दर्जा-दर्जा रट रहली हें
--उदय कुमार भारती
जिनखर पुत बैठल हें जाके संसद आउ
मंत्रालय में,
जिनखर परचम लहर रहल हे सचिवालय आउ
न्यायालय में।
उनखर माय के अभियो गंजन ?
दर्जा-दर्जा रट रहली हें,
आस पुरल नञ् बेटा से, तार-तार ऊ फट
रहली हें।
बचपन, जुआनी आउ बुढ़ापा मइये के बोली बोलऽ हऽ,
जलम लेतइ केहों-केहों कह आंख अप्पन सउ खोलऽ हऽ।
पर जउ पइला वोट-बहुमत, मिललो जउ बड़का कुरसी,
तउ अप्पन स्वार्थ सोझरावऽ हऽ
आउ जेकर दम पर मिललो कुरसी, ओकरे सउ बिसरावऽ हऽ।
दिन गिनत हे माय जिनगी के, धीरे-धीरे घट रहली हें,
ओकर माय के अभियो गंजन, दर्जा-दर्जा रट रहली हें।
जिनखर पुत बैठल हें जाके संसद आउ
मंत्रालय में,
जिनखर परचम लहर रहल हे सचिवालय आउ
न्यायालय में।
बुद्ध, अशोक, सरहपाद के मगही,
मीठ-मिश्री भाषा हे,
अपने सउ के करनी से आझ, पीढ़ी में
घोर निराशा हे।
जात-धरम, अगड़ा-पिछड़ा में मगही के
तों बांट देला,
आउ बढ़त हल एकर कन्नी, समय-समय तों
छांट देला।
पगड़ी, मोछ लड़ाई में माय
खेमा-खेमा में बंट रहली हें
दिन गिनत अप्पन जिनगी के धीरे-धीरे
घट रहली हें।
जिनखर पुत बैठल हें जाके संसद आउ
मंत्रालय में,
जिनखर परचम लहर रहल हे सचिवालय आउ
न्यायालय में।
उनखर माय के अभियो गंजन?
दर्जा-दर्जा रट रहली हें,
आस पुरल नञ् बेटा से, तार-तार ऊ फट
रहली हें।
दर्जा-दर्जा रट रहली हें,
खेमा-खेमा में बंट रहली हें।
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