शनिवार, 8 दिसंबर 2012

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-११

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-११
मगही मनभावन
मगही साहित्य ई-पत्रिेका
मगही कोकिल जयराम सिंह श्रद्धांजली अंक
वर्ष - २                   अंक - ११                    दिसंबर २०१२
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ई अंक में
दूगो बात...
कोकिल कंठी जनकवि के सरधांजली
संपादकीय....
संस्मरण आउ सरधांजली अंक काहे जरूरी?
कवि जयराम के जीवन-वृत्त
आलेख
लोक चेतना के गायक जयराम – डॉ. भरत सिंह
कविवर जयराम के गीतन में दलित वेदना – डॉ. शिवेन्द्र
नारायण सिंह
हम्मर कवि जयराम – डॉ. चंचला कुमारी
सामाजिक सरोकार के कविः जयराम – डॉ. किरण कुमारी शर्मा
संस्मरण
कूकइत कोयल गुम हो गेल – मिथिलेश
नञ् भुलाय जुकुर – नागेन्द्र शर्मा बंधु
कवि तों चल गेला, हम हो रहलूं हें बेचैन– रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर
जउ ऊ हम्मर पीठ ठोकलका – उदय कुमार भारती
कविता-कियारी
सरधा सुमन - दीनबन्धु
जयराम सिंह के चार गो जन कविता
 १. हे सरसती मइया हमरा दा अइसन बरदान कि
 २. धरती करे बिआह
३. पीलियै ताड़ी चाख के
४. सुनले हम्मर कहानी दादा
विविध
पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
निहोरा
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दू गो बात....
         मगही कोकिल जयराम सिंह सरधांजली अंक, मगही मनभावन के पहिल कोय कवि आउ साहितकार के समरपित अंक हइ। हम ई अंक के अपने सब्भे के आगू रखइत अपने के सौभाग्यशाली आउ बड़भागी बुझ रहलूं हऽ। हम्मर ई सौभाग्य हे कि हम मगही के एगो खम्भा (स्तम्भ) के एगो अंक समरपित कैलूं। हम डॉ. भरत सिंह जी के ताजिनगी आभारी रहबइ, जे हमरा इनखर पुन्य तिथि से पहिले इयाद दिलैलका आउ ई अंक निकासे के प्रेरणा जगइलका। हम आदर जोग मिथिलेश, नागेन्द्र शर्मा बंधु, प्रो. डॉ. शिवेन्द्र नारायण, डॉ. किरण कुमारी शर्मा, डॉ. चंचला कुमारी, दीनबन्धु के आभारी हियै, जे ई अंक ले अप्पन रचना बड़ी जल्दी जुमैलका। इनखरे रचना आउ संस्मरण से ई सरधांजली अंक बेस बन पइल।
     मगही कोकिल जयराम बाबू के जीवन से जुड़ल संस्मरण आउ उनखर कृत्ति, लेखन पर विवेचना आउ समालोचना कउनो आसान काज नञ् हे। बड़गर-मोटगर अंक हो सकऽ हे, पर जे छोटगर-छोटगर रचना आउ संस्मरण मिला के ई अंक के तैयार कैल गेल हऽ ओकरे से उनखर जीवन के कय गो पहलू के जनकारी पाठक आउ हम्मर अझका पीढ़ी के मिलत। हमरा आसा हे कि ई अंक भी अपने सब्भे के मनभावन बनतै।
    मगही के सशक्त हस्ताक्षर मिथिलेश के लिखल संस्मरण ‘कूकइत कोयल गुम हो गेल’ कोकिल कंठी जयराम सिंह के कय गो अनछुअल पहलू के उजागर करऽ हइ। मिथिलेश जी बड़ी दक्षता से उनखर संसर्ग के सीख उनखर देवल प्रेरणा आउ आशीर्वचन के उभरलका हऽ। संस्मरण में जयराम जी के चरित्र आउ व्यक्तित्व के सचकोलवा रूप उभर के सामने आवऽ हइ। रचना में ई साफ हो जा हइ कि कविवर जयराम के छाप आउ प्रेरणा मिथिलेश जी पर पड़ल हऽ। डॉ. भरत सिंह जी के रचना ‘लोकचेतना के गायक जयराम’ ई साबित करऽ हइ कि कविवर जयराम जनकवि हला। जन-जन में चेतना जगावे के काज उनखर लेखनी के उद्देश्य हल। लोक आस्था आउ चेतना, आम आदमी के दुःख-वेदना से उनखर रचना जुड़ल हल। उनखर लेखन आउ गायन में मगही माटी के सोन्ह-सोन्ह खूश्बू रचल बसल हे। डॉ. शिवेन्द्र नारायण के आलेख ‘कविवर जयराम सिंह के गीतन में दलित वेदना’ ई साबित करऽ हे कि जयराम सिंह के लेखनी में समाज के दबल-कुचलल वर्ग के पीड़ा आउ ओकर जीवन के सजीव चित्रण हे। लगऽ हइ जैसे जयरामे जी ऊ दुख के भोगलका हऽ। दोसर के पीड़ा उनखर कंठ से अप्पन पीड़ा बनके निकसे हे।
        डॉ. किरण कुमारी शर्मा के रचना ‘सामाजिक सरोकार के कवि जयराम’ ई साबित करऽ हइ कि कवि जयराम सामाजिक सरोकार से जुड़ल हर पहलू के बखूबी उजागर कइलन हऽ। भासा के लेल मगहिया के करतप, समाज के वर्ग विभेद, भेल-जोल, किसान के दम-खम, किसानी काज करे वली गांव के बाला, मेहरारू के पीड़ा, किसान के दुःख जैसन समाज के संगति-विसंगति के सजीव चित्रण कवि अप्पन रचना में कैलका हऽ। डॉ. किरण कवि के व्यक्तित्व के आउ लेखन के मथ के ‘मख्खन’ निकासे के सफल कोरसिस कैलकी हऽ।
      डॉ. चंचला कुमारी उनखर जीवन यात्रा, उनखर गुरूजन, सानिध्य देवेवला पुरोधा आउ उनखर रचना के बारे में विस्तार से बतौलकी हऽ। डॉ. नागेन्द्र शर्मा बन्धु कविवर जयराम के सानिध्य पाके अपने के धन्य मानऽ हका। उनखर शिष्य बनके लेखक जे जे पैलका ओकरा उभारइत ऊ मगहियन से उनखर जरावल जोत के बुते नञ् देवे के अपील कैलका हऽ। पत्रकार आउ साहितकार रामरतन सिंह ‘रत्नाकर’, ‘कवि तों चल गेला, हम हो रहलूं हे बेचैन’ रचना से उनखर व्यक्तित्व आउ कृत्ति के संस्मरण प्रस्तुत कैलका हऽ। दीनबन्धु के ‘सरधासुमन’ कविता कवि के बारे में बहुत कुछ कह रहल हऽ।
      कुल मिला के हम ईहे कहबइ कि हमरा जे थोड़के मिललै ओकरे से हम कवि जयराम के सरधा सुमन चढ़ावे के प्रयास कैलूं हऽ, एकरा स्वीकार कर के अपने सब्भे भी मगही के खंभा कोकिल कंठी, मगध रत्न, मगध मयूर कविवर जयराम से मिलहो।
उदय कुमार भारती
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सम्पादकीय....
                     सरधांजली अंक काहे जरूरी
                साहितकार के व्यक्तित्व-कृतित्व, उनखर सोंच-विचार, आकांक्षा-अनुभूति, समाज के देन के दुनिया-समाज के सामने लावे के सार्थक प्रयास के नाम ‘सरधांजली अंक’ कहल जा हे। जे साहित के धूमकेतु अप्पन लेखनी से समाज के दशा-दिशा देलका। समाज के दुख, दर्द, विष के घोंट के जन-जन के अमृत बांटलका, उनखर संस्कार, संवेदना आउ विचार से अझका पीढ़ी के रूबरू करावे के पहल के नाम ‘सरधांजली अंक’ देल गेल हऽ। हम्मर विद्वान, समाज के पटल पर से विस्मृत नञ् होवइ, ओकर स्मृति हम्मर मन अम्बर पर तरोताजा होके बनल रहइ, एकरा लेल समय-समय पर स्मृति अंक आउ सरधांजली अंक निकासल जा हे। हम उनखा, अप्पन ऊ पूर्वज के साधुवाद दे हियै, जे सरधांजली अंक निकासे के पहिल प्रयास कैलका होत।
    हम साहितकार एक्के जात जमात के जीव ही, एकर नाते भी हम्मर दायित्व होवऽ हइ कि हम अप्पन दिवंगत साहित धुमकेतु के प्रति अप्पन सच्चा कर्तव्य निभइयै। उनखर स्मृति के साथ इन्साफ करियै। हम एतना कृपण आउ कृतघ्न कइसे हो जइयै कि अपने से महान आउ श्रेष्ठ साहितकार, पूर्वज के इयाद में एगो दीया भी नञ् जरैइयै। जिनगी भर जे साहित के सेवा कैलका। अप्पन हड्डी के गला के हम्मर साहित के दिशा देलका। साहित के इतिहास में नया-नया पन्ना जोड़लका, उनखा भूला दिअय। उनखर रचना के उमड़इत आवेग पर विराम चिह्न लगावे के प्रयास करियै ओकरा भूला बिसरा दियै?
     ‘सरधांजली अंक’ नया रचनाकार के आंख खोलऽ हइ। ओकर लेखनी के दशा-दिशा तय करे में मदद करऽ हइ, मार्गदर्शक बनऽ हइ। अंक में उनखर संगति में, उनखर नगीच रहे वला विद्वान के अनुभव सामने आवऽ हइ। साथी-संगी आउ चेला उनखर व्यक्तित्व के कय गो अनछुअल पहलू के उभार के समाज के सामने लावऽ हथिन। साहित के महा धूमकेतु के जीवन के अनुभव से समाज के आगू के रस्ता असान होवऽ हइ। रचनाकार अप्पन परिवेश, तत्कालीन समाज से ही रचना तत्व के ग्रहण करऽ हइ आउ ओकर फिनू लेखनी आउ उद्गार से समाज के लौटावऽ हइ। उनखर लेखनी से ऊ समय के समाज के प्रतिबिम्ब झलकऽ हइ, ओकरा जाने, समझे लेल कय गो काल आउ समय के अध्ययन आउ जनकारी अझका पीढ़ी लेल जरूरी हइ।
    ‘सरधांजली अंक’ में साहितकार के व्यक्तित्व निखर के आगू आवऽ हइ। कैएक गो दृष्टिकोण से साहितकार के विवेचना कैल जाहे। ई कारण कोय साहितकार पर सरधांजली अंक निकासना असान काज नञ् हे। अंक में उनखर सानिध्य में रहे वला के रचना रहना जादे जरूरी होवऽ हइ। रचना देवे वला के भी दायित्व बनऽ हइ कि ऊ रचना आउ साहितकार के साथ पूरा इन्साफ करथिन। रचना सच आउ तथ्यपरख होवइ, जेकरा से समाज के कुछ मिलइ। कोय-कोय रचनाकार कुछ अइसन तथ्य भी उजागर कर दे हथिन जेकरा से साहितकार के व्यक्तित्व के ह्रास तो होवे करऽ हइ, उनखर साहितिक देन पर भी कुच्छो प्रश्न चिह्न लग जा हइ। कोय साहितकार अप्पन महत्वाकांक्षा सधावे लेल, अपने के श्रेष्ठ बतावे लेल, संस्मरण के पात्र के व्यक्तित्व के खा जा हथिन। ई हमन्हीं के शोभा नञ् दे हइ। सरधांजली अंक एगो स्वच्छ समालोचना के विषय होवऽ हइ, जेकरा से समाज के दिशा मिलय, प्रेरणा मिलय। लेखक ईमानदारी से दिवंगत साहितकार के व्यक्तित्व के तराश के पेश करे के कोरसिस करथिन, तउ लेखनी के गौरव बढ़तै। अंक में रचना सटिक, कसल आउ ओइसन घटना के उजागर करै जे साहितकार के जीवन लेल आउ पढ़ेवला के लेल महत्वपूर्ण हइ। हम उलजलूल लिख के आउ गैर जरूरी बात बता के साहित के नुकसाने पहुंचैवै। कुच्छो अइसन लिखे से भी रचनाकार के परहेज करे के चाही जेकरा से समाज आउ पीढ़ी गुमराह होतै। सरधांजली अंक के मतलब होवऽ हइ एगो साहितकार के लेल समाज में आस्था पैदा करना। अंक के पात्र हम्मर पूजनीय लोग रहऽ हथिन।
     ‘सरधांजली अंक’ तैयार करे वला के बड़ी सावधानी के जरूरत होवऽ हइ। अंक तैयार करना कउनो हंसी खेल नञ् हइ। अंक लेल भरपूर रचना जुटावे के जरूरत होवऽ हइ। एतना रचना जेकरा से कवि के समग्र दर्शन हो जाए। साहितकार के व्यक्तिगत जीवन, स्वभाव, वेशभूषा, रहन-सहन, दशा-दिशा से लेके पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन, साहितिक देन तक उजागर होवे के चाही। उनखर लेखन के विधा आउ प्रकार के साथे उनखर संगी-साथी, गुरू-शिष्य, परिजन के विचार आउ दृष्टिकोण के साथे उनखर समकालीन साहितकार के भी विचार के समावेश होवै के चाही। एकर साथ समालोचना के सब्भे तत्व भी जरूरी हइ।
     हम माफी चाहवै कि एतना कुछ कहे के बाद भी हम अपने सब्भे के आगू ‘मॉडल सरधांजली अंक’ नञ् रख रहलियै हऽ। लेकिन जेतना बन पड़लै ओकरे स्वीकार करथिन। आगू हम्मर प्रयास रहतै कि कोय आउ साहितकार के सरधांजली अंक आदर्श सरधांजली अंक बनै, एकरा लेल हम सब्भे साहितकार से सहजोग के आह्वान करऽ हियै।
     आउ आखिर में हम हिआं सब्भे भासा भासी संपादक आउ प्रकाशक से आह्वान करऽ हियै कि हम्मर पूर्वज अप्पन साहित के पुरोधा, साहित धूमकेतु, साहित के चांद-सुरूज के समय समय पर सरधांजली अंक निकासथिन। उनखर दिव्य रौशनी से समाज आउ अझका पीढ़ी के रस्ता आलोकित करै के सार्थक प्रयास करथिन। अइसन हमन्हीं के कारज से उनखर अत्मा के सच्चा शान्ति तऽ मिलवै करतै बलूक उनखर जरावल दीया से दोसर दीया भी जरतै। एगो आउ दिनकर, पंत, निराला आउ जयराम पैदा होथिन।

उदय कुमार भारती

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  जीवन-वृत्त

नाम – जयराम सिंह
जलम – ८ अगस्त १९२८ ई.
सरगवास – ८ दिसम्बर २००६ ई.
माय के नाम – धर्मशीला देवी
पिता के नाम – राम हरि सिंह
धरम पत्नी के नाम – अन्नपूर्णा देवी
गांव-गिरांव – कारीसोवा, पोस्ट – कारीसोवा
वजीरगंज (गया), पिन – ८०५१०३।
ननिहाल – भदसेनी, हिसुआ(नवादा)।
पढ़ाय-लिखाय – बचपन में हिसुआ के चितरघट्टी के भदसेनी गांव के गुसपिंदा से पढ़ाय शुरू भेल।
मिडिल – १९४३ , पुनामा गांव से।
अठमां-नवमां – नरहट आउ उच्च विद्यालय हिसुआ से।
मैट्रिक – १९४७ में गया सिटी स्कूल से।
स्नातक – बीएचयू १९५४।
स्नातकोत्तर – १९५७-५८ बीएचयू, डिप-इन-एड, भागलपुर।
कारज आउ नौकरी – शिक्षक, नेशलन हाई स्कूल, वारिसलीगंज,
१९५८ ई. में प्रधानाध्यापक – सर्वोदय उच्च विद्यालय, हदसा, हिसुआ,
१९६८ ईं में सत्यवती उच्च विद्यालय, कारीसोवा,वजीरगंज के प्रधानाध्यापक पद से अवकाश।
पुरस्कार – १९५२-५४ ई. में तबला वादन में बीएचयू में लगातार प्रथम,
१९५३ ई. में नौकायन, काव्य लेखन एवं कैरम प्रतियोगिता में प्रथम,
१९५८ ई. में सर्वप्रथम काव्य-पाठ में रजत पुरस्कार।
गीत आउ गावे में मंच के नायक
सम्मान – मगही कोकिल, मगध मयूर, कवि रत्न, मगध रत्न।
काव्य प्रसारण – आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के विविध केन्द्रों से काव्य-पाठ।
छप्पल किताब – भुरूकवा उग गेल, त्रिवेणी, पुरहर पल्लो।

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आलेख
लोकचेतना के गायक जयराम
                        
                                                 डॉ. भरत सिंह
    
                 यराम जी निःसंदेह लोकप्रिय कवि हथ। ऊ पंडित इया अभिजन ला नञ् बलुक ऊ ओइसन जनसामान्य, अपढ़ आउ अछरकटुआ ला अप्पन गीत-कविता रचलन, जे तत्व जिज्ञासु तऽ हलन मुदा शास्त्रीय भाषा निबद्ध ग्रंथीय-ग्यान से शून्य हलन। उनखर लोकप्रियता के आधार उनखर कविता के मनोहारी, सरल आउ प्रभावकारी शैली मात्र ही नञ् हे, उनखर उत्तम सूक्ति आउ व्यंग भी हे। एकर बाद भी ऊ साहित्यिक-यश ला हरसट्ठे लापरवाह ही रहलन । ऊ कविता खातिर शास्त्रीय-मानदण्ड पालन के कभी परवाह न कैलन। ओइसे भी हम्मर देश में शास्त्रीय-कविता कमे लोकप्रिय हो सकल हे, कारन जनसामान्य ला ऊ लगभग दुर्बोध ही बनल रहो हे। समाज में पसरल बुराई, दुर्बलता आउ आडम्बर के देखे-समझे में जयराम जी के आंख आउ बुद्धि जादे पैनी आउ तीव्र हल, जेकर ओजह से ऊ ओइसन सन्हे विसंगतियन, पाखण्ड, मिथ्या विश्वास, बाह्याडम्बरन आदि के सटीक बखान कर सच के उद्घाटन अप्पन कविता में कर सकलन हें। वास्तव में जयराम जी मिथ्याशरण, आडम्बरन, थोथ परम्परा, निरर्थक विश्वास आउ मूल्यन पर करारा चोट करेओला कवि मात्र ही नञ् बलुक ऊ एगो अइसन सशक्त समाजसुधारक भी हलन जिनखर लक्ष्य अप्पन कविता के जरिए जनसाधारन के जीवन-स्तर सुधारना भी हल।
    जयराम जी जनता के भाषा में सूक्ति रचलन। ऊ काव्य वहिरंग पर जादे जोर नञ् देलन, तइयो उनखर कविता में काव्यतत्व मौजूद हे। जयराम लोकप्रिय कवि हथ। परमात्मा एक हे, ओकर नाम, ओकरा पावे के साधन-पद्धति अलग-अलग हो सकऽ हे, तइयो परब्रह्म-परमात्मा रूप शिव एक हथ। परमात्मा-निर्गुण-निराकार हथ। अंगम ओकर साकारस्वरूप हे। ई लेल अंगम के कथानुसार परमात्मा के उपासना करे के चाही। निर्गुण-निराकार-परमात्म रूप शिव के पावे के साधन ओकर भक्ति करना हे। बाह्याडम्बरन के आश्रय शिव के नगीच नञ् ले जा हे। देखऽ जयराम जी ओहे शिवोपासना ला जन-मन से मिनती करइत हथ–
शाम सुबह भजो रे भाय नमः शिवाय।
‘न’ अक्षर पर नन्दीश्वर के सब नमन करऽ,
नागेन्द्रहार जेकर गर्दन में नमन करऽ,
नयना तीन जेकरा, कहलावे तिरलोचनाय।
x  x  x  x
पांच अक्षर वला ई भजन जे शिव तर गावे,
शिवजी के साथ मगन होवे शिवलोक पावे,
एकरा से जादे नञ् दूजा पून के कमाय।
  परमात्मा प्राप्ति ला भक्ति के जरूरत है। भक्ति में अनन्य निष्ठा परमावश्यक हे-
हरि बिनु हिरदय अहर्निश हहरे नयना नीर न ठहरे राम।
किसना-किसना रटने रसना, समय बितावे आठो जाम।
कवि जयराम के अटूट विश्वास हे अप्पन शिव पर कि ऊ हम्मर जिनगी के संवार देलन-
तोहरे पर विश्वास भरोसा,
तोहरे पर जिन्दगानी,
नैया बीच मझधार में डगमग,
ला ला बचवहु शिव आउ शिवानी।
महिमा जाये न बखानी॥
    कवि जयराम ताजिनगी संघर्षरत जीव के सलाह देइत हथ कि अगर तूं भव सागर से मुक्ति अउ आराम चाहो हऽ तऽ तों आवऽ राम के शरण मे-
जे चाहै तू आराम तो जल्दी से,
आ राम के शरन।
जिनखर किरपा से मद, लोभ, क्रोध
आउ काम के हरन।
  तात्पर्य ई हे कि सउंसे देशवासी जीव इरखा, डाह में लटपटाल हथ, संसार असार हे, ई माया के हाट हे, कवि माया के हाट से जीव के मुक्ति ला एगो नया वाट दिखावइत हथ-
माया के ई मकड़ जाल,
सहज निकलवा प्रनतपाल से,
प्रभु के चरण में सिर के शरण लगी जयराम के नमन।
   कवि देश व समाज के सड़ान्ध हटावे-मिटावे में मसगूल रहलन ताजिनगी। आखिर में ऊ मां दुर्गा के अबलम्ब पा देश-समाज में करोड़न शुंभ-निशुंभ के बद्ध करे ला उतारू हथ-
सिंह वाहिनी मां-दुरगे!
दुष्ट न बच के कोय भागे।
   कवि जयराम के मन में कठोर विश्वास हे कि हम्मर देस भारत में रोज लाखो-लाख सीता के लाज लूटा रहल हे, लाखो सीता दहेज के आग में होम होइत हथ, देस में धरम के नाम रगड़ा-झगड़ा पसरल हे, जाति-पाति, छुआछूत के महामारी फैलल हे। ई लेल ऊ चाहऽ हथ कि एक दन्ने फिनो राम हम्मर धरा पर पधारथ कि करोड़न रावन के वध होवे-
राम के जरूरत हलै नासै लगी रावन के।
  कवि जयराम भारतीय समाज में टूटइत-बिखरइत मरजादा के बचावे खातिर तुलसीदास के आवे ला मिनती करइत हथ-
तुलसी के जरूरत हके मरजादा अनुपालन के,
देवी, देउता, कवि-कोविद मिल के विनय करे।
   भारत से कि जल्दी हो जाथिन ऊ हुलसी तुलसी के फेड़वा तर करऽ ही मनौतिया कि भारत में एक बार फिन होवै तुलसी।
   मगही में ओही कवि सफल आउ विख्यात हो पावऽ हे जे ओकर प्रकृत्ति के आत्मस्थ कर ले हे। जयराम जी मगही आउ ओकर प्रकृत्ति के आत्मस्थ कर लेलन हे। एही ओजह हे कि मगही रचनन में ऊ ऊंचगर स्थान पा लेलन हे।
   जयराम जी के काव्य-फलक व्यापक हे। जमींदारी-युग के किसान के काव्य-कथा, बरखा के विध्वंसकारी बाढ़-लीला, गरीब ग्रामीण के दवा-दारू, खेती-गृहस्थी के समस्या, बेटियन के शादी-ब्याह के चिंता, अपढ़-पिछड़न के अंधविश्वास, प्रकृत्ति-व्यापारन के सहज नित्यता, अध्यात्म-चिन्तन, बदलइत संस्कृति के दशा, काव्य सिरजन शैली में बदलाव, मानवतावाद, विश्वमैत्री, सबके यथार्थ चित्रण, मार्मिक-निरूपण कवि जयराम के इष्ट रहल हे। कुरीतियन-विसंगतियन, झूठ-कदाचारन, शोषण-उत्पीड़न से ओकर संवेदनशील कवि आर्द्र आउ मर्माहत हो उठो हल।
   जयराम जी अप्पन कोमल आउ मधुर बोली के कारण जन-मन में रच-बस गेलन हे। हिरदा के अविरल, सघन आउ निर्बाध गति से बहेवाली अनुभूति के उद्दाम नदी जब शब्दन के विविधता से जुड़ल धरातल पर उतरऽ हे अउ सउंसे भीतरी थल के स्वर लाभ वाग्विदग्धता में ओत-प्रोत करके फूटऽ हे तऽ ऊ गीत बन जा हे, जउन युग में अनगिनत साधकन संगीतमयी साधना से तीव्र आत्मानुभूति, उल्लास-कंपन, वेदना आउ संघर्ष भर के मगही काव्य के समृद्ध कैलक उहंय गीत परम्परा अनवरत चलल आ रहल हे। जयराम जी सन गीतकार ला गीत एगो वृत्ति विशेष हे।
   गीत लिखल नञ् जा हे अभिव्यक्त होवऽ हे। ई अभिव्यक्ति समाधि दशा में होवऽ हे। ‘बदरिया गावऽ हइ कजरिया झूम गगन के अंगना’, ‘हे सरसती मइया हमरा दा अइसन वरदान कि घर-घर गूंजे मगही गान’, ‘बांसुरी जे बज रहल ऊ बजा रहल सावरिया’, ‘संउसे संसार में शांति भर शारदे’, ‘हे सरसती विद्या-मइया भवसागर से पार होवे ला हमरा दे दा एगो ज्ञान के नइया’, ‘तोहर चेहरा पर हम तो फिदा ही’, ‘पनरह अगस्त दिन महान हो भेलै आजाद देसवा’, ‘तोहरा देखऽ ही सपनमा में भोरे-भोरे’, ‘आइल सावन के महीनवां धनवां रोपा लगलइ ना’, ‘धान रोपऽ हइ रोपनियां निहुरि-निहुरि’, ‘उतरल हो रितुराज अंगनवां में’ जइसन गीत समाधि दशा में कवि जयराम लिखलन हे। ओहंमें प्रकृत्ति चित्र, प्रेम के मनः स्थिति, युगीन संत्रास, कुंठा आउ तीव्र विरक्ति अइसन क्षेत्र पर व्यापक चर्चा भेल हे। जयराम जी के गीत में उनखर द्रष्टा के दृष्टि में जादे महत्वपूर्ण हे, दृश्य नञ्। मगही लोक जीवन के अनुरंजन गीतकार जयराम अप्पन परम धर्म मानऽ हथ। ढेरो घात-संघातन आउ मेल मुलाकातन से लोकरूचि आउ लोकजीवन में परिवर्तन-विकास व ह्रास होवइत रहऽ हे।
   कवि जयराम जी ई बदलाव के बड्ड सूक्ष्मता से पकड़ो हथ आउ तद्नुकूल स्वयं में बदलाव करे के चलऽ हथ। जयराम जी के गीत में भाव, विचार, अनुभूति, कल्पना में ऐक्य हे। उनखर गीतन में सबसे परिपूर्ण, अजस्त्र, सुन्नर आउ निर्मल सोता हे तीव्रानुभुतियन के। जयराम जी के गीत रेत में सूखल नदी के अजन्ता बनावो हे आउ द्वार पर बइठल गुफा के तथागत् गीत गावो हे। जयराम जी के गीत में तागत हे ओकर व्यंग्य-दृष्टि, विसंगतियन के रेशा-रेशा पहचानइत भाव बोध आउ रोजमर्रा के संघर्ष में जुद्धरत आम आदमी के जिजीविषा। जयराम जी के गीत पर गहन विश्लेषण के आवश्यकता हे, ऊ मगही के समर्थ आलोचक दन्ने निहारइत हथ। मगही के समालोचक तब्बे समर्थ मानल जइतन जब मथुरा प्रसाद नवीन, श्रीनन्दन शास्त्री, योगेश, रामनरेश पाठक, कुमारी राधा ओगैरह के गीत-सृजन से जयराम जी के तुलना करइत गीत-सौन्दर्य पर चिन्तन करतन।
                                            -अध्यक्ष, स्नातकोत्तर मगही विभाग
                                                मगध विवि, बोधगया
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आलेख
                       कवि जयराम के गीतन में दलित वेदना
                                      
                                                                                        प्रो. शिवेन्द्र नारायण सिंह
      
                 मगही कोकिल के नाम से परसिध कविवर जयराम सिंह जन-मन के कवि हथ।  इनखर कविता में एक ओर विषय के विविधता पावल जा हे ऊहंइ दोसर ओर ओकरा में भाव के गंभीरता के भी दिक्दरसन होवऽ हे। सांप्रदायिक सद्भाव, धार्मिक सहिष्णुता, श्रृंगार, प्रेम, प्रकृत्ति-चित्रण के साथे साथ प्रगतिवादी चेतना के बहुआयामी धारा भी इनखर कविता के स्थाई उत्स हे। इनखर कविता में दुखःसुख, राग-विराग सब अपने आप बहल चलऽ हे। मगही भाषा के प्राण ‘करूणा’ तो इनखर कविता के आगार हे। इनखर कविता में मगह के जन-जीवन के सब्भे पक्ष उकेरल हे। बाल-बुतरू, लइका-लइकी, बूढ़ा-बूढ़ी से लेके मजूर, किसान, पढ़नहार, नौकरी करताहर, राजनेता, रोजगरिया सब के चित्र इनखर कविता में खींचल हे। देव भक्ति, गुरू भक्ति, राष्ट्र भक्ति, हंसी ठिठोली आउ देहाती जीवन तो इनखर गीतन के मुख्य विषय-वस्तु हे, मुदा दलित जीवन के वर्णन भी ई अप्पन कविता में कइलका हऽ।
      समाज के सबसे उपेक्षित मजूर वर्ग के दुरदसा के सही चित्रण इनखर कविता में मिलऽ हे। ऊ दिन-रात कमा हे पर ओकर मूलभूत जरूरत भी पूरा नञ् हो पावऽ हे। ओकर ई सरूप कवि के हिरदय के उद्वेलित कर दे हे। ‘धान रोपऽ हे रोपनियां’ कविता में ई यथार्थ के बखूबी चित्रण कइलन हऽ-
‘एतना कठिन काम करइलो पे रहऽ हके, तन- उधरी,
रहे उधरे बदनिया ठिठुरी-ठिठुरी।
धान रोपऽ हे रोपनियां निहुरि- निहुरि।।’
      कविवर जयराम के गीतन में दलितन के यथार्थ के चित्रण कइल गेल हे। ऊ हाड़-तोड़ के कमा हे। नञ् ओकरा खाय के ठेकाना हे आउ नञ् पिये के। तइयो ऊ करमयोगी नियर अप्पन धुन में मसगूल रहऽ हे। जाड़ा, गरमी, बरसात के भी ओकरा पर कोय असर नञ् हे। कुछ मिललऽ तो सही नञ् तो अइसहूं सही। ओकर खूब सजीव-चित्रण कवि कइलन हऽ। 
‘बड़ी सबेरे अंकुरी खाके पीलियै ताड़ी चाख के।
की करतै कड़कड़िया रउदा, दुपहरिया बैसाख के॥
 दिन-रात एक कइला पर भी ओकरा चैन नञ् हे। ओकर जीवन अभावे में गुजरऽ हे। चुरकुन-भुरूकन भी ओकरा ले मोहाल हे। कांसा-पीतर के बरतन तो दूर अलमुनिमो पर आफत हे। पुआ-पुड़ी के तो दरसने दुरलभ हे। पर जे भी ओकरा मिलऽ हे ओकरे में संतोष हे। सच्चे में ‘संतोषं परम सुखम्’ के उक्ति ओकरे ले चरितार्थ होवऽ हे। कवि ओकर ई रूप के वर्णन बड़ी संजीदगी से कइलन हऽ।
‘‘अलमुनिया के बरतन में , भोजन कोरहन के सतुआ हे,
दोल के जल से सान के खा ही, लगे कि जइसे हलुआ हे,
हम किसान के असली बेटा, काम हम्मर हे लाख के।
कि करतै कड़कड़िया रउदा, दुपहरिया बैसाख के॥’’

     सचमुच में कविवर जयराम द्वारा दलित-जीवन के जीवंत चित्रण पढ़ला-सुनला से मन सिहर जा हे। रोम-रोम खड़ा हो जा हे। ऊ अप्पन शैली आउ शब्द-चयन से अइसन अभिव्यक्ति दे हथ जे मन के कोना-कोना झंकृत कर दे हे। सही में भाव के अइसन स्पष्टता कम-कम कवियन के रचना में मिलऽ हे।
    देस आजाद भेल। सब लोग के आस जगल। ओकरा साथ ओकरा भी बेहतरी के सपना दीख रहल हल। ओकरा भी उम्मीद हल कि ओकर माली हालत में जरूर सुधार भेत। ओकर आकांक्षा के कवि खूब निमन से अभिव्यक्ति देलन हे। ‘सुनले हम्मर कहानी दादा’ एक्कर जे चित्रण कइलन हऽ ओकरा उनके शब्द में देखल जाय-
सूनलुं देश सुराज हो गेलै, मिलतै रोटी कपड़ा।
सूअर-बखोरी झोपड़ी हटतै, होतै छौनी खपड़ा॥
बुतरून हमनिन के भी पढ़तै सरकारी इसकूल में।
दवा-दारू, औरत-मरदाना के मिलतै कि तो मुफ्त में॥
     भोर से सांझ तक ऊ खटऽ हे। नञ् ओकरा जाड़ा लगऽ हे नञ् गरमी। मुदा ओकर चिन्ता नञ् समाज के हे आउ नञ् सरकार के। ओकरा तरफ ताके के भी फुरसत केकरो नञ् हे। एहे से ओकर जीवन जानवरों से भी बदत्तर बनऽल हे। ओकर हालत के मार्मिक वर्णन कवि कइलका हऽ-
‘‘सुबह समय से बैल साथ हम रोज सांझ तक खटलूं,
सावन-भादो-जाड़ा में भी उधरे देहिया रहलूं।’’
‘‘हम भूखल ही लेकिन बरदा, जा घर चाभलक सानी
बैलो से बदतर हालत हे, सुनले हम्मर कहानी॥’’
 मुदा ई जुल्म आउ शोषण के बरदास करेके सीमा खतम हो रहल हे। ओकर दिल में प्रतिरोध के आग सुलग रहल हे। अगर ओकर हालत के सुधारल नञ् जात तो ई आग भड़के से कोई रोक नञ् सकऽ हे। ईहे से समय रहते एकरा पर निगाह डाले के जरूरत हे। ओकर दिल में धधकल आग के सजीव वर्णन कवि बखूबी कइलन हऽ-
‘‘बहुत सहली घोर विपत्तिया, अब न अधिक सहबौ,
समझ गेलियौ सब तोर बुधिया, नञ् अधीन तोर रहबौ।’’
हम अप्पन हक लेबौ लड़के बचबऽ हो के? देखबौ,
ई नञ् होतौ हो अब भइया, तू खैमा हम ताकबौ।’’
      ई तरह से हम देखऽ ही कि कविवर जयराम के कविता में मजदूर, दलित आउ उपेक्षित लोगन के जीवन के यथार्थ चित्रण कइल गेल हे। कवि के कल्पनाशीलता दाद देवे के लायक हे। जे ऊ चार-पांच दसक पहिले कल्पना कइलका हल आझ ऊ स्थिति साक्षात् हूबहू दीख रहल हे। शोषण आउ अत्याचार के खिलाफ उनखर हिरदय में सुलगल आग के कल्पना जे कवि कइलका हल आझ ‘नक्सलवाद’´के रूप में भभक के जहां-तहां कोहराम मचैले हे। सरकार आउ समाज के सामने भयंकर चुनौती पेश कइले हे। अब भी समय हे। बिना एकरा गमइले ओकर हालत में सुधार के उपाय ले जयराम बाबू के कविता संकेत कर रहलऽ हे। एकरे में समाज आउ देस के भलाई हे।
                                           ग्राम+पत्रालय- बिन्दीडीह
                                            जिला- नालन्दा, बिहार
                                               पिन-805109।
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आलेख
सामाजिक सरोकार के कवि जयराम
                     
                                                                       डॉ. किरण कुमारी शर्मा
    
                      ‘‘कीर्तिःयस्य सः जीवति’’ के चरितार्थ करैत, मगही कोकिल भक्त कवि जयराम, जन-जीवन के छोट-बड़ सभ्भे सरोकार में पैठ बनइले, कण-कण में रम रहलन हे। इनखर कीर्ति के बानगी हे कृति ‘चिजोर’ जे डॉ. के.के. नारायण द्वारा सम्पादित हे।
   ‘‘सत्साहित्य के सृष्टि लेल जीवन के सभ्भे दशा-दिशा के अध्ययन जरूरी हे। काहे कि कोय गिर जा हे तऽ ओकर गिरे के कोय कारण हे, ई कारण साहित्य लेल ओतनय जरूरी हे जेतना गिरल के उठावय वला कारण हे’’ – इहे विचार के अप्पन गीत-संसार में पुष्ट कयलन हे कवि जयराम। समाज के कोना-कोना झांकलन हे। इनखर जतनय तीक्ष्ण दृष्टि हे ओतनय संवेदनशील हिरदय। प्रकृत्ति के हर नया आहट के प्रति ई सजग, सचेत आउ सचेष्ट हथ। अप्पन मातृभाषा, मातृभूमि आउ संस्कृति के प्रति इनखर उत्कट प्रेम ‘घर-घर गूंजे मगही गान’ कविता में फूट पड़ल हे-
‘‘मगह देश के भाषा मगही हल भाषा के रानी।
हिन्दी के ई सखी सहेली मधुरी एकर बानी॥’’
 कवि आगू अप्पन मनसा बतयलन हे आउ ‘नया विहान’ मांगलन हे –
‘‘देख दिनन के फेर बतौलन रहिमन चुप हो रहियो।
अब नीके दिन आ गेल एकर दे दा नया विहान
कि घर-घर गूंजे मगही गान॥’’
 ‘निजभाषा उन्नति’ के भाव-पाठक के आनन्दातिरेक में पहुंचा दे हइ। रहीम के दोहा के प्रयोग    एतना सहज भाव में हो हे कि भाषा ‘प्राणवान’ हो गेल।
    साम्प्रदायिक सद्भाव, सर्वधर्म समभाव आउ धार्मिक सहिष्णुता इनखा में कूट-कूट के भरल हल इहे कारन हे कि कांवर जल भरय वला भक्त कवि हर पूर्णिमा के सूफी-संत वारिस पिया के समाधि पर नये भजन से अप्पन हाजिरी दर्ज करावो हलन। इनखर मूल मंत्र हल-  
‘‘नै हम हिन्दु नै हम मुस्लिम, नञै हम सिख-ईसाई।
जात-पात से ऊपर हम ही हिन्दुस्तानी भाई॥’’
 संवेदनशीलता के हद तक संवेदनशील कवि ‘नया साल के मुबारक’ तऽ दे रहलन हे मुदा उबउबाल आंख से-
‘‘मुबारक दे रहलूं हम तोहरा लेला नयका साल पर।
लेला अंखिया के लोरवा ढरकल देसवा के हाल पर॥’’
   देश, काल, परिस्थिति, परिवेश के नजर अंदाज करके जीवन्त रचना करना असंभव हे, से कवि के साथ भी लागू हो रहल हे। किसान के निर्भयता कवि के लेखनी पाके साक्षात् शंकर रूप धारण कर लेलक हे-
‘‘बड़ी सबेरे अंकुरी खाके, पीलियै ताड़ी(कचरस) चाख के,
की करतै कड़कड़िया रौदा, दुपहरिया बैसाख के॥
 बैसाख के रौदा के उपेक्षा करय वला किसान दमाही घड़ी ‘छमाही परीक्षा’ दे हे तऽ उहे खरिहान में धुरी से नहा के शिव बन जा हे-
छाते छात बनल ही शंकर
भसम रमौले राख के।
की करतै .................के॥
 कवि विरह के उत्कट-दशा देख के विह्वल हथ-. 
हम विरहिन के अखिया बरसे में बदरा से जीतल रे,
एत्ते बरसल मेघ कि धरती शीतल रे।
एत्ते ढरकल लोर कि अंगिया तीतल रे॥
सूरदास के विरह-वर्णन के छटा एजा उपस्थित हो गेल हे-
‘‘निसदिन बरसत नैन हमारे
सदा रहति पावस ऋतु हम पर/ जब ते श्याम सिधारे।
कंचुकिनहिं सूखत सुनु सजनी/ उर बिच बहत पनारे॥
विरह के चर्चा संयोग बिना अधुरे रहत। संयोग के सुखद क्षण के पूर्व के दशा भी कवि के लेखनी पाके नितरा उठल हे। कवि गोरिया के सीख दे हथ-
‘‘रतिया रगड़ के दींहे फुलेलवा / बालम मातल ऐथुन ना।
गोरी गे रगड़ के पीसे मसलवा / आझु तोर बालम ऐथुन ना॥
  नायिका तेल-फुलेल, आभूषणादि से सज-सजा रहल हे, मिलन लेल। ई नायिका ‘वासकसज्जा’ हे, संयोग श्रृंगार के अद्भुत छटा हे।
    मगह के लोक संस्कृति में ढेरमनी अइसन सगुन मानल गेल हे जे पिया मिलन के सूचक हे। जैसे – कौवा-कौवी के चाउर बांटना, पानी पिये घरी सरकना, भोर के सपना में पिया के देखना, वामा अंग(स्त्री के) फरकना, जोरल अगिया के खरकना, कौआ के बोलना आदि। कवि के नजर इहो सगुन पर पड़ल हे – ‘‘तोहरा देखऽ ही सपनमा में भोरे-भोरे।’’
  अकाल-सुखाड़-बाढ़ से भी प्रभावित होलन हे कवि। जुआन मोरी खड़ रह गेल – ई तऽ अनहोनी हे –
बिना घटा के सावन भादो
अइसन कहियो भेल न यादो।
रह गेल मोरी जुआन खेत में
नैबिआह भेल सुखल कादो॥
 प्रलय के त्रासदी देख कवि के दिल दहल उठल हे, बाढ़ आउ सुखाड़ दुन्हु ऊधो-माधो बनल हे-
‘‘एक दन्ने जल-प्रलय, तो दोसर दन्ने नै भरल सुराही
एसो के बरसा बेदरदी , बाढ़ सुखाड़ से खेत है परती।
धन-जन-अन्न के दुसमन दुन्हुं जइसन ऊधो वैसने माधो॥
  ‘‘रोहनिया मोरी’’ जब जुआन हो जाहे तऽ ‘‘धान रोपऽ हे रोपनियां जापानी ढंग’’ पर कवि के नजर टिक जा हे। कमिनियां के अंग-सौष्टव, तत्परता चुहल देखे जुकुर हे। ईहे धान जब एक पानी बिनु मर जाहे जब रचनाकार बेचैन हो जा हथ-
एक पानी बिनु मरल धान सुन साजन गे।
 हताश आउ निराश कवि नवादा के जिला बनला पर हरखित हथ-
“बन गेल जिला नवादा दादा बन गेल जिला नवादा।’’
 स्व. बाबू जी के साथ-साथ शहीदन के भी श्रद्धांजलि देवैत कवि कृतज्ञता के भाव में दिखऽ हथ तऽ नयका पीढ़ी वला बुतरूअन के चेतैवो करऽ हथ-
‘‘तितकी से मत खेल बुतरूअन
जल जइतो तोर हाथ रे।’’
 ई सिखौनी बुतरूए ले नञ् बड़को ले हइ। नायिका के सब्भे रूप कवि देखलन हे। कमनीयता के साथ-साथ विद्रुपता भी रचना में जगह पैलक हे –             ‘
‘‘कउन गुनहिया कैलियो हल भगवान, जे औरत देला पहलवान।’’
 ई गीत में ‘कलहन्तरिता’ आउ ‘खण्डिता’ नायिका के चित्रण होल हे जे घरे के अखाड़ा बनैले हथ। दोसर दन्ने नायिका रतना के उदात्त-चरित्र कभी तुलसी के गुरू बनके वासना के पंक से उबार ले हे-
वासना के पंक से उबार
जनम से जे बिगड़ल हल, धरम से जे उखड़ल हल
सब में ला देलक जे सुधार
तुलसी के जीवन मे, रतना उत्तम धन में,
गुरू में भेल ओकर गनना।
    एकर अलावे ‘परिवार नियोजन’, बाल-विवाह, बेमेल विवाह, तुलसी जयन्ती, राष्ट्रीय पर्व भी रचना में जगह पयलक हे। मानव मन के कमजोर पक्ष भी कविता में रति से भी सुथ्थर हं’ में जगह पयलक हे। माघ के ‘नेयार’ से कवि कांप उठऽ हे। सगुण-निर्गुण, विरह-मिलन, अज्ञान-ज्ञान, सुखःदुःख में भरपूर जीलन हे कवि। अन्त में गुरू शरण में परमदर्शन पयलन हल।
   छन्दोबद्ध काव्य के कृत्रिमता से दूर कवि निराला के पथ गामी बनल हथ। ‘वाद’ के विवाद से दूर यथार्थ के ठोस धरातल पर चलके कवि लोकमंगल के लक्ष्य पयलन हे। लोक मंगल लेल ‘चिजोर’ हाजिर हे। ई तऽ छोटगर झांकी हे बाकी चिजोर से बिखरल हे ओकर छटा देखय लेल मन व्यग्र हे। अन्ततः ‘चिजोर’ पढ़-सुन हे कह रहलूं हे कि ई ‘सत्यम शिवम् सुन्दरम’´हे।
                                                       डॉ. किरण कुमारी शर्मा
                                                           मगही विभाग
                                                         मगध विवि बोधगया
                                                        भ्रमणभाष – ९७०९३२५८२५

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आलेख
हम्मर कवि जयराम
                                       
                                                                                              डॉ. चंचला कुमारी
      
           बिहार राज्य के गया जिलान्तर्गत वजीरगंज थाना क्षेत्र में ‘कारीसोवा’ एगो गांव हे। गांव के चउगिरदी अमराइयन के सधन छाया में प्रकृति के सदाबहार हरियाली छायल हे। ग्रामीण परिवेश में कृषि, संस्कृति, गोपालन अउ हिन्दु संस्कारन के बीच जीवन-यापन करेवला श्री रामहरि सिंह के धर्मपत्नी श्रीमती धर्मशीला देवी के कोख से ८ अगस्त १९२८ ई. के रोज बालक जयराम ई धराधाम पर अयलन। जलमकाल में इनखर माय अप्पन नइहर भदसेनी गांव में हलन। इनखर बचपन ननिहाल भदसेनी में बीतल। पांच बरीस के उमर में इनखर नामांकन श्री खगेसर गोसांई के गुरूपिण्डा में गांव में ही भेल। गोसांई नैष्ठिक अनुशासन प्रिय व्यक्ति हलन। ओही पिंडा में नागवंशीलाल भी गुरूजी हलन। ऊ तबला आउ बांसुरीवादक के साथ-साथ कुशल गायक भी हलन। ऊ जयराम जी के बाबूजी आउ चचा के भी पढ़ौलन हल। जयराम जी के प्रवृत्ति अध्ययन से जादे गायन दने विकसित भेल। नागवंशी लाल से इनखा तबला, बांसुरी आउ गायन के शिक्षा मिलल।
    गावे-बजावे के कला से इनखर सामाजिक पहचान बनल। अभिभावकन के इच्छा के दबाव में इनखा ग्रामीण पाठशाला के शिक्षा समाप्त करे के बाद गांव से थोड़के दूर ‘पुनामा’ गांव के मिडिल स्कूल में नाम लिखावल गेल। १९४३ ई. में जयराम जी मिडिल के इम्तहान पास कर गेलन। आठवां वर्ग में इनखर नाम नरहट उच्च विद्यालय में लिखायल। उहां के प्रधानाध्यापक श्री वलभद्र जी बजड़ा गांव के हलन। उहंय इनखर संगति भदसेनी निवासी शुकदेव सिंह से भेल। इनखर सरसता आउ तुकबंदी कला श्री शुकदेव सिंह के सौजन्य से निखार पौलक।
   परिवेशगत वातावरण, गृह जीवन की अन्तर्वेदना आउ संगीत कला के नैसर्गिक अभिरूचि इनखर कवि जीवन के उत्प्रेरित कैलक। इनखर अनन्य मित गांव के ही भागवत सिंह आउ बांके सिंह हलन। खड़ी बोली में इनखर पहला तुकबंदी मित लोग पर ही केन्द्रित हे-
(क) भूल गया परत्राण तुम्हारा,
खोजने आए मेरे द्वार
तुम हो मेरे पाखंडी यार॥
(ख) कद का नाटा रंग का गोरा
अड़तीस ईंच चौड़ाई हे।
सर्वांग पुष्ट, क्षण रूष्ट तुष्ट
भागवत हमारा भाई है।
     खुलल बात, स्पष्ट विचार आउ स्नेह संबलित उद्गार ई बन्ध हे। नरहट उच्च विद्यालय में पढ़ के भी जयराम जी हसुआ उच्च विद्यालय से अठवां-नौवां इम्तहान पास कैलका हल। दसवां वर्ग में इनखर नामांकन सिटी स्कूल, गया में भेल। उहंय इनखर कवित्व प्रतिभा के निखार पंडित श्यामदत्त मिश्र के मार्गदर्शन में भेल। मिश्र जी के संपादन में स्कूल पत्रिका में इनखर पहिलौठ कविता १९४६ ई. में छप्पल। १९४७ ई. में जयराम जी मैट्रिक परीक्षा में सफल भेलन। १९४८ ई. में इनखर नामांकन गया कॉलेज, गया में भेल। अंग्रेजी, हिन्दी रचना, प्रधान हिन्दी, मनोविज्ञान आउ अर्थशास्त्र विषय ई पाठ्यक्रम में रखलन। उहंय कवि जयराम solitary reader अंग्रेजी कविता के हिन्दी अनुवाद कैलन। एकरे से प्रभावित होलन अंग्रजी के प्रोफेसर छोटेनारायण सिंह, इनखर गुरू डॉ. डी.पी.एन. शर्मा श्री श्याम नन्दन प्रसाद सिंह, डॉ. शिवनन्दन प्रसाद  सब्भे इनखा साहित्यिक परिवेश देलन। राजा साहब, हंसकुमार तिवारी, गुलाब खंडेवाल, जानकी वल्लभ शास्त्री के सानिध्य जयराम जी के मिलल। एखनिन के सौजन्य से १९५१-५२ ई. में जयराम जी के रचना ‘धर्मयुग’, ‘हिन्दुस्तान’ में छपे लगल। ‘उषा’ नाम के पत्रिका में भी इनखर कुछ गीत छपल। १९४८-४९ ई. से कवि गोष्ठियन में इनका नेउता मिले लगल।
    १९५२ ई. में उनखा पढ़े के चाव भेल। बी. एच. यू. में इनखर नाम बी.ए. में लिखावल गेल। १९५४ ई. जयराम जी उहंय से बी.ए. पास कैलन। १९५७-५८ ई. में बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय से ही एम.ए. हिन्दी परीक्षा पास कैलका।
   इहंय उनखा साहचर्य मिलल – आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी, हजारी प्रसाद द्विवेदी, पंडित विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, त्रिलोचन शास्त्री, पंडित बलदेव उपाध्याय के।
    एही सब विद्वानन के बीच इनखर गीत ‘‘बदरिया गावऽ हे कजरिया’’ इनाम से नवाजल गेल। १९५६ ई. में आचार्य पंडित ओंकारनाथ ठाकुर के शिष्यस्व में संगीत में स्नातक के डिग्री प्राप्त भेल।
   ‘चिजोर’,  ‘भुरूकवा उग गेल’, ‘तिरवेनी’, ‘टहटह इंजोरिया’, ‘पुरहर पल्लो’, ‘मुस्कान’, ‘निरंजना’, ‘विहान’, ‘सारथी’, ‘मगही’, ‘मगही समाज’, ‘गौतम’, ‘झरोखा’ ओगैरह में छिटपुट रूप से लगभग दू सौ गीत छप्पल हे।
    मगही कोकिल जयराम जी के मुदा पांच हजार से ऊपर गीत-कविता उनखर परिजन-पुरखन, शुभचिन्तक के वेदना में बन्हल सड़-गल रहल हे। ई सब गीत के छपाय से जयराम जी के समग्र मूल्यांकन तऽ होवे करत हल, मगही साहित के विशाल आंगन भी भर जात हल। वाद के घेरा से बाहर निकस के जयराम जी के गीत-कविता मूल्यांकन ला तरसइत हे। ८ दिसंबर २००६ ई. के दिन जयराम तन छोड़ देलन मुदा उनखर मन जब तलक सृष्टि के विधान रहत जन-मन से बन्हल रहत।
                            -प्राध्यापिका, समाजशास्त्र विभाग
                                      एस.डी.कॉलेज खुशडीहरा, परैया(गया)
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संस्मरण
कूकइत कोयल गुम हो गेल
                                          
                                                                     मिथिलेश
      
               पहिल तुरी जयराम जी के नवादा रेलवे क्वाटर के आगू चापाकल पर नहायत देखलूं हल। हम पियासल हली। लटफरेम पर के तीनियों चापाकल भी पियासले हल, से हम उनखे भिजुन चलि गेलूं। हम सहमेल बोललूं, ‘‘बड़ी पियासल ही, एक चुरू पीये देथिन?’’
     ऊ पलटि के देखलका आउ लोटा खंगहारि के पानी समेत हमरा दने बढ़ाबइत बोलला, ‘‘अभागेल होत जे पियासल के पानी नञ् पिलावत।’’
    हम बैठि के हिंछा भर पानी पीलूं आउ धन्यवाद बोलइत मुड़लूं कि पूछलका, ‘‘तों कलाकार बुझा हा।’’
     हम अचकचइलूं। ऊ कहलका, ‘‘अपने बांसुरी बादक हथिन?’’ उनखर नजर हम्मर भूदानी थैला से झांकइत बांसुरी पर हल।
   ‘‘कलाकार होना बड़गो चीज हइ भइया! हम तऽ जरी-मनी फूंकइ ले शुरूए कइली हे।’’ हम ठमकइत कहली।
‘‘सब अइसीं सीखऽ हऽ, कहां घर हन?’’
‘‘घर तऽ खखरी हइ।’’
‘‘काशीचक भिजुन?’’
‘‘जी हां, अपने के?’’
‘‘कारीसोवा, वजीरगंज भिजुन।’’
‘‘एन्ने?’’
‘‘वारिसलीगंज जइबइ। ओहां नेसनल हाय इसकुलवा में इंटरव्यू होवइ, ओकरे में, ‘‘ऊ कहलन आउ पूछलन,‘‘गड़िया के की खबर हे?’’
‘‘तिलइया छोड़ि चुकलो हें।’’
     हम तखनी बी.ए. करि के तइयारी करि रहली हल। वारिसलीगंज में हम्मर दोस्त केदार हल। ऊहे लिट्टी गली के सामने एगो जगह देला देलक हल।
     एक सांझ कुटरी के साथी रामनारायण मिलल। ऊ जानकारी देलक कि आझ नेसनल में एगो कवि कविता पाठ करथुन। हम पूछली, ‘‘कहां के कवि हथ?’’ ऊ कहलक कि ऊहे इसकुलवा के शिक्षक जयराम बाबू हथ। ऊ कवि आउ तबला वादक भी हथ। संगीत के बढ़ियां ग्यान हन। हिन्दी आउ संगीत दुइयो में बनारस से एम.ए. कइलन हें।
    आझ सांझ के हम दुइयो नेसनल स्कूल पहुंचे गेलूं। हम पहिल-पहिल ऊहां गेलूं हल। जखनी नोम्मा में पढ़ऽ हलूं, ओकर बुनियाद पड़ल हल। हम तखनी इहइं के बी.के. साहू में पढ़ऽ हली। ऊहइं के मैथ टीचर, सुखदेव बाबू प्रधान बनि के उहां गेलन हल।
    चबूतरा पर पांच-सात आदमी बैठल हला आउ लगभग पचास के संख्या में सुनताहर नीचे बेंच-कुर्सी पर हला। नगीच पहुंचलूं तऽ अचकचइलूं ई तऽ ऊहे हथ, जे नवादा में हमरा पानी पिअइलन हल। रेशमी कुर्ता आउ चूड़ीदार पयजामा में ऊ सचकोलवा कलाकार नियन लगि रहला हल। सुन्दर मुखाकृति पर बड़-बड़ करिया केस तबला के ठनक के साथ उनखर आभा आउ चमका रहल हल। श्रोता मुग्ध उनखर तबलावादन पर झूम रहलन हल।
तबला परे हंटा के ऊ कहलन, ‘‘अब तों सब कविता सुनऽ।’’
‘‘जी तबलबे पर सुनाथिन’’, एगो आदमी बोलला।
‘‘संगीतक साज खोजऽ हइ। साज में ढेर वाद्ययंत्र के जरूरत पड़ऽ हइ, ऊ हइ नञ्। काव्यपाठ में साज व्यवधान उत्पन्न करऽ हइ। ओकरा में कवि के कंठ वाद्ययंत्र के अभाव के अखरे नञ् दे हइ।
हम संगीत आउ काव्य पाठ के संक्षिप्त अंतर सुनके उनखर कविता सुनइ ले उत्सुक हली। ऊ बइठले-बइठले पहिले दुइयो हाथ के चुटकी से तबला के बोल निकाले लगला। हम चकित हली उनखर ई कला सुनके कि अचक्के रूक के ऊ क्षण भर ले भाव लोक में पहुंच गेला। हम अचकचइली – बिन वसंत के कोयल कुहकि रहल। उनखर कंठ से बरखा-गीत के निर्झरी बहि रहल हल-
‘‘बदरिया गावऽ हइ कजरिया
झूम गगन के अंगना....’’
अपूर्व कंठ स्वर!....वाद्ययंत्र बेकार!.....
‘‘........इन्द्रधनुष उगल जइसे
टंगल टंगना........................’’
चाक्षुष बिम्ब विधान!
‘‘हवा पुरबइया बहे डोलइ बीजना.......’’
निराकार में साकार के दर्शन! सजीव! श्रोता के पता नञ् चलल आउ एक घंटा बीत गेल। कवि-कंठ विश्राम में गेल आउ श्रोता आसमान से धरती पर!
     ई हल जयराम जी से दोसर परिचय! चले घरी उनखा से मिललूं। ऊ मुस्कुरा के सर-समाचार पूछलका आउ अतीत मिलन के इयाद देलइलका। हम दोनो मिलइ के वादा करि के चलि अइलूं आउ अप्पन मीरान में अइसन खो गेलूं कि ढेर दिना तक मिल नञ् सकलूं।
    ईहे बीच हम गोपालपुर स्कूल में योगदान दे देलूं। सचिवालय के नौकरी ई लेल छोड़ देलूं कि क्लर्क-किरानी के काम हमरा से नञ् होत।
    रामनारायण भी नेसनल में शिक्षक हो गेलन हल। ऊ ट्रेनिंग में चलि गेलन। जगह खाली हल। हम्मर इंटरव्यू जयरामे जी लेलन आउ साक्षात्कार के बाद कहलन, ‘‘निश्चिंत रहऽ, लेटर चलि जइतो। एक सलाह देबो – विद्यार्थी के अस्तर देखि के भाषा के प्रयोग करिहा। तोहर भासा तत्सम से बोझिल हो जइतइ विद्यार्थिन के।’’
   हम सौभाग्यशाली निकलली कि जे एक गीत सुनइ ले कछटि रहल हल, ऊ ऊनखर एते नगीच पहुंच गेल कि जयराममय हो गेल। एक घूंट के चाह हल, आकंठ डूबल हलूं। तखनी हम हिन्दी में लिखऽ हलूं, ऊ मगही दन्ने मोड़इत गेला। मन में बीज तऽ पढ़हे घरी पटना कॉलेज में महापंडित राहुल सांकृत्यानन बो देलन हल, ऊ इनखर संसर्ग से पात-पात निखरऽ लगल।
   ईहे बीच अचक्के जयराम जी हदसा उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक बनि के हमनी के त्यागइ के तइयारी करऽ लगला। कहि नञ् सकऽ हियो कि तखनी हमरा कइसन लगि रहल हल। हमरा से बढ़ि के दरद होल न होत धनुर्धर कर्ण के कवच-कुंडल त्यागइ में?
   खैर, जाय-जाय घरी एक संयोग हाथ लगि गेल। बासठ के अजगुत बाढ़ ढेर के इयाद होतो! छोट-मोट महाप्रलइये बूझऽ। ढेर जगह तबाही होल हल। सहायतार्थ पइसा जमा कइल जा रहल हल। स्थानीय सुगर फैक्ट्री में चैरीटी शो के इन्तजाम भेल। दू गो नाटक-चाणक्य आउ शाहजहां के कैद देखावल गेल हल। दुइयो के नायक बंगाली डॉक्टर चकलाधर बनला हल। उनखर सजीव अभिनय अगर वारिसलीगंज ले यादगार बनि के रहि गेल तऽ जयराम जी के गीत भी तनियों कम नञ् रहल-
‘‘एत्ते बरसल मेघ
कि धरती शीतल रे
एत्ते ढरकल लोर कि
अंगिया तीतल रे.....’’
के अइसन कठकरेज होतन, जेकर आंखि भीग नञ् गेल होत जयराम जी के गीत सुनि के?
    हमरा इयाद आवऽ हे नवादा जिला स्थापना दिवस! गांधी विद्यालय के मैदान में विशाल मंच आउ पंडाल बनल हल। लाख से ऊपर के भीड़ हल। मंच के उद्घाटन जयराम जी के गीत से भेलः
‘‘बनि गेल जिला नवादा हो दादा
बनि गेल जिला नवादा....!
....................................
....................................
वारिसलीगंज में मगही
मंडप हे एगो संस्था
ओकरे से खुलतइ विकास के
हमनी सबके रस्ता........... ’’
    हम आज सोंचऽ ही तऽ कविवर के कथन के भविष्यवाणी कत्ते सच लगऽ हे। नवादा जिला के सपूत, मगही माय के पूत, गोसपुर गांव के स्व. ब्रह्मदेव बाबू के तपःपूत डॉ. अरविन्द कुमार जब मगध विश्वविद्यालय में कुलपति बनि के अइलन, जे नेसनल उच्च विद्यालय के मेधावी छात्र हलन, मगही के ग्रह निवारण कइलन स्नातकोत्तर विभाग में मगही के अध्ययन-अध्यापन आरंभ करिके आउ ई भाषा के संबंध रोटी से जोड़िके।
फेन तऽ कत्ते तुरी जयराम जी के साथ जगह-जगह काव्य पाठ कइलू, उनखर स्नेह पइलूं।
    १९९६ के अगस्त महीना हल। नेसनल स्कूल के जे मंच पर जयराम जी के पहिल कविता सुनली हल, जर्जर हो गेल हल। ओकरा नया रूप देली हल आउ कवि-सम्मेलन से उद्घाटन करे चाहऽ हली। सोंचली हल जयराम बाबू के जरूर बोलम। संयोग से ऊ अपनइं आ गेला। आनन-फानन में एकल काव्य-पाठ के आयोजन कइली। कोकिल फेन कूकल। उनखर समय के अमराई तऽ उकनि गेल हल, बकि हम्मर हाथ के लगल नौ पेंड़ी-तुनतुन बाग जयराम जी के गीत सुनिके झूमि रहल हल।
    फिन तऽ उनखा साथ खून के संबंध जुड़ गेल। हम्मर छोट बेटी कविता के बियाह में ऊ अइला हल। उनखर समधि प्राचार्य केदार बाबू हम्मर नया समधि बनि के महफिल के मंच पर विराजमान हला। वारिसलीगंज तऽ जयराम जी के कर्मभूमि रहल हल। आगमन सुनि के भीड़ उमड़ि पड़ल तबियो एगो छोट-छिन कवि सम्मेलने हो गेल। जयराम जी के उपस्थिति में कविगण के अभाव तनियो नञ् खटकल।
     आउ २००६ के दिसंबर महीना हल। गया के रेनासां में पहिल बिहार फिल्म से फेस्टीवल आयोजित हल। मगही लेखक कवि के जमात में परमेश्वरी, परमानन्द, के.के.भट्टा, दीनबन्धु आउ उदय कुमार भारती आदि सामिल हलन। हम बाहरे-बाहरे गेलूं हल। पहिलइ से सोंचले हली कि लौटती जयराम जी से मिलते आव बकि की जानऽ हलूं कि मिलइ ले नञ् उनखर तेरही के जलतर्पण में सामिल होवइ ले जाव!

बंधु बसेरा
स्टेट बैंक बिल्डिंग
वारिसलीगंज(नवादा)
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संस्मरण
                                                      नञ् भुलाय जुकुर
                           
                                                         नागेन्द्र शर्मा बन्धु
     
        फूल खिलऽ हे मुरझाय ले, सुरूज उगऽ हे डूबइ ले, चान चमकऽ हे छुपइ ले तऽ आदमी जलमऽ हे मरइ ले। ईहे प्रकृत्ति के नियम हे....शास्वत....अनवरत चलइ वला, जे चलइत आउ चलइत रहत अनन्त साल तक।
     तेकरा से की? कांटा भरल फुनगी पर खिलइत फूलन के राजा गुलाब के मुस्कान भुलाना मुसकिल हे, सरद पुनियों के चान के नजारा भुलाना संभव नञ्, माघ में अप्पन किरिन से प्राणी मात्र के आहलादित करइवला गुनगुन धूप विसरना कष्टकर हे, ओइसहीं जे नर-नारी अप्पन मौलिकता के अमर छाप ई धरती पर छोड़ जा हल, उहे कहा हथ महान आउ उनखा भुलाना मुसकिले नञ्, असंभव हे। आउ अइसने महापुरखन में एगो सबसे अलग हला मगही कोकिल कविवर जयराम जी, जिनखर बिसरनइ असंभव हे।
      हमरा ऊ महापुरष के संपर्क में आबइ के, सुसंगति पावइ के सौभाग्य तऽ भरपूर नञ् मिललय, बकि महीने-दू महीना सही, उनखर शिष्य बनइ के सुअवसर जरूर मिलल। हम दियारा के ठहरली। हमरा बहिन वारिसलीगंज के माफी में बियाहल हे। हम तखनी अठवां में पढ़ऽ हलूं। संयोग से बहिन हियां अइलूं हल। मगह के केतारी आउ चूड़ा-गुंड़ में ओइसहीं लटपटा गेलूं जइसे खोटा-पिपरी। बहिन जाइयो ले नञ् दे आउ हमरा जाइयो के मन नञ् करे। ओहां गांव के नगीच गंगा के धार तऽ हल, बकि मगहिया कोलसार वला ईख के रसधार कहां? से हम इहइं रमि गेलूं। एक दिन बहिन कहलक, ‘‘ अरे बउआ! दिन भर एन्ने-ओन्ने भटकल चलऽ हे से गांव के छौड़कन के साथे इसकुलवा नञ् जाय? पढ़बो करमें आउ समटालो रहमें।’’
     आउ हम गांव के लड़कन के साथे नेशनल हाई स्कूल माफी बिना किताब-कॉपी के चली गेलूं। हमहूं सोंचलूं – जहिया तक रहम, किलास करम। नञ् होत तऽ कोपी खरीद लेम। अंदर गेलूं तऽ हम्मर नजर ऑफिस के आगू ठाढ़ एगो नौजवान अदमी पर पड़ल। हम तऽ टुक-टुक ताकइत रहि गेलूं – गोर, लमछर, छरहर, बड़-बड़ आंख, धनगर, गरदन तक झूलइत कुचकुच करिया केस, चुस्त पयजामा पर करिया सिरमानी। हम माफी गांव के एगो लड़का से पूछलूं, ‘‘अरे! इसकुलवा में सिनेमा के एगो हीरो कहां से आ गेलन हो?’’
 ऊ हंसइत कहलक, ‘‘सिनेमा के हीरो नञ्, हम्मर स्कूल के हिन्दी टीचर हथिन....जयराम बाबू।’’
‘‘अइसन सकलगर अदमी हम आझ तलोक नञ् देखली हे मरदे।’’ हम्मर मुंह से निकसल।
‘‘खाली सकलगरे नञ् हथिन, गुन भी हय, ई कवि के साथे-साथ तबला बजवऽ हथिन मरदे! सुनमहीं तऽ सुनते रह जइमहीं।’’ ऊ कहलक।
 ‘‘तोरो किलसवा में अइथुन?’’
 ‘‘अइबऽ करथिन। आझ पचमी घंटी हिन्दी हउ, सुनहीं हल।’’
 हम्मर उत्सुकता असमान चढ़ि गेल। टिफिन तक हम उनखे बारे में सोंचइत रहलूं। पचमी घंटी पड़ि गेल। लड़का-लड़की सम्मान में खाड़ हो गेलन।
 ‘‘बइठो!’’ सर कहलथिन आउ दू बेंच के बीचवला गलियारा में एक चक्कर लगा के ब्लैकबोड के सामने खाड़ होके बोललन-
 ‘‘आज तुन सब राष्ट्रकवि दिनकर को पढ़ो।’’
 ‘‘जी पहिले अप्पन एगो कबितबा सुना देथिन सर।’’ हम्मर बगल बइठल साथी खड़ा होके कहलन आउ बइठ गेलन।
 सरजी मुसकुरइला आउ चुटकी बजाबइत सुनावऽ लगला-
‘‘तितकी से मत खेल बुतरूअन,
जरि जइतउ तोर हाथ रे।
जे तितकी से खेल करे ऊ,
छुल-छुल मूते रात रे.....।’’
 हम तऽ उनखर मिसरी घोरल कंठमाधुर्य से चकित हली। हमरा इयाद हे, लड़कन भले हंसल हल, बकि उनखर चेहरा अबोध बालक नियन लगि रहल हल। ऊ अप्पन गीत समाप्ति करि के तुरतइ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के राष्ट्रीय चेतना पर बोलऽ लगला हल। हम आझ सोंचऽ ही तऽ लगऽ हे कि एगो सफल शिक्षक के जयराम बाबू नियन होवइ के चाही, जे विद्यार्थी के मन प्राण में बसि जाय।
    आखिर में हम मगही कोकिल जयराम जी के प्रति श्रद्धासुमन अर्पित करइत मगहियन भाय से अनुरोध करऽ ही कि उनखर जरावल दीया के बुते नञ् दिहा....बस!
                                                               - बंधु बसेरा
                                                             स्टेट बैंक बिल्डिंग
                                                            वारिसलीगंज(नवादा)।
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संस्मरण
             कवि तों चल गेला, हम हो रहलूं हे बेचैन
                        
                                                        रामरतन प्रसाद सिंह ‘रत्नाकर’
      
               पगडंडी के साधक मगही कवि धुन, के पक्का हथ आउ जतना दिन तकल जीवित रहला साहित्य भण्डार के भरे के काम में जी जान से लगल रहला मुदा अधिक कवि आउ लेखक सब दिन आर्थिक संकट से जुझे वला हथ। कुछ कवि सरकारी नौकरी में रहे के कारण अप्पन गृहस्थी ठीक-ठाक चला के दुनिया से विदा हो गेला। विदा होवे के बाद जिन्दा हे उनखर लिखल साहित्य मुदा कुछ ओइसनो कवि हथ जिनखर कम रचना उपलब्ध हे आउ अब जब ऊ ई दुनियां में नञ् हका तो उनखर इयाद करे वला साहित्यकार के सामने ढेर दिक्कत हे।
     सबसे पहिले जहिना मगही भाषा साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष हलूं हमरे साथ कवि जयराम सिंह भी उपाध्यक्ष हला ऊ पीढ़ी के कय गो कवि आउ लेखक अब जीवित नञ् हथ। तहिना साहित्य सम्मेलन के पत्रिका में अच्छा जीवन चरित सुरेश दुबे ‘सरस’ जी के लिखे के बात तय होल।
    इहां ई बता देना जरूरी हे कि सुरेश दुबे ‘सरस’ पटना में सरकारी नौकरी करो हला तहिना हम पटना में पढ़ो हलूं तो उनखा देखे लेल उनखर निवास पर गेलूं हल ऊ बड़ी जोर बीमार हला।
    बाद में पता चलल कि ऊ स्वर्गवासी हो गेला। उनखर परिवार से मिले लेल नालन्दा जिला के बिलाड़ी गांव गेलूं फिनु उनखर एक भाय चकवाय स्कूल में शिक्षक हला उनखा से मिले लेल चकवाय गेलूं उनखर धरम पत्नी से भी भेंट कयलूं एक दरद कि जहिना ऊ सरग सिधरलथिन हल तहिना परिवार के लोग तो दुख में हला। मुदा कुछ उनखर दोस्त जे साहित्य से जुड़ल हलथिन ऊ उनखर अप्रकाशित रचना अप्पन घर ले गेलथिन।
    परिवार के सदस्य कहे के ढंग से हम्मर परेशानी बढ़ल आउ लगल कि जइसन हम चाहऽ ही ऊ बात प्रकाश में नञ् आत मुदा एगो छोटा जीवन चरित्र साहित्य सम्मेलन पत्रिका में प्रकाशित हम्मर द्वारा होल।
     नवादा जिला के सादीकपुर गांव के निवासी जयनाथ पति के उपन्यास १९२८ में सुनीता आउ फुल बहादुर नाम से प्रकाशित भेल। फुल बहादुर के भूमिका में उनखर मगही भाषा के प्रेम स्पष्ट होल हल। एकर बाद ऊ कानूनी कुछ ग्यान के बात भी मगही में लिखला हल।
    तहिना ऊ मगही में किताब प्रकाशित कैलथिन हल तहिना छापे में ढेर दिक्कत हल। मन में आयल कि जयनाथ पति जी के इयाद में तहिना मगही मंडप के पत्रिका सतत् छप रहल हल में उनखर इयाद में एक अंक निकालल जाय, ई गुनी उनखर नाती रोहित सिन्हा से बात कैयलूं ऊ कहलथिन अमेरिका में उनखर पुत्र रहो हथ ऊ आवे वला हथ उनखा से भेंट करे के बाद कुछ विशेष जानकारी हो सकऽ हे।
    संभव हे २००३ के जून महीना में जयनाथ पति के पुत्र जी से भेंट भेल। उनखा से हम अप्पन योजना के बात कयलूं मुदा उनखा में कोय हलचल आउ प्रतिक्रिया नञ् होल। बात टाले के मकसद से कैलथिन हमरा पास तो विशेष जानकारी नञ् हे ई तोरा ठीक से हम्मर मेहमान बता देथुन फिनु नञ् तो ऊ आउ उनखर मेहमान कुछ बतैलथिन आउ योजना बन्द पड़ गेल।
   मथुरा प्र. नवीन के जनमस्थान तहिना के मुंगेर आउ सबके लखीसराय जिला के बड़हिया गांव हे। समाजवादी नेता कपिलदेव बाबू से भेंट मुलाकात के लेल बड़हिया स्टेशन के बाहर हल बैठल मिल जा हलाऽ मुदा ऊ हलाऽ कपिलदेव बाबू के विरोधी। हमरा मालूम होल कि अबकी कापो-गोबर-थापो उनखर बनावल नारा चुनाव के समय उनखर विरोधी लगावऽ हला।
   १९६८ में जब हमनी मगही मंडप वारिसलीगंज के गठन कैलूं तब सारथी मगही पत्रिका के उनखा संपादक बनावल गेल। ई कारण ऊ बराबर वारिसलीगंज आवऽ हला उनखर कविता के फक्कड़पन सबके अच्छा लगऽ हल।
     १४ जनवरी १९९९ में वारिसलीगंज सूर्य मंदिर के सभा भवन में हम्मर अध्यक्षता में कवि सम्मेलन होल। समय बीतल फिनु कानो कान मालूम होल कि मथुरा प्र. नवीन के देहावसान हो गेल। हम उनखर श्राद्ध के दिन गेलूं जे औपचारिकता होवे हे पूरा कैयलूं मुदा कोय कुछ बतावे वला नञ् मिलला। उनखर साहित्य जे कविता के रूप में हे ऊ तो जानऽ ही मुदा उनखर जीवन संघर्ष ओझल हे।
     कविवर जयराम सिंह के जनम गया जिला के कारीसोवा गांव में १९२८ में होल हे। जीवन के बड़गो हिस्सा नवादा जिला के वारिसलीगंज नेशनल उच्च विद्यालय के शिक्षक अउ हदसा उच्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक के रूप बितल हल से गुनी कवि जयराम के हम सब अपन मानो ही। तभी तो जब ८ दिसम्बर ०६ के ऊ संसार छोड़ देलका तो मगही क्षेत्र में सन्नाटा पसर गेल अउ बिहार मगही मंडप के तहत वारिसलीगेज अउ नवादा में शोक सभा  कैयल गेल अउ नवादा से प्रकाशित मगध के पुकार में १७ दिसम्बर ०६ के अक में पहिल बार उनखर जीवन के संक्षिप्त परिचय प्रकाशित भेल। ऊ हम्मर गुरूजी हलथिन, आउ जब कहियो हम उनखा पुकारलूं हल ऊ
वारसलिगंज खोशि-खोशि पधारलथिन हऽ।
     १ जनवरी २००३ में बिहार मगही मंडप के कवि सम्मेलन के उद्घाटन जयराम बाबू कैलथिन हल आउ उनखर साथ कवि सबके चित्र सतत् के २६ जनवरी अंक में प्रकाशित होल।
      वर्ष २००६ के ९ जून के पटना आकाशवाणी में भेंट भेल उनखर तहिना वार्ता आउ हम्मर कविता रिकार्ड होल।
     जयराम बाबू कहलथिन रत्नाकर के वार्ता आउ हमरा कविता देता हल तो आउ अच्छा होतो हल। हमरा हम्मर पुत्र के संघ लोक सेवा आयोग के परीक्षा में सफल होला पर बधाई देलका आउ हम्मर योजना हल कि शादी में आमंत्रित करम मुदा ऊ ८ दिसंबर २००६ के संसार त्याग देलथिन। ई बात के जानकारी होवे के बाद हम उनखर घर गेलूं फिनु १७ दिसंबर के मगध के पुकार में संक्षेप में उनखर जीवन वृत्त रखलूं मुदा जे चाहऽ हलूं ऊ नञ् हो सकल। केकरो दोष देना ठीक नञ् हे। मुदा नञ् तो साहित्यकार बिरादरी के आउ नञ् तो उनखर परिवार के सहयोग पा सकलूं ई गम हे।
                                                             अध्यक्ष
बिहार मगही मंडप
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संस्मरण
                    
                             जउ ऊ हम्मर पीठ ठोकलका
                                                       
                                                                  उदय कुमार भारती
        म्मर साहितिक इतिहास बड़ी पुरान नञ् हे। हम अपने मुंह से कइसे कहूं कि हम बचपन से साहित से जुड़ल हलूं आउ साहित में ई तीर मारलूं ऊ तीर मारलूं। बचपन से लेके जवानी तलुक अभावे में गुजरल, साहित सूझऽ भी हल तउ जिनगी के फटल अंचरा देख के सब भूला जा हलूं। जिनगी के फटल बेयाय में रेड़ी के तेलो लगावे लेल ठीक से नञ् जुरऽ हल। कहल जा हे कि अभावे आउ दुःख में जीये वला बड़का साहितकार होवऽ हइ तउ हम्मर साहित में कन्ने निराला आउ नागार्जुन जइसन धार हइ? हम उनखर पसंघबो भऱ तऽ नञ् हियै। आझ तलुक साहित हमरा लेल दूरे के चांद हे। बचपन आउ जवानी से साहित के हाल से अभी के हाल कुच्छो बेस हे, एही ने?
     तहिया हम साहित में डेगा-डेगी दे रहलूं हल जउ हमरा आदरजोग कोकिल कंठी जयराम बाबू से दर्शन होल। उनखर नाम, जस आउ लेखनी के बारे में बड़ी सुनऽ हलूं। हिसुआ ऐते-जैते उनखा देखऽ भी हलूं, पर साहित के सत्गंग ऩञ् होवे से उनखा से बड़ी दूर हलूं। हिसुआ ऊ मंजू जी के पास आवा हला। दीनबन्धु जी से उनखा खूमे लगाव हल पर हम दूर हलूं। गाहे-बेगाहे उनखा मंच पर से एक दू दफा सुन जरूर लेलूं पर ऊ कहां आउ हम कहां? फिनू कलकत्ता आउ दिल्ली में जिनगी के राह तलाशे में बड़ी दिन गुम रहलूं। जउ फिनू हिसुआ में पैर जमावे लगलूं तउ क्षेत्र के साहित के गतिविधि से परिचित होवे लगलूं पर सुने सुनावे भर। हम्मर जिनगी के गाड़ी जउ कुछ पटरी पर आल तउ हमहूं खुल के क्षेत्र के साहित्यिक गतिविधि में शामिल भेलूं। पहिले तऽ हिसुआ भर में राग अलापलूं पर जउ दीनबन्धु जी के साथे एन्ने ओन्ने बहटरे लगलूं तउ हम्मर कुछ आंख खुलल।
    हमरा इयाद हे वारिसलीगंज के एगो कवि सम्मेलन में जाय लेल हम आउ दीनबन्धु जी तिलैया स्टेशन से रेल में चढ़लूं। ऊहे रेल पर कविवर जयराम बाबू भी सम्मेलन में शामिल होवे लेल जा रहला हल। नवादा टिसन पर गाड़ी के मेल हल। एन्ने ओन्ने लटफारम पर चलते-बुलते दोसर डिब्बा में बैठल जयराम बाबू पर नजर पड़ि गेल, हम दीनबन्धु जी से कहलूं कि ‘‘अजी जयराम बाबू हथुन, चलऽ ने ऊहे डिब्बा में।’’
 दीनबन्धु जी के चेहरा भी खोसी से खिल गेल। दुन्नू डिब्बा बदल के जयराम बाबू के पास पहुंचलूं। दीनबन्धु जी ‘‘परनाम श्रीमान्’’ के अभिवादन कैलका। हमहूं परनाम कैलूं। ऊ जल्दी से हमन्हीं के बैठे लेल सामने के सीट पर जगह बनावे लेल जातरी से निहोरा करे लगला। हमन्हीं बैठ गेलूं। बात होवे लगल।
 ‘‘ई उदय भारती हथिन, हिसुआ के रहेवला बड़ी उत्साही हथिन, लिखऽ पढ़ऽ हथिन, बेस कविता सुनावऽ हथिन।’’ दीनबन्धु जी हम्मर परिचय देलथिन।
हमरा बड़ी गौर से देखे लगथिन। खूमे मुस्कुरैलथिन आउ पहिल सवाल कैलथिन-
‘‘तोहरा कोय घारा वला नञ् बिगड़ऽ हथुन, तू जे ई सब करऽ हो?’’
हम हंस के कहलियै, ‘‘केऽऽ... काहे लेल बिगड़तै, ई तो हम्मर हिंछा हइ, हमरा बड़ी सकून दे हइ।’’
 ऊ हम्मर जवाब पर थोड़े देर चुप रहलथिन आउ फिनू कहलथिन-
‘‘ ई जा रहलो हऽ वारिसलीगंज तोहर समय केतना बरबाद होतै, तोहर काज के हरज नञ् होतइ? कि करऽ हो?’’
     ऊ हम्मर इतिहास भूगोल खंघाले लगलथिन। हम बड़ी बाद में समझलियै कि ऊ हमरा ताड़ऽ हलथिन। हम उनखर सवाल के जवाब देवे से जादे उनखर रचना सुने आउ अप्पन रचना सुनावे लेल मचल रहलिये हल। हम उनखा से चलते-चलते गीत सुनावे के आग्रह कर बैठलियै। ऊ खोसी-खोसी ‘‘ॐ नमः शिवाय.......ॐ नमः शिवाय’’ रचना से कविता के दौर शुरू कैलका। उनखर रचना के बाद दीनबन्धु के गीत के दौर चलल। हम्मर हिंछा दबिये के रह गेल। हम कुच्छो नञ् सुनावे सकलूं तउ तक वारिसलीगंज टिसन आ गेल।
     कवि सम्मेलन में हम श्रोता आउ दर्शक के साथे बैठलूं। जयराम बाबू, दीनबन्धु जी सब्भे मंच पर हला। रत्नाकर जी के मंच संचालन में कवि सम्मेलन सूर्य मंदिर में हो रहल हल। दीनबन्धु जी के प्रयास से हमरा ऊहइं जयराम बाबू के आगू कविता सुनावे के मोका मिलल। हम हिन्दी में कविता लिखऽ हलूं, ओही सुनैलूं। सम्मेलन के बाद भी बड़ी हिंछा हल कि जयराम बाबू हम्मर कविता पर अप्पन प्रतिक्रिया देता हल। कुछ उनखर मुंह से टिपनी सुनतूं हल, पर उनखर प्रतिक्रिया नञ् मिलल। हां ऊ एतना लौटे घड़ी जरूर कलहथिन-
‘‘कुच्छो मगही में लिखहो।’’
     दोसर मुलाकात भी उनखा से कवि सम्मेलने में होल। जउ शेखपुरा के एगो कवि सम्मेलन में ऊ हला। रात के भी उनखे भीरी सुतलूं आउ खूमे कविता उनखा से सुनलूं, ओहां भी हम हिन्दी कविता सुनैलूं हल। सब्भे लोग हम्मर कविता से प्रभावित हो जा रहलथिन हल पर जयराम बाबू ओतना नञ् प्रभावित हो रहलथिन हल जेतना हम आशा रखऽ हलियै। हां ऊ हम्मर खेयाल आउ संज्ञान खूमे ले रहलथिन हल। धीरे-धीरे हम उनखा से खुल गेलियै। ऊ भी हमरा से आम कवि जैसन बातचीत करऽ लगलथिन। लेकिन ऊ बार-बार हमरा से पूछऽ हलथिन –
 ‘‘मगही नञ् बेस लगऽ हो?’’
    उनखर सवाल हमरा झकझोर दे हलै। हम मगही के प्रति अइसन कोय भाव नञ् रखऽ हलियै। लेकिन मगही के रचना नञ् लिखे आउ कवि सम्मेलन में नञ् पढ़े के चलते शर्मिंदा हो रहलिये हल। हमरा से एतना ई नञ् होवा रहले हल, ई मजबूरी पर हम कटके रह जा हलियै। हम चाह के भी मगही बोलियो नञ् पावऽ हलियै। उनखर सवाल के टिस हम्मर जेहन में बड़ी-बड़ी दिन तक रह जा हलै आउ दोसर बार जउ ऊ मिलऽ हलथिन....हम सिहर जा हलियै कि फिर ओही पूछथिन। एका दू बार ऊ कहलथिन जरूर कि – ‘‘तों बेस लिखंऽ हंऽ। ’’
    अभिलाषा मंच के बैनर तले हमरा ईयाद हे २६ जनवरी २००५ के हमन्हीं हिसुआ में बड़गर कवि सम्मेलन के आयोजन प्रोजेक्ट मुनक्का फुलचन्द साहु में कैलूं हल, जे में नालन्दा आउ नवादा जिला के ढेर मनी कवि के जुटान भेल हल। कविवर जयराम सिंह जी के भी बड़ी आग्रह पर हमन्हीं ऊ में बोलैलूं हल। ऊ सम्मेलन में वारिसलीगंज से कविवर मिथिलेश, गोविन्द जी तिवारी, कारूगोप, नवादा से ओंकार निराला, वीणा मिश्रा, उमाकान्त राही, नालन्दा से उदय शंकर बेशर्मी, रंजीत, हिसुआ से दीनबन्धु, सच्चिदान्द प्रेमी, विशुन लाल राज, अरूण देवरसी, शफीक जानी नादां, अनिल कुमार, प्रवीण कुमार पंकज, हरिहर प्रसाद, नवल किशोर शर्मा, शारदा कुमारी समेत कय दर्जन कवि उपस्थिति हला। हिसुआ के तत्कालीन प्रखण्ड विकास पदाधिकारी श्यामल पाठक आउ कृषि पदाधिकारी सतीश चन्द्रा काजकरम के अतिथ हला। अभिलाषा मंच के संयोजक मिथिलेश कुमार सिन्हा के मंच संचालन आउ प्रेमी जी के अध्यक्षता में जोरदार कवि सम्मेलन होल हल। जयराम बाबू ऊ सम्मेलन में तीन कविता सुनैलका हल। दू कविता तऽ मंच पर खाड़ होके आउ जउ सुना के बैठ गेला तउ सबके आग्रह पर बैठले-बैठले – ‘‘अगे माय गे माय ओकर मौगी कत्ते हइ ठोराही’’.... सुनैलका हल।
    कविता सुनावे लेल जउ ऊ खाड़ होला हल तउ ताली के गड़गड़ाहट आउ मिथिलेश जी के जोरदार परिचय से उनखर सोवागत करल गेल हल। हमरा इयाद हे ऊ गणतंत्र दिवस के मोका पर पहिल गीत सुनैलका हल – ‘‘हम्मर बगीया के रंग-बिरंग फूल, जेकर शोभा से सरग भी लजा हइ।’’
 भरल जनसमूह आउ स्कूल के बच्चियन उनखर गीत से मंत्रमुग्ध हो गेल हल। दोसर गीत-
 ‘‘क्या तुम नहीं जानते कि जाड़े के दिन छोटे आउ राते बड़ी होती हइ?’’
सब्भे श्रोता पर अमिट छाप छोड़लक हल। कविता सुनावे के बाद ऊ मंच से नीचे उतर गेला हल। उनखा से पहिले हम कविता सुना चुकलूं हल। ऊ बखत हम्मर कविता ‘बुफे के दावत’ पसंद कैल जा हल। हम मंच पर ऊहे सुनैलूं हल। मंच से उतरे के बाद हमहीं उनखा भोजन करावे लेल ले गेलूं। भोजन करावे के बाद उनखा अप्पन एगो मगही कविता के आधा अधूरा कुछेक पंक्ति सुनैलूं हल।
 ‘‘केन्ने जा हऽ कवि जी कविता सुनावे,
  मरिहऽ तू उधरे नञ् धारा देवो आवे....।’’
पंक्ति सुन के ऊ हम्मर पीठ ठोकलका हल आउ कहलका हल.....‘‘तों बेस लिखमीं हो’’। तोर कविता ‘बुफे की दावत’ भी बड़ी बेस लगलै। बड़ी बात कह दें हीं.... मगही के अंगना भी भरहीं....तोहनिये सब्भे से मगही के असरा हइ।
     हिसुआ में ईहे कवि सम्मेलन शायद उनखर आखिरी कवि सम्मेलन हलै। तहिये ऊ बड़ी कमजोर हो गेलथिन हल आउ बड़ी कम कहंई आवऽ जा हथिन। हमहीं उनखा मार्ग व्यय के लिफाफा भी चुपके से थमैलियै हल- ‘‘स्वीकार करथिन श्रीमान्!’’ ऊ मुस्कुरा के ले लेलथिन हल।
    उनखर सादगी, शीतलता, मृदुभाषिता, जल्दी घुल-मिल जाय के गुण, कुशल-क्षेम पूछे के सहजता, पारिवारिक पृष्ठभूमि जाने के उत्कसुकता....सब्भे के दिल में रच बस जा हल। ओइसन मिलनसार, सहज आउ व्यवहार-कुशल बड़ी कम साहितकार होवऽ हथिन। हम्मर दिल में ऊ आझ भी एगो प्रतिमान बनके स्थापित हका। उनखर सवाल आझ भी मन में गूंजऽ हे.....‘‘तोरा कोय नञ् बोलऽ हउ, जे कविता सुनावे जा हीं, मगही तोरा बेस नञ् लगऽ हउ?’’ जैसन सवाल हमरा मगही लेल उद्वेलित करऽ हइ। काश! कि हम मगही लेल कुछ कर सकियै? ई हम्मर मगही अप्पन मुकाम तलुक पहुंचै....उनखर सपना पूरा होवइ.....उनखर जरावल जोत सदा जरैत रहै.....उनखर प्रतिमान.....दिव्य रौशनी....उनखर अनुभव....हम्मर आगू आवे वला पीढ़ी के मार्ग के सदा आलोकित करते रहै....ईहे कामना के साथ हम उनखा एक बेरी फिनू सरधासुमन अर्पित करऽ हियै।
-हिसुआ, नवादा
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कविता-कियारी                         
                                                     
                                                                   सरधा सुमन
                                                                                           
                                                                                                  दीनबन्धु

हिन्दी मगही साहित के, सेवा कइलन अविराम।
अमर कवि पूजल जइतन, मगही कोकिल जयराम॥
माय शारदा के बेटा ई, भगति में गुण आगर,
प्रकृत्ति पूजक साधक जे, गागर में भरलन सागर,
बिना ताज के रहला, हर महफिल घनश्याम॥
अमर कवि पूजल जइतन, मगही कोकिल जयराम॥
देह भले हे नश्वर सबके, नाम अमर रह जाहे,
परहित जे जीवन जीये, ऊ गुणिये सदा पुजा हे,
जिन्दा दिल जिनगी जीये के, दे गेलन पैगाम॥
अमर कवि पूजल जइतन, मगही कोकिल जयराम॥
छपल अनछपल इनखर साहित, हमनी ले हे धरोहर
स्मृत्ति में छप्पे अभियो तो, बने हमर पथदर्शक,
दीनबन्धु कारीसोवा कविअन ले चारोधाम॥
अमर कवि पूजल जइतन, मगही कोकिल जयराम॥
               
-नदसेना, मेसकौर, नवादा
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कविता-कियारी
जयराम सिंह जी के चार गो जन कविता
(१)

घर-घर गूंजे मगही गान

हे सरसती मइया हमरा दा अइसन बरदान कि
घर-घर गूंजे मगही गान।
एहे मगहिया देश जहां के, राजा नाम कमइलन,
चन्द्रगुप्त, चानक्य, महावीर, गौतम धाम बनौलन।
राजगीर, नालन्दा, बोधगया, पटना में अइलन,
मगही में संदेश सुना के हो गेलन भगवान।
कि फिर से गूंजे मगही गान।।
मगह देश के भाषा-मगही, हल भाषा के रानी,
हिन्दी के ई सखी सहेली, एकर मधुरी बानी।
दोसरा के अप्पन धन देके बन गेल अपने दानी,
अखनौ एकरा पास बहुत धन, नुकल-छिपल मनमानी।
अगर दया करके थोड़े सा दे दे हो तू ध्यान।
तो फिर से गूंजे मगही गान।।
सब भाषा में होड़ लगल हे, अखने की हम कहियो?
मैथिली-भोजपुरी-मगही के कौन बात हम कहियौ?
मगही के पीछे धकेल दे हथ, अब कैसे सहियो?
देख दिनन के फेर बतौलन रहिमन चुप हो रहियो।
अब नीके दिन आ गेल एकर दे दा नया बिहान।
कि घर-घर गूंजे मगही गान।।

(२)

धरती करे बियाह, उतरलै बदरा के बरियात रे।

धरती करे बियाह, उतरलै बदरा के बरियात रे।
बाजा गाजा नाच मोजरा सब कुछ लैलक साथ रे।।
धरती सज-धज बनल बहुरिया,
कसमसाल गदराल उमरिया।
बदरा के टेढकी पर से नभ दुल्हा लख मुस्कात रे।
धरती करे बियाह उतरलै बदरा बरियात रे।।
छितिज छोर तट पर सामियाना,
जेकर नीचे होवे गाना।
धुआं-पानी खातिर हावा सिर पर घट ले जात रे।
धरती करे बियाह उतरलै बदरा बरियात रे।।
दादुर बजवै मुंह के बाजा,
सहनाई बाजा के राजा।
बजा रहल हे सब झिंगुर मिल धुन पर धुन-धुन माथ रे।
धरती करे बियाह उतरलै बदरा बरियात रे।।
ठनका ठनके बाजे तबला,
बांध घुंघरूआ नाचे चपला।
पनसोखा के वीना पर सरगम बजवे बरसात रे।
धरती करे बियाह उतरलै बदरा बरियात रे।।
नभ सांवर धरती है गौरी,
जइसे कांधा राधा-जोड़ी।
चंदा के उबटन से दुलहिन के देहिया अवदात रे।
धरती करे बियाह उतरलै बदरा बरियात रे।।

(३)

की करतै कड़कड़िया रौदा?

बड़ी सबेरे अंकुरी खाके, पीलियै ताड़ी(कचरस) चाख के,
की करतै कड़कड़िया रौदा, दुपहरिया बैसाख के।।
पछेया के हाही में गोहुम, बूंट के ऊपर दमाही हे,
खरिहानी में हमर परीछा, चल रहलो ई छमाही हे।
गुल्लर आउ पीपर के पोकहा, नस्ता किसमिस दाख के।
की करतै कड़कड़िया रौदा, दुपहरिया बैसाख के।।
अलमुनियां के बरतन में, भोजन कोरहन के सतुआ हे,
दोल के जल से सान के खाही, लगे कि जैसे हलुआ हे,
हम किसान के असली बेटा, काम हमर हे लाख के।
की करतै कड़कड़िया रौदा, दुपहरिया बैसाख के।।
पवन देव कटुआ के पेंभी से, हम्मर सिंगार करे,
वरून देव भी उदर उदधि में, लूक लहर संहार करे।
छाते छात बनल ही शंकर, भसम रमौले राख के।
की करतै कड़कड़िया रौदा दुपहरिया बैसाख के।।

(४)

सुनले हमर कहानी दादा

सुनले हमर कहानी दादा, सुनले हमर कहानी।
विपत के मारे कखनौ अंखिया से न थमऽ हे पानी।।
सुनलूं देश सुराज हो गेलै, मिलतै रोटी कपड़ा,
सूअर-बखोरी झोपड़ी हटतै, होतै छौनी खपड़ा,
बुतरून हमनिन के भी पढ़तै सरकारी स्कूल में,
दवा-दारू औरत-मरदन के मिलतै कितो मुफत में।
लेकिन ई सब भेलै नै कुछ, बढ़लै परेसानी।
सुनले हमर कहानी दादा, सुनले हमर कहानी।।
सुबह समय से बैल साथ हम रोज सांझ तक खटलूं,
सावन-भादो जाड़ा में भी उघारे देहिया रहलूं,
तीन सेर ले धान मजूरी, सांझ होलै घर अइलूं,
अप्पन बुतरून रोज बिलखते, इने उने हम पइलूं,
हम भूखल ही लेकिन, बरदा, जा घर चाभलक सानी।
बैलों से बदतर हालत है सुनले हमर कहानी।
सुनले हमर कहानी दादा, सुनले हमर कहानी।।
ओहे धान के चूर बहुरिया, अंकड़ा चाउर सिझावे,
भूखल बुतरून के झूठ-मूठ कह खिस्सा कहीं बझावे,
झरल जलावन, सीझल न चउरा अध कचो मड़गीला,
सब उलझ देलक कठौत में रख थोड़े अपने ला,
आठो बापुत एक साथ हो खा कुल्ले फिर मांगे,
हमनै कहलूं देवै लेक, तो लगलै बुतरून काने,
अप्पन हिस्सा भी दे देलकै तइयो नै पेट भरलै,
आउ खैवै मा आउ खैवै मां देर-देर तक रटलै,
जब देख लेलक खाली हंड़िया तब पानी पी उठले,
जा पोआर के तर में सट-सट घुस-घुस के सब सुतलै,
मेहरी भूखल, हम अध भूखल रहलूं दुन्हूं प्राणी।
सुनले हमर कहानी दादा, सुनले हमर कहानी।।
हमरे उपाजवल, सब अनजा, चना, मूंग, जौ, चौरा,
पर हमरे इने उन्नै ढनके सब छौंड़ी-छौंड़ा
कपड़ा, चीनी, तेल-फेल सब हमरे मेहनत से है,
लेकिन गुदड़िया लगल देह में, घर अन्हार से भय है,
ई सासन से कत्ते अच्छा हल अशोक के सासन,
एतना दुख नै हल पहले, नैहल एतना रोज भासन,
मोटकन के अलबत सुराज खून चूस हमिन के दिन-दिन,
मोटा खूब होवल जा हे दिन रात रूपैया गिनगिन,
नञ् अहिंसा के सासन है, हौ सासन मनमानी।
सुनले हमर कहानी दादा, सुनले हमर कहानी।।
बहुत सहलियौ घोर बिपतिया अब न अधिक हम सहबौ,
समझ गेलियौ सब तोर बुधिया, नै अधीन तोर रहबौ,
हम अप्पन हक लेबौ लड़के बचवऽ हो के? देखबौ,
ई नञ् होतौ हो अब भैया, तू खैमा हम तकवौ?
एने दाखिल खारिज करवै ओने बने भूदानी।
सब किसान मजदूर मिल करवौ क्रांति के अगुआनी।।
सुनले हमर कहानी दादा, सुनले हमर कहानी।।
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पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात

रचना मगही साहित के प्रचार-प्रसार के लेल ईहाँ रखल गेल हऽ। कौनो आपत्ति होवे पर हटा देल जात।

निहोरा

मगहिया भाय-बहिन से निहोरा हइ कि मगही साहित के समृद्ध करे ले कलम उठाथिन आऊ मगही के अप्पन मुकाम हासिल करे में जी-जान से सहजोग करथिन।

मगही मनभावन पर सनेस आऊ प्रतिक्रिया भेजे घड़ी अप्पन ई-मेल पता जरूर लिखल जायताकि ओकर जबाब भेजे में कोय असुविधा नञ् होवै।

मगही मनभावन ले रचना ई-मेल से इया फैक्स से हिन्दी मगही साहित्यिक मंच ‘शब्द साधक’ के कारजालयहिसुआ पहुँचावल जा सकऽ हे।

शब्द साधक
हिन्दी मगही साहित्यिक मंच
हिसुआनवादा (बिहार)


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रचना साभार लेल

चिजोर, काव्य सेंगरन से।

http:magahimanbhavan.blogspot.com