शनिवार, 26 सितंबर 2020

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-१७

                                                               मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-१७

मगही मनभावन

मगही साहित्य ई-पत्रिेक

वर्ष - 10                  अंक – 17                          मार्च - 2020             

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संपादक- उदय कुमार भारती

प्रकाशक- हिन्दी-मगही साहित्यिक मंच ‘शब्द साधक’  

              हिसुआनवादा (बिहार)

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ई अंक में.........

दू गो बात

मगही के समग्र विकास ले मानकीकरन जरूरी

कहानी

लिट्टियो जर गेल- डॉ लक्ष्मण

आउ विष उतर गेल- सुधाकर राजेंद्र

चोट- अजय

श्री मिथिलेश के तीन गो लघु कथा

कविता-कियारी

डॉ लक्ष्मण प्रसाद के एगो लम्हर कविता

जान बचाना मोसकिल हे – दीनबंधु

कुछुओ बात करऽ– दीनबंधु

समय के पहिया – जयनंदन

कइसे मिटतइ भ्रष्टाचार – परमानंद

दरूआ नञ् पिहो पापा – कृष्ण कुमार भट्टा

सबाल नञ् – रामचंदर

रच रच के सिंगार – जय प्रकाश

बाह रे तोर सरकारी बचाव – हरीन्द्र विद्यार्थी

ओही दिख रहल हे सहार में- हरीन्द्र विद्यार्थी

मगह के धरमस्थल

मगह के अदेनू धरमस्थल सीतामढ़ी- दीनबंधु

मगह के आयोजन

1.   नालंदा जिला के तीन गो ऐतिहासिक साहित्यिक विरासत जतरा आउ संगिति

(1) शंखनाद के तेसर साहित विरासत जतरा आउ संगिति

(2) शंखनाद के चौथ विरासत जतरा आउ संगिति

(3) शंखनाद के पचमा साहित संगिति

2.   राजगीर महोत्सव में रहल मगही के गूंज

तीन साल के महोत्सव में प्रदेश के भाषा के साथे मगही के मिलल बेस जगह

3.   2015 आउ 2016 के हिसुआ के मगही साहित के ऐतिहासिक काजकरम आउ दरजनों किताब के लोकार्पण

4.   राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत सरकार के मगही सहित तीन क्षेत्रीये भासा के संवर्धन के ऐतिहासिक काजकरम

5.   मगही अकादमी के साहितकार सम्मान के काजकरम

6.   .महाकवि योगेश्वर प्रसाद योगेश के पुण्यतिथि के यादगार काजकरम

विविध

पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात

निहोरा

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दू गो बात....

     म कउन बात से कहे ले सुरू होइऐ समझ में नञ् आवऽ हइ. बड़ लम्हर समय गुजर गेल. परिस्थिति हमरा ऐसन मजबूर कर देलकइ कि ई मगही मनभावन ओहंइ के ओहंइ ठहर गेलइ. साहित के आदरयोग गुरू आउ साहितप्रेमी के आस पर ग्रहण लग गेल. उनखर आस पुराबे में हम पीछे रह गेलिए. हमर बौसाह बौसाहे रह गेल. हम विधाना के विधान आउ अप्पन जीनगी के हालत के ओजह से छटपटइते हर गेलिऐ. केतनो छछनलिऐ लेकिन चार साल में मगही मनभावन के एक्को अंक नञ् दे पइलिऐ. बड़ी बौसाह जुटा के फेनू एकर अंक तइयार करे में लगलूं लेकिन अखबार के काम हमरा साहित के काम नञ् करे दे हे. अखबारे आउ दोसर दिन-दुनियां में पेराल रहऽ हूं.

   सउ के आशीर्वाद से फिर से मगही मनभावन के तैयार कइलूं हे. 17 वां अंक लेके तैयार ही. ई अंक केतना सार्थक होल हे ई तो अपने सउ के टिप्पणी आउ संदेश के पता चलत. आशीर्वाद देबे के काम अपने सउ करथिन.

 पत्रिका में मगह प्रक्षेत्र आउ ओकर आस-पास के प्रदेश के मगही साहित के रचनाकार के नया-पुरान सउ विधा के रचना के समाहित करे के छोटगर प्रयास करऽ ही लेकिन रचनाकार के रचना हमरा तक नञ् पहुंच पावऽ हे. चाहे ई कहहो कि हमीं ऊ रचनाकार से रचना लेबे में सक्षम नञ् हो पावऽ हिअइ. हमर बड़गर पहुंच नञ् हे ईया रचनाकार रचना देबे में दिलचस्पी नञ् देखावऽ हथिन. हम निहोरा पहुंचाबे के पूरा प्रयास रहऽ हइ. आउ बार-बार ई कहबइ कि रचना पहुंचाबे आउ देबे के पूरा प्रयास करथिन. ई मगही मनभावन के छोटगर प्रयास पूजा अपने सउ के पान-फूल, अक्षत-चंदन-रोड़ी से ही सफल होतइ. 

 ई अंक में डॉ लक्ष्मण, सुधाकर राजेंद्र आउ अजय तीन गो रचनाकार के कहानी लेलिऐ हे. अखिल भारतीय मगही मंडप के संस्थापक आउ सारथी पत्रिका के प्रधान संपादक मगह के मगधेश कहलाय वला श्री मिथिलेश के तीन गो लघु कथा हे. कविता कियारी में दीनबंधु, जयनंदन, परमानंद, कृष्ण कुमार भट्टा, रामचंदर, जयप्रकाश आउ हरीन्द्र विद्यार्थी के कविता लेल गेल हे.

ई अंक में मगह के आयोजन में चार साल के ओइसन काजकरम के रिपोर्टिंग देबे के प्रयास कइलूं हे जे मगही साहित के इतिहास में मिल के पत्थल के तरह हल. जेकरा से मगही के इतिहास बनत. जे मगही के सार्थक काम होल ओकरा हम इहां पर देबे के प्रयास कइलू हे. कई काजकरम में हमहूं हलूं आउ ऊ ऐसन यादगार और बड़गर मगही के काजकरम हल जेकर यहां रिपोर्टिंग देबे से अपने के नञ रोक सकलूं. ऐकरा जुटाबे में भी हमरा खूमे फजीहत भेल. काहे कि ओकर बहुत बात इयाद नञ पड़ रहल हल. हम एकरा ले छमा भी चाहवइ की किनखो नाम, काजकरम के कोय बेस बात छूट गेलइ होत तउ हमरा माफ करथिन. ई हमरा दस्ताबेजी नञ् करे के परिनाम हे नञ् कि उनखा नेगलेट करइ के.

 मगह के ऐतिहासिक आयोजन में नालंदा जिला के शंखनाद मंडली के तीन गो विरासत यात्रा आउ साहित संगिति के रिपोर्टिंग है. ई काजकरम साहित आउ मगही साहित ले केतना महत्वपूर्ण, ऐतिहासिक आउ मिल के पत्थल हइ ई अप्पने सब्भे पढ़े के बाद महसूस करथिन आउ फिर ओकरा बतैथिन. मगह के पौराणिक राजधानी राजगीर में हर साल पर्यटक विभाग बिहार सरकार आउ नालंदा जिला प्रशासन के ओर से राजगीर महोत्सव होवऽ हइ. राजगीर महोत्सव में अऩ्य आयोजन, प्रदर्शनी, झांकी, लोक गायन, राष्ट्र स्तरीय कलाकार के स्थान, मेला के साथे साहित के भी जगह देल गेल. 2016 से राजगीर महोत्सव में बिहार के अन्य भाषा के साथे मगही साहित के गूंज भी गूंजे लगल. एकरा ले ओकर रिपोर्टिंग भी जरूरी हो जा हे. नेशलन बुक ट्रस्ट, भारत सरकार, भारतीय भाषा के संवर्धन के कड़ी में बिहार के तीन लोकभाषा भोजपुरी, मैथिली आउ मगही के किताब के अनुवाद करावे के आउ भाषा संवर्धन पर विचार आउ मंथन करइ के काजकरम कइललक आउ पटना के पुस्तक मेला में भी मगही के जगह देलक, मगही साहितकार के दमदार उपस्थिति रहल ई ले ई रिपोटिंग भी महत्वपूर्ण हो जा हे.

 एकर अलावा आउ जे मगही के दमदार आउ ऐतिहासिक साहित्यिक काजकरम होल ओकर रिपोर्टिंग लेबे के प्रयास कइलूं हे.

ई क्रम आउ आगू के अंक में भी चलत. रिपोर्टिंग पुरान हे लेकिन एकर महातम जादे हे. एकर दस्तावेजी जरूरी हे. ऐही बहाने एकर दस्तावेजीकरण भी हो जात.

 2015 से लेके 2019 तक मगही साहित के विकास आउ संवर्धन के कय गो इतिहास गढ़ल गेल ओकरा हम आगू के आउ अंक में जरूर रिपोर्टिंग करबै. अपने सब्भे के सहयोग मिलइ.

 एक बार फेनू अपने सउ से सउ विधा के रचना देबे के निहोरा करबै. मगही मनभावन के अप्पन पत्रिका बनाहो आउ मगही के सेवा करइ में हमर छोटगर प्रयास पूजा में अप्पन आहुति भी देहो. तोहरे आहुति से हम्मर पूजा आउ पवितर होतइ. सार्थक होतइ.

तोहरे.....

उदय कुमार भारती

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मगही के समग्र विकास ले मानकीकरन जरूरी

  गही के समग्र विकास ले मानकीकरन जरूरी हे. एकरा आझ स्वीकार करहो चाहे कल. लेकिन एकरा करइ पड़तो. मानकीकरन के बादे ई पीढ़ी में पैठ बनइतो आउ एकर विकास के सभे दरवाजा खुलतो. मगही मध्य काल आउ आधुनिक काल से गुजर के अब चरम काल में पहुंच रहल हे. सब्हे विधा से परिपूर्ण हो रहल हे लेकिन आझो ई बोलिये बनल हे. कटू सच हे कि आझ एकरूपता नञ् रहइ से हम्मर नयका पीढ़ी में एकर जेतना पैठ बने के चाही नञ् बन रहल हे. जब भी हम्मर जुआन पीढ़ी मगही लिखे-पढ़े ले बैठऽ हे तऽ ऊ मगही के विसंति देख के गड़बड़ा जा हे आउ फिर दम साधे लगऽ हे. काहे कि एक्के किताब आउ पत्रिका में मगही के शब्द अनेगन तरह से लिखल लिखल रहऽ हे. एक जिला के रचनाकार एक्के सउद के अप्पन तरीका से तऽ दोसर जिला के रचनाकार ऊहे सउद के दोसर तरह से लिखऽ, पढ़ऽ आउ बोलऽ हथिन. एक रचना के बाद दोसर रचना में जब उनखा उच्चारण आउ लिखावट के अंतर पड़ हइ तउ युवा सउ चौकड़ा जा हथिन. उनखर माथा पिराय लगऽ हे. सीधा बात कह रहलियो हे. एकरूपता के बिना एकरा स्वीकार करना कठिन हे. पढ़े बोले में नञ तऽ कम से कम लिखे में तऽ एकरूपता जरूरी हे.

     आउ भाषा वही कहला हे जे मानक हे. मानकता के बिना ऊ बोलिये कहल जा हे. मानक भाषा सर्वमान्य होवऽ हइ. ऊ वेयाकरन के अऩुसार परिष्कृत होते जा हे. ऊ नियत हो जाहे आउ ओकर अर्थ सुनिश्चित हो जाहे जे से ओकरा संप्रेषण करइ के क्षमता बढ़ जा हे. धीरे-धीरे ऊ सांस्कृतिक मूल्य के प्रतीक बनते जा हे. मानक शब्दावली बन जाहे. मानकीकरण हर हाल में जरूरी हे. ई सब जानकार जानऽ आउ मानऽ हथिन.

  ई कड़वा सच आउ घूंट के हम अप्पन गला के नीचे काहे नञ् उतार रहलिये हऽ ? हमरा ई बड़ अचम्भा लगऽ हे.? अचरज हे एकरा पर काम काहे नञ् हो रहल हे ? तउ सबाल हे के बिलाय गला में घंटी के बांधऽ हे? ई बारूद में आग के लगाबे हे ? सांप के बिल में हाथ के डालऽ हे?

मानकीकरन के सबाल पर मगही साहित के बड़कन पुरोधा सउ चुप्पी साध ले हथिन. एकरा आउ चले देबे के बात कहे लगऽ हथिन. हम ई नञ् मानबै कि ऊ बोली, भाषा आउ मानकीकरण के जरूरत से परिचित नञ् हथिन. हम ई ह्रदय से सविकारऽ हिअइ की ओहो ई कड़वा सच के मानऽ हथिन लेकिन कुछ अप्पन आउ कुछ आबे वला बाधा के लेल हरि झंडी नञ् दे हथिन. एकरा टाले लगऽ हथिन. 

    लेकिन हम्मर माननीय आउ साहित पुरोधा सउ बताओ कि मगही के कहिया तलूक बोली बनइले रहबो ? एकरा भाषा बने देबे के बड़का बाधक बनल रहबो ? भाषा के दरजा के मांग करभो आउ एकरा बोली बनइले रहभो ई दू तरह के बात काहे? आझ कय दशक से एकरा ले आंदोलन चल रहले हे आउ लगल हो. ऊ होतइ तउ ई काहे नञ् ?

     ई सर्व स्वीकृत नञ् तऽ बहु स्वीकृत तो होतई? जदि एकरा पर अब जल्दी काम नञ् होतइ तऽ ई हासिये पर के भाषा बनल रहतइ. जेतना लिखइ वला ओतना पढ़इ वला. ई कड़वा सच के गला के नीचे उतारहो. ई बात के भी ख्याल करहो कि मगही के सरकारी मानता मिलल हे. विद्यालय, महाविद्यालय आउ विश्वविद्यालय में एकरा पढ़ावे के अनुमति मिलल हे तउ फिर एकर मानकीकरन पर कोताही काहे? 

मानकीकरण के बादे बढतइ एकर विस्तार

ई सोलह आना सच हइ कि मानकीकरण के बादे मगही के विस्तार होतइ आउ लिखे पढ़े के काम में लोग बाग खुल के आगे अइथिन. हम्मर युवा पीढ़ी भी एकरा मन से तभिये स्वीकार करथिन. मानकीकरन के बाद मगही के स्वरूप बदल जइतइ---

  1. एकरा से मगही स्पष्ट, सुनिर्धारित हो जितइ आउ संप्रेषण, लेखन में कोई भ्रम नञ् रहतइ.
  2. समय लगतइ पर धीरे-धीरे मगही के सबद सर्वमान्य होते चल जितई.
  3. क्षेत्र विशेष मगही नञ् रहके एकरूप विस्तारित मगही बनतइ.
  4. जे एकर व्याकरण अभी तक हइ ओकर अनुसार इ संशोधित होते जइतन आउ फेन से एकर नया व्याकरण बनावे के जरूरत पड़तइ जेकरा में साहितकार आउ जानकार लगथिन. मगही भाषा विज्ञान के द्वार खुलतइ.
  5. घर से लेके बाहर के काम-काज में एकर प्रयोग बढ़तइ, शैक्षणिक, प्रशासनिक आउ संवैधानिक क्षेत्र में काम करइ में कोय भ्रम आउ बाधा नञ् रहतइ आउ लोग एकर प्रयोग खुल के करे लगथिन.
  6. मानकीकरण से एकर बड़गर शब्दकोष बनतइ और नयका सउद के समहित करइ के क्षेत्र व्यापक होतइ.
  7. रोजगार के विषय बनावे के एकर एगो बड़गर बाधा खत्म हो जइतइ.

       सब्भे भाषा के बेहतर आउ तेज विकास मानकीकरण के बादे होले हे. ई बात के नकार नञ् जा सकलऽ हे. शुरु में सउ भाषा के पुरोधा आउ पहल करइ वला के झेले पड़लइ. लेकिन देखहों कि जेकर पहल होलइ जेकर मानकीकरण होलइ ऊ भाषा आझ कहां हइ. ओकर केतना विकास हो रहले हे. समीक्षा आउ पड़ताल के बाद एकरा फैसला लेल जाए. हिन्दी के मानकीकरन लेल महावीर प्रसाद द्वेदी कइसे अकेले कमर कसि के आउ फेटा बांध के आगू अइथिन हल ई जग जानऽ हइ आउ आझ ओकर फल कि हइ ई भी केकरा से छिपल नञ् हे.

डॉ स्वर्ण किरण के अनुसार डॉ श्रीकांत शास्त्री मगही के मानक रूप के पक्षधर हलथिन आउ ऊहे एकर पहिल आवाज उठावे वला पहिल साहित पुरोधा हलथिन. विहान पत्रिका के संपादक रामनंदन, सरयू प्रसाद, ब्रज मोहन पांडेय नलिन जइसन साहित पुरोधा एकर बात उठैलथिन. नालंदा के वरीय साहितकार हरिश्चंद्र प्रियदर्शी, कोल्हान विश्वविद्यालय के डॉ लक्ष्णण प्रसाद, नरेन सहित कई गो जानकार आउ विचारक एकर पक्ष में हथिन, जे हमरा जानकारी हइ आउ बात-चीत करे से पता चलऽ हइ.

 हम एकरा पर मगही अकादमी के पूर्व अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा उर्फ कलम बेशर्मी, मगही के मगधेश कहलावे वला मिथिलेश, मगध विश्वविद्यालय बोधगया के मगही विभागाध्यक्ष डॉ भरत सिंह सहित कय गो मगही के विदमान से बात करलिऐ लेकिन उनखर ठोस जबाव सामने नञ् आवऽ हइ. इधर हाले में डॉ लक्ष्मण प्रसाद से खूब बात होलइ. ऊ एकर पूरा पक्षधर हथिन. ऊ सउसे पहले ईहे काम करे के बात कहऽलथिन. ऊ साफ कहऽ हथिन कि लोग मगही के भाषा बने देथिन कि मगही के बोलिए बनइले रखे चाहऽ हथिन? डॉ लक्ष्मण जी तऽ यहां तक कहलका कि ई काम सबसे पहिले संपादक के सुरू करइ के चाही. डॉ भरत सिंह से बात करे पर ऊ आश्वासन देलका कि हम एकरा पर मंथन करबाऽ हिओ. सउ क्षेत्र के मगहिया साहितकार, जानकार आउ समीक्षक के मिटिंग करि के एकरा पर पहल करबो. ई दिन जल्दी आबै हम ऐही कामना करबै.

 अभी के समकालीन दौर में मगही मानकीकरण के प्रयास के लेल आगू बढ़ि के पहल करइ वला में मगही पत्रिका के संपादक धनंजय श्रोत्रिये के नाम लेबै. जे कय साल पहल के भी मगही के पत्रिका में ई बात के उठैलका आउ ओकर बादो नयका अंक में कई गो साहितकार के एकरा पर आलेख छापलका. खाली आलेख छापे के काम नञ् बलूक ओकरा ले मंच से बहस आउ घूम-घूम के एकरा ले प्रचार-प्रसार भी कइलका. आउ सउसे बढ़के तऽ ई कि ऊ अप्पन मगही पत्रिका में एगो मानकता के अपनैलका आउ ओकरे लेके सउद के संयोजन कइलका. हम एकरा ले उनखा साधुवाद देबे. उनखर सार्थक पहल के मगही साहित इयाद रखतइ.

 मगही मानकीकरन कइसे होतइ एकरा ले कदम बढ़ावे के जरूरत है. समर्थन, मीटिंग, मंथन, सम्मेलन, कार्यशाला चाहे जे-जे काम करइ पड़इ ओकरा ले हम मगही साहितकार के आगू आवे के जरूरत हे. खास करि के मगही साहित संस्था, मगही पत्रकारिता से जुड़ल लोग बाग, अकादमी, विश्वविद्यालय आउ कॉलेज से जुड़ल प्रध्यापक, जानकार, आलोचक, समीक्षक के पहल करे के चाही. हमर करबद्ध निहोरा हे कि एकरा ले पहल करि के मगही के बोली से भाषा बने देहो. ऐहे एकर भाषा के दर्जा मिलइ के आउ सही मकाम तक पहुंचे के सउसे बढ़गर बाधा हे. भाषा विज्ञान के सिद्धांत के नकार ओकरा से मुंह फेर के, संज्ञान शून्य रहि के हम मगही के हानि पहुंचा रहलिए हे. हम मगही के विकास नञ् विनाश के अगुआ बनल हिअइ.

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कहानी

लिट्टियो जर गेल

डा0 लक्ष्मण प्रसाद

        ‘पुट-पुट . . .’’ करके सब झूरियो जर गेलइ। मोहरी अधसानल आंटा के आगू से हटा देलक। टीन के थरिया अलग हो गेल। ऊ बैठल-बैठल थारी आउ आग के देख ले हल। आग के धुइयां खतम हो गेल हल। आग के लमहर-लमहर सीक लहलहा रहल हल। मोहरी गोड़ पसारे लगल तो लोटा भी लोघड़ा गेल आउ पानी गिरे लगल। मोहरी देखियो के नञ सम्हार सकल। साड़ी भींगे के खियाल आल तऽ गोड़े से नीप देलक मुदा उठल नञ। मन अकबका रहल हल। पाछू दने भुइयां पर हाथ धर के गोड़ आगू पसार देलक। अइसन करके बैठे में ओकरा अच्छा लगऽ हल। मुदा तनिके देर में फेर . . . उख-विख लग रहल हल।

      कारा हाथ में पियाज के पत्ता लेके आ पहुँचल। बड़ मन से बोलल, ‘‘देख तो, आज केतना बढ़िया लिट्टी लगत। एकदम सोन्ह, सबदगर ! सतुआ भर के लिट्टी खैला तो आदो न´ हे। तखने सतुआ लइलूं तो पियाज न´। हाँ, जरी दू रुपिया लग गेल हे।’’ फेर ऊ थरिया दने देखलक आउ कहे लगल, ‘‘अरे . . . अभी तों अंटबो नञ सानले हें ?’’ एतना कह के ऊ मोहरी के बगल में बैठ गेल। कारा ओकरा बड़ी पियार से देखलक। मोहरी के होठ पर दरद भरल मुस्कान अइते-अइते रह गेल। तब कारा पूछे लगल, ‘‘की बात हउ ? भोरहीं से भुक्खल हूं। साँझ के दू गाल के उमेद जगल तऽ . . . ।’’

      मोहरी माथा उठा के अपन मरद कारा दने देखलक फिन आग आउ थरिया दने नजर झुक गेल। बैठल-बैठल कर बदले लेल चाहलक मुदा . . . । कारा बिन बोलले धंधउरा तर चल गेल। एन्ने-ओन्ने छितराल आग के समेटे लगल। आग फेन धुमाय लगल। मोहरी चुपचाप देखते रहल। हाँ कखनउँ-कखनउँ बैठे के आसन बदल ले हल। अब कारा से नञ रहल गेल। कहलक, ‘‘हम लिटियन सेंक लेम . .  . कम से कम अँटबा तो सान दे। जब भगवाने हमरा भनसिया बनइलक हे तब तों की करमें ’’ कारा के रसगर बात से मोहरी के ओठ विहँसल मुदा तुरते मलीन हो गेल। धीरे से बोलल, ‘‘हमरा से न नञ . . .।’’

      ‘‘काहे ?’’

      ‘‘हमरा . . . हमर बतिया समझहो काहे नञ ? हमरा से नञ् होतो।’’

      ‘‘आखिर बात की हे ? जरी सुनिअइ तो। . . . ।’’

      ‘‘तों गँवार के गँवारे रह गेला। तोरा की फिकिर हे। सास-ससुर रहतन हल तऽ डगरिन बोलइतन हल। तोहरा तो लिटिये सूझऽ हो। पहिलउँठ के बात हे। हम भी तो अनभुआरे (अनुभवरहित) हूँ आउ तों तऽ एकदम . . .।’’ उदास मोहरी एतना कहते के साथ लजा गेल। अँचरा सम्हार गोड़ के मोड़े लगल।

      ‘‘अच्छा . . . ई बात हे। तऽ हम की कोय दिगर हूँ। कह तो दुनिया के बोला दीअव। माय-बाप के रहला पर कारा दलान पर सूतत हल। एकदम निहचित। अब रात भर जगल रहत। डगरिन के चिरौरी करत। तोरा खातिर तो जान हाजिर हे फेर रात की . . . ।’’ कारा के आवाज में अपनउती भरल साहस हल।

      मोहरी अउरत अइसन लजा के बोलल, ‘‘जा . . . जा, तोहरा के कहऽ हको।’’ एतना कह के ऊ हउले से कंहड़े लगल। कारा उठके अधसानल आँटा वली थरिया भिर चल गेल आउ हाथ लगइलक। मोहरी तो ओजा हइये हल। दुन्नू अगल-बगल साथ-साथ हो गेल। फिन बोलल, ‘‘माघ के ठंढ हे। तों भितरे में रहतें हल। अइला पर देखल जात हल। तोरे तो सोंधय लगलव हल। . . . हम भी तो दिन भर के भुक्खल हूँ। . . . अरे हाँ, तोरा तो कलुआ माय कड़ड़ चीज से परहेज बतइलकउ हल।’’ कारा आँटा सननइ छोड़ के ओकर हाथ पकड़इत कहलक, ‘‘तोरा एज्जा रहनइ ठीक नञ हउ। रात के समय आउ एतना ठंढ। गाम पर के बात दोसर हल। रेंहड़-भूसड़ एक वीघा खेत मिलल। अभी कब्जो नञ होल कि दोसर गाम बसाबे पड़ल आउ गउंढ़ा के दस कट्ठा जागीर भी हाथ से निकल गेल। की सुझले हल कि . . . चल उठ।

      मोहरी हाथ के भार से उठइत उपहास अइसन बोलल, ‘‘भला, गरीब के असलिअत के पहचानऽ हइ ? हमनियों में भी तो ऊँचके  कमियां ऊँचा हो गेल।’’ धीरे-धीरे मोहरी अपन झोपड़ी में समा गेल। ई नावा गाम ईमे साल बसल हल। जन-मजूर के जमीन मिले लगल तो किसान ई सब के ऊसर जमीन पर घर-गाँव बसाबे लेल मजबूर कर देलक। आपसी प्रेम में कैंची चला के लोगन सब एक-दोसर से अलहदा हो गेलन। ई मजूरन सब नदी के छाड़न पर आ गेलन। ई सब एजय से काम पर जा हथ। अभी हाले एगो कमियां आउ किसान के बीच कहा-सुनी से लेके हाथापाई तक बात चल गेल। फेर की, हड़ताल हो गेल। कुछ दिन पहिले धान के कटनी होल हल। ई लेल कत्तेक के हड़ताल नञ बुझाल। कटनी में मोहरी के सतमां महिना हल। पहिलौंठ आउ कारा के परेम के चलते मोहरी कटनी भी ओइसन नञ कइलक। अब ई हड़ताल भी आ गेल। अखने तो मोहरी के चुल्हबो उपास पड़े लगल। बकरी तो मोहरी के साड़ी आउ कारा के धोती में बिक गेल। खाली बीस रुपइया बचऽ हल। ई हड़ताल के नजर ओकरो पर पड़ गेल। ऊ दिन आँटा आउ पियाज खरीदला पर पाँच रुपइया बचल हल।

      मोहरी भीतर से कहलक, ‘‘जरी पोआर तो . . . बिछा दा।’’ कारा मोहरी के दुखल आवाज से सहम गेल। पोआर बिछा के चद्दर उठइलक आउ हाथ में एगो लाठी लेके बहराय लगल। एतने में मोहरी गोड़ पसारते टोकलक, ‘‘पहिले लिट्टी तो सेंक ला।’’

      ‘‘दुत् . . .’’

      ‘‘भोरे से भुक्खल हा।’’

      ‘‘तों भी तो . . . फेर।’’

      ‘‘तोरा हम्मर किरिया . . . खा ला तब जइहा।’’ कारा मोहरी के बात टार नञ सकल। मुदा कहलक, ‘‘तब तक कलुआ माय के बोला देहिअव।’’ मोहरी चुप हो के मान लेलक। कारा दउड़ल आउ तुरंत में कलुआ माय के बोला लइलक। कलुआ माय पहिले तो बाहर में लगल घुड़उरा देखलक आउ कुछ सोचइत आगू बढ़ के भीतर हेल गेल। कारा झोपड़ी के दुआर पर से घूर गेल आउ लिट्टी लगावे लगल। ऊ हबरे-दबर लिट्टी गोलिअइलक आउ ओकरा आग पर सजा देलक। एकर बाद चारो दने से आग-राख समेंट के ओकरा ऊपर चढ़इलक। एतने में कलुआ माय के आवाज आल, ‘‘ कारा, कारा, ऐ कारा।’’

      ‘‘की बात हे चाची ?’’

      ‘‘जो डीह पर से डगरिन के बोलइले आउ।’’

      ‘‘अच्छा . . . तुरते’’ कहइत कारा डीह दने सोझियाल कि कलुआ माय फेन कहलक, ‘‘अरे कलुओ के साथ ले ले।’’

      कारा मलक के आगू बढ़ल आउ कलुआ के जगइलक। कारा तुरते में सब कुछ समझा देलक। ओकर बात सुन के कलुआ कहलक, ‘‘भैया, दिन भर से कुछ नञ खइलियो हे। देह कहना नञ करऽ हको। बुरा मत मानिहा। हिम्मते नञ पड़ऽ हो।’’

      कारा अकेले डीह दने चल देलक। माघ के महिना हल। जाड़ा के कनकनी ओइसने कि हाड़ कंपा दे हल। दलदली समा जा हल। जल्दी के चलते कारा खेते-बधारे चले लगल। बीच में जागीर के खेत मिलल। ठेहुना भर खेसारी देख के ओकर मन सिहर गेल। कहियो ई खेत के ऊ अप्पन समझऽ हल। एकदम अप्पन ! जागीर जे हल। बात ई हे कि किसान अउकात के हिसाब से कमियां के कुछ कट्ठा जागीर के नाम पर दे दे हल। एकर मतलब कि जब तक ऊ किसान हियाँ काम करत तब तक जागीर के खेत वला फसील पर ओकर एकसरुआ अधिकार बनल रहत। जागीर किसान आउ कमियां के जोड़इ के साधन होवऽ हल। कइसउँ आर-पगार लाँघते-लाँघते ऊ डगरिन दुआर जा जुमल। दुआर बन्द हल। ऊ डाहट लगाबे लगल। जानल-पहिचानल सोहरा भाय केबाड़ खोललक। कारा तुरंत में सब हाल-कथा सुना देलक। ओकरा ओजइ बैठा के सोहरा भीतर दने गेल आउ माय के सब बात समद देलक। सोहरा माय बूढ़ी हल। ढेर दिना के अनुभो हल। पैसा तसले में माहिर हल। दुआर पर आके बोलल, ‘‘बड़ ठंढ हइ। एकदम कनकनी। तों सब तो ओंहा चल गेलें। देख, मंगरूआ के हियाँ रुपिया बाकिये रह गेल। ढोंढ़बा के हियाँ तो सब कुछ बाकिये रह गेल। एक मन तो करऽ हउ कि ओहां कमइबे नञ करूं।’’

      तब की, सब एक्के अइसन होबऽ हइ ! बड़ी कसट में हइ मामा।’’ भला, कारा के की मालूम कि गरजू आदमी के सामने अइसने बोलल जाहे। गरज पर सब गछा ले हे आदमी। गरजू के सामने आउ की हे ?

      सोहरा माय रस्सी मजगूत करइत कहलक, ‘‘सब एक्के अइसन नञ होबऽ हइ तो की तों तुरते दे देमें।’’ बुढ़िया के अनुभवी उमर कारा पर उपहास कर के देखलक।

      ‘‘हाँ मामा, पाँच रुपइया तो नगद बोहनी कर देबउ।’’

      एक चोट आउ, ‘‘देख बेटा, मरद के जवान एक्के होवऽ हे।’’

      ‘‘चलइं ने, पहिले ले लीहें।’’

      अब दुनहूं चले लगल। चान अधरतिया पर आ गेल हल। कारा के गोड़ तो बुढ़िया के चाल से बंधल हल। आखिर अपन झोपड़ी तर पहुँच गेल। मोहरी कहंड़ रहल हल। डगरिन मामा भीतर चल गेल आउ कारा दुआर पर खड़ा होके कान खड़ा कर लेलक। डगरिन मामा के अइला पर भी कहंड़नइ कम नञ होल बलुक आउ बढ़िए गेल।

      कलुआ माय के हटाबइत डगरिन अपन हाथ लगइलक। तेल लगा के डांड़ा संसारे लगल। हिम्मत बंधाबे लगल कि एतने में मोहरी के चीख बाहर में सुनाय पड़ल। कारा के मन में उखबिक्खी लग गेल। फेर डगरिन मामा के आवाज सुनाय पड़ल, ‘‘आज खइलें हें ?’’

      ‘‘ न . . .ञ’’

      ‘‘भोरे ?’’

      ‘‘ऊंहूं।’’

      ‘‘लगऽ कउ कइ दिन से नञ खइलें हें।’’

      ‘‘हाँ।’’

      ‘‘कहिया से ?’’

      ‘‘परसूं साँझ से।’’

      कारा बाहर में सब कुछ सुन रहल हल। ओकरा बड़ दुख होल। एक साँझ के खाय में भी मोहरी हमरे खिला दे हल आउ अपने झूठ बोल के रह जा हल। ओकरा लगल कि कतना काने। दौड़ के मोहरी के भर अँकवार ले . . . मुदा कुछ न´, अब की होत! आखिर पाँच रुपिया तो अभी हल। तो की रुपिया आज लगि बचा रहल हल।

      बुढ़िया पइसा वसूले में जेतना माहिर हल अपन काम में ओतनइं अनुभवी। ओकरा अनेसा हो गेल। मोहरी कखनउं कहंड़ऽ हल आउ कखनउं कानऽ हल आउ कखनउं बेहोस हो जा हल।

      एकाएक मोहरी बड़ी जोर से कहंड़ल आउ चीखल भी। मुदा ई कि . . . छउना के आवाज नञ आल। कलुआ माय दीआ आगू बढ़ा के देखलक आउ काने लगल, ‘‘हे रे दइवा . . . ।’’ सोहरा माय भी गुमसुमा गेल।

      कारा पर तो जइसे पहाड़ टूट गेल। माघ महीना के ठंढ . . . ओकरो पर दखनाहा हावा। पहिले तक तो कारा के लगबे नञ करऽ हल कि जाड़ा हे मुदा अब तो खड़ा रनहइ भी मोसकिल हो गेल। ओकर सरीर सिहरे लगल। रोमां-रोमां तक कपे लगल। ओकर नजर आग पर गेल, जेकरा पर लिट्टी चढ़लइलक हल। ओकरा ठंढ से बचे के चाही। लपक के आग तर गेल। देखलक कि लिट्टियो जर गेल हल।

-एसोसिएट प्रोफेसर, पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, कोल्हान विश्वविद्यालय, चाईबासा
माफी, वारसलीगंज, नवादा, मो. न. 9661504673

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कहानी  

आउ बिष उतर गेल

सुधाकर राजेंद्र

   गड़ा के दबंग सेना के ओर से आज पिफर गोली चलल। दलित आउ दवंग के बीच तनाव बढ़ते जा रहल हल। दवंग के नेता हलन विजय सिंह आउ दलित के सेना प्रमुख हल कुनकुन रविदास। दबंग आउ दलित एक दूसरे के खून के पियासल हलन। दूनो गाँव के राइपफल एक दूसरे पर गरज रहल हल। एगो समय हल कि दूनो गाँव के बीच बड़ी प्रेम हल। जहिया से दूनों के निजी सेना बनल बखेड़ा शुरू हो गेल। कुनकुन आउ विजय सिंह दूनो एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बनल हलन। दूनो एक दूसरा से मिल जाथ त पता न का का हो जाए?

      विजय सिंह के खेत एक अरसा से विरान पड़ल हल। पाटी वाला खेत पर पावन्दी लगा देलक हल। कुनकुन के डर से कोई भी मजूर खेत मे न उतs हल। विजय सिंह बाहर से भले ही शेर दिखs हलन अन्दर से टूट चूकलन हल। खीझ से दहशत पफैलावेला गोली चला दे हलन। एही कारण से उ लाल सेना के आँख के काँटा बनल हलन। विजय सिंह के द्वारा चलावल गोली के जखम अब भी न भरायल हे कुनकुन के बाप रघुदास के पैर के। थोड़े सा से बच गेलन हल रघुदास न तो टें बोल जयत हल। रघुदास साँप विच्छा काटे पर उपचार करे में चर्चित नाम हल। इलाका भर में इनखा कउन न जानs हल।

      साँझ के समय हल। विजय सिंह कमियाँ के अभाव में चाराकल से कुट्टी काट रहलन हल। बेटा अजय गाँज से नेवारी ला रहल हल। बेटी राध नेवारी लगा रहल हल। पिंज से नेवारी खींचे के क्रम में अजय के गेहुमन सॉप काट लेलक। अजय सिंह घबराएल पिता से बोलल-हमरा गेहुआ सांप काट लेलको बाबूजी, अब जल्दी कहीं ले चलs

      विजय सिंह के पास कई लोग जुट गेलन। सब के सलाह भेल कि बहरामपुर के रघुदास के पास ले चलल जाए, पर दबंग लोग मना कयलन। तोरह गोली के जखम अभी भरवो न करल हे रघुदास के पैर के। ओकरा ही जायवाला के जिन्दा न छोड़तो ओकर बेटा कुनकुन दास। साँप के विष चढ़ते जा रहल हल।

      बरसात के महिना हल। करिया अन्हेरी रात कच्ची सड़क। मील भर बहरामपुर गाँव। बहुत सोंच विचार के बाद दबंग लोग से विरूद्ध हो के विजय सिंह जान के परवाह कयले वेगर बेटा के सांप के जहर से मुक्ति ला पड़ोसी के ट्रेक्टर के इंजन पर सवार हो के पहुँचलन बहरामपुर रघुदास के घर। पहिले तो विजयपुरा से ट्रेक्टर आवित देख के लोग के कान खड़ा हो गेल। कुनकुन अप्पन लाल दस्ता के साथी के सतर्क कर देलक आउ स्थिति के समझे लगल। लाइट जलावित टेरेक्टर आ के रूकल। कुनकुन दास के दरवाजा पर। विजय सिंह के देख के लोग चकित हलन। विजय सिंह पुत्रामोह में प्राण के भी बाजी लगा चूकलन हल, पर दलित लोग स्थित के भाँप के विजय सिंह के भरपूर साथ देलन। संउफसे गाँव में इ बात पफैल गेल कि विजय सिंह के बेटा के साँप छू देलक हे, उपचार ला अएलन हे। विजय सिंह रधुदास के नमस्कार कयलन। कुनकुन विजय सिंह से हाथ मिला के साँप काटे के बारे मे जानकारी लेलक। गाँव के सबलोग उपचार में लग गेलन। दस बजे रात तक उपचार चलते रहल। साँप के जहर धीरे-धीरे उतरे लगल। रात बारह बजते-बजते अजय सिंह बिलकुल चंगा हो गेल। एही बीच कुनकुन, विजय सिंह आउ उनखर साथ आवे वाला आदमी के भोजन लगवयलक। विजय सिंह पहिला दपफे कुनकुन रविदास के घर खाना खयलन आउ बेटा के प्राण रक्षा ला कुनकुन आउ उनखर साथी लोग के बधई  देलन। लौटते बखत रघुदास से अप्पन गलती ला मापफी मांगलन। उ रघुदास के पैर छुएला जइसही झुकलन त उनखर ऑख से लोर के कुछ बून्द उ जखम पर टपक पड़ल जे विजय सिंह के द्वारा चलावल गोली से बनल हल। लाख मलहम लगावे से भी जउन जखम न भरल हल पर आज उ विजय सिंह के आँख के लोर से भर गेल। उधर विजय सिंह के गाँव के दबंग सोंच रहलन हल कि आज विजय सिंह जिन्दा लउट के न आवत, पर विजय सिंह अपन बेटा के साथ भला चंगा होके लउट गेलन त दबंग लोग के भरम टुट गेल। आज दूनो गाँव के बीच पुरखन के संजोगल प्रेम पिफर से लउइ गेल। अब साँप के साथे आदमी के विष भी उतर गेल हल।

---दक्षिणी दौलतपुर, राजाबाजारजहानाबाद – 804408, मोबाइल – 943108337

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कहानी                                

चोट

     अजय

 प्रभात से पहिल मुलाकात एगो कवि सम्मेलन में होल हल।  रचना तऽ साधरन हल जइसन कि पहिले पहल नयका लिखताहर लिखऽ हथ मुदा सुरीला कंठ से जे गीत सुना रहल हल, बड़ी नीक लग रहल हल। लोग आनंद  विभार हला।  मीठ आवाज में जइसे मिसरी घुलल समाजिक विसंगति के तार-तार करे वला रचना।

 हमनी के परिचय पाती होल। गीत गलबात के सिलसिला पड़ल आउ परेम परगाढ़ हो के आपस में एक दोसर के घर तक आवाजाही में बदल गेल। हम प्रभात के सुझाव देलूं हल—‘‘ अभी मन से पढ़-लिख के गियान अरजन करऽ।  ऊ तोहर पहिला काम हो।  पढ़-लिख के कुच हासिल करऽ घर के काम-काज में सहियोग करऽ।  ओकर बाद तऽ तोहर कंठ में सरसत्ती विराजऽ हथुन।  जिनखा पर सरसत्ती के किरपा होवऽ हे ऊ विद्या-बुद्धि के ज्ञाता होवऽ हथिन। ’’

      प्रभात एगो समझदार विद्यार्थी नियन बात सुनलक हल आऊ अपप्पन कर्म के राह पर चल पड़ल हल।  ऊ अप्पन कर्म के राह पर चल पड़ल हल। ऊ अपप्न पढ़इ के धुन में रमल रहल। आऊ एक दिन इंजीनियरिंग के परीक्षा पास कर गेल। जैसे पुनिया के चान धीरे-धीरे बढ़इत एक दिन पूर्ण आकार में परघट होके दुनिया के इंजोर कर दे हे  

नदी के शांत धारा के नियन एकर साहित्य में रूचि धीरे-धीरे चलइत रहल।  कॉलेज के सांस्कृतिक काजकरम गीत-संगीत, कविता, कहानी, नाटक आऊ खेल-कूद में अप्पन बहुमुखी प्रतिभा के परिचय देत रहल।

 हम अप्पन दलान में बइठल ‘‘ सारथी के पढ़ रहलूं हल कि प्रभात आइल आऊ हम्मर पांव छू के खड़ा हो गेल।  हम अकचकाल उनखा देखलूं तऽ खुशी से गद्गद हो गेलूं।  गालिब के एक शेर निकल पड़ल—कुधा का शुक्र है कि आप मेरे घर आये मैं हैरान सा कभी आपको कभी अपना घर देखता हूं।

   हम बड़ी सनेह से उनखा बइठइलूं हल।  ऊ मिठाई के पाकिट आगू बढ़ावइत कहलका हल—‘‘ नौकरी लग गेल हे।  मुंह मीठा करथिन।’’  आऊ अप्पन हाथ से मिठाई खिलैलक हल।  हम झटपट घर गेलूं आउ बुतरू के लोटा-पानी ले कह के तुरंते दलान पर लौट अइलूं हल।

     प्रभात खोसी से चहकइत बोल रहल हल—‘‘ हम्मर पोस्टिंग गया हो गेल हे।  अप्पन घर-इलाका हे।  बिहार शऱीफ से तऽ दू घंटा के रस्ता हे। गया बिहार के सांस्कृतिक जगह हे।  हमरा ले तऽ सोने पे सुहागा हे।

   हम दुन्नू गीत-गलबात में मसगुल हो गेलूं।  पता नञ् चलल कब सांझ होल, कब रात पहर, डेढ़ पहर बीत गेल। ऊ रचना पढ़े लगला हर आऊ बात-विमर्श चले लगल हल।  कुछ पढ़लका हल मुदा कुछ कमी हल।  छंद, भाषा, काव्य सौंदर्य के बारे में विस्तार से बतइलूं।  गीत के लय आउ सही सब्दन के प्रयोग आउ लक्षणा, व्यंजना, अंभिधा, अलंकार आउ ढेरों बात के बुहत बारीकी से चर्चा होल।  हम उनखा छंद प्रभाकर,  जगनाथ प्रसाद भानु के पढ़े के सलाह देलूं।  प्रभात मंभमुग्ध हो सुनइत रहला हल।  जहां बुझा हल अप्पन बात भी रखऽ हला।  ढेर सन प्रशन भी कइलका जइसे हिन्दी के इतिहास कइसे आउ कहां से हे?  हम विस्तार से बात रखलूं हल।  संस्कृत के विलुप्त होवे के बाद हिन्दी के शुरूआत होल, मुदा हिन्दी बने में बाली आउ लाक भासा के सहियोग रहल। भारतेंदु, हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामचंद्र शुक्ल आउ अनेगन विद्मान के बारे में विस्तार से बतइलूं।  

हम ओकरा बतावे लगलूं हल  – ‘‘भक्तिकाल हिंदी के स्वर्णयुग कहल जा हे, जहां चांद सुरूज नियन तुलसी, सुरदास, मीराबाई, रैदास आउर कबीर सन कवि जगमगा रहलन हे। आझ समाज आऊ परिस्थिति बदल गेल हेऽ, समय आदमी के पास कम रह गेल हेऽ, लेल छोट रचना लिखल जा रहल हे। उपन्यास, कहानी आझ जीवन के जटिलता के गहराई से लिखल जा रहल हे। साहित के स्वर जरूर कमजोर होल हे मुदा आझ साहित्य समाज आउ अदमी के दुःख से जुड़ल हे। समाज के गतिविधि के धइयान से परिभाषित कर रहल हे। तरह दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र आऊ समाजशास्त्र पर बात विचार होत रहल। रात खइलका पीलका आऊ सुतला मुदा दिमाग में हलचल होत रहल। उत्सुकता से भरल उनखा रात में कब नीन लगल पता नञ् चलल। सुरूज एक बांस ऊपर चढ़ आइल हल तऽ उठैलूं हल – ‘‘प्रभात! प्रभात! उठ केतना दिन निकल आइल हे, ऊ उठला हल आऊ नित्य क्रिया से हो के स्नान धियान कइलाका हल, आऊ नास्ता करके गया ले लौट गेला हल।
 आझ के समाज तऽ टी.वी. आउ कंप्यूटर से चिपक गेल हे। दुनिया के समाचार जान हे मुदा पड़ोस के कि हाल हे ओकरा से अनजान हे। अदमी अपने आप में सिमट के रह गेल हे, मुदा एहां के साहित्यिक गतिविधि से कई लोग जुड़ गेला हे साहित्य के साधना करे वला तऽ दू तीन गो हका मुदा बाकि लोग फालतू हका। उनखा पढ़े लिखे से मतलब नञ् हे। खाली वाहवाही लुटे के फेर में रहो हका। दोसरो के रचना पढ़ के बड़ हो जा हका, अखबार में छपास के भूख हे। अप्पने मने बड़गो विदमान बन गेला हेऽ जा हका।
 एक जगह कवि गोष्ठी रखल गेल, जेकर अध्यक्षता कइलका डा. इकबाल साहब, कल के अखबार में पढ़लूं तऽ दंग रह गेलू अध्यक्ष के नाम उ अप्पन छपा देलक हल। हम पत्रकार से मिललूं तऽ कहलक – ‘‘हम तो डाक्टर साहब के नाम अध्यक्ष में लिख के भेजलूं हल’’

फेरू हम पूछलूं – ‘‘मनु, उ गोष्ठी में तऽ हमहूं हलूं मुदा हम्मर नाम नञ् हल’’। पत्रकार

महोदय चुप हो गेला हल, झूठ पकड़ा गेल हलऽ। कुछ देरी बाद सोचइत बोलल – ‘‘हम तो तोहरो नाम लिखलूं हलऽ।’’

 हमरा मालूम होलइ सभे ललन प्रसाद के कइल करतूत हेऽ। पत्रकार के होटल में ले जा के नास्ता पानी करइलका आऊ खबर उनकर मन माफिक छप्पल आऊ बातविचार कइल तऽ मालूम होल, लोग दोसर के रचना पढ़ऽ हका आऊ वाहवाही लूट के अधिकारी से अप्पन सुआरथ साधऽ हका।
 
परवाना एगो मुशायरा आऊ कवि सम्मेलन कइलक रहल हे। हमरा से लगाव रख हे।  मुदा ढेरों शायर ओकरा बारे में कहऽ हथ कि उ तो दोसर के गजल सुनावऽ हे। जब मुसायरा के पोस्टर साटलक तऽ जेकर सेकर नाम देलक आउ हमनी के नाम हइये नञ् हलऽ, मन पर चोट लगल हल जे कविता केनञ् जान हे साहित के महंथ बनल हे, अखबार में लम्बाचौड़ा कार्यक्रम के बखान हो रहल हे।
 
मुदा साहित के सच्चा साधक भी दिन रात मेहनत कर रहला हे। ओकरा में प्रभात दिन पर दिन चमकते चलल जा रहल हे, ओकरा एकएक रचना एकदम तरासल हीरा नियन चमक रहल हे। ओकर सुनावे के ढंग आउ मधुरकंठ लोगन के हिरदा में समा रहल हे। उनखर परसिधी दिन दोगना रात चौगना हो रहल हे। दूर दूर से बोलाबल जा रहला हेऽ। बड़कन कवि शायर से जुड़ रहला हेऽ। आझ अप्पन सीमा लांघ के देशविदेश में प्रोग्राम दे रहल हेऽ। देश के स्तरीय पत्रिका में रचना छप रहल हे। टी.वी. आऊ राष्ट्रीय कार्यक्रम में बोलाबल जाय लगला हे।

 उ जेतना जगह आवऽ जा हल। नामी गिरामी साहितकार से मिल जुल हलऽ, जे बात विचार होवऽ हल, उ हमरा बड़ी आदर के साथ सुनावऽ हलऽ।  मिले के नञ् मोका हल तऽ बोलाब हलऽ। हमहूं उनखा बुद्धि-विचार आऊ बेवहार से खुश हलूं। हमनी के बीच एगो रतन निखर के चमक रहल हल। हम ओकर उन्नति के, रचना के, खूब बड़ाय करऽ हलूं। साथ ही बढ़िया किताब पढ़े लेल बेताब भी हलूं – हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत के बेतेक किताब घोर के पी गेल हल। लोकभाषा मगही से भी ओकरा लगाव जुड़ाव हल, कहऽ हल – ‘‘आझ के समय में लोकभाषा पर धियान देना जरूरी हे नञ् तऽ ई मर जात। जइसे दुनिया के ढेरो भाषा आऊ बोली खतम हो गेल हे।’’

 ओकर अइसन विचार सुन के हम्मर हिरदा जुड़ा जा हलऽ। लगल हल हम्मर मन के बात कह रहल हे। हम आशा करऽ हलूं एकर जरा दूर-दूर तक फैले इ साहित में अमर कृति के साथ सदा अमर हो जाय।

 राजगीर महोत्सव के आयोजन हलऽ। प्रभात के ही देख-रेख में आयोजन हो रहल हलऽ। आयोजन कुछ जादे नञ् हल चार-पांच बाहर के कवि शायर आऊ कुछ स्थानीय कवि हला। हमरा ई समाचार के भनक लगल हल कि राजगीर में कवि सम्मेलन होवे जा रहल हेऽ।

 हम कविता पाठ करेके बड़ी उत्सुक नञ् रहलूं हाऽ, मुदा अतिथि कवि के सुने के लालसा जरूर रहल आऊ नाम छपावे लेल बड़-बड़ संपादक आऊ विद्मान के चापलूसी नञ् कइलूं हा। रचना लिखलूं, अच्छा लिखाल तऽ आत्म खुशी होल। मोका मिलल तऽ सुना देलूं। पैसा होल तऽ किताब छपा देलूं। समाज के विसंगति, शोषण आऊ आदमी के भीतर बइठल शैतान के बाहर करऽ हूं।हम कलम के सिपाही अप्पन काम कर देहुं तऽखुशी होवऽ हे।

 हां तो, निहचित समय पर राजगीर सम्मेलन होल, केते कवि आस-पास के अखबार में नाम देखलूं। सफल आयोजन लेल जिला अधिकारी से लेके मुख्यमंतरी के बधाई पढ़लुं। मन खुशी से भर गेल। मुदा तनी दिल पर चोट भी लगल। प्रभात जब आसपास के कवि के बोलइलक तऽ हमरा काहे छोड़ देलक?  हमरा में कि दोष, जे उपेक्षित हो गेलूं। जरो सन हम भी वाह-वाही लूट लेलूं हल तऽ ओकर कि कम हो जात हलऽ? हो सके कोय आउ कारन लेल? ई कि हम जलकुंभी सन ओकरा झाप लेही?

                    --ऊर्जा नगर, बी 82/162, गोड्डा (झारखंड), फोन – 9546296256

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मिथिलेश के तीन गो लघु कथा

1. मछली के माय पुतर सोक

‘‘मर चलंती देखके सब जरऽ हे। जरला से की होतइ...? कसइया सरापला से गाय मरऽ हे? हमरा देख के हंसऽ हलइ।’’ अइसइं अपने-अपने भुनभुनाइत फुलिया माय नयकी गाय के गोबर गोंड़ी पर से लइऎलक आउ पलानी लीपऽ लगल। ढेर दिन से गोंड़ी खाली हल। घोरो बिना खखन गेल हल। तिलसकरात नियन परब मे तऽ कीनल घोरही दही पर शंख बजऽ हल। शुभ दिन छोटका निकलल कि दिन फिरल। छठ में आल हल तऽ बाप के हाथ में पइसा देबइत समृद्धि देलक हें – ‘‘घर बनाबइ में हाथ लगा दिहा।’’ की सिहावऽ हे तलेसरा माय। कोठा चढ़ि के चउल करतोः‘छत पर सुखे सितवा धान। चढ़के ताके उग्गल धान।’ मुहों हउ चाने नियन। भाग तऽ ठोर लटकल हउ चोइयां के छिल्लल फरका नियन।

 ओकर ध्यान घेरवारी दने चलि गेल। हाले पांच कट्ठा डीह लिखइलक हल। बेटा से कहि के एगो चापाकल गड़इलक आउ अप्पन दम पर बारह विध लगइलक। किनारे-किनारे दूधारी भुट्टा, जे मोछा रहल हल। लगे जइसे घेरवारी के पहरेदार खड़ा करि देलक हे। सौंसे खंड के चार भाग में बांटि के फूलकोबी, धनियां, बैगन आउ मिरचाय लगइलक हल। अखनी ओकर जादे समय घेरवारिये में बीतऽ हल। पुतहू भंसा देखऽ हली। ऊ पलानी लीप के घेरवारी वला कल पर चलि गेल। तखनइं पुरवारी गली से समइयावाली भुनभुनाइत बकरी के डोरी पकड़ले खंधा दने जा रहल हल, ‘‘छउंड़न धधइले हें। गाम के नहंस करा देलकइ करफटुअन।’’ भुनभुन्नी सबादइत फुलिया माय पूछलक,‘‘ हलइ समइयावली?’’

 ओकरा काटऽ तऽ खून नञ्। मकर के डांट से आड़ फुलिया माय जनाल नञ्। देखत हल तऽ गुमेसुमें गली पार करि जात हल। अब तऽ गोल मटोल बोलहे पड़त। ऊ कहलक, ‘‘खारी कुइमा पर सब बोल रहलथिन हल।’’ ‘‘की बोलऽ हलथिन?’’ फुलिया माय पुछलकी तऽ ऊ कहलन,‘‘हम अधछोछेरे सुनली। कउची दो अखबरवा में निकलले हे’’, बोलइत ऊ आगू बढ़ि गेली। फुलिया माय सोंचलक – ‘हम्मर दुइयो बउधे-बकाल हे, छोटका बाहरे हे, हमरा एकरा से की लेना-देना? जाने जो, ने जाने जांता। जाहि खाय, ताहि पाप।’

 फुलिया माय एघो छितनी में बैंगन तोड़लक आउ धनिया उखाड़ि के मुट्ठे-मुट्ठी सरिअइलक मोदिया दोकान में तउला आल। हिसाब हफता में करऽ हल। गाय के दूध भी बूथवला के नवा दे हल। सांझ गली घूमें निकलल तऽ काने में कुछ अशुभ के भनल मिल। ऊ पैरे पर लउटि गेल। ऊ मकान बइठल बाउ के राह देखऽ लगल। बैर डूबते-डूबते माथा पर केतारी के अगड़ा लेल दुक्खो पहुंचल तऽ जबडवाल आंख से फुलिया माय पूछलक – ‘‘गामा में की झूठ-फूस सब उड़इले हे?’’

 ‘‘तों कथई ले हदिया रहली हे....लोटा-बेटा बहरे चमकऽ हे। कूछ नञ् भेल....बैंक डकैती में जेल गेल। देख लिहा.....बेटा बंका वीर हे....वहउं से दाल-तेल घर भेजत। बाहर रहला से अच्छा हे, जेल में हे। बुझऽ तऽ बेटा नौकरी पर गेल हें। मछली के माय पुतरसोक मनावऽ हे,‘‘बोल के दुक्खो गोड़-हाथ धोवे ले घेरवारी चलि गेल।’’

2. चार दिना के चांदनी

क दिन हम सपना में चलनी-बढ़नी के झगड़इत देखलूं। चलनी जब बढ़नी के दुसलक – ‘‘तोरा से गेल-गुजरल के होवत? भाग तऽ गल्ली-कूची, नाली-मोरी में थोथुना मारले चलऽ हे आउ अइले हे हमर सहंसर छेद गिनइले। तों बोढ़-सोढ़ के साफ करऽ हें, तऽ हम अनाज निखमन करऽ ही, खाय जुकुर बनावऽ ही।’’

 एतना सुन के बढ़नी तमतमा, खरखरा के बोलल, ‘‘झझका अखबार उठा के देख ले, देश के प्रधान मंच हमरा प्रेम से धइले स्वच्छ भारत के संदेश दे रहला हें, तोरा के हाथ में लेके परवचन देबइत फोटू खिंचलकउ ?’’

 सुनते मातर मुंह बनाके, ठोर बिचकाके चलनी बोलल,‘‘देखबइ ने देसवा चकाचक हो जइतइ। अगे सुनलहीं नञ् कि मगही के कबीर मथुरा प्रसाद नवीन जी की कहलथिन हें – ‘‘दिल न बदलतइ इयारन के दिलदार बदलि के की करतइ, जब गांव के लोग बदलतइ नञ्, सरकार बदलि के की करतइ? बेचारे मोदी जी की करता, जब अदमी के संस्कार नञ् बदलतइ। अखनी फोटू खिंचाबइ ले ढेर झड़ुआ पकड़-पकड़ फोचू खिंचा रहला हे, अखबार में छपि रहला हे। तों ऊ फोटुए देख-देख नितरा रहले हें। हुंह...।’’

 हमरा अचरज भेल, बेचारी बढ़नी झमरा के गिर गेल। हमरा इयाद पड़ल हाले छठ परब गुजरल। हमर गली के पांच सात गो कमसिन लड़की झड़ुआ चला रहल हे। तीन चार गो छउंड़ कुदार से अगल-बगल के घास छील रहल हे। दू गो जवान टोकरी में उठा-उठा गनउरा के ढेरी पर फेंकि रहल हे। एक लड़का चूना के झोरी लेले गली के दुन्नूं छोरी पर उज्जर पट्टा बिछा रहल हे। तीन-चार लड़की बीच-बीच में रचि-रचि रंगोली पारि रहल हे, अंगरेजी में वेलकम लिख रहल हे। तहिया हम गली पार कइली तऽ रंगोली भिजुन बिना ओकरा पर गोड़ रखले, वेलकम के उदबिलाव नियन पार करइत सम्हल-सम्हल के गोड़ रखली हल। खैनी के पिरकी तक नली के सामने मुंह झुका के फेंकली, जहमां रस्ता पर एक बुनका नञ् गिरे। पहिल अरग खतम, दोसर भोरबला भी पार। सांझ के देखऽ ही तऽ घर के बोढ़ना-सोढ़ना, गू-मूत से गली गेन्हाल हे। अचरज तऽ तब भेल जब एगो रंगोली पारेबली लड़की के सूप भर बोढ़ना अपन दुआरी के सामने अंदरे से उधिया देलक। एक डेग आउ बढ़इतूं हल तऽ हमर हुलिया देखे लायक बनि जात हल। हमरा काहे दो कुत्ता के पुच्छी इयाद आ गेल। अइसने देख के कोय गुमनाम कवि गुनगुनाल होत चार दिना के चांदनी, फेन अन्हरिया रात।

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3.बिन पानी सब सून

म केकरो मुंह से सुनबो – ‘फलां पानी नियन पइसा बहा रहलइ हें’, तऽ हगमुरकी लगि जइतो। ई लेल नञ् कि पइसा बर्बाद करि रहले हें। पइसा हइ तऽ जे करे। शुभ में खरच करत हल तऽ अच्छा बकि अशुभे प्रिय हइ तऽ उड़ावे, के रोकऽ हइ? हमरा तऽ चिन्ता होतो – ई कहावत से पानी के महत पइसा के तुलना में कमतर हो जाहे। एकरा सुन के तऽ पइसा अइसइं अइंठल चलऽ हे, आउ अगराल चलत। बेचारा पानी अइसइं तऽ पानी-पानी रहऽ हे, आउ गत्तर हो के हता जात। हमर छोट मन पानी आउ पइसा के ई बेमेल तुलना से आउ छत्तन-पत्तन में उलझि-पुलझि जइतो। हम सोंचबो – रहीम दास के दोहा अप्रासंगिक हो गेल? – रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चून’ में तऽ रहीम दास जिनगी के सार बतला के पानी के महत सिद्ध करि देलका। पइसा संबंध में आज तक अइसन कोय नञ् कहलका हे, जे जनकंठ में बसल युग-युग तक भटकल अदमी के रस्ता देखला सके। पइसा जीअइ के साधन भले हो सकऽ हे, साध्य नञ्। सेहो अदमी के उत्पाद आउ ओकर हाथ के मैल बराबर बस। कबीर दास तऽ पहिलइ कहि देलका – साईं इतना दीजिए, जामे कुटम समाय। मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।’ आउ भूख मिटल नञ् कि पियास लगल। भौतिक जल के जरूरत होबे इया झानामृत के। अइसे इन्सान के अन्दर भी झान के भूख जगऽ गे, बकि ऊ भूख भौतिक संसाधन से नञ्, अध्ययन, मनन आउ चिंतन से मिटऽ हे, जे भाव जगत के अलोधन हे, अनुपम, अगोचर, अकथनीय।

 भूख लगला पर अदमी खाध पदारथ खोजऽ हे, पइसा नञ्। पइसा कटकटा के खइते कोय केकरो कहइं देखला हें? कहइ के हे कि पइसा से गहूम-बुंट खरीदल जाहे। ठीक से सोंटऽ तऽ गहूंम-बूंट पइसा नञ् देहे, बलुक धरती, जल आउ अदमी के श्रम, जेक बदउलत रोटी मिलऽ हे। पइसा कहऽ हे, हम पूंजी ही, जेकरा से सब कुछ संभव हे, तऽ पानी कहऽ हे – हम ही, तऽ सब कुछ संभव हो सकऽ हे। पूंजी तऽ अदमी के बहका के सब कुछ हथिया लेबइ के दंभ भरऽ हे। हथियाइयो रहल हे। हवश देखऽ, पानी के बोतल में भरि के मोटा रहल हे। भूल मत पूंजी, देवती भी खुश होवऽ हथ तऽ जल ढारला से, पइसा चढ़इला से नञ्। उनखा की कमी हे कि पइसा हंसोतता। पानी तऽ उनखा पर ढरा के धरती के तृप्त करऽ हे, जेह से खुश हो के धरती मइया अन्न दे हे, फल दे हे, फूल दे हे। बगदल पूंजी बहिअइले चलऽ हे, तऽ उम्मत पानी कहर मचइले पटोर करि देहे। सच पूछऽ तऽ हीरोसीमा....नागासाकी दहलऽ हे आउ पानी उमता हे तऽ सुनामी आउ हुदहुद सन हद्दस पइस जाहे। पूंजी उड़ान भरऽ हे तऽ चान-मंगल पर सब से पहिले पानियें तलासऽ हे। खोजऽ–खोजऽ आउ धरती के पानी के जियान करऽ। पानी तरसइते रहतो। ई नुक के पताल जइतो इया सागर में सेंगरि के बादर बनतो। कहावत न सुनला हे – नदिया के पनिया नदिये जो। ई से हेऽऽ, जलदेवता के अराधऽ तबे मुंह से पानी बचतो, नञ् तऽ पानी बिन मुंह तीन दने हो जइतो।

--स्थापक व संरक्षक अखिल भारतीय मगही मंडप, प्रधान संपादक सारथी, वारिसलीगंज

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कविता-कियारी

डॉ लक्ष्मण प्रसाद के एगो कविता 

कउनो ठीक न् कि

घड़ीघंट के घनघनाहट

या अजान के तान

सुनइत-सुनइत

महासिंधु में समाल आदमी

अचक्के चिथरा-चिथरा हो जात

ओकर परखच के पहचान भी मिट जात

आउ पहचानइ वला इलाका

महल्ला, भाय-बंधु, पूरा जनमानुख

चराचर प्रकृति

दहल उठत

बम के फटनइ से।

डर हुअइं पर जादे धधक रहल हे

जहाँ सब दिन सथाल-सेराल

रहऽ हल

आउ आदमी, आदमी के साथ

चिन्ह-पहचान, मेल-मिलाप

मुलाकात-बात करते-करते

एक साथ जुड़ जा हल,

मिट जा हल

इलाका-इलाका के दूरी

गाँव-गाँव के घेरावंदी

जात-परजात के डिढ़ारी

हट जा हल

धरम-सम्प्रदास के परदा

बस, आदमी आदमी रहऽ हल

आदमी आदमी के खातिर -

ओहे हाट-बजार, मेला-तमाशा

टीसन, चौराहा-चौपाल

हियाँ तक कि छठ-एतवार

मास-मलमास

देबी के उत्सव

जलमअठमी के उल्लास

रथ-जतरा

मोहर्रम के मातम,

मजार पर मेला

जुम्मा के नेवाज

पावापुरी के रोशनी

के बीच में डर पइर रहल हे

बम मानव बम के अनेसा बनके।

सुरक्षित न् रह गेल हे

मानव के मानव बनाबइ वला

ज्ञान-केन्द्र, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय

जिनगी देबइ वला अस्पताल

देश के आरथिक उन्नति के पेंच

कल-कारखाना

आतंकवादी तो बस, मोटर

रेलगाड़ी से लेके

हवाई जहाजों में सवार हो रहल हे।

डगर-डगर पर दंश

सड़क से संसद तक आतंक

आउ ओने सुलग रहल हे जंगल।

जुआन-जोग कनियां

भयभीत हे

काहे कि ओकर कोख में

पल रहल हे साँस

ढोंढ़ी तर के हुलचुल्ली

अभी सवाद भी न् पावऽ हे

कि कान अकानऽ लगऽ हे

पता न्  कखने कउन कोना

धमाका से थरथरा उठत।

आउ एन्ने -

क्रान्ति के कलेवा देवइ वला आदमी

घर के भीतर टी0भी0 देख रहल हे

क्रिकेट

घर-घर के कहानी

नंग-अधनंग शरीर पर चिपकल

उत्पाद बेचइ के अउजार

ओने अभेद सुरक्षा से घिरल राजनेता

के जीभ लपलपा रहल हे

पक्ष-विपक्ष

सिरफुटौवल के देखावा करइत

सत्ता के चोख माल

मिल-बांट के चख रहलन हे

आउ एने जनता

जनता

जात-धरम

नेम-करम के भाखा

भख रहल हे।

-एसोसिएट प्रोफेसर, पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, कोल्हान विश्वविद्यालय, चाईबासा

माफी, वारसलीगंज, नवादा, मो. न. 9661504673

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कविता-कियारी

1. गजल

                               दीनबन्धु          

मानऽ ही रकसन के आगू, जान बचाना मुश्किल हे।

अनय दंभ भिर झुकते जाना, पीठ देखाना बुजदिल हे।

सोना चांदी माल खजाना, सब ओकरे हे कब्जा में,

हम्मर सब सुख साधन ओहे, आज जवाना कातिल हे।

खून पसेना बहा बहा के, धरती हम आबाद करूं,

भूख के भट्टी तड़प तड़प के, रात बिताना तिलतिल हे।

ओकरे पास रहे धरती, जे हे एकरा जोते कोड़े,

श्री गणेश जनक्रान्ति के अब, एक बनना मंजिल हे।

छुआछूत के भूत भगा, सब निमरन एके राह धरऽ,

दीनबन्धु चौराहा पर, तोरा बन जाना कंदिल हे।

2. गजल

                दीनबन्धु

आझ के रात आके बइठऽ, कुछुओ बात करऽ।

आउ नुक छिप के घुर फिर के, नञ् घात करऽ।

कते दिन से ई बदरा, छुछे उमड़े घुमड़े,

सुखल मनुआं जरल अरमान, ले बरसात करऽ।

कनउ दम टूट रहल, कोय आंख चोखऽ हे,

खोल के हिरीदा तूं रख दऽ, आब मत लाथ करऽ।

जने भी जाहे नजर, हे सगर करिया करिया,

सूरूज के गोड़ मत बांधऽ, एते उतपात करऽ।

धरम के राह में सकुनी, हके पासा फेरे,

उलट पुलट के सगरो, से मत मात करऽ।

                -----अध्यक्ष, हिन्दी मगही साहित्यिक मंच ‘शब्द साधक

ग्राम – नदसेना, पो. – सराय, जिला – नवादा।

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  कविता-कियारी                                                       

समय के पहिया

जयनन्दन

की, समय के पहिया रूक जइतो?

जगती में लाली फइला के, करिया चद्दर के घसका के।

रश्मि के रथ वाला दिनकर, पछिमी अंचरा तक नुक जइतो।।

की समय के......

ई तार-खजूर नियन अदमी, छल-बल आउ कल से भरल अदमी,

दुनिया के मुट्ठी में करके, मिरतू के आगु झुक जइतो।

की, समय के.......

तों कहवा कि हम जानो ही,

तों जानो हा, हम मानो ही,

सुग्गा जइसन रटते-रटते, ई ऐन समय पर चुक जइतो।

जे समय गुजर जइतो भइबा,

फिन घउर के नञ् अइतो भइबा,

की  मिलतो धासन डेंगा-डेंगा जब सांया बिल में ढुक जइतो,

की समय के पहिया रूक जइतो?

                       ---नीमी, शेखपुरा

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   कविता-कियारी                            

                कइसे मिटतई भ्रष्टाचार

परमानन्द

कइसे मिटतई भ्रष्टाचार।

जब समाज पईसे बाला के, पूजई ले तईयार।

कर चोरी-घुसखोरी जे कइले, पईसा के भरमार।

बन समाज के नायक नुहे, रहलई सगर दहाड़। कइसे.....।

सत-इमान पर चले जे ओकरा, कोय नञ् पूछनहार।

घर-बाहर सगरे से ओकरा, मिल रहलई दुतकार।कइसे......।

राजानीति सेवा नञ् बनके, बन गेल जब रोजगार।

जन प्रतिनिधियन, जन के हिस्सा, रहलई सगर डकार।कइसे.....।

रोज घोटाला करे-डरे नञ्, कहे ही हम सरकार।

जनता जपे जात के माला, करे नञ् ठोस बीचार।कइसे.....।

घर कइले जन-जन के मन में, लाभ-लोभ कुबीचार।

परमानन्द कहे मिल-जुल, सोंचो कुच्छ उपचार।

कइसे मिटतई भ्रष्टाचार।

---पाली, काशीचक,नवादा

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 कविता-कियारी                                        

दरूआ नञ् पीओ पापा

कृष्ण कुमार भट्टा

मानला तोहूं पापा बतिया हमार जी,

दरूआ नञ् पीओ पापा करतो बेकार जी,

खेता तों बेची देलऽ घारा गिरमी रखि देलऽ,

मइया के गहना सब्भे सोनरा हीं रखि अइलऽ,

चलिया तोर देखि- देखि मइया बीमार जी,

दरूआ नञ्..............

जब से तो पीये लगलऽ हमनी के अनपढ़ रखलऽ,

नीसा में जेज्जा-तेज्जा नाली में लोहाड़ल रहलऽ,

मइया के सब्भे बतिया कइला दरकिनार जी,

दरूआ नञ्...............

दरूआ तों पी-पी करके देहिआ रोगी कर लेलाऽ,

मइया जब-जब टोकलको तब तब पीट के धरि देलाऽ,

अभियो से छोड़ा पापा हको धिक्कार जी,

दरूआ नञ्................

हम बड़की बेटिया तोहर होलियो जुआन जी,

कइसे के करबऽ पाप सदिया तों हमार जी,

कि रखले रहबऽ पापा, हमरो कुमार जी,

दरूआ नञ् पीओ पापा कसम हमार जी,

बोतल के फेंकी देलिअऽ हम अब चेती गेलिअउ,

अब एक्को घूंट नञ् पीबउ ले तोर बतिया मनलिअउ,

माफ कर देगे बेटी गलती तो हमार जी,

दरूआ नञ् पीबउ बेटी कसम तोहार जी,

दरूआ नञ् पीओ पापा कसम हमार जी,

दरूआ नञ् पीबउ बेटी कसम तोहार जी।

                        --काशीचक, भट्टा, नवादा

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  कविता-कियारी

                     सवाल नञ्

        रामचन्दर

मरूभूमि

हमर अंगना से सुरू भेल हे,

अउ

समुन्दर हमर आंखि से

धांगयत रहलूं

पूरब पछिम उत्तर दखिन जंगल पहाड़ तोरथ मसान

पता नञ् कउंची खोजऽ हला मन

गुजर गेल लमहर कालखंड जिनगी के

अब

चेहरा पर चढ़ल झुररी के

सनेस दे रहल हे अइना

की पता

आजुक जिनगी कल्टुका सुरज चान तरेंगन देखत की नञ्,

जिनगी

कजा हे सुरू भेल कहां तक चलल,

सवाल नञ् जबाब के तलबगार हे समय,

धरती

तू रस सींचयत रहऽ खेत  अंखुआ रहल हे बीया,

अकास

तू भरले रहऽ अपन अंचरा सुरज धान बेरगन से,

कि मिलयत रहे वसुधा के सुधा दान,

गाछ

तूं जोगले रहऽ खोंथा

अपन चूजा खातिर चारा ले के आबऽ होत बाथा

नदी

तूं धोवयत रहऽ अपन धार से इनू कछार

कवि

तूं सबद के सिंगार बार दथत रहऽ धार कविता के

फूल से कन कन मटकल फूलबारी में,

नञ् घुसे लहू के गंध

नीम गाछ पर

बैठल धान बांटयत रहे परान वायु

बाढ़ के थप्पड़ अउ सुखाड़ के घुस्सा सहयत बचल रहे,

हमर गाम।

---लालबाग, शेखपुरा।                                 

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   कविता-कियारी

                       गीत

जयप्रकाश

रच-रच के कर सिंगार, मगही मइया पेन्हले,

गहनमा लइलूं गे।

हल जे गैड़ तर चताल, ऊ अमरनमा लैलूं गे।

कविता-कहानी के रंग-बिरंग चुनरी,

नाटक-निबंध के, गढ़ल पेन्ह चुनरी,

लोक-गीत के चोली, कलाकार सुनहर खनमा लैलूं गे।।

तोरे हउ चीन्ह, नञ् हइ अनका से मांगल,

हल अनीत के ई टंगनमा पर टांगल,

चाहऽ ही देखइ ले पउआं तोर रांगल, फुदनमां लैलूं गे,

साट ले बिहुंस के निनार में टिकुलिया,

पेन्ह ले झुलाल हल ले अइलूं कनबलिया,

सजधज मगध के फेर चमका देम गठिया,

लगनमा लेलूं गे।।

लेके आल परभात, दछियै इंजोरिया,

मगही के अंगनमा से भागत अन्हरिया,

सोन्ह भावना-सनेह के मेहमेह फूल के बगनमा लैलूं,

अब नञ् रहत माय, सूना तोर गोदिया,

मिलजुल के हर लेम तोर दुखवा-दरदिया,

जागेल ही गा-गाके समता के गीत के सगुनमा लैलूं।

                                          केन्दुआ (नवादा)

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कविता-कियारी                           

1.  ओही दिख रहल हे सहार में

हरीन्द्र विद्यार्थी

अरे, ओ भाई जरा सोंच भी, मुल्क घिरल हे अन्हार में।

कि करोड़ो घर हे तड़प रहल कि फंसल पड़ल हे दहाड़ में।।

कि चूल्हा जल हे रहल कहूं कि बस्तर नञ् जुट हे रहल कहूं,

तू हजारो लुटवित ऐस में, कहूं कपंस रहल हे जाड़ में।

तू चुरा-चुरा के जमा करित, कहीं फांका अउ उपवास हे,

तो महल गगन में जूमते, कहूं कट रहल हे दिहाड़ में।

ई फोड़ा नञ् तोर जहर बने, रोड़ा न बने कहूं राह के,

अरे, ओ सोसक जरा चेत भी, ऊ डूब रहल हे धार में।

न अबले जेकरा न्याय मिलल, असरे में जिनगी बीत रहल,

अब आंख ओकर लाल हे, ओही दिख रहल हे सहार में।

अब ऊ बोलते हे दहाड़ के, अब बढ़ चलल घर उजाड़ के,

अब लेके झंढा हाथ में, ओही जुट रहल हे बिहार में।

अब अउर सहन ऊ न कर सके, तोरे लीक से बेलीक हो,

देखऽ सिर में कफन बांध के ऊ चल पड़ल हे गोहार में।

       2. वाह रे! सरकारी राहत-बचाव

हरीन्द्र विद्यार्थी

सहर से कट गेल हमनी के गांव,

कहूं नञ् दीख रहल तनिको-सा ठांव

घर गिरल पानी में, उपलायत गांव

गोरमिन्टी कारज निकसल न नाव

चल न पायल हप्तो तनिको बउसाव

उपरे अकसवा कउआ के कांव

पानी में तैरलूं कपड़ा भिंगाव

तब हीं जाके अयलूं सिविर-पड़ाव

अदमी से अदमी हे केत्ता दुराव

लाइन में जुटान कर मोर्चा लगाव

जब-तब अफसर के सुनऽ झांव-झांव

तब गेहूं दू किलो राशन उठाव

हफ्ता भर एही से भुखवा मिटाव

भुक्खे नञ् टिक रहल धरती पे पाव

कइसे के होई अब आगे बचाव

भोट के घूस हे कि अफसर के दाव

हमनी के भढ़वा से भिंगल घाव

वाह रे! सरकारी राहत-बचाव

                 ---- नियामतपुर, मसौड़ी, पटना

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मगह के धर्मस्थल

मगह के अदेनू (उपेक्षित) धरम के असथान सीतामढ़ी

मगह के मान आउ कल्याण लेल सीतामाता ईहां भेजल गेली हल

दीनबंधु 

(ई आलेख में दीनबंधु नवादा जिला के उपेक्षित माता सीता के शरणस्थली सीतामढ़ी के वर्णन कइलका हे. सीतामढ़ी माता माय के शरणस्थली हे. सीता माय के जउ वनवास मिलल हल तउ ऊ इहें आके शरण पइलकी हल. जेकर ईहां साक्ष्य हे. ईहां तीसरी सदी के पूर्व के मौर्यकालीन 16- 11 फीट के पुरान करिया पत्थल के सीता मंदिर, बड़गर चट्टान में गोल तराशल मंदिर पाषाण स्थाप्य काल के नमूना हे. माता सीता के पाताल परवेस के विखंडित चट्टान हे. लव-कुश के कपड़ा धोबे के तलाय, सीता माय के नहाय के कुंड, तमसा नदी, बाल्मिकि के आश्रम, अश्वमेघ घोड़ा के पकड़ के रखे वला खूंटा के भग्नावेश आउ कय गो साक्ष्य हे. दीनबंधु बड़ी बेस से एकर वर्णन ई आलेख में कइलथिन हे. ऊ ईहां के आस-पास के गांव आउ मगह क्षेत्र के आउ कय गो गांव के ई संदर्भ से जोड़लथिन हे. ऊ ईहां के गांव बारत, बारत टाल, लखौरा, महुगांय, नदसेना, सराय, कठघरा, रसलपुरा, बेरौटा, कुशा-बरौली, लौंद, टेकपुर, पचाने नदी, नारदीगंज, अरई के नाम ऊहे समय के बाद पड़े के बात भी दर्शाइलका हे.)   

        मर देश धरम महातम वला देश हे. इहां के अनेकन अवतारी देवी-देवता, ऋषि-मुनि, पीर-पैगंबर सउ अप्पन वरदान, चिंतन-मनन आउ उद्देश्य से हमनी धर्म प्राण भारत वासियन के उपकृत कैलन हे. एकर फल भेल कि अनेकन पंथ, मत जइसे—सगुन, निरगुन, शैब-शाक्, वैष्णव, कृष्ण भक्त, इस्लाम, बौध, जैन, सिक्ख, इसाई, पारसी, मतावलंबी होलन.  मठ-मंदिर, ठाकुरबाड़ी, मस्जिद, आश्रम, गिरजाघर से पूरा देश वैदिक ऋचा, मंत्र आउ घंटा घड़ियाल, आरती के थार, कीर्तन-भजन, अजान शब्द से अंदर-बाहर पवित्र तीर्थमय हो गेल.  ओकरे में कुछ नामी चारोधाम, काशी-वनारस, प्रयाग, अयोध्या, मथुरा-वृंदावन, रामेश्वरम, जगन्नाथपुरी, उज्जैन, गया-बोधगया, पावापुरी-लक्षुआड़, वैशाली, नालंदा-राजगृह अनेकानेक तीर्थ स्थापित पूजित होल. ओकरा में कुच्छ तीर्थ स्थल जेकर पूरा विकास नञ् होलै आझो भी अदेनू हे.

 ओएसने अदेनू तीर्थस्थल में बिहार प्रांत के नवादा जिला, थाना नरहट, सीतामढ़ी के सीतामढ़ी हे. जेहां एक्के करिया पथ्थल के चट्टान, जे गोलाकार हे, खोद के सीतामढ़ी मंदिर बनावल गेल हे.  अनेकन ग्रंथन के अनुसार ई तीर्थ स्थल हिसुआ बाजार से लगभग 10 किलोमीटर दखिन पछिम कोन पर हे.  हिसुआ से 5 किलोमीटर दखिन पछिम में बारत गांव के टाल में महर्षि वाल्मीकि मुनि जी के मंदिर हे, साथ में लवकुश भी हथ. बारत गांव के नाम विस्तार कैलूं तो ‘बा’ से वाल्मीकि ‘र’ से रत अउ ‘त’ से तपस्या होवs हे.  जेहां वाल्मीकि तपस्या से रत हलथिन ऊहे गांव के नाम बारत होल. एहे आसय के दू गो मगही कविता हमर पुस्तक मगही कविता संग्रह ‘मगही मंहक’ में हे.

 कथा सबसे जानल हे. जब श्री राम रावण के मार के लंका से जुध जीत के अयोध्या लौटला. तब उनखर राज्याभिषेक भेल. राम में गुप्तचर सब भेस बदल के प्रजा के सुख-दुख जाने ले नगर में घूम रहला हेल कि ऐगो धोबी अप्पन औरत के पीट-पीट के कह रहल हल कि हम राजा रामचंद्र नञ् ही, जे महीनों घर से बाहर रहल अपन घऱनी के अयोध्या के रानी बनैले हथ.  तूं कल्ह के रात कहां हलीं? से बताउ नञ् तो हमर घर से निकस जो, हम निकसल-पैसल औरत के घर में नञ् रख सकs ही.

  ई बात सउंसे अयोध्या में काने-कान जंगल के आग नियन फैल गेल आउ लोक निंदा होवs लगल। एने सीता गर्भवती हली. जल्दीये नवजात शिशु होवे वाला हल. श्री रामजी लोकापवाद से बचे ले सीता के श्री लक्ष्मण द्वारा अरण्यक वन भेज देलका जे मगध के धरती पर पुराना गांव ‘अरय’ आझो विधमान हे. लोकमत हे कि सीता माता के श्री राम घोखा से वन में भेजलका.  

 लेकिन हमर मानना हे कि जगत-जननी के श्री विष्णु के अवतार श्री राम भला धोखा कैसे देता हल. उनखा तो नरलीला देखा के मरजादा स्थापित करना हल. माता सीता तो स्वयं देवी हली, उनखा ले की जंगल आउ की महल, सब बराबर हल. आझो तो कण-कण में वास करs हथिन. तब्बे तो स्थूल रूप से सीतामढ़ी मगह के रक्षा ले आऊ मगह के प्रतिष्ठा करे ले भेजल गेली हल.

 श्री राम आउ महर्षि विश्वामित्र मुनि जी के साथ वन में सुख प्राप्त कर चुकला हल.  श्री रामजी सोंचलका कि हमर पुत्र अयोध्या के भावी राजकुमार सुख सुविधा में पलके भला वीर कैसे होता? जे खुद दुख सहलक नञ् ऊ भला दोसर के दुख की जानत? राज महल में धन-मद से कहीं अभिमानी नञ् हो जाए। ईले सुदूर मगह के धरती सीतामढ़ी भेजलका.

महर्षि वाल्मीकि जी के आश्रम में लव-कुश के जलम होल अउ पलला, बढ़ला. महर्षि जी से ज्ञान प्राप्त कैलका. अस्त्र, शस्त्र जुध कौशल सिखलका.

 जउ अयोध्या से श्री राम के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़ा छोड़ल गेल. तउ अन्य देश के जेतना राजा हला सब के जीतैत सेना मगह के धरती पर आल. कहंई कोय घोड़ा के रोक नञ् सकल. पर लव-कुश सीतामढ़ी में ऊ घोड़ा के पकड़ लेलका. घमासान युद्ध होल। सब सेनानायक हार के बंदी बनावल गेला। तब श्री राम के खुदे आवे पड़ल। श्री लक्ष्मण, भरत, शत्रुध्न, हनुमान, अंगद, सुग्रीव सब के अहंकार दूर हो गेल। जे लंका विजय के बाद होल हल। श्री राम के ईहे उदेश्य भी हल। लंका युद्ध जीते के बाद सब के घमंड हो गेल हल अउ घमंडे भगवान के अहार हे। भगवान राम देखावा के रूप में जुध करे ले अयला हल, मुदा ऊ तो सब जानिए रहला हल। काहे कि ऊ अंतरजामी हला। लखौरा के पास जब ऊ लव-कुश के देखलका। लख+उर ह्रदय के टुकड़ा। मोहगांव के पास उनखा बचवन से मोह हो गेल। तउ अपन रथ के पीछे करते गेला जहां तक पीछे हटला ओहे गांव के नाम नरहट पड़ गेल, काहे कि दुनियां में एगो भगवाने नर यानि पुरूष कहल गेला हे। आउ सब नर होके नारी हे। ऊ प्रेमवस बचवन से पीछे हट गेला। जहां श्री राम अपन सेना के रोकलका नदी के किनारे ऊ गांव नदसेना हो गेल। जहां उनखर खजाना रखाल ऊ गांव के नाम दौरलपुरा हो गेल। जहां अपने निवास कैलथिन ऊ गांव सराय। सराय माने धर्मशाला होवs हे। जहां सब सेनापति ठहरला ऊ गांव बहादुरपुर होल। जहां जेलखाना बनैलका ऊ कठघारा नाम से प्रसिद्ध होल। जहां सबके भोजन बनावे के काम होल, ऊ गांव रसनपुरा होल।

 जहां स्वयं सीता माता देवी पूजा करे जा हली अउ वरदान मिलल कि वर अयता ऊ गांव बेरौटा होल। जहां बड़ होवे पर लव अपन राजधानी बनैलका ऊ जगह लौंध... लव+अवध होल। लवंध से लौंध हो गेल। कुश जहां अपन राजधानी बनैलका ऊ जगह कुशा-बरौली भेल।

 टेकपुर-जउन जगह बाल्मीकि जखने रत्नाकर नाम से राहजनी करs हला। देवरिसी नारद के उपदेश से राम-राम से मरामरा रटते बारत टाल में तपस्या करे ले बैठला।

नारद जी के नारदीगंज के पंचाने नदी के किनारे पीपल के पेड़ से रत्नाकर के बांद देलका। आउ अपन घर-परिवार से पूछे ले अइला कि हमर पाप के भागी के के बनत? घर आके ऊ सब से पूछलका की जे चोरी डकैती करके लावs ही अउ तोहनिन सब खाही, पाप के भागी होमहीं की नञ्। औरत बाल-बच्चा सब कहलक कि तू चोरी करके लावs चाहे, कमा के हमरा तो खाय से काम हे। तउ रत्नाकर के ज्ञान होल अउ ऊ दउड़ल नारदजी से मापी मांगलका अउ तपस्था में बैठ गेला। ऊहें उनक देह में दीयां लग गेल, बाल्मीकि माने मां होवs हे।

(जउन जगह नारद जी के गिंजन होल ऊ जगह नरादगिंजन से नारदीगंज हो गेल।)

 आखिर में महर्षि बाल्मीकि श्रीराम के अपने आश्रम में ले गेला। दुन्हूं बचवन लव अऊ कुश के सौंपइत परिचय करैलका तब लव कुश ही राम के पैर छू के माफी मांगलका। श्री राम सीता माता के अयोध्या लौटे के आग्रह कैलका, मुदा सीताजी धरती माता के फटे ले निवदेन कैलथिन आउ श्री राम से छमा मंगैइत धरती बेटी धरती में समा गेली।

जौन दिन ई मिलन, पुत्र प्राप्ति अऊ साथे-साथ सीता से विछोह होल ऊ दिन ढेर बनवासी जुट गेलन अऊ ऐगो मेला के रूप ले लेलक। तहिने से ई हरख अउ विसाध भरल दिन के बरिख में एक बेरी मनावल जाहे। साल में एक बेरी मेला लगे लगल।

ईहां सीता माता अऊ लवकुश मंदिर गुफा के अलावे आउ केतनन मंदिर के निरमान हो रहल हे। मुदा आझ तक ई सरकार के उपेक्षा सह रहल हे।  एकर विकास ले सरकार के समुचित व्यवस्था करे के चाही। सुविधा के नाम पर ईहां सुरछा ले थाना फाड़ी हे आउ व्यवस्था सरकार के करे के चाही। जेहमा ई धरोहर पूरा तरह से तीर्थस्थल बन जाय।

जय श्री सीता राम।।

                         --दिनेश पांडेय दीनबंधु, नदसेना, मेसकौर, नवादा

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मगह के आयोजन

नालंदा जिला के तीन गो ऐतिहासिक साहित्यिक विरासत यात्रा आउ संगिति

नालंदा के साहित्यिक मंडली शंखनाद के स्थापना के बाद ओहां साहित के काजकरम के झड़ी लग गेल हे. महीना-दू-महीना पर होवे वला काजकरम के तऽ छोड़हो, साहितकार, विभूति आउ महापुरूष के जयंती के मनावे वला काजकरम के तऽ कुच्छो कहने नञ्. ई सब्हे तऽ निरंतर सुचारू रूप से चलिए रहल हे लेकिन कुछ ऐसन काजकरम होल जे साहित के इतिहास बनत. मिल के पत्थल साबित होत. मगध के साहित के इतिहास में सुनहर अच्छर में लिखल जात.

ओसने काजकरम में पांच गो ऐतिहासिक साहित्यिक विरासत जतरा आउ संगिति हे.

पहिल विरासत यात्रा व साहित्य संगिति हिरण्यक पर्वत बिहार शरीफ में, दोसर वाणावर गुफा व पहाड़ी, जहानाबाद, तेसर साइक्लोपियन वॉल, राजगीर, चौथ वैभवगिरि पर्वत, बेलवाडोभ में आउ पचवां काजकरम राजगीर के सद्धर्मपुण्डरीक स्तूप रत्नागिरी पहाड़ पर होल. हम इहां पर तीन गो साहित्यिक संगिति के वर्णन करे ले चाहऽ ही. काहे की हमरो ऊ ऐतिहासिक और जिनगी भर नञ् भुलाय वला का काजकरम में हिस्सा लेवे के मोका मिलल. ई हमरो सौभाग्य हे कि ओइसन विरासत यात्रा में शामिल होलूं.

1. ‘शंखनाद’ के तेसर विरासत यात्रा आउ साहित संगिति

31 दिसंबर 2017 साल के आखिरी दिन ऐतिहासिक काव्य संगम से राजगीर के वादि गूंजल.  ऐतिहासिक आउ पौराणिक साइक्लोपियन दीवार पर बढ़गर अंतर्जिला कवि सम्मेलन होल जेकरा में दूर-दूर के हिन्दी मगही के साहितकार जुटलन.

        पंच पहाड़ से गुजरल ऊ साइक्लोपियन वॉल पहिल कवि सम्मेलन के साक्षी बनल. दिनभर अधिकारी , साहित्य अनुरागी, लोक गायक आउ कवियन के दिनभर जुटान रहल. सब्हे मिल-जुल के साहित के दीया निरंतर जलइते रहइ के संकलप लेलका. मगह आउ ज्ञान-वाण के धरती माय नालंदा के गौरव गीत से लेके समसामयिक गीत, गजल, हास्य-व्यंग्य के जउ समां बंधल तउ सउ वाह-वाह कर उठलन. हिन्दी, मगही, उर्दू के सब्हे रस से भरल कविता के जमके फुहार चलल.

साहित्य संगिति  शंखनाद’, नालंदा  के तत्वावधान आउ नवादा जिला के सहजोग में आयोजित होल हल. एकर परिकल्पना आउ बुनियाद में नालंदा एलडीओ साहितकार सुबोध कुमार, जिला सूचना जनसंपर्क पदाधिकारी व साहितकार लाल बाबु सिंह और शंखनाद के सचिव राकेश बिहारी आउ अध्यक्ष लक्ष्मीकांत सिंह हला.

अध्यक्षता हिन्दी मगही के वरिष्ठ कवि दीनबंधु आउ संचालन हम उदय भारती कैलूं.  शुरूआत सुबोध बाबु के संबोधन से शुरू भेल. विषय प्रवेश आउ स्वागत संबोधन के बाद ऊ साहित के मशाल के निरंतर जलइते रखइ के प्रेरणा जगावइत साहितकारन के उत्साहित कइलका. मुख्य अतिथि जिला परिवहन पदाधिकारी शैलेंद्र नाथ साहित के शक्ति के रेखांकित कइलका. पहाड़ पर ऐसन आयोजन के सराहना कइलका. जिला सूचना जनसंपर्क पदाधिकारी व साहित्यकार लाल बाबू साहितकार के एकजुट होके साहित जीवंतता ले निस्वार्थ काम करे पर बल देलका. ऊ कविता के माध्यम बना के भी साहित के गिरावट आउ साहितकारन के विभेद के पीड़ा के व्यक्त कइलका. इस्लामपुर बीडीओ राजेश प्रियदर्शी देहशीर्षक स्तरीय कविता के पाठ करके सब्हे के चकित कर देलका. मेहरारू के रूप, लावण्य, समर्पण आउ पुरूष की चाहत के खूब उकेरलका.

ऐतिहासिक ऐसन पहाड़ पर ई दोसर आउ राजगीर के साइक्लोपियन दीवार पर के ई पहिल कवि सम्मेलन हल. पहिल सम्मेलन बराबर के पहाड़ी  होल हल जेकरा में भी नालंदा, जहानाबाद आउ गया के कवियन के जुटान भेल हल.   

चार जिला के तीन दर्जन कवियन कइलका कविता के पाठ 

ई काजकरम में चार जिला नालंदा, नवादा, शेखपुरा आउ पटना के तीन दर्जन से से भी जादे कवियन कविता के पाठ कइलका.  नवनीत कृष्णा के सरस्वती वंदना आउ दीनबंधु के मगध के ऐतिहासिक महिमा से सम्मेलन के आगाज होल. प्रवीण कुमार पंकज "हे पावन हमर धरती जे मगह कहावऽ हइ, जेकर गौरव-गाथा, जग आज भी गावऽ हइसे मगध के गौरव गान कइलका तउ कवि ऋतुराज— “महावीर, भगवान बुद्ध के प्राण जहां पर बसते हैं, स्वर्ग से सुंदर उस धरती को नालंदा कहते हैं”, से नालंदा के महिमा के बखान कैलका.

कवि अंजनी कुमार सुमन मुक्तक आउ लयबद्ध पंक्ति से बेस प्रभाव छोड़लका. कवि राकेश बिहार शर्मा मैं भारत का वोटर हूँ, मुझे लड्डू दोनों हाथ चाहिये, बिजली मैं बचाऊँगा नहीं, बिल मुझे कम चाहिये, पेड़ मैं लगाऊँगा नहीं, मौसम मुझको नम चाहिये, काव्य पंक्तियों से ताली बटोलका. व्यंग्यकार उदय भारती - ‘‘मेरी मधुबाला, चढ़ा के प्रीत की हाला, बन जाए षोड्शी बाला तो नया साल होता है’’ और ‘‘जनता होती रहे कंगाल, अफसर को मिले माल तो नया साल होता है’’, कविता पढ़के सबको हंसइलका.  रंजीत दुधु ‘‘हम तो पीटा गेलूं साला के ससुराल में’’ कविता पढ़ि के सब्हे के खूमे हंसइलका.शफीक जानी नादां देश प्रेम आउ एकता की मगही कविता पढ़ि के समां बांध देलका. कृष्ण कुमार भट्टा पत्नी भक्ति के कविता ‘‘मरबो तो तोहरा मार के मरबो’’ सुनाके सबके खूमे गुदगुदैलका.  जयनंदन मगही के उत्कृष्ट रचना के प्रस्तुति से सब्हे के सोंचे पर मजबूर कर देलका. कवि अनिल कुमार शिक्षक-छात्र आउ पठन-पाठन के कविता से शिक्षा के विद्रुपता पर प्रहार कइलका. लोक कलाकार भैया अजीत ‘‘मां और कहबउ तउ लगतो भक से’’ के लयबद्ध गीत से माहौल के पायदार बना देलका.

तीन गो बाल कवियन एकरा में हिस्सा लेके सम्मेलन के आउ ऐतिहासिक बना देलका. बाल-कवि निशांत भास्कर पांडु पोखरबाल-कविता के पाठ करि के अप्पन नव काव्य प्रतिभा के लोहा मनवइलका. आर्ष कुमार आउ आर्ज कुमार भी बेसे कविता पाठ करि के सब्हे के हर्षित कर देलका.   

कवि उमेश प्रसाद उमेश, अर्जुन प्रसाद बादल, महेंद्र विकल, उमेश बहादुरपुरी, गरीबन साव, रंजन पासवान, विनय कुमार, दीपक कुमार  ई सब्हे भी अप्पन-अप्पन कविता आउ प्रस्तुति से खूमें वाह-वाही लुटलका. 

 हास्य-व्यंग्य आउ एक दोसर पर तीर-चुटकी आउ संचालन के बीचे में दिनो भर काव्य संगम के समां बंधल रहल. सुबोध कुमार सिंह जी के धन्यवाद ज्ञापन से सम्मेलन के समापन होल. मोका पर नालंदा डीसीएलआर प्रभात कुमारवरीय उप समाहर्ता रामबाबू, रविशंकर उराव, राजगीर बीडीओ आनंद मोहन, पत्रकार रामविलास, पत्रकार आशुतोष कुमार आर्य, पुरुषोत्तम पांडे, फ़िल्मकार एसके अमृत, धनंजय कुमार सहिते बिहार आउ राजगीर के साहित्य प्रेमी उपस्थित हलथिन.

  1. शंखनाद के चौथ साहित्यिक विरासत यात्रा आउ संगिति

नालंदा के साहित्यिक आउ सांस्कृतिक संस्था शंखनाद के बैनर तले रविवार 22 दिसंबर, 2019 के राजगीर के वैभवगिरि पर्वत के शिखर पर बोधवा खोह (सप्तर्णी खोह) पर ऐतिहासिक आउ साहसिक साहित्यिक संगिति के काजकरम होल जेकरा में  पटना, नालंदा, शेखपुरा, नवादा आउ गया के साहितकार आउ पतरकार हिस्सा लेलका. काजकरम ई माने में जादे ऐतिहासिक और साहसिक रहल कि ऊ जगह पर पहिल बौद्ध संगीति 483 ई में होल हल. ओकर बाद ऊ जगह पर 2503 साल बाद ऐसन पहिल साहित के संगिति होल. तीन घंटा के पैदल पहाड़ पर के चढ़ाय चढ़ि के साहितकार ऊ जगह पर पहुंचलन. बड़ी साहसिक आउ रोमांचकारी जतरा हल.  पहाड़ के ओतना ऊंचाई पर बनलन बेलवा डोह के तालाब के करगी में दिनो भर किताब के लोकार्पण, साहित्यिक परिचर्चा आउ कवि सम्मेलन के दौर चलल.  

      काजकरम के उद्घाटन और अध्यक्षता इतिहासकार व साहित्यकार सुबोध कुमार सिंह जी कैलका. मुख्य अतिथि के रूप में  सूचना एंव जनसंपर्क विभाग, पटना, बिहार के उपनिदेशक लाल बाबु हलन. संयोजन आउ धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष कुमार आर्य जी कैलका. सब्हे इंतेजाम राकेश बिहारी जी के संयोजन आउ देखरेख में होल हल. संचालन के काम युवा कवि नवनीत कृष्णा जी कैलका.

     आगत अतिथि के स्वागत आउ विषय प्रवेश के काम शंखनाद के अध्यक्ष डॉ लक्ष्मीकांत सिंह जी कैलका. उनखरे लिखल ऐतिहासिक उपन्यास ‘ डुकारेल की पूर्णिया के लोकार्पण भी होल. किताब के संदर्भ आउ समीक्षा सुबोध कुमार जी कैलका.

     कवि जयराम देवसपुरी, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, महेंद्र कुमार विकल, राकेश ऋतुराज, चंद्र उदय कुमार, तंग अय्युबी, गुड्डु आलम, अश्विनी कुमार उपाध्याय, कुमार आर्यण, निशांत कुमार, रणजीत कुमार, कल्याणी शास्त्री, अनिता गहलौत, मुस्कान चांदनी, संयुक्ता कुमारी, राजीव कुमार, सूर्यकांत सरल सहित कविगण अप्पन-अप्पन कविता के पाठ करि के सबके ह्रदय में पैठ बनइलका आउ ताली बटोलका.

मोका पर साहितकार व साहितप्रेमी डॉ गोपाल शरण सिंह, डॉ आनंदवर्द्धन, मनोहर कुमार चौधरी, एके पटेल नालंदा जिला के वरिष्ठ पत्रकारगण हिन्दुस्तान प्रभारी आशुतोष कुमार आर्य, दैनिक जागरण प्रभारी प्रशांत सिंह, दैनिक भास्कर प्रभारी सुजीत कुमार वर्मा, वरीय पत्रकार राजगीर के रामविलाश जी ,फिल्मकार एसके अमृत आउ साहितप्रेमा परशुराम सिंह, मुखिया नवेंदु झा, रवि कुमार, मुकेश कुमार सब्भे हला.

3.‘शंखनाद के पचमा साहित संगिति                     

16 फरवरी, 2020 के नालंदा साहित्यिक मंडली ‘शंखनाद’ के ओर से पद्मश्री कलीम आज़िज के स्मृति में वसंत साहित्यिक उत्सव 2020 सह पांचवीं साहित्यिक विरासत यात्रा राजगीर के ऐतिहासिक रत्नागिरी पर्वत सद्धर्मपुण्डरीक स्तूप (विश्व शांति स्तूप) पर होल.  ईहो काजकरम में प्रदेश के कय जिला के  नामचीन कवि, शायर, इतिहासकार, फिलिम कलाकार, चित्रकार के जुटान भेल. अध्यक्षता शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह जी आउ संचालन राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्णा जी कैलका. विषय प्रवेश आउ सोआगत मंडली के सचिव राकेश बिहारी शर्मा जी कैलका.

मुख्य अतिथि के रूप में बिहार सरकार के उप सचिव सुबोध कुमार सिंह,  विशिष्ट अतिथि के रूप में सूचना एवं जनसम्पर्क पदाधिकारी, पटना उप निदेशक लाल बाबू सिंह आउ अतिथि राजगीर बीडीओ मिथिलेश बिहारी वर्मा जी हलथिन. ई काजरम पूरे तरह से बिहार के तेल्हाड़ा के रहे वला देश के प्रख्यात शायर पद्मश्री कलीम अजीज के समर्पित रहलइ. दिनोभर भक्ति, हास्य़-व्यंग्य, गीत-गजल के दौर चलस . प्रकृति के गोद में जीव-जंतु के बीचे ई अविस्मरनीय काजकरम रहल.

काजकरम में डॉ सच्चिदानंद प्रसाद वर्मा, कुमार राकेश ऋतुराज, मिथिलेश प्रसाद, रंजीत कुमार स्नेही, अविनाश कुमार, युवा शायर कुमार आर्यन गयावी, वरिष्ठ राष्ट्रीय शायर बेनाम गिलानी, चंद्र उदय कुमार मुन्ना, राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण, राष्ट्रीय संगम के युवा कवि मनीष कुमार रंजन, कुमार अमन, अश्वनी कुमार उपाध्याय, सूर्य कुमार ‘सरल’, पटना के नामचीन शायर नसर उद्दीन बलखी, डॉ० रेखा सिन्हा  डॉ० आनंद वर्द्धनवरीय पत्रकार रामविलास जीडॉ गोपाल शरण सिंहसमाजसेवी दीपक कुमारकवि तंग अय्युवी सुधीर कुमार उपाध्याय,  नरेंद्र कुमार नेपुरिया समेत प्रदेश के पटना, नालंदा, पूर्णिया, शेखपुरा, गया, नवादा के कवियन आउ साहितअनुरागी उपस्थित हलन.  

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मगह के आयोजन

राजगीर महोत्सव में रहल मगही के गूंज

नालंदा के पौराणिक, पुरातात्तविक, ऐतिहासिक आउ धार्मिक नगरी राजगीर में लोक संस्कृति आउ मगध के परिवेश के हर साल होवे वाला राजगीर महोत्सव में मगही के काव्य रस भी गूंजे लगल हे. चार साल से एक ऐतिहासिक शुरूआत होल हे. संस्कृति के ई काजकरम में साहित्य के भी जगह मिलल हे. प्रदेश के कई जिला के अनेकन भासा के कवि साहित्यकार जुट के अप्पन-अप्पन माटी के रंग बिखेरे लगलन हे. मगह के पुरान राजधानी राजगीर के ई महोत्सव में बुद्ध, महावीर, अशोक आउ सरहपाद के मगही के जोर रहल. तीन साल के  यादगार कारजकरम के झलक हम हिंआ पर दे रहलूं हे. काहे की ईमे मगही के दमदार उपस्थिति रहल हे.

 (पहले हम बता देबे ले चाहऽ ही कि की हे राजगीर महोत्सव— राजगीर महोत्सव बिहार के संस्कृति आउ कला विभाग, बिहार राज्य पर्यटन विभाग निगम आउ नालंदा जिला प्रशासन के सहजोग के होबे वला तीन दिवसीय लोक संस्कृति आउ विरासत के कारजकरम हे. प्रदेश आउ मगध के लोक संस्कृति के झांकी, आयोजन, राष्ट्रीय आउ अंतरऱाष्ट्रीय कलाकार के प्रस्तुति, लोक गायन, महिला उत्सव, पुस्तक मेला, तांगा दौड़, ग्रामश्री मेला, कई प्रदेशों के प्रसिद्ध चीजों की दुकानें और स्टॉल, सद्भावना मार्च, नाटक आदि से मेला सजे हे. राजगीर के किला मैदान, हॉकी ग्राउंड, इंटरनेशनल कन्वेंशन हॉल जगह पर एकर आयोजन होवऽ हे.

     कय दर्जन समिति के गठन करि के आउ नोडल पदाधिकारी के प्रतिनियुक्ति करि के आयोजन आउ नियंत्रण होवऽ हे. महिना भर एकर तैयारी कर के एकरा मूर्त रूप देबल जा हे. देश-विदेश के लोग एकरा में हिस्सा लेबे ले आवऽ हथिन. कय जगह के व्यंजन के लुत्फ उठाबे के भी मौका मिलऽ हे. देश के कई राज्य के सैकड़ों तरह के व्यंजन के स्टॉल सजऽ हे.

  बिहार के तत्तालीन मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे के समय में 1986 में एकर शुरूआत होल हल. राजगीर संस्कृति के नाम से इ नृत्य आउ संगीत के काजकरम हल. 1989 के बाद बिहार सरकार के पर्यटन विभाग एकर प्रायोजक बन गेल लेकिन फिर एकर आयोजन रूक गेल. 1994 से ई लगातार हो रहल हे. अब ई बिहार सरकार के सालाना मुख्य काजकरम हे.)

2016 से महोत्सव में होल पहिल कवि सम्मेलन

वि समागम के पहिल शुरूआत 2016 के राजगीर महोत्सव से होल. 25 से 27 नवंबर के तीन दिवसीय काजकरम के आखिरी दिन अंतर्राष्ट्रीय कन्वेन्शन हॉल में कवि सम्मेलन होल. एकर बुनियाद में ओहां के तत्कालीन जिला भू अर्जन पदाधिकारी सुबोध कुमार जी हला.

   पहिल तैयारी बैठक जउ तत्तकालीन डीएम डॉ त्यागराजन के अध्यक्षता में काजकरम के रूप रेखा बने लगल तउ एलडीओ सुबोध बाबु साहित के समाहित करे के प्रस्ताव देलका. कवि साहितकार के समागम आउ कवि सम्मेलन से काजकरम के शोभा बढ़ावे के आग्रह कैलका. पहले तऽ सहमति नञ् बनल लेकिन जउ सुबोध बाबु बार-बार आग्रह कैलका तऽ अनुमति मिल गेल. तउ बात आल देश के नामचीन कवि के लाबे के जे बड़ा बजट में कवि सम्मेलन में आवऽ हका आउ अप्पन साहित के रंग जमावऽ हका. लेकिन सुबोध बाबु एकरा दोसर रूप देबे के प्रस्ताव देलका.

   प्रदेश से ही विभिन्न भासा भोजपुरी, अंगिका, बज्जिका, मैथिली, मगही आउ हिन्दी-उर्दू भासा के स्थान देबे आउ एहीं के कवि के मान देबे के बात रखलका. सुबोध बाबु के प्रयास से बात बनल आउ राजगीर के अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन हॉल मे एकर आयोजन के अनुमति मिल गेल. सुबोध बाबु, तत्तकालीन सूचना जनसंपर्क पदाधिकारी लाल बाबु, साहितप्रेमी आउ समाजसेवी राकेश बिहारी आदि के सहयोग से काजकरम के रूप रेखा रच देलका. प्रशासन के अलावा बाहरी सहजोग से भव्य काजकरम होल. काजकरम के उद्घाटन करे ले डीएम डॉ त्यागराजन जउ ओहां पहुंचलथिन तउ ऊ कवि सम्मेलन के आनंद लेलथिन आउ खुलके ई काजकरम के सराहलथिन. ऊ इहां तक कह देलथिन कि महोत्सव के सबसे सुन्नर काजकरम में ई हे. उनखरे हाथ से अतिथि कवि के प्रतीक चिह्न आउ शॉल-बुके देके सम्मानित कैल गेल.

प्रदेश के सात भासा के 21 कवि काजकरम में हिस्सा लेलका. जादे मगही साहित के कवि के जुटान हल, मगही माटी के कय विधा के रंग से महोत्सव में चार चांद लग गेल. वरीय साहित्यकार हरिश्चंद्र प्रियदर्शी, मगही अकादमी के पूर्व अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, नालंदा के रंजीत दुधु, राकेश बिहारी, ऋतुराज, जहानाबाद के चितरंजन चैनपुरा, सुधाकर राजेंद्र सहित मगही कवि के जुटान हल. मुख्य अतिथि फिल्मों की कहानी आउ पटकथा लेखक व साहित्यार शैवाल हलथिन. जिनखा लाबे ले सुबोध बाबु खास प्रयास कैलथिन हल.

दोसर साल 2017 के राजगीर महोत्सव के हास्य कवि सम्मेलन 

    राजगीर महोत्सव के आखिरी दिन अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर सभागार में हास्य कवि सम्मेलन होल, जेकर उद्घाटन आउ अध्यक्षता वयोवृद्ध कवि हरिश्चंद्र प्रियदर्शी आउ राजगीर डीएसपी संजय कुमार संयुक्त रूप से कैलका. राकेश ऋतुराज के नालंदा गीत से मगध साम्राज्य के समृद्धिशाली महाप्रतापी सम्राट राजा जरासंध के शौर्य से लेके छठी शताब्दी के प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अतीत के गौरव तक के झलक प्रस्तुत कैलका.

  जहानाबाद के चितरंजन चैनपुरा मगही हास्य प्रस्तुति से सबके लुभैलका. कवि सागर आनंद, मखमली आवाज में मुजफ्फरपुर की डॉ. आरती कुमारी गीत- गजल से समां बांध देलका.

 भुनेश्वर समन व्यर्थ बंधु रोना है बर्बादी का गम बिसार अब वर्तमान को संजोना है से ऊर्जा भरलका. हिलसा  के गुड्डु आलम, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती हास्य व्यंग्य के सबके खूमे हंसैलका. वरिष्ठ कविराज हरिश्चंद्र प्रियदर्शी, मगही अकादमी के पूर्व अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा उर्फ कलम बेशर्मी, उमेश सिंह उमेश, अतहर हिल्सवी, आसिफ आजम, तंग आयुबी, उमेश प्रसाद उमेश, रंजीत दुध्धु, तनवीर साकित, नवनीत कृष्णा, सुधाकर राजेन्द्र, हीरा प्रसाद हरेन्द्र, कुमार नयन, सीन एन मुजीद, कवि राकेश बिहारी शर्मा, हरेन्द्र गिरी शाद, सच्चिदानंद पाठक, विजेता मुद्रपुरी सहित प्रदेश के कय गो भासा के कवि अप्पन-अप्पन प्रस्तुति से सबके मन मोहलका. परिकल्पना, व्यवस्था, संयोजन करइ में जिला भू-अर्जन पदाधिकारी सुबोध कुमार, सूचना जनसंपर्क पदाधिकारी लाल बाबु आउ प्रसासन के लोग लगल हलथिन.

2018 के राजगीर महोत्सव के कवि सम्मेलन

साल 2018 के राजगीर महोत्सव में भी कवि सम्मेलन ऊहे अंतर्ऱाष्ट्रीय कन्वेंशन हॉल में होल, जेकर उद्घाटन कवि गीतकार हरिश्चंद्र प्रियदर्शी, जिला उपसमहर्ता संजय कुमार, डीपीआरओ रविंद्र कुमार, मगही कवि उदयशंकर शर्मा,  साहित्यानुरागी राकेश बिहारी शर्मा संयुक्त रूप से कैलका.

  हरिश्चंद्र प्रियदर्शी के अध्यक्षता आउ तनवीर साकिर के मंच संचालन में कुमार राकेश ऋतुराज के नालंदा गाव से काजकरम शुरू होल. गीतकार मुनेश्वर शमन, मगही कवि उदयशंकर शर्मा, मशहूर राष्ट्रीय शायर बेनाम गिलानी, व्यंग्यकार उद्य भारती, राकेश बिहारी शर्मा सुभाषचंद्र पासवान, उमेश प्रसाद सिंह उमेश, जयराम देवसपुरी, रंजीत दुधु, कृष्ण कुमार भट्टा, अंजनी कुमार सुमन, जिआउल रहमान जाफरी, शायर नवनीत कृष्णा, शायर तंग अय्यूबी, गीतकार अर्जुन प्रसाद बादल, महेंद्र कुमार विकल, उमेश बहादुरपुरी, आफताब हसन शम्स, अरशद रजा वारसी, गुड्डू आलम, जहर फिरदौसी, अतहर हिलसवी, आसिफ आजम, दीपक गयावी, वसीम अख्तर, अरपशद रजा, विनय कुमार कुशवाहा, राकेश भारती, जफर फिरदौसी,  कवि सउ साहित के खूमे रंग जमैलका.

मौका पर जिला शिक्षा पदाधिकारी मनोज कुमार, एडीपीसी जितेंद्र पासवान, मगही भाषा के फिल्मकार प्रभात वर्मा, समाजसेवी राजेन्द्र कुमार मंडल, सुनील कुमार,  समाजसेवी सुधीर उपाध्याय, धीरज कुमार आदि उपस्थित हला.

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मगह के आयोजन

हिसुआ में मगही साहित के ऐतिहासिक साहित्यिक काजकरम

जुटलथिन प्रदेश भर के मगही कवि आउ साहितकार, आधा दर्जन से जादे किताब के लोकार्पण

  2015 आउ 2016 के हिसुआ में मगही साहित के ऐतिहासिक काजकरम के आयोजन होल, जेकरा में प्रदेश भर के कवि आउ साहितकार के जुटान भेल. साहित के सात गो किताब के लोकार्पण होल आउ मगही साहित के ऊ साल के शब्द साधक सम्मान एक दर्जन से जादे साहितकार आउ संपादक के उनखर बेहतर साहित सेवा ले देल गेल.

  हिसुआ के हिन्दी मगही साहित्यिक मंच शब्द साधक के तत्वावधान में मंच के अध्यक्ष दीनबंधु के अध्यक्षता आउ सचिव व्यंग्यकार उदय भारती के संचालन में काजकरम होल. काजकरम में दिनकरनामा के रचइता डॉ दिवाकर कहलका कि रचना सकलप के साथ साहित के संघर्ष से बढऽ हे. साहित के काज एगो साधना हे जेमे साहितकार तिल-तिल जले हे तउ साहित निखरे हे.
 मगही अकादमी के पूर्व अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा अकादमी के निकसे वला पत्रिका निरंजना के जल्दी आवे के बात के साथ  हिसुआ में ढेर मनी किताब के लोकार्पण के काम के सराहलथी आउ एकरा मगही साहित ले बेस संकेत बतइलथिन. पत्रकार, कथाकार आउ संपादक नरेन युवा साहितकार के स्तरीय रचना आउ वर्त्तमान समाज के परिस्थिति से जुड़ के साहित्य लिखे के अपील कइलथिन. ऊ रचना धर्मिता के कय गो टिप्स देलथिन. मगध विश्वविद्यालय बोधगया के मगही विभागाध्यक्ष डॉ. भरत मगही के उपलब्धि के गिनइलथिन. मगही के देश विदेश में गूंजे के बात कहलथिन. मगही के लगातार किताब छपे आउ भाषा के हर विधा में समृद्ध होवे के बात कहलथिन. वरिष्ठ मगही साहित्याकार मिथिलेश हिसुआ के ऐसन आयोजन के खूमे सराहलथिन आउ आगू भी निकसे वला किताब के लोकार्पण हिसुए में करावे के बात कहलथिन. मगह विश्वविद्यालय के संयुक्त परीक्षा नियंत्रक प्रो. भारत भूषण हिसुआ के साहित के रेखांकित करइत हिआं के रचनाकार आउ मंच के साहित साधना के कोटिश बधाय देलथिन आउ बढ़-चढ के रचना करइ के अपील कइलथिन. प्रो. शिवेंद्र नारायण, प्रो. नवल किशोर शर्मा, मिथिलेश कुमार सिन्हा भी मंच के संबोधित कइलथिन.  

      हिंदी साहित्य के नामचीन कवि नचिकेता के एक किताब पुस्तक आउ मगही रचनाकारों के छो गो किताब के लोकार्पण होलइ. दीप प्रज्वलन आउ देवेंद्र पांडेय के मंगलाचरण से कार्यक्रम शुरू होल हल. लोर्कापण के बाद लेखक आउ संपादक के शब्द साधक सम्मान 2015 से सम्मानित कैल गेल.

ई सब किताब के होल लोकार्पण

    वरिष्ठ साहित्कार व संपादक मिथिलेश के महुआ घटवारिन (मगही अनुवाद) , नवादा के गीतकार जयप्रकाश के दू किताब ‘कट गेल रात अंधरिया’ और ‘महुआ के कोची’ , नालंदा के हास्य कवि रंजीत के किताब ‘ढिंढोरा’, टीएस कॉलेज हिसुआ के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. नवल किशोर शर्मा के किताब ‘इंद्रधनुष’ आउ नीतू सिंह के कहानी सेंगरन ‘गुलरी पाठशाला’ के लोकार्पण होल. हिन्दी जगत के अंर्तराष्ट्रीय ख्याति रखे वला वरिष्ठ कवि नचिकेता के किताब तुम ही तो हो के लाकार्पण होल.

के के होलथिन सम्मानित-----

 श्री मिथिलेश उत्कृष्ट साहित्य सृजन आउ संपादन लेल , गीतकार जय प्रकाश  उत्कृष्ठ काव्य सृजन लेल, हास्य कवि रंजीत हास्य प्रधान काव्य लेखन के लेल, पत्रकार, संपादक और कथाकार नरेन उत्कृष्ट साहित सृजन आउ स्तरीय साहित संपादन के लेल , मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के मगही विभागाध्यक्ष डॉ. भरत साहित्य सृजन, संपादन आउ मगही के सेवा के लेल , कथाकार सुबोध कुमार के स्तरीय कथा लेखन आउ संपादन के लेल शब्द साधक सम्मान 2015 से सम्मानित कइल गेल. एकर अलावा वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार आउ दिनकरनामा के रचयिता डॉ. दिवाकर,  प्रो. नवल किशोर शर्मा,  नीतू सिंह आउ मगही के वरिष्ठ कवि परमेश्वरी के भी सम्मानित कइल गेल. हिन्दी जगत के सुख्यात कवि नचिकेता के भी शब्द साधक सम्मान देल गेल. उनखा नञ् पहुंचे से उनखर सम्मान नरेन जी ग्रहण कइलका.

 दोसर सत्र में उदय शंकर शर्मा के अध्यक्षता में कवि सम्मेलन होल जेकरा में चार दर्जन से जादे कवियन  गांव-गवंईं संस्कृति से जुड़ल रचना के पाठ कइलका. रोपनी गीत, बरसात गीत, धनरोपा, सावन की फूहार, घर-आंगन, पीपल के पेड़, वृक्षारोपण, दीया-बाती जइसन ग्रामीण संस्कृति से जुड़ल रचना के हिसुआ सांझ तक काव्यमय होल रहल. व्यंग्यकार उदय भारती के संचालन में उदय शंकर शर्मा, नागेंद्र शर्मा बंधु, जयराम देवसपुरी, परमेश्वरी, बहादुरपुरी, के.के. भट्टा, जयप्रकाश, श्रीकांत, नवलेश, शंभुविश्वकर्मा, सुमंत, सुरेंद्र सिंह सुरेंद्र, दशरथ, दयानंद बेधड़क, जयनंदन, लालमणि विक्रांत, परमानंद, नीतू सिंह, सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह, रंजीत, उमेश सिंह उमेश, शफीक जानी नादां, अंगिका के कपिल देव कृपाला सहिते मगध के आठ जिले के चार दर्जन से जादे कवियन अप्पन-अप्पन काव्य पाठ कइलथिन. आयोजन करइ में मंच के देवेंद्र विश्वकर्मा, देवेंद्र पांडेय, अनिल कुमार, प्रवीण कुमार पंकज आदि सउ लोग जुटल हलथिन.

हिसुआ के 2016 के साहित्यिक काजकरम, एक दर्जन से जादे किताब के लोकार्पण

     दोसर ऐतिहासिक जुटान आउ किताब के लोकार्पण 18 सितंबर 2016 के होल. शब्द साधक मंच के तत्वावधान में जेकर अध्यक्षता अखिल भारतीय मगही मंडप के संस्थापक आउ सारथी पत्रिका के संपादक श्री मिथिलेश जी आउ मंच संचालन व्यंग्यकार उदय भारती कइलका. काजकरम में मुख्य अतिथि के रूप में नवादा के तत्कालीन सदर एसडीओ राजेश कुमार आउ सम्मानित अतिथि में नालंदा के तत्तकालीन जिला भू अर्जन पदाधिकारी व साहितकार सुबोध कुमार जी हला.

 श्री मिथिलेश कहलका कि मगही सउ विधा से समृद्ध हे. हर साल मगही के गोदी किताब से भर रहल हे, अउ मगही अप्पन मोकाम से आगे हे अउ ओकरा सरकार के ओकर हक देबे के चाही. ऊ जनप्रतिनिधि के एकरा ले आगू आबे के निहोरा कइलथिन आउ धिक्कारलथिन भी.  मुख्य अतिथि सदर एसडीओ राजेश कुमार कहलथिन के मगही के अंगना देखे के मोका मिलल, मगही में स्तरीय आउ बेस काम हो रहल हे. लोकभासा मिट्टी से जुड़ल भासा होवऽ हे. एकरा पर जादे धेयान देबे, समुचित स्थान देबे आउ संरक्षित करे के जरूरत हे.  ऊ साहितकार के सानिध से ऊर्जा मिले के बात कहलका. सम्मानित अतिथि एलडीओ व कथाकार सुबोध कुमार जी कहलथिन कि मगही पुनर्जागरण के दौर से भी बहुत आगे हे, मगही में अउ बहुत काम हो रहले हे. हिसुआ ऐसन जगह मे आठ गो किताब के एक साथे लोकार्पण बड़गर बात हे. ऊ मगही साहित संस्कृति के साथे हिसुआ के साहित आउ संस्कृति के भी बड़ाय कैलका. दिनकरनामा के रचइता डॉ दिवाकर जी कहलका कि ऐसन आयोजन से साहितकार के जीवंतता आउ ऊर्जा मिलऽ हे. साहित साधना कठिन हे लेकिन एकर फल शाश्वत हे. साहितकार तिल-तिल जल के साधना करे हे आउ समाज के दशा-दिशा दे हे. प्रोफेसर डॉ मनुजी राय मगही आउ संस्कृत के पौराणिकता आउ महत्ता के रेखांकित कइलका.

इनखा सउ के अलावा हिसुआ के मिथिलेश कुमार सिन्हा, साहितकार वीणा मिश्रा, प्रो शिवेंद्र नारायण सिंह आउ लोगन भी संबोधित कइलका.

 दोसर सत्र में शब्द साधक मंच के अध्यक्ष दीनबंधु आउ कवि रामचंद्र जी के अध्यक्षता में कवि सम्मेलन होल जेकरा में प्रदेश के कविगण समसामयिक विषय पर लगभग सब्भे विधा आउ रस के कविता के पाठ कइलका.  आयोजन में अनिल कुमार, जयनारायण प्रसाद, रोहित कुमार पंकज, उपेंद्र कुमार पथिक, देवेंद्र विश्वकर्मा, दयानंद चौरसिया, सुरेश प्रसाद, प्रवीण कुमार पंकज, पिंटू कुमार, संजय प्रकाश, उदय कुमार आदि लगल हलथिन.

कउन-कउन किताब के होल लोकार्पण---

काजकरम में नवादा आउ नालंदा जिला के मगही रचनाकार के आठ किताब के लोकार्पण होल. गीतकार जयप्रकाश के गीत सेंगरन ‘कइसे कटतइ दुख किसान के’, प्रबंध काव्य ‘काका-काकी’, कहानी संकलन ‘परगंगिया माउग’, नरेश प्रसाद सिंह रजपुरिया के कहानी सेंगरन ‘बंशीदर कांटा’, कहानी सेंगरन ‘सलरी’. नागेंद्र शर्मा बंधु के कहानी सेंगरन ‘गुरगेट’, नालंदा के कवि जयराम देवसपुरी के गीत सेंगरन ‘कमल बोलऽ हइ’, उमेश बहादुरपुरी के ‘रूबाइयां चांदनी ममोसर न’ के लोकार्पण होल. किसाब कला प्रकाशन वाराणसी आउ संवेदना प्रकाशन पटना से प्रकाशित हल, अखिल भारतीय मगही मंजप के संयोजन में तैयार कइल गेल हल.

पांच जिला के साहितकार के होलइ सम्मान----

गया के वरिष्ठ कवि व साहितकार गोवर्धन प्रसाद सदय के साहित सृजन के लेल, टोला टाटी के संपादक सुमंत के लगातार मगही पत्रिका के संपादन के ले, कवि सुरेंद्र सिंह सुरेंद्र के स्तरीय साहित सृजन आउ साहित के सक्रियता के लेल, नालंदा जिला एलडीओ व साहितकार कथाकार सुबोध कुमार को साहित सृजन ले आउ जहानाबाद के कवि व संपादक सुधाकर राजेंद्र के हिन्दी साहित्य सृजन ले शब्द साधक 2016 के सम्मान से सम्मानित कइल गेल. नवादा के साहितकार व संपादक शंभु विश्वकर्मा के उत्कृष्ट हिन्दी पत्रिका संपादन लेल, पभाकार व साहितकार राजेश मंझवेकर के मगही पत्रकारिता के लेल, गीतकार जयप्रकाश के मगही काव्य सृजन के लेल, नाटककार नागेंद्र शर्मा बंधु के उत्कृष्ट मगही नाटक लेखन के लेल, नरेश प्रसाद सिंह रजपुरिया के बेहतर मगही साहित सृजन के लेलस गातकार जयराम देवसपुरी के मगही गीत लेखन के लेल, उमेश बहादुरपुरी के मगही काव्य लेखन के लेल, शेखपुरा के साहितकार किरण शर्मा के उत्कृष्ट मगही साहित सृजन के लेल सम्मानित कइल गेल.

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मगह के आयोजन

राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत सरकार के क्षेत्रीय भासा संवर्धन के ऐतिहासिक काम

प्रदेश के तीन भासा मैथिली, भोजपुरी आउ मगही में अनुवाद पुस्तक देबे के ऐतिहासिक काम

         देश के प्रादेशिक भाषाओं के संवर्धन को लेकर नेशलन बुक ट्रस्ट भारत सरकार ने  बिहार की तीन प्रमुख भाषाओं में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के किताब के अनुवाद निकासे के ऐतिहासिक काम कैलक. बिहार के तीन भासा में अनुवाद किताब निकासे के निर्णय लेके ओकरा पर काम सुरु कैलक. जे साहित जगत के इतिहास में दर्ज होतइ. तीनों भासा के सात-सात किताब निकासे के पहल सुरु होलइ.  

   ट्रस्ट के तत्वावधान में 30 अक्टूबर 2015 के सरदार बल्लभ भाई पटेल के जयंती के पूर्व संध्या पर राष्ट्रभाषा परिषद् सभागार पटना में गो कार्यशाला के आयोजन होल अध्यक्षता केदार नाथ पांडेय जी कइलथिन. जेकरा में राष्ट्रभाषा परिषद के निदेशक जयकृष्ण मेहता, पद्मश्री उषा किरण खान, एनबीटी के संपादव कुमार विक्रम, कार्यक्रम अधिकारी डॉ. कमाल अहमद सहित आमंत्रित साहित्यकार  पहुंचलथिन. मंथन के बाद किताब के अनुवाद करइ के बात पर मंथन होलइ आउ क्षेत्रीय भासा के विकास आउ संवर्धन लेल काम करे के निर्णय लेबल गेलइ.

मगही में अनुवाद के लेल मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा, घमंडी राम, हीरेंद्र विद्यार्थी, सत्येंद्र सुमन, दिलीप कुमार आउ हम्मर( उदय कुमार भारती) के चयन होल. अंर्तराष्ट्रीय स्तर के सात गो किताब के अनुवाद मगही में रे के विचार होल, जेकरा में  रस्किन बांड के रस्टी के कारनामे,  महात्मा गांधी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, डॉ भीमराव अंबेडकर, बैजू मामा, विरसा की कहानी किताब के अनुवाद पहले दौर में रे के प्रस्ताव लेल गेल.  मगही में मुल्ल राज आनंद के गली मोहल्लों के कुछ बोल के उदय शंकर शर्मा, बैजू मामा सत्येंद्र कुमार सुमन, बिरसा की कहानी दिलीप कुमार, बसंत मून के किताब समता के समर्थक अंबेदकर के हमरा (उदय कुमार भारती)  सबका साथी सबका दोस्त घमंडी राम के मिलल. मैथिली में विष्णु प्रभाकर के लिखल किताब सरदार बल्लभ भाई पटेल के अनुवाद मंडलेश्वर झा के,  मुल्लक राज आनंद के किताब गली मोहल्लों के कुछ बोल उषा किरण खान के, रामबृक्ष बेनिपुरी के किताब बैजू मामा प्रदीप बिहारी के, उमा शंकर जोशी के लिखल किताब सबका साथी सबका दोस्त के मैथिली अनुवाद करे के जिम्मा मंडलेश्वर झा के, रस्किन बांड के किताब रस्टी के कारनामें के अनुवाद किशोर केशव  के मिलल

  भोजपुरी में मुल्क राज आनंद के किताब गली मोहल्लों के कुछ बोल के अनुवाद केदार नाथ पांडेय के, महावीर प्रसाद सिंह के बिरसा की कहानी महामाया प्रसाद विनोद के, रामबृक्ष बेनिपुरी के बैजू मामा के अनुवाद रिपुसूदन श्रीवास्तव के, उमाशंकर जोशी के लिखल सबका साथी सबका दोस्त सुनील कुमार पाठक आउ समता के समर्थक के अनुवाद ब्रजकिशोर जी के मिलल. तीनों भासा में सात-सात साहितकार के अनुवाद के काम सौंपल गेल. अनुवाद के काम होल आउ ओकर लोकार्पण महामहिम राजपाल के हाथ से कइल गेल.

  05 सितंबर, 2016 के शिक्षक दिवस के पटना संग्रहालय पटना में कर्पूरी सभागार में ऊ समय के महामहिम राजपाल आउ अभी के मानिंद राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द के कर कमल से ओकर लोकार्पण होल.  गरिमाम उपस्थिति नेशनल बुक ट्रस्ट के अध्यक्ष बल्देव भाई शर्मा जी के हल. 

 महामहिम के आगमन के बाद केंद्रीय विद्यालय बेला के बच्चन सउ राष्ट्र गान के प्रस्तुति देलन.  महामहीम के कर कमल से दीप जरा के काजकरम के शुरूआत कइल गेल, उनखा रास्ट्रीय न्यास के किताब आउ पुष्पगुच्छ से सोवागत कइल गेल. सोवागत भाषण आउ अऩुवाद परियोजना के विवरण देबे के काम बिहार आउ न्यास के संपादक कुमार विक्रम जी कइलका.  किताब के लोकार्पण भेल आउ ओकर बाद संबोधन होल. मगही से उदय शंकर शर्मा उर्फ कविजी, भोजपुरी से डॉ रिपुसूदन श्रीवास्तव आउ मैथिली से उषा किरण खान जी संबोधन कइलथिन. ओकर बाद राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष बल्देव भाई शर्मा जी संबोधन कइलका. ओकर बाद खास संबोधन महामहिम के होल. राष्ट्रगान से काजकरम के समापन होल. धन्यवाद ज्ञापन आउ संचालन के काम पुस्तक प्रोन्नयन केंद्र पटना के प्रभारी डॉ कमाल अहमद जी कइलका.

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मगह के आयोजन

पुस्तक मेला में क्षेत्रीय भासा के देल गेल जगह

   2015 के पुस्तक मेला भी क्षेत्रीय भाषा आउ मगही लेल यादगार रहल. नेशनल बुक ट्रस्ट पटना में पुस्तक मेला लगा के क्षेत्रीय भासा के बल प्रदान करे के काम कैलक. 24 नंवबर 2015 के मेला के उद्घाटन तीन बजे दिन में होल.

  उद्घाटन समारोह में पटना प्रमंडल के आयुक्त आनंद किशोर, एनबीटी के निदेशक बलदेव भाई शर्मा, एनबीटी के सहायक निदेशक अमित कुमार, संपादक कुमार बिक्रम, पुस्तक प्रोन्नयन केंद्र के प्रोग्राम अधिकारी डॉ. कमाल अहमद, राष्ट्रभाषा परिषद् के निदेशक जयकांत मेहता, साहित्यकार शत्रुध्न प्रसाद, कला एंव संस्कृति परिषद् के इस्ट जोन के निदेशक ओम प्रकाश भारती आदि सब्भे हला. मगही, मैथिली, भोजपुरी के साहितकार सउ से भी जुटान हल. बेस काजकरम होल आउ प्रादेशिक भासा के संवर्धन पर बल देल गेल. मेला में क्षेत्रीय भासा के किताब के स्टॉल लगल. मेला में लोक संस्कृति के झांकी और प्रदर्शनी लगाबल गेल. कुल मिला के एहो काजकरम भासा संबर्धन लेल ऐतिहासिके रहल.

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मगह के आउ होबे वला बड़गर आउ यादगार काजकरम 

1.     गही के आउ होबे वला ऐतिहासिक काजकरम में 12 जून 2016 के बिहार मगही अकादमी, पटना उच्च शिक्षा विभाग बिहार सरकार के तत्वावधान में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन, कदम कुआं, पटना में बिहार मगही साहित्यकार के सम्मान के काजकरम होल. काजकरम के सोवागतकरता अकादमी के तत्कालीन निदेशक सुनील कुमार सिंह आउ निहोरा करइ वला उदय शंकर शर्मा उर्फ कवि जी हला. ई काजकरम में मगही के लगभग चार दर्जन साहितकार के सम्मानित कइल गेल. काजकरम में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ सहित आउ साहितकार भी अइलथिन हल.

2.     12 अगस्त 2017 के नीरपुर, अथमलगोला, बाढ़ में महाकवि योगेश्वर प्रसाद योगेश जी के पुण्यतिथि मनावे के बेस आउ यादगार ऐतिहासिक काजकरम होल. काजकरम में पूर्व मुख्य मंत्री जीतन राम मांझी, हिन्दी साहित सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ सहित कय गो नामचीन अतिथि हला. पटना, नालंदा, नवादा, शेखपुरा सहित कय जिला के कवि आउ साहितकार के जुटान होल हल. संचालन रामाक्षय झा जी कैलका हल. मगही के ओकर मकाम देबे ले, महाकवि योगेश जी के आदमकद प्रतिमा स्थापित करइ के आउ पुस्तकालय बनावे के पहल के बात होल हल. अतिथि आउ साहितकार सब्भे के सस्मानित कइल गेल हल. औकर बाद जमके कवि सम्मेलन होल हल. आयोजन योगेश फाउंडेशन के तत्वावधान में होल हल.

सनद रहइ की महाकवि योगेश्वर सिंह योगेश के ई नौमी पुण्यतिथि हलइ. महाकवि के निधन के बाद नीरपुर में हर साल उनखर पुण्यतिथि 12 अगस्त पर बेस और बड़गर काजकरम होबऽ हइ. मगही दिवस के रूप में एकरा मनावल जा हे. आदित्यनाथ योगी तक काजकरम में आ चुकलथिन हे. योगेश फाउंडेशन के तरफ से काजकरम होबऽ हइ. हम साधुवाद दे हिअइ महाकवि के चारों बेटा अनिल कुमार अनिल जी,  अरविंद कुमार, धनंजय उर्फ बबन कुमार आउ पत्रकार मृत्युंजय कुमार जी के जे साहित आउ साहितकार के एतना सम्मान दे हथिन आउ हमन्हीं साहितकार आउ कवि के उनखा इयाद करे के मोका मिलऽ हइ. जुटान के साथ महाकवि के श्रद्धांजलि देबे आउ आशीर्वाद लेबे के मोका दे हथिन. एकरे निमित से मगही आउ साहित जीवंत होवऽ हइ. साहित के नयका ऊर्जा के प्रवाह बढ़ऽ हइ.

अबरी अंक में मगही के आउ चार-पांच साल के इयादगार काजकरम के रेखांकित करइ के काम करबै. मगही साहित ले जे बेस आउ बड़गर काजकरम होवऽ हइ आउ ओकर सूचना हमरा रहऽ इया हमरा तक पहुंचऽ हइ तऽ हम्मर प्रयास रहऽ हइ कि ओकर चर्चा मगही मनभावन में जरूर होवइ. ई मगही साहित के इतिहास आउ दस्तावेजीकरण लेल भी जरूरी हइ.

 एकर बाद के अंक में हम कुछ पुरान आउ कुछ नया काजकरम के रिपोर्टिंग देबे के प्रयास करबै. धन्यवाद।

 क्रमशः..........................

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रचना साभार लेल गेल –

सारथी पत्रिका, दमाही के जोतल अदमी

पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात

रचना मगही साहित के प्रचार-प्रसार के लेल ईहाँ रखल गेल हऽ. कौनो आपत्ति होवे पर हटा देल जात. मगही देश-विदेश जन-जन तलुक पहुंचेई प्रयास में सब्भे के सहजोग के जरूरत हइ.

निहोरा

रचना भेजे में संकोच नञ् करथिनरचना सहर्ष स्वीकार करल जितै.

मगहिया भाय-बहिन से निहोरा हइ कि मगही साहित के समृद्ध करे ले कलम उठाथिन आऊ मगही के अप्पन मुकाम हासिल करे में जी-जान से सहजोग करथिन.

मगही मनभावन पर सनेस आऊ प्रतिक्रिया भेजे घड़ी अप्पन ई-मेल पता जरूर लिखल जायताकि ओकर जबाब भेजे में कोय असुविधा नञ् होवै.

मगही मनभावन ले रचना ई-मेल से इया फैक्स से हिन्दी मगही साहित्यिक मंच ‘शब्द साधक’ के कारजालयहिसुआ पहुँचावल जा सकऽ हे.

शब्द साधक

हिन्दी मगही साहित्यिक मंच

हिसुआनवादा (बिहार)

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