मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-४
मगही मनभावन
मगही साहित्य ई-पत्रिेका
वर्ष-१ अंक-४ माह-दिसम्बर २०११
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ई अंक में
दू गो बात.......
कहानी
दरकल खपरी -- मिथिलेश
छिनार -- धनंजय श्रोत्रिय
कविता-कियारी
ई सुजनी हकै बिहार के -- उदय शंकर शर्मा
गाँव के दलाल -- दयानन्द बेधड़क
मगध महिमा -- प्रवीण कुमार 'पंकज'
दोहा -- संत राम नगीना सिंह 'मगहिया'
एकता के गीत सुनैवै हम -- शफीक जानी नादाँ
गाछ -- नरेन्द्र प्रसाद सिंह
मगही हाइकु
हाइकु दिवस पर खास
दीनबन्धु के हाइकु
एकांकी
केंचुआ -- रामचन्दर
पुस्तक समीक्षा
चिजोर -- जयराम सिंह
समीक्षक -- डॉ० शिवेन्द्र नारायण सिंह
मगह के आयोजन
सौर,वारिसलीगंज के सगर रात दिया जरे काजकरम
मगही दिवस मनावल गेल
विविध
सनेस मिलल
पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
निहोरा
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कहानी
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दू गो बात……
दोसर भासा के मुकाबला में मगही के खड़ा करे ले मगही साहित लेखन में बदलाव के जरूरत हे। मगही के लिखताहर आझ भी पुरनके लीक पर चल रहला हऽ। कद्दावर-कद्दावर साहितकार अभियो आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल आउ छायावाद के साहित परोस रहला हऽ। आधुनिक मगही के साहित सृजन बहुते कम हो रहल हऽ। मगही के मुकाबला दोसरका भासा के आधुनिक साहित से हे। एकरा दोसर के समानान्तर खड़ा होना हइ। ईले आधुनिेक मगही के सृजन जादे महत्वपूर्ण हो जाहे। अभी भक्तिकाल, छायावाद के दौर नञ् हे। समाज आधुनिक काल से गुजर रहल हे। साहित समाज के दर्पण होवऽ हे। आझ के सभ्यता-संस्कृति के साहित के जौर करे लेल बदलाव स्वीकार करे के जरूरत हे।
मगही हम्मर लोक संस्कृति के बचैले हे, ओकरा जीवन्त रखले हे, लेकिन हम मगही के समृद्ध करे में कोताही कर रहलूँ हऽ। ई हम्मर पुरनका संस्कृति तो बचैले हे, लेकिन हम ओकर संस्कृति के विस्तार नञ् कर रहलूँ हऽ। नया काल, नया संस्कृति आउ नया अध्याय जोड़े के काम कम हो रहल हऽ। समाज के भूत वर्तमान ओकर साहित में झलके हे। हम्मर मगही में भूत तो खूबे झलक रहल हे, पर समकालिन साहित के सृजन में कमी हे। हम पिछलका काल के संस्कृति आउ विरासत के जोगउले जरूर हकूँ, पर नया विरासत जे भविष्य में भूत बनत, ओकर ‘पाया’ तैयार नञ् कर रहलूँ हऽ। आझ के समाज में लाख विद्रूपता के बावजूद जे अच्छाई आउ नयका दमगर संस्कृति उभर रहल हऽ, ओकरा कलम से समेटे के कोरसिस नञ् हो रहल हऽ।
मगहिया अब खाली किसान-मजदूर, दबल-कुचलल नञ् हका, बलुक एकर रहन-सहन, खान-पान, पर-परिवेश आधुनिकता के हिसाब से बदल गेल हऽ। मगही के गांम से निकाल के शहर लावे के जरूरत हे। मगह में अब खाली गांमे नञ् हे, बड़का-बड़का शहर भी हे, जहाँ मगही बोले आउ मगही संस्कार से जीये वला के कमी नञ् हे। बुधुआ, मंगरू, गंगुआ, बुधनी, सुधनी जैसन अनपढ़ बाल-बच्चा तो हम्मर पिछलका दशक में हल। आझ हर्ष, मंगल, शुभम, वर्षा, ईशा, नीलू जैसन डॉक्टर, इंजिनियर, प्रोफेसर, अधिकारी, वैज्ञानिक हम्मर बाल-बच्चा हो गेल हऽ। ओकर मनोदशा, समस्या, संस्कार, परिवार, समाज, राजनीति के साहित कैसे तैयार होत? मध्यम वर्गीय समाज आउ ए ग्रेट के आझ के समाज के रंग-ढंग, सभ्यता-संस्कृति के साहित कहिया लिखात? २१वीं सदी के मगही साहित के पन्ना कैसे समृद्ध होत? आझ के समाज के साहित जउ हम्मर पीढ़ी २२वीं आउ २३वीं सदी में खोजत तउ ओकरा की मिलत? आझ के समाज के विद्रूपता, विसंगति, कुरीति, समस्या आउ निदान के साहित कैसे जौर होत?
बदलाव संसार के नियम हे। एकरा प्रत्यक्ष इया अप्रत्यक्ष तौर से स्वीकार करे पड़े हे। मगही साहितकार के ई बदलाव स्वीकार करे के चाही। हमहीं मगही के एके जगह पर खड़ा करले ही। मगही के विकास के हमहीं बड़गर वाधा ही। दोसर भासा हम्मर मगही से आगू काहे निकल गेल? काहे कि ऊ बदलाव स्वीकार कैलक। बदलाव के मतलब खाली अश्लीलता आउ नग्नता नञ् होवऽ हे। काल के अनुरूप साहित में परिवर्तन होवऽ हे। आझ के सभ्यता आउ संस्कृति से बेस-बेस ‘मख्खन’ टाईप जेकरा से हम्मर विरासत संवरता, ओइसन साहित के कलम से समेटे के जरूरत हे। गुलामी, जमींदारी काल के साहित खूबे लिखाल। भ्रष्टाचार, कालाबाजार, घूसखोरी, बाजारवाद, क्षेत्रवाद, आतंकवाद जैसन ज्वलंत टॉपिक के साहित कहिया लिखात?
आझ समकालीन मगही के जरूरत हे। हमरा-तोहरा लेल नञ्। मगही के समृद्धि के लेल आउ आवे वला नयका पीढ़ी के लेल। जे साहितकार आधुनिक साहित सृजन में लग गेला हऽ, उनका तो कुछ कहे के जरूरते नञ् हे, पर जे आझ भी पुरनके लीक पर चल रहला हऽ, उनका मनन करे के जरूरत हे। खासके काव्य विधा में। काव्य के आधुनिक संस्कृति मगही में सहेजे के जरूरत हे। एकर अलावे मगही गद्य विधा में खूबे लिखे के जरूरत हे। उपन्यास, नाटक, एकांकी, यात्रा वृत्तांत, संस्मरण, ललित निबन्ध, व्यंग्य, समसामयिक आलेख के जरूरत जादे है। दोसर भासा से अनुवाद के जरूरत हे। रामायण, गीता सहित कुछो कृत्ति के अनुवाद होल हऽ, लेकिन ऊ कम हे। मेघदूतम्, अभिज्ञान शाकुन्तलम्, महाभारत आउ दोसर भासा के कृत्ति के अनुवाद से मगही के बल मिलत। आउ जब गद्य में मगही साहित के भंडार भर जात तबे एकर मानक वर्तनी आउ शुद्ध व्याकरण तैयार होत। मगही के ऊँचाई मिलत। मगही एलबम, वृत्तचित्र, नाटक, फिल्म बगैरह बनाबे लेल आगू आवे के जरूरत हे।
उदय कुमार भारती
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कहानी
दरकल खपरी
मिथिलेश
खपरी के लड़ाय विस्तार लेवे लगल हल। भेल ई कि हुसैनमावली के बूँट भूँजइ के हल। रोटियानी-सतुआनी लेल घठियन अनाज के भुँजाय-पिसाय घरे-घर पसरल हल। अइसे भुँजाय-पिसाय के झमेला से बचइ ले कत्ते अदमी बाजारे से सत्तू ले आल हल। बुलकनी के अउसों नइहरे से माय कूट-पीस के भाय पहमां भेजवा दे हल। बेचारी के ईम साल तऽ रबियो के ढ़ांगा खरिहाने में धइल हल। थरेसर के फुरसत होवे तब तो। आज कल ने गाँव में बैल रहल ने दमाही। खेती टरेक्टर पर दारोमदार बुलकनी के नइहरा हुसेना में चार बीघा के खेती हल। माय पूरा परिवार अप्पन अँचरा में समेटले रहऽ हल। सब काम ओकरे से पूछ के होवे। माय लेल सब बरोबर बकि बंस बढ़े पिरीत घटे। अब सबके अप्पन-अप्पन जना लगल। माय पुतहू सब के आगु बेबस भे गेल। ओकर स्नेह के अँचरा तार-तार भे गेल। अब तऽ पुतहू अँचरा कस के मुँह चमका-चमका आउ हाथ उलार-उलार के ओलहन देवऽ लगल, "बुढ़िया के बस चलइ तऽ हुसेनमा के मटिया तलक कोड़ के बेटिया हियाँ पहुँचा देय।" माय जब बेटा से पुतहू के सिकायत कइलक तऽ तीनों बेटा अगिया बैताल भे गेल। तीनियों गोतनी के हड़कुट्टन भेल। छोटका धइल तड़ंगाह हल। बमक के बंगइठी उठइलक आउ अपन माउग के धुन देलक, "ससुरी काटि के धर देबउ जो हम्मर माय से उरेबी बोलले हें। ई चाल अप्पन नइहरा रसलपुरे में रहे दे।"
रसलपुरवली के शेखपुरा अस्पताल में आठ टाँका पड़ल हल। जादेतर छोटके परब-तेहवार में कुछ न कुछ लेके बहिन हियाँ आवऽ हल। बुलकनी के पता चलल तऽ भउजाय के देखइ ले शेखपुरा चलि गेल। भउजाय मुँह फुलइले रहल। एकसर में छोटका सब खिस्सा फारे-फार सुना देलक। कठुआल बुलकनी भउजाय भिजुन अपराधी-सन आधा घंटा तक रहल बकि ऊ अँखियों उठा के एकरा दने नञ् देखलक। ठिसुआल बुलकनी भाय दने मुँह कर के बोललक, "अरे नुनु! तों तो समझदार हें। तोरा ई सब नञ् करे के चाही। बेचारी माय-बाप छोड़ के तोर दुआरी अइलउ तऽ तोरे पर ने।अब एकरा जइसे निबाहीं। तोर गोस्से बड़ी भारी हउ।" एतना बोल के बुलकनी भउजाय दने मुड़ल आउ माथा पर हाथ रखइत बोलल, "हम्मर सुगनी के गति-मति दीहा गोरइया बाबा।" एतनो पर जब भउजाय सुग से बुग नञ् कइलक तऽ बुलकनी भाय से बोलल, "जा हिअउ बउआ...... घर में ढेना-ढेनी हउ।"
छोटका टिसन तक गाड़ी चड़ावे साथ आल। गाड़ी में देरी हल। बहिन के एगो चाह पिलइलक आउ बुतरू लेल कंकड़ी खरीद के दे देलक। बुलकनी माय से मुलाकातो नञ् कइलक लउट....गेल। बुलकनी के दुन्नू बेटा हरियाना कमा हे। बेटी दुन्नू टेनलग्गू भे गेल हे। खेत-पथार में भी हाँथ बँटावे लगल हल। छोटकी तनि कड़मड़ करऽ हल। ओकर एगो सख्खी पढ़ऽ हल। ऊ बड़गो-बड़गो बात करऽ हल, जे तितकी बुझबो नञ् करे। ओकर इसकुलिया डरेस के तितकी छू-छू के देखऽ हल। एक दिन घाट पर सख्खी एकरा अपन डरेस पेन्हा देलक अउ कहलक हल, "कैसी इसकुलिया लड़की लगती है।" तहिया से तितकी इसकुलिया सपना में उड़ऽ लगल। ऊ दिन घर आके माय से कहलक, "माय, हमहूँ पढ़े जइबउ।" माय तऽ बाघिन भे गेल, "तोर सउखा में आग लगउ अगलगउनी।" माय के लहलह इंगोरासन आँख तितकी के सपना के पाँख सदा-सदा लेल झौंस के धर देलक।
अस्पताल से लउट के बुलकनी जोजना बनइलक--घठियन अनाज खरिहान में हे। थरेसर भरोसे रहम तऽ भेल बिसुआ। ताक पर नहियें होवत। माय-बेटी पुंठी से पीट के काम भर निेकाल लेम.....आगू देखल जात। ई लेल सबेरे उठल आउ बोझड़ी के खरिहान में पसार देलक। पछिया खुलल हल, खरंगते कि देरी लगत? तब तक जाही, ठौर-चौका कर के चल आम। आवे घरी छोटकी गोतनी अप्पन बकरी से कह रहल हल, "गियारी में घंटी टुनटुनइले चलऽ हल। बाप के हलऽ? खोल लेलकउ ने करूआमाय। अनका माल पर भेल झमकउआ, छीन-छोर लेलक तऽ मुँह भे गेल कउआ।"
बुलकनी बुझलक। ओकरा ई बात बान नियन करेजा में लगल। ऊ अप्पन दुन्नू बेटी के लेले दनदनाल खरिहान दने सोझिया गेल। बुलकनी गेहुम के बान हंसुआ से छोपे लगल। रनियां पुंठी से बूँट के ढांगा पीटे लगल। तितकी पछुआ गेल। महुआ गाछ तर देखलक, चार गो छंउड़ी टप-टप टपकल महुआ चुन रहल हे। उहो चुने में लग गेल। सोंचलक सुखा के भुड़रि के खाम, बूँट के भुंजा के साथ।
बुलकनी के धेयान गेल-तितकी? ऊ एने-ओने ताकऽ लगल तऽ देखऽ हे घुनलगउनी महुआ चून रहल हे। कस के हेकइलक, तितकीऽऽऽऽऽ... "कहाँ मर गेलहीं गे। चुटकी भर महुआ से पेट भरतउ? गिल्ले घरी आगुए थरिया लेके दमदाखिल होमें चल।"
तितकी आवे के तऽ आल बकि टुघरइत। माय के गोस्सा कपार चढ़ गेल, "छिछिअइली, सोगपरउनी। लगऽ हे देह में समांगे नञ् हइ। मन करऽ हइ ईहे ईंटवा से कपार फोड़ दिअइ। चल केराव पीट। कोकलत जाय ले ईहे छान-पगहा तोड़ा रहल हे। मोहनभोग बना के कलदआ देबउ कि ईहे बूँटा-केरइया, गेहुमां के सतुआ।"
तितकी गुमसुम केराय पीटे में लग गेल। ऊ भीतरे-भीतर भुस्सा के आगसन धधक रहल हल-- जाय दुन्नू माय बेटी कोकलत, भला, हम तऽ महुआ के खोढ़र से अइलिए हे। जब ने तब हमरे पर बरसत रहतउ। दीदी तऽ दुलारी हई। सब फुल चढ़े महादेवे पर। ओकरे मानऽ हीं तऽ ओहे कमइतउ। हम तऽ अक्खज बलाय हिअउ। फेंक दे गनउरा पर। नञ् जाम कोकलत। कय तुरी नहा अइलूँ हे। कुछ देरी तऽ ऊ मनेमन झगड़इत रहल। गोस्सा के ओकर हाथ मसीन सन चल रहल हल। ऊ दुन्नू से पहिले काम निबटा के बिन चुनले-फटकले उठल आउ गाँव दने सोझिया गेल।
माय तितकी के रुख भाँफ गेल। एक छन तितकी के देखइत रहल फेन रनियां पर नजर फेर गेहुम के बान अइंटा से चूरऽ लगल। ऊ सोंच रहल हल- ई लुरकी जहाँ जइती, आग लगइती। रनियां भी तो ईहे कोख के हे। की मजाल कि कउनो काम में टार-बहटार करे। उकरा ऊँच-नीच के समझ हइ। जे कुल में जइतइ, तार देतइ।
अइसीं बारह बजते- बजते काम निस्तर गेल। सुरूज आग उगल रहल हल, जेकरा में धूरी-गरदा के साथ प्लास्टिक के चिमकी रंगन-रंगन के फुल-सन असमान में उड़ रहल हल। पछिया के झरक से देह जर रहल हल। भुस्सा के एगो ढेरी बना देलक। मिंझराल भुस्सा गाय मस्स-मस्स खइतो। उपर से खाली पानी देखावे के काम। चारो अनाज अलग-अलग लुग्गा में बान्धलक आउ खंचिया में सरिया के माथा पर उठावइत बोलल, "चल....हम तलाय पर से आवऽ हिअउ।"
कहइ के तऽ सत्तु-फत्तु कोय खाय के चीज हे। ई तऽ बनिहार के भोजन हे। बड़-बड़ुआ एन्ने परकल हे। अब तऽ गरीब-गुरबा लेल सत्तु मोहाल भे गेल। देखहो ले नञ् मिलऽ हे। पहिले गरीब अदमी मुठली सान के खा हल.....इमली के पन्ना....आम के चटनी......पकल सोंह डिरिया मिरचाय अउ पियाज....उड़ि चलऽ हल। बूँट खेसाड़ी तऽ उपह गेल। सवाद मेंटावइ लेल मसुरी, गेहुम आउ मकइ मिला के बनइतो जादेतर लोग। अग्गब चना के सत्तु तऽ पोलीथीन के पाकिट में बिकऽ हे-पचास रूपइया किलो।
बुलकनी धथपथ आल आउ पहिले गेहुम के कठौती में फूलइ ले देलक। चूल्हा जोर के बूँट, मसुरी आउ केराय के तारऽ लगल। तितकी अभी लउट के नञ् आल हल। रनियां सब गंदा कपड़ा सरिया के साफ करइ लेल तलाय पर चलल कि माय टोकलक, "बासिए मुँह हें कुछ खा नञ् लेलें?"
"घोघी में फरही ले लेलिए हे.....फाँकते चल जइबइ।" बोलत घर से बहरा लगल।
"तितकी के खोज तऽ। मियाँ के दउड़ मस्जिद तक। आउ कहाँ जइतउ। सरधावा के साथ गाना गोटी खेलऽ होतउ पंकड़िया तर।"
चारो अनाज तार-तूर के बरकइ ले छोड़ देलक आउ अदहन चढ़इलक। खिचड़ी बनते-बनते रनियां आ जात।
आउ ठीक खिचड़ी डभकते रनियां तलाय पर से आ गेल।
"तितकी नञ् मिललउ?" माय डब्बू लाइत पूछलक।
"कहलिअउ तऽ आउ हमरे पर झुंझला लगलउ।"
"आवऽ दे। भुखले रखम। चल....पहिले खा पी ले, फेन भुंजइत-पिसइत रहम।
बुलकनी के काहे तो आझ अप्पन मरद के रह-रह के इयाद आ रहल हल। ढेना-ढेनी देख के सबूर कर लेलक हल- चलऽ, ई पिलुअन ओकर निसानी हे। एकर मरद दिल्लीवला चुनाव में मारल गेल हल। नया-नया लाल झंडा उठइलक हल। बड़कन के नजरचढू भे गेल हल। भोट देके निकल रहल हल कि बूथ लुटेरवन छेंक लेलक। गनौर गाँव दने भागल जा हल कि एक गोली ओकर कनपट्टी में आ लगल आए ओजइ ढेरी भे गेल ऊ। आम चुनाव के आन्ही में बुलकनी के संसार उजड़ गेल। ओहे साल बँटवारा भेल हल। तीनियों एक्के घर में रहऽ हल। एक्कक भित्तर हिस्सा पड़ल हल। अँगना एक्के हल। छोटकी छरदेवाली देवे चाहऽ हल। भभू के मसोमात रूप देख के बड़का समझइलक, "मंझली के केकरा भरोसे एकल्ले छोड़महीं। हम्मर जिनगी भर अँगना एक्के रहऽ दे। चूल्हा अलग करलें, अलग कर, बकि रह मिल जुल के, एक्के परिवार नियर। बँटवारा धन के होवऽ हे, संबंध आउ मन के नञ्। भइपना छूरी से काट के बाँटइ के चीज नञ् हई छोटकी ! आउ ऊ फूटके कानऽ लगल।
बँटवारा के बाद से छोट-छोट बात पर बतकुच्चन होबइत रहऽ हल। घटल बढ़ल जहाँ टोला-पड़ोस में अइचां-पइचां चलऽ हे, वहाँ अँगना तऽ अँगने हे। कुछ दिन तऽ ठीक-ठाक चलल बकि अब अनदिनमां अउरत में महाभारत मच लगल। एन्ने एक महिना से मँझली से बोल-चाल बंद हल। बुलकनी तिसी के तेल पेड़ा के लइलक हल। एक किलो के तेल के डिब्बा ओसरा पर रख के गाय के पानी देखावइ ले गोंड़ी पर चल गेल हल। रउदा में गाय-बछिया हंफ रहल हल। पानी पिला के आल तऽ देखऽ हे कि छोटकी के तीन साल के छंउड़ी तेल के डिब्बा से खेल रहल हे। बुलकनी के मुँह से निकल गेल, "आवो दे खरूआ।"
बस, बात बढ़ गेल। सात कुरसी के उकटा-पैंची भेल। हाथ उलार-उलार के दुन्नू अँगना में वाक्-जुद्ध करऽ लगल। महाभारत तऽ बाते से सुरू होवे हे, बान तऽ चलऽ हे अंत में। आउ अंत में दुन्नू भिड़इ-भिड़इ के भेल कि हल्ला सुन के बड़का हाथ में सन काटइ के डेरा लेले आ धमकल। छोटकी सब दोस ओकरे पर मढ़ देलक, "अपन अँगना रहत हल तऽ आज ई दिन नञ् देखे पड़त हल।" धरमराज बनला हे तऽ संहारऽ मँझली के। नञ् तऽ छरदेवाली पड़ के रहतो।
बड़का बीच-बिचाव कइलक, "बुतरू के बात पर बड़का चलत तऽ एक दिन भी नञ् बनत। ई बात दुन्नू गइंठ में बाँध ला। तनि-तनि गो बात पर दुन्नू भिड़ जा हा, सोभऽ हो? की कहतो टोला-पड़ोस?"
सान्त होबइ के तऽ हो गेल बकि दुन्नू तहिया से कनहुअइले रहऽ हल। आझ मँझली के काम आ पड़ल। अनाज भुंजइ के एगो छोटकिये के पास खपरी हल।
खा-पी के छोटकी के अवाज देलक, "अहे छोटकी--- जरी खपरिया निकालहो तो।"
"हम्मर खपरी दरकल हे।"
"नञ् ने देवो--- फेन मुड़ली बेल तर। ने गुड़ खाम ने कान छेदाम। सो बेरी के बेटखउकी से एक...
खेर दू टूक। साफ कहना सुखी रहना।
मँझली समझ गेल। विदकल घोड़ी सम्हरेवली नञ् हे। मुदा अब होवे तऽ की। तारल अनाज भुंजइ बिना खराब भे जात। आग लगे अइसन परव-तेवहार के। ओकरो पर ई अजलत के कोकलत वला मेला। हमरो नाम से नइहरो में आग लग गेलइ। अब गाँव में केकरा-केकरा भिजुन घिघियाल चलूं?
बड़की अखइना लेवे आल हल तऽ कचहरी गरम देखलक। बात सवाद के बोलल, "खपरी दरके के पहिले तोर दुन्नू के मन दरक गेलऽ। की करमहीं, अब तोरा दुन्नू के बइना-पेहानी से चल के गोतियारी भी खतम भे जइतउ। की करमहीं, दुनिया के चलन हई। गोतिया-सुतुआ नान्हें ठीक।"
बुलकनी के उपदेश के नञ् , समाधान के जरूरत हल। ऊ उठल आउ पड़ोस में चलि गेल। तरेंगनी के घर खपरी चढ़ल हल। जइते के साथ अपन दुखड़ा सुनइलक। तरेंगनी के भी एकर सिकायत सुन के अच्छा लग रहल हल। ऊ हुलस के कहलक, "मायो, हइये हइ एकछित्तर दू भित्तर। ले आवऽ अनाज आउ भुंज ला। घटल-बढ़ल गाँव में चलवे करऽ हे।"
बुलकनी रपरपाल घर आके रनियां के माथा पर अनाज के टोकरी धइलक आउ कहलक, "तारो घर चल, हम जरामन लेके आवऽ हिअउ।"
अइसइं पहर रात जइते-जइते भुंजान-पिसान से छुट्टी मिलल। लस्टम-फस्टम बुलकनी सतुआनी आउ रोटियानी के सरेजाम जुटइलक।
राह कलउआ लेल ठेकुआ अलग से छान देलक। निचिंत भेल तऽ धेयान तितकी दने चल गेल। अभी तक नञ् आल हे। ई छौंड़ी के मथवा जरूर खराब भे गेले हे।
रनियां रोटी ठोक रहल हल। बुलकनी पूछइत-पूछइत सुलोचनीघर गेल तऽ देखऽ हे कि दुन्नू एगो थइला में मेला जाय के समान सरिया रहल हे। बुलकनी झनकऽ लगल तऽ सुलोचनी के माय कहलक, "दिनो भर बेचारी हमरे घर में रहल हल कि हम मेला देखे नञ् जाम। सुलोचनी किरिया देलइक हे कि हमर मरल मुँह देख जो मेला देखे नञ् जो। जाय देहो बेचारी के.....साल भर के मेला.....के देखलके हे। तूँ नञ् चल रहलीं हें।"
"रंग में भंग भे गेलो दइयो। मन तऽ छोट भे गेलो....की जइयो। तूं जाइये रहली हे तऽ दुन्नू के साथ कर लीहऽ।"
चान उग गेल हल। सोनफहक भेल कि बुलकनी दुन्नू बेटी के जगा देलक, "रानीऽऽऽऽ....तीतो उठ जा। डीअम्मा भोरगरे आवऽ हउ। चोटी-पाटी कर ले। नहइमें तऽ धामें पर।" माय बांस के मूठवला थइला में दुन्नू बेटी के समान समटइत बोलल, "कउल-कउन कपड़ा लेमहीं....दे जो। माय सिक्का से ठेकुआ के कटोरा उतारे लगल। एगो पोलिथिन में सतुआ आउ ठेकुआ के गंइठी देलक कि तितकी अपन कपड़ा आगू में रख के लपकल घर से बहरा गेल। रनियां के मन पेटी से दसहरा वला फरउक निकालइ के हल। ऊ मने-मन डर रहल हल कि कहइं माय डाँट ने दे। मेला देख के जइसहीं आल कि खोलवइत कहलक हल, "रख रानी, लगन में पेन्हिहें।" से ऊ माय के आगू आके खड़ी भे गेल।
"देरी काहे कर रहल्हीं हें। तलाय पर से मुँह-कान घोवइत अइहें।"
"पेटीवला फरउक निकालिअउ माय।"
"ओहे पेन्ह के जइमहीं?"
रनियां गुम भे गेल। ऊ माय के आँख पढ़ऽ लगल।
"मन हउ तऽ निकाल ले।"
रनियां भित्तर दने रपटल।
"बरतन अर पर धेयान रखिहें। देख, एगो थरिया, एगो लोटा, एगो गिलास आउ पलास्टिक के मग रख दे हिअउ। निम्मक-मिरचाय, अमउरी आउ चिन्नी भी दे देलिअउ हे।" थइला के चुन लगवइत माय बोललक।
छोटकी भी जा रहल हल। ओकर टेनलगुआ छंउड़ा साथ जा रहल हल। छउड़ा रनियां के अंगू हल। केस चीरे घरी आगू में आके बइठ गेल आउ अइना उठा लेलक।
"अइना रख दे नुनु तोरो तेल लगा के झाड़ देवो।" रनियां ओकर मुँह चूमइत बोलल।
छोटकी आन्हीं -सन आल आउ झपट के छंउड़ा के उठा के ले गेल।
रनियां के काटऽ तऽ खून नञ्।
छंउड़ा लोट-लोट के कह रहल हल, "दीदी....हमरो केस झाड़ दे....आं....आं....आं....हमहूं जइबउ।"
छोटकी खिसिया के मुँह में तीन-चार चांटा जड़ देलक। छंउड़ा के विरोध बढ़इत गेल।
रनियां उठल आउ चाची के गोदी से पुटुआ के छीनइत बोलल, "तूं दुन्नू गोतनी लड़ऽ हें, लड़, बकि हमरा बुतरुअन के लड़इ ले काहे सिखावऽ हें चाची? पुटुआ हमरे गोदी में मेला देखे जात....भेलउ ने।"
आउ सच्चे सभे घर से एक्के साथ निकलल....आगू-आगू चाची, ओकर पीछू रनियां आउ अंत में माथा पर चाउर के मोटरी आउ हाथ में थइला लेले तितकी। पुटुआ रानी के गोदी में अपने रांगल गोड़ देख देख रहल हल। बुलकनी कहलक, "हे छोटकी, चउरा बेचवा दीहोक....छो किलो हो।"
छोटकर गियारी घुमा के बुलकनी के देखलक आउ मुसक गेल।
"थाली मोड़ पर झिल्ली किना दिहोक.....मूढ़ी साथे हइ।" मुसकइत बुलकनी छोटकी के समदलक।
पुटुआ रानी के मुँह में अपन नान्ह हाथ से अपना दने घुमावइत बोलल, "हमला एदो दहाज किना दिहें दीदी....सुईऽऽऽ। बुलकनी के लगल जइसे ऊ सौंसे परिवार के साथ ओहे जहाज पर उड़ल मेला देखे जा रहल हे।
- वारिसलीगंज, नवादा
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छिनार
धनंजय श्रोत्रिय
“अपने शहरी ही, हम गउआँ-गवार। अपने सरीफ ही, हम छिनार। हाँ, लोग-बाग हमरा ईहे रूप में देखऽ हथ।” मसुआयल चेहरा से बोलल रेसमी, सामने पलंग पर बइठल कनकलता से।
“कनकजी ईहे कारन प्रोफेसर साहेब हमरा त्यज देलन। हम नइहर में भाय-बाप के ऊपर बोझा बनल ही। कल के छउँड़ सब हमरा देख के गुल्ली गढ़ऽ हे, मुँह चमहलावऽ हे, हाँथ के अँगुरी से इसारा करऽ हे। भगमान जानऽ हे कि हम केकरो संग ऐसन कोय बेहवार नञ् कयली हे, जेकरा कारन कोय पति के अपन संगनी के छोड़े पड़े। भाय-बाप के मुड़ी नीचा हो जाय। हम्मर हसनय-बोलनय के लोग छिनरधात समझऽ हथ, तऽ ई हम्मर दुरभाग नञ् तऽ आउ की हे।” सिसके लगल रेसमी।
“भाभी अपने चिंता नञ् करथिन। हम तऽ ईहे जाने खातिर इहाँ ऐबे कइली हे। रिसर्च के चलते सर के साथ रहे के हमरा खूब मोका लगल हे इधिर। हम उनखा अंदर से टूटते सालो पहिले देखली हल, बकि एकर कारन हम कुछ आउ समझली हल। जब एक दिन ऊ हमरा से प्रेम के प्रस्ताव रखलन तऽ हम अंदर से सिहर गेली।” थोड़े रूक के बोलल कनकलता- “भाभी सर जइसन होनहार अदमी के संग केकरा नञ् पसंद हो सकऽ हे, बकि हम केकरो हक नञ् छिने चाहऽ ही। ईहे ले हम अपने से मिले लऽ सोचली।”
“बउआ, हम सहर में रहली तऽ नञ् हे, बकि जइसन सुनऽ ही आउ टी०वी० में देखऽ ही, ऊ मोताबिक तऽ हुआँ सैंकड़े नब्बे छिनार हे आउ दस इनसान, जदि प्रोफेसर साहेब के मन मोताबिक सोंचल जाय। अच्छा, तूँ सब केकरो से हँसऽ-बोलऽ नञ् हऽ? जीजा-साली, देउर-भोजाय, ननद-ननदोसी से हँस्सी-ठट्ठा कउनो हमनीएँ से थोड़े सुरू होल हे। ई तऽ नञ् मालूम कहिया से चलल आ रहल हे।” थोड़े रोसिया के बोलल रेसमी। “आउ हम छिनार ही तऽ तोर सर की हथुन? बेटी दाखिल होबऽ हे शिष्या। ओकरा से बिआह आउ प्रेम के प्रस्ताव करे वला बिआहल अदमी, छिनरा नञ् तऽ आउ की हो सकऽ हे। हम कसुरबार ही, काहे से की औरत ही, ऊ पुरबार हथ, काहे से की मरदाना हथ। तूँ परमान हऽ बउआ उनखर छिनरा होवे के, बकि हम्मर छिनार होवे के प्रोफेसर साहेब के पास कोय सबूत हे? बस खाली सोहबा पर केकरो कुछ कह दे अदमी। ऊ भी ऊ, जे समझदारी के ठिकेदार हे, गेयान के दाता हे।” कँपसते रेसमी के आवाज में जे बिद्रोह के चिनगारी हल ओकरा प्रोफेसर मोहन प्रकाश देखतन हल तऽ पता चलतन हल यार के।
“भाभी सर के तरफ से हम माफी माँगित ही अपने से, आउ बादा करऽ ही कि हम उनखा तोहर जिनगी में फेर बापिस ला के देखा देम। य हम्मर कउल हे तोहरा से।” बिसवास भरल अवाज में बोलल कलकलता।
रेसमी टुक-टुक ताकते रहल। आझ कनकलता ओकर जिनगी में आस भर देलक हल।
“अच्छा, अब हमरा आदेस दऽ।”
“जा, सुखी रहऽ। भगमान तोर जिनगी खुसी से भर देथ।” आभार जतइते बोलल रेसमी
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प्रो० मोहन प्रकाश भासा के जानिसकार आउ जानल-मानल प्रोफेसर हथ सहर के। एकरा दुरभागे कहल जा सकऽ हे कि ऊ घरनी के सधारन हँसी-ठट्ठा आउ बोल-बतियान के भी बरदास्त नञ् कर पइलन आउ ओकरा तेयाग के तीन कमरा के मकान में अकेलुआ रहऽ हथ। एकरा में रेसमी के कम पढ़ल होना भी सामिल हो सकल हे आउ ओकर गँवारु बेहवार भी। बकि नारी पर सहंसर अजलेम लगा के किस्मत कूटे वला एक से एक अभागल भरल हे समाज में, ऊहे में से एक हथ प्रो० मोहन प्रकाश। नञ् मालूम काहे घंटों से बेचैन लग रहल हल प्रोफेसर साहेब के मन। अनमनाल टी०वी० देखे लऽ बइठ गेलन ऊ। चैनल पर चैनल बदलते जाथ, मुदा मन के हलकान नञ् मिटे। मने-मन छगुने लगलन ऊ कि जदि ई मोका पर कनक आ जाय जऽ थोड़े मन सांत हो सकऽ हे। बेचैनी कम करे लऽ ऊ पलंग पर जा के पड़वे कइलन कि कौलबेल बजल। दरबाजा खुलतहीं कनकलता सामने हल।
“परनाम सर….र….रऽऽऽ….। कनक तनी मुसक के बोलल। प्रोफेसर साहेब निहाल। आके ऊ पलंग पर बैठ गेलन। कनकलता सोफा प बइठे लगल तऽ मोहन प्रकाश हाँथ पकड़ के पलंग पर बइठा लेलन।
“कनक आझ तोरा फइसला करे पड़तो, हम्मर प्रस्ताव पर की सोंचलऽ?” प्रोफेसर साहेब बिछ गेलन।
“सर अपने हमरा ले पितातुल ही, हमरा अंदर गेयान के जोती जगावे वला। खुद काहे अन्हार में भटकइत ही।” कनकलता तनी मन कड़ा करके बोलल। “सर हम कल अपने के गाँव गेली हल। मैडम से बातचित होल। कनक!- प्रोफेसर साहेब ओकर बात काट के तनी गोसाल नियन बोललन, “नाम नञ् लऽ ओकर। रेसमी के बारे में हम कुछ नञ् सुने लऽ चाहऽ ही।”
“सर अपने के सुने पड़त। आझो अगर अपने सुने लऽ तइयार नञ् होवऽ तऽ अनर्थ हो जात।” कनकलता मनुहार कइलक। “सर पति-पत्नी के जिनगी एक-दोसर के बिसवास पर टिकल रहऽ हे। सक-सोहबा के बुलडोजर बड़-बड़ बिल्डिंग ढाह के रख देहे। अपने ई सोंची कि मैडम अपने के बहिन रहतन हलतऽ अपने की करती हल? जरूर केकरो गियारी के ढोल बना के छुटकारा पा लेती हल।”
“सर नारी पराजिता बनके रह सकऽ हे बकि परित्यक्ता बन के कोय अभागिन के कइसे रहे पड़ऽ हे। ओकर अनभो अपने जइसन विदमान के नञ् हे।” कनकलता प्रोफेसर साहेब के बोले के कोय मोका नञ् देते कहे लगल। “सर हम अपने के प्रस्ताव माने लऽ तइयार ही, अगर अपने मैडम में चरित्रहीन आउ छिनार होवे के एगो भी परमान दे देम।”
प्रोफेसर साहेब गुम। मुँह में एक्को बकार नञ्।
“सर अपने दोसर संगे खुल के बतिया हथिन, हँसी ठट्ठा करऽ हथिन। बेसरमी से हँस्सी-ठट्ठा करेवली, टू पीस, स्कर्ट आउ स्कीवी पहिन के नाचल चले वली के अपने होसियार, मॉउर्न आउ बेस मानऽ हथ आउ जे पति के असरा में बारह से चउदह घंटा तक घर अगोरे ओकरा छिनार। ई मरदाना सब के जादती नञ् हे तऽ की हे?” प्रोफेसर साहेब के बोले से रोकते बोलल कनकलता।
“अभी चुप रही सर”, “सराबी, जुआरी, मदारी, भिखारी दुनिया के सब पति इंदर के पड़ी चाहऽ हे। सछात् सरसती चाहऽ हे….लछमी के अवतार चाहऽ हे….ई पुरुष समाज के मुर्खता नञ् तऽ की हे? औरत केतना सह सकऽ हे, केकरा-केकरा सह सकऽ हे?” तनी रूक के बोलल ऊ। “सर मैडम अपने नियन अदमी के अब तक बाट जोह रहलन हे, जबकि अपने में ऊ तमाम कमी मौजूद हे, जेकर अधार पर हमरा नियन लड़की तुरंते तलाक ले लेत हल। विवेक से काम लेथिन सर अपने के सुनहरा जीवन अपने के इंतजार करीत हे।”
“कनक हमरा माफ कर दऽ। हम रेयमी के गुनहगार ही। उनखर पर-परिवार के गुनहगार ही। तोर गुनहगार ही।” कनकलता के धर के प्रोफेसर साहेब जार-बेजार रोबे लगलन।
संपादक
मगही पत्रिका
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कविता-कियारी
हइ पावन हमर धरती, जे मगह कहावऽ हइ।
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कविता-कियारी
ई सुजनी हकै बिहार के
उदय शंकर शर्मा उर्फ 'कवि जी'
सुजनी बिछा दऽ सजनी तनि झाड़-झाड़ के।
ई सुजनी हकै सजनी अप्पन बिहार के ।।
ईहे सुजनी ओढ़ के गाँधी घुमला हल चम्पारण,
अंग्रेजन के भागे के ईहे सुजनी बनल हल कारण,
ई सुजनी पर बैठ कुँवर सिंह रखलन लाज तरवार के।
सुजनी बिछा दऽ सजनी...... ।।
ईहे सुजनी पर लग जा हल शेरशाह के कचहरी,
एकरे पर गुरू गोविन्द सिंह के सजते रहलै डेउढ़ी,
ई सुजनी हे वाल्मीकि, विदेह, कर्ण उदार के।
सुजनी बिछा दऽ सजनी...... ।।
ईहे सुजनी पर बैठला हल गौतम बुद्ध-महावीर,
चनरगुप्त आउ आर्यभट्ट, जीवक, चाणक सन काबिल,
ईहे सुजनियां ओढ़ के भारत गुरू बनल संसार के।
सुजनी बिछा दऽ सजनी.......।।
ईहे ओढ़ अयोध्या-काशी गेला मणिराम बाबा,
ईहे सुजनियां ओढ़ के गेला मखदुम बाबा काबा,
ईहे सुजनी हे पाक-पवित्तर, जरासंध-बिम्बिसार के।
सुजनी बिछा दऽ सजनी ......।।
मानपुर के अस्तर, भागलपुरिया रेशम डोरी,
पटना के कोसुम रंग, मखमल के साटल कोरी,
एकरे पर जनतंत्र के पहिला संसद बैठल हल संसार के।
सुजनी बिछा दऽ सजनी......।।
राजगीर के जंगल देख के मनमा करतो धक सा,
फल्गु, कोशी, सोन, किउल के एकरा पर पारल नक्शा,
ई सुजनी के गंडक आउ गंगा दुन्नू पार के।
सुजनी बिछा दऽ सजनी...... ।।
जेपी, कर्पूरीजी आके ई सुजनी के धोलका,
श्रीकृष्ण, अनुग्रह बाबू, दिनकर, रेणु ओदलका,
अब तो ई सुजनी बनलै इज्जत नीतीश कुमार के।
सुजनी बिछा दऽ सजनी...... ।।
अध्यक्ष
मगही अकादमी, बिहार, पटना
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कविता-कियारी
गाँव के दलाल
दया शंकर 'बेधड़क'
गाँव के दललवा के अब नञ् करवै माफ रे।
लूट लेलक गाँव हम्मर, बाप रे! बाप रे!!
सीधा-साधा गाँव के लोगवा अबहूँ कुछ नञ् बोले,
ओकरे संग मिल गड्ढा खोदे, फिन ओकरे में कूदे
सब कुछ खो के अंत में भइया, करो हे विलाप रे।
लूट लेलक गाँव हम्मर, बाप रे! बाप रे!!
लीडर, डीलर, मुखिया, सरपंच सब गुरूधंटाल हे,
ऊँच महल, बगल में गाड़ी, हाथ में मोबाइल हे,
घपला पर घपला करवावे, गाँव के खिलाफ रे।
लूट लेलक गाँव हम्मर, बाप रे! बाप रे!!
चल रहल हे गाँव में चक्कर, अखने ठीकेदारी के,
मंदा भाग किसनमा के हे, चमकल हे वेपारी के,
गेहुम, चाउर चोरी करे, ओहे करे भाव रे।
लूट लेलक गाँव हम्मर, बाप रे! बाप रे!!
अखने पइसा के कीमत हे, कीमत नञ् हे जान के ,
घूस तोहरा देवे पड़तो, हँस के दा इया कान के,
बाप करे हे राम-राम आउ बेटा करे पाप रे।
लूट लेलक गाँव हम्मर, बाप रे! बाप रे!!
अब उठ जागऽ सब मिल-जुल के, दुश्मन के पहचान ला,
'बेधड़क' जगावे अइलो हे, तोहरे खातिर जान ला,
चुप रहवा होसगर-बुधगर तऽ के करतो इन्साफ रे।
लूट लेलक गाँव हम्मर, बाप रे! बाप रे!!
- बाल गुदर, अशोकधाम, लखीसराय
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कविता-कियारी
मगह- महिमा
प्रवीण कुमार ‘पंकज’
हइ पावन हमर धरती, जे मगह कहावऽ हइ।
जेकर गौरव-गाथा, जग आझ भी गावऽ हइ।।
राजधानी जेकर राजगीर ,सुरक्षा पाठ पढ़ावऽ हइ,
भंडार स्वर्ण वज्रगृह, शिल्प तकनीक देखावऽ हइ।
हइ धन्य मगहभूमि, भीख जहाँ कृष्ण भी माँग हइ।
हइ पावन हमर धरती, जे मगह कहावऽ हइ।।
पावन जेकर माटी, अजब फूल खिलावऽ हइ,
मरलको में फूँक के जान, जरासंध बनावऽ हइ,
हइ महिमा जगजाहिर, इतिहास बतावऽ हइ।
हइ पावन हमर धरती, जे मगह कहावऽ हइ।।
तमसा के ठंडा पानी, तामस मेटावऽ हइ,
भले हे फल्गु सुखल, पित्तरमोछ देलावऽ हइ,
विष्णुपद वंदन लेल, जहाँ जमराज भी आवऽ हइ।
हइ पावन हमर धरती, जे मगह कहावऽ हइ।।
जहाँ पाके शरण सीता, लवकुश जनलथिन हल,
रत्नाकर जहाँ आके, वाल्मीकि बनलथिन हल,
हइ सीतामढ़ी एहैं, जहाँ रामायण रचलथिन हल,
हइ पावन हमर धरती, जे मगह कहावऽ हइ।।
जहाँ गाछ भी पीपर के, महाबोधि कहावऽ हइ,
पत्ता -पत्ता जेकर, शान्ति संदेश सुनावऽ हइ,
शुद्धोदन के बेटवा के, बुद्ध भगवान बनावऽ हइ।
हइ पावन हमर धरती, जे मगह कहावऽ हइ।।
हड़िया, देव, बड़गाँव, उमगा सुरूज के धाम,
इनका पूजला से बने, बिगड़ल सभे काम,
उमंगेश्वरी मैया से प्राणी उमंग पावऽ हइ ।
हइ पावन हमर धरती,जे मगह कहावऽ हइ।।
जैसे सरग धरती के ,कश्मीर कहावऽ हइ,
ककोलत ओयसहीँ बिहार के, कश्मीर कहावऽ हइ,
एकर कनकन पानी, जेठो के माघ बनावऽ हइ।
हइ पावन हमर धरती, जे मगह कहावऽ हइ।।
बन्हरिया से भटकल जग के, राह देखावे जैसे चन्दा,
ज्ञान के जोत जग में ओयसैं देखैलक हल नालन्दा,
हइ एकरो भी जोगदान कि, भारत जगद्गुरू कहावऽ हइ।
हइ पावन हमर धरती, जे मगह कहावऽ हइ।।
देखऽ पावापुरी, जहाँ मैया आशापुरी,
पैलका मोक्ष यहाँ वर्द्धमान, भेल एहैं उनकर निर्वाण,
एहाँ खड़ा जल मंदिर, जैन धर्म के जान कहावऽ हइ।
हइ पावन हमर धरती ,जे मगह कहावऽ हइ।।
ई हमर हिसुआ , जे मगह के गहना हे,
हियाँ के माटी बरतन आउ तिलकुट के की कहना हइ,
जेवर आउ गहना तो , दूर-दूर भेजावऽ हइ।
हइ पावन हमर धरती जे मगह कहावऽ हइ।।
- हिसुआ, नवादा
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कविता-कियारी
सुख सान्ति के झाल-मंजिरा, लेके अलख जगैवै हम।
कइसे तोहरा काटल जा हो टाँगी से ई गाछ के।
पुरूसारथ से अदमी, सब सोचल फल पाय।
की हे हाइकु
हाइकु एगो जीवन्त लघु कविता हे, जे खाली १७ गो अक्षर से बनल शब्द नञ् हे, बलुक गागर में सागर भरल चेतना आउ संदेश हे। ई जापान के प्राचीन काव्य विधा मानल जा हे। एकर पहिल पंक्ति में पाँच अक्षर के शब्द, दोसर पंक्ति में सात अक्षर के शब्द आउ तेसर पंक्ति में पाँच अक्षर के शब्द होवऽ हे। कुल मिला के १७ अक्षर से बनल शब्द के ई कविता हे। पर सतरह अक्षरी फ्रेम बना के लिख देवे से ऊ हाइकु नञ् कहा जाहे। हाइकु के मूल चेतना के समझे के जरूरत हे। हाइकु के पहिल आउ आखिर शर्त हे एकरा में कवित्व के भाव। हाइकु के सभे तत्व के कसौटी पर कसल पंक्ति। डॉ० वर्मा कहऽ हलथिन हाइकु के आत्मा के नञ् कुचलल जाय। ऐकर ख्याल करके हायकु बनावल जाय, तबे हाइकु के मान आउ एकर अस्तित्व बचतै।
आल चुनाव
मालिक- जुलिया! अरी! ओ जुलियाL
कवि - जयराम सिंह
मगही कोकिल जयराम सिंह जन-मन के कवि हथ। इनकर गीतन में भाव आउ विषय के विविधता हे, जे संगीत से लबालब भरल -पूरल रहऽ हे। इनकर गीत व कविता पर फ्रायड, यूँग, शेली, क्रोंचे आउ इलिएट के काव्य सिद्धांत तो असर डालवे कइलक हे, मुदा इनकर गीत आचार्य भामह, मम्मट आउ आचार्य कुंतक काव्य कला से भी प्रभावित हे। श्रृंगार, प्रेम, धार्मिक सहिष्णुता, सांप्रदायिक सद्भाव, प्रकृति चित्रण, प्रगतिवादी चेतना के बहुआयामी धारा इनकर गीतन के स्थायी उत्स हे। खेतिहर जीवन, जोताय-कोड़ाय, रोपनी-डोभनी, कटनी-दउनी के हर तरह के चित्र इनकर गीत में जना हे। देहाती जीवन, हँसी-ठिठोली, गुरू-भक्ति, राष्ट्र-भक्ति, देव-भक्ति इनकर गीतन के मुख्य विषय-वस्तु हे।
सौर, वारिसलीगंज के सगर रात दिया जरे काजकरम
२० नवम्बर २०११ के वारिसलीगंज के सौर गाँव के इण्टर विद्यालय में अखिल भारतीय मगही मंडप के तत्वावधान में मगही महामिलन सगर रात दिया जरे काजकरम के आयोजन करल गेल, जेकरा में मगही के विकास में समस्या आउ समाधान पर विचार गोष्ठी आउ विराट कवि सम्मेलन के आयोजन भेल। काजकरम के मुख्य अतिथि आउ उद्घाटनकरता हलन मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा आउ मुख्य वक्ता हलन मगध विश्वविद्यालय के मगही विभागाध्यक्ष डॉ० भरत। साँझ के पाँच बजे कलश पूजा आउ दीया जरा के काजकरम के उद्घाटन भेल। अतिथि के सोवागत करे के बाद श्री मिथिलेश विषय प्रवेश करावइत मगही अकादमी के अध्यक्ष के चुनाव, मगध विश्वविद्यालय में मगही विभाग खुले, कयगो किताब के परकासन सहित आउ कय उपलब्धी के मगही आन्दोलन के प्रतिफल बतैलका। मगही के विकास ले तेजी से काम करे के निहोरा कैलका। ओकर बाद मगही के विकास के चरचा के दौर शुरू भेल। एकाएकी करके उमेश प्रसाद सिंह उमा, टोला-टाटी के संपादक सुमन्त, कविवर परमेशरी, रामचन्द्र प्रसाद, ईश्वर प्रसाद मय, नागेन्द्र बंधु, शिवेन्द्र नारायण सिंह, चन्द्रावती चन्दन, डॉ० किरण शर्मा, अशोक समदर्शी, डॉ० भरत आउ आखिर में उदय शंकर शर्मा अप्पन विचार देलका। डॉ० भरत कहलका कि सौर घर में जलमले माय से जे भासा सिखली ओकर करजा उतार रहलूँ हे। हम्मर मगही चौथी शताब्दी से उतार चढ़ाव करइत अब ई उठान पर हे। चाहे केतनो पछियारी हवा चलै, हम मरबै नञ्। अप्पन बौसाह के नञ् छोड़वै।
दोसर सत्र में रामचन्द्र जी के अध्यक्षता में कवि सम्मेलन के शुरूआत भेल। चन्द्रावती चन्दन के मईया तोहरे पर गुमान हमरा…..सरसती वन्दना से दौर चलल। ओकर बाद दीनबंधु, परमान्नद, परमेशरी, रंजीत, शिवेन्द्र नारायण सिंह, जय प्रकाश, जयराम देवसपुरी, उमेश प्रसाद सिंह उमा, दयानन्द बेधड़क, भोजपुरी कवि जख्मी कान्त निराला, नरेन्द्र सिंह, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, दशरथ, अमरदेव सिंह अमर, मुन्द्रिका सिंह, सुमंत, कृष्ण कुमार भठ्ठा, डॉ० किरण शर्मा, अशोक समदर्शी, शोभा कुमारी, जयनन्दन, शम्भू विश्वकर्मा, उमेश बहादुरपुरी, बैजू सिंह, ईश्वर प्रसाद मय, उमेश प्रसाद, उदय शंकर शर्मा, नरेश प्रसाद सिंह, सीता राम पाण्डेय, मिथिलेश, रामचन्दर, नागेन्द्र बंधु , अंजेश कुमार सभे गीत, ग़ज़ल, हास्य, व्यंग्य, झूमर, सोहर के समा बाँध देलका।
शेखपुरा जिला के शेखोपुर प्रखण्ड के मोहब्बतपुर गाँव में ५ दिसम्बर के 'मगही दिवस' हर साल के जैसन मनावल गेल। मगही दिवस मनावे के फैसला कय साल पहिले साहितकार आउ मगहीसेवी लेलन हल। तहिया से मोहब्बतपुर में ई काजकरम मनावे के परम्परा बन गेल हऽ। मगहिया भाय-बहिन मोहब्बतपुर में जुटके एकरा 'आत्मचिंतन दिवस' के रूप में मनावऽ हथिन। अबकी बार काजकरम दू सत्र में आयोजित होल। पहिल सत्र में मगही भासा साहित के दशा-दिशा पर विचार गोष्ठी होल। मगही के वरिष्ठ कथाकार आउ संपादक मिथिलेश अप्पन सम्बोधन में कहलन कि मगही के आगे बढ़ावे में आउ एकरा स्तर देवे में मगही मंडप से पहिल परकासित सारथी पत्रिका के जोगदान सबसे बढ़के हे। सारथी में सभे विधा के स्तरीय रचना छप्पल। साहितकार एकरा से प्रेरणा लेके साहित लिखथिन। मगही में गद्य विधा में लिखे के जादे जरूरत हे। मगही में प्रचलित दोसर भासा के शब्द के ओइसहीं छोड़ देवे के चाही। एकरा से मगही के शब्द पचावे के ताकत मिलत।। मगही साहित समृद्ध होत। श्री मिथिलेश मगध विश्वविद्यालय में मगही स्नातकोत्तर विभाग खुले से मगही में क्रान्ति आवे के बात कहलन।
विचार
*रचना मगही साहित के प्रचार-प्रसार के लेल इहाँ रखल गेल हऽ। कौनो आपत्ति होवे पर हटा देल जात।
* मगहिया भाय-बहिन से निहोरा हइ कि मगही साहित के समृद्ध करे ले कलम उठाथिन आउ मगही के अप्पन मुकाम हासिल करे में जी-जान से सहजोग करथिन।
* मगही मनभावन पर सनेस आउ प्रतिक्रिया भेजे घड़ी अपन ई-मेल पता जरूर लिखल जाय, ताकि ओकर जबाब भेजे में कोय असुविधा नञ् होवै।
* मगही मनभावन ले रचना ई-मेल से इया फैक्स से चाहे हिन्दी मगही साहित्यिक मंच ‘शब्द साधक’ के कारजालय, हिसुआ पहुँचावल जा सकऽ हे।
शब्द साधक
* मगही मनभावन के तरफ से आवेवला नयका साल २०१२ के बधाय आउ
शुभकामना। *
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एकता के गीत सुनैबै हम....
शफीक जानी नादाँ
सुख सान्ति के झाल-मंजिरा, लेके अलख जगैवै हम।
परेम के धुन के बाँसुरीया, सद्भाव के डोल बजैवै हम।।
एकता के गीत सुनैवै हम, एकता के गीत सुनैवै हम।।
भारत के बगीया में केत्ते किसिम-किसिम के फूल खिलल।
देवी देवता, पीर-पयम्बर से सबसे बगीया महकल।।
ई फूलवन के सुगंध से तो पग-पग धरती महकैवे हम।
एकता के गीत सुनैवै हम, एकता के गीत सुनैवै हम।।
फूल हथिन ई बगीया के ख्वाजा, वारिस आउ राम लखन।
महावीर, मखदूम,
बिहारी, फूल खिलल गौतम जैसन।।
अली-बली,
बजरंग बली
के
दर्पण
सगर
देखैवै
हम।
एकता के गीत सुनैवै हम, एकता के गीत सुनैवै हम।।
हिन्दु, मुस्लिम,
सिख्ख, ईसाई, सब ईहे बगीया के फूल।
छोट-बड़ एकरा में छाँटवा,
तऽ
ई
तोहर
भूल।।
ई बगीया के फूल तऽ कि पत्ता नञ् छाँटे देवै हम।
एकता के गीत सुनैवै हम, एकता के गीत सुनैवै हम।।
ऊँच-नीच आउ छूआ-छूत के विष नञ् हम फैले देवै।
जात-पात के अगीया में,
ई
बगीया
नञ्
जरे
देवै।
ई फूलवन के सुगंघ से नादाँ सबके मन महकैवे हम।
एकता के गीत सुनैवै हम, एकता के गीत सुनैवै हम।।
-हिसुआ, नवादा
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कविता-कियारी
गाछ
नरेन्द्र प्रसाद सिंह
कइसे तोहरा काटल जा हो टाँगी से ई गाछ के।
एक तुरी पछतैवे करबऽ अप्पन मुड़ी पाछ के।।
गाछ नञ् तऽ धरती नञ्, आकाश नञ्,
गाछ नञ् तऽ हावा नञ्, वतास नञ्।
गाछ नञ् तऽ सतत विकास कइसन,
गाछ नञ् तऽ फुलत पलाश नञ्।।
दूघ के जरल पिहे पड़तो फूँक-फूँक के छांछ के।
एक तुरी पछतइवे करबऽ अप्पन मुड़ी पाछ के।।
गाछ में दया हे दान के,
गाछ में माया हे गेयान के।
गाछ में ममता हे माय जैसन,
गाछ में समता हे समान के।
गाछे तोहर किरिया करतो जरे घरी नाच के।
एक तुरी पछतइबे करबऽ अप्पन मुड़ी पाछ के।।
गाछ नञ् तऽ पीढ़ा-पानी नञ्,
गाछ नञ् तऽ ओर-पथानी नञ्।
गाछ नञ् तऽ दया धरम के जाने,
गाछ नञ् तऽ तोता-मैना के कहानी नञ्।
लाज लगो ने चाटे घरी बेल के गुद्दा काछ के।
एक तुरी पछतइवे करबऽ अप्पन मुड़ी पाछ के।।
गाछ सहे आन्ही, बबंडर,ओला,
गाछ दे हे छाँह सबके बइठे ला।
गाछ नञ् तऽ रोग-बलाय भागत कइसे,
गाछ हे अमरित-संजीवनी के थैला।
कइसे तोहरा चोभल जा हे आम के आंठी बाछ के।
एक तुरी पछतइवे करबऽ अप्पन मुड़ी पाछ के।।
अध्यक्ष
केसरी नन्दन मगही मंडप चरौल, कौआकोल,नवादा
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दोहा
दोहा
संत राम नगीना सिंह ‘मगहिया’
पुरूसारथ से अदमी, सब सोचल फल पाय।
मगर हमेशा आलसी, दोसी भाग्य बताय।।१।।
दंड न देवल जाय तो, देव दनुज पशु नाग।
मर्यादा के तोड़ दे,
जाय व्यवस्था भाग।।२।।
तनिके में ऊपर चढ़इ, तनिके में नीचे जाय।
दुष्ट तराजू के यही,
काम न ठीक बुझाय।।३।।
मैथुन, भोजन, नीन में,
सब हथ एक समान।
ओही पशु से हथ अलग, जेकर माथे ज्ञान।।४।।
नियमित भोजन करइ जे,
दया धरम आउ काम।
ऊ न होवइ रोगी कभी, रोज करइ व्यायाम।।५।।
दुरजन से हइ साँप भला, काटइ अवसर पाय।
डेग-डेग दुश्मन डँसइ, समय न कोय बुझाय।।६।।
प्रेम न होवइ करे से, चुपके-चुपके होय।
केउ बना के योजना, जियरा अपन न खोय।।७।।
-खोरैठा, विक्रम् पटना
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हाइकु दिवस पर खास
४ दिसम्बर हाइकु दिवस
साहितकार
आउ साहितपरेमी ईहे महिना के ४ दिसम्बर के हाइकु दिवस मनावऽ हथिन। ई दिन उनखा
समरपित हे, उनखर इयाद में मनावल जा हे, जे हिन्दी के हाइकु विधा देलका। सबसे पहिल हमहुँ उनखा आउ उनखर
स्मृति के नमन करऽ हियै। हाइकु के जलमदाता आउ ओकरा तराशे के जान भरेवला विभूति डॉ
सत्यभूषण वर्मा हलथिन। उनखर जलम ४ दिसम्बर १९३२ के रावलपिंडी में होल हल। डॉ भूषण
कय दरजन भासा के जानिसकार हला। १९५४ से ई अध्यापन के काज में रम गेला। १९७४ के ई
जे० एन० यूनिवर्सिटी, दिल्ली के पहिल भारतीय के रूप में जापानी विधा के
विभागाध्यक्ष बनला। ओकर बाद ई जापान के आर० ए० पी० यूनिवर्सिटी में विजिटिंग
प्रोफेसर बनके काम कैलका।
डॉ० वर्मा जापानी तांका आउ हाइकु के हिन्दी में अनुवाद करके हिन्दी साहित
में हाइकु के सृजन के द्वार खोललथिन। हाइकु के हिन्दी में विकास के श्रेय आउ
किनखो दोसरा के नञ् दे जा सकऽ हे। इनखे काज से आझ हाइकु जगत जीवन्त हे। १३ जनवरी
२००५ के इनखर निधन हो गेल। इनखर काज के सम्मान देवे के लेल साहित जगत इनखे जलम दिन
के हाइकु दिवस ४ दिसम्बर के मनावे के
निर्णय लेलक आउ अब मनावल जा हे।
की हे हाइकु
हाइकु एगो जीवन्त लघु कविता हे, जे खाली १७ गो अक्षर से बनल शब्द नञ् हे, बलुक गागर में सागर भरल चेतना आउ संदेश हे। ई जापान के प्राचीन काव्य विधा मानल जा हे। एकर पहिल पंक्ति में पाँच अक्षर के शब्द, दोसर पंक्ति में सात अक्षर के शब्द आउ तेसर पंक्ति में पाँच अक्षर के शब्द होवऽ हे। कुल मिला के १७ अक्षर से बनल शब्द के ई कविता हे। पर सतरह अक्षरी फ्रेम बना के लिख देवे से ऊ हाइकु नञ् कहा जाहे। हाइकु के मूल चेतना के समझे के जरूरत हे। हाइकु के पहिल आउ आखिर शर्त हे एकरा में कवित्व के भाव। हाइकु के सभे तत्व के कसौटी पर कसल पंक्ति। डॉ० वर्मा कहऽ हलथिन हाइकु के आत्मा के नञ् कुचलल जाय। ऐकर ख्याल करके हायकु बनावल जाय, तबे हाइकु के मान आउ एकर अस्तित्व बचतै।
आहो
हमन्हीं सभे मिलके एक बेरी फेर डॉ० वर्मा के नमन करियै। हाइकु दिवस मनावे आउ हाइकु
के अस्तित्व बचावे के संकल्प लियै।
*******
हाइकु
दीनबंधु
के हाइकु
आल चुनाव
हे दाव पर दाव
लगत घाव।
***
वोट के खेल
गद्दी केकरो जेल
जनता चुप।
***
राजा ए राजा
मरलिअउ दादा
खाली हो वादा।
***
प्रजातंतर
रजवा गद्दी पढ़े
फूट मंतर।
***
राजा निट्ठुर
रनियाँ थुलथुल
परजा रोवे।
***
शेख चिल्ली हे
बइठल दिल्ली हे
तबे ढिल्ली हे।
***
केकरा कहूँ
राजा रानी बहीर
सिपाही बद।
***
घर अंधार
ईंजोर दरबार
सब बेकार।
***
जादे हे चोर
कमती हे ईंजोर
एही से शोर।
***
जेकर लाठी
सेकरे हे भैंसिया
निमरा गुम।
***
बादर घूमे
नेतन अइसन
असमान में।
***
झूठ्ठे गरजे
भाषण अइसन
बादर नेता।
***
ओने दहाड़
राजधानी मल्हार
एने सुखाड़।
***
सीमा जवान
नेतन खबक्कड़
खेत किसान।
***
सपना देखूँ
हँसे सब जनता
जग के रोबूँ।
***
ग़ज़ल गीत
तीत मीठ लगे न
भुक्खल पेट।
***
***
तेलो जरल
ईंजोरो नञ् होल
मोट मसाली।
***
धुआँ ढेकार
पेट लहकल हे
जादेतर के।
***
***
गोदाम भरे
एने भुक्खल मरे
बोलूँ न डरे।
***
***
रहत साथे
खेत पेट जबही
भरे तबही।
***
परजा गाय
रजवा हे कसाय
नञ् सुनाय।
***
दादा भइया
सबले रुपइया
हम की करूँ।
***
नञ् हे पैसा
नञ् हे बदनीत
के देत प्रीत।
-नदसेना, हिसुआ(नवादा)
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एकांकी
केंचुआ
केंचुआ
(रूस के महान लेखक एण्टव चेखव के कहानी 'ए
निन्काम पूपू' के मगही एकांकी अनुवाद)
मूल लेखक: एण्टव चेखव
मगही नाट्य रूपांतरण: रामचंदर
पात्र
मकान मालिक
जुलिया वासिल्देवना- आया
मालिक- जुलिया! अरी! ओ जुलियाL
जुलिया- (मालिक के कोठरी में
घुसइत) हमरा बोलईलहो मालिक।
मालिक- हाँ जुलिया, आउ बइठ । खड़ी मत
रह।
जुलिया- (बइठ जाहे) धन्यवाद मालिक।
मालिक- हमरा लगऽ हव कि तोरा पइसा
के जरूरत हउ, मुदा तूँ हमरा से माँग नञ् रहले हें। आझ तलुक तक तो जे हम
समझली हमरा लगे हे कि तूँ जिनगी भर हमरा से अप्पन दरमाहा नञ् माँगमें। आझ हमही तोर
दरमाहा के हिसाब करिके तोरा दरमाहा दे देवइ लेल चाही हिअउ।
हाँ तऽ तूँ तीस रूबल महीना पर
नौकरी कइलें हें। ठीक हवने।
जुलिया- (घिघिआइत) जी नञ् मालिक,चालिस रूबल....।
मालिक- नंञ् भाय, तीस.....ई देख
हम्मर डायरी(पन्ना उलटइत) हम ई डायरी में लिखके रख देले ही। हम बुतरून के निगहवानी
अउ पढ़ावइ लेल आया के तीसे रूबल देही। तोरा से पहिले जे आया हल हम ओकरो तीसे रूबल दे
हली। अच्छा तोर नौकरी के दू महीना पूरा भेलव हें।
जुलिया- (मिमियाइत) दू महीना पाँच
दिन मालिक।
मालिक- तऽ हम झूठ बोली रहलिअउ हें
कि? पूरे-पूरे
महीना भेलव हें। ई देख हम डायरी लिख के रखले ही। तोर दू महीना के दरमाहा-
अंऽऽ.....तीस दून्ही साठ रूबल। मुदा ई साठ रूबल तऽ तभिये नऽ मिलतउ जब एक्को दिन
नागा नञ् रहतव। तू एतवार के कोइयो काम नञ् कइले हें। खाली बुतरून के घुमाइले ले
गेलें हल। ई तो तूहूँ मानमें कि घुमाना कोय काम नञ् कहल जा सकऽ हे। एतवार के नागा
छोड़िके तूँ तीन दिन अउरो छूट्टी में रहलें हल। ठीक हनवे।
जुलिया- (हलुकसनी) मालिक तब अपने
कह रहली हे तऽ ठीके हइ।
मालिक- तऽ हम झूठ बोल रहली के। हाँ
तऽ सुन। नो एतवार आउ तीन दिन छुट्टी कुल मिलाके बारह दिन नागा। ओकर बारह रूबल कट गेलव।
एगो बुतरु चार दिन बीमार हल। तूँ एक्के बुतरु के पढ़इले हल साथे तूँ दाँत के दरद
के बहाना बना के तीन दिन दुपहरि से छुट्टी लेके चल गेले हल। ई से चार आउ तीन दूनू
मिला के सात दिन आउ नागा हव। कुल मिला के उनइस दिन नागा। साठ में उनइस घटइला पर
तोर दरमाहा एकतालिस रूबल होवऽ हव ठीक?
जुलिया-( सहमइत-सिसकइत) जी हाँ! मालिक।
मालिक-( डायरी के पन्ना उलटइत) हाँ, इयाद आइल....एक जनवरी के तूँ कप-पियाली तोड़ देले हल। कतना दामी हल ऊ कप-पियाली? मुदा हम्मर भाग में तऽ हरदम नोकसाने पहुँचावय में कोय कसर नञ् छोड़ऽ हे। मुदा तोरा से हम कप-पियाली के दूइये रूबल काटऽ हिअउ। हाँ आउ देखऽ ई तोरे गलती ने हलव कि बुतरु गाछ पर चढ़ि गेल हल, आउ ओक्कर देह तऽ छिलाइए गेले हल, नया फ्राक हल, सेहो फटि गेले हल। दस रूबल के फ्राक....। साथे तोर लापरवाही के चलते नौकरानी मारिया नयका जुता चोरा लेलक....। तूँ हम्मर बात सुन रहलें कि नञ्।
जुलिया- (लोर ढरकावइत) सुन रहलिये हे मालिक।
मालिक- ठीक हवा। देख जुलिया, तोर काम हव बुतरून के रखवाली आउ पढ़ावइ के। एकरा में कोताही भेला पर दरमाहा कटबे करतउ। एकरो तो दरमाहा देही हम तोरा। तऽ जूता के पाँच रूबल कट गेलव। इयाद हव ने, दस जनवरी के दस रूबल तूँ हमरा से उधार लेलें हल।
जुलिया-(कानइत) जी नञ् मालिक। तूँ हमरा कहियो कुछो पइसा नञ्....( आगू कुछ नञ् बोलि सकल)
मालिक- तऽ की हम झूठ बोल रहलिउ हे, हम अप्पन डायरी में सभे लिख ले ही। तोरा विश्वास नञ् हव तऽ देख हम्मर डायरी।
जुलिया- ( लोर पोछइत) जब अपने कह रहली हऽ, तऽ देलिए होत।
मालिेक- देलिये होत नञ्। देलियउ हल। ठीक हव। सभे मिला के सताइस रूबल अउरो कटलव। एकतालिस रूबल में घटाव सताइस रूबल। अंऽऽऽ.....अब बचलउ चौदह रूबल।हिसाब ठीक हव ने।
जुलिया- (अप्पन लोर रोकइत) हमरा अबरी तक एक्के दफे मलकिन से तीन रूबल मिलल हल। आउ हमरा कहियो पइसा नञ् मिलल हे।
मालिक-( अचरज से) अच्छा....। ई बात तोर मलकिन आझ तलुक तक हमरा नञ् बतइलक। नञ् तऽ हम ईहो अप्पन डायरी में लिख लेती हल। देरिये से सही हम डायरी में लिख लेती। तूँ जो नञ् बतइतें हल तऽ कतबड़ गो गलती भे जात हल। खैर तीन रूबन काटला के बाद एगारह रूबल बचलउ। ले भाई अप्पन दरमाहा एगारह रूबल। ठीक से गिनले। संभारि के रख।
जुलिया- (काँपइत हाथ से दरमाहा ले लेहे) जी! धन्यवाद मालिक।
मालिक- (तमतमाइत खड़ा हो जाहे) धन्यवाद....। तूँ हमरा धन्यवाद कहलें जुलिया। कउन बात के धन्यवाद दे लें हमरा?
जुलिया- तूँ हमरा पइसा देलहो मालिक, एकरा लेल धन्यवाद।
मालिक- ( जोर से गरजइत) तूँ हमरा धन्यवाद काहे देलें जुलिया। तूँ जान रहलें हें कि हम तोरा ठग लेलिअव हे। धोखा दे रहलिव हे। तोरा दरमाहा पचा लेलिअव। एक्कर बादों तूँ हमरा धन्वाद दे रहले हें।
जुलिया- जी हाँ मालिक....।
मालिक- की जी हाँ! जी हाँ मालिक!! की खातिर जी हाँ मालिक?
जुलिया- ( डरइत) ई से मालिक कि पहिले हम जहाँ-जहाँ काम कइली कोय हमरा एक्को पइसा नञ् देलका, तूँ कुछ तो दे रहला हे।
मालिक- ( किरोध से काँपइत)- ऊ सभे तोरा एक्को पइसा दरमाहा नञ् देलकउ, हमरा कोय अचरज नञ् हो रहल हे। जुलिया हमरा ई बताव कि अदमी कहलावय लेल इंसान एतना डरपोक, दब्बू, आउ भोदा बन जाय कि ओकरा साथ अनियाय होते रहे, ओक्कर शोषण आउ दोहन
होवदत रहे आउ ऊ चुप-चाप सहते रहे? नञ् जुलिया नञ्। अइसन खामोश रहला से काम चलइ वाला नञ् हे। अपना के बचावइ खातिर तोरा ई कठोर, संगदिल, क्रुर अन्यायी दुनिया से लड़ऽ पड़तउ। अप्पन दाँत आउ हाथ से पुरजोर ताकत से लड़े पड़तउ। तबहियें ई दुनिया में इज्जत के जिनगी जी सकऽ हें। ई बात नञ् भूल जुलिया कि बिना रीढ़ के केँचुआ जइसन जिनगी जियइवला के ई दुनिया में कोय जगह नञ् हे। हम तोरा इहे बात बतावय लेल तोरा से अइसन व्यवहार कइलूँ। एकरा मजाक समझ के हमरा माफ कर दे। ले अप्पन दू महीना पाँच रोज के पूरा दरमाहा।
जखराज स्थान
हुसैनाबाद रोड, शेखपुरा
एण्टन चेखव (१८६०-१९०४)
[उन्नीसवीं सदी के दुनिया के गिनल-चुनल नामी-गिरामी साहित्यकारन में एण्टन चेखव के सुमार कइल जाहे। चेखव के कलम ई दुनिया के एगो अइसन सरूप के सपना देखलक हल जेकरा में अन्याय, शोषण, अपमान के नामों निशान नञ् रहे। अदमी से मोहब्बत करे,
सहानुभूति रखे। मजाक के पात्र नञ् बनावे। अदमी के चाही कि ऊ अइसन काम करि के देखला दे कि हमनी ही, तऽ जरूरे ऊ अच्छा अदमी बन जाइत आउ दुनिया के स्वरूप के बदलि के रख देत।]
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पुस्तक समीक्षा
पुस्तक के नाम - चिजोर(मगही काव्य सेंगरन)
कवि - जयराम सिंह
संपादक - डॉ० के० के० नारायण
प्रकाशक - अन्नपूर्णा प्रकाशन, कारी सोवा, गया(बिहार)
मूल्य - पुस्तकालय संस्करण - २५०, पेपर बैक - १००
समीक्षक - डॉ० शिवेन्द्र नारायण
सिंह
मगही कोकिल जयराम सिंह जन-मन के कवि हथ। इनकर गीतन में भाव आउ विषय के विविधता हे, जे संगीत से लबालब भरल -पूरल रहऽ हे। इनकर गीत व कविता पर फ्रायड, यूँग, शेली, क्रोंचे आउ इलिएट के काव्य सिद्धांत तो असर डालवे कइलक हे, मुदा इनकर गीत आचार्य भामह, मम्मट आउ आचार्य कुंतक काव्य कला से भी प्रभावित हे। श्रृंगार, प्रेम, धार्मिक सहिष्णुता, सांप्रदायिक सद्भाव, प्रकृति चित्रण, प्रगतिवादी चेतना के बहुआयामी धारा इनकर गीतन के स्थायी उत्स हे। खेतिहर जीवन, जोताय-कोड़ाय, रोपनी-डोभनी, कटनी-दउनी के हर तरह के चित्र इनकर गीत में जना हे। देहाती जीवन, हँसी-ठिठोली, गुरू-भक्ति, राष्ट्र-भक्ति, देव-भक्ति इनकर गीतन के मुख्य विषय-वस्तु हे।
इनकर गीतन में बिंब आउ कल्पना के अद्भुत समाहार हे। चिंतन आउ
विषय के विविधता के वजह से कवि समाज के हर तबका के लोगन के बीच अमर हथ। इनकर गीतन
के आनुप्रासिक छटा के बहुलता हे, मुदा विप्सा, निदर्शन, यमक, रूपक, श्लेम, भ्रांतिमान अलंकार बहुलता के साथ पावल जा हे । इनकर रचना के
गुण के तीनों भेद आउ रीति के भेद खूबे मिलऽ हे। शब्द-शक्ति के दृष्टि से इनकर
कविता आरथी आउ शाब्दी व्यंजना से लबालब भरल हे।
चिजोर अँग्रेजी, हिन्दी आउ संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान डॉ० के० के०
नारायण संपादित हे। एकरा में मगही के ११८ आउ हिन्दी के ८ कविता संकलित हे। शुरूए
में विख्यात साहित्यकार अरूण कमल के ठेठ जीवन के दैनन्दिन संभार की कविताएँ हे, जे
गीतकार के व्यक्तित्व-कृतित्व आउ इनकर कविता के बहुआयामी स्वरूप के दिग्दर्शन
करावे हे। बहुत थोड़े में सब कुछ उकेड़ के कमल जी अप्पन विद्वता आउ साहित्यिक
अध्ययन के गहराई के परिचय देलन हऽ। राग वृंदावनी में संपादक नारायण द्वारा गीतकार
सिंह के पारिवारिक जीवन, साहित्यिक
यात्रा आउ सेंगरित गीतन के काव्य-शास्त्रीय विवेचना कइल गेल हे।
ई कविता सेंगरन में कवि द्वारा मगह के सभ्यता आउ संस्कृति के
बोध करावे वाला फटहाल मजदूर-किसान् खेत-खलिहान, बाग-बगइचा, घर-आँगन, अमीरी-गरीबी, परिवार-समाज, तार-तरकुन, भोरे-साँझ, दोपहरिया-अधरतिया
सबके सजीव चित्रण करल गेल हे। जहाँ ‘बदरिया गावऽ है कजरिया, शरत पूनो, सावन नाचइत उतरल, पुनिया के चाँद
जइसन’ ढेरो कविता में प्रकृति के विविध रूप एंव सौंदर्य चित्रित हे, वहाँ ‘एसों
ऐसन पड़ल अकाल बिना धटा के सावन भादो, एक पानी बिनु मरल
धान’ जइसन कविता में प्राकृतिक आपदा आउ ओकरा से उपजल भयावहता के
पूरे जिकिर कइल गेल हे। उनकर शिव-भक्ति के पुट बाबा भोला के दरसन से, नम: शिवाय, करजोरी
बिनबहूँ-शंभू भवानी, बटोही
बाबा धाम के, शिव-उफ, मगही-टप्पा’
जइसन कविता में पावल जा हे, तो गणेश, सरस्वती, दुर्गा, काली, सूरज जइसन प्रतापी देवी-देवता के प्रति श्रद्धा, समर्पण आउ आदर के
भाव से युक्त भी दरजनों कविता हे।
अन्हार से इंजोर में लावे के दायित्व गुरू के हे। इनके किरपा
आउ आशीष से जिनगी आबाद होवऽ हे। इनकर महिमा के रेखांकित कइल 'गुरू-महिमा, ॐ श्री गुरवे नम:, राउर चरन' जइसन कविता भी ई
सेंगरन में मौजूद हे। उनकर राष्ट्र के प्रति समर्पण आउ भक्ति '१५ अगस्त, १५ अगस्त के कोरस
झूमर, २६ जनवरी, राष्ट्रीय चइता, जय बलिदानी माँ' जइसन कविता में
प्रस्फुटित भेल हे।
खेती-बारी मगहे नञ् मुदा पूरे भारत के जान हे। ई से एक्कर
गतिविधि के पूरे चित्रण बिना कोय साहित अधूरा रह जात। 'धनमाँ रोपा लगलइ
ना, धान रोपऽ
हे रोपनियाँ, खेतवा
में सबेरे-सबेरे, अइसो
पातर पतनियाँ, धान कटल
खेत के, नयकी
कमिनियाँ जइसन गीतन में एकर हर गतिविधि के उकेरे में कवि पूरे तरह सफल दिखऽ हथ।
मगह में फागुन मन के बइमान बनावे ले बदनाम हे। बुढ़ा-बुतरु, औरत-मरद, पढ़ल-अनपढ़, साधु-संत, ऋषि-मुनि केकरो ई
नञ् बख्सऽ हेँ। ओकर प्रकृति आउ प्रवृति के देखवइत भी कय कविता एकरा में संकलित हे।
ऋतुराज वसंत हर सफल कवि के पसंदीदा विषय हे। कवि जयराम भी एक्कर महिमा के बखानते
खूब कलम तोड़लन हे।
एक्कर अलावे मगह आउ देश के मूलभूत समस्या, आर्थिक विषमता, गरीबी, महँगी, जनसंख्या वृद्धि, सामाजिक कुरीति
जइसन ढ़ेरों विषय पर कलम घिस के ई जन-मन के कवि होवे के सारथकता सिद्ध कइलन हे।
दुनियाँ के आधा आबादी औरत के हे, जे अप्पन रूप आउ व्यवहार से कवियन के विशेष धेयान आकर्षित
करऽ हे। मगहिया औरत के रूप व्यवहार पर भी कय कविता ई सेंगरन के सोभा बढ़ा रहल हे।
ई किताब के नामाकरण चिजोर करे ले संपादक के जेतना बड़ाय कइल
जाय, कम होत।
चिजोर के अर्थ अलौकिक, विलक्षण, अनूठा आउ विचित्र
से हे। अलंकार में ई नौ रस के अंतर्गत एक रस जेकर स्थाई भाव विस्मय हे, के दरसावऽ हे।
सचमुच में ई किताब के शीर्षक पूरे तरह प्रासंगिक हे आउ किताब के गुण धर्म बतावे
में सफल हे।
मुदा किताब में विद्वान संपादक के धेयान कुछ छोट बात पर नञ्
पड़ल हे। 'भोरउंया
सपनमा में' पद ३ में
'अैवा' शब्द के प्रयोग
नञ् मिलऽ हे। 'एक पानी
बिनु मरल धान' के पद एक
में एक ही पंक्ति में 'नै' आउ 'नञ्' के प्रयोग हे, जे लिपिकार के
असावधानी हो सकऽ हे। मुदा संपादन करे समय संपादक के ई दायित्व बनऽ हे कि कविता व
गीत के काया सही रूप में परोसल जाय। अनुक्रमणिका के कविता के नाम आउ पाठ के कविता
के नाम में भी ढेरो जगह भिन्नता हे।
कुल मिला के ई किताब में कवि के बहुआयामी व्यक्तित्व आउ
संपादक के विद्वता साफ-साफ नजर आवऽ हे। किताब के पेपर बैक में प्रकाशित करके
संपादक सराहनीय काम कइलन हऽ। एकरा से ई कम दाम पर मिल जात आउ कम ऊँचा जेब वाला लोग
भी एकरा पढ़ सकता।
ग्राम+पत्रालय-बिण्डीडीह
भाया-गिरियक
जिला-नालन्दा
मोबाइल-९९५५७२१०४२
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मगह
के आयोजन
सौर, वारिसलीगंज के सगर रात दिया जरे काजकरम
२० नवम्बर २०११ के वारिसलीगंज के सौर गाँव के इण्टर विद्यालय में अखिल भारतीय मगही मंडप के तत्वावधान में मगही महामिलन सगर रात दिया जरे काजकरम के आयोजन करल गेल, जेकरा में मगही के विकास में समस्या आउ समाधान पर विचार गोष्ठी आउ विराट कवि सम्मेलन के आयोजन भेल। काजकरम के मुख्य अतिथि आउ उद्घाटनकरता हलन मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा आउ मुख्य वक्ता हलन मगध विश्वविद्यालय के मगही विभागाध्यक्ष डॉ० भरत। साँझ के पाँच बजे कलश पूजा आउ दीया जरा के काजकरम के उद्घाटन भेल। अतिथि के सोवागत करे के बाद श्री मिथिलेश विषय प्रवेश करावइत मगही अकादमी के अध्यक्ष के चुनाव, मगध विश्वविद्यालय में मगही विभाग खुले, कयगो किताब के परकासन सहित आउ कय उपलब्धी के मगही आन्दोलन के प्रतिफल बतैलका। मगही के विकास ले तेजी से काम करे के निहोरा कैलका। ओकर बाद मगही के विकास के चरचा के दौर शुरू भेल। एकाएकी करके उमेश प्रसाद सिंह उमा, टोला-टाटी के संपादक सुमन्त, कविवर परमेशरी, रामचन्द्र प्रसाद, ईश्वर प्रसाद मय, नागेन्द्र बंधु, शिवेन्द्र नारायण सिंह, चन्द्रावती चन्दन, डॉ० किरण शर्मा, अशोक समदर्शी, डॉ० भरत आउ आखिर में उदय शंकर शर्मा अप्पन विचार देलका। डॉ० भरत कहलका कि सौर घर में जलमले माय से जे भासा सिखली ओकर करजा उतार रहलूँ हे। हम्मर मगही चौथी शताब्दी से उतार चढ़ाव करइत अब ई उठान पर हे। चाहे केतनो पछियारी हवा चलै, हम मरबै नञ्। अप्पन बौसाह के नञ् छोड़वै।
उदय शंकर शर्मा कहलन अपने जब तक साहितकार बनके रहथिन, मगही के विकास
नञ् होत। भरथरी बनके, योगी
बनके घरे-घरे जाय पड़तो। सभे के कहे पड़तो- लावाऽ मगही में तोहर चिठ्ठीया लिख
दियो। शादी के कार्ड छपा दियो। शुभकामना, कलेन्डर छपवा दियो। कहे के मतलब ई कि मगही में
लिखे-पढ़े के काम घर-घर में शुरू करावे ले हमन्हीं के जोर-शोर से लगे के चाही।
दिनकर आउ तुलसी वोट देवे से नञ् बनलथिन, बलुक साहित लिखे से बनऽ हे। श्री शर्मा गाँव, पंचायत आउ जिला
स्तर पर संगठन बनावे के निहोरा कइलका।
विचार गोष्ठी के जे मुख्य बात
सामने आल ऊ ई हे----
१. मगही लेल जागरूकता
आन्दोलन।
२. नयका पीढ़ी के
मगही संस्कार से जोड़े के पहल।
३. मगही कैसेट, एलबम बनावे के
जरूरत।
४. मगही में अब
रोजगार के अवसर हे।
५. खेमाबन्दी बंद
होवे के चाही।
६. गद्य विधा में
स्तरीय रचना लिखे आउ परकासन के जरूरत।
७. मगही के मुकाम
आन्दोलन से हासिल होत, हक माँगे से नञ्, माँगे से भीख मिलऽ हे।
काजकरम के पहिल सत्र के अध्यक्षता उदय शंकर शर्मा आउ संचालन
नागेन्द्र बंधु कैलका।
दोसर सत्र
दोसर सत्र
दोसर सत्र में रामचन्द्र जी के अध्यक्षता में कवि सम्मेलन के शुरूआत भेल। चन्द्रावती चन्दन के मईया तोहरे पर गुमान हमरा…..सरसती वन्दना से दौर चलल। ओकर बाद दीनबंधु, परमान्नद, परमेशरी, रंजीत, शिवेन्द्र नारायण सिंह, जय प्रकाश, जयराम देवसपुरी, उमेश प्रसाद सिंह उमा, दयानन्द बेधड़क, भोजपुरी कवि जख्मी कान्त निराला, नरेन्द्र सिंह, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, दशरथ, अमरदेव सिंह अमर, मुन्द्रिका सिंह, सुमंत, कृष्ण कुमार भठ्ठा, डॉ० किरण शर्मा, अशोक समदर्शी, शोभा कुमारी, जयनन्दन, शम्भू विश्वकर्मा, उमेश बहादुरपुरी, बैजू सिंह, ईश्वर प्रसाद मय, उमेश प्रसाद, उदय शंकर शर्मा, नरेश प्रसाद सिंह, सीता राम पाण्डेय, मिथिलेश, रामचन्दर, नागेन्द्र बंधु , अंजेश कुमार सभे गीत, ग़ज़ल, हास्य, व्यंग्य, झूमर, सोहर के समा बाँध देलका।
दीनबंधु आउ अशोक समदर्शी के ग़ज़ल खूब सराहल गेल। उदय भारती
के व्यंग्य, रंजीत के
हास्य, नरेन्द्र
के झूमर, देवसपुरी
के समसामयिक, परमेशरी
के प्रेमगीत, जयप्रकाश
के परबतिया, अमरदेव
के गीत, बेधड़क
के व्यंग्य, शम्भू
विश्वकर्मा के प्रहार, जयनन्दन
के इतिहास बनावे के संदेश सभे के खूबे बेस लगल।
मगही के ई यादगार सगर रात
दिया जरे काजकरम लोग-बाग बरसों नञ् भूला पइतन। सौर गाँव के विपिन कुमार सिंह के
अथक मेहनत से ई काजकरम सफल होल। साल २०११ के मगही साहित के बड़गर काजकरम में एकर सुमार
करल जात। एकरा मगही के इतिहास के एगो मील के पत्थर से कम नञ् आँकल जात।
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मगह के आयोजन
मगही दिवस मनावल गेल
शेखपुरा जिला के शेखोपुर प्रखण्ड के मोहब्बतपुर गाँव में ५ दिसम्बर के 'मगही दिवस' हर साल के जैसन मनावल गेल। मगही दिवस मनावे के फैसला कय साल पहिले साहितकार आउ मगहीसेवी लेलन हल। तहिया से मोहब्बतपुर में ई काजकरम मनावे के परम्परा बन गेल हऽ। मगहिया भाय-बहिन मोहब्बतपुर में जुटके एकरा 'आत्मचिंतन दिवस' के रूप में मनावऽ हथिन। अबकी बार काजकरम दू सत्र में आयोजित होल। पहिल सत्र में मगही भासा साहित के दशा-दिशा पर विचार गोष्ठी होल। मगही के वरिष्ठ कथाकार आउ संपादक मिथिलेश अप्पन सम्बोधन में कहलन कि मगही के आगे बढ़ावे में आउ एकरा स्तर देवे में मगही मंडप से पहिल परकासित सारथी पत्रिका के जोगदान सबसे बढ़के हे। सारथी में सभे विधा के स्तरीय रचना छप्पल। साहितकार एकरा से प्रेरणा लेके साहित लिखथिन। मगही में गद्य विधा में लिखे के जादे जरूरत हे। मगही में प्रचलित दोसर भासा के शब्द के ओइसहीं छोड़ देवे के चाही। एकरा से मगही के शब्द पचावे के ताकत मिलत।। मगही साहित समृद्ध होत। श्री मिथिलेश मगध विश्वविद्यालय में मगही स्नातकोत्तर विभाग खुले से मगही में क्रान्ति आवे के बात कहलन।
मगही पत्रिका के संपादक धनंजय श्रोत्रिय मगहिया भाय बहिन में
मगही साहित पढ़े लेल 'पुस्तक संस्कृति' पैदा करे के बात कहलन। मगही के छप्पल साहित के खरीद के
पढ़े आउ बाल-बच्चा के पढ़ावे के निहोरा कैलका। नयका पीढ़ी के आझ मगही साहित पढ़े
के जादे जरूरत पर बल देलन।
व्यख्याता डॉ० किरण मगध विश्वविद्यालय
मगही विभाग के प्रगति के ब्योरा देलका आउ कहलका कि जे गति से अभी मगही लेल काम हो
रहल हऽ, ईहे गति
आगू भी रहत तउ मगही जल्दीये अप्पन मुकाम हासिल कर लेत। इनका अलावे शिवनन्दन सिंह, धनंजय सिंह, राजकुमार सिंह आउ
कय लोग मगही के दशा-दिशा पर अप्पन विचार देलका।
दोसर सत्र में कवि सम्मेलन होल। सरसती
वन्दना के बाद कविवर परमेशरी के आवऽ हमर अँगना में, हइ बात बहुत बतिआवई के.....कविता से सदन
गूँजे लगल। ओकर बाद परमानन्द के हे पीपल के पेड़ बतावऽ कहिया आवत पिया..... सभे के
मन मोहलक। कविवर मिथिलेश के पंक्ति.....
रहइवला ही
गाँव के,
गुलमोहरिया
छाँव के,
जहाँ ढोल
आउ मानर बाजे,
धुंधरू
नेटूआ पाँव के....।
सभे के लोभइलक।
कवि जयनन्दन, नागेन्द्र बंधु, डॉ० किरण, मुन्द्रिका सिंह, धनंजय श्रोत्रिय, भोला सिंह, सुमीत सिंह के
काव्य फुहार चलल।
दून्नु सत्र के संचालन नाटककार नागेन्द्र
बंधु आउ अध्यक्षता कवि मिथिलेश कैलन। आखिर में सर्व सम्मत्ति से मगही के संविधान
के आठवीं सूची में दर्ज करे के माँग के प्रस्ताव पारित करल गेल। मगही मंडप के
केन्द्रीय पत्रिका सारथी के परकासन फिर से शुरू करे के फैसला लेल गेल।
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सनेस मिलल
विचार
मगही मनभावन के तेसर अंक तीन
गुना खुबसूरत कलेवर में देखाई पड़ल | रचना एक से बढ़कर एक हल | पूरा अंक मगह के गदारयल छटा से भरल एगो कनक कामिनी के अहसास
देलक जेकर आत्मा हल हाइकु के बहार | इ जानदार खंड पढ़े वाला के जान में जान ला देलक आव विश्वास देलयलक की मगही में बहुत कुछ अच्छा हो रहल हे | उदय भाई से निहोरा हे की हाइकु हर अंक में जरुर देल जाय,इ तीख मिरचाई गागर में सागर के दरस करा दे हे |
अन्य कहानी कविता व्यंग्य भी
मजगर हल | बेस प्रयास ला साधुवाद आव गति के तेज करे खातिर शुभकामना |
-राजेश मंझवेकर
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पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
*रचना मगही साहित के प्रचार-प्रसार के लेल इहाँ रखल गेल हऽ। कौनो आपत्ति होवे पर हटा देल जात।
निहोरा
* मगहिया भाय-बहिन से निहोरा हइ कि मगही साहित के समृद्ध करे ले कलम उठाथिन आउ मगही के अप्पन मुकाम हासिल करे में जी-जान से सहजोग करथिन।
* मगही मनभावन पर सनेस आउ प्रतिक्रिया भेजे घड़ी अपन ई-मेल पता जरूर लिखल जाय, ताकि ओकर जबाब भेजे में कोय असुविधा नञ् होवै।
* मगही मनभावन ले रचना ई-मेल से इया फैक्स से चाहे हिन्दी मगही साहित्यिक मंच ‘शब्द साधक’ के कारजालय, हिसुआ पहुँचावल जा सकऽ हे।
शब्द साधक
हिन्दी मगही साहित्यिक मंच
हिसुआ, नवादा (बिहार)
shabdsadhak@gmail.com
* मगही मनभावन के तरफ से आवेवला नयका साल २०१२ के बधाय आउ
शुभकामना। *
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