुटे, बड़कन के अहार नञ्,
डेग डेग....
माय बाप आउ बूढ़ पुरान, जे सच्चे के भगवान हे,
जेकर ऋण चढ़ल हमरा पर,
ओकरा पर कोय ध्यान नञ्।
बीबी बच्चा प्राण से प्यारा, बाकी से सरोकार नञ् ।
डेग डेग....
तप रहल मानवता सगरो, उसकाये शैतानी,
इंसानियत में आग लगल हे कोय नञ् डाले पानी।
मानवता के हर ले आंसू कोय पोछै ले तैयार नञ्
डेग डेग....
                                                
                                            जवाहर नगर
                                      वारिसलीगंज(नवादा).
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कविता-कियारी        
          
                          सरगो से सुंदर हमर गाम
                          
                                            डॉ. रामाश्रय झा

सरगो से सुंदर हमर गाम।
चौगिरदी सगरो सजल-धवल,
परकिरती के शोभा ललाम॥
हरियर-हरियर खेती-पथार,
बगिया में कोयल के पुकार।
सुख के सुरूज वाला बिहान,
सगरो भौरन के सरस गान।
ई माटी चंदन-सन पावन,
ई धरती के सौ-सौ प्रणाम॥
बर-पीपर महुआ आस-पास,
गुलमोहर चंपा अमलतास।
केतकी, मालती, हरसिंगार,
सगरो रे बासंती बहार।
मन मुग्ध छपित हे देख-देख,
मोहे सोनहुलिया सुबह-शाम॥
सरसो गोहुंम के सजल खेत,
झूमे फुलाल बाली समेत।
पुरवैया हावा लहर-लहर,
मन मोहे सबके आठ पहर।
अन-धन से पूर्ण सगर धरती,
सोना बिखरल हे ठाम-ठाम॥
घर-घर में देवतन के निवास,
तुलसीचौरा पावन प्रकाश।
मठ-मंदिर में पूजा अर्चन,
घर-घर रामायण औ किरतन।
हे दया-धरम औ दान बहुत,
जैसे बड़गो हे तीर्थ धाम॥
पोखर में सोभे कमल लाल,
किरछारे निहुछल कदम डाल।
निर्भय पशु-पक्षी करे वास,
सबके ही में अजबे हुलास।
निर्मल जलवायु बहे हरदम,
देखे मन बिसरे सभे काम॥
परसाल प्रिये हम तोर साथ,
हंथवा में लेके तोर हाथ।
चांदनी-रात में वन-विहार,
कैलूं हल तोरा बहुत प्यार।
जब याद पड़े हे मधुर मिलन,
मुंह पर आ जाहे तोर नाम॥
प्रियतम हाय पाके न पास,
हो जाहे मन बिलकुल उदास।
मंगिया में टिकुली औ सिंदुर,
करके हो गेली बहुत दूर।
तहिने से सबकुछ बदल गेल,
बिछुड़ल हम्मर तोहर मुकाम।
सगरो से सुंदर हमर गाम॥
                                     
                                                                                                    -सर्जना, बख्तियारपुर, पटना
   
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मगह के आयोजन

मगध विश्वविद्यालय के मगही विभाग के तेसर स्थापना दिवस
        
         10 सितंबर 2013, मंगलवार के दिन मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के स्नातकोत्तर मगही विभाग के तेसर स्थापना दिवस सह सम्मान समारोह विश्वविद्यालय के मन्नुलाल पुस्तकालय में धूमधाम से मनावल गेल। काजकरम के शुरूआत उद्घाटनकर्ता व मुख्य अतिथि कुलपति डॉ. नंदजी कुमार दीप जला के कैलका। ऊ अप्पन संबोधन में कहलका कि जनभाषा हइ मगही। ई मगह ही नञ् देश के विभिन्न कोना में रहेवला मगहियन के भासा हइ। हमरा से जे संभव होतइ ऊ हम मगही के विकास लेल करवइ।
 काजकरम में अतिथि मगही अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रामप्रसाद सिंह, वर्तमान अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा उर्फ कवि जी, मानस मर्मज्ञ डॉ. राजदेव शर्मा, साहितकार गोवर्द्धन प्रसाद सदय, मगध विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. वंशीधर लाल जी, वाणिज्य विभागाध्यक्ष डॉ.   सदन के संबोधित कैलका।
 डॉ. रामप्रसाद सिंह जी कहलका कि हम्मर जीवन में ईहे सपना हल कि हम्मर मातृभाषा के संवैधानिक दर्जा कहिया मिलत। आझ तलुक ई सपना सपने हे। ई भासा के उत्थान लेल मगह के नेता, मंत्री आउ के आगू आवे के चाही। ऊ कहलथिन कि जे मगही लेल आवाज उठावे वोट देवे के तैयारी करहो।  
 गोवर्द्धन प्रसाद सदय जी कहलथिन कि हमन्हीं सब्भे घर में मगही बोलऽ ही पर मगही लिखे आउ एकरा सहजोग से काम करे में कंजूसी करऽ हिअइ। हमन्हीं के कोय संकोच नञ् करके मगही के संवैधानिक दर्जा देलावे लेल अप्पन बात रखे के चाही। मांग उठावे के चाही। डॉ. राजदेव शर्मा गिरइत साहित आउ कविता के स्तर पर चिंता जतइलका। ऊ सब दिवंगत मगही साहित सेवी पर स्मृति ग्रंथ निकाले के उनखर स्मृति के निंदा रखे के जरूरत बतौलका।
  मगही विभागाध्यक्ष डॉ. भरत सिंह आगत अतिथि के पुष्पगुच्छ आउ माला पेन्हा के सोवागत कैलका हल। ओकर बाद अप्पन सोवागत भाषण में ऊ कहलका कि हम मगही के अंगना में पहुंचल सब्भे आगत अतिथि के गोड़ लगऽ ही, सोवागत करऽ ही। ऊ कहलका कि मगही के राजभासा होवे दर्जा सम्राट अशोक के काल से प्राप्त हइ, ई लेल हम मगही ले भीख नञ् मांगबै। सरकार के हर हाल में ई हम्मर बाप-दादा के भासा के संवैधानिक दर्जा देवे पड़तइ। जऊ मगही के बिंदी चमकतइ, तभीए हिन्दी के बिंदी भी चमकतइ।
  मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा उर्फ कवि जी अकादमी के सुस्त पड़ल गतिविधि पर अप्पन व्यथा सुनइलका। अकादमी के स्वतंत्र होके निर्णय लेबे आउ काज करे के विसंगति के रेखांकित करइत मजबूरी के रखलका। ओकर बाद ऊ अप्पन कविता ‘‘सुजनी बिहा दे सजनी तनी झार-झार के’’ सुनाके खूमे ताली बटोरलका।
 सारथी पत्रिका के संपादक आउ मगही के पुरोधा श्री मिथिलेश मगही लेल अप्पन लड़ाई जारी रखे लेल उपस्थित जन के ललकारलका। एकरा लेल करल जा रहल सब्भे के आन्दोलन आउ मगही लेल हो रहल काज से सबके रूबरू कराबइत वर्तमान में मगही के सबसे चरम काल करार देलका।
   काजकरम के मंच संचालन डॉ. के.के. नारायण जी कैलका। मगही विभाग के तरफ से उद्घाटनकर्ता आउ सम्मानित अतिथि के बुके आउ अंगवस्त्रम देके सम्मानित कैल गेल। काजकरम के आयोजन आउ सफल बनावे में डॉ. भरत सिंह महिनो से लगल हला, जेकर फलाफल काजकरम में झलक रहल हल। ई काजकरम मगही के साहित्यिक आयोजन के एगो मील के पत्थर से कम नञ् हल। सोवागत गान लोकगायक कौशल किशोर मंडल के स्वर से होल, जे कवि मधुसूदन दूबे प्यार के गीत सुनैलका। लोकगायन के मंडली मगही के कय विधा के प्रस्तुति करके सबके मन मोह लेलक।

मगही के उत्थान लेल 11 साहितकार के सम्मान
      
       मोका पर मगही क्षेत्र में उत्कृष्ठ योगदान आउ सृजन के काज करे लेल साहितकार के सम्मानित कैल गेल। डॉ. चतुरानंद मिश्र चतुरा’, घमंडी राम, हरीन्द्र विद्यार्थी, मधुसूदन पाठक प्यासा, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, सुमंत, डॉ. सीमा रानी, कमलेश शर्मा, परमेश्वरी, दीनबंधु आउ पवन तनय के सम्मानित कैल गेल। मगही लेल उत्कृष्ठ काज करे वला के सम्मान के काजकरम के सराहना भेल। ई सम्मान से मगही के जमीनी काज करे लेल जहां साहितकार के हौसला मिलल वहीं दोसर लेल प्रेरणा बनत। मगही के धार आउ तेज होत। मगह के लगभग चहुं क्षेत्र के साहितकार आउ भिन्न विधा पर काज करे वला के सम्मान मिलल। डॉ. भरत आउ चयन टीम बड़ी सूझबूझ आउ समुचित कसौटी के धेयान में रखके साहितकार के चयन कैलका हल।

कय दर्जन किताब के लोकार्पण
     
      काजकरम में दू दर्जन से जादे मगही पुस्तक के लोकार्पण आवल अतिथि के हाथ से कैल गेल। विभाग से प्रकाशित मगही सुजाताके तेसर अंक आउ सारथीपत्रिका के 19वां अंक के लोकार्पण भेल। चक्रधर प्रसाद मृदुल के दर्पणआउ मोतीयन के लाल’, रामदास विकास राम के स्वर्ग से बढ़ के बगीचा अप्पन’, बीबी शर्मा के बरोहर’, मनोज कुमार कमल के अमृत कलश’, डॉ. पूनम कुमारी के हिन्दी समीक्षा और समीक्षा’, डॉ. भरत संपादित मगही एकांकी सरिता’, डॉ. इंद्रदेव प्रसाद यादव के मगही में विरह दर्पण’, हरीन्द्र विद्यार्थी के सतरंग बयार’, परमेश्वरी के तिरपटसहित जयनाथ सिंह, बैजू सिंह, रामविलास सिंह के किताब के लोकार्पण भेल।
 ऐसन आयोजन आउ काजकरम से हम्मर जनप्रतिनिधि के आंख खुले के चाही। उनखर सब्भे के विधानसभा आउ लोकसभा में मगही के पक्ष में आवाज उठावे लेल आगू आवे के तत्परता दिखावे के जरूरत हइ। ऐसन-ऐसन काजकरम से भी जउ हम्मर जनप्रतिनिधि आउ सरकार के कान पर जूं नञ् रेंगतइ तऊ एकरा लोकभासा के उपेक्षा मानल जइतइ, जेकरा हम्मर नेता आउ सरकार लगातार कर रहलथिन हऽ।
प्रस्तुति - हर्ष भारती

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मगह के आयोजन
           
               महाकवि योगेश्वर जयंती समारोह 2013
             
         23 अक्टूबर 2013 दिन बुधवार के पटना बोरिंग रोड के अभियंता भवन के सभागार में महाकवि योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश के जयंती समारोह साथे मगही साहितकार सम्मान, सांस्कृतिक काजकरम आउ मगही कवि गोष्ठी के आयोजन कैल गेल। आयोजन में मगह के साहितकार आउ कलाकार के भारी संख्या में जुटान भेल। मगही लेल पटना में ऐसन काजकरम के आयोजन ऐतिहासिक आउ अभूतपूर्व हल जे लेल काजकरम के साहितकार बड़ी उत्साह आउ हर्ष से इहां उपस्थित होलथिन हल। काजकरम के उद्घाटन जदयू के वरिष्ठ नेता आउ सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह जी दीया नेस के कैलका। मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा उर्फ कवि जी के अध्यक्षता आउ मगध विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के.के. नारायण के मंच संचालन में दीनबंधु के मंगलाचरण से काजकरम के शुरूआत होल।
 महाकवि के तस्वीर पर पुष्पांजलि के बाद आगत अतिथि के सम्मानित कैल गेल। विशिष्ट अतिथि के रूप में ग्रामीण विकास मंत्री भीम सिंह, विधान पार्षद डॉ. उपेन्द्र प्रसाद, भोजपुरी अकादमी के अध्यक्ष चंद्रभूषण राय, पूर्व विधान पार्षद चर्चित मगही कवि बाबूलाल मधुकर, पिछड़ा आयोग के सदस्य डॉ. तेज नारायण यादव, किसान आयोग के सदस्य बागेश्वरी प्रसाद सिंह, मगही फिल्म निर्माता गणपति प्रोडक्शन के वेंकटेश जी, बुद्धा आईटीआई के अमित कुमार उपस्थित हला। सब्भे के अंगवस्त्र, डायरी-कलम दे के सम्मानित कैल गेल।
  अध्यक्षीय संबोधन में उदय शंकर शर्मा कहलका कि ई काजकरम नञ् हे, ई हम्मर अप्पन बाबूजी के श्राद्ध हे। हम अप्पन बाबूजी के श्राद्ध करऽ ही। अप्पन बाप के कर्जा उतारऽ ही। हमरा योगेश जी बल-बुद्धि देथिन कि हम मगही लेल कुछ कर सकिअइ। उदय जी बड़ी भाव-विभोर होके योगेश जी के श्रद्धासुमन अर्पित कैलथिन। ओकर बाद ऊ मगही के मांग के प्रस्ताव पढ़ के सुनैलथिन जेकर जरिये ऊ कई गो मांग रखलथिन।
 मुख्य अतिथि डॉ. वशिष्ठ नारायण अप्पन संबोधन में कहलका कि साहितकार समाज के आईना होवऽ हथिन। ऊ साहित से समाज के रूप दिखावऽ हथिन। समाज निर्माण में साहितकार के बड़गर भूमिका होवऽ हइ, खासकर के आंचलिक भासा के साहितकार के। आंचलिक भासा आउ ओकर साहितकार पूरे राष्ट्र के एक सूत्र में बांध के रखे के काज करऽ हइ। ऊ भासा के विकास लेल आंचलिक काज करे के जरूरत के रेखांकित कैलथिन। साहितकार के अलावे सरकार आउ जनप्रतिनिधि के दायित्व के चर्चा कैलथिन। काजकरम में रखल गेल मांग के परिपेक्ष में ऊ कहलका कि हमरा से जेतना बनतै हम मगही के विकास लेल सहयोग देवइ आउ मगही भासा के आठवीं अनुसूची में शामिल करे के मुद्दा संसद में उठैबै। महाकवि योगेश के साहित के प्रति समर्पण के नमन करैत ऊ मगही साहितकार के ऐसने समर्पण के साथ काम करे के संदेश देलका।
 इनखर संबोधन के बाद मगही साहितकार के सम्मान देवे के काज शुरू भेल। देश के लगभग 90 मगही साहितकार के महाकवि योगेश्वर मगही अकादमी शिखर सम्मान 2013देवे के तैयारी हल। मुख्य अतिथि के हाथ से श्री मिथिलेश, रामरतन सिंह रत्नाकर, नरेन, ओंकार निराला, डॉ. भरत सिंह, पारस कुमार सिंह के सम्मानित कैल गेल। सम्मान पत्र के अलावे अंगवस्त्रम, डायरी, कलम देल गेल। एकर बाद मगही अकादमी से प्रकाशित आम्रपाली, गद्य-पद्य संग्रह दू गो किताब आउ योगेश जी के जीवन-वृत्त के एगो पत्रक के लोकार्पण कैल गेल।
 काजकरम में पहुंचल सब्भे साहितकार आउ कलाकार के अंगवस्त्रम, कलम आउ डायरी बांटल गेल। ई वितरण से काजकरम में थोड़े कुव्यवस्था हो गेल। एक देन्ने वितरण आउ एक देन्ने संबोधन काजकरम के गरिमा पर प्रश्नचिन्ह लगइलक। आखिरी चरण तक काजकरम अप्पन मुख्य फोकस मे नञ् रहल। महाकवि योगेश के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा नञ् होल जेकर मलाल साहितकार के हृदय में थोड़े रह गेल। आखिर में हम (उदय भारती) माईक पकड़ लेलूं काहे कि हम्मर साहित्यिक हृदय हमरा झकझोर रहल हल। हम्मर आग्रह पर रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर, योगेश जी के व्यक्तित्व और मगही के देन पर चर्चा कैलका। ऊ योगेश जी से जुड़ल संस्मरण सुनैलका। योगेश जी बड़ी करीब रहेवला उनखर भक्त रामाश्रय झा भी भावनावश दू शब्द कहे से मना कर देलका काहे कि साहितकार के योगेश जी के व्यक्तित्व, कृतित्व आउ संस्मरण पर चरचा करे के हिंछा पहिलिए दौर में हल। चरचा के बाद जिलावार साहितकार के सम्मान पत्र देके सम्मानित कैल गेल। सम्मानित होवे वला में बिहार, झारखंड आउ पश्चिम बंगाल के 90 वरिष्ठ साहितकार शामिल हला।
 काजकरम में गया से आवल टीम सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कैलक। मगही गीत-गउनी काजकरम में चार चांद लगा देलक। कलाकार के दोसर टीम झूमर, नृत्य आउ लौंडा के नाच से लोक संस्कृति ऐसन जीवंत झांकी प्रस्तुत कैलक कि सब्भे उपस्थित जन के हिरदा जुड़ा गेल।
 चूंकि काजकरम के रूप-रेखा बड़ी जल्दी में बनावल गेल हल। ई लेल काजकरम के तैयारी में कय गो चूक रह गेल। अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा के अकेले पड़ जाए आउ सब्भे काम देखे के वजह से कय गो कमी खटकल। योगेश जी विशेषांक के पत्रिका नञ् निकस पइलइ। जल्दी-जल्दी में जे पत्रक छपलइ ओकरा में समुचित सामग्री नञ् जा पइलक। अकादमी द्वारा प्रकाशित आउ काजकरम में लोकार्पित किताब आम्रपालीआउ गद्य-पद्य संग्रहत्रुटिपूर्ण रह गेल। स्तरीय रचना के अभाव खटकलइ जउकि मगही में रचना आउ रचनाकार के कमी नञ् हे। शिखर सम्मान सीमित होवे के चाही। सम्मान सम्मान हे प्रसाद नञ् आउ शिखर सम्मान के महात्तम तो आउ भी ऊपर हे। हम सब्भे के ई कर्तव्य बनऽ हइ कि ऐसन काजकरम के आयोजन से पहिले मंथन आउ ओकरा से जुड़ल बात के सलाह-मशविरा कर लेल जाए ताकि ऐसन अक्षम्य गलती के पुनरावृत्ति दोसर काजकरम में नञ् होवइ।
 ई थोड़े कमी के बावजूद ई काजकरम ऐतिहासिक आउ बहुत व्यापक हल। पटना में मगही के ऐसन काजकरम आझ तलुक आयोजित नञ् भेल हल। उदय शंकर शर्मा ऐसन काजकरम आयोजित कर के मगही साहित जगत में जान फूंक देलका हल। काजकरम में पहुंचेवला सब्भे साहितकार आउ कलाकार आयोजन से गद्गद् हला। भव्य हॉल, मंच, साज-सज्जा, भोजन व्यवस्था, बुक स्टॉल सब्भे मगही आयोजन के इतिहास के अभूतपूर्व रंग से रंगल हल। बफे सिस्टम से खीर-पूरी-सब्जी खाय के खूमे बेस व्यवस्था हल। काजकरम में योगेश फाउंडेशनके सचिव आउ महाकवि योगेश के पुत्र अनिल कुमार, अरविंद कुमार के सहयोग सराहनीय रहल। बुद्धा आईटीआई, नवादा आउ बरबीघा के निदेशक अमित कुमार भी सहयोग में तत्परता देखैइलका।
 मगही अकादमी कला-संस्कृति एवं युवा कार्य विभाग, बिहार के संयुक्त तत्वावधान में काजकरम के आयोजन कैल गेल हल। काजकरम में सहजोगी के भूमिका योगेश फाउंडेशन नीरपुर, अथमलगोला हल।
 आखिर में उदय शंकर शर्मा सब्भे आयल लोगन से भूल-चूक लेल क्षमा याचना कैलथिन आउ कहलथिन कि ई हम्मर पहिल काजकरम हइ, कमी-बेसी तऽ रहिये जइतइ, लेकिन ई काजकरम से हमरा से जे सीख मिललइ ओकरे से हम्मर दोसर काजकरम बेहतर बनतइ। दोसर काजकरम लेल ई सीख आउ तोहर सुझाव हमरा बल प्रदान करतै।
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मगह के आयोजन
        
              हिसुआ के हस्तलिखित पत्रकारिता के अंत

पांच दशक से हस्तलिखित पत्रक हिमालय वाणी के लिखे आउ संपादित करे वला आर्य समाजी बलदेव सिंह हिमालय के निधन से पत्रकारिता के एगो युग के अंत भे गेल।
  
ऊ देश समाज से जुड़ल ज्वलंत मुद्दा के उठावे के काम जीवन के आखिरी  दिन तक कैलका।       

     हिसुआ के जानल-मानल हस्तलिखित अखबार के पत्रकार आउ संपादक बलदेव सिंह हिमालय के निधन 11 दिसंबर 2013 के कोलकाता में हो गेल। ऊ ईहे सप्ताह अप्पन पोता के शादी में हिसुआ से कोलकाता गेला हल। उनखर निधन से हिसुआ के हस्तलिखित पत्रकारिता के अंत हो गेल। पांच दशक से चल रहल उनखर हिमालय वाणी के अउ लोग नञ् पढ़ पइतन। बलदेव सिंह हिमालय ऊ पत्रक के एकमात्र पत्रकार आउ संपादक हला। प्रिंट आउ इलेक्ट्रोनिक मीडिया के ई ऊंचाई के मकाम के दौर में भी ऊ अप्पन हाथ से लिख के अखबार बांटा हला। एगो इया दूगो पन्ना पर लिखके ऊ देश आउ समाज के ज्वलंत मुद्दा के उठावऽ हला। फोटोकॉपी करा-करा के ओकरा अपने बांटा हला। क्षेत्रीय समाज, पार्टी आउ मुद्दा के अलावे ऊ देश-दुनिया के ज्वलंत मुद्दा के उठावऽ हला। सोनिया, मनमोहन, आडवाणी, नीतीश, लालू जैसन बड़कन नामवर नेता आउ उनखर पार्टी के जुड़ल बात आउ मामला के बड़ी रोचक तरीका से रखे में उनखा महारथ हासिल हल।


प्रभात खबर में छप्पल खबर
  
       सकल समाज के शुभचिंतक थे बलदेव सिंह हिमालय

आर्य समाज में आर्य समाजियों ने शोकसभा कर बलदेव सिंह को श्रद्धा के फूल चढ़ाये.

50 वर्षों से हस्तलिखित पत्रिका के द्वारा समाज को दी दशा-दिशा, लोगों ने उनसे जुड़े संस्मरणों की की चर्चा.

प्रतिनिधि, हिसुआ

         बलदेव सिंह हिमालय समाज के शुभचिंतक थे, उनको हर वर्ग, धर्म, संस्था और समाज की कुरीतियों की चिंता थी. 91 वर्ष की उम्र में भी ऊर्जावान रहकर उन्होंने समाज को दशा-दिशा देने का काम किया. ये बातें मंगलवार की शाम आर्य समाजियों ने बलदेव सिंह हिमालय की शोकसभा के मौके पर कही. उपस्थित जनों ने बलदेव सिंह हिमालय को सशक्त, निर्भीक और बहुआयामी वैदिक पत्रकार बताते हुए उनसे जुड़ी स्मृतियों की चर्चा की. 50 साल से उन्होंने हस्तलिखित अखबार के द्वारा जन-जन को दशा-दिशा दी. समाज को धर्म का संदेश ही नहीं दिया बल्कि कुरीतियों पर प्रहार भी किया. वक्ताओं ने उन्हें ताउम्र युवा रहने की बात कही. वक्ताओं ने उन्हें सरल, विनीत और अपनी सीमा को पहचानने वाला सच्चा इंसान बताया. आर्य समाज मंदिर के मंत्री यदुलाल आर्य की अध्यक्षता और मिथिलेश कुमार सिन्हा के मंच संचालन में उनकी तस्वीर पर फूलमाला अर्पित कर दो मिनट का मौन रखा गया. हिसुआ से कोलकाता जाने के एक सप्ताह बाद ही निधन हो जाने पर यहां के लोगों में काफी शोक था. उपस्थित जनों ने उनका पत्रक हिमालय वाणी को स्मृति के रूप में निकालने का प्रस्ताव लिया. मिथिलेश सिन्हा और अरूण देवरसी ने उनका स्मृति अंक शीघ्र निकालने की बात कही. मौके पर वरिष्ठ साहित्यकार दीनबंधु, आर्य समाजी युगल किशोर प्रसाद, जयनारायण प्रसाद, अरूण देवरसी, सुरेश प्रसाद आदि उपस्थित थे.
                                                 
प्रस्तुति हर्ष भारती

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रचना साभार लेल गेल

मगही पत्रिका, सारथी(मगही पत्रिका), मगही संवाद, पाटलि।

पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात

रचना मगही साहित के प्रचार-प्रसार के लेल ईहाँ रखल गेल हऽ. कौनो आपत्ति होवे पर हटा देल जात. मगही देश-विदेश जन-जन तलुक पहुंचेई प्रयास में सब्भे के सहजोग के जरूरत हइ.

निहोरा

* रचना भेजे में संकोच नञ् करथिनरचना सहर्ष स्वीकार करल जितै.

मगहिया भाय-बहिन से निहोरा हइ कि मगही साहित के समृद्ध करे ले कलम उठाथिन आऊ मगही के अप्पन मुकाम हासिल करे में जी-जान से सहजोग करथिन.

मगही मनभावन पर सनेस आऊ प्रतिक्रिया भेजे घड़ी अप्पन ई-मेल पता जरूर लिखल जायताकि ओकर जबाब भेजे में कोय असुविधा नञ् होवै.

मगही मनभावन ले रचना ई-मेल से इया फैक्स से हिन्दी मगही साहित्यिक मंच ‘शब्द साधक’ के कारजालयहिसुआ पहुँचावल जा सकऽ हे.

शब्द साधक
हिन्दी मगही साहित्यिक मंच
हिसुआनवादा (बिहार)

shabdsadhak@gmail.com    फैक्स के न.- 06324-263517

http//:magahimanbhavan.blogspot.com