सोमवार, 23 जुलाई 2012

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-९


मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-९
मगही मनभावन
मगही साहित्य ई-पत्रिेका
        वर्ष -                                अंक -                    जून-जुलाई २०१२
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                     ई अंक में
दू गो बात.......
संपादकीय
कहानी
आग – रवीन्द्र कुमार
हाय – अछूत भानु
लेख-निबन्ध
नवादा जिला के साहित्य साधना – हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी
कविता-कियारी
मर के हमरा जीना हे – श्रीनन्दन शास्त्री
मथुरा प्रसाद नवीन के दूगो कविता
बिहार गान उदय शंकर शर्मा
मृत्युंजय मिश्र के करूणेश के दूगो ग़ज़ल
मिल के बनवें सुत्थर रे – रामजी सिंह
मुँह के रोटी पैसा वाला छिन रहल – भाई बालेशवर
खड़ा नञ् होइहऽ भोला भइया – जयप्रकाश
मगह के आयोजन
बरबीघा के मगही हास्य कवि सम्मेलन
हरनौत के मगही कवि सम्मेलन
मगही एकता मंच, जमशेदपुर के स्थापना दिवस
विविध
पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
निहोरा

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दू गो बात.........
      मगही तोहर मनभावन बनल रहै एकर प्रयास में मगही मनभावन के नौवाँ अंक लेके खाड़ होलिए हऽ। ई छोटगर मगही साहित ई पत्रिका के माध्यम से ढेर मनी सामग्री अपने सभे के नञ् दे सकऽ हियै, एकर मलाल रहऽ हइ, लेकिन एतने अपने सभे पढ़ ले हथिन तऊ संतोष होव हइ। एतने पढ़ के अप्पन विचार देते रहथिन, तउ हम्मर हौसला बनल रहतै। हम अपने सभे से विचार माँगऽ हियै, सुझाव माँगऽ हियै नञ् कि अप्पन कोय बड़ाय।
      ई अंक के सम्पादकीय में कुछ अप्पन मन के सुझाव आउ उद्गार रखलियै हऽ। ई केतना सटीक हइ, अपने तोलथिन। ईमे रखल गेल दूगो कहानी में पहिल कहानी मगही के सशस्त कलमकार-कहानीकार केसरी कुमार के आग हइ। केसरी कुमार मगही के पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी मानल जा हथिन। ई जेतना लिखलथिन उतने से मगही तर गेलइ। अप्पन दमदार कलम से ई मगही के ऊँचाई देलथिन। ई सार्थक कहानी आग जरुर तोहर ह्रदय के ताप बढ़ैतै. दोसर कहानी अछूत भानू के लिखल हाय हइजेकरा में एगो नेता के चरितर के झांकी हइ। नेता मरे घड़ी अपप्न करनी के इयाद करऽ हइ, ओकरा ऊ वखत जिनगी के सच सामने आवऽ हइ, ओकर पाप भरल करम के बोध होवऽ हइ।
       कविता कियारी में श्रीनन्दन शास्त्री के मर  के हमरा जीना हे वीर रस के दमगर कविता हे, जेकरा में ऊ देस के मजदूर-किसान, दबल-कुचलल के दरद में भी जोश भरे के काज कैलका हऽ. ओकर नियति केझेले लेल ओकरा में दम भरलका हऽ. मगही के संत कबीर मथुरा प्रसाद नवीन के लिखल दूगो कविता उठो अपने से आउ आखिरी चिठ्ठी व्यंग्य के पजल तलवार के धार जैसन हइ। आखिरी चिठ्ठी इनखऱ एगो दमाही में जोतल अदमी के वेदना हइ, जेकरा ऊ ऊपर वला के नजीक पहुँचैलका हऽ। इनखर व्यंग्य के धारा आउ स्तर एकरा में देखल जा सकऽ हइ। ऊ सरकार आउ तंत्र पर चोट करे के साथे-साथ ऊपरवला के भी नञ् छोड़लका हऽ। उठो अपने से कविता से दिनकर जैसन इनखर शौर्य और ललकार लौकऽ हइ।बिहार गान में उदय शंकर शर्मा अप्पन प्रदेस के सचोलका गौरव गान कैलका हऽ। मगही के सधल ग़ज़लकार मृत्युंजय मिश्र के दूगो ग़ज़ल रखल गेल हऽ, जेकरा रचनाकार जिनगी के सच के छूएत दमगर पंक्ति से सजैलका हऽ। गीतकार जयप्रकाश खड़ा नञ् होइहा भोला भइया के रचना १९८२ में कैलका हल। एकरा में अप्पन देस में चुनाव जीते लेल जे हथकंडा अपनावल जा हे, ओकरा संदर्भ में रखके रचनाकार ई बतावे के कोरसिस कैलका हऽ कि राजनीति सीधा आउ साफ-सुत्थर छवि के लोगबाग के बस के रोग नञ् हे.। डॉ. रामजी प्रसाद आउ भाय बालेश्वर के रचना अपने के दिल पर छाप छोड़े के काज करतै।
उदय कुमार भारती
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सम्पादकीय.......
     आझ ऐसन काल में भी हम्मर मगही जीवन्त हे। जऊ इन्टरनेट आउ हाइटेक भासा संप्रेषण के युग आ गेल हऽ, आउ भासा के जिंदा रखे के कारज आसान नञ् हे।  भासा के अस्तित्व के बचैलै रखना आझ बड़गर चुनौती हे। ऐसन मानल जा रहल हे कि अब ऊ दिन दूर नञ् हे जब कलम आउ कागज से अदमी के नाता टूट जात। ऊ लैपटॉप, डेस्कटॉप में लिखत पढ़त। तइयो हम्मर मगही करोड़ों लोगन के जुबान पर हे। हम्मर मगही के अतीत जेतना सुनहर हल वर्तमान भी उतने बेहतर हे। मगही के हरियर घास पर अतीत काल में जे अमृत छिटाल हल, ओकर अंश से अभी तलूक हम्मर मगही के जड़ पोठगर हे। ई नञ् मुरझाल हऽ आउ नञ् एकरा भविस में अइसन कोय खतरा हे। मगही भासा अप्पन सभ्यता-संस्कृति के जोगैले अभियो पिछलका दशके से आउ उठान पर हे। एकर क्षेत्र बढ़िये रहल हऽ। मगही जैसन लोकभासा के भारत जैसन देश में बचल रहे के जरुरत हइ। एकरा प्रयास प्रत्यक्ष इया अप्रत्यक्ष रुप से सभे भासा-भासी कबूल करऽ हथिन। काहे कि ऐकर अप्पन लोक संस्कृति हे। एकर जहान में अनुपम देन हइ।
     ऐसन में मगही के थोड़े आउ सींचे के जरुरत हे। समृद्ध स्तरीय आउ समकालीन साहित से। मगह में साहितिक प्रतिभा के कभी नञ् हे। हम्मर मगह के पूत दोसर भासा में बुलन्दी के आसमान छू रहला हे। उनका भी मगही लेल सोंचे के चाही। अभी मगही जे काल से गुजर रहत हऽ। ऊ काल में उनखर योगदान आउ महातम रखऽ हे। जानकी वल्लभ शास्त्री जैसन साहितकार के नञ् भूलऽ जा सकऽ हे, जे मगही लेल काम हिरदा से शुरु कैलथिन हल। बाबा नागार्जुन के नञ् भूलल जा सकऽ हे, जे हिन्दी के महापुरोधा रहते, मैथिली ले समर्पित हला।
     मगह के साहितकार दोसर भासा ले काम करैत मगही के समृद्ध कर सकला हऽ। उनखा मगही लेल काम करे ले हम निहोरा करबै आउ मगही के साहितकार के भी दायित्व बनऽ हइ कि उनखा प्रेरित करथिन। शैवाल, नचिकेता, शेखर, नरेन, प्रेम कुमार मणि, जयनन्दन, लक्ष्मण प्रसाद, मननोहन पाठक, प्रो. बी.बी. शर्मा  से मगही के आसा हे।
      मगही के समृद्धि करे आउ निखार में हम्मर आलोचक आउ समीक्षक के भूमिका भी अहम् हइ। उनखा भी समीक्षा के कसौटी पर विधा के स्तर के कसे पड़तै। समीक्षा के नयका शैली के उपयोग करे पड़तै। साहितकार के कड़वा घूँट पिलावे पड़तै, मुँह देखली गलबात आउ समीक्षा मगही के विकास में बड़का बाधा हे। सो गो मरल रचना लिखे से भला हे एगो दमदार रचना लिखना। साहितकार लिखके की करता जब उनखर रचना में साहिते नञ् हे। साहितकार के तपा के निखारे के काम आलोचके के हे।
      युग, समय आउ वाद के अनुसार रचनाकार के रचना और शैली में बदलाव लावे के जरुरत हइ। सौंसे जगत में जे ज्वलंत मुद्दा हे, जेकरा पर दुनिया के साहितकार लगल हथिन ओसने सन्दर्भ के रचना वर्तमान के परिवेश में लिखल जाए। अझका हम्मर संस्कृति के साहित बनावे के कोरसिस करे के जरुरत हइ, तबे हम दोसरका भासा के मोकाबला में खड़ा रह सकबै।
     साहित के समृद्धि में अकादमी के भूमिका के नकारल नञ् जा सकऽ हे। अकादमी के दायित्व बनऽ हइ, भासा के हरेक विधा के समकालीन संकलन तैयार करे के आउ ओकरा जनजन तक पहुँचावे के। जउ तलुक मगही के उच्च साहित देश-विदेश के लाइब्रेरी, स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी में नञ् सजतै तउ तक मगही के विकास नञ् होतै।
     मगही के स्तरीय और श्रेष्ठ बनावे ले सेमिनार आउ गोष्ठी के जरुरत हइ। खाली कवि सम्मेलन से मगही के विकास नञ् होतै। समकालीन मगही साहित के आधुनिक चेतना से भरे लेल आउ दशा-दिशा तय करे लेल विचार-विमर्श के जरुरत हइ। जउ दस गो आलोचक, समीक्षक आउ जानकार भरल सभा में मंथन पर मंथन नञ् करथिन। तउ साहित के मख्खन कैसे निकलतै।
      आउ आखिर में एगो बात कि साहितिक आयोजन खाली साहित सेवा आउ साहित के हित ले होवै। साहित के आधार बनाके राजनीति आउ दोसर काज नञ् सधावल जाय। आझ परिपाटी बनल जा रहले हऽ कि नाम सिहित के आउ काम राजनीति आउ अप्पन महत्वाकांक्षा के। ऐसन आयोजन में जाके भी मन क्षोभ से भर जाहे आउ साहित के दुर्दशा पर रोवे के मन करऽ हे। साहित और साहितकार के फिल इन द ब्लैंक्स’ के जैसन प्रयोग करल जा हे। नाम साहित के होवऽ हे आउ काम नेता आउ अधिकारी के। साहित ठगल रह जा हे। जुगाड़ु साहितकार, नेता आउ अधिकारी के माला पेन्हा के अप्पन काम सधा ले हथिन। अप्पन-अप्पन छाती पर हाथ धर के ई सच पर सोचिहऽ... एकरा हम्मर व्यंग्य नञ् समझिहऽ।
- उदय कुमार भारती
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कहानी
                                                                            आग
                                    रवीन्द्र कुमार
क्सीजन के सिलिंडर हटावल जा चुकल हे। बूँद-बूँद खून रामनाथ जी के नस में टपक रहल हे।
 -डागडर साहेब, का उम्मेद हे ?
डागडर साहेब कुछ नऽ बोलऽ हथ। रामनाथ जी के लइका विनय के इसारा से बोलावऽ हथ आउ फालतू अदमी सबके भीड़ हटावे ला कहऽ हथ।
रामनाथ जी के होस आयल। आँख खोलऽ हथ तो देखऽ हथ कि उनखर बड़का लइका विनोद एगो टूल पर बइठल हे। उनखर मेहरारू, बेटी, सब उहीं पर खड़ी हथ। अस्पताल के कमरा हे।
डागडर साहेब पहुँच गेलन।
-“कहिए प्रोफेसर साहेब, कैसा महसूस कर रहे हैं ?” ‘ठीक है। रामनाथ जी के मुँह से निकसल। फिन ऊ आँख मूँद लेलन। डागडर साहेब गट्टा पकड़लन आउ नाड़ी के गति जाँचे लगलन...... नर्स, इंजेक्शन......।
रामनाथ जी घनघोर नींद में चल गेलन।
कलेन्डर के केत्ते पत्ता उलटा गेल, रामनाथ जी के पता नऽ हे। मगर आँख खुले पर देखऽ हथ, एगो दरोगा, दूगो सिपाही के साथ खड़ा हथ। प्रोफेसर साहेब, आपको गोली कैसे लगी ? हमलोग रिपोर्ट लेने आए हैं।– दारोगा जी बोललन।
 रामनाथ जी फिन आँख मूँद लेलन। सब बात इयाद पड़े लगल।– धाँय से एगो अवाज होल हल। अवाज सुने के पहिले या साथे-साथ ऊ गिर पड़लन हल। भुइयाँ पर गिरके छटपटा रहलन हल। कुरता से खून बह रहल हल। बदन अइँठ रहल हल। ओकर बाद सुस्ती......खूब सुस्ती......। लइका हाथ छोड़ा के भाग चलल। रो रहल हल। चिल्ला रहल हल।......बाबू हो बाबू......बाबू हो बाबू......मइया गे। ......रामनाथ जी लइका के पीछे दउड़ रहलन हल।......ठहरो ! ठहरो !! फिन से एगो अवाज। रामनाथ भुइयाँ पर गिरके छटपटा रहलन हल।
......पकड़ ले सरवा के ! ......भाग न जाऊ ! चोरबत्ती के रोसनी उनखर सौंसे बदन पर फइल गेल हल।......अरे ! ई तो कुटुम हथ ! ......
घटना टुकड़ा-टुकड़ा करके रामनाथ जी के इयाद पड़ऽ हे।......एगो बुतरू के रिरियाए के अवाज कान में पड़ रहल हल। बुझा हल जइसे कौनो ओकरा डेंगा रहल हल। मन में खेआल आयल हल- ई बंसीधर जी के लइका तो नऽ हे, जे दीओबत्ती जरे पर घर नऽ लउटल हल......उनखा इयाद पड़ऽ हे बंसीधरजी के घबड़ायल चेहरा......उनखर भाय के घबरायल चेहरा......
रामनाथ जी गाड़ी पकड़े ला बंसीधर जी के हिआँ से चल देलन हल। टीसन पहुँचे के पहिले ई सब घटना घट गेल हल। एक मिनिट ला असमंजस में पड़ गेलन हल। फिन,अवाज दन्ने, तिरछे कोना काटते, चल देलन हल।......लइका पाँच मिनिट के दूरी पर हल।......लइका नजीक पहुँचियो गेलन हल।
कउन हे ’ ? – एगो अवाज आउ एगो सवाल सुनाय पड़ल हल !
हम रामनाथ।
रामनाथ के ?’
 कहली ने, हम रामनाथ,एगो अदमी।...... दु-चार गो ललटेन हे! दस-बारह गो अदमी हथ। एगो अदमी एगो बुतरू के हाथ धयले हे! बुतरू रो रहल हे, चिल्ला रहल हे! ओकर गाल पर तमेचा जब-तब आ बइठऽ हे।
 बाबू हो बाबू! ......बाबू हो बाबू......मइया गेऽ!......सवाल फिन होल हल -कइसन अदमी?......रात के तोरा एन्ने आवे के मकसद ?’
 एगो बच्चा के रिरियाए के अवाज सुनली।......हमरा लगल जइसे ऊ कउनो मोसीबत में फँस गेल हे।.
मोसीबत से उबारे वला, तूँ कउन हऽ?........ललटेनमा तनी नजीक लाव रे! ई कोनो खोफिया लगऽ हउ।......दू जुआऩ लपट के गटवा दून्नू थाम ले।....... दू जुआन गट्टा धर लेलक हल।
 हँऽ ठीक हे! .......धोकड़िया आउ फेंटवा में तनी टोइया मार ले। देख ले, कहीं टिपटिपटिवा तो नञ् धइले हउ।
 तेसर अदमी उनखर खनतलासी लेलक हल आउ कहलक हल- कुछ नऽ हे सरदार!’....... फिन सवाल होल हल- तूँ कौन हऽ ? रात में काहे बउड़ायल चलऽ हऽ ?’
 जेकरा सरदार कहल गेल हल, ऊ बोलल हल, ई अदालत में एकरो सुनवाय हो जयतइ! अभी तनी छउँड़ा के फइसला कर लेवे दे।
 रामनाथ जी के इयाद पड़ऽ हे। ऊ घबड़ा गेला हल जरूर, मगर परगट रूप में ढाढ़स बाँधले हलन।………
 साढ़े सात बजे घड़ी देख के बंसीधर जी के हिआँ से चललन हल गाड़ी पकड़े ला। टीसन पहुँचे में मोसकिल से तीन पाव जमीन आउ रह गेल होत कि बिच्चे में अपने से जोखिम में फँस गेला हल। बंसीधर जी के इहाँ अप्पन बेटी के बियाह ठीक करे ला गेलन हल। बंसीधर जी के छोटका बेटवा सँझउँकिए से गायब हल, घर न लउटल हल। लोग चिन्तित हलन। ई हाल में बातचीत पर जादे जोर नऽ देके राते के लउटल वाजिब समझलन हल। लोग रोकलन हल- रात के कहाँ जयबऽ ई का कौनो सहर हे भिनसरवे जाना बेस होएत।
 कहलन हल - अभी साढ़े सात बजल हे। साढ़े नौ के गाड़ी हे। डेढ़ घंटा के मोसकिल से रस्ता हे।
 मगर ई रात के......?’
 कोय बात नऽ हे। हमरा पास हइए की हे? पाँच-दस गो रुपइया। एगो घड़ी। फिन हँस के कहलन हल- कौनो जबरदस्ती करत, तो दे देम। ......कुछ जरूरी काम हे। न तो अपने के बात नऽ उठयती हल। आउ दंडवत-बन्दगी करके ऊ चल पड़लन हल।
 रामनाथ जी अराम करे चाहऽ हथ। करवट बदले चाहलन। पर नऽ बदल सकलन। आँख मूँद लेलन......।
 बाबू हो बाबू!......बाबू हो बाबू!’………लइका रामनाथ जी के दन्ने ताक रहल हल आउ कँपस रहल हल।
 सरवा अइसे नऽ बतइतउ। तनी पसुलिया हम्मर हथा में धरा दे। एक्कर दुन्नो हथवे काट ले ही।...... आउ सड़ासड़ लइका के बदन पर छेकुनी से मार पड़े लगलइ। लइका चित्कार कर उठल।.....,‘बाबू हो बाबू! मइया गे!......’
 तों सच्चो-सच्चो बता दे। बाबू के कहे के से अगिया लगयलहीं कि चचबन के कहे से? ....... सच्चो-सच्चो बताव।
 सड़ासड़ छड़ी जेन्ने-तेन्ने पड़े लगल। लइका छटपटा के नाचऽ हे, गिरऽ हे।
 रामनाथ जी के भय समाप्त होल जा रहल हे। ऊ अब लइका के चीन्हे भी लगलन हल।...... ई तो ओही लइका हे, जेकरा लइकन सब आलू लावे ला कहलन हल।
 लइकन सब बगीचा के पत्ता जमा करके लहरा रहलन हल।.......खेल-खेल में का तो ओही आग झोपड़ी पकड़ लेलक हल।......एही बात ला, एही सक पर, लइका के ई दुरगति!...... हे भगवान!
 एक-ब-एक कड़कड़ायल अवाज में उनखर मुख से निकसल हल-रूक जाओ हत्यारो! रूक जाओ!!......आग कैसे लगी, मैं बताता हूँ।
 अरे......ई तो सरवा रँगरेजी बोलऽ हउ!दू डाँग पहिले देहीं तो ; तब एकरो सुनवाई होत।
 रामनाथ जी के इयाद हे-कहे भर के देर हल, दु-चार लाठी उनखा पर गिर गेल। भुइयाँ पर छितरा गेलन हल। बदन अइँठे लगल हल।......एगो जुआन नजीक आके देखलक हल-अरे! मर तो नऽ गेलइ!......सरवा ओकील बने चलल हल!’
 रामनाथ जी के नजीक से देखतहीं ऊ जुआन के मुँह से निकस पड़ल हल-परफेसर साहेब!......गुरुजी!......हम चीन्ह न सकली। फुलपइंट छोड़के धोती-कुरता के बाना......अपने के तो जाने चल जाइत हल!’
 रामनाथ जी के झाड़-मूड़ के उठावल गेल हल। कराहते पुछलन हल-ई लइका कौन हे, जेकरा मार पड़ रहल हे?’
 बंसीधर नाम सुनलऽ हे?......ई उनखरे लइका हे।.......सब गैरमजरूआ आम जमीन के मालिक।......बित्तन दुसाध के बाप-दादा उनखरे जमीन जोतते-कोड़ते रहलन। उनखर आउर चोरी के करयलक हल।......एतनिए कसूर हल कि तनी ऊ अइँठ के बोलऽ हल।.......रामजतन हरवाहा वाजिब मजूरी माँगलक हल। सउँसे बदन सुक्खल जुत्ता आउ लाठी से फोड़ देल गेल हल।ई छउँड़ा ओही साँप के बच्चा हेआझ सिखा-पढ़ा के ओकरा से सोमर के घर में आग लगवा देल गेल हे।......अब हमनी के डर-भय नऽ हे गुरुजी! डरके रहलूँ तो माय-बहिन के इज्जत लुटवयलूँ.......जनावर नियर सलूक पयते रहलूँ......आझ बिगुल बज गेल हे!’
 केकरा खिलाफ बिगुल ?’
 गुरुजी, अपने खाली हमनी के पढ़ैते रहली। देस के राजनीति केन्ने घसकल जा रहल हे, एकर अपने के तनिक्को खबर नऽ हे।
 तइयो, केकरा खिलाफ ई बिगुल ?’
 ई बेवस्था के खिलाफ।......ई वेबस्था के ई सब पहरेदार हथ!......राह के काँटा अब दूर करना हे।
 हिंसा से हिंसा बढ़ऽ हे।......अप्पन ताकत बढ़लई, ई जान के खुसी होल। मगर समाज में......। धाँय!......धाँय!......सन्नाटा के चीरते दू असमानी फायर नजीके में सुनाय पड़ल हल। दुन्नु दू दिसा से। तखनिए एगो दोसर जुआन तमक के बोलल हल-कहलिअउ ने, ई सार खोफिया हउ, खोफिया। हमनी के बात में बझा देलकउ आउ फँसा देलकउ।......सब तइयार हो जो।
 कुछ नाल बन्दूक चमक उठल हल। जादेतर देसिए बन्दूक। भाला,लाठी...... चारो दन्ने छितरा जो।......मुँह से एक्को सबद न निकसे.....ललटेनमन बुता दे.......।
 बच्चा डर से थर-थर काँप रहल हल। कँपस रहल हल। रामनाथ जी बोललन हल-हमरा पर जो तनिक्को विस्वास हो तो ई तूफान हम थाम्हे के कोरसिस करीं।...... पाँच मिनिट के मोहलत चाहऽ ही।
 कोय जवाब या हुकुम नऽ भेंटायल हल। रामनाथ जी लइका के हाथ धयले गोली के अवाज दन्ने चल देलन हल। लइका हाथ छोड़के भाग चलल हल। रामनाथ जी ओकरा पीछे-पीछे धउग रहलन हल।......ठहरो!’...... ठहरो!’ चिल्ला रहलन हल।
 धाँय!’......आउ रामनाथ जी गिरके छटपटा रहलन हल। पूरा बदन अइँठ रहल हल। चोरबत्ती के रोसनी मुँह पर पसर गेल हल। एगो अवाज.......अरे! ई तो कुटुम!’ .......एकरा बाद रामनाथ जी के कुछ इयाद नऽ हे! कइसे सहर पहुँचलन, कइसे अस्पताल पहुँचलन, के लइलक हल, कुछ पता नऽ। उनखर कंठ सूख रहल हल। बेटा......विनय से एक गिलास पानी माँगलल। पानी पीके फिन आँख मूँद लेलन।
 ......ह्यामून डिगनिटी......लिबर्टी......नियम-कानून......सब बे-माने लग रहल हल।......रामनाथ जी, किसने आप पर गोली चलाई ?’ –दरोगा जी पूछ रहलन हल।
 के गोली चलयलक, देख नऽ सकलूँ।......ऊ सब हलन या ऊ सब हल।
 -ऊ सब कौन?’
 - एगो घर में आग लगल हल, लइकन के खेल से......। मगर आग पहिलहीं लग चुकल हल।.......घर-घर आग से लहर रहल हल......गाम,सउँसे गाम,आग से लहर रहल हल......आग पर जे काबू नऽ पायल, तो ई सउँसे देस में पसर जायत।...... सउँसे देस लहरे लगत!.....’
 रामनाथ जी के कमजोरी नियर लगे लगल। ऊ  फिन आँख मूँद लेलन।   
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कहानी
हाय
              अछूत भानू
     रामलाल सरकार के लगभग हर मंत्रीमंडल के शोभा बढ़ा चुकलन हे। संसार के हर सुख सुविधा उनखर कदम चुम के अपने के धन्य समझऽ हे। घर से बहरी तक उनखरा आगे-पीछे,सुख वैभव आउ सम्मान-प्रतिष्ठा घेरले चलऽ हे। सुविधा से पूर्ण मनव के जे-जे इच्छा अभिलाषा हो, हे ऊ सब के पूर्ति रामलाल के भी समय-समय पर क्रमवार होइत रहल हे।
    एही क्रम में उनखर एकलौता बेटा भी विदेशी शिक्षा पा के सपत्निक विदेशी सुख-सुविधा में में विलीन हो गेल। ओकरा तो अब अप्पन जन्म भूमि आउ मातृभूमि में खाली खोटे नजर आवऽ हे। इहाँ के भूमि बंजर आउ लोग बंजारा से भई बदतर नजर आव लगल हे।
   दू साल पहिले नेता जी के धरमपत्नी भी अप्पन धर्म भूल के नेता जी के बीच राह में अकेले छोड़ के ई संसार से चल देलन हल।
   नेता जी के भतीजा जे उनखरा भिर पंछहरी लेखा लगल रहऽ हे, ओही एकमात्र उनखर सहारा आउ सलाहकार बचल हे। नेता जी के व्यक्तिगत काम से लेके सरकारी काम-काज तक के देख-रेख करऽ हे।
   नेता जी आज अप्पन जीवन के लगभग अंतिम यात्रा कर रहलन हे। ऊ सजल बंगला के ए.सी. रुम में स्लीपवेल गद्दा पर पड़ल हथ मगर ऊ गद्दा भी आज उनका ऊ गुलगुलाहट न दे पा रहल हे जे कल तक उनखा चैन के नींद मुहैया करावऽ हल। नेता जी बेचैनी के हालत में कभी ई करवट तो कभी ऊ करवट बदलइत हथ। पलंग के बगल में रखल स्टूल पर बइठल उनखर भतीजा पी.ए. रह-रह के उनखा सांत्वना दे रहल हे। मगर,नेता जी के अइसन आभास हो रहल हे कि उनखर अन्तिम घड़ी अब नजदीक आ गेल हे।
   भतीजा विजय, डॉक्टर के फोन कर के बोलावेला कहऽ हे तब मंत्री जी इसारा से मना करदे हथ आउ अप्पन बगल में बइठे ला कहऽ हथ। विजय कभी नेता जी के तरहथी मल के गरम करऽ हे तऽ कखनियों तरावा रगड़ के। नेता जी रह-रह के अर्द्ध मुर्छा में आ जा हथ।–विजय! पानी!’ नेता जी के कहला पर विजय फ्रीज में से पानी निकाल के गिलास नेता जी के मुँह में लगा दे हे। नेता जी एके घूँट पी के गिलास हटावे के इसारा करऽ हथ।
    अदमी के अइसन अनुमान हे कि अन्तिम घड़ी में ओकरा अप्पन जीवन में कैलगेल निमन-जबुन काम सब एक-पर-एक फोटो नियर मानस पटल पर उगइत जा हे। लोग देखे इया न देखे मगर खुद ओकर मन के दर्पण पर आएल रुप ओकर अंतर्नयन देख ही ले हे। एही रूप अन्त समय में ओकरा कभी विचलित कर दे हे आउ ऊ मुर्छा के प्राप्त करऽ हे। तऽ कखनियों जीवन के नेकी वला रुप अयला पर ओकरा चेहरा के रंगत में निखार आउ स्फूर्ति ला दे हे-
   आझ नेता जी के भी सामने एही सब एक-एक करके धुँधला-धुँधला रूप में आ जा रहल हेऽ।
       रेल मंत्री-खबर मिलल दुगो सवारी गाड़ी आमने-सामने टकरा गेल हजारों मरलन होते हमरा अनुमान भेल। हम सम्वाददाता से भी पहिले अप्पन स्पेशल डब्बा वला रेल ले के घटना स्थल पर पहुँच गेली। साधारण श्रेणी के दूगो डब्बा तो पिहुदा गेल हल कर्मचारी के आदेश देली। कम-से-कम मरे वालन के लिस्ट होवे के चाहीं। आदेशानुसार जउन लाश साधारण रुप में डिब्बा से निकालल गेल ओकरा गंगा मइया के सुपुर्द करवैली बाकी जे डिब्बा के लोहा आउ सीट में फंसल हल जेकरा निकालल न जा सकऽ हल बिना-डब्बा काटले। ओही लोग रेल दुर्घटना में मरेवालन के लिस्ट में रखल गेल। तीन घंटा ई सब खाना पूर्ति करे में लग गेल। अप्पन घड़ियाली आँसू लोग के चटा के सजल सँवरल रेल में चल देली दिल्ली ला मन के ई तीखापन के कम करेला हम्मर मंत्रालय के वरीय पदाधिकारी डब्बा के वी.सी.पी. पर आझे रिलीज भेल फिल्म अशोका चला देल जे हम्मर यात्रा के सुखमय बना के चिन्तामुक्त कर देल हल। नेता जी चेहा के उठलन। – विजय पानी लाओ।
    एक घूँट पानी पीके नेता जी फिर मुर्च्छित हो जा हथ। उड़ीसा में तूफान हमरा गृहमंत्री होए के नाते उहों के लोक कल्याण ला हमरा तुरत जाए पड़ल, बाप-रे-बाप का वीभत्स रूप हल ? ऊहाँ के लोग मर-मर के पेड़ पर तऽ पौल पर लटकल हलन। एही प्रकृत्ति के क्रूर रूप से हम्मर तो मन खराब होए लगल फिर भी एगो सफल नायक नियर अप्पन चरित्र निर्वाह करइत हली। आझे के धोवल कुर्ता-धोती तूफान के बाद बचल पानी-कीचड़ में सना गेल हल। देख के घिन बर रहल हे मगर का करूँ अप्पन छवि जे बनावे ला हे। नजर तो प्रधानमंत्री के कुर्सी तक हे।
      कइसहूँ कर के डाकबंगला पर अइली ऊहाँ मुर्गा पोलाव के व्यवस्था हल। डाकबंगला के चौकीदार के 16 वर्षीय बेटी के हाथ से परोसल मुर्गा-पोलाव में एगो नया स्फूर्ति आ गेल हल। दिन के वीभत्स रूप आउ घिनावन लाश भूल के जम के खइली आउ रात भर सुन्दर सपना के संसार में भुलाएल रहली। नेता जी हड़बड़ा के उठ के बइठ जा हथ।– विजय पानी।
    नेता जी एक घूंट पानी पी के फिर पूर्ववत अवस्था में आ गेलन उनखा सामने फिर एगो तस्वीर नाचे लगल हल। गुजरात के भूकम्प, विपक्ष के लोग में पहुँचे के पूर्व हम हाजिर हो गेली हल। हजारों लइकन के दबल लाश पर हम घंटो लोर बहा के आगे बढ़इत जाइत हली। दिन भर चलते-चलते हम्मर देह थक के चूर हो गेल हे मगर हम करूँ का ई विजैवा हमरा अपना कर्तव्य इयाद दिलवा दे हे। हम इहाँ ऑफिसर से मिल के चल जइती हल तब का हमरा से हम्मर मंत्री पद छिना जैता हल जे ई हमरा एतना थका देल, लाश के ढेरी पर चढ़ा-घुमा के। घबड़ा के उनखर चेतना लौटते पुकारऽ हे।–विजय पानी।
    पानी पीके फिरो तकिया पर हाथ रखइते इयाद आ गेल।–भूकम्प के खबर मिलइते समूचे संसार के सह्रदय देश के प्रधान यथासम्भव मदद भेजावेला प्रारंभ कर देलन हल। रुपइया, दवाई, भोजन। केतना पागल ऊ लोग हथ जे तैयार भोजन तुरंत खाए वला भेजलन हे। का ऊ लोग हीं भूकम्प न आवे जे उनखा जानकारिए न हे। सब के सब भोजन बाँटे पड़ल। भूकम्प में जँपायल लोग के परिवार जन में दवाई के भी ओही हाल भेल। बे मतलबो के सूई देवे पड़ रहल हे घायल सब के। अइसन-अइसन दवाई तो हमनी मंत्री के भी नसीब न हो हे देश में, बिना विदेशी अस्पताल के। जउन देश कम विकसित हल ऊ सब रुपइया से मदद करलक हल। ओही कुछ हक लगल हे। ई बंगला ओही मदद के फल हे जेकरा में हम दिन भर के माथा पच्ची के बाद कुछ पल आराम से गुजारऽ ही न त हम ई सब कंगाले के फेर में रह जइती हल आज ले। उनखर माथा दुखाए लगऽ हे दुन्नो हाथ से माथ थमले उठऽ हथ।– विजय पानी।
   विजय पानी के गिलास मुँह में लगा के झकझोर के बोलल। नेताजी, चाचा जी अपने के तबीयत कइसन हे ? नेता जी ठीक कहे के रुप में मुड़ी डोलैलन आउ बिछौना पर औंधे मुँह पड़ गेलन।–नारी सुधार गृह के तरफ से आझ एगो भव्य समारोह के आयोजन भेल हे हम मुख्य अतिथि आउ उद्घाटनकर्ता, यानी सब कुछ हमहीं। भिन्न-भिन्न वेश आउ घटना-दुर्घटना के दोषी नारी कुरुप से अप्सरा तक इहाँ अप्पन जीवन के सुनहरा सपना लेले आवे वला नया सवेरा के रोशनी के इन्तजार में, ई काल कोठरी में दिन काट रहल हे। नारी शोषण आउ नारी अत्याचार पर हम्मर देल गेल भाषण पर खूब थपड़ी बजइत रहल। लगभग आधा रात तक काजकरम चलल। समाप्ति के बाद विशेष भोज में हम शामिल होइली सुधार गृह के संचालिका के आग्रह पर हम उनखा भी अप्पन गाड़ी में अपना साथे चले के इजाजत दे देली।–विजय पानी।
   पानी के गिलास मुँह में लगावते नेता जी के माथा एक दन्ने लटक गेल। विजय उठाके सिर के तकिया पर रख के चित्कार कर उठल-नेता..ऽ..जी।
   घटना के गरमाहट से साँस तेज चले लगह। नेताजी के एगो हाथ स्वत: छाती पर गेल।–विजय पानी।
  मगर ई का पानी के गिलास मुँह में भी न लगल आउ नेता जी एक दन्ने लोंघड़ा गेलन।
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लेख-निबन्ध
प्रो. लक्ष्मीचन्द प्रियदर्शी नवादा के हिन्दी साहितकार आउ के.एल.एस. कॉलेज के हिन्दी के प्राध्यापक हलन. ई निबन्ध ८०-९० के दशक में लिखल गेल हल, ईसे ईमे नवादा के वर्तमान नञ् झलकऽ हे। ई रचना मगही तिमाही पत्रिका विहान के वर्ष २००६-०७ से लेल गेल हऽ, जेकर संपादक हला डॉ योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश। ई पत्रिका के शुरूआती संपादक डॉ श्रीकान्त शास्त्री आउ डॉ रामनन्दन हला। एकर परकासन  बिहार मगही मंडल, विद्यापुरी, पटना से होवऽ हल।
- उदय कुमार भारती
(लेखक के ई रचना उनकर बैकुंठवास के बाद छप रहल हे, इसे उनका दर करइत उनकर तत्सम बोजल शैली के जस-के-तस रहे देल गेल हे, हालाँकि ई विहान पत्रिका के चलनसार के खिलाफ हे। - योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश, संपादक, विहान पत्रिका)
नवादा जिला के साहित साधना
                 -प्रो लक्ष्मीचन्द्र प्रियदर्शी
    प्राचीन मगध के ह्रदय-प्रदेश में अवस्थित नवादा जिला में एगो सुदीर्घ आउ समृद्ध साहित्यिक परम्परा रहल हे। प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय के ग्रन्थागार तथा उदन्तपुरी विश्वविद्यालय के विशाल पुस्तकालय के विमाश से सउँसे मगध जनपद के साथे नवादा के भी साहित्यिक परम्परा के आघात लगल। अतः तत्कालीन एहाँ के संस्कृत-प्राकृत भाषा के साहित्य आज उपलब्ध नञ् हे। हिन्दी आउ मगही साहित के शुभारंभ भी नालन्दा आउ आसपास में उत्पन्न चौरासी सिद्धन से होवऽ हे। अइसन अनुमान हे कि ओकरा में अनेक सिद्ध-कवि नवादा जिला से भी सम्बन्धित हलन। मुदा स्थान सम्बन्धी निश्चयात्यमक विवरण अभी तक शोध के विषय बनल हे।
     आज से लगभग तीन सौ साल से भी पहिले लोक कंठ में रसल-बसल मगही के कइगो लोक गाथा एही धरती के उपज मानल जाहे। अइसन सिद्ध हो रहल हे कि लोरिकायन आउ कुँअर विजयमल के नायक-नायिका भी एही क्षेत्र के हलन। अत अइसन अनुमान भी स्वाभाविक हे कि इ गाथा-काव्य के रचयिता लोक कवि भी स्थानीय रहलन होत। एकरा पर शोध भी हो रहल हे।
     उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में उत्पन्न एहाँ के अनेक साहितकार के विवरण उपलब्ध होवऽ हे, जे हिन्दी आउ मगही मगही में अप्पन रचना कइलन हे। ई क्रम में श्री गुरु सहाय लाल के नाम पहिले लेवल जा सकऽ हे। इनखर जन्म सन् 1846 ई. में नादिरा(नवादा) ग्राम में एगो प्रसिद्ध कायस्थ परिवार में होल हल। इनखर पिता मुंशी नूरनारायण लाल नवादा के एगो नामी मोख्तार हलन। बारह बरस के उमर में इनखर विवाह भदोखरा ग्राम में होल हल। बाद में इनखर प्रवृत्ति सत्संग, आध्यात्म आउ योगाभ्यास के तरफ मुड़ गेल। सहाय जी संस्कृत, अरबी, फारसी, उर्दू, हिन्दी आउ मगही के विद्वान, योगी, भक्त आउ उच्चकोटि के कवि हलन। इनखर प्रकाशित पुस्तक में सज्जन विलास, निर्वाणशतकम्, श्री गुरुगम विलास, श्री तत्वचिन्तामणि, तत्वतरंगिनी, अनुभव प्रभाकर, सन्तमन, उन्मनी, पातंजल योग दर्शन, श्री सद्गुरु स्तवराज, मानस अभिराम आउ परतर अभिधानम् के विवरण आचार्य शिवपूजन सहाय लिखित आउ राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना से प्रकाशित हिन्दी और बिहार में देखल जा सकऽ हे।
     हसुआ निवासी पं. काली प्रसाद चौधरी मीत एहाँ के एगो नामी साहितकार होलन हे। इनखर जन्म सन् 1880 ई. में एगो सुप्रसिद्ध मैथिल ब्राह्मण परिवार में होल हल। इ प्रसिद्ध जमींदार श्री अजित नारायण चौधरी के पौत्र तथा श्री टोडल नारायण चौधरी के सुपुत्र हलन। इनखर शिक्षा आउ काव्य-दीक्षा आरा निवासी पँ.विजयानन्द त्रिपाठी श्रीकवि द्वारा होल हल। इ मैट्रिक तक अंग्रजी शिक्षा भी पयलन हल, मुदा इनका संस्कृत, फारसी, बंगला, हिन्दी आउ मगही के भी बहुत अच्छा ज्ञान हल। इ राष्ट्र भक्त, साहित संरक्षक, संगीतज्ञ, गायक आउ ख्यातिलब्ध कवि हलन। ई हिन्दी, उर्दू आउ मगही तीनों में रचना लिखऽ हलन। गया नगर में हिन्दी साहित सभा के स्थापना करके मीत जी उहाँ एगो साहितिक वातावरण के निर्माण कइलन हल। आदर्श मैत्री या सुदामा इनखर रचल एगो प्रसिद्ध खण्डकाव्य हे। बहत्तर साल के उमर में इनखर मृत्यु सन् 1952 ई. में होल हल।
    इ जिला के सुप्रसिद्ध साहितकार श्री जयनाथपति के जन्म नवादा के शादीपुर ग्राम में सन् 1880 ई. में होल हल। ई इन्टरमीडिएट पास कइला के बाद मोख्तारी के परीक्षा में सफल होके नवादा में एगो बहुत सफल मोख्तार हो गेलन हल। ई संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला, लैटिन, फारसी, उर्दू, हिन्दी आउ मगही के विद्वान आउ जानकार होवे के साथ-साथ एगो निर्भीक राष्ट्रवादी आउ नामी साहितकार भी हलन। वेदशास्त्र के अध्येता आउ इतिहास के गंभीर अध्येता के रुप में भी इनखर नाम हल। मगही के प्रथम उपन्यासकार होवे के गौरव इनखे प्राप्त हे। इनखर सुनीता उपन्यास सन् १९२८ ई. में प्रकाशित होल हल। एकर बाद दूसर उपन्यास फूल बहादुर सन्1935 ई. में आउ गदहनीत नामक रचना सन् 1937 ई. में छपल हल। इनखर गवर्नमेन्ट ऑफ इंडिया एक्ट के मगही अनुवाद भी सन् 1937 ई. में ही छपल हल। उ जमाना में इनखर मगही प्रेम अद्भूत, अपूर्व आउ अनन्य ही मानल जात। इनखर मृत्यु सन् 1939 ई. में होल हल मुदा अप्पन कतित्व में उ सदा अमर रहतन।
    पंडित शिवलाल कवि नवादा जिला के पिछली पीढ़ी के एगो प्रसिद्ध कवि आउ कविराज हलन। इ दुन्नू रुप में उनखर पहुँच आउ सम्मान राजदरबार तक हल। इनखर जन्म हसुआ के हदसा ग्राम में एगो भट्ट परिवार में सम्वत् 1928 तद्नुसार सन् 1871 ई. में होल हल। इ आशुकवि हलन आउ इनखर काव्य प्रतिभा अद्भूत हल। मुदा इनखर कुछे रचना प्रकाशित हो सकल हे, शेष अब तक अप्रकाशित ही पड़ल हे। इनखर सुपुत्र पँ. यमुना कविराज विजय भी अप्पन पिता नियन कुशल कवि आउ कविराज हलन। वास्तव में उनखर साहित प्रेम सराहनीय आउ अनन्य हल। उनखर परिवार के लोग अभी भी नवादा में रह रहलन हे। इनखर पौत्री(श्री सुरेश भट्ट के पुत्री) श्रीमती क्रांति भट्ट भी अभी हिन्दी आउ मगही में रचना लिख रहलन हे।
    हसुआ निवासी श्री सिद्धेश्वर चौधरी मंजु जी श्री काली प्रसाद चौधरी मीत के सुपुत्र हलन। इनखर रचना हिन्दी आउ मगही में बराबर प्रकाशित होते रहल हे। अकाशवाणी से इनखर ढेरमनी रचना बिन छप्पल पड़ल हे। मीत जी के प्रेरणा से एहाँ के एगो महान भक्त कवि श्री गोपी चन्द्र प्रेमानन्द के लिखल भजन कत्ते बन्द में प्रेमानन्द प्रवाह नाम से प्रकाशित होल हल। इनखर रचना खड़ी बोली में निकलल हे। हसुआ के ई गौरव प्राप्त हे मगही के पहिला नाटक भी एहाँ के मगही सपूत श्री गोपीनाथ लिखलन हल, जेकर प्रकाशन सन् 1923 ई. में माहुरी मयंक कार्यालय, बिहारशरीफ से होल हल। ई एगो यथार्थवादी नाटक हल आउ एकरा में सामयिक समस्या के वर्णन कैल गेल हल।
     मगही के लोक कवि आउ हास्य-व्यंग्य रचनाकार पं. सिद्धेश्वर मिश्र पकरीबरावाँ प्रखण्ड के डुमरावाँ ग्राम के निवासी हलन। इनखर जन्म सन् 1887  ई. के आसपास होल हल। ई धार्मिक प्रवृत्ति के मुदा बहुत सरस व्यक्ति हलन। गोनावाँ के उदासीन संत आउ कवि श्री वेदनाथ भगवान के ई अप्पन गुरु मानऽ हलन। ई आशुकवि आउ सुकंठ गायक हलन आउ इनखर बनावल मगही झूमर, भजन, कजरी, निर्गुण आउ हास्य कविता लोक कंठ में रसल-बसल रहते आल हे। इनखर मृत्यु सन् 1972 ई. में होल हल। इनखर गोत्र वंश में उत्पन्न होवे वालन पं. शुकदेव मिश्र, पं. चन्द्रिका मिश्र आउ पं. बलदेव पाण्डेय भी अप्पन साहित साधना से भारती के भण्डार भरलन हे।
     ग्राम बिलारी, पत्रालय वारिसलीगंज के संगत के महंथ बाबा कादनीदास जी कुछ पीढ़ी पहले एगो बहुभाषाविद् विद्वान कवि आउ धार्मिक पुरुष होलन हे। इनखर रचना कई भाषा में मिलऽ हे। ई मगही के भी प्रसिद्ध कवि हलन आउ इनखऱ मगही रचना तथा अप्रकाशित ग्रन्थ खेमराजभूषण के अपूर्ण प्रति प्राप्त होल हे। उ समय में इनखर मगही प्रेम एगो श्रद्धा के विषय हे। नवादा-नालन्दा के सीमाना पर स्थित गाँव मगही के सुप्रसिद्ध कवि आउ सरस गायक श्री सुरेश दुबे सरस के भी जन्म स्थान हे। इनखर पिता पं. महावीर दुबे भी मगही काव्य संग्रह निहोरा गायक के कंठहार हे, जेकरा में गाँव के जिन्दगी के दर्शन होवऽ हे आउ प्राकृतिक सौन्दर्य से मन रंगा जाहे। एकर अलावे चलो गाँव की ओर आउ चलो खेत की ओर में उनखर हिन्दी कविता प्रकाशित होल। उ मगही में सात शहीद निबन्ध संग्रह लाल कटोरा’, अझका तीरथ मगही कविता तथा हँसते फूल चटकती कलीयाँ नाम से हिन्दी खण्ड काव्य लिखके भी प्रकाशित करैलन। 10 सितम्बर 1968 ई. में कैंसर रोग हमनी सब के बीच से मगही के सपूत के छीन लेलक।
     नवादा के सबसे बड़गो साहितिक देन हे राजकमल चौधरी। इनखर पिता श्री मसूदन चौधरी दीर्घकाल तक एहाँ के उच्च विद्यालय में अध्यापकी-प्राध्यापकी कइलन हल। बाद में ई हिन्दी के ख्यातनाम उपन्यासकार कवि आउ कथाकार होलन। शहर था शहर नहीं था, मछली मरी हुई, देह गाथा, एक अनार सौ बीमार उपन्यास, कनकावती काव्य संकलन, मैथिली में लाल दाग आउ बंगला से अनुवादित चौरंगी उपन्यास इनखर प्रसिद्ध प्रकाशित कृति हे। ई भूखी पीढ़ी काव्य-धारा के पुरोधा में हलन। इनखर असामयिक मृत्यु 18 जून 1967 ई. में होल हल।
   मगही के अग्रगण्य कवि श्री रामचन्द्र शर्मा किशोर भी एही जिला के निवासी हलन। इनखर जन्म सन् 1922 ई. में होल हल। इनखर मगही कविता प्रेमी-प्रेमिका के मनोदशा के लोकगीत शैली में रूमानी चित्रण मिलऽ हे। ई हिन्दी में भी लिखऽ हलन आउ इनखर उपन्यास वैरन रात रुलाए आउ काव्य संग्रह अन्तर्ध्वनि आउ मैं तुम्हें देता निमंत्रण प्यार का प्रकाशित हो चुकल हे। ई बिहार समाचार के सम्पादक भी हलन।(अब तो हिन्दी खंडकाव्य यौवनश्री आउ मगही गीत सेंगरन बिछलई किरिनियाँ के जाल भी छप चुकल हे।–सं.)
    मगही के विद्यापति लोकप्रिय कवि आउ सुकंठ गायक श्री जयराम सिंह नवादा के हदसा उच्च विद्यालय में बहुत दिन तक प्रधानाध्यापक रहलन हे। इनखर जन्म सन् 1922 ई. में कारीसोवा ग्राम में होल हल। मगही क्षेत्र में इनखर कविता बहुत प्रसिद्ध हे। प्रकृत्ति आउ प्रेम से ले के देहाती जिन्दगी, आधुनिक सभ्यता, कृषि योजना, राष्ट्रीयता तक इनखर कविता के विषय रहल हे। मुदा इनखर कविता के स्वतंत्र संकलन अब तक प्रकाशित नञ् हो सकल हे। ई बात मगहियन के सोचे लायक हे। वास्तव में जयराम बाबू मगही के गौरव हथ आउ इनका से मगही के बहुत कुछ मिले के आशा हे।
    डॉ. योगेशवर प्रसाद योगेश मगही ला एगो विरल व्यक्तित्व हथिन। इ अपने आप में एगो संस्था आउ प्रेरणा के स्रोत हथिन। वैसे तो इनखर जनम सन् 1933 ई. में नीरपुर रूपस, पटना में होल हल आउ ई क्षेत्र में मगही के प्रचार-प्रसार ला बहुत काम कइलन हल। ई मगही के आशु कवि, मगही काव्य मंच के आदर्श संचालक, सम्पादक आउ मगही आन्दोलन के अगुआ रहलन हे। हास्य कवि के रूप में सउँसे मगही क्षेत्र में इनखर नाम गूँज रहल हे। इनखर रचना में लोहचुट्टी(व्यंग्यकाव्य), इंजोर(काव्य संग्रह), तुलसीदास(लमहर कविता) तथा हिन्दी में संघर्ष, प्यार के गीत आउ मेरे गीत प्रकाशिक होल हे। मगही गीता रमायण, गौतम महाकाव्य अभी प्रकाशन के राह में हे।
डॉ. सूर्यप्रकाश नारायण पुरी, प्राचार्य रामजी प्रसाद सिंह आउ डॉ रामस्वरूप भक्त ई जिला के सुपरिचित, ख्यातिलब्ध आउ विद्वान साहित्यसेवी हथ। पुरी जी के कविता हिन्दी प्रकाशित होते रहल हे। वस्तुतः ई शिक्षा, साहित्य आउ संस्कृति के क्षेत्र में एगो जीवन आउ गतिशिल व्यक्तित्व रहलन हे। मगही के अनन्यप्रमी रामजी बाबू हसुआ कॉलेज के आचार्य हथ। हिन्दी समीक्षा इनकर प्रिय विषय रहल हे। वर्चस्वी वक्ता आउ सुधी समीक्षक के रूप में इनकर व्यक्तित्व बड़ प्रभविष्णु आउ मुग्धकारी हे। डॉ रामस्वरूप भक्त जी के. एल. एस. कॉलेज, नवादा के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष हलन। ई विमेश उपनाम से हिन्दी में भी कविता करऽ हलन। मुदा इनकर प्रिय विषय हिन्दी समीक्षा हल।  असमय में इनकर निधन होला से साहित्य के बड़ क्षति होल हे।
     श्री मिथिलेश प्रसाद सिन्हा मगही के एगो जानल-मानल हस्ताक्षर हथ। इनकर जन्म खखरी (नवादा) में सन् १९३७ ई. में होल हल। वारिसलीगंज में अध्यापकी से जुड़ल मिथिलेश जी मगही के मार्मिक कवि कथाकार आउ मगही विकास आन्दोलन के एगो विशिष्ट कार्यकर्त्ता रहलन हे। सन् १९७० ई में प्रकाशित इनकर रधिया खण्डकाव्य मगही के एगो गौरव ग्रंथ हे। इनकर कारा उपन्यास आउ तीस के पार काव्य अबतक प्रकाशित हे। मगही पत्रिका सारथी के माध्यम से इ मगही के बड़ सेवा कइलन हे। मगही कहानी के क्षेत्र में भी इनकर देन बहुत महत्वपूर्ण मानल जा हे। इनका से मगही के अपरिमित उम्मीद लगल हे।
    कवि जयप्रकाश जी नवादा के एगो लोकप्रिय कवि आउ सुकंठ गायक हथ। इनकर जन्म नवादा के केन्दुआ नामक ग्राम में सन् १९४३ ई. में होल हल। स्नातक कैला के बाद ऊ सहकारिता पदाधिकारी के रूप में अपन सेवा दे रहलन हे। इनकर कविता में बड़ लालित्य आउ माटी के सुंगध भरल हे । सन् १९८५ ई. में प्रकाशित माटी के दीया में इनकर मगही कविता संग्रहित हे। मगही सारथी के सहायक संपादक के रूप में भी ई मगही के सेवी करत अइलन हे। इनका से मगही के बड़ आशा हे।
     नवादा के के.एल.एस. कॉलेज में हिन्दी-विभाग में रीडर पद पर कार्यरत ई निबन्ध के लेखक प्रो. लक्ष्मीचन्द्र प्रियदर्शी भी हिन्दी आउ मगही के विभिन्न विधा में अप्पन रचनाधर्मिता के परिचय देते रहलन हे। मगही कविता, कहानी, निबन्ध, नाटक, काव्यशास्त्र आउ समीक्षा के क्षेत्र में इनखर महत्वपूर्ण योगदान रहल हे। मगही काव्यांग विवेचन, मन के बन्धन कहानी संग्रह आउ धरती के धुन काव्य संग्रह इनखर शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक हे। हिन्दी में स्वरसप्तम, दर्द की आवाज, नवजागरण नाम से काव्य पुस्तक आउ हमारे महापुरुष नाम से जीवनी संकलन प्रकाशित हो चलल हे। बन्धु, प्रगतिशील समाज आउ मगध सुमन के ई सम्पादक भी रहलन हे।
    डॉ. लक्ष्मण प्रसाद चन्द के जन्म वारिसलीगंज के माफी नामक स्थान में होल हल। ई अभी मगही के प्रतिनिधि साहितकार मानल जा हथ। अभी ई हिन्दी में एम.ए. और डॉक्टरेट कर के पैठ महतो सोमरी कॉलेज के हिन्दी विभाग में अध्यक्ष के रुप में सेवा दे रहलन हे। मगही आउ हिन्दी में इनखर क्षेत्र कविता, कहानी, निबन्ध आउ समीक्षा रहल हे। ई मगही पत्रिका सारथी आउ माँजर के तथा कहानी संग्रह कथा घउद के सम्पादन कइलन हे। युग चेतना नाम से हिन्दी में एगो पत्रिका निकाल रहलन हे। बिखरे जीवन नाम से इनखर एगो हिन्दी काव्य भी प्रकाशित हे। अभी इनखा से मगही के बहुत उम्मीद हे।
    मगही आउ हिन्दी के यशस्वी कथाकार, निबन्ध लेखक आउ कवि श्री रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर मकनपुर, वारिसलीगंज के निवासी हथ। हिन्दी में भी ई खूब शोधपूर्ण निबन्ध लिख रहलन हे। इनखर कहानी बलिदान सन् १९६६ ई. में धोखे की राजनीति और राजनीतिक चेले सन् १९७० ई. में आउ मगही खण्डकाव्य गाँव के लक्ष्मी सन् १९७२ ई. में प्रकाशित होल हल। राजनीति भी इनखर क्षेत्र रहल हे।
    नवादा के गाँधी उच्च विद्यालय में संस्कृत शिक्षक के रूप में कार्यरत आचार्य ओंकार निराला हिन्दी आउ मगही के एगो समर्थ साहितकार मानल जा हथ। इनखर कविता आउ निबन्ध पत्र-पत्रिका आउ आकाशवाणी से बराबर प्रकाशित प्रसारित होते रहल हे। आशा हे जल्द ही इनकर रचना संग्रह प्रकाशित होत।
     हसुआ के गीतकार आउ गायक कवि श्री दीनबन्धु के जन्म ग्राम नदसेना, पत्रा. सहवाजपुर, नवादा में होल हल। इनखर तीत मीठ गीत गजल नाम के संग्रह में श्रृंगार, प्रकृत्ति आउ राष्ट्र के रीढ़ किसान-मजदूर के दर्द उभर के छन्द बन गेल हे। हर गीत में इनखर अप्पन लोकधुन हे, जे स्वर देला पर संगीत के आनन्द सहजे सुलभ करा दे हे। बाद में इनखर एगो आउ काव्य संग्रह मगही महक प्रकाशित होल हे। ई मगही कहानी भी लिखलन हे। इनखर कहानी संग्रह कुहन अभी तक अप्रकाशित हे।
    चकवाय (नवादा) के मध्य विद्यालय में एगो वरीय शिक्षक के रूप में कार्यरत श्री रामाशीष प्रसाद सिंह द्विज मगही के क्रियाशील कवि हथ। इनखर जन्म सन् १९३७ ई. में सिसमा ग्राम में होल हल। इनखर मगही काव्य संग्रह मगही के फूल सन् १९९२ ई. में प्रकाशित होल हे। एकरा में कवि के ध्यान प्रकृत्ति चित्रण, आधुनिक राजनीति आउ समाज में फैलल कुरीति दने खूब गेल हे। खड़ी बोली में भी इनखर एगो काव्य संग्रह प्रकाशित होवे वला हे।
   हसुआ के टी.एस.कॉलेज में हिन्दी के प्राध्यापक डॉ. भरत सिंह मगही क्षेत्र में भी एगो जानल-मानल व्यक्तित्व हे। मगही के अनन्य प्रेमी डॉ. साहब मगही आन्दोलन से जुड़ल रहलन हे। इनखर प्रिय विधा काव्यशास्त्र, समीक्षा आउ निबन्ध रहल हे। इनखर शोध भी मगही साहित से सम्बन्धित हे। इनखा से मगही के अभी बहुत कुछ मिले के उम्मीद हे।
     नवादा के अगली पीढ़ी के मगही आउ हिन्दी कवि, साहितकार आउ साहितप्रेमी में श्री रामप्रकाश सिंह (मिर्जापुर नवादा), श्री गौरी शंकर केसरी, श्री द्वारका प्रसाद औज, श्री वेदमणि पाण्डेय, श्री राजकुमार शर्मा, श्री ज्ञानचन्द्र गुप्ता, प्रो. उमेश शर्मा, श्री देवप्रयाग नारायण सिंह (ग्राम-वरया, नवादा), श्री सत्यनारायण मिश्र, झंझारगंज, डॉ. शालिग्राम मिश्र निराला, श्री सुरेश प्रसाद सिन्हा, श्री पवन कुमार दीक्षित, श्री त्रिगोपाल लाल माहुरी(हसुआ), डॉ. लालकृष्ण प्रसाद (बरेव), डॉ. सदानन्द शर्मा, श्री दशरथ शर्मा, प्राचार्य वासुदेव प्रसाद, श्री गिरधारी लाल सुलतानिया (वारिसलीगंज), श्री रामखेलावन प्रसाद (काशीचक) के देन भी अविस्मरणीय हे।
    नई पीढ़ी के रचनाकार में प्रो. अनिरूद्ध प्रसाद (वारिसलीगंज), श्री शिवदानी भारती (पचोहिया), श्री अभिनन्दन प्रसाद कुशवाहा (पटवा सराय), श्री ज्ञानचन्द्र मेहता माधुर्य (मिर्जापुर), श्री हरिद्वार सिंह (ओहारी), श्री ब्रह्मानन्द विश्वकर्मा (नवादा), श्री संतोष नारायण (नवादा), श्री रामचन्द्र स्नेही (पटवासराय-प्रकाशित काव्य-संग्रह मशाल), प्रो. शिरोमणि सिंह (पटवासराय), श्री सुनील कुमार राय (नवादा), प्रो. जागरूप प्रसाद (मिर्जापुर), प्रो. चन्द्रिका प्रसाद (पटवासराय) एवं डॉ. विश्वनाथ प्रसाद अप्पन रचना धर्मिता से साहित के सेवा में लगल हथिन। आसा हे, भविष्य में नवादा के साधना आउ भी सराहणीय, प्रेरक आउ समृहणीय हो सकत।
- भारती सदन, स्टेशन रोड, नवादा
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कविता-कियारी
मर के हमरा जीना हे
                                श्रीनन्दन शास्त्री
जी-जी के तो सभे मरै हे, मर के हमरा जीना है।
पिला-पिला सब सुधा जगत के, जहर अकेले पीना है।।
गरज रहल हे गगन, क्षितिज पर आँधी, पत्थर, पानी है।
बढ़ें बहादुर निर्भय हो के बोलल अपन जवानी है।।
कर में जान, कफन हे सिर में, तानल हम्मर सीना है।
जी-जी के तो सभे मरै हे, मर के हमरा जीना है।।
हम तूफान के जनमल-बाढ़ल, डर नञ् पत्थर-पानी के।
हमरा अपना भरोसा अखनौ, हर गदराल जवानी के।।
मइया के फाटल आँचर के हमरा अब जल्दी सीना है।
जी-जी के तो सभे मरै हे, मर के हमरा जीना है।
हो तैयार देश ले, देश के हर गदराल जवानी अब।
हर जवान हो भीमार्जुन, युवती लाल भवानी सब।।
गिरिवर सन उत्साह हे सब में तनिक न कोई हीना है।
जी-जी के तो सभे मरै हे, मर के हमरा जीना है।।
जाग गेल हे युग-युग के सूतल सब युवा जवानी अब।
उमड़ रहल हे बाढ़ के जैसन जोश से मुँह पर पानी अब।।
आज बिना झकझोर के झंकृत हर हिरदा के वीणा है।
जी-जी के तो सभे मरै हे, मर के हमरा जीना है।।
हमरा काल-पुरूष बनना हे काल के दैले ललकारा।
जन-गण से वरदान हे लेना, जग इतिहास से जयमाला।।
दुनिया गोल अँगूठी पर ई जीवन हमर नगीना है।
जी-जी के तो सभे मरे हे, मर के हमरा जीना है।।
                   - नन्दनावां, लखीसराय  
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कविता-कियारी
मथुरा प्रसाद नवीन के दूगो धधकल कविता
 आखरी चिठ्ठी
अंत में
हम तोरा तरफ से एगो पतर लिखलियन हे
भगवान के
श्री श्री सोसती
सरब उपमा जोग
धरम औतार
धरम के मूरत
नामधारी
श्री श्री एक सौ आठ
महाराजधिराज
हे तिरलोक के तबलची
हे गगन के गवैया
सृस्टि को सरंगिया
पातालपुरी से
किटकैयाँ बजबै वला
ब्रह्मा विष्णु महेश
तिनभैया के
चरण कमलन में
हम कचभैया के
कोटि कोटि प्रणाम!
देव,
दास के निवेदन हे
कि होली के दिन हे
न तेल हे न बेसन हे
डालडा के डिब्बा भी खाली हे
एक रूपैया के एगो
नोट हमरा पास हे
ऊ भी जाली हे
ओकरा बदला दा
एके रूपैया में
हमरा होली में
सब समान मंगबा दा
खोखला हे तो
कंट्रोल ई जमाना में
कि कूपन हमेंसा
रख्खे पड़ऽ हे
सिरहाना में
कागज भी अइसन हे
कि फट गेलै हे
उन्नीस के जगह पर
एक रहले हे
औ नौ हट गेलै हे
एकरो बनबा दा
कूपन बनाबै वला से कह दा
कि हम एक कप चाय देबै
एक काली गाय देबै
दस बिघा खेत देबै
हर बैल समेत देबै
एतना करहो तऊ तऽ देव हा
नै तो सौ गिरहकट्ट के
एक गिरहकट्ट हा
अउ जइसे हियाँ नेतागिरी हे
ओसहीं तों घटमाघट्ट हा।

उठो अपने से
देर हो जेतनै हियाँ
ओतनै अंधेर हो
घर के बिलाय हियाँ
जंगल के शेर हो
खबरदार!
सीझल हो देह तोहर
फेर कोय उबालो नै
समय हो कीमती
एकरा कोय टालो नै
जान बूझ घर में सब
पड़ल रहबा भाय हो
जीवा नै सुख से सब
मरल रहबा भाय हो
मट्ठी तर ऐसे तों
गड़ल रहबा भाय हो
सगरो गँमकबा तों
सड़ल रहबा भाय हो
तोंही उठो अपने से
साथ देतो कोय नै
तोहरे हाथ में हो
देश के सजा सको
जिनगी के चैन के
बाँसुरी बजा सको
घर-घर के बिंदावन के
रास होबै लगतो
जुल्मी अपने आप
नास होवै लगतो
जब तक नै करऽ हा
लड़े के तैयारी
छिन लेतो दुस्मन सब
आगू के थारी।
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कविता-कियारी
बिहार गान
उदय शंकर शर्मा
धन्-धन् तोहर बिहार बिहारी, धन्-धन् तोहर बिहार।
रिसि –मुनियन के पावन धरती, जंगल आउ पहाड़,
अधम उद्धारनी गंगा मईया, धरती के सिंगार।
धन्-धन् तोहर बिहार बिहारी, धन्-धन् तोहर बिहार।
विद्यापति, भिखारी ठाकुर, दिनकर के हुँकार,
नवीन, भीगश, श्रीनन्दन, रेनु साहित के उपहार।
धन्-धन् तोहर बिहार बिहारी, धन्-धन् तोहर बिहार।
सात शहीदन सचिवालय के दे रहला ललकार,
वीर बाँकुरा कुँवर सिंह के रखल हे तरवार।
धन्-धन् तोहर बिहार बिहारी, धन्-धन् तोहर बिहार।
बुद्ध, महावीर, चनरगुप्त, चानक आउ बिम्बिसार,
गुरू गोविन्द आउ सेरसाह के हे दरवार मजार।
धन्-धन् तोहर बिहार बिहारी, धन्-धन् तोहर बिहार।
विक्रमशिला, वैशाली, नालन्दा जग के संस्कार,
हेंगसांग, फहियान, मेगास्थनिज के पसुराम औजार।
धन्-धन् तोहर बिहार बिहारी, धन्-धन् तोहर बिहार।
लिट्टी-चोखा, चुरा-दही, सतुआ हइ उपहार,
चिन्हल-अनचिन्हल पहुना के होबे हे सत्कार।
धन्-धन् तोहर बिहार बिहारी, धन्-धन् तोहर बिहार।
अमन-चैन आउ भाईचारा, मिले मोहब्बत पियार,
सत्य, अहिंसा, न्याय धरम हे हम सब के औजार।
धन्-धन् तोहर बिहार बिहारी, धन्-धन् तोहर बिहार।
लंगड़ा आम आउ चिनियां केला, फरे यहाँ रसदार,
शाही लीची देख-देखके मुँह से टपके लार।
धन्-धन् तोहर बिहार बिहारी, धन्-धन् तोहर बिहार।
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कविता-कियारी
मृत्युंजय मिश्र करुणेश के दूगो ग़ज़ल
१.
ई जिनगी के मजा जीत में न, हार में हे;
कि जे उजाड़ में मस्ती, न ऊ बहार में हे।
चुभल जे नोंख तऽ लेहुआ-लेहान हो गेली;
ऊ रंग गुल में कहाँ हे जे रंग खार में हे।
दऽ नाव खोल कि किनछार रह के का करबऽ?
भँवर के देख लऽ हलचल जे बीच धार में हे।
हहर के कट रहल पहर हे आसरे केकरो;
तड़प मिलन में कहाँ ई, जे इंतजार में हे।
दरद से ऊभ-चूभ दिल के तार-तार बजल;
सधल ऊ सुर तो न दूसर कोनों सितार में हे।
जहर के जाम में जादू जे सिर चढ़ल अइसन;
उतर रहल न कि अमरित एकर उतार में हे।
जो जाय रम ई मन तो गम भी कुछ न कम रसगर;
लकीर टेढ़ न केकरो उगल लिलार में हे।
२.
मन छनेछन ई सेरा जाहे, गरम हो जाहे;
टाँठ तुरते में कि तुरते में नरम हो जाहे।
अदमी काहे तो पड़ जाहे धरम संकट में;
आउर संकट से उबरना भी धरम हो जाहे।
ढीठ अइसन न गड़ाके तूँ भिआरऽ हमरा;
जान-पहचान हे, तइयो तो सरम हो जाहे।
बून-बदरी आ कुहासा में सुरुज हे उपहल;
दिन के देखऽ ही तऽ रतिया में भरम हो जाहे।
जाड़ा-पाला में जो एकबेग दगा दे रउदा;
लाज रक्खे के तऽ बोरसी के धरम हो जा हे।
ई उमरिया के तो ओलहन हे जनमकुंडली में;
ई उमरिया में जे बाकी हे करम हो जाहे।
दिल के का हाल, न दीलदार समझलक अबतक;
चोट अइसन हे कि चोटगर ई मरम हो जाहे।
– हनुमान नगर, पटना 
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कविता-कियारी
मिल के बनवें सुत्थर रे
रामजी प्रसाद सिंह
उड़ चल उड़ चल उड़ चल रे
जैसे उड़इ कबुतर रे
मुदा न अइहें लउटि के ई घर
ई नञ् रहल पवित्तर रे।
ई धर में हउ चोर भरल
अउ बेइमान कते हउ रे
नगर-डगर में भरल लुटेरा
अउ सैतान कते हउ रे
बढ़ियाँ लोग कनइ नञ् मिलतउ
अब नञ् शुद्ध चरित्तर रे।
जेकरा भिर जइमें परचारे
ऊहे मांगतउ घूस रे
बुन-बुन सब खून जोंकसन
लेतउ तोहर चूस रे
ऊ तऽ कहते लाज लगऽ हे
ई हे हे घर हम्मर रे।
दिना-दिनी अउरत संगे
होवे हे छेड़खानी रे
लाज-सरम सब धो-धा पी गेल
छिः ईहे मरदानी रे
अइसकन के माय कहऽ हे
भल रहतूं निपुत्तर रे।
कोय नञ् अप्पन आउ पराया
स्वारथ के सब नाता रे
जे पा लेलक ऊँचगर कुरसी
ऊहे बनल विधाता रे
कहइं सुरक्षित कोय नञ् रहलइ
चाहे बाहर-भीतर रे।
बुद्ध महावीर गांधी नगरी
में उठ रहलइ आंधी रे
बोल ईहां कइसे कोय बचतइ
लग गेल सगरो व्याधी रे
ई सोनासन देस बनल हइ
अखने तांवा-पित्तर रे।
ई घर से हइ मोह मुदा बड़
छोड़ के कन्ने जइमें रे
की मिलतउ दोसर घर जाके
अनका रोग लगइमें रे
निखमन कर अल्लर-बल्लर के
मिल के बनवें सुत्थर रे।
-प्रोफेसर्स कॉलोनी, शेखपुरा
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कविता-कियारी
खड़ा न होइहऽ भोला भइया
जयप्रकाश
खड़ा न होइहऽ भोला भइया नञ् तूं जितवा भोट में।
जिनगी भर तूं नञ् उठवा, गिर जइवा एक्के चोट में।।
ईमनदार, करमठ, सच्चा
नेता हऽ हम जानऽ ही,
बुड़बक जनता हइ सब दिन से
नस-नस पहचानऽ ही,
भासन में अखने नञ् ताकत, हइ कागज के नोट में।
खड़ा न होइहऽ भोला भइया नञ् तूं जितवा भोट में।।
खेत-पथारी हो नञ् तोहरा,
नोट कहाँ से पइवा,
छूछ हाथ से भासन देके
फोकट में चिल्लइवा,
जेकर लाठी भोट ओकरे, मुँहकी खइवा कोट में।
खड़ा न होइहऽ भोला भइया नञ् तूं जितवा भोट में।।
जे गरीब-कमजोर हकइ ऊ
भोट देवे नञ् जइतो,
जइवो जे करतो जेकर
खइतो सेकर गुन गइतो,
कसर-मसर कइला पर चल जइतइ बन्दूक के टोंट में।
खड़ा न होइहऽ भोला भइया नञ् तूं जितवा भोट में।।
जेकरा हइ गुण्डा, लठइत
अउ नोट पास में पुरकस,
कब्जा कर लेतो सुउसें बुथ
नञ् चलतो कुछ असबस,
नञ् सकवा गुण्डागरदी में जय कह देलको मोंट में।
खड़ा न होइहऽ भोला भइया नञ् तूं जितवा भोट में।।
- केन्दुआ, नवादा  
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कविता-कियारी
पैसे वाला छीन रहल
भाई बालेश्वर
के अदमी के चिन्हे अब, सब पैसे के चीन्ह रहल।
कौर लगल मुँह के रोटी भी, पैसे वाला छीन रहल।।
जाल बिछैले पैसा के हे,
पाल महल पर उड़ा रहल।
जेठ बैसाख के रौदा ऐसन,
ताल तलैया सुखा रहल।
घाट-घाट पर मछुआ बैठल, बंसी से जबरा चीर रहल।
कौर लगल मुँह के रोटी भी, पैसे वाला छीन रहल।।
ई दुधिया आकास के घेरले,
सब दिन करका बादर हे।
निरधन से जादे धनवाला,
धन के पीछे पागल हे।
पढ़ल-लिखल अदमी भेल कैसन, तीन के तेरह गीन रहल।
कौर लगल मुँह के रोटी भी, पैसे वाला छीन रहल।।
विकासशील दुनियाँ में तनिको,
हे अदमी ले दर्द कहाँ?
पैसे पर ईमान बिका हे,
ईमानदार हे लोग कहाँ?
केतनौ सौ तक गीन आवऽ ही, मुदा तीन के तीन रहल।
कौर लगल मुँह के रोटी भी, पैसे वाला छीन रहल।।
के कैसे के कमा रहल,
एकक अदमी के जानऽ ही।
एँड़ी से चोटी तक हुनखा,
नस-नस हम पहचानऽ ही।
जेकरा जेज्जो बन रहले हे, हक दोसर के छीन रहल।
कौर लगल मुँह के रोटी भी, पैसे वाला छीन रहल।।
-ब्रह्मस्थान, मोकामा, पटना
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मगह के आयोजन
बरबीघा के मगही हास्य कवि सम्मेलन
   7 जून 2012 के विकास इन्टरनेशनल पब्लिक स्कूल बरबीघा (शेखपुरा) के तत्वाधान में मगही हास्य कवि सम्मेलन के आयोजन होल। मोका हल विद्यालय के वार्षिकोत्सव के। काजकरम के पहिल सत्र में विद्यालय के बच्चन रंगारंग सांस्कृतिक काजकरम पेश करलका। तीन बजे दिन से ई काजकरम संध्या सात बजे तक चलल। जेकरा में विद्यालय के बच्चन अप्पन नृत्य, गीत के प्रतिभा से सभे पहुँचल दर्शक के दाँत तले अँगुली दबावे पर मजबूर कर देलका। आखिर में बेस करेवला के पुरस्कार देल गेल।
   ई विद्यालय के काजकरम ई ले महत्वपूर्ण हो जाहे काहे कि दोसर सत्र में जे मगही हास्य कवि के काजकरम रखल गेल हल ऊ शुद्ध मगही साहित्य के काजकरम हल। आयोजक नञ् खाली मनोरंजन ले काजकरम के आयोजन कैलका बलूक ऊ मगही के साहितकार के सर-आँखों पर बैठइलका आउ मगही साहित में उनखर सौजन्य से प्रकाशित उमेश बहादुरपुरी के पुस्तक संगम के लोकार्पण के ऊहाँ तैयारी भी हल।
काजकरम
  मगधेश के नाम से विख्यात मगही के वरिष्ठ साहितकार मिथिलेश के अध्यक्षता में आउ उमेश प्रसाद सिंह के मंच संचालन में काजकरम के शुरुआत दीया जरा के भेल। दीनबन्धु के सरस्वती वन्दना के बाद संगम पुस्तक के लोकार्पण मुख्य अतिथि मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा, श्री मिथिलेश, लेखक उमेश बहादुरपुरी, संपादक धनंजय श्रोत्रिय, विधा विकास एजुकेशन ट्रस्ट के सचिव विपीन कुमार जौरे कैलका। एकर बाद उपस्थित कवि के प्रशस्ति पत्र देके विधा विकास सम्मान से सम्मानित कैल गेल। ओकर बाद हास्य व्यंग्य के फुहार चले लगल।
    कवि रंजीत, जयराम देवसपुरी, दयानन्द बेधड़क, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, कृष्ण कुमार भट्टा के हास्य व्यंग्य से ठहाका गूँजे लगल। नित्यानन्द सिंह के गजल, दीनबन्धु के नेता वन्दना सभे के गुदगुदैलका। उमेश प्रसाद सिंह, धनंजय श्रोत्रिय, जयनन्दन, नागेन्द्र बंधु, उमेश बहादुरपुरी अप्पन रचना सुना के सभे पर प्रभाव छोड़लका। मुख्य अतिथि उदय शंकर शर्मा के रचना खूबे सराहल गेल आउ बार-बार बिहार गौरव से जुड़ल रचना सुनावे के फरमाईश होल। श्री मिथिलेश, श्री कृष्ण आउ दिनकर के समर्पित मगही नाटिका अप्पन अनूठा अंदाज में मंच पर सुना के सभे के स्तब्ध कर देलका। ओकर बाद ऊ अप्पन रधिया खण्ड काव्य से रधिया के मुँह से कहल पंक्ति सुनावे लगला। गाँव आउ मगही परिवेश के माटी से जुड़ल रचना से सभे के माटी के गंध मिलल। ऊहाँ पहुँचल सभे श्रोता के मगही महक हिरदा से जुड़ा गेल।
    ओकरा पहले श्री मिथिलेश वारिसलीगंज से प्रकाशित होवे वला मगही पत्रिका सारथी के 17वाँ अंक के जानकारी देलका आउ बताइलका ई गद्य पत्रिका हे। एकरा ले स्तरीय साहित भेजल जाए। मगही ई पत्रिका मगही मनभावन के भी जानकारी देल गेल।
    मगही के विकास के लेल कय गो संकल्प के बाद काजकरम धन्यवाद ज्ञापन से समाप्त होल। आयोजक आउ ट्रस्ट के सचिव कहलका कि हम तो ऐसहीं हास्य कवि सम्मेलन के आयोजन कैलूँ हल, लेकिन बाप दादा के बोली के सम्मान आउ काम अनजाने में भे गेल। हम ऐसन जानतूँ हल तो ई सम्मेलन के नाम मगही कवि सम्मेलन रखतूँ हल आउ एकर आउ प्रचार-प्रसार करतूँ हल। ट्रस्ट मगही भासा ले आगू बढ़ के काम करे के संकल्प लेलका। इहाँ तक मगही भासा के पाठ्यक्रम में जोड़े के प्रयास के बात कहल गेल।
 रात भर सभे कवि के मान सम्मान के साथ ठहरावल गेल आउ भोरे विदाई देल गेल। बरबीघा के ई काजकरम मगही के एगो इयादगार काजकरम में गिनल जात।  
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मगह के आयोजन
हरनौत के मगही कवि सम्मेलन
१० जून २०१२ के उच्य विद्यालय हरनौत, नालन्दा के अंगना में बड़गो मगही कवि सम्मेलन के आयोजन होल। काजकरम के सुरआत वरिष्ठ कवि आउ कथाकार मिथिलेश, मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा आउ काजकरम के आयोजक चन्द्रोदय कुमार जौरे दीया जरा के कैलका। ओकर बाद पंहुचल अतिथि के फुल-माला, अंगवस्तर, कलम डायरी आदि देके सम्मानित कैल गेल। सम्मालित करे के काज आयोजन टीम के शैलेन्द्र सिंह, सुधीर सिंह, रामप्रवेश सिंह, अजय सिंह, धनंजय कुमार आउ गनमान लोग मिल के कैलका।
   सम्मेलन के सुरूआत सरसती वन्दना से होल। एकर बाद हास्य-व्यंग, गीत-ग़ज़ल के दौर चले लगल तउ अधरात तक रूके के नाम नञ् लेलक। दयानन्द बेधड़क के ओम जय भोटर देवा, भोट के बदले की लेवा आउ कवि रंजीत के ई मोबईलबा हमरा ले काल हे सभे श्रोता आउ दर्शक के खूमे हँसैलक। खास अतिथि उदय शंकर शर्मा उर्फ कलम वेशर्मी ई सुजनी हकै बिहार के कविता सुना के पहुंचल जन समूह के मन के मोह लेलका। बिहार गौरव से जुड़ल ऐसन कविता सुन के लोग वाह-वाह कर उठलन। ओकर बाद श्री मिथिलेश, कवि दीनबन्धु, परमेशरी, उमेश प्रसाद सिंह, कृष्ण कुमार भट्टा, किरण कुमारी, डॉ एतवारी पंडित सहित दू दरजन से जादे कवियन अधरात तलुक नाना तरह के कविता सुनाके मोफिल जमैले रहलन। आखिर-आखिर तक सुनेवला जमल रहलथिन। हरनौत जैसन जगहऽ में ऐसन बेस कवि सम्मेलन पहिले नञ् भेल हल, ईले श्रोता के मन नञ् भर रहल हल। एकर खुलके बड़ाय लोगबाग कर रहलथिन हल। काजकरम में प्रखंड विकास पदाधिकारी परवेज आलम, थानाध्यक्ष अशोक कुमार आजाद आउ हुआँ के गनमान पहुँचल हलन।
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मगह के आयोजन
मगही एकता मंच, जमशेदपुर के स्थापना दिवस
    1 जुलाई 2102 के विरसा मुंडा नगर भवन, सिदगोड़ा, जमशेदपुर में मगही एकता मंच के दोसर स्थापना दिवस काजकरम मनावल गेल। काजकरम के अध्यक्षता मंच के अध्यक्ष हाजी शिमुल्ला आउ मंच संचालन विनोद यादव में संगठन सत्र, मगह के प्रतिभा आउ लाज के सम्मान, मगही साहित आउ कवि सम्मेलन, सांस्कृतिक काजकरम के सत्र दिनोभर चलल। शुरुआत दीया जरा के आउ मगही सम्मान गीत से भेल। दू महिला गीतहारिन से जऊ कहमाँ से आवऽ हे राजा लोगन, कहवाँ से आवऽ हे आजन वाजन के गीत गूँजल तऊ काजकरम के शुरुआते में चार चाँद लग गेल। काजकरम के लेल नगर भवन के मंच पर लगावल गेल मगही एकता मंच पर में बनल बैनर में भगवान बुद्ध, आचार्य चाणक्य, चन्द्रगुप्त मौर्य, आर्यभट्ट, सम्राट अशोक, समुद्रगुप्त, गुरु गोविन्द सिंह, देशभूषण मौलाना मजहरुल हक के फोटू बरबस सभे के धेयान बार-बार खिंचऽ हल। ई बैनर मगही साहित संस्कृति के गाथा के साथे-साथे हम्मर बिहार आउ मगह के गौरवशाली इतिहास के झाँकी हल।
काजकरम में पहुँचत अतिथि
    मगही एकता मंच के ई भव्य-बड़गर काजकरम हल, जेकरा में मंच के समिति, उपसमिति के सदस्य के अलावे ढेरों जानल मानल, झारखण्ड आउ बिहार के अतिथि पधारल हलथिन। हजारों हजार लोगबाग ले सहभोज से ले के रहे-सहे आउ व्यवस्था होल। काजकरम में मुख्य रुप से अतिथि बिहार मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा, मंच के संस्थापक सह सचिव उपेन्द्र सिंह, अध्यक्ष हाजी शिमुल्ला, मुख्य संरक्षक चन्द्रभान सिंह, मंच के महिला मोर्चा अध्यक्ष कमर सुल्ताना, महामंत्री शारदा देवी, युवा मंत्री वीणा चौधरी, केन्द्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आरिफ इमाम, केन्द्रीय सचिव मो. अलाउद्दीन शिद्दीकी अनिल शर्मा, मूलेन्द्र पाण्डेय, प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष आरिफ खान, राँची से अनिल शर्मा, मिस जूली, प्रो. विजय कृष्ण शर्मा, एसडीओ कार्तिक कुमार प्रभात, प्रो. के सी शर्मा, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के अधिकारी आदि सैकड़ों अतिथि उपस्थित हला।
संगठन सत्र
  पहिल सत्र से मगही एकता मंच के आगू के साल के दशा दिशापर विचार विमर्श भेल। मंच के काजकरनी के सदस्य आउ अधिकारी अप्पन विचार देलका। मगही के विकास ले एकर स्थापना के साल भर के काज के लेखा-जोखा, उपलब्धि बतावल गेल। सदस्यता लेवे आउ अभियान चलावे के निर्णय होल।
सम्मान सत्र
    दोसर सत्र में मगह के प्रतिभा के सम्मानित कैल गेल। आईआईटी-जेईई, आईआईटी  में बेहतर करेवला छात्र आउ छात्रा के शॉल, प्रशस्ति पत्र देके अतिथि सम्मानित कैलक गेल। ओकर बाद मगह के लाल के सम्मान होल। मगह के बेहतर काम करेवला मगह से जुड़ल पुलिस इंस्पेक्टर, भारत सरकार आउ प्रदेश के अधिकारी आउ व्यक्तित्व के सम्मानित कैल गेल।
साहित आउ कवि सम्मेलन सत्र
    साहित सत्र में प्रो. विजय कृष्ण शर्मा, संस्थापक सह महामंत्री उपेन्द्र सिंह, अध्यक्ष हाजी शिमुल्ला, बिहार मगही अकादमी अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा समेत वक्ता मगही के इतिहास आउ भविष्य पर चर्चा कैलका।
    प्रो. विजय कृष्ण शर्मा कहलका कि मगही के विद्वाने लोग सतैलथी हऽ। मगह के इतिहास गौरवशाली रहल हइ ई अशोक, बुद्ध के भासा हइ। ई नञ् मरतै। जदि मगह के हिन्दुस्तान के लोकभासा मर जैतै, तऊ हिन्दुस्तान मर जैतै। एकरा ले अवाज उठावे पड़तै। उड़िया, बंगला, कुड़माली, कोरठा, भोजपुरी, मैथिली के ई बहिन है आउ एही सभे लोकभासा से हम्मर संस्कृति जिंदा हइ। संस्कृत आउ एकरा जैसन भासा तो विद्वान के भासा हे लेकिन ई सब लोकभासा हे। जनता के भासा हइ। ई जल्दी नञ् मरतै।
    उपेन्द्र सिंह जी कहलथिन- हम्मर प्रयास थोड़े कमजोर जरुर हे, लेकिन मगही के विकास होतै, हमन्हीं के एकजुट होवे के जरुरत हइ। हम दोसर भासा के निरादर नञ् करवै आउ अप्पन भासा ले काम करैवै। दोसरो के हम्मर भासा जदि बेस लगतै तउ ओहु एकरा अपनैथिन। भासा के विकास लेल क्षेत्र में रचनात्मक काम करेके जरुरत हइ।
    हाजी शिमुल्ला मगह के वर्तमान के महान हस्ती के मगही के विकास ले आगू आवे के आह्वान कैलका। मगह के नेता, मंत्री से लेकर पुलिस आउ अधिकारी के पद पर आसीन मगहिया के मगही ले काम करे के जरुरत हई। ई हजरत मौलाना नवी आजाद, दारुल देववन्द, मनेरी के भासा हइ। अप्पन माटी के भासा हे। सहोदर माय के तरह मिल के हमन्हीं के अप्पन मगही माय के उठावे के चाही।
   उदय शंकर शर्मा मगही के विकास ले आगू आवे के आह्वान के साथ मगहीये में कार्ड छापे, चिठ्ठी लिखे, मगही साहित खरीद के पढ़ें, संकोच छोड़ें, घर-बाहर सब जगह मगही बोले के आह्वान कैलका। ऊ बतैलका कि मुम्बई में मगही फिल्म सपना भेल अपना बनावे के काम शुरु हो गेल हऽ। हम्मर मगही के जोत अब चहूँ ओर जगमगैतै। धीरज धर के सभी काम करहो। 
    कवि सम्मेलन के सत्र में बिहार से पहुँचल श्री मिथिलेश, दीनबन्धु, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, शफीक जानी नादाँ, धनंजय श्रोत्रिय, कृष्ण कुमार भट्टा, उमेश बहादुरपुरी आउ जमशेदपुर में रहेवला वारिसलीगंज, नवादा के साहितकार लक्ष्मण प्रसाद अप्पन-अप्पन विधा के काव्य फुहार से रंग जमा देलका। उदय शंकर शर्मा के गउँआ के इयाद अब सतावे खूब सराहल गेल। सम्मेलन के बाद सभे कवि के शॉल आदि देके सम्मानित कैल गेल।
   ओकर बाद बिहार से गेल मगही सांस्कृतिक टीम अप्पन मगही गायन से समाँ बाँध देलका। मगही साहित से जुड़ल ई काजकरम मगही के काजकरम में ई मील के पत्थर साबित होत।  
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पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
रचना मगही साहित के प्रचार-प्रसार के लेल ईहाँ रखल गेल हऽ। कौनो आपत्ति होवे पर हटा देल जात।
निहोरा

मगहिया भाय-बहिन से निहोरा हइ कि मगही साहित के समृद्ध करे ले कलम उठाथिन आऊ मगही के अप्पन मुकाम हासिल करे में जी-जान से सहजोग करथिन।

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शब्द साधक
हिन्दी मगही साहित्यिक मंच
हिसुआनवादा (बिहार)

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रचना साभार लेल
मथुरा प्रसाद के दूगो कविता – आखिर कहिया तक, (संपादक-डॉ. भरत सिंह)।
मृत्युंजय मिश्र करूणेश के ग़ज़ल – पुरहर पल्लो, मगही काव्य सेंगरन से।
खड़ा नञ् होइहऽ भोला भईया – माटी के दीया से।
मिल के बनवै सुत्थर रे – सारथी अंक २००५ से।
हाय – पाटलि से।
http:magahimanbhavan.blogspot.com


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