रविवार, 23 सितंबर 2012

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-१०


मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-१०
मगही मनभावन
मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-१०

मगही साहित्य ई-पत्रिेका
        वर्ष -                                अंक - १०                  २३ सितम्बर २०१२
------------------------------------------------------------------------
ई अंक में
दू गो बात....
संपादकीय
कहानी
कत्ते बार उजड़े पड़त – नरेन
परमेश्वरी के तीन छोटगर कहानी
 १.विधायक के बडीगाड
२.घाव कहाँ पह कहाँ
३. इनसान के भेस में
लेख-निबन्ध
मगही गीतन में पावस अउ धनरोपा – डॉ. शालिग्राम मिश्र ‘निराला’
कविता-कियारी
जयराम सिंह के तीन रोपनी आउ बरसा गीत
दीनबन्धु के दूगो किसानी आउ हरसा गीत
आवऽ बरसा रानी – गोपाल लाल सिजुआर
बरसात गीत – डॉ. नरेन्द्र देव प्रवुद्ध
रिमझिम बरसई – रामचन्द्र शर्मा किशोर
झूमर – केशरीनन्दन
बरसात न आयेल – सुभाष चन्द्र किंकर
शिव प्रसाद लोहानी के मगही दोहा
हम ऊ गाम के मजदूर किसान – शिवदानी भारती
मगह के आयोजन
पत्रकार संघ के सेमिनार
मलमास मेला के मगही कवि सम्मेलन
विविध
पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
निहोरा
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
     * आझ २३ सितम्बर साहित के बड़ ऐतिहासिक दिन हइ। राष्ट्रकवि आउ ओज के महाकवि रामधारी सिंह दिनकर के जलम दिन हइ, जिनखर लेखनी आउ हुंकार से राष्ट्रीयता दिगंत में गूंज रहल हऽ। जे राष्ट्रीयता के उदघोषक और क्रान्ति के उदात्ता हला। हम ऊ देदीप्यमान नक्षत्र पद्मभूषण दिनकर के पावन स्मृति के शत-शत नमन करऽ हियै। उनखर लेखनी, सृजन आउ जन-जन के हिरदा में रचल-बसल उऩखर श्रद्धा के नमन करऽ हियै। आउ जलम दिन पर उनखा श्रद्धा सुमन अर्पित करऽ हियै।
    आउ आझ मगही मनभावन के लेल भी ऐतिहासिक दिन हइ। आझे के दिन परसाल एकर जलम दिन होल हल। आझ मगही मनभावन एक बछर के हो गेल। आझ एकर पहिल बर्षगांठ पर एकर दसवां अंक लेके अपने के दुआरी पर खाड़ हियै।
    हम उनखा सब्भे के साधुवाद दे हियै, जे एकरा अपनैलथिन, खुल के कुछ कहलथिन आउ कहथिन। उनखर आर्शीवाद आउ प्रेरणा हम्मर आउ मगही मनभावन के मार्ग दर्शक बनतै। *
                         जय मातृभासा!   जय मगही!
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
दू गो बात....
     साल के बारहों महीना में सावन-भादो महीना के एगो अलगे महातम हे। चाहे एकरा श्रृंगार के महीना कहल जाए चाहे श्रमदान के। ईहे महीना में प्रकृति अप्पन श्रृंगार करऽ हे आउ किसान अप्पन कर्म। पिया आउ विरहन के मिलन होवऽ हइ आउ ओकर वियोग के उद्गार। बदली, रिमझिम फूहार, बून, बरसा, हरियाली, धरती के श्रृंगार सगर अजबे दिरिस हो जा हे। माटी के अलगे महक, फिजा में बहार, खुमार। गरमी से कुम्लाहल जीव-जनावर के पुरसकून। ऐसने में मुकेश के एगो पुराना गाना बजऽ रहल हल, “सावन का महीना पवन करे शोर, जियरा रे झूमे ऐसे जैसे वनमां नाचे मोर”। हमरो लगल सावन के महीना सबके मनमां में मोर नाच रहल हऽ, तउ हम्मर ‘मगही मनभावन’ के पन्ना पर मोर नञ् नाचत। हमहूं लग गेलूं श्रृंगार, पियार, सावन के विरह, धनरोपनी, बादर आउ मगह के दृश्य के एकर पन्ना पर उतारे के कोरसिस में। जल्दी-जल्दी में जे-जे सामग्री आउ रचना जुटल ओकरा सब्भे के समेटे लगलूं। मगही के साहित बरखा, धनरोपनी, किसानी, पिया विछोह-मिलन, प्रेम के बड़गर भरल सागर हे। ओकरा से दू चार गो मोती चुनके रखना आसान नञ् हल। अब अपने सब्भे ही बतैथिन कि एकाक गो मोती चुनैले कि नञ्?       
        ई अंक के कविता कियारी, धन रोपनी, किसानी से जुड़ल गीत रख के मगह के दृश्य के उभारे के कोरसिस कैल गेल हऽ। मगही कोकिल जयराम सिंह किसानी गीत, बरखा गीत, सावन के गीत रचे में महारथ हासिल कैले हला। ऊ बड़ी दमदार कलम से मगह के दृश्य के उभरलका हऽ। दीनबन्धु के ऐसन रचना से भी मगही साहित भरल-पूरल हइ। केसरीनन्दन के झूमर से मगह के संस्कृति के उतार के रख दे हला। अंक में इनखर अलावे गोपाल लाल सिजुआर, डॉ. नागेन्द्र देव प्रबुद्ध, रामचन्द्र शर्मा किशोर, सुभाष चन्द्र किंकर, शिव प्रसाद लोहानी, शिवदानी भारती के किसान, नायिका और बादरा के गीत रखल गेल हऽ। आसा हे अप्पने सब्भे के जरूरे ई गुदगुदैतै।
      डॉ. शालिग्राम मिश्र निराला के सावने-भादो से जुड़ल ‘मगही गीतन के पावस आउ धनरोपा’ मगहिया रचनाकार के जीवन्त लेखनी के उजागर करऽ हइ।
      कहानी के कॉलम में साहित के कुशल चितेरा नरेन के लिखल कहानी कत्ते बार उजड़े पड़तनक्सल आउ नक्सलवाद के परिणाम के चित्रण हे। सिद्धान्त हीन नक्सल के विद्रूपता ईमें दिखऽ हे। नक्सल के मारल राघोपुर वासी दलित के जीवन के नियति समाज पर बड़का प्रश्न चिह्न छोड़ऽ हइ। एकर ठोस निदान के लेल साहित्यिक हुक पढ़ेवला के हिरदा में ई कहानी उठावऽ हइ, ओकरा झकझोरऽ हइ। परमेश्वरी के लिखल तीन छोटगर कहानी जरूरे मन के गुदगुदैतै। कहानी व्यंग्य करैत कयगो प्रश्न चिह्न छोड़ऽ हइ।
     मगह के आयोजन में दुन्नू रिपोर्ट अपने आप में खास हइ। पत्रकार संगठन के सेमिनार नवादा जिला आंचलिक पत्रकार लोगन के एगो ऐतिहासिक आयोजन हइ। ओकरा साथे राजगीर के मलमास मेला में मगही कवि सम्मेलन भी एगो ऐतिहासिक पहल हइ।
उदय कुमार भारती
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------सम्पादकीय....
             साहित के मंच पर राजनीति पेन्हे माला
      एक रोज हम हिसुआ के मगही-हिन्दी साहितिक मंच शब्द साधक के बैनर तले एगो बड़गर एकदिवसीय साहितिक विचार गोष्ठी आउ कवि सम्मेलन करे के मन बनैलूं। योजना के काजरूप देवे लेल अप्पन दोस मोहिम के चाय पर बोलैलूं आउ विचार-विमर्श करे लगलूं। हम्मर एगो दोस विचार देलका कि आयोजन सफल तभीये होतो जउ मुख्य अतिथि कोय नेता, मंत्री, विधायक चाहे एमएलसी के बनैवा, वरना भीड़ नञ् जुटतो। हम पूछलूं काहे भाय मगही के झमठगर-झमठगर साहितकारन के छोड़ के मंच पर नेता के बैठाम आउ उनखा बुके आउ शॉल देके सम्मानित करम। एकरा से हम्मर साहित में की निखार आवत? काजकरम तउ साहित के नञ् रह के नेते के हो जात। जे मंच पर ऐता, उनखे महिमा मंडन करे लगता। आझ तक साहित लेल बड़ी कुछ उनखा से मांगते रहलूं, भले कुच्छो नञ् मिलल, लेकिन मंच से सब्भे बोले वला कुछ नऽ कुछ जरूरे मांगता। नेताजी के घोषणा के सिवाय की मिलत? नेता जी के देखे लेल भीड़ उमड़तो, उनखर लगुआ-भगुआ के जुटान हो जैतो। साहित के काम की सधतो? आउ पहिले तऽ नेताजी के इंतजार में आधा काजकरम खत्म हो जैतो आउ जब ऊ ऐथुन तउ उनखर भाषण में पार्टी आउ सरकार के गलबात होवे लगतो, ओकर बाद जउ ऊ चल जैथुन तउ तोहर काजकरम खत्म। तोहर विचार गोष्ठी आउ कवि सम्मेलन सुनैले जे भी ऐथुन ओहू अप्पन कीमती समय गंवा के तखनी तक चल जैथुन। खिस्सा खतम पइसा हजम। हमर दोस मुहिम हम्मर उद्गार सुन के हमरा झोल देलथून। कहलथून – “तोहर बड़ी ओछा सोंच हो भारती जी, तू अभीयो प्रैटिकल अदमी नञ् भेला हऽ। आझ साहित के काम ऐसहीं सधऽ हे। आझ राष्ट्रीय स्तर के आयोजन होवऽ चाहे प्रदेश स्तर के, बगैर नेता के काजकरम के फीता नञ् कटऽ हे, भारती जी।” हमरे विचारधारा के एगो आउ हम्मर दोस उहें पर बैठल हला, उनखा भी भक से लगलै। उहो बिगड़ के कहलथिन ठीके कहऽ हो... “जहिया से नेता आउ प्रशासन मंच पर आवे लगथिन, तहिये से कौआ भी साहित के सम्मान पावे लगलथिन। ठीके कहऽ हो आज नेते साहित के जुगाड़ हथिन। साहित के बुलंदी तक जदि तोहरा पहुंचे के हो तउ काजकरम करऽ आउ राजनीति के मंच पर बैठावऽ। साहित के बुलन्दी मिले चाहे नञ् मिलै, तोहर महत्वकांक्षा जरूर सध जैतो।”
      आझ हम्मर साहित के मंच पर खुल के ईहे हो रहल हऽ। साहित के मंच पर राजनीति के हाथ में बुके हइ, प्रतीकचिह्न हइ, कंधा पर शॉल हे, अंगवस्त्रम हइ। साहित हम्मर कोना में खड़ा मंच पर कराहऽ रहल हऽ। आझ राजनीति के महिमा मंडन साहित के मुख से होवऽ हइ। आझ हम्मर बुढ़वन आउ जुअनकन ‘शब्द साधक’ के माला पहिनावे लेल कोय तैयार नञ् हथिन, ओकर कंधा आउ पीठ मंच पर से थपथपाये नञ् चाहऽ हथिन आउ राजनीति के माला पेन्हा के अप्पन महत्वाकांक्षा पूरा करे में लगल हथिन।
      मंच पर दर्जनों हम्मर वरिष्ठ साहितकार ऐसहीं बैठल रह जा हथिन आउ ऊहे मंच से अधिकारी आउ नेता शॉल ओढ़ के जऊ चल जा हथिन तउ साहित के छाती फटऽ हइ। हम ई नञ् कहऽ हियै कि नेता के काजकरम में बोलाना एकदमे गलत हइ, लेकिन उनखा बोलावल जाए सम्मानित श्रोता के रूप में। ऊ आके हम्मर साहित के सुनथिन, गुनथिन आउ कुछ देथिन। अप्पन प्रयास से साहित के विकास के काज करथिन ई उनखर दायित्व हइ। जे राजनीति के लोगबाग साहित लेल हिरदा से कुछ करऽ हथिन, उनखा हम साधुवाद दे हियै आउ दोसरो से ई आसा रखऽ हियै। साहित के मंच से माला पेन्हे में ऊहो परहेज करथिन। अप्पन माला उतार के जदि हम्मर साहित के गला में पेहनैथिन तबे उनखर बड़प्पन हइ। आउ हमन्हीं के भी चाहऽ हियै कि नेता आउ अधिकारी के हम सम्मानित श्रोता बनैयै, उनखा ईहे रूप में आमंत्रित करियै। ई परिपाटी कहिया शुरू होत? एगो सन्दर्भ हम ईहां रखऽ हियै कि एगो राजा गुरू के आश्रम में आवे चाहऽ हलथिन तउ गुरूजी उनखा आवे से मना कैलथिन। कारण पूछे पर गुरूजी कहलथिन- “राजा हम आश्रम में शिष्य के गुरू हियै, हमरा सब आदर आउ प्रणाम करऽ हथिन। जब अपने ऐथिन तउ हमरा अप्पन टोपी उतारे पड़तै। तउ हुंआ के सब बच्चन सोचथिन कि गुरूजी से बड़ा राजे हथिन। गुरू के सम्मान कहां रहतै?” तउ राजा कहलथिन- “गुरू जी हम तोहर आश्रम में जरूर जैबै लेकिन टोपी अपने नञ्, अप्पन पगड़ी हम उतारवै।”   
 उदय कुमार भारती
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कहानी
कत्ते बार उजड़े पड़त
               नरेन
सौंसे राघोपुर गनगना गेल हल।
 जमुई जिला के लक्ष्मीपुर के घना जंगल में पहाड़ के तलहटी में बसल ई नान्ह गो गांव निनारू बुतरून जइसन हमेशा औंघाइत रहऽ हल, जे एकदम से चिहुक के जाग गेल हल। जाग कौची गेल हल, थरथरा रहल हल।
 कामरेड बसंती एक इलाका के एरिया कमांडर हल त का भेल! ऊ बेचारी के आंख के सामने ही लाल सेना ओक्कर गांव में जनअदालत लगा के भरल भीड़ के सामने ओक्कर बूढ़ा बाबूजी के गांव के बीचो बीच बरगद के पेड़ पर फांसी पर लटका देलक हल।
 बसंती के ई देखल पार न लगल हल कि बरगद के डाल से लटकइत ओकर बाप के परान नञ् टूटल हल। ऊ डाल से रस्सी से लटकल देर तक मुर्गा जइसन छटपटाइत रहल हल तऽ लाल सेना गांव वाला लोग के हुकुम देके एगो कबर खनवयलक हल, आउ ओक्कर बाप के जिंदा ही कबर में दफना देवल गेल हल।
 एतना कठकरेज आउ खूंखार हरकत एगो नक्सली कहाय वाला दल के? ओहू अप्पन एगो पकिया कामरेड के अप्पन बाप पर ई जुलुम ढयलक।
 कामरेड बसंती आउ ओक्कर बूढ़ा बाप के भला कसूर का हल?
 कसूर बस एतना ही हल कि लाल सेना के दलपति के फरमान जारी होल हल कि कामरेड बसंती अप्पन छोट भाय के समझा-बुझा के लाल सेना के सिपाही बनावे ला जंगल में ले आवे। ई बात पर कामरेड बसंती राजी नञ् भेल हल। ऊ दलपति से निहोरा कइलक हल कि बूढ़ा माय-बाप के बुढ़ापा के लाठी हे ओक्कर छोटा भाय। लेकिन दलपति के कान पर ढिल्ला भी नञ् बुलल हल। दल एक रोज कामरेड बसंती के गांव सपर के गेल हल आउ सौंसे गांव वाला के जौर करके मीटिंग कयलक हल आउ सौंसे गांव के ई फरमान सुना देल गेल हल कि गांव में जे-जे घर में जवान लड़का-लड़की हे, ओक्कर भलाई ऐही में ही कि ऊ सब जवान लड़का-लड़की अप्पन मने से चुपेचाप लाल सेना के सिपाही बनेला जंगल में चल अइते जयतन। हुकुम उदूली करे के परिणाम ठीक नञ् होवत। ऊ कामरेड बसंती के थर-थर कांपइत बूढ़ा बाप के ललकारलन हल- बाबा तोहर बेटी तो कयेक साल से हमनी के लाल सेना में शामिल हो- त तोहर घर से तोहर लड़का के सबसे पहिले आके सेना में शामिल होवे के चाही। तोहर परिवार के ई संस्कार होवे के चाही कि जरूरत के समय बेटा के भी पाटी के सिपाही बनावे ला भेज दऽ, सेना में अभी ढेर कमी हे। अप्पन बेटा के जंगल भेजाऽ के गांव वालन के सामने एगो बढ़िया उदाहरण पेश करऽ बाबा। अइसन नञ् करवऽ त तोहरे जान सबसे पहिले जयतो- ई बात इयाद रखिहऽ।
 बूढ़ा सोमर मांझी के परान थरथरा गेल।
  ऊ कातर आंख से अप्पन बेटी बसंती दने देखलक मगर ओकरो पस्त देख के सोमर के हौसला टूट गेल।
 दलपति सोमर के घिरा के दल के साथ चल गेल। दू-तीन रोज टैम देल जा हो बाबा तोहरा। बेटवा के जंगल में पेठा दिहऽ.... नञ् तो....
 सोमर महतो के दुइयो-तीन दिन उहां पोह में बीत गेल। दुन्नू परानी उन्नेस-बीस ढेर सोचलक लेकिन आखिर में एही तय कयलक कि एक तो बेटी के उठा के लेले चल गेल हल सेना वालन सब सात-आठ साल पहिले। रो बजड़ के छाती पत्थल देके कइसहूं मन मसोस के रह गेलूं हल दुन्नो परानी। ई बेटवा तखनी आठ-नौ बरिस के हल। एकरे मुंह देख के कइसहूं बेटी के दुख हल्का करते गेलूं हल। अब तो एही आंख में पांख एगो बेटा के ही भरोसे हे- हमनी दुन्नू परानी बूढ़ा-बूढ़ी के जिनगी। एकरा भला हम कइसे आंख से इड़ोत होवे देम। केकर मुंह देख के जिंदा रहम हमनी आउ ओहू लाल सेना में शामिल होवे ला भेज देम। चौबीसों घंटा गोली-बंदूक के बीच भला कै रोज जिंदा रहत आउ फिर पुलिस से मुठभेड़ होवे के अनेसा तो हर-हमेशा लगले ही रहतई।
 नंह!
 चाहे प्रान रहे चाहे जाये। अप्पन कलेजा के टुकड़ा के लाल सेना के हाथ में नञ् सौंपम!
 सोमर अप्पन मन कड़र करके ई बात ठान लेलक हल। मुदा बेचारा सोमर मांझी के एक्कर कारण नञ् मालूम हल कि पाटी जबरदस्ती काहे ला गांव के जुआन लड़का-लड़की के पाटी में भर्ती करे ला आतंक मचयले हल। गांव के भोला-भाला खाय-कमाय में मशगूल रहे वाला छोटगर किसान के भला पाटी के ई लच्छन-चरित्तर के बारे में का मालूम होवत कि ऊ काहे ला अइसन उमतायल हइ।
 स्थानीय लाल सेना बहुत परेशान हे आजकल। ओकरा पास दल में कैडर के भारी ताकड़ हो गेल हे। आंध्र प्रदेश से बिहार-झारखंड होवइत एगो लाल कारिडोर(गलियारा) बनावे के अभियान में जुटल हे नक्सली सब। एही से ढेर मनी आंध्र के कामरेड एन्ने बिहार में भी आके सक्रिय हो गेल हे। बाहर से आवे वला दलम के लोग आउ स्थानीय संगठन के बीच पटरी नञ् बइठ रहल हे। आपसे में नोंक-झोंक होवइत रहऽ हे एही से बाहर से आवे वला कामरेडवन आउ स्थानीय लाल सेना के बीच एन्ने हमेशा मुठभेड़ होवइत रहऽ हे। आपसे में लड़-लड़ के कट मर रहल हे सब।
  सोमर के ई सब बात नञ् पता हे कि पाटी एगो आउ बड़गो समस्या से जूझ रहले हे आजकल।
 हाल फिलहाल माओवादी कम्युनिस्ट पाटी से टूट के एगो आउ नयका दल बन गेल हे-तृतीय प्रस्तुति कमिटि।
 एमसीसी से टूट के टीपीसी।
 ई टीपीसी पहिलका पाटी से जादे मिलिटेंट हे। ई टीपीसी एमसीसी के बड़का-बड़का जेतना कामरेड हई ओकरा चुन-चुन के तबाह करे पर पड़ गेल हे। ताजा खबर ई हे कि इमामगंज थाना के बाबू रामडीह गांव में एन्ने हाले टीपीसी हर्बे हथियार के साथ हार्डकोर माओइस्ट विजय यादव उर्फ संदीप उर्फ बड़े सरकार के घर पर सरे आम ऑपरेशन चला के ओक्कर घर के डायनामाइट लगा के उड़ा देलक हे।
 टीपीसी एमसीसी वालन से जादे मिलिटेंट हइ।
धौंसा-धौंसा के रख देलक हे ऊ एमसीसी के।
 एक्कर धाक दौरा एकदम उजड़े-उजड़े पर हे। एही से एमसीसी जान-परान दे के अप्पन ताकत बढ़ावे खातिर दल में जबरदस्ती कैडर भर्ती करे खातिर लग गेल हे। अप्पन प्रभाव क्षेत्र वाला गांव में लाल सेना फरमान जारी कर देलक हे कि गांव के सरेख लइका-लइकी के पाटी में शामिल होवे ही पड़त।
 कइसहूं अप्पन छोट-छिन खेती में जोत-कोड़ के परिवार के पेट पाले में जुटल रहे वला बूढ़ा सोमर मांझी के ई सब कुछ नञ् पता हल कि माओवाद के जन्म स्थान चीन में आज माओत्से तुंग के इकलौता जिंदा पोता माओ जिंग्यु, जे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के मेजर जनरल हे आउ माओवाद के दर्शन पर ढेर मनी किताब लिखलन हे, जेकरा माओवादी विचारधारा के सबसे काबिल जानकार अदमी मानल जा हे, चीन में बइठल आज कह रहलन हे कि आज हिन्दुस्तान में जौन किसिम के माओवादी आंदोलन चल रहल हे, ओकरा साथे उनखर दादा जी के सिरजल माओवादी विचारधारा के साथ कोय रिश्ता नञ् हे। ऊ कह रहलन हे कि हमनी के बढ़िया से माओवादी विचारधारा के पहले समझे के चाही तब ओकरा बाद लागू करे के चाही। माओवादी विचारधारा के बारे में बढ़िया समझ मानव जाति के विकास करे में आउ शांति के साथ जीये में मददगार साबित होवऽ हे। भारत में माओवादी क्रान्ति के नाम पर जे खून-खराबा हो रहल हे ओकरा में माओवादी लोग माओ के नाम से गलत ढंग से भंजा रहलन हे।
 सोमर जइसन खाली कमाय-खाय में लगल रहे वला राघोपुर के आमवासी सब के ई सब ऊंचा-ऊंचा बात के भला कहां से जानकारी होवत कि माओवाद के नाम पर गरीब-गुरबा के हक के लड़ाय लड़े वाला बन्दुकधारी क्रांतिकरियन  सब कौन उसुल पर चल रहले हऽ आउ ई कदर खून खराबा  करते रहे से गरीब-गुरबा के कौन किसिम के फायदा पहुंच रहले हऽ। ई सब निरीज अदमियन के ई भी नञ् समझ में आ रहल हल कि पाटी वला लोग जब उनखर सब के गांव में डेरा डालते जा हल तऽ सगरो आतंक के साम्राज्य काहे छा हल। आखिरकार पाटी कहऽ हे कि ऊ गरीब-गुरबा के दोस्त हे- तऽ दोस्त के अइसन वेवहार तो नञ् होवे के चाही?
 अब पाटी के ई हुकुम के भला कइसे मान लेल जाय कि अप्पन-अप्पन घर के सब जवान लड़का-लड़की के जंगल में भेज देल जाये-गोली खा के मरे-खपेला!
 गांव वला सब्भे पशोपेश में हल। आपस में बइठ के राय-विचार कयल गेल कि का करे चाही। बेटवन के जंगल में पाटी में शामिल होवे खातिर भेजे ला केकरो आतमा तइयार नञ् हो पा रहल हल।
 चाहे जे होवत, देखल जायत। एही सोचलक राघोपुर के लोग।
 लेकिन मन के केतनो ढाढ़स बन्हावे, सबके मन भीतरे-भीतर हदस रहल हल। पाटी के मति-गति के कउनो ठीक हइ। पता नञ्, भले चिढ़ जाये, आउ सच्चो के कोय अनहोनी कर दे। का पता हिंया से भी उजड़े पड़त न का? एही जिनगी में केते बार कन्ने-कन्ने ढनमनाय पड़त ई सोच के सबके मन हहर रहल हल।
 पहड़तल्ली में बसल राघोपुर के तकदीर में लगऽ हइ कि ढनमनाय के ही लिखल हइ न का? दरअसल सौंसे गांमे ई पहड़तल्ली में पंद्रह-बीस साल पहिले आके पनाह लेलक हल। बाजिब मजूरी पावे के सवाल पर नालंदा जिला के अप्पन पहिलौका गांव में बड़गो-बड़गो अगड़ा जाति के किसान से ठनते-ठनते तनाव एतना बढ़ गेल हल कि मजूरा लोग अप्पन मांग पर अड़ गेल हल आउ किसान के खेत में मजूरी करना बंद कर देलक हल। लाले सेना के सह पा के ई सब मजूरा वाजिब मजूरी के सवाल पर डंटल हल।
 ओही तनातनी के माहौल में एकरोज रात में मुसहरटोली के चारों ओर से घेर के लहका देलक हल अगड़ा जाति वाला किसान सब। सुतले में ढेर सनी लइकन-बुतरून, मर्दे मेहरारू जिन्दे जल गेल हल। बचल-खुचल लोग बाग ओही रात के खाली अप्पन-अप्पन जान-परान लेले गांव छोड़ के भाग चलल हल। सुकन मांझी के बेटवा के ससुराल हल एही इलाका में ओही राय देलक हल कि ई जंगली इलाका में पहड़तल्ली में नदी किनारे बस जाये के जुगाड़ हो सकऽ हे। भुक्खल-पियासल सौंसे टोला के बच्चल-खुच्चल अदमी सब ई जंगल में आके पनाह लेलक हल। जंगल के लकड़ी बेच के कइसहूं दिन काटते गेल हल। धीरे-धीरे नदी के किनारे कंकड़-पत्थर भरल लाल माटी के साफ-सूफ करके थोड़ा बहुत मकई-मड़ुआ उपजावे लगल हल।
 कइसहूं जीये के लड़ाई लड़ते रहे में ही जिनगी कट रहल हल कि राघोपुर के लोग के कि एन्ने लाल सेना के हुकुमनामा पाके सब सन्न रह जइते गेल हल।
 उहां पोह में डूबत-उतरायत राघोपुर वला कोय निर्णय नञ् ले पयलक हल कि एही बीच दल वला सब कामरेडवन गांव में हाजिर हो गेल आउ हुकुम उदुली करे से चिढ़ के समूचा गांव के लोग-बाग के सामने ही बेचारा सोमर मांझी के फांसी पर चढ़ा देलक हल।
  राघोपुर वालन के सांप सूंघ गेल हल।
  लाल सेना के धमकी फिर कड़कल हल- हमनी सब के बात नञ् माने के नतीजा देख लेला न तोहनी सब। जवान बेटा-बेटी के नञ् भेजवा जंगल में, तऽ सौंसे गांव में तोहनीन सब के लहास बिछा देवल जइतो।
  ओही रात में गांव वला सब जौर भेल आउ बगैर ज्यादा मीन मेख के निकल पड़ल बाले-बच्चे खाली देह लेले। रात भर जंगल में ढनमनायत-ढनमनायत चलते रहल। केकरो पता नञ् हल कि कहां पर ठौर मिलत ऊ सब के।
  भोर हो गेल हल।
  तइयो जंगल खतम नञ् होवल हल।
  भूखल-पियासल राघोपुर से उजड़ल फटे-हाल गांव वला जेन्ने हियावे-ओन्ने जंगले-जंगले दिखाई पड़े।
  सोमर मांझी के विधवा बूढ़ी थक के सोचलक-
  कत्ते बार उजड़े पड़त......?’
  ई जिनगी में कज्जा ठौर मिलत कब तक ढनके पड़त….?’
  ई जंगल कहिया खतम होवत…..?’
-प्रतिभा निवास, तारकेश्वर पथ, पृथ्वीपुर, चिरैयांटांड़, पटना
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------कहानी
              १. विधायक के बडी गाड
                           परमेश्वरी
    चुनाव के मौसम आ गेल। गली-गली, गांव-गांव चुनाव के चरचा शुरु हल। एक दिन खुरपी में मिरचाय के खेत केरा रहलों हल। साथ में दस गो जन भी लगल हल। एकाएक देखऽ ही हमरा तरफ बहुत लोग चलल आ रहला हे। आगू-आगू नेता जी। साफ चमचमौआ खादी के पैजामा आउ उपर से चमकदार कलप कैल रेसमी कुरता। पीछू से झंडा पताका लेने दस आदमी नारा लगइने-इनकिलाब! जिन्दाबाद! आवाज सुन के हम चौंकलों! खड़ा होके ताकऽ लगलूं। जूलूस नजीक आ गेल। नेता जी के इतर के पाहा कान वाला दमदमावो लगल। वातावरण सुगंधित हो गेल। आते के साथ धरतिये में बैठ गेला। हम गमछा बिछा देलूं, कहलूं-नेता जी तोहर कपड़ा मैला हो जइतो। बैठो गमछवे पर। उ कहलका- “नञ् चाचा जब तों हम्मर बाप लेखा चाचा भुइंया में हा तब हम बिछौना पर कइसे बैठव। जब तक तोरा बिछौना पर नञ् बैठा देलों। अब तक जे जीत के गेल ससुरा से देश के गरीब ले नञ् सोचलक। हम जीत के जाब तब तोहरा नियर अदमी के माने किसान मजूर के बेहतरी ले संघर्ष करवई हमर प्रतिंगा हे। हम किसान के बेटा ही। हमरो बाप तोरे जैसन खेत में काम करइ वला हथ। चाचा हम जीतवइ। हमरा माथा तों अप्पन हाथ धर के असीरवाद दहो, वोट मांगइ ले आइलियो हे।”
   हम कहलों –“नुनु चुनाव के समय में जे आवऽ हइ सब ऐतने कहऽ हइ। हम आज से नञ्, जमाहर लाल के समय से वोट गिरा रहलों हे। वादा एकसे एक चुनाव में हो हे। मुदा काम कुछ नञ्। किसान मजूर के हालत दिनों दिन खराब हो रहल हे आउ खराब होत। हम जानऽ ही। मगर सब तो ऐसने हे, वोट तो देवे करब, जेकरा दी।”
  उ गोड़ पकड़ि के कहलका- “नञ् चाचा वचन दहो। हम जीत जइबइ तब देखिहो दोसर आउ हमरा में कि फरक हे।”
     हम गोड़ छोड़ावैत माथा पर हाथ धर के असीरवाद देलों आउ वोट भी। उ चुनाव जीत गेला। एक बार हमरा पटना जाय के मोका मिलल मन में आयल कि तनी अप्पन विधायक से जाके मिलती! पता कइलों पता चलल लक्खीसराय के विधायक फलेट चितकोहरा में हे। फलेट नम्बर, रोड नंबर उ सब कह देलक अब तो आद भी नञ् हे, तखने रट लेलूं हल। से रिकसा पकड़लूं चल गेलों। वहां जो पहुंचलों तऽ कि कहना! सुदामा मंदिर देख भुले! फलेट के चहार दीवारी के गेट खुल्ले हल से हम धड़ धड़ायल अंदर पहुंच गेलों। भीतर में सिपाही बन्धूक लेने-हमरा डपटि को पूछलक- “ऐ बूढ़ा, कहां आया है।” हम डरि तो गेलों मुदा फेर साहस करके कहलों अप्पन विधायक से मिलइले।
 उ फेर से डपटि के बोलल- ‘‘कहां से आये हो?’’
 ‘‘लक्खीसराय से’’
 उ इशारा करके कहलक- ‘‘वहां बैठिये। साहब अभी पूजा पर बैठे हैं। निकलेंगें तब भेंट कीजिएगा।’’
    हम मौलिसरी के घनगर छांह तर बान्हल चबूतरा पर ओघड़इलों कि नीन आ गेल। हम्मर नीन टूटल जब गाड़ी घोघियावो लगल। विधायक गाड़ी पर चढ़ चुकला हल हम आगे जाके परनाम कइलों। उ मूड़ी हिला के चूप्पे रह गेला। सिपाही गाड़ी के गेट लगा के हमरा डांटलक– “ए बूढ़ा, हटो आगे से।” हम पूंछलों सिपाही से- “तों के हको सिपाही जी?” उ कहलक- “हम बडी गाड.....”सिपाही गाड़ी के पिछला सीट पर बैठ गेल। गाड़ी उड़ल धुइयां छोड़ैत फुर्र....।
   हम लौटि रहलो हल पांव पैदल सड़क पर मन में सोचने। आखिर इ कि भेल जे चुनाव के समय हम्मर पैर पकड़ि के असीरवाद लेलक, सेकरा अखने कि हो गेलइ जे चिन्हइयो से इनकार हे। एतना जल्दी भूलि तो नञ् सके हे कि बात हे मन में कोय जबाव नञ् मिल रहल हल। एक बात पर मन टिकल। आखिर बडी गाड माने कि होवे हे? तभी मन ग्लानि से भर गेल। जो अंगरेजी पढ़त रहतों हल। बाल-बच्चा के जरूर अंगरेजी पढ़ावे के चाही। सड़क पर चल भी रहलों हल। एन्ने-ओन्ने देख भी रहलों हल कि कोय अंगरेजी पढ़ल अदमी मिले आखिर मिल गेल सूट-बूट पिन्हले, टाइ लगइले, हाथ में अंगरेजी अखबार लेले एक अदमी।
    हम कहलों- “भाय जी तनी रुकिहा” उ रूक गेल। हमरा से पूछलक- “हां बोलिए” हम पूछलों- “बडी गाड माने कि होवऽ हे?”
 उ मुस्कुरा के कहलक- “बडी गाड नहीं बाबा बॉडी-गार्ड शब्द है, ऐसे बोलिए।”
 “बॉडी माने शरीर, गार्ड माने रक्षक दोनों मिलाकर हुआ शरीर रक्षक।” एतना कह के उ अप्पन राह पकड़लक। हम मन में सोचऽ लगलूं हम्मर विधायक तो अभी जवान हे, गाड के कि जरूरत शरीर बीमार तो नञ् लखलइ। हो सके अंदर कोय बीमारी होय। तऽ बीमार शरीर के रच्छा तो कोय डागडर करते हल, ई सिपाही कि करतइ बीमारी में? ई तो केवल कुत्ता सन झांव-झांव करतइ। आउ एकरा कि आवऽ हइ अच्छो अदमी के डांट देतइ हम्मर माथा आउ उलझ गेल। सवाल के उत्तर नञ् मिल रहल हल।
 फेर राह चलैत एक पढ़ल अदमी से पूछलों- “भाय जी विधायक लोग बडीगाड काहे रखऽ हे?”
 उ खूब हंसल। हंस के कहलक- “अपहरण के डर से आउ आगे बढ़ गेल।”
 हम्मर दिमाग आउ चकरा गेल। सोचो लगलूं- “हम्मर विधायक तो मर्द हे, जवान भी। औरत तो मर्द के अपहरण नञ् करे हे। भले इतिहास गवाह हे रावण सीता के हरण कैलक, कृष्ण रुकिमनी के, ई बात तो समझ में आवऽ हे कि हर मरद सुन्नर माउगो चाहऽ हे। पतनी बनावइ ले। मरद माउग के अपहरण सके हे, मुदा ई बात समझ से परे हे। मरद मरद के अपहरण काहे ले करत?
 फेर दिमाग में आयल- हम्मर विधायक जी कहें पटना गेला के बाद औरत तो नञ् हो गेला। विज्ञान अब लिंग परिवर्तन भी करो लगल हें। कहें के जाने आज कल के जुवक के शौख। लिंग परिवर्तन करवा लेले रहथ फेर मन में आयल भेस तो मर्दे वला हल। फेर दोसर मन तर्क देलक पहनावा के कौन, आज जन्नी भी मर्दे के पहनावा में रहो लगल हें। से पहनावा से पता नञ् चलतो। फेर हम लौट गेलों। विधायक जी के देखलों। उपर से देखलों, नीचे देखलों, आगू से देखलों, पाछू से देखलों, कहैं से औरत नियर नञ् लगला। सवाल मन में जिन्दे रह गेल। माथा आउ उलझि गेल।
 फेर एक अदमी से पूछलों- “भाय जी, विधायक के अपहरण काहे ले कोय करतइ?”
    उ बड़ी समझदार अदमी हल। समझा के कहलक- “बाबा अब तोहर जुग नञ् रहलइ। विधायक के अपहरण रुपइया ले होवऽ हइ। एक विधायक के पकड़तइ तब दस लाख मांग करतइ। खुशी-खुशी उ लोग देतइ। विधायक के लिए ओतना कुछ नञ् हे। अब समझल्हो।” अब हम्मर सवाल के जबाव मिल गेल हल। तभी इयाद आयल- हर धनगर अदमी के बडी गाड, हर एक अफसर के बडी गाड। सबके डर हे अपहरण के। एक तरह से ई सब आधा जेल में बन्द हे। बडी गाड, बडी गाड, बडी गाड.... उठैत बडी गाड, बैठेत बडी गाड, आगू बडी गाड, पीछू बडी गाड, झाड़ा फिरैत बडी गाड, पेशाब करैत बडी गाड। शायत औरत भिजुंन जाय घड़ी भी बडी गाड के जरुरत होवइ होतइ तब तो....
     ई भी कोय जिनगी हे तभी हम्मर मन में आयल- ई सब मिल के ऐसन वेबस्था काहे नञ् करै कि बडी गाड नञ् राखो पड़इ। भले हम ही, जे बिना गाड के ही।
भले नाम ठिठपाल।
                    २. घाव कहां-पह कहां
   या गाड़ी कुटैम चलइ ले अदौ से बदनाम हे। हमरा ओने जाना जरुरी। महीना में एक बेरी तो निसचित। ओकर दू कारण हे, एक तो ससुरारि ओरसलीगंज, दोसर मगही के लेखक होवइ के चलते, जादे निमंत्रण ओन्ने से मिले हे।
    गया गाड़ी के पहचान हे अन्हार डिब्बा। से एक बेरी दिन के बारह बज्जी गाड़ी आयल रात के आठ बजे। अदमी जइसे-तइसे गाड़ी में बोरा नियर लद गेल। जब तक गाड़ी खड़ी रहल, हल्ला होवैत रहल-फलनी चढ़ले गे? मोटरिया चढ़लो? फलना चढ़लें रे, बुढ़िया चढ़लौ आदि-आदि। हमरा पास तो मात्र एक झोला कान्हा में लटकल हल, सेसें चढ़इ में कोय दिक्कत नञ्। भले सीट नञ् मिलल, भीड़ में खड़ा हलों। अन्हार में के केकरा आगू हे, के केकरा पाछू, कोय पता नञ्। हमरा आगू के हे पाछू के हे कि पता....
   गाड़ी चलो लगल। हल्ला-गुल्ला शान्त हो गेल। सब अपना में मशगूल हो गेल। कुछ देर बाद हमरा आगू में एक औरत स्वर गरजल। “मर्रर्र दुर्र हो.... तोरा माय-बहिन नञ् हो कि दुर्र ने जाय छुछुन्नर....ऐसैंइ करऽ हइ अदमी। छउँड़ा पूता....”
    कुछ दूर पर एगो टॉर्च वला टॉर्च बार देलक। ईंजोर देखते बगल वला लफुआ किनारा कर लेलक। हम कि देखऽ ही हमरा आगू में दूगो जवान लड़की हे। एक के उमर कोय पचीस साल आउ दोसरकी के उमर उहे चौदह सोलह के जे हमरा बगल में। गरजै वाली सोड़सी हमरा तरफ देख के बोलल दुर्र ने जांय! भंगलाहा बुढ़बा! हमरा उमर के तोरा पोती होतौ। से बूढ़ा में बूढ़ भेस लगलौ।
   हमरा कुरोध लगल, कहलूं- “पोती काहे परपोती हे, सेकरा से....हम हलियों पगली कहौं का। चोर सहे ईंजोर। काम करइ वला सयान बेटा एजइ खड़ा रहते हल।”
  ओकर बड़की बहिनियां समझ गेलइ, कहलकइ- “ आब हमरा आगू। छोटकी बड़की के आगू चल गेलइ। इ बूढ़ा बेचारा के कि कहऽ हीं?”
  तभी लफुआ ताली पीट के हंसऽ लगल। एगो कहलक- “बाबा बुढ़ापा में मन डोल जाय हो चिजौर देख के.....”
 हम सबके मुंह लगाना ठीक नञ् समझलों से चुप्पी लगा गेलों। सब ताली पीट के हंसों लगल।
 दोसर शेर पढ़ल- “कौन कहता है कि बूढ़े इश्क नहीं करते। बूढ़े इश्क करते हैं, लोग शक नहीं करते।”
 से दिन से जब गया लैन के गाड़ी चढ़ऽ ही भगवान भगवान करैत जाही।
 भगवान निक्के-सुक्के पहुंचइहा, इज्जत बचइहा।
                    ३.इनसान के भेस में
   क तालाब में मछला-मछली(मागु-मरद) बेखौफ सांझ के समय विचरण कर रहल हल। अदमी के आहट पा को मछली कहलकइ मछला से- “अदमी आ गेलौ। चल खूब नीचे जल में डूबजो, जहां अदमी नञ् देख सके, नञ् जान सके।” मछला एक बेरी उपर उछल के देखलक। देखे हे, दाढ़ी बढ़इले, गेरूआ वस्त्र पिन्हने, गला में, हाथ में रूद्राक्ष के माला पिन्हने, चन्दन कइले, साधू बाबा। उ निचित हो गेल आबइ वला खतरा से। मछली से कहलक- “डरइ के कोय बात नञ्। ई अदमी में उत्तम अदमी साधू बाबा हथ। ई मांस-मछली नञ् खा हथ। अऽ जब खइबे नञ् करऽ हथिन तब जीव हतिया काहे ले करथिन?”
 मछली कहलक- “हमरा बिसबास नञ् होवऽ हौ। हिकइ तो आखिर अदमिये ने अदमी के कोय बिसबास नञ्।”
 मछला कहलक- “नञ् नञ् ऐसन समझीं, अदमी भी अच्छा-बुरा सब तरह के होवऽ हइ। इ साधु बाबा उपकारी जीव होबऽ हथिन। धरती पर भगवान के अवतार मानो। इनका पर जे बिसबास नञ् करत से घोर नरक में पड़त।”
“नञ् जइबो तोर साधु बाबा हिखुन तोहीं सट के देखें”- मछली बोलल।
 मछला हंस के कहलक- “देखहीं हम देखा दे हियौ।” उ साधु बाबा के चारो तरफ सट के नांचो लगल, किलोल करो लगल।
 साधु बाबा के पांच किलो के चमचमौआ रोहू मछली देख के मन चपचपा गेल। लोभ हो गेल। मुंह में पानी आ गेल। चाहलका पकड़ ली मुदा मछली हाथ से छटक गेल।
 मछली कहलक- “देखहीं जान बच गेलौ अभी पकड़ा जइथीं हल। चल हट जो।”
 मछला कहलक- “पगली उ पियार से दोनो हाथ से पोछ के दुलार कैलखिन। तोरा कि बुझो आवऽ हौ। बाम बुद्धि औरत।”
 मछली कहलकइ- “खूब बुझैत रहें तों हीं।”
 मछला कहलक – “देखहीं अबरी असथिर से सट के देखा देहियौ।” मछला करीब जाके साधु बाबा के कभी जांघ में, कभी पीठ में, कभी पेट में सट के किलोल करो लगल, दुलार छितरावो लगल।
 साधु बाबा दोनो हाथ से ओकर गलफरा में अंगुरी घुसा के जोर से कड़र हाथ से पकड़लका। उ छटपटाय लगल, मुदा साधु बाबा के पकड़ से नञ् छूट सकल। मछला के लेके उपर आ गेला।
 मछली कानो लगल बिना बिना के....। हम पहिलैं कहलियौ अदमी के कोय बिसबास नञ्। मछला बोलल साधु बाबा से- “ई भेस उतार दा साधु बाबा, जे संसार तोर असली रूप देख सके। ई भेस में काम नञ् करो, नञ् तब दुनिया के बिसबास उठ जायत साधु बाबा से।”
- लोदिया, लखीसराय
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
लेख-निबन्घ 
               मगही गीतन में पावस आउ धनरोपा
डॉ. शालिग्राम मिश्र ‘निराला’
        पावस आउ धनरोपा के महीना धरती आउ नायिका के सिंगार के रितु हे। सिंगार के संयोग आउ वियोग दुन्नू पक्ष मर्मस्पर्शी होवऽ हे। संयोग में जहां हंसी-खुशी पसर जाहे वियोग में वहीं आशा-निराशा प्रेम-निखार के ह्रदय बेधक पीड़ा अनुभव होवऽ हे। ’मेघदूत’ में महाकवि कालीदास के वियोग वर्णन आउ तुलसी कृत ‘रामायण’ में श्रीराम सीता के वियोग उभय पक्ष से मुखर होवऽ लगऽ हे आउ जेकर परिणति समुद्र बंधन, प्रेम तत्व में बाधक घटक के सर्वनाश हो जाहे। कवि जायसी के ‘पद्मावत’ में भी विरहनी नागमति के विरह वेदना भी असह्य हो जाहे। ओकर उद्दीपन भी पावसे रितु करऽ हे। असल में पावस आउ धनरोपा के रितु आसा-निरासा, प्रेम विछोह के हिरदा छुयेवला रूप अभिव्यंजित होवऽ हे। पावस आउ धन रोपा के रितु कर्म प्रेरक रितु हे।
     पावस मौसम के आते ही गर्मी के मारे कंठ पर आल परान फिर से जीवन धारण करऽ लगऽ हे, जखनी कृषक बाल-श्रमिका के प्रार्थना से खुश होके इन्द्र देवता नील आकाश में श्यामल बादर सब के झुंड एक-दोसरा पर घोड़की चढ़ाके, उमड़ा-घुमड़ा के भेजऽ हथ, तावा अइसन तलफल धरती पर बूंदाबांदी से मूसलाधार बरसा करावऽ हथ, तो धरती से सोंध-सोंध गंध निकल के सगरो पसर जाहे। गरमी से जरल झौंसल घांस-फूस लुह-लुह हरिया जाहे अउ छोटमुट गबड़ा-गुबड़ी में पानी जमा होते-होते नदी नाला अहरा-पोखरा सब जलथल हो जाहे, तब खास करके किसान समुदाय खुशी से नाचऽ लगऽ हे, काहे कि धनरोपा तो अभियो बरखे पर निर्भर हे, अउ खेती-किसानी के शुरूआत बिन पानी के कैसे होवत? पानी परला से सब किसान के हर-बैल फार-कुदार, चपड़ा-खन्ती सब जगबैत खेत के सिंगार करऽ लगऽ हे। कुम्हार के आवा निअन लहकैत धरती बरसात से ठंडा होके गुलगुल गलैचा हो जाहे। सगरो झिंगुर के झन-झून अउ मेढक के टर्र-टर्र से गांव-घर गूंजे लगऽ हे, वन-बाग में मोर-मोरनी नाचे लगऽ हे, पपीहरा पीकहां-पीकहां आउ सगरो बगुला सारस के उड़ान आउ छोटगर-छोटगर चिरञ् चुरगुन के झुंड फुदक-फुदक के नांचऽ लगऽ हे। चौहट, बरहमासा, छोमासा, चौमासा, झूमर, कजरी के तान से मन परान तिरपित होवऽ लगऽ हे। मड़ुआ, मकई, मोरी-पाती, बरसाती सब्जी सब बुतरू से जुआन आउ जुआन से गरभधान करके फूल-फर से भेंकुर होवऽ लगऽ हे। तिल, सनय, राहड़, जिनोरा से टिल्हो टाकर सोहनगर हो जाहे।
      जे धूर-जानवर धूरी में मुंह रगड़ऽ हल, सेकरा भर-भर मुंह घास ममोसर होवऽ लगऽ हे, आउ कुच्छे घंटा में पेट भरके डंप हो जाहे। कहे के माने कि सगरो खुशहाली पसरऽ लगऽ हे। तब कविअन के कलम से भी चौहट, बारहमासा, झूमर, कजरी काहे नञ् लिखात?
 मगही कविअन में मगही कोकिल जयराम सिंह जी के नाम सबसे पहिले लेवे जुकुर हे। इनखर पावस आउ धनरोपा गीतन के कुछ बानगी देखल जाय-
बदरिया गावऽ हे कजरिया झुम गगन के अंगना।
रात के समैया में, गगन के तलैया में,
खिलल फूल तरेंगन के, रंग बिरंगना॥
बदरिया गावऽ हे कजरिया झुम गगन के अंगना।
इंजोरिया खेले आंख मिचौनियां राम, बदरिया संग ना॥
(चिजोर कविता संग्रह से)
      मोरी जब जुआन हो गेल हे, किसान धरती के सिंगार कर रहल हे, आउ जोड़म-जोड़ रोपा के तैयारी हे, एक राति देखल जाय-
रोहनियां मोरी भेल जुआन,
खेत के करे सिंगार किसान,
धान के रोपा अब लगतै॥
पहिले करे किसान फारनी, फिर पूरबे फिर कादो रे,
चार चास करके चौकी दे, अइलै सावन भादो रे।
कि पूरबा फूट-फूट बहे बेयार,
आर तर छप-छप चले कुदार।
(चिजोर कविता संग्रह से)
      मगधेश कहाय वला नामी गिरामी मगही कवि श्री मिथिलेश के भला के नै जाने। इनखर ‘रधिया’ खण्डकाव्य मगही के धरोहर हे। एकरे में से कुछ पंक्ति बानगी के रूप में देखल जाय, जे पावस आउ धनरोपनी के दृश्य प्रस्तुत करऽ हेः-
काहे तूं चलावऽ हऽ कुदरिया अंखिया मून के।
परऽ हे छिटकवा, चुनरिया घूमाचून के,
गोहटा के करिदेला रहिया तूं कीच के,
पिछलऽ हे गोड़ हम्मर अहरी ऊंच-नीच के।
       मगही कविअन में दीनबन्धु जी के नाम बड़ी आदर के साथ लेल जाहे। कवि दीनबन्धु बादर के सखा भाव से धरती पर आवे ले निहोरा कर रहला हे, एक गीत के कुछ पंक्ति देखल जायः-
आरे बादर जेठ बित्तल अब, छटपट प्राण सब्भे के होलय।
मनपंछी गरमी कुम्हलाएल, कंठ सुखल मुंह कैसे बोलय॥
   जब बादर उमड़-घुमड़ के बरसेऽ लगे हे कवि दीनबन्धु तव ई गीत गावऽ हथ-
उमड़-घुमड़ गड़गड़ गड़, गगन गीत गा रहलय।
बिरहिन धरती के आज, जागल हे भाग रे॥
एगो बानगी देखल जाय-
आई गेलइ सावन के, बहार हे रोपनियाँ,
आबऽ तनी घोघवा उघार हे।
झटपट मोरिया, कबार हो किसनमा,
सउँसे बघरिया पसार हो॥
(मगही मँहक कविता संग्रह से)
दूये चास से फारनी कयलूँ, दूये चास पर कादो,
ईसौंरा मैना के बल से, ठेकऽ देवय न मादो,
सावने पूनिमाँ तक, करम बनोसरिया,
धरती के सोलहों सिंगार हे रोपनियाँ।
दोसर गीत-
चमचम चमके टिकुलिया,जइसे बिजुरो।
धाना रोपइ सांवर गोरिया, निहुरी-निहुरी॥
हरहर बरसइ, बदरा से पनियां हो,
तलफी तलफी उठे बंधल जुअनियाँ हो।
     दीनबन्धु जी के भी सलाह हे कि जापानी विधि से धान रोपऽ जेकरा में धान के मोरी कमे रहे आउ पंक्तिबद्ध रहे यानी धारी में बान रहेः-
कमे कमे धान देहो, धारी में बान हो किसान तनी झूमझम के।
तोरे मेहनत से नयका, विहान हो किसान तनी झूमझूम के॥
    मगही साहित में श्री अनिल विभाकर दमदार कवि हथ। इनखर एगो पावस गीत देखल जायः-
अइलइ बदरा पहुनमा, मन बौराहा भेसइ ना,
घन गरजे घन बरसे अइसन, गगन में बिजुरी चमके॥
    श्री सुभाष चन्द्र किंकर मगही के जानल मानल कवि हथ। इनखर एगो बरसात रचना देखल जायः-
देखऽ सखि, आयेल धरा पर, सरस बरसात।
चल रहल सन-सन करित, सीतल पवन दिन-रात॥
(सोनभद्दर के तीर कविता संग्रह से)
     श्री सरयू प्रसाद मगही के जानल मानल कवि हथ। इनखर कविता संग्रह गाँव गवई के लोकगीत से एगो बानगी देखल जायः- “खेती के विधान सिरनामा से,
अदरा में धान रोपे, चतुर किसान।
पूर्वा में धान रोपे, मुरूख नादान।
आधा हो खखरी, आधा हो धान॥
     मगही कविअन में श्री नरेन्द्र सिंह के नाम आउ काम बड़ी बड़ाय करे जुकुर हे। इनखर चाचा श्री केसरी जी मगध के नटराज कहला हला। उनखर छाप इनखा पर खूबे परलहे, जे हरेक कवि सम्मेलन में देखल जा सकऽ हे। इनखर कविता के बोल कविता संग्रह से “सावनी झुलुआ” के मन मोहक पंक्ति देखल जायः-
बबुरे के खंभा, खजुरे के ठेंघा,
ननरी मारऽ हे, पेंघा पर पेंघा,
भउजी सेयान, ननदी कचउमरी।
इहे गुनी लगि गेल, मइयां के घुमरी॥
दाय माय टोला-टाटी देखि नितरा हे,
सबनी फुहारा से, जवानी चितरा हे।
हुनके किरिया नञ्, झूलम झुलुआ।
खाय ला मन करे, सोंठ के हलुआ॥
     महाकवि योगेश्वर प्रसाद सिंह ‘योगेश’ मगही मड़वा के चार खंभा में से एक हला। ई आसू कवि भी हला। इनखर मगही के प्रथम महाकाव्य ‘गौतम’ के छुट्टा अध्याय के कुछ पंक्ति देखल जायः-
जइसे करिया बादर में,
चमकल बिजली के पांती।
जइसे मरूभूमि में नाली,
दीख पड़ल बरसाती॥
     श्री योगेश जी के प्रबन्ध काव्य ‘मगही रामायण’ भी बड़ी सराहनीय आउ पढ़े जुकुर हे। एकर खंड ४ मिताई के कुछ पंक्ति देखे जुकुर हेः-
बरसा रितु घटा बिजुली,गरजन के साथ।
रस्ता भी रून्हाल पथिक के, भींजे लगलइ माथ॥
     ई तरह से मगही के शायदे कोय कवि होथिन जे पावस आउ धनरोपा के बरनन अप्पन कविता में नञ् कयलन होत।
                                - पूर्व प्र. प्राचार्य एस.एन. सिन्हा महाविद्यालय
                                  जवाहर पार्क, वारिसलीगंज(नवादा)।

---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता-कियारी
जयराम सिंह के किसानी आउ बरसा गीत
१. एक पानी बिनु मरल धान
एक पानी बिनु मरल धान, सुन साजन गे
एक पानी बिनु मरल धान।।
असरेसा, मध्घा, पुरवा हथिया बरसल,
नञ् बरसल चितरा बैमान।।
एक पानी बिनु मरल धान, सुन साजन गे
नञ् घर में खरिहन नञ् घर में बीहन
कैसे के बचवहूँ जान।।
एक पानी बिनु मरल धान, सुन साजन गे
अहरा-पोखरा, पैन टूटल-फूटल हल
सरकार देलकै नञ् धेयान।।
एक पानी बिनु मरल धान, सुन साजन गे
बरसै ले जोग जाप कैलूँ हरिगान गे,
नञ् पिघलल इन्दर भगवान।।
एक पानी बिनु मरल धान, सुन साजन गे

बड़े-बड़े सेठ साहूकार सब मगन हकै
मरलूँ जे मजदूर किसान।।
एक पानी बिनु मरल धान, सुन साजन गे
हरे-हरे धनवाँ में छिप्पल अरमान हलै
सुखी गेलै सउसे अरमान।।
एक पानी बिनु मरल धान, सुन साजन गे
जल के निकालल हे जैसे मछलिया
तड़पऽ हे जब बिनु परान।।
एक पानी मरल धान, सुन साजन गे
एक पानी बिनु मरल धान।।
२. धान रोपऽ हे रोपनियां
धान रोपऽ हे रोपनियां निहुरि-निहुरि।
बायें हाथ मोरिया दहीने हाथ पनियाँ में बोरीबोरी॥
आसिन महीनवाँ में बरसऽ हे बदरा, उमड़ी-धुमड़ी,
साथ बहऽ हे पवनियाँ, झकोरी-झकोरी,
धान रोपऽ हे रोपनियाँ निहुरि-निहुरि॥
झरी लगलइ बदरिया आउ ठनका जे ठनकै ठहरि-ठहरि,
जीया डरपऽ धनियाँ सिहरि-सिहरि।
धान रोपऽ हे रोपनियाँ निहुरि-निहुरि॥
चहुँ ओर झलकऽ हे झल-मल पनियाँ, अहरी-गहरी।
उड़ै केतु बग-पतिया, फहरी-फहरी॥
धान रोपऽ हे रोपनियाँ निहुरि-निहुरि॥
एतना कठिन काम करऽलो पै रहऽ हके, तन उधरी,
रहै उधरे बदनिया ठिठुरी-ठिठुरी॥
धान रोपऽ हे रोपनियाँ निहुरि-निहुरि॥

३. अंगिया तीतल रे
एते बरसल मेघ कि धरती सीतल रे।
एते ढरकल लोर कि अंगिया तीतल रे।।
हरदम सोंच फिकिर के बादर,
अंखिया के आकास में,
मन के पपीहा हरदम बोले,
पीउ पीउ मिलन पिआस में,
बुझल नञ् हमर पियास जलद के भरल गगरिया रीतल रे।
एते........................................................धरती सीतल रे।।
बदरा गरजल कजरा लरजल,
भरल आँख के कोर रे,
बिजली चमकल या साँपिन,
डँसलक जे भेल इंजोर रे,
हम डँसाल सुधि के साँपिन के विष अंटकल दिन बीतल रे।
एते........................................................ धरती सीतल रे।।
रिम-झिम बरसे बूँद सुहागिन,
सेज बिछा बरसात हे,
ऊ औरत बड़ भागिन जेकर
बरसा में वर साथ हे,
हम बिरहिन के अँखिया बरसे में बदरा से जीतल रे।
एते................................................ धरती सीतल रे।।
एते ढरकल लोर कि अंगिया तीतल रे।।
                      - चिजोर, काव्य सेंगरन से।

---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता-कियारी
दीनबंधु के किसानी आउ बरसा गीत
१.
नञ् हमरा चाही सोना-चाँदी, नञ् चाही हीरा मोतिआ।
हमरा के चाही तो चाही भरल पूरल खेतिआ॥
इहे खेतिया पर दुनिया आउ जहान हे,
राजा रहे चाहे रंक, सभे के परान हे,
एकरे बिन अन्हार, इहे जोतिआ से जोतिआ॥
हमरा के चाही तो चाही भरल पूरल खेतिआ॥
जहिया जउन साल, इन्नर बाबा नञ् बरसे,
देख के सुखल धरती, हमर मनुआँ तरसे,
गहना गुड़िआ पहिले बिकल, अब थारी लोटिआ।।
हमरा के चाही तो चाही भरल पूरल खेतिआ॥
जाँता के भेल दाँत जाम, हड़िआ चुल्हा ठंढा,
बाल बुतरून ठुनकल चले, खेले नञ् गुल्ली डंटा,
कइसे विआहल जइती जुआन भेली बेटिआ॥
हमरा के चाही तो चाही भरल पूरल खेतिआ॥
सुन जी मिनिस्टर बाबू हमरो पर धेयान दा,
मांग हमर पानी खाद्य, एनहूँ तनी कान दा,
हमरा नञ् चाही सूट-बूट, चाही अंगोछी धोतिआ॥
हमरा के चाही तो चाही भरल पूरल खेतिआ॥

२.
घेर के बदरिया मोर, चुनरी भिंजउलक हो।
अकेली रहिआ ना, हमरा छेड़ हई भँउरवा॥
गांव के पछिम पिआ, हर रे चलावे,
ठीक दोपहरिया रोज, अकेले बोलावे,
अपनो बखरवा से, हमरा खिलउलक हो।
ओटे अरिया ना, मोर पकड़े अँचरवा॥
भोजना जेमाई बलमा, बनलूँ रोपनिआँ,
भित्तर अगिनी लहके, बाहर परे पनिआँ,
बरवा के फेंड़वा तर, घोंघवा ओढ़उलक हो।
लड़ाई अँखिआँ ना, देहई फूल के गजरवा॥
देउता मनावे सासू, करे सुरुज अरधनमा,
पिअवा परेम चाहे, मइया एके गो ललनमा,
अचटे में दईआ एक दिन, हमरा छकउलक हो।
धर के बहिआँ ना, मोर चूमे रे निनरवा॥
-तीत मीठ गजल गीत से.
कविता-कियारी
आवऽ बरसा रानी
गोपाल लाल सिजुआर
रिमझिम बुनिया बरसऽ हे, कभी किरनियाँ चमकऽ हे,
चपला रानी चमक-चमक के बदरा बीचे दमकऽ हे।
सावन राजा आयल सज के अप्पन फौज सिपाही,
पसरल सगरो आसमान में करिया-करिया सियाही।
घनन-घनन घन घंटा घहरई, हथिया जइसन बादर,
पूड़ी-पूआ-खीर खियावऽ, दीहऽ ओकरा आदर।
ओकरे किरिपा पर निरभर हो, खेती आउ किसानी,
हाथ जोड़ के बुला रहल ही, आवऽ बरसा रानी।
-रामसागर, गया
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता-कियारी
बरसात गीत
डॉ. नरेन्द्र देव प्रबुद्ध
धरती हो चलल सरस, बरसा रितु आयल।
रसवंती दुल्हन सन सज–धज अगरायल॥
बादर के झुंड कभी इधर-उधर आवे,
तड़प रहल विरहिन-मन, ओकरा ललचावे,
रिमझिम-रिमझिम बरसे सावन के रतिया,
रह-रह के सिहर उठे बदरा के पंतिया।
गरमी से तड़प रहल मनमा बउरायल॥
धरती हो चलल सरस………..
हरियर कुच-कुच सुन्नर लगइत हे खेतवा,
बनमा में रोज-रोज नाच उठे मोरवा,
बादर के बूँद कभी इधर-उधर बरसे,
सागर में पड़ल सीप मन-ही-मन तरसे।
लुक-छिप के बदरा में चंदा इतरायल॥
धरती हो चलल सरस……
तड़-तड़ करके चमचम बिजुरी जब चमके,
झुलसल जन-जीवन भी फिर से अब बिहंसे।
देख ई सब धरती पर, पेड़-पौधा, बगियन पर
खा करके तरस आज बदरा घहरायल॥
धरती हो चलल सरस…….
नाला-नद भर करके, खेतवन के तर करके,
दादुर के टर-टर से, झरना के झर-झर से-
झींगुर के गितिया सुन रतिया सरमायल॥
धरती हो चलल सरस……..
खेतिहर भी रोपे ला मोरी अब बगरे,
जोतलक-जोतवौलक ऊ खेतवन के सगरे।
रोपनी के गितिया सुन धनमा लहरायल॥
धरती हो चलल सरस……..
-जनकपुर, गया
कविता-कियारी
रिमझिम बरसइ
रामचन्द्र शर्मा किशोर
रिमझिम बरसइ कारी बदरिया, सावन के बरसात के,
कटइ न काटे भरल अंघरिया, पियवा बिन अधिरात के।
उमड़-घुमड़ घहराए बदरा,
फिर आके भिंजाए चदरा,
भिंजल सेजिया, निन्दिया न आवइ, रोममा सिहरइ गात के।
कटइ न काटे भरल अंघरिया, पियवा बिन अधिरात के।
बिजुरी कड़कइ, जियरा धड़कइ,
रहि-रहि, सखि री अंखिया फड़कइ,
दादुर बोलइ, मोरवा डेराये, लोरवा टपकइ रात के।
कटइ न काटे भरल अंघरिया, पियवा बिन अधिरात के।
कागा बोलइ रोज अंगनमां,
तइयो न आवइ मोर सजनमां,
सउंसे महिनमा तकते बीतल, सावन भर बरसात के।
कटइ न काटे भरल अंधरिया, पियवा बिन अधिरात के।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता-कियारी
झूमर
केसरीनंदन
आओ धान रोपे सजनी हे कादो में अंगुरिया के बोर।
आओ धान रोपे सजनी हे कादो में अंगुरिया के बोर।।
सज-सज के गाड़ि देहीं धनमा के सोर,
थोड़े दिन में हो जैतै हरियर कचोर।
तीसी तेल औंसो सजनी गे सड़लै अंगुरिया के पोर।
आओ धान रोपे सजनी हे कादो में अंगुरिया के बोर॥
श्याम घटा देखि-देखि वन नाचै मोर,
बरसे कारी बदरिया मन नाचै मोर।
पनसोखा उगल सजनी हे देखो-देखो पूरब के ओर।
आओ धान रोपे सजनी हे कादो में अंगुरिया के बोर॥
उमड़ल गंगा गंडक कोसी के कोर,
उत्तर बिहार उठल जल के हिलोर।
भागो गांव छोड़ो भइया हो चलो-चलो नववा के ओर।
आओ धान रोपे सजनी हे कादो में अंगुरिया के बोर॥
दक्खिन बिहार में अकाल घनघोर,
एक पानी बिना धान मरलय हे मोर।
अपर सकरी बांधो भइया हो पानी भेजो गममा के ओर।
आओ धान रोपे सजनी हे कादो में अंगुरिया के बोर॥
अपर सकरी योजना के सुनलूं बड़ शोर,
गिरिडीह में देख अयलूं खुट्टापसनौर।
जहाँ डैम बंधत भइया हो जल के उठतै हिलोर।
आओ धान रोपे सजनी हे कादो में अंगुरिया के बोर॥
उत्तर में बाढ़-नियंत्रण दक्खिन पटवन के दौर,
एकर सिवा हकै नञ् रस्ता कोय और,
तबे अकाल रूकत भइया हो नाचे लगत मनमा के मोर।
आओ धान रोपे सजनी हे कादो में अंगुरिया के बोर॥
- चरौल, कौआकोल, नवादा
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता-कियारी
बरसात न आयेल
सुभाष चन्द्र किंकर
दिन सउँसे बितल असाढ़ के,
सरस मास सावन नियरायेल।
दरस दिखा अदरो चल गेलक,
सखि, तइयो बरसात न आयेल॥
सुखल हे सब ताल तलइया,
सूखल हे नदिया के धारा।
दिन भर लूक अगिन बरसावे,
रात-रात भर चमके जारा॥
एक घोंट ठंढा पानी ला
तड़प रहल मिरगा अकुलायेल।
दरस दिखा अदरो चल गेलक,
सखि, तइयो बरसात न आयेल॥
टूटल सपना किसान के,
देख खेत के फटल काया।
सूख रहल सब उख बांध में,
हो गेलन भगवान पराया॥
भूख मिटत कइसे गइयन के,
घास-पात सब हे मुरझायेल।
दरस दिखा अदरो चल गेल
सखि,तइयो बरसात न आयेल।
हे उझंख जंगल अबहीं ले,
पर कइसे बनमोर पसारे।
जल तनिको न पड़ल धरती पर,
अब झिंगुर कइसे झनकारे॥
बंद भेल बोली पपीहा के,
मन चकवा के हे मधु आयेल।
दरस दिखा अदरो चल गेलक,
सखि, तइयो बरसात न आयेल॥
कठिन भेल दरसन बादर के,
मिटे हिया के ताप कहाँ से?
के बिरही के प्रेम-सनेसा
ले जाएत बिरहिन के पासे?
कहां गेल सारस के पाती,
दल बगुला के कहां भुलायेल?
दरस दिखा के अदरो चल गेलक,
सखि तइयो बरसात न आयेल॥
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता-कियारी
शिव प्रसाद लोहानी के मगही दोहा
बरसा रितु नाम के, कहीं न मेघ फुहार,
भर असाढ़ बरसा न हे, सावन भी हे पार।
ठनठन सुखल धरा हे, खेतन पड़ल दरार,
जेठ नियन चल रहल हे, गरमे गरम बयार।
अन्न खाइला मिले नइ, कइसे दिखवत रोग,
ले किस्मत लिखल हे, ओही होवत भोग।
ई उ का बरसा देतन, आशा के बरसात,
तकते पर थक जात सब, दिवस मास दिन रात।
घट्ठा-मट्ठा घास के, नई कुछ भी हे आस,
अदमी पशु छिछियात सब, फसल भूख के पास।
कादो पानी कुछ न, हो धूरी के ढेर,
ई दुर्दिन तो हको बस, जटिल करम के फेर।
-नूरसराय, नालन्दा
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता-कियारी
हम ऊ गाम के ही मजदूर किसान
शिवदानी भारती
हम ऊ गाम के ही मजदूर किसान रे।
जहाँ सोभऽ हे खेत खरिहान रे॥
सुख सरग से भी मनहर जहाँ,
बाग नंदन वन सन सोहे हरिअर जहाँ।
जहाँ हर भोर लावई विहान रे।
जहाँ सोभऽ हे खेत खरिहान रे॥
जहाँ भऊँरा गूंजई रोज कोयल कुहकई,
करई पपिहा पी पी मोर नाचई थिरकई।
जहाँ झिंगुर मिटावई थकान रे।
जहाँ सोभऽ हे खेत खरिहान रे॥
जहाँ भादो के कादो में पुरकस कहे प्रीत,
जहाँ धुरी आउ माटी नित गावे हे गीत।
करई दादुर धरती के गुनगान रे।
जहाँ सोभऽ हे खेत खरिहान रे॥
जहाँ बरखा के हर बुन्द अमरित लगे,
जहाँ हावा के हर राग से सुर सजे।
जहाँ मेहनत पसीना के खान रे।
जहाँ सोभऽ हे खेत खरिहान रे॥
जहाँ अखरी आउ पिपरी नित बाँटे हे प्यार,
जहाँ लेरू आउ पठरू लुटावे दुलार।
बाघ आउ बकरी के बरोबर परान रे।
जहाँ सोभऽ हे खेत खरिहान रे॥
जहाँ नारी सोहागिन देवी के अवतार,
जहाँ छलकऽ हे मइया के ममता के धार,
भइया बहिनी के नाता महान रे।
जहाँ सोभऽ हे खेत खलिहान रे।।
खिलइ होली दिवाली में नेहिया के फूल,
बसल ईद बकरीद में संस्कृति के मूल।
मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारा प्रमान रे।
जहाँ सोभऽ हे खेत खरिहान रे॥
कहंई गूंज हे गीत कहंई बिरहा बहिआर,
कहंई झरनी झूमर सोहर कजरी मल्हार।
कहंई संदेस गीता कुरान के।
जहाँ सोभऽ हे खेत खरिहान रे॥
- पचोहिया, नवादा
मगह के आयोजन
                 पत्रकार संघ के सेमिनार
                  उदय कुमार भारती
    नवादा जिला पत्रकार संगठन के तत्वावधान में 12 अगस्त 2012 दिन रविवार के ज्ञान भारती मॉडल रेसिडेन्सियल कॉम्पलेक्स धनवां के सभागार में बड़गर सेमिनार के आयोजन भेल। सेमिनार के विषय हल वर्तमान संदर्भ में पत्रकार, प्रशासन और नागरिक के भूमिका। काजकरम के अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार आउ साहितकार रामरतन सिंह रत्नाकर जी आउ मंच संचालन पत्रकार अरविन्द कुमार रवि कैलका। काजकरम के मुख्य अतिथि नवादा जिलाधिकारी दिवेश सेहरा, विशिष्ट अतिथि नवादा आरक्षी अधीक्षक ललन मोहन प्रसाद हला। सम्मानित अतिथि रत्नाकर जी, टीएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सुनील सुमन आउ ज्ञान भारती के प्राचार्य उमाकांत प्रसाद जी हला। काजकरम समय से खचा-खच भरल सभागार में जिला के पत्रकार, सम्मानित नागरिक, बुद्धिजीवी आउ छात्र-छात्रा के मौजूदगी से शुरू भेल।
  काजकरम लमहर हल ईले ज्ञान भारती के बच्चियन के सोवागत गान से सेमिनार के शुरूआत कर देवल गेल। सुप्रिया, सोनाली, शिवांगी, नेहा, हन्नी आउ सुरभि के सोवागत गीत के बाद छात्र अभिषेक कुमार हिन्दी में आउ गौतम कुमार अंग्रेजी में विषय पर संभाषण देलक। ओकर बाद वक्ता के संबोधन शुरू होल।
संबोधन में के की कहलका
  पत्रकार ओंकार शर्मा कहलका कि पत्रकार के काज पर सैंकड़ों, हजारों और लोगन के नजर रहऽ हइ। पत्रकार के आरोप प्रत्यारोप के खबर बना के केकरो गिरावे आउ केकरो उठावे से परहेज करे के चाही। पत्रकार के अप्पन दायित्व के निभावइत पत्रकारिता के बुलन्दी तक पहुंचावे के चाही।
    शिक्षाविद् मिथिलेश कुमार सिन्हा 15 अगस्त के पहिले 12 अगस्त के ऐसन विषय पर सेमिनार रखे लेल संगठन के साधुवाद देलका आउ कहलका कि 205 वरिस के पत्रकारिता के इतिहास के कम शब्द में कहना आसान नञ् हे। पत्रकार राष्ट्र सेवा में जुटल सालों साल से   लोकतंत्र के रक्षा कर रहला हऽ। तीनों के अप्पन-अप्पन करतप करे के जरूरत हइ। अधिकारी, जनप्रतिनिधि, पत्रकार आउ नागरिक सब्भे जे-जे सेवा में हथिन, उहे सेवा के काम निष्ठा से अगर करथिन तउ राष्ट्र के कल्याण होतै। कौनो हालत में पत्रकारिता अप्पन मापदण्ड नञ् छोड़ै।
  समाजसेवी आरपी साहु कहलका कि आझो हम खुल के आजाद नञ् ही। अभिव्यक्ति बचल हइ लेकिन पत्रकारिता बंधल हइ। एकरा बाजारवाद से अलग रखे के चाही। देश में सगरो क्षेत्रवाद के राजनीति हो रहल हऽ। क्षेत्रवाद भारत के कमजोर कर रहल हऽ। एकरा से नफरत बढ़े लगल हऽ। अखनी क्षेत्रवाद से बाहर निकल के राष्ट्र के निर्माण लेल काज करे के जरूरत हइ।
  वरिष्ठ पत्रकार अशोक प्रियदर्शी कहलका कि हम पत्रकार कहावे पर गौरवान्वित होवऽ ही, ई ठीक नञ् हे। पत्रकार के अप्पन जवाबदेही पर धेयान देवे के चाही। हम्मर काम जनता तक पारदर्शी खबर पहुंचावे के हे। आजादी के पहिले पत्रकारिता के मिशन हल देश के आजादी दिलावे के। ओसहीं आझ के संदर्भ में आम आदमी के ज्वलंत मुद्दा उठावे के करतप पत्रकार के हे। तहिआ पत्रकार अंग्रेजवन के तोप से नञ् डरऽ हलन। आम आदमी के समस्या के खबर बार-बार छापे से ओकर असर होवऽ हइ आउ प्रशासन आउ सरकार ओकर हल निकालऽ हइ।
    अशोक प्रियदर्शी के संबोधन के खतम होते मुख्य अतिथि दिवेश सेहरा काजकरम में पहुंच गेला। उनखा वरिष्ठ पत्रकार यमुना प्रसाद यादव बुके देके सम्मानित कैलका। ओकर बाद दीया जरा के काजकरम के शुरूआत कैल गेल। सोवागत भाषण पत्रकार अशोक सिंह जी कैलका। आगत अतिथि के अभिनंदन करे के बाद ऊ कहलका कि पत्रकारिता समाज के दर्पण हे, जे समाज के छवि के दिखावे हे। समाज के विकृत छवि के गौण करके समाज के दशा-दिशा देवे वला पत्रकारिता के जरूरत हे। ओकर बाद सेमिनार के विषय-प्रवेश हम कैलूं। विषय पर बोले के बाद पत्रकार आउ पत्रकारिता के परिभाषित कैलूं। पत्रकार के भूमिका के काव्य-पंक्ति से अभिव्यक्त कैलूं। कभी कलम तो कभी तलवार है पत्रकार, युगों-युगों से क्रांति का सूत्रधार है पत्रकार जैसन पंक्ति सभे पत्रकार के जोश भर देलक।
  ज्ञान भारती के प्राचार्य उमाकान्त प्रसाद अंग्रेजी में विषय पर संबोधन कइलका। ऊ पत्रकारिता के समाज निर्माण में बेहतर काम करे के संदेश देलका।
   टी.एस. कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सुनील सुमन कहलका कि राष्ट्र आउ समाज के संवारे के काज पहिले हमन्हीं के करे के चाही, धीरे-धीरे पूरा देश सुधर जैतै। पत्रकार आउ प्रशासन के समाज पर अंकुश लगावे के काज निर्भय होके करे के चाही। ऊ इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खबर पर टिप्पणी भी करलका कि आझ ऐसन खबर भी बार-बार फोकस कर के देखावल जा हइ, जेकरा परिवार के साथे बैठ के देखल नञ् जा सकऽ हइ। ओइसन खबर के नमक मिरचाई लगाके परोसे से हम्मर नयका पीढ़ी पर बुरा असर पड़ रहल हऽ।
   दिल्ली शोध एवं प्रबन्धन संस्थान के पुरातत्वविद् डॉ. आनन्द वर्द्धन कहलका कि भारत में प्रेस के भूमिका विखण्डनकारी आउ राजनीति से भरल रहल हऽ। देश के आजादी राष्ट्रवादी पत्रकारिता से मिलल। 70 से 80 के दशक तक स्वदेशी पत्रकारिता के दौर चलल आउ आझ सूचना आउ क्रांति के तीसरका दौर में व्यवसायिक पत्रकारिता के दौर चल रहल हे। आझ भारतीय पत्रकारिता स्त्री विमर्श आउ दलित विमर्श में फंसल हे। आझ देश में राष्ट्रवादी पत्रकारिता के जरूरत हे। मराठा आउ केसरी जैसन पत्र के जरूरत हइ। ऊ फिरोजशाह मेहता, दादा भाई नरौजी, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, बाल गंगाधर तिलक, विवेकानन्द, महात्मा गांधी के पत्रकारिता के मिसाल देलका। ऊ स्वतंत्र पत्रकारिता के जरूरत पर जोर देवैत कहलका कि पत्रकरिता ऐसन हो जो समाज आउ राष्ट्र के सही मूल्यांकन करे आउ सच्चा तस्वीर प्रस्तुत करे के चाही। पत्रकारिता परिवर्तनकारी होवे के चाही। ऊ पत्रकरिता के जरिये अप्पन देश के संस्कृति के बचावे के बात भी कहलका। जऊ हम अपप्न हजारों साल के विरासत आउ संस्कृति के लेके चलम तबे हम्मर राष्ट्र के पहचान बचत। ऊ वेद के पंक्ति से अप्पन वाणी के विराम देलका।    
   एसपी ललन मोहन प्रसाद कहलका कि हम गणित विषय के छात्र रहलूं हऽ। ईले हम जादे नञ् बोलम। हम बस एतना कहऽ ही कि समाज चाहे जे काल खण्ड के रहै। सब्भे काल खण्ड में बेहतर काम करे वला के पहचान आउ सफलता मिलल हऽ। सब्भे वर्ग आउ क्षेत्र के लोगन के ई करतप हे कि ऊ अप्पन-अप्पन क्षेत्र में बेहतर काम करथिन तउ समाज आउ राष्ट्र के विकास होतै। हम अप्पन गलती पर नजर रखीऐ दोसर के गलती पर नञ्। लोगबाग बोलथिन कम आउ काम जादे करथिन। मिनिमम रिक्वायरमेंट में बात आउ काज करथिन।
  जिलाधिकारी दिवेश सेहरा कहलका कि पत्रकार के फैक्ट, इथ्यू आउ एनालाईसिस के आधार बना के खबर बनावे के चाही। खबर अपने आप में एतना परिपूर्ण होवे कि कोय अधिकारी से ओकरा ले वाइट लेवे के जरूरत नञ् पड़ै। पत्रकार के अधिकारी के काज के बारे में लिखे के चाही नञ् कि ओकर महिमा मंडन। आझ प्रशासन नेता के काम करे चाहऽ हथिन, नेता प्रशासन के। प्रशासन चाहऽ हे कि हम फीता काटूं, नेता चाहऽ हथिन कि हम अफसर के फाईल लिखिऐ। सब्भे के अप्पन-अप्पन काम से वास्ता रखे के चाही। तंत्र बदले के दू तरीका हइ। चाहे तऽ तंत्र में आके ओकरा सुधारे के चाही आउ नञ् तऽ तंत्र के बाहर रह के। ऊ सदन में पहुंचल जन से संविधान में लिखल मौलिक अधिकार आउ कर्तव्य के संख्या पूछलका, साथे-साथ ई भी पूछलका कि केतना लोग वोट देवे गेला हल। जउ आधा से ज्यादे हाथ नञ् उठल तउ ऊ कहलका कि चौक-चौराहा आउ चाय के दोकान में तंत्र के विफलता आउ सरकार के काज के चर्चा सब कर हथिन लेकिन वोट देवे नञ् जा हथिन। सरकार बनावे में अप्पन धरम नञ् निभइला, अप्पन शक्ति नञ् दिखइला तउ बाद में ओकर आलोचना के की महात्तम हे। ऊ देश के बुनियादी जरूरत के काम लेल, विकास लेल, समाज के सुधारे लेल धरती पर काज करे के आह्वान कैलका। ऊ कहलका कि आझ देश में कैंडिल-लाईट नेशलिज्म के जरूरत नञ् हे। एगो टोपी पहिन के बैठ जा हथिन आउ ओकरा पीछे समूचा देश कैंडिल लेके घूमे लगऽ हे। एकरा से देश के भला नञ् होत। देश लेल काम करे के जरूरत हइ। ऊ कहलका कि खाली स्वर्णिम भविस के इयाद कर के खुश होवे से हम्मर भविस नञ् सुधरत। वर्तमान के बेहतर बनावे से देश के भविस बनत। आझ हम्मर देश से बाद में आजादी पावे वला कयगो देश हमरा से आगे निकल गेल आउ हम स्वर्णिम भूते के माला जप रहलूं हऽ। ऊ संविधान निर्माता भीमराव अम्बेदकर के इयाद कैलका आउ लोक नायक, बहिष्कृत भारत पत्र के चर्चा कैलका। ऊहां पंहुचल नौनिहाल के अप्पन प्रतिभा के निखारे के नसीहत देलका। सेमिनार आयोजन लेल पत्रकार संगठन के साधुवाद देलका।
  सम्मानित अतिथि रामरतन सिंह रत्नाकर सबसे पहिले ई आयोजन लेल नवादा जिला पत्रकार संगठन के बड़ी पुरजोर शब्द में बधाई देलका। अतिथि आउ पहुंचल जन के बधाई देलका। ऊ आजादी के बाद 1952 से प्रेस के स्वतंत्रता के बात आउ इतिहास के चरचा कैलका। महात्मा गांधी, भीम राव अम्बेदकर, पंडित जवाहर लाल नेहरू, प्रेमचन्द, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, विष्णु पड़ाकर, गणेश शंकर विद्यार्थी के प्रेस आउ पत्रकारिता से जुड़ल बात कहलका। ऊ कहलका कि ई भविष्यवाणी हो गेल हल कि अखबार आगे चलके रंग-बिरंगा होवत लेकिन खाली डिब्बा रहत। आझ अखबार के खबर आउ ग्लैमर देख के माथा झूक जाहे। आझ के अखबार हिन्दी के बनावे हे नञ्, बिगाड़े हे। ऊ कहलका कि पहिले पत्रकार आंचलिक हल अब अखबारे आंचलिक हो गेल। आझ अखबार में ई क्षेत्र के समाचार डीएम आउ एसपी साहेब तो पढ़ ले हथिन कमीश्नर साहेब नञ् पढ़े सकऽ हथिन। ऊ नारद के दुनिया के सबसे पहिलका पत्रकार बतावइत पत्रकार के जीवन के तंगी आउ फजीहत के चरचा कैलका। आंचलिक पत्रकार के पत्रकारिता के नींव आउ मजबूत कड़ी बतैलका। एक बार फैनू ऊ पत्रकार संगठन के आयोजन के सराहना कैलका आउ भविस में बेहतर सृजनात्मक काज के आशा जतैलका । उनखर संबोधन से सब्भे पत्रकार गद्-गद् हो गेलथिन।
काहे खास हल ई काजकरम
 ई काजकरम इले खास हो जाहे कि ई आयोजन के जड़ में नवादा जिला के आंचलिक पत्रकार लोग हला। छो महीना पहिले हिसुआ में तीन प्रखण्ड के आंचलिक पत्रकार मिल जुल के नवादा जिला पत्रकार संघ के गठन कैलका हल। फेन एकर विस्तार जिला के चौदहों प्रखंड में भेल। मासिक बैठक पहिले हिसुआ में तीन बार होवे के बाद राजगीर, ककोलत आउ रजौली में बारी-बारी से बैठक होल। अगस्त माह के बैठक के भी हिसुआ के पत्रकार खुशी से अपने हीं लेलका। ई बैठक के खास बनावे लेल एकरा पहिल सत्र में सेमिनार रखल गेल आउ दोसर सत्र में बैठक। बड़ी ताम-झाम से आयोजन के तैयारी शुरू भेल। काजकरम के अतिथि के चुनाव भी बड़ी मंथन के बाद करल गेल। प्रशासन, बुद्धिजीवी, आंचलिक पत्रकार आउ जिला के पत्रकार के एक जगह जौर करे के प्रयास हल। विचार के आदान-प्रदान से संगठन के दशा-दिशा तय करे आउ ओकरा मजबूती के सार्थक पहल हल। प्रशासन आउ पत्रकार के कड़वाहट के भी कम करे के प्रयास हल। जिला में ऐसन ऐतिहासिक पहल आउ आयोजन के जानकारी नञ् मिलऽ हइ, जेकर आयोजन आंचलिक पत्रकार लोग कैलथिन हे। आयोजन में जिला के सभे प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया के प्रभारी आउ ब्यूरोचीफ के आमंत्रित कैल गेल हल। उनखर विचार सुने आउ उनखा सम्मानित करे के योजना हल, लेकिन नवादा जिला से एक दूगो के छोड़ के कोय काजकरम में नञ् पहुंचला। एकर मलाल आयोजनकर्ता आउ सभे आंचलिक पत्रकार के खूमे भेल।
के के होलथिन सम्मानित
 काजकरम में धन्यवाद ज्ञापन के पहिले अतिथि आउ संगठन के दू-तीन गो अधिकारी के प्रतीकचिह्न आउ अंगवस्त्रम देके सम्मानित कैल गेल। मुख्य अतिथि डीएम दिवेश सेहरा के संगठन अध्यक्ष प्रेम कुमार, एसपी ललन मोहन प्रसाद के कार्यालय सचिव सर्वेश कुमार गौतम, आनन्द वर्द्धन जी के यमुना प्रसाद यादव, सम्मानित अतिथि रामरतन सिंह रत्नाकर के संगठन के कोषाध्यक्ष हम उदय भारती, सुनील सुमन के उपाध्यक्ष तुलसी प्रसाद, उमाकान्त प्रसाद जी के संरक्षक आलोक कुमार प्रतीक चिह्न आउ अंगवस्त्रम देके सम्मानित कैलका।
  एकर अलावे वरिष्ठ पत्रकार अशोक प्रियदर्शी के हम उदय भारती, आरपी साहु के ओंकार शर्मा, बिण्डोवा के संपादक शम्भू विश्वकर्मा के सुनील कुमार, अंचलाधिकारी शैलेश कश्यप के संरक्षक आलोक कुमार, प्रखण्ड विकास पदाधिकारी के सचिव अशोक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार यमुना प्रसाद यादव के सर्वेश कुमार गौतम, अध्यक्ष प्रेम कुमार के रवीन्द्र पाण्डेय, संयोजक राजेश मंझवेकर के हम उदय भारती, संरक्षक आलोक कुमार के अशोक सिंह जी कैलका।
  धन्यवाद ज्ञापन संगठन संयोजक राजेश मंझवेकर जी कैलका। सब्भे अतिथि के कीमती समय देवे लेल धन्यवाद ज्ञापित करे के बाद ऊ कहलका कि आझ बड़ी यादगार पल हइ। ई ताउम्र हमन्हीं पत्रकार के ह्रदय के थाली बनल रहत। हमन्हीं सब्भे के मार्ग दर्शन से पत्रकारिता के धर्म बचावे के काज करम।
पेड़ लगावे के बाद काजकरम के समापन भेल। ई काजकरम जिला के पत्रकारिता जगत में मील के पत्थर के जैसन इयाद करल जात।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
मगह के आयोजन
                मलमास मेला के मगही कवि सम्मेलन
    मलमास मेला के मोका पर 1 सितम्बर 2012 दिन शनिवार के मलमास मेला थाना परिसर में मगही कवि सम्मेलन के आयोजन भेल। आयोजन स्थानीय प्रशासन के सहजोग से मगध संस्कृतिक जनचेतना समिति आउ रोटरी क्लब, राजगीर के तत्वावधान में आयोजन भेल। काजकरम के उद्घाटन अनुमंडल पदाधिकारी रचना पाटिल, अनुमंडल आरक्षी अधीक्षक मुकुल कुमार रंजन, भूमि उपसमाहर्ता संतोष कुमार, मुख्य अतिथि मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा दीया नेस के जौरे कैलका। मगही के वरिष्ठ साहितकार मिथिलेश जी के निर्देशन आउ देखरेख में काजकरम के शुरूआत भेल। एसडीओ रचना पाटील कहलकी कि मलमास मेला में मगही कवि सम्मेलन के आयोजन सौभाग्यपूर्ण हे। ऐसन आयोजन से राजगीर के गौरव बढ़ल हे। अपने सब्भे के सहयोग मिलतै तऊ ई आयोजन आगे भी चलतै। हमरा भी साहित से लगाव हे। आझ बड़ी सौभाग्यपूर्ण दिन हे, जऊ हम बड़ी नगीच से कवि लोगन के सुनवै। अप्पन माय के बोली लेल आमजन के समर्पित होवे के ऊ आह्वान कैलकी। डीएसपी आउ डीसीएल, आर दुन्नु अप्पन संबोधन में कहलका कि मलमास मेला में कुछ हट के नया करे के विचार होल ईले ऐसन आयोजन कैल गेल। श्री मिथिलेश कहलका कि बुद्ध गौतम के पावन धरती पर मलमास मेला में ऐसन आयोजन वन्दनीय हइ, जऊ राजगीर में सगर थियेटर आउ नाचगाना चल रहल हऽ। हम एकरा ले प्रशासन आउ आयोजक के साधुवाद दे ही। मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा कहलका कि मगध, जेकर राजधानी राजगीर हलइ ओकर सभ्यता संस्कृति मगही से जुड़ल हइ। मलमास मेला में मगही से जुड़ल ऐसन आयोजन लेल हम हिंया के प्रशासन के धन्यवाद दे हियै। मगही के अप्पन मुकाम जल्दी मिलतै। एकरा ले सब्भे मिल के जोर लगाहो। जनचेतना समिति के सचिव आउ युवा जदयू जिलाध्यक्ष उपेन्द्र कुमार विभूति जी कहलका कि मलमास मेला में सूबे के सरकार द्वारा कय गो नया अध्यक्ष जोड़ल गेल हऽ। ई आयोजन ओकरे एगो कड़ी हे।
   कृष्ण कुमार भट्टा के सरस्वती वन्दना से श्री मिथिलेश के संचालन में कवि सम्मेलन शुरू होल। ओकर बाद भगवान अलबेला भी सरस्वती वन्दना सुनैलका।
  ओकर बाद कवि के गीत, गजल, हास्य व्यंग्य के फुहार चले लगल। कवि जयप्रकाश के गीत, दीनबन्धु के तनी हमरा घुमा दा बिहार सैंया, परमेश्वरी के आवऽ हमरा अंगना में बात बहुत बतियावे के, परमानन्द के हे पीपल के पेड़ बतावऽ कहिया आवत पिया सबके मन मोहलक। जयराम देवसपुरी के खिचड़ी खा-खा बुतरूअन पहलवान हो रहल, अब तो स्कूल माहतो जी के दलान हो रहल, कवि रंजीत के ई मोबइलवा हमरा ले काल हे जैसन हास्य व्यंग्य सब्भे के खूबे हंसैलक। उदय भारती के व्यंग्य, शफीक जानी नादां आउ डॉ. किरण कुमारी के ग़जल सराहल गेल। जयनन्दन, उमेश प्रसाद सिंह उमेश, उमेश बहादुरपुरी के रचना सब्भे के बेस लगल। उदय शंकर शर्मा के गउंवा के इयाद अब सतावे... सब्भे के दिल में समा गेल। जीवन्त प्रस्तुति से ऊ खूबे वाहवाही लूटलका। राजगीर के राजेन्द्र प्रसाद सिंह, सुधीर उपाध्यक्ष, संयुक्ता कुमारी के कविता सुना के श्रोता के मोहे के प्रयास कैलका। श्री मिथिलेश के दुष्यन्त आउ दिनकर के पंक्ति से कवि के मंच पर बोलावे के अंदाज सम्मेलन में जान भरते रहल। राजगीर किला मैदान में बैठल आउ खड़ा श्रोता के उठे के मन नञ् कर रहल हल। श्रोता आउ सुने के मांग दोहरा रहला हल, लेकिन मंच पर आउ भी सांस्कृतिक काजकरम के आयोजन होवे के हल। ई लेल सम्मेलन के समाप्ति के ओर ले जाल गेल। मगध यूनिवर्सिटी के मगही विभागाध्यक्ष डॉ. भरत सिंह के संबोधन से कवि सम्मेलन के समापन भेल। डॉ. भरत मगही के गौरवशाली इतिहास से बात शुरू कैलका आउ मगही लेल हो रहल सृजन के काज के चरचा कैलका। ऊ कहलका कि मगही हम्मर माय, परिवार, समाज के बोली हइ। एकरा बोले, पढ़े, लिखे में लजाय के नञ् चाही। आझ मगही के विकास के सब्भे द्वार खुल रहल हऽ। मगही के पढ़ाय मगध आउ नालन्दा विश्वविद्यालय में होवे लगल हऽ। आझ मगही में रोजगार हइ। मगही के विकास लेल जनसमूह के सहयोग के आह्वान कैलका। धन्यवाद ज्ञापन राजेन्द्र सिंह जी कैलका। आयोजन में उपेन्द्र कुमार विभूति, राजेन्द्र प्रसाद सिंह, इंडो होक्के होटल के प्रबन्धक एल.एन.झा जुटल हला। मोका पर रामकृष्णा प्रसाद, पंडा कमेटी के पूर्व अध्यक्ष वृजनन्दन उपाध्याय, सुरेन्द्र प्रसाद, रामहरि साव, नगर परिषद् के उपाध्यक्ष श्यामदेव राजवंशी आउ गणमान्य लोग उपस्थित हला। आखिर में उदय शंकर शर्मा के लावल पौधा के अधिकारी लोगन के भेंट करल गेल आउ आमलोग के वृक्ष लगाके प्रदेश के हरा-भरा करे के संदेश देल गेल। 
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------
पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
रचना मगही साहित के प्रचार-प्रसार के लेल ईहाँ रखल गेल हऽ। कौनो आपत्ति होवे पर हटा देल जात।
निहोरा

मगहिया भाय-बहिन से निहोरा हइ कि मगही साहित के समृद्ध करे ले कलम उठाथिन आऊ मगही के अप्पन मुकाम हासिल करे में जी-जान से सहजोग करथिन।

मगही मनभावन पर सनेस आऊ प्रतिक्रिया भेजे घड़ी अप्पन ई-मेल पता जरूर लिखल जायताकि ओकर जबाब भेजे में कोय असुविधा नञ् होवै।

मगही मनभावन ले रचना ई-मेल से इया फैक्स से हिन्दी मगही साहित्यिक मंच ‘शब्द साधक’ के कारजालयहिसुआ पहुँचावल जा सकऽ हे।

शब्द साधक
हिन्दी मगही साहित्यिक मंच
हिसुआनवादा (बिहार)

---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
रचना साभार लेल
चिजोर, काव्य सेंगरन से।
तीत- मीठ ग़जल गीत से।
टोला-टाटी पत्रिका से
पुरहर पल्लो, मगही काव्य सेंगरन से।
http:magahimanbhavan.blogspot.com


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें