मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-८
मगही मनभावन
मगही साहित्य ई-पत्रिेका
वर्ष - २ अंक - ८ माह –अप्रैल, मई २०१२
वर्ष - २ अंक - ८ माह –अप्रैल, मई २०१२
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ई अंक में
दू गो बात.......
सारथी फेनु अप्पन जतरा पर
कहानी
हिंछा - जयनन्दन
पवन तनय के तीन गो लघु कथा
कविता-कियारी
जिनगी के अरमान बहुत हल – डॉ. हरिशचन्द्र प्रियदर्शी
की नेताजी अइसीं होतय – दीनबन्धु
ठेंस – राजकुमार प्रसाद
चान हँसे – अरूण हरलीवाल
जुआनी दान – जयराम देवसपुरी
अब केकरा जोरे लड़बै – हरेन्द्र गिरि शाद
माय – उदय कुमार भारती
दोहा आउ कुण्डलियाँ
रामपुकार सिंह राठौर
लालमणि विक्रांत
मगह के आयोजन
जागरण ज्योति महोत्सव के मगही कवि सम्मेलन
एसएन सिन्हा कॉलेज वारिसलीगंज के कवि सम्मेलन
भदसेनी ग्राम के चैता आउ मगही कवि सम्मेलन
हिसुआ के शताब्दी समारोह आउ मगही कवि सम्मेलन
विविध
पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
निहोरा
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दू गो बात.......
मगही भासा साहित के छोटगर ई पत्रिका मगही मनभावन के अठमाँ अंक इन्टरनेट पर जारी करैत बड़ खोसी हो रहल हे। जिनगी के काज आउ पेशा में ओझराइल अदमी साहित के काम समय पर पूरा न कर सकऽ हे। पत्रिका पढ़ेवला आस लगैले बैठल हथिन आउ ईहाँ हम दोसर काज में ओझराइल ही। खैर अपने सभे के आशीर्वाद से आझ अंक जारी हो रहले हे। आउ सामग्री ईमे जैते हल बकि नञ् हो पैले। जे जा रहले हऽ ओकरा अप्पन मनभावन बनाथिन, अगलका अंक में कुच्छो नया देवे के प्रयास करबै।
ई अंक में जयनन्दन के कहानी हिंछा, पवन तनय के तीन गो लघुकथा, अपने सभे के पसंद अइतै। कहानी विधा के सभे तत्व ई कहानी में मौजूद हइ कि नञ्, एकरा अप्पन कसौटी पर रख के कुछ सुझाव देथिन। अरुण हरलीवाल के ‘चान हँसे’..... लोक संस्कृति के अनुपम रचना हइ। गया के आजाद पार्क में हर साल शरद पुनियाँ के दिन शरद महोत्सव के शुरुआत ईहे कविता के सहगान से होवऽ हइ। मगही लोक वेश-भूषा में सजल किशोरी कन्या आउ युवती जब चान हँसे रे, चान हँसे.... के पुनियाँ के चान हँसे रे गावऽ हथिन तऽ लगऽ हे सच्चे शरद रात ने चाँदनी धरती पर उतर आल हे। दीनबन्धु के ‘की नेताजी अइसीं होतै’, नेता के काज कलाप आउ चरित्र पर करारा प्रहार हे। प्रो. डॉ. हरिशचन्द्र प्रियदर्शी मगही हिन्दी के सघन साहितकार हला उनखर रचना बानगी लेल ईहाँ रखल गेल हऽ। ‘जुआनी दान’ जयराम देवसपुरी के कालजयी रचना हे, जेकरा में एगो नया-नोहर बिआहता के सैनिक मरद के शहीद होवे के दरद हे। गौना के बाद ससुराल पहुँला पर ओकर मरद एक्के रोज के छुटी लेके बिआहता से मिले लेल आवऽ हे। राते के सीमा पर हमला हो जाहे। रचना में सैनिक के घर से सीना तक तलुक जाय आउ दुश्मन से लोहा लेते शहीद होवे के बड़ मार्मिक चित्रण हे। सुहाग के कुरबानी करि के एगो सुहागिन भारत मइया के अप्पन जुआनी कैसे दान दे हे, एकर वर्णन हे। मगही वीर रस के ई रचना अनुपम कृति हे। दोहा आउ कुंडलियाँ पर भी मगही में बेस काम होल हे। ईहाँ वानगी लेल लालमणि विक्रांत आउ राम पुकार सिंह राठौर के रचना रखल गेल हऽ।
मगह के आयोजन में नवादा जिला के आयोजन के झलक हइ। दोसर जिला के काजकरम के जानकारी आउ सनेस नञ् मिले के कारण, कुछ आयोजन छूट जा हइ। काजकरम के विज्ञप्ति विस्तार से लिखके हमरा तक भेजै के किरपा करथिन, हमरा तक पहुँचतै तउ हम एकरा जरूर देवै।
मगही के समकालीन रचना भेज के मगही के ई यज्ञ में अपने भी आहुति देथिन।
उदय कुमार भारती
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सम्पादकीय.....
नया कलेवर आउ तेवर लेले सारथी फेनु अप्पन जतरा पर
मगही भासा में प्राण फूँकेवला दमदार आउ स्तरीय भासा, साहित-संस्कृति के पत्रिका ‘सारथी’ नया कलेवर आउ तेवर के साथ हमन्हीं के हाथ में हइ। पत्रिका हाथ में लेले लगऽ हइ कि हम आदरजोग मिथिलेश आउ नरेन जी के कउन शब्द से साधुवाद दियै। कोय हम्मर हिरदा के फाड़ के देखता हल तउ उनखा पता चल जात हल कि हिरदा में कैसन ज्वार उठ रहल हल। धन्य हथिन एकर निकसवैया जे अप्पन जुगत से सारथी के साथ मगही के मंजिल के महायात्रा पर निकस पड़लन हऽ। अखिल भारतीय मगही मंडप, बंधु बसेरा, वारिसलीगंज, नवादा से निकसेवला सारथी पत्रिका के ई जतरा अब नञ् रुकै, आवऽ हमन्हीं सभे मिल के एकरा दौड़े में जोर लगइयै।
हम बात शुरु करऽ हियै प्रधान संपादक मिथिलेश के लिखल दूगो बात ‘दिशा बदलइत सारथी’ से जेकरा में श्री मिथिलेश सारथी के ई अंक के शुरु होवे के भीतर के बात - नरेन जी के वारिसलीगंज अखिल भारतीय मगही मंडप के कारजालय पहुँचे से सारथी के ई अंक छपे तक के कथा-व्यथा लिखलका हऽ। कैसे नरेन जी के बात कि – ‘मगही के एगो पत्रिका स्तंभ निकलते न रहे तऽ एते सुन्नर ऑफिस भला कौन काम के’ उनखर नीन हरि ले हे आउ फिर पत्रिका पर काम शुरु हो जा हे। पत्रिका चलवे ले जे हिम्मत आउ आर्थिक जुगाड़ जुटावे के जरुरत हे, उनखर व्यथा ईहाँ पर उजागर होवऽ हइ। ओकरा में हमन्हीं के सहयोग करे लेल आगू आवे के चाही। ई उमर में भी साहित ले जे ऊर्जा इनखा में हइ ओकरा से हमन्हीं के प्रेरणा लेके इनखर पीठ पुरावे के चाही।
‘हमरा कहे दऽ’ में काजकारी संपादक नरेन जी आंचलिक भाषा के पत्रिका के नियति आउ बाधा के रेखांकित करैत मगही भासा के ओकर आलस्यता आउ काजशैली लेल धिक्कारलका हऽ। भासा के विकास ले सरकारी प्रयास आउ अकादमी के कारज पर प्रश्न चिह्न छौड़ैत ओकरा आइना देखावे के काम कैलका हऽ। ओकर साथ-साथ मगही भासा लेल बड़वोलापन करे वला के खूबे बेस तरह से आउ साहितिक अंदाज में लथाड़लका हऽ। ‘हइ अंधा आउ नाम नयन सुख’ के उदाहरण देके मुँह तोड़ जवाब देलका हऽ।
आगू नरेन जी सारथी के ई अंक में लेल गेल विधा के आलोचन आउ विवेचना विधा के कसौटी पर रख के कैलका हऽ। नरेन जी के शुरु से ई खासियत रहलऽ हऽ कि ई लिखताहर के रचना के सही बटखरा से तौलऽ हका। रचना में झोल-झाल रहे पर साफे शब्द में आलोचना कर दे हका। ईहाँ ऊ सभे के रचना पर खट्टा-मीठा टिप्पणी कर के रचनाकार के आँख खोले के काम कैलका हऽ।
प्रधान संपादक आउ काजकारी संपादक के ई ध्येय हे कि ई पत्रिका गद्य पत्रिका बने। गद्य विधा सेही मगही समृद्ध होत। मगही में गद्य में बहुत काम करे के जरुरत हे।
सारथी 1967 से मगही भासा में जान फूँके के काम कर रहल हऽ। सामाजिक समरसता से जुड़ल आधुनिक, समकालीन, प्रगतिशील, भासा संस्कृति के ई पत्रिका साहित के स्तर से कहियो समझौता नञ् कैलक हऽ। ई 17वाँ अंक में भी ईहे झलके हे। स्तरीय रचना छाप के संपादक मंडल साहित के ऊँचाई के गरिमा बचैले रखलका हऽ।
ई अंक में 8 कहानी, 3 यात्रा वृत्तांत, एक संस्मरण, 5 कविता, एक व्यंग्य, 2 परख के कॉलम में गागर में सागर भर के प्रस्तुत करल गेल हे। कहानी अप्पन तत्व के साथे कहानी के कसौटी पर संभवत: खरा उतरल हे। जे कहानी में झोल-झाल हे, ओकरा पर काम करे लेल नरेन जी सुझाव पहिलिये दे देलथिन हे।
सारथी निरंतर अप्पन यात्रा पर रहे, एकरा लेल मगही के लिखताहर-पढ़ताहर, मगही सेवी आउ मगही आन्दोलन में शरीक सभे भाय-बहिन के आगू आवे के आह्वान हइ। मगही के विशाल क्षेत्र हइ, करोड़ों लोगन के ई बोली हइ, सारथी से प्रेरणा लेके ऐसन दोसर पत्रिका निकाले के सार्थक प्रयास होवे के जरूरत हइ।
उदय कुमार भारती
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कहानी
हिंछा
जयनन्दन
‘अगे मायमाय गे।’ अधछोछर नीन में अलसाल, अंचरा से झंपाल करखू रह-रह के अपन माय के डोढ़ी हियावऽ लगल। सगर दिन के खेत-पथार के काम–काज से थक्कल-मांदल फुलेसरी के पिपनी पर लगऽ हे कि केतना भारी बोझा रखल हे। कउआ डके से पहिलइं फुलेसरी रोजे उठ जाहे, हाथ बढ़नी आउ चउका बासन करि के सुरजू के खिला-पिला के चलि देहे खेत-खंधा। दिन भर के थकान। एक माने में सुरजा हे बड़भागी। जखने-जखने देह थकान से अलसा लगऽ हे, फुलेसरी के पसेना से भींजल देह के महक से सुरजू के मन हरिया मुसकी देके ताकि ले हे, फेन की कहना, अजबे फुरती आजा हल आउ ऊ तरोताजा होके चेपाड़ा भांजऽ लगऽ हल।
सुरजा आउ करखू के बीच करखुआ के माय फुलेसरी माने लछमिनियाँ, भावना आउ करतव के बीच एगो बेजोड़ तारतम बइठइते-बइठइते कहिया कनियाय से माय हो गेल, ओकरा पता नञ् चलल। छोटगर गो झोपड़ी, जेकर एक कोन में मट्टी के चुल्हा, एक कोन में अलमुनियाँ के थारी, लोटा, लटखुट बरतन। आधा भितर घेरि के पोआर बिछल हे। तनिक्के गो दुआरी। दुआरी में बोरा के चट वाला परदा। दुआरी एत्तक छोट कि अदमी भले ओकरा में मोसकिल से घुस पावे, मुदा ई पुस के कनकनाल सोरा में घोराल बेयार? एकरा के रोके। घुस जइतो दिनियाल खड़े-खड़े आउ लगतो जाके हाड़े में। जाड़ा में रूइये ऩञ् तऽ दुइये। दुन्नु के बीच में करखू जइसे हर में पच्ची ठोकल जाहे...कुदार के बेंट कारू मिसतिरी ठोकि देहे।
ईहे झोपड़ी के दुआरी पर फुलेसरी सबारी से उतरल हल... गोड़ में टुहटुह आलता क रंग के टेढ़-मेढ़ रेखागनित... चानी के झुनकी लगल झांझर चमाचम, जे डेग बढ़ावऽ हल तऽ छमाछम। रंग-बिरंग के चूड़ी, बड़-बड़ फुल वला छिटही साड़ी.... लाल, पीयर... डांड़ा में एकदने रूमाल खोंसले आ दोसर दने रूनझुन-रूनझून कुंजी के गुच्छा हाथ में घोघा...घोघा में फुलेसरी के बिहउती मुँह... आगु-आगु सुरजा, जेकर गमछा के छोर से बन्हल फुलेसरी के आंचर। सब कहऽ हलन – फुलेसरी के लगन लग गेलइ हें। जुआनी में तऽ गदहियो गदरा जाहे फुलेसरी तऽ फुलेसरीये हे!
से, टोला-टाटी में खूब बड़ाय भेल हल लछमीपुर बलीके... लछमिनियाँ के...लाछो के। सुरजा के तऽ जइसे लउटरी इकस गेल हल। जखने सुरजा फुलेसरी के पियार से लाछो कहि के बोलावऽ हल, फुलेसरी लाज से दोहरी हो जा हल। ओकर सामर मुँह पर ललका रंग चढ़ जा हल अनु धत् कहि के एगो कोना में घुकुर जा हल। सुरजा के तऽ हालते खराब तखने।
सभे जोड़ियामा सुरजा से खूब रस ले हलन। सुरजा हल भीतर से सोझ। जखने कोय ओकर माउग लगा के मजाक करे, सुरजा के मुंह से कोय बकार नञ् निकले, मुदा आँखि सब कुछ बता दे। जिनगी के केतना उतार-चढ़ाव सुरजा बरदास कर लेलक फुलेसरी के दम पर, अपन लाछो के अंचरा पकड़िके। फुलेसरिये हल खाँटी....कठगाड़ी के दुइयो पहिया नियन...सुरजा आउ ओकर लाछो।
जहिया से करखुआ जनमल हे, दुन्हूँ के पियार आउ बढ़ि गेल हें... दूध-भात में चिन्नी नियन।
अभाव के परभाव, सुभाव से कइसे नकारल जा सकऽ हे, पूछ ला सुरजा- फुलेसरी से।
“की भेलउ बउआ के पलक मुनाले रहल”? मुदा ठोर थरथराल।
“ए माय, सुनहीं ने।” करखुआ फेन टुभकल।
“बोल ने बेटा” माय पीठ हंसोतइत पूछलक।
“बिहरिया के पक्का घर बनइत।” करखुआ बोलल।
“तऽ हम की करिअइ?”
“अप्पन नञ् बनतइ?”
“अप्पन कने से बनतइ सवाल के जबाब सबाले सुनके करखुआ के मुंह बिचक गेल। सवाल तऽ टेढ़ हल, मुदा जे चित्त हो जाय, ऊ पहलमान कइसन आउ जे हार मान ले, ऊ बुतरु कइसन जब हारे लगतो, काने लगतो। करखुआ काने वला बुतरु न हल। काने के आवाज जादेतर ऊँचगर-ऊँचगर घर से निकलऽ हे, झोपड़ी के बुतरू तो भरल भादो सुक्खल जेठ लड़तइ रहऽ हे, कखनउ परकिरती से। बरदास करे के गजीब छमता फलऽ–फुला हे झोपड़ी के छप्पर पर। जब से समाज गरीब-अमीर में बँटल हे, जइसे बुढ़िया कबड्डी में कउआ रहऽ हे। बड़कन राज करऽ हें, छोटकन बरदास करऽ हे आउ बिचबिचवा टाप हनऽ हे। सब मार बीचे बला पर। से करखुआ बड़गर फिलोसफर नियन कहलक- “जन्ने से बिहरिया के बनऽ हइ।”
“..................।” फुलेसरी चुप। कुछ हके-बके नञ्।
“ऊ तुरंते राजा कइसे भे गेलइ माय?”
“हमरो मिलतइ की?”
“ऊँ हूँ....।”
“काहे”
“ओकर बाऊ के तहिया गोलिया लगलइ हल ने?”
“जे होबइ माय, अब बिहरिया के तऽ कोठा बनिये जइतइ। करखुआ के आँखि में ऊँचा होवे लगल बिहारिया के घर। जेकरा घर नञ्, ओकरा ठउर कहाँ? जिनगी के तीन जरूरत- खाना, कपड़ा, आउ मकान। करुआ के आँख में बिहरिया के उठइत घर... कोठा पर बइठल बिहरिया... बिहारिया के हाथ में ढेला- एने अइमें तऽ मारवऽ ढेला कि...’ बोलइ बिहरिया के ठठाल हंसी गूँज गेल करखुआ के कान में। जरके लहकि गेल करखुआ, “देखहीं मइया, बिहरिया ढेला मारऽ हइ।”
माय तऽ कनखइं ने नीन के गोदी में चलि गेल हल। करखुआ के नीन कहाँ।
बिहरिया के बाप गोबिन आउ माय सुलोचनी। बेचारी सुलोचनी। ने कहियो भर पेट खाना, ने देह में बसतर। बियाह के पहिलइं गोबिन के आदत बिगड़ी गेल हल- ताड़ी, दारू आउ जुआ। करमी पासिन के घर में अड्डा बनल हल। करमी के चाल चलन से गाम के सब मेहरारू के तरवा के धूर कपार पर चढ़ जा हल, “ई सोगाही, सतभतरी, नञ् जानूं कयगो के घर उजाड़तइ।” चोर सुने सतनारायन कथा। कहावत हे- बनियाँ, कलाल, बेसवा, ई तीनो खोजे पइसवा। से रस-रस गोबिन के घर के सब बरतन-बासन करमी के घर चलि गेल। सुरू में तऽ सुलोचनी बड्ड बिरोध करलक, मुदा औकाते भर ने। दिन भर खेत-खंधा में बेचारी हाड़ तोड़ के कमाय, सांझ के डेढ़ सेर मजुरी। बहुते कोरसिस कइलक सुलोचनी कि गोबिन सुघर जाय। कत्तेक बार तऽ डाक बाबा पर परसाद चढ़इलक, देवीथान में चउका देलका, गोरइया थान में बतासा गछलक, मुदा गोबिन के डगमगाल गोड़ थिर नञ् भेला। करमी के केबाड़ी गोबिन लेल खुलल के खुलले रहल। दारू के पइसा कने से आवत, ई सुलोचनी जाने। उधार-पइंचा जोहते-जोहते भरल देह जुआनी में निचुड़ा गेल। मार खा-खा के जब ओकर देह बेसुध हो जा हल, तऽ अचानके ओकर मुंह से निकल जा हल- “हे गोरइया, एकरा से भल हम रांड़े रहतूं हल। अब तऽ रस-रस ओकरा हिसका पड़ि गेल हल। अपन देह के गंजन करावे से बढ़ियाँ हे एगो दस टकिया कइसूं गोबिन के थमा देवे के।
गोबिन के सम्हारते-सम्हारते बिहरिया जनम गेल हल। सुलोचनी के सुखल छाती में दूध कहाँ। भुक्खल चिलका खाली हलरइला से मानलक हें कहइं! अप्पन लचारी पर सुलोचनी के आँख से नोनगर पानी टपकि जा हल, जेकरा चाट-चाट के बिहरिया भी चुप भे जा हल। ढहइत हालत नासमझ अबोध के भी जल्दी लुरगर बना दे हे।
गाँव लेल एगो भेयानक करिया रात आल हल.. प्रतिबंधित सेना के बेगुनाह हमला। रात भर मार-काट चलल। काहे ले, कोय नञ् जाने। भोर में के केक्कर लोर पोछे, के केकरा चुप करावे। केकरो चूड़ी फूट रहल हे, तऽ केकरो मांग धोवा रहल हे। केकरो बेटा, केकरो माय। हे महारानी, ई की हो होलइ हें आदमी के जंगल में हिंसका जीव सिकार करऽ हे अपन पेट भरइ हे, मुदा अदमी? ई मारऽ मरऽ हे पेट फरइ ले नञ्, आतंक पइदा करइ हे, मन में बइठल जिनावर के तिरपित करइ ले। ईहे पसुता के चपेट में आ गेल गोबिन। सुलोचनी के भोर में पता चलल, काहे कि गोबिन तहिया जग्गह के अभाव में आन जग्गह सुते चलि गेल हल सुते। सुन के सुलोचनी काठ भे गेल, पत्थर के मुरुत नियन। जब ढेर अउरत के साथ ओकरो चूड़ी फोड़ल गेल आउ माँग धोवल गेल, तउ बेचारी बुक्का फार के कानलक हल। कानइ के तऽ ओकर भागे में लिखल हल। पहिले भी सुलोचनी कानऽ हल, मुदा आझ....? ई की हो गेल सुलोचनी के सब के भारी अचरज। कन्ने से एतना लोर एकर आँख में समा गेल हें.. राजगीर के सतघरवा नियन।
केतना सिपाही दरोगा अइला, नेता जी अइला, ओकरा इयाद नञ् हे, के की कहलका? के की गछलका? पता नञ्।
“जरूरे ई करमी विरोधी पाटी का है। हारे सुशासन को बदलाम करना चाहता है।”
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हमरा राज था, तो हरदम जंगले राज कहता था। अब का हुआ सुशासन जी महाराज! तीन महिने में क्राइम खत्म करते थे चूतड़ पर ताल खूब बजता है। अब काहे नञ् लगाते हैं राष्ट्रपति शासन?”
सुलोचनी के की पता कि राष्ट्रपति शासन की होवऽ हे? कइसे गिरऽ हे सरकार कइसे बनऽ हे? ओकरा तऽ बस एतने पता हे कि अब गोबिन के मुँह में आग बिहरिये के देवऽ पड़त। तनी गो बिहरिया.... आउ ओकरा पर उतर के बड़गर बोझ...!
कलट्टर साहब अइलथिन। एगो चेक आउ एगो इनरा आवास के अउडर देलथिन। खूब समझइलथिन। सुलोचनी के समझ में कुछो नञ् आल। कतनउं दरूपीय हलइ, कतनउ ओकरा मार के सोथान करि दे हलइ, मुदा हलइ तऽ ओकर मरदे ने ओकरे नाम के ऊ अपन मांग में सेनुर करऽ हल। चूड़ी के खनखनाहट में गोबिन के धुकधिक्की सुनह जा सकऽ हल। दारू के निसां में बेहोस गोबिन सुलोचनी के दीदा में चमकऽ हल।
पता नञ् कखने करखू के आँखि लगि गेल। ऊ सपना लगल-चउतरफा चलि रहल हे गोल...धांय...धांय... दड़ाम...फटाक...आह... ऊँह...गोदाल...भगदड़-फाग रेऽ ऽ ऽ समुल्ले गाँव में हंगामा। केकरो हाथ-गोड़ बान्ह के भूड़ी छोपल जा रहल हे, जइसे मार-काट दिन महारानी थान में पाठा के बलि पड़ऽ हे। केकरो पेट फटल हे... केकरो गोड़ कटल हे। लहास के ढ़ेरी। कोय नर गेल हें, कोय मर रहल हे, कोय मरे वला हे। मरे वला के लम्हर लैन....में खड़ा हे ओकर बाऊ सुरजा भी।
सीन बदलल करखू के पक्का के घर..। कोठा पर बइठल माय चाउर चुन रहल हे....। अरे ई की ओकर माय के साड़ी उज्जर हाथ में चूड़ी नञ् हे। मांग के सेनुर...?
अचानके करखू गरगराल उठ गेल... लिलार पर पसेना चुहचुहाल।
“की हलउ बेटा?” धड़फड़ा के दुन्हूं परानी के नीन टूट गेल। दुन्हूं करखू के देह हसोतेऽ लगला।
“नञ् माय हमरा नञ् चाही।”
“की नञ् चाही बेटा” बाऊ पूछलक।
“हमरा कुछो नञ् चाही बाऊ।“ कहि के बाऊ से चिपटि गेल।
“की नञ् चाही नुनु?”
हमरा नञ् चाही पक्का मकान आउ कोठा। हमरा नञ् चाही रूपइया पइसा... नउकरी-चाकरी। हमरा तूं चाही.. तोर दुलार हे डाक बबा, हमरा बाऊ-मइया के रहे दिहा बाबा!” कहि के करखू अपन बाऊ से चिपकि गेल। दुन्हूं हलुक-हलुक करखुआ के थपकानऽ लगलन।
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः
कहानी
पवन तनय के तीन गो लघुकथा
जरूरत
होटल चाणक्या के सेंटर हॉल में बड़ी भीड़ हल। दिन के दू बज रहल हल। लंच टाइम होवे के चलते मरद-मेहरारू से सभे मेज भरल हल। केतनने मेज पर ‘आरक्षित’ के छोटहन बोर्ड लगल हल। अइसने एगो कुर्सी पर एगो आकर्षक नौजवान बइठल हल। लम्बा आउ गठल देह के मालिक ऊ नैजवान केकरो प्रतिक्षा करीत हल, से हाली-हाली ओकर ध्यान कलाई घड़ी दने चल जाइत हल। देह पर ब्राँडेड वस्त्र न हल तइयो जींस आऊ छोट बाँह के टी-शर्ट में ओकर कसल देह ते बनावट साफ झलकइत हल। तखनिये एगो आधुनिका नौजवान के सामने के कुर्सी पर आके बइठ गेल। लड़की सुन्दर हल। देह के आधुनिक वस्त्र ढँकइत कम हुलकावइ जादे हल। लड़की ऊ स्थिति से बेखबर न हल तइयो अप्पन हाव-भाव से प्रभाव छोड़े में सक्षम हो रहल हल। ओकर सैंडिल के सिलाई उघरल हल जे ओकर आर्थिक स्थिति के साफ बताबित हल। लड़की भी मुसकी छोड़इत मुख्य दरवाजा दने ताके लगल हल।
पाँचो मिनट न बितल कि एगो थुलथुल शरीर वाली, नाटा कद के खुबे गोर मेहरारू उहे मेज के एगो खाली कुर्सी पर आके बइठ गेल। ई अधेड़ मेहरारी के समूचे देह गहना से लदल हल। भारी मेकअप भी एकर उमर छिपावे में सक्षम नञ् हो रहल हल। ओकरे सामने के कुर्सी पर कातिल मुसकी छोड़इत एगो मरदाना आके बइठ गेल। ओकर बामा हाथ के अँगुरी में हीरा के अंगुठी हल। अंगुरी के बीच में एगो सिगरेट दहक रहल हल। रंगल केशवाला मरदाना के उमर ढलान पर हल।
सभे अप्पन-अप्पन पसंद के पेय मँगा के पीए लगलन। चारों के लोग उहे मेज भिर बइठल गपिआइत देखलन।
चार घंटा के बाद नौजवान आऊ ऊ अधेड़ मेहरारू होटल के तिसरा मेजिल के एगो कमरा से बाहर निकललन। नौजवान साथे ऊ मेहरारू सड़क पर आएल। नौजवान ‘रेमण्ड’ के शो रूम में घुस गेल। मेहरारू का जनी कने अलोप हो गेल। तनीये देरी में ऊ आधुनिका के साथे रंगल केश वाला भी बाहर निकलल। सिगरेट अभियो दहक रहल हल। दूनों एगो कार में बइठलन। कार आगे बढ़ गेल आऊ ‘लिबर्टी’ के शो रूम के सामने रूकल। लड़की उतर गेल आऊ कार आगे बढ़ गेल।
हितैषी
ट्रिंग-ट्रिंग। ट्रिंग-ट्रिंग।
टेलिफोन के घंटी बजल तऽ शालिनी झट रिसीवर उठा लेलक।
‘हैलो’। अरे मौसमी तूँ। बड़ी दिन के बाद याद कैलऽ। का बात हे? कहीं गेल हलऽ का?
दोसरा दने ओकर कॉलेज के जमाना के सखि मौसमी हल। कहे ला दोनों एके शहर में रहऽ हलन बाकि महानगरीय जीवन के व्यस्तता मिले के अवसर कमे दे हल। हँ, फोन पर बातचीत शुरू होव हल तऽ हाली खत्म न होवऽ हल।
“अरे हाँ तूं ‘कहानी कल्याणी के’ देखलऽ। बेचारी कल्याणी। हमरा तो लगऽ हे ओकरा अपन पति के छोड़ देवे के चाही। आखिर सहे के भी एगो सीमा होवऽ हे। आऊ अत्याचार काहे सहल जाए। तुं का कहीत हऽ?”
“हँ, मौसमी! ई तो हे। अगर कत्याणी पढ़ल-लिखल रहित तऽ अप्पन पैर पर खाड़ा हो सकलक हल आऊ अप्पन पति के करारा जवाब दे सकलक हल। बकि का करे बेचारी।”
कमरा के पोछा लगावित शालिनी के दाई कमला अपन मलकीनी के विचार से बड़ी खुश लगइत हल। दूनों सखी दूरदर्शन के कऊनो लोकप्रिय धारावाहिक पर चर्चा करीत हलन। बातचीत खत्म होएल तऽ शालिनी के ध्यान सामने खड़ा कमला पर गेल।
“सभे काम हो गेलऊ”
“जी मैडम”।
“ठीक हे। कल तनी सबेरे आ जइहें। कुछ गेस्ट आवेवाला हथ।”
“बाकि मैडम कल तो हम न आ सकली हे। हमरा अपन बेटी के नाम लिखावे ला स्कूल में जाए ला हे। आऊ हँ कुछ रूपया के भी जरूरत हलई।”
“अरे वाह। एक तो बेमतलब के छुट्टी। उपरे से एडवांस। महरानी जी। इहाँ पइसा काम ला मिलऽ हइ मुफ्त में नऽ। जा आऊ कल बेरा पर आ जइहऽ।”
कमला एक नजर सुखइत फर्श पर डाललक आऊ हौले-हौले कमरा से बाहर निकल गेल।
बोनसाई
वर्मा जी एगो बर के पेंड़ के गमला में रोप के अपन बइठका के शोभा बढ़एले हलन। ऊ बड़ी मेहनत करऽ हलन ऊ पेंड़ के जिन्दा रखे में। गर्व से कह हलन कि बोनसाई बनाना एगो जापनी कला हे जेकरा में झमठगर बन सकेवाला जाति के पेंड़ के मुख्य जड़ के काट के ओकरा गमला में लगा के रखल जा सकलक हे। ई विधा से पेंड़ के बौना आकार देवल जाहे आऊ इच्छा के अनुसार ओकर डऊँढ़ी के भी रूप देवल जा सकलक हे। आऊ न जानि का-का बतावऽ हलन वर्मा जी।
जेठ के लह-लह दुपहरिया में एगो नौजवान वर्मा जी हीं आएल। बइठका में ओकर ध्यान ऊ बर के गाछ पर पड़ल। नौजवान के बर-गाछ के निहारइत देख के वर्मा जी कहलन- “ऊ बर के उमर पंद्रह बरिस हे। एकरा ई अवस्था में पहुँचावे में हमरा जोरे हमर घरूआरी के भी हाथ हे।” वर्मा जी के बर-गाछ कथा शुरू हो गेल।
ओने ऊ नौजवान सोंचइत हल कि ऊ बर यदि ऊ राह में रहतन जने से ऊ इहाँ अयलक हे तऽ आज ई गरमी में एकर छहुँरा में कुछ देरी सुस्ताइत। नौजवान वर्मा जी से कहलक- “अपने गमला में लगल ऊ बर के अपने से बढ़े न देली। बदलइत मौसम में कभी कमल तऽ कभी गुलाब के आकार देइत रहली। ई फेर में एकर डाँढ़ कटाइत रहल। अब तो बेचारा ऊ अपने भी भूल गेल हे कि ऊ बर हे। हम अपने से एतना बात ईला कहत ही कि हमरो बोनसाई बनावल गेल हे आऊ आज हमर माली हमरा से छाँह आऊ फल-फुल के आशा करइत हे।”
नौजवान बर के कोमल पत्ता के सुघरावित हल।
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कविता-कियारी
जिनगी के अरमान बहुत हल
डॉ. हरिशचन्द्र प्रियदर्शी
डबडब लोर भरल अंखियन में डूबल सपना के मधुराई,
मन मनही मन थाह रहलहे जग में जीवन के सच्चाई।
ई दुनियाँ के आदि अंत के हमरा तनिको हाल न मालुम,
कब से कहाँ लौं आसमान में फइलल तंतर जाल न मालुम।
कब किनका की होवे वाला किनको ई अहवाल न मालुम,
जिनगी के सरगम के तनिको तर्ज न मालुम ताल न मालुम।
तइयो-तइयो जीले जाही-जी ले जाही, रामदुहाई.....
आसमान में तारा टूटल अन्दर-अन्दर टूट गइल दिल,
अंतर के झुटपुटा अंधेरा घुमड़ रहल अँखियन में झिलमिल।
जिनगी के अरमान बहुत हल जरल बुतल सब पिघलल तिल-तिल,
बइठल-बइठल जोड़ रहल ही आज अप्पन जिनगी के हासिल।
मंजिल-मंजिल चलते रहली, थकल पाँव में फटल बेबाई.....
जे भी जरल बुतल ऊ आखिर जे भी बनल सकल मिट जाहे,
मिट्टी के ठेला के की बउसाह कि ऊ सागर के थाहे।
काल-सिन्धु के हलका में बहजाना हे चाहे-अनचाहे,
जाना ही जब अटल सच्चाई जग में आवाजाही काहे।
हम तो पतझड़ पर उदास ही कोंपल फेंक रहल अमराई,
मन मन ही मन थाह रहल हे जग में जीवन के सच्चाई।
-करूणाबाग, सोहसराय, नालन्दा
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कविता-कियारी
की नेताजी अइसीं होतय?
दीनबन्धु
की नेताजी अइसीं होतय? राते दिन पब्लिक सब रोतय?
सुख शान्ति के नाम न केन्हूँ, अब केतना ई धरती खोतय॥
की नेताजी अइसीं होतय?
जात-पात के येतना टंठा, कहियो नञ् भेले हल,
छूत-छात तो बड़ी हलय, पर तइयो भी मेले हल,
तूँ जो जखम लगइये हऽ, अब नञ् जानो के घउआ धोतय॥
की नेताजी अइसीं होतय?
शहरे शहर विकास हो रहल, गाँव-गिरांव हे उजड़े,
यहाँ के खेती टाँड बनल बनल हे, दोसर देश में सुधरे,
बिजली, पानी, डैम, नहर नञ् कइसे गिरहस खेती ढोतय॥
की नेताजी अइसीं होतय?
गाँव-गाँव अउ शहर-शहर में, बम बारुद के ढेरी,
सगरो चलऽ हे बौखल अदमी, करऽ हे तेरी मेरी,
बीतल वरिस पचास कि थिर से सौ अयला पर सोतयं।।
की नेताजी अइसीं होतय?
जातपात के भेद बठैला, वोट बैंक बनवे ले,
गरम गरम भासन झारऽ हऽ, लड़वे ले कनवे ले,
हमरा हे विसवास कि नयके, नेता नवज के टोतय॥
की नेताजी अइसीं होतय?
एहे दिन ले वीर सहीदन, अपन जान खोलक हल?
एहे दिन मइया-बहिनो, कोख मांग धोलक हल?
मिलल अजादी टाकी बाला, कहिया सच सब सपना होतय॥
की नेताजी अइसीं होतय?
जे विधंछ में सकति लगावऽ, ओतना में कुछ सिरजऽ
खून के रस्ता आग के जंगल, मौत के मुँह मत गिरवऽ,
धरती माँग सजावऽ आवऽ, तोरा बिन अमरित के बोतय॥
की नेताजी अइसीं होतय?
चेतऽ हो जवान देश के, आवऽ मिल जुल काल पछारूँ,
जे हमरा भिर आँख तरेरे, सेकर दुन्हुँ दीदा काढूँ,
हिन्दु-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई, चारों भइयन देश संजोतय॥
की नेताजी अइसीं होतय?
-नदसेना, मेसकौर, नवादा
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कविता-कियारी
ठेंस
राजकुमार प्रसाद
ठेंस रहता के इंजोरा, ठेंस नदिया धार हे।
जीत के हे सगुन सुन्नर, नाय के पटियार हे।।
ठेंस लगला पर बकि हाँ, लौटिहऽ मत हार के,
मत तों उबिअइहऽ, बढ़त जइहऽ बिपत के बार के।
कउन ठइयाँ लगत कखने ठेंस, नय एक्कर ठेकान,
जो बढ़त रहबा त रहबा, सगर बाजी मार के।
हके लुत्ती आग के ई, ठेस जीमन सार हे।
जीत के सगुन सुन्नर, नाय के पटिआर हे।।
बझ गेला जब एक तुरिया, तुलसी माया जाल में,
सह कसट छछनल गेला, रतना के भिर धुनियाल में।
पड़ल फिफरी ओठ जब्बड़ बात सुन कनिआय के,
ठेंस लगलन जोर तुलसी भागला खिसियाल में।
ग्रन्थ रामायण बनल रतनावली फटकार हे।
जीत के हे सगुन सुन्नर, नाय के पटिआर हे।।
ठेंस लगल पर उजागर बुद्धजी भी कर गेला,
नाम दे के सूर दीदा फोड़ दुइयो मर गेला।
बालमीकी के भी बुद्धि खुलल लगलन ठेंस जब,
आझ नयँ मुहताज हम, मर करके गान्ही तर गेला।
ठेंस रहता के चिन्हासी, ठेंस हर के फार हे।
जीत के हे सगुन सुन्नर, नकय के पटिआर हे।।
-बाढ़, पटना
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कविता-कियारी
चान हँसे
अरुण हरलीवाल
चान हँसे, रे! चान हँसे, रे!
आसिन के पुनिया के चान हँसे, रे!
चान लगे आज, सचे, अमरित के कलसा हे,
जने उठे नजर, तने जनगन के जलसा हे।
ढोल बजे, रे! ढोल बजे, रे!
डम-डम-डम, डिमक-डिमक ढोल बजे, रे!
आसा के एलबम हे, मेहनत के परचम हे,
खेत-खेत, कंठ-कंठ सिरजन के सरगम हे।
गीत झरे, रे! गीत झरे, रे!
गाँव-गाँव, ठाँव-ठाँव गीत झरे, रे!
मउसम के मस्ती में झूम रहल बस्ती हे
मस्ती के दरिया में जिनगी के कस्ती हे।
रास रचे, रे! रास रचे, रे!
गगन मगन धरती सँग रास रचे, रे!
-हरली, गया
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कविता-कियारी
जुआनी दान
जयराम देवसपुरी
बहिनों मरमों ने जानलुँ जुआनी के,
देलुँ मइया के सुहाग कुर्वानी में।
पहिल सिनेहिया के अयलउ सनेसवा कि
लागि गेलउ डोलिया दुआर।
एके दिन ले सीमा पर से मिललो हल छुटिया
कि दुश्मन के जुटलो गोहार।
छछनइत मनमा के नेग मेटि गेलउ हमर,
घंटो भर ने सुनलुँ हल सीमा के कहानी गे।
देलुँ मइया के.........
कउओ ने डकलो हल अयलौ बुलहटिया,
कि लागि गेलउ जीपवा दुआर गे।
चढ़ती जुअनियाँ के दरकल किरिनीयाँ से
विरह के दावलुँ अंगार गे।
मइया लगइलकौ हल दहिया के टीकवा,
कि हमहुँ अच्छत चन्नल लेले ठाढ़ गे।
हलस के आरती उतारी के चलइलियौ हल,
मइया के जोगवइ ले पानी गे।
देलुँ मइया के.........
टैंक अउ जहजिया चढ़ि के दुसमनमाँ कुल,
घुसलइ सीमनमाँ के लांघ के।
हम्हड़ी गरजलउ ई हिंद के धरतिया,
कि दुशमन अयलउ लुटे लाज गे।
मइया के अँखिया से अगिया धधकलौ,
चारो दिसी गुंजलौ आवाज गे।
सहमी सहमी बढौ मइयन के लाल सभे,
दुसमन हल कइले परेसानी गे।।
देलुँ मइया के........
साजी के टैंकवा उ कुदलौ मैदनमाँ में,
कि घुइमाँ से भरलौ आकाश गे।
बारूद के झोंकवा से तिले-तिले झौंसी-झौंसी,
दुसमन के करी देलक नास गे।
भागलउ सीमनमाँ से गिरते दुसमनमाँ कि
जय जयकार गुंजे असमानी गे।।
देलुँ मइया के.........
साजी के चललौ जहजिया में,
मइया के बचवइले लाज गे,
वममा के फोटवा से रइ-रइ करि देलकौ
दुसमन के बनल रडार गे,
रहिया में जेतना जे छेकऽ हल जहजिया,
कइले गेलौ कुले बरबाद गे,
पुरूब के झोंका अइलउ, चुड़िया से टकरइलौ,
खाली होलौ हाँथा के सिंगार गे।
मंगिया के सिनुरा जे उड़लइ छितिजवा में,
दुसमन चढौ नञ् दुआर गे,
हमर जुआनी सीमा पर अचल हकइ
मंगिया के बइठल निसानी गे।
देलुँ मइया के..............
-देवसपुरा, नालन्दा
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कविता-कियारी
अब केकरा जोरे लड़बै....
हरेन्द्र गिरि शाद
राजू फुदुन बुदुन भईया मोरी गुड़िया बहिनियाँ हे,
अब केकरा जोरे लड़बे तुहु बोलईन कंचनियाँ हे।
बड़की-छोटकी, मँझली-सँझली सब चाची कह हलऽ,
बड़ी बेवी वोल हे, अब न कुछ बोलबो चाची,
बनली दुलहिनियाँ हे। अब केकरा जोरे........॥
दादी के अँगनवा में बड़ी सुख पइली गोईयाँ,
गुड़ा-गुड़ी खेल में तनिको ना लजइली गोईयाँ,
तोहनी के तो देलियो नाही एको निशनियाँ हे,अब.....
कौरे-कौरे दूधऽ भातऽ मोर खिआवऽ हलन,
अंगुरी धराई पापा डेगा-डेगी चलावऽ हलन,
तइयो नाही सिखली इनखर एको रहनियाँ हे
-रूपवती निवास, पश्चिम दिग्घी तालाब, गया
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कविता-कियारी
माय
उदय कुमार भारती
हम ही लाचार माय,
विधवा आउ बीमार माय।
कलयुगिया सपूत के माय,
चार पूत के माय।।
जिन्दा ही ईले कि पेलसिल पावऽ ही,
पंचहजारी गड्डी लेल ठेपा लगावऽ ही।
मर जइव कि मिलत,
ईले दू ठोप दवाय भोरे साँझ खाही।
पेट नञ् भरे हे चारो पुतहुन के थरिया से,
ई लेल उनखर थप्पड़ के मार खाही।
देह आउ खटिया पर बसतर एतना कि महीनो नञ् चुनाय,
नहा ही तऽ ऊ दिन जौन दिन बैंक जाही,
आउ ओहे दिन रूचगर पंथ-प्रसाद पावऽ ही।
जी भरल रहऽ हे घारा के तीत-मीठ ओलहन से ,
ईले पड़ोसियन से एक-दूगो बिस्कुट माँग लावऽ ही।
कहियो हल हमरो दिन जउ
बुतरून के दिन में दू बेरी सजाव हलूँ,
बहरो से अएला पर ओकर गोड़ पखारऽ हलूँ।
आझ अप्पन पैखाने पर गोड़ पसारऽ ही,
लचार अँखिया से बच्चन के निहारऽ ही।
हम ही लाचार माय,
विधवा आउ बीमार माय।
कलयुगिया सपूत के माय,
चार पूत के माय।।
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कविता-कियारी
कुंडलियाँ
रामपुकार सिंह राठौर
1.
नास अगर निगचाल तो, पहिले होय गुमान।
दुनियाँ के मूरख बुझे, अपना के विदमान।
अपना के विदमान, करे लगतो मनमानी।
घर से सिरी गनेस आउ फिर बाहर में सैतानी।
तब परिवार हे कौन गली में, सब कुकरम के दास।
विधना डंडा से नञ् मारे, अपन चाल से नास।
2.
जनतन्तर राज में, भेल लूट के छूट,
नेता भेलन ऊँट सब, जनता भेलन बूँट।
जनता भेलन बूँट, खतम सब बूँट के ढेरी।
जात के बीनल जाल में, जनता बनल बगेरी।
सुनलऽ जनता भाइ, सभे नेता है गालू।
खून के चस्का लगल, न केकरो छोड़तो भालू।
सास कह रहल पुतहु से, हौ कौची तोहरा पास।
3.
कैसन कंगला घर बियाहली, एक न पुरल आस।
एक न पुरल आस, न देलकौ फ्रीज औ टी.वी.।
एहिजा आके बन गेलो, बदसाह के बीबी।
कहे बेचारी पुतहु ई तो औरत न हे खटास।
हे भगवान न दुसमन के भी, दीहऽ ऐसन सास।
4.
पुतहु घर में घुसते कहलक, घर ऩैं हमरा जोग।
भुंजा फुटहा हम नञ् खैबो, हम खैबो मनभोग।
हम खैबो मनभोग कि तोहनी, जो मन हो से खैहऽ।
ई साड़ी सस्तौआ हमरा सिलिक के साड़ी लैहऽ।
चार लाख जब तिलक घरेलऽ, पक्का घर नैं कनहूँ।
बूढ़ा-बूढ़ी माथ ठोकलन, मिलल झपासिन पुतहू।
-मिर्जापुर, वजीरगंज (गया)
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कविता-कियारी
दोहा
लालमणि विक्रांत
1.
बोली जिनकर मिसरी जइसन उनका से भय भारी।
सम्मर-सम्मर के राह में चलिहा धोखा होत करारी।
धोखा होत करारी फिन पचताइये के की करबा।
चिन्ता चिता समान एकर फेरा में काहे पड़बा।
कहइ कवि विक्रांत सुनऽ हम्मर हमजोली।
पिपरी खोंटा-सन नञ् फसिहा पाके मिसरी बोली।
2.
छल प्रपंच के गाछ न रोपऽ जीवन रखऽ सादा।
डगमग नइया सन नञ् डोलऽ पक्का रहे इरादा।
पक्का रहे इरादा मंजिल झट मिल जइतो।
जिनगी के अँगना में सुख-समृद्धि तब अइतो।
कहइ कवि विक्रांत कि मिलतो करनी के फल।
पकड़ऽ निम्मन राह अउर छोड़ऽ अब भी छल।
3.
पढ़ल-लिखल के मतलब नञ् कि मिले नौकरी भाय।
पढ़ल-लिखल एतना कि नौकरी के न कोय उपाय।
नौकरी के न कोय उपाय गौर-गौर अपनाबऽ।
शुरा करऽ रोजगार जिनगी सफल बनाबऽ।
कहइ कवि विक्रांत कि नञ् अब खोजऽ घाँस गढ़ल।
मेहनत बुद्धि ज्ञान संग ले बढ़इ हे सदा पढ़ल।
4.
समय ई सोझ समाठ के ऩञ् हे, बहुत हे रंगल सियार।
गिरगिट जइसन रंग बदलतऽ, हो जा तू होशियार।
हो जा तू होशियार समय के नब्ज परेखऽ।
दुनियाँ में का हो रहलय हे अँखियन खोल के देखऽ।
कहइ कवि विक्रांत करऽ नञ् तनियो भी तू भय।
सच के राह पकड़ बढ़ले जा अइतइ भी तोर समय।
5.
शिक्षा पाबइ के मतलब हे बनऽ तू ज्ञान के सागर।
विनय विवेक शील संयम अपनाऽ बन जा गुण आगर।
अपना बन दा गुण आगर ज्ञान के ज्योति जलाबऽ।
दीन दुखी के जीनगी में सुख सरिता उमगाबऽ।
कहइ कवि विक्रांत कि जगबऽ सबमें प्रेम के इच्छा।
जग में हे अनमोल रतन सन बेशकीमती शिक्षा।
-कैथावाँ, शेखपुरा
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मगह के आयोजन
जागरण ज्योति महोत्सव के मगही कवि सम्मेलन
बिहार शताब्दी साल के मोका पर 15 मार्च 2012 के नवादा के टाउन हॉल में मगही कवि सम्मेलन के आयोजन भेल। ई आयोजन दैनिक जागरण परिवार के जागरण ज्योति के बिहार भ्रमण ले निकलल जागरण ज्योति के नवादा पहुँचे के मोका पर आयोजित छो दिवसीय ‘जागरण ज्योति महोत्सव’ के एगो कड़ी हल। साँझ के छो बजे मगही कवि के महफिल सजे ले तैयार हल। काजकरम के उद्घाटन उपविकास आयुक्त रामजी सिंह दीया जलाके कैलका। अप्पन संबोधन में ऊ कहलका कि बिहार शताब्दी पर दैनिक जागरण अखबार के जे मशाल नवादा पहुँच रहल हऽ ओकरा से जिला के विकास के रौशनी जागत। मगधेश के नाम से चर्चित साहितकार मिथिलेश के अध्यक्षता में आउ श्रवण कुमार वरनवाल के मंच संचालन में दीनबन्धु के सरस्वती वन्दना से सम्मेलन के शुरुआत होल। एकर बाद कवियन के ओजपूर्ण प्रस्तुति, हास्य-व्यंग्य से नगर भवन गूँजे लगल । बड़ी रात तक अप्पन-अप्पन रचना से कवि श्रोता के भाव विभोर कैलका। कोय हंसैते हंसैते लोट-पोट कर देलका तऽ कोय बिहार के गौरव गान गाके खून में रवानी भर देलका।
कवि जयप्रकाश के “अप्पन संस्कार भारत मईया के खोमछा झार के” सुनेवला के खूब भैलक। नरेन्द्र प्रसाद सिंह के “हमरा काहे कोय लजइतै बिहरिया कह के” से खूबे वाहवाही लूटलका। शंभू विश्वकर्मा, गोपाल निर्दोष, शफीक जानी नादाँ बिहार के गौरवगाथा गाके सभे के गद्गद् कर देलका। अशोक समदर्शी “जागरण का वो पहल गजर चाहिए” गाके अखबार के काज के सराहना कैलका। व्यंग्यकार उदय भारती अप्पन बिहार अस्मिता से जुड़ल कविता के सुना के श्रोता पर छाप छोड़े के काम कैलका।
काजकरम में दो दरजन से जादे कवि के जुटल हलथिन। नागेन्द्र बंधु, परमानन्द, प्रवीण कुमार पंकज, अजय कुमार, कृष्ण कुमार भट्टा, रामचन्द्र प्रसाद, उमेश सिंह उमा, रामशरण सिंह, अविनाश कुमार निराला, सुलेमान खाँ, दीनबन्धु सभे मिलके गीत गजल के समाँ बाँध देलका।
घर आवा परदेशी मगही गीत कैसेट के लोकार्पण
सम्मेलन में कृष्ण कुमार भट्टा के लिखल आउ गावल मगही गीत के सीडी कैसेट ‘घर आवा परदेशी’ के लोकार्पण कैल गेल। उपविकास आयुक्त रामजी सिंह, साहितकार मिथिलेश, जयप्रकाश, दीनबन्धु आउ कय गो कवि मिल के एकर लोकार्पण कैलका। मोका पर साहितकार व कवि मिथिलेश कहलका कि ई कैसेट मगही भासा के नया आयाम लिखे के काम करत। अब हम्मर मगही सब तरह के समृद्ध होवे लगल हऽ। अब एकरा विकसित होवे से कोय नञ् रोक सकत।
काजकरम में नवादा के वरीय नागरिक संघ के अध्यक्ष श्रीनन्दन शर्मा, आरपी साहु, कांग्रेस जिलाध्यक्ष रामनरेश सिंह, राजीव सिन्हा, पुरुषोत्तम शर्मा, नगर परिषद् उपाध्यक्ष राजेश मुरारी, एसकेएम कॉलेज के प्राचार्य देवेन्द्र कुमार सिन्हा, नंद किशोर चौरसिया, विनय कुमार, राजीव रंजन, अरविन्द गुप्ता आउ नवादा के सम्मानित बुद्धिजीवी उपस्थित हला। धन्यवाद ज्ञापन प्रोजेक्ट इन्टर विद्यालय के प्राचार्य सुरेश प्रसाद सिंह जी कैलथिन।
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मगह के आयोजन
एसएन सिन्हा कॉलेज वारिसलीगंज के कवि सम्मेलन
बिहार शताब्दी वर्ष के मोका पर वारिसलीगंज के एसएन सिन्हा कॉलेज में 22 मार्च 2012 के बड़गर कवि सम्मेलन के आयोजन मगही साहित के मगधेश मिथिलेश के संयोजन में भेल। काजकरम के अध्यक्षता कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. शालीग्राम मिश्र निराला जी के आउ मंच संचालन प्रो. विनोद कुमार सिंह जी कैलका। मुख्य अतिथि स्थानीय विधायक प्रदीप महतो अप्पन संबोधन में कहलका कि ईहाँ आके हमरा बड़ी बेस लगलै। मंच पर हम्मर गुरू सब बैठल हथिन, इनखर मगही विकास के ई महाजग में हमहुँ आहुति डालबै। हम मगही के विकास ले यथा संभव सहयोग करबै। ऊ बड़ी भाव-विभोर होके मगही ले जीवन भर समर्पित रहे वला गुरु जैसन साहितकार के आगू सर झुकैलथिन आउ उनखर धैर्य के दाद देलथिन। ओकरा से पहिले कवि मिथिलेश विषय प्रवेश करैते मगही के विकास लेल सब के आगू आवे के आह्वान कैलका। ऊ मगही के भारी उपलब्धि के गिनैलका आउ कहलका कि अभी मगही के अप्पन मुकाम तक पहुँचे से कोय नञ् रोक सकतै।
काजकरम के शुरुआत कृष्ण कुमार भट्टा के मगही गीत एलबम ‘घर आवा परदेशी’ के सरस्वती वन्दना से भेल। ओकर बाद कवियन के काव्य फुहार के जबरदस्त दौर चले लगल। श्री मिथिलेश के “जाने सातो सरग जाने सौंसे जहान”, दीनबन्धु के “तनी हमरा घुमा दे बिहार सैंया”, नरेन्द्र प्रसाद सिंह के “हमरा काहे कोय लजैते बिहरिया कह के ना”, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती के “बिहारी दम के अखनी सगरो जय-जयकार हे”, परमेश्वरी के “आवऽ हमरा अंगना में हइ बात बहुत बतियावे के”, शफीक जानी नादाँ के “दिल्ली के सर का ताज हमार बिहार हइ...”, जैसन भारत आउ बिहार के गौरव गाथा से श्रोता बाग-बाग भे गेलथिन।
कवि जयप्रकाश, परमानन्द, जयराम देवसपुरी, दयानन्द बेधड़क, अशोक समदर्शी, शम्भू विश्वकर्मा, कृष्ण कुमार भट्टा, नागेन्द्र बंधु, अंजेश कुमार के गीत, गजल, हास्य व्यंग्य, झूमर से देर रात तलुक श्रोता सराबोर होते रहला। दयानन्द बेधड़क “गाँव के दललवा के हम नञ् करवै माफ रे” आउ बाप के बुढ़ापे में दुर्गति के हास्य व्यंग्य सुना के खूब ताली बटोरलका। अप्पन-अप्पन विधा के प्रतिनिधि आउ दमदार रचना से सभे कवि एक दूसरे पर भारी हला। जउ सुने वला सामने श्रोता से सदन-परिसर भरल रहऽ हे आउ श्रोता मन से कवि के सुनऽ हे तउ कवि सम्मेलन खूबे जमे हे। सुने वला उठे के नाम नञ् ले रहला हल आउ कवि जमके सुना रहला हल।
सम्मेलन में कॉलेज के प्राचार्य जयराम शर्मा, सत्यनारायण सिंह, शैलेन्द्र कुमार, दिग्विजय नारायण सिंह, रविन्द्र कुमार रवि, अनिरुद्ध प्रसाद सहित कॉलेज के शिक्षक आउ गणमान्य बुद्धिजीवी उपस्थित हला।
धन्यवाद ज्ञापन निराला जी कैलका। बिहार शताब्दी वर्ष के ई आयोजन बेसगर आयोजन में गिनल जात, जेकरा सालो साल श्रोता आउ कवि नञ् भूलैता।
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मगह के आयोजन
भदसेनी ग्राम के चैता आउ मगही कवि सम्मेलन
20 मार्च 2012 के हिसुआ प्रखण्ड के भदसेनी ग्राम में चैता आउ मगही कवि सम्मेलन के आयोजन भेल। काजकरम ‘साहित्य चेतना मंच’ भदसेनी के तत्वाधान में सच्चिदानंद सिंह उर्फ सितारे हिन्द जी के संयोजन में होल। एकर उद्घाटन पहिलका मुखिया अभय सिंह, कवि परमेश्वरी आउ दीनबन्धु जौरे मिल के कैलका। काजकरम के अध्यक्षता दयानन्द शर्मा बेधड़क आऊ मंच संचालन सच्चिदानंद सिंह जी कैलका। दीनबन्धु के सरस्वती वन्दना के बाद कवि परमेश्वरी के “आवऽ हम्मर अंगना में कुछ बात हकै बतियावे के, उलझत पगड़ी हइ हिमगिरी के ओकरा हे सोझीयावे के”, कविता के पाठ से सम्मेलन के उफान होल। एकर बाद तऽ कवि लोगन ऐसन समाँ बाँधलन कि सुनेवला झूम उठलथिन। भदसेनी आउ अगल-बगल के गाँव के ग्रामीण रातोभर मगही कविता, गीत, गजल के फुहार से भिंजते रहलथिन। दीनबन्धु के “ॐ नेताजी हमरे.... ॐ नेताजी हमरे....”, दयानन्द बेधड़क के “बेटवा जउ कुछ बोलऽ हइ तउ करेजवा फट जाहे....”ऐसन परिवार और बेटा के बिगड़ल स्वरुप पर करारा व्यंग्य से माहौल रंगीन हो गेल।
कवि परमेश्वरी, दीनबन्धु के बाद नरेश प्रसाद सिंह, जयनन्दन, अशोक कुमार, शफीक जानी नादाँ, परमानंद, कृष्ण कुमार भट्टा, भागवत प्रसाद, अनिल कुमार, अमरजीत, योगेन्द्र शर्मा, राजेन्द्र सिंह जैसन कवियन के पाठ से बैठल श्रोता के खूबे जी जुड़लै।
कवि परमेश्वरी, दीनबन्धु के बाद नरेश प्रसाद सिंह, जयनन्दन, अशोक कुमार, शफीक जानी नादाँ, परमानंद, कृष्ण कुमार भट्टा, भागवत प्रसाद, अनिल कुमार, अमरजीत, योगेन्द्र शर्मा, राजेन्द्र सिंह जैसन कवियन के पाठ से बैठल श्रोता के खूबे जी जुड़लै।
काजकरम के दोसर सत्र में बिहार के गौरव, गाँधी के सपना, देश के हालत, भक्ति, श्रृंगार से जुड़ल चैता गायन के शुरुआत होल। झाल, ढोल, मंजिरा, के साथ गावे आउ बजावे के दौर जे शुरु होल से रात भर चलल। गया, नवादा, शेखपुरा, लखीसराय, के आवल कवि अप्पन-अप्पन विधा के लोहा मनवावे में सफल होला।
पहिलका मुखिया अभय सिंह कविगण के शॉल देके सम्मानित कैलका। भदसेनी जैसन छोटगर गाँव में मगही के चाहे वला के पियार, सनेह आउ सम्मान से सभी कवि आउ अतिथि गद्गद् होके लौटला। गाँव वला के लगल कि हम्मर माय के बोली, हम्मर भासा कैसन-कैसन दिल के छुएवला रसगर विधा से भरल हे।
गिनल जात, जेकरा सालो साल श्रोता आउ कवि नञ् भूलैता।
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मगह के आयोजन
हिसुआ के बिहार शताब्दी समाहरोह आउ मगही कवि सम्मेलन
याद करल गेलथिन भगत सिंह आउ सुखदेव
23 मार्च 2012 के हिसुआ के जैन मंदिर के पास एगो काजकरम के आयोजन कर के शहीदन के इयाद करल गेल। नगर विकास समिति हिसुआ के तत्वाधान में ई बिहार के शताब्दी वर्ष के खास काजकरम हल। ऐसे बिहार के स्थापना दिवस मनावे के चलन समिति कय साल पहिले शुरु कैलक हल। डॉ. मनुजी राय, प्रो. नवल किशोर शर्मा, कवि दीनबन्धु, कामरेड हरिहर प्रसाद, युगल किशोर सिंह काजकरम के शुरुआत दीया जला के जौरे कैलका।
एकर अध्यक्षता प्रो. नवल किशोर शर्मा आऊ मंच संचालन बीसीओ युगल किशोर राम जी कैलका। देवेन्द्र विश्वकर्मा के बनावल शहीद के बेड़ी पर श्रद्धा सुमन चढ़ावे के बाद बिहार के बनल मानचित्र पर 101 दीया जरावल गेल। प्रो. मनुजी राय, युगल किशोर राम, डॉ. नवल किशोर शर्मा बिहार के गौरवशाली इतिहास पर चरचा कैलथिन। की हलै हम्मर बिहार? बिहार पूरे विश्व के की देलक? सौंसे जहान में एकर की जोगदान हे? नानक, बुद्ध, महावीर, चाणक्य, अशोक जैसन विभूति आउ राजेन्द्र प्रसाद जैसन बिहार के रतन के जीवन, साधना आउ प्रतिभा से बिहारी दम-खम आउ गौरव के गुणगान करल गेल।
दीनबन्धु, नरेन्द्र प्रसाद सिंह, शफीक जानी नादाँ, प्रवीण कुमार पंकज, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, देवेन्द्र विश्वकर्मा, हरिहर प्रसाद के शहीद गीत, राष्ट्रगीत, बिहारगीत से समाँ बंध गेल। शहर के रहवैया ई सोचे पर मजबूर हो गेलथिन की हम्मर मगही माटी के महक ऐसन हइ। हम्मर माय के जुबान एकर साहित कत्ते समृद्ध हे। ऊहाँ पहुँचल दरजन भर युवक मगही भासा के विकास ले काम करे के संकल्प लेलथिन।
धन्यवाद ज्ञापन के काम नगर विकास समिति के अध्यक्ष युगल किशोर सिंह जी कैलका। काजकरम के आयोजन में नगर के उत्साही युवा कौशल कुमार, टुन्नी कुमार, देवेन्द्र विश्वकर्मा, आउ कत्ते बुढ़-जुआन जुटल हला।
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शब्द साधक
हिन्दी मगही साहित्यिक मंच
हिसुआ, नवादा (बिहार)
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रचना साभार लेल
पवन तनय के लघुकथा – पाटली नवम्बर २०११ से।
ठेंस – लुत्ती कविता सेंगरन से।
कुंडलियाँ – समकालीन मगही साहित्य २००३ से।
http:magahimanbhavan.blogspot.com
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