शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-१५

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-१५
मगही मनभावन
मगही साहित्य ई-पत्रिेका

वर्ष -                अंक - १५                   सितंबर-2014
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संपादक   --- उदय कुमार भारती

प्रकाशक  --- मगही हिन्दी साहित्यिक मंच शब्द साधक
                    हिसुआ, नवादा (बिहार)
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                                         ई अंक में

दू गो बात.......
संपादकीय
साहितकारे हथिन साहित के पंच-परमेश्वर

आलेख

कि हे लघुकथा - उदय कुमार भारती
मगही लघुकथा के विकास यात्रा - वीरेंद्र कुमार भारद्वाज
लघुकथाएं

अतिथि - मिथिलेश
सफाई के असर - डॉ. सी. आर. प्रसाद
पवन तनय के दू गो लघुकथा - कालचक्र आउ उपभोक्ता
अदमी - गगनसूत नवीन
भय – अरूण कुमार सिन्हा
अलगे देश - इब्ने इंशा
ब्रजपात - खलील जिब्रान
बगावत के वजह - इतालो काल्विनो
पहिचान - गोपाल निर्दोष
राजेश मंझवेकर के दू गो लघुकथा
नयका विहान आउ आत्मसम्मान
वीरेंद्र कुमार भारद्वाज के दू गो लघुकथा
डायन आउ जलाभिषेक
हाय रे धुरखेली - दीनबंधु
सच के जांच - कृष्ण कुमार भट्टा
ई कइसन संबंध - विनीत कुमार मिश्र अकेला
बाबुल के बेटीः कजरी – ई. अमित कुमार
सोंचल सपना तिनका - तिनका बिखर गेल- सुमंत
डॉ. राम प्रसाद के दू गो लघुकथा - संस्कार आउ इमरजेंसी

मगह के आयोजन

मुख्य मंत्री के माय के पुण्यतिथि पर कल्याण बिगहा में काजकरम
पोवारी गांव में सर गणेश दत्त के जयंती समारोह
सजल जी के पुण्यतिथि पर साहित समागम
सारथी के 20वां अंक के लोकार्पण
सिकन्दरा महोत्सव में कवि सम्मेलन आउ मुशायरा
विविध

संदेश मिलल
पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
निहोरा
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दू गो बात....

     बेरी हम ई अंक के जारी करइत बहुते लजा रहलूं हे। मार्च में निकसे वला ई अंक काफी देर से निकसल। परिवार आउ परिस्थिति साहित के काज के सततता में बाधा बन जा हे। ह्रदय तड़प के रह जा हे पर अदमी तऽ समय आउ परिस्थिति के गुलाम होवऽ हइ।
      मगही मनभावन के लघुकथा विषेशांक निकासे के प्रयास में जे कल्पना आउ खाका मन में बनल हल ओकरा से कय गो कमी लेले ई अंक तैयार भेल हऽ। तीन महीना तक भरसक प्रचार-प्रसार करइ के बाद भी जादे आउ मनचाहा रचना नञ् मिल पइलइ। जइसन कि अपने सउ जानऽ हथिन कि मगही मनभावन ई-पत्रिका हइ। ई लेल ईहां पहिले से छप्पल रचना भी साभार ले लेल जा हइ। ईहां प्रयास ई हइ कि नया रचना के साथे-साथे पहिले के छप्पल रचना भी जन-जन तक पहुंचइ। बहुते किताब आउ पत्र-पत्रिका लुप्त हे इया ऊ सउ बहुते लोगबाग के पास नय पहुंच पइलइ हे। ऐसन में बहुते रचना दब के रह जा हइ इया पाठक तक नञ् पहुंचऽ हइ। नयका आउ पुरान दुन्नूं तरह के रचना नेट के जरिये अपने सउ तक पहुंचइ, ई हम्मर प्रयास हे।
     ई विशेषांक में जे भी नया रचना मिलल से मिलल बकि बहुते रचना साभार लेल गेल हऽ। एकरा सउ नजरिया से समृद्ध करइ के हम्मर प्रयास हइ। बकि अपने सउ सुझाव देहो। अपने के सुझाव आउ आलोचना से ही हम्मर ई प्रयास प्रखर बनतइ।
    अंक जइसन भी रहइ अपने सब्भे के समरपित करइत हिरदा जुड़ा रहल हे। कइसहुं करि के ई अंक अपने तक पहुंचावे के घड़ी तऽ आल। मगही मनभावन के अगला अंक कथा-कहानी, आलेख आउ कविता के सामान्य अंक रहतइ। रचनाकार से निहोरा हइ कि सउ विधा के बेस-बेस अप्पन-अप्पन स्तरीय आउ प्रतिनिधि रचना भेजहो। पढ़वइया से हमरा जादे उमेद रहऽ हइ। जदि बीस पढ़वइया में से एगो भी अंक के पढ़े के बाद अप्पन विचार दे हथिन तऽ हम्मर प्रयास के बड़गर बल मिल जा हइ।
                                                                                                                 
                                                                                                       अपने के
                                                                                                            उदय कुमार भारती
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संपादकीय......
           
     घुकथा विशेषांक के ई अंक अपने सउ के समरपित करइत हम ई कहवइ कि लघुकथा के हीरा आउ मोती के जइसन नग के चुन-चुन के तऽ नञ् रख सकलिऐ पर जे भी हो पइलइ ओकरा स्वीकार करहो। अंक में ऐसन कय गो लघुकथा हइ जे लघुकथा के मानकता आउ कसौटी पर खरा नञ् उतरऽ हइ तभियो एकरा में ले लेल गेल हऽ। काहे कि हम्मर उद्देश्य रचनाकार के उत्साहित करइ के भी हइ। उनखर रचनाधर्मिता ऐसने प्रयास से प्रखर बनतइ। ऊ लिखे आउ सीखे लेल प्रेरित होथिन। एकरा हम्मर बड़बोलापन नञ् मानल जाए। आझ हमहूं सीखिये रहलिऐ हऽ। लघुकथा के शिल्प विधान आउ कुछ टिप्स के वर्णन आगू के आलेख में देखे लेल मिलतइ। आलेख ‘कि हे लघुकथा’ में हम लघुकथा के बुनावट पर संक्षेप में कुच्छ कहे के प्रयास कइलूं हे। रचनाकार लेल ई जरूरी हे कि रचना लिखे से पहिले रचना के जरूरत आउ मानकता के ख्याल रखल जाए। रचना में ऊ विधा के सउ गुण-धरम रहइ इया नञ् रहइ, ऊ संपूर्ण रहइ ईया नञ् रहइ पर ऊ विधा के मानकता आउ गरिमा के बरकरार रखइ। वीरेंद्र कुमार भारद्वाज के ‘मगही लघुकथा के विकास यात्रा’ आलेख में लघुकथा के विकास के सीढ़ी के पता चलतइ। भारद्वाज जी के आलेख में लघुकथा के इतिहास से जुड़ल जानकारी बेसे समाहित हइ, जेकरा से बहुत कुछ साफ होतइ।
   ‘साहितकारे हथिन साहित के पंच-परमेश्वर’ हम्मर एगो भावना हइ जे मंच, गोष्ठी आउ सम्मेलन के दरम्यान बार-बार मन में कचोटे हे। आझ मगही के उत्थान काल हे, ऐसन में हमन्हीं एक-दूसर के प्रखर आलोचना नञ् करि के खाली ओकर महिमामंडन में जुटल हिअइ। हम्मर लेखन शैली आउ संपादन के महिमा के गुणगान तों कर रहला हे आउ तोहर लेखन शैली के महिमामंडन हम। चाहे रचना काहे नञ् साहित के कूड़ा-कचरा रहइ। हम्मर मन बार-बार कचोटे हे कि हमन्हीं साहितकारन अप्पन महात्वाकांक्षा आउ बड़का साहितकार बनइ के चक्कर में साहित के बलि चढ़ा रहलूं हे। ईहे होतइ तऽ साहित के स्तर कि रहतइ? जादे ईहां कहइ के जरूरत नञ् हे, पढ़े के बाद विचार देथिन।
    अंक में कुल 21 गो लघुकथा हे जेकरा में तीन गो ‘अलगे देश’, ‘बज्रपात’ आउ ‘बगावत के वजह’ अनुवादित लघुकथा हे। मिथिलेश जी के लिखल ‘अतिथि’ लघुकथा में बिजली के अतिथि मान के ओकर क्षेत्र में हालत आउ आंख-मिचौनी के रेखांकित कइल गेल हऽ। गांव-गिरांव में कोय जोजना के तहत तार-पोल भले गड़ा जाय पर नगर, कस्बा, गांव में बिजली के हालत अतिथिए जइसन हइ। तुनुकमिजाज बिजली के अतिथि बन के आवइ के बड़ी सहज-सरल अंदाज में ऊ रखलका हऽ। डॉ. सी.रा. प्रसाद के ‘सफाई के असर’ आउ कृष्ण कुमार भट्टा के ‘सच के जांच’ लोग के बदलल जा रहल मानसिकता पर चोट हे। पवन तनय के लघुकथा ‘कालचक्र आउ उपभोक्ता’ में लघुकथा के विशिष्टता लघुता के बेस ख्याल कइल गेल हे। मगनसुत नवीन के ‘अदमी’ आउ गोपाल निर्दोष के ‘पहचान’ प्रगतिशीलता के परिचय देइत आस्था पर व्यंग्य के निसानी हे। नवीन जी इंसान के प्रवृत्ति पर भी व्यंग्य कइलन हे। लघुकथा ‘भय’ के माध्यम से अरूण कुमार सिन्हा एड्स जइसन भयानक रोग नञ् लगावे के बेस संदेश देलका हऽ। पत्रकार आउ कथाकार राजेश मंझवेकर के ‘नयका विहान’ आउ ‘आत्म सम्मान’ सहज-सरल रूप से लघुकथा के परिपाटी के बनइले हइ। दीनबंधु अप्पन लघुकथा ‘हाय रे धुरखेली’ होली के कादो-माटी खेले के बहाने जे अतत्ति हो रहले हऽ, ओकरा उभारइत ओकर फल भी देखा देलन हे। वीरेंद्र कुमार भारद्वाज के रचना ‘डायन’ जहां अंधविश्वास के रेखांकित करऽ हइ ओहंइ जलाभिषेक में पूजा से बड़गर अदमी के करतप करि के पूजा बतावल गेल हे। ई कइसन संबंध में विनीत कुमार मिश्र अकेला आझ तार-तार हो रहल मरजादित संबंध के उजागर करऽ हइ। टोला-टाटी के संपादक सुमंत ‘सोंचल सपना बिखर गेल’ में नारी के बदहाल जिनगी आउ ओकरा पढ़-लिख के जिनगी के मुख्य धारा से जुड़े के सपना टूट जाए के बात के रेखांकित कइलका हे। ई. अमित कुमार के रचना ‘बाबुल की बेटीः कजरी’ आझो दहेज दानव के मार से कराहइत माय-बाप आउ बेटी के सच्चाई हइ, जेकर जकड़न से हमन्ही बाहर नञ् निकस रहलिए हऽ आउ ओकर बलि कजरी जइसन बेटी चढ़ रहले हऽ।
   एकर अलावे डॉ. राम प्रसाद के दू गो लघुकथा ‘संस्कार’ आउ ‘इमरजेंसी’ समाज के जाति- धरम के बंधन आउ गरीब जनता के हालत के बयान करऽ हइ। संस्कार में ई साफ झलकऽ हइ कि ई दुनिया में आझो जात-धरम के दीवार दू परेम करे वला के बीच दीवार बनल हइ आउ ओकरा तोड़े में जे समाज के मुख्य पात्र हका ओहे पीछे हका ऊ अभी तक ई मानसिकता से बाहर नञ् निकस पइला हे। ‘इमरजेंसी’ लघुकथा में तंत्र पर चोट करल गेल हऽ। ई लोकतंत्र के जमाना में जनता के मरे के स्थिति से नेता के अंगुरी पिराय के दरद जादे बड़ा हइ।
                                                                                                                  उदय कुमार भारती
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              साहितकारे हथिन साहित के पंच परमेश्वर
                                                         
                                                                उदय कुमार भारती
  
    मुंशी प्रेमचंद के कहानी पंच-परमेश्वर से सब्भे परचित हथिन। कहानी के पात्र जुम्मन शेख के खालाजान (मौसी) के अलगू चौधरी (जे जुम्मन शेख के जिगरी दोस भी हलन) के पंचइती से मना कर देवे पर कहल पंक्ति – ‘‘बिगाड़ के डर से ईमान के बात नञ् कहबऽ...।’ के रेखांखित करइत हम ई कहे ले चाहऽ ही कि साहित के पंचइती आउ आलोचना के अदालत में आखिर कहिया तक हम बिगाड़ के डर से ईमान के बात नञ् कहवइ? आउ हमन्हीं साहितकारन के भी सोंचे के चाही कि साहित जगत के पंच-परमेश्वर बने में हम कहिया तलूक परहेज करवइ? साहित के ऊंच-नीच के जदि हमहीं ही नजर अंदाज करवइ तउ समाज के सच के आईना ईमानदारी से हम कइसे देखला पइवइ? हम एक-दोसरा के दोस-मुहिम मान के साहितिक ईमान के बात कहे से परहेज करवइ तऽ कहियो साहित के साथ इंसाफ नञ् होतइ, नञ् तऽ साहित के स्तर में सुधार होतइ आउ नञ् साहित के दमगर काम होतइ। हम अप्पन-अप्पन निजी सोवारथ लेल साहितकार के चमचई करवइ... उनखर अनुचित काज पर भी अंगुरी नञ् उठैवइ तउ ई साहित आउ साहितकार दुन्नूं लेल दुर्भाग्य आउ विनास के विषय हइ। आझ ईहे कारण हइ कि साहित स्तर गिर रहले हे। जुगाड़ के बदौलत लोग साहित के मटियामेट करि के अप्पन महात्वाकांक्षा साध रहलथिन हे। साहितकार एक-दोसर के महिमा मंडन करे में लगल हथिन। साहित के विकास के काज नञ् भे रहले हऽ। आझ जरूरत हइ साहित के सच के उजागर करइ के। पंचइती, समीक्षा आउ आलोचना करइ के। काहे कि अभी मगही साहित के उत्थान काल हे, साहित के कसौटी पर कस के ओकरा निखारे के समय हे। पर ई हम्मर साहित के दुर्भाग्य हे कि सच कहे के हिम्मत बड़ी कम आलोचक कर रहलथिन हे। हम ईहां दू-चार गो व्यक्तित्व के चरचा करवइ जिनखर कलम पंच के रूप में उठ रहले हऽ।
     एकरा में हम सउ से आगू ‘सारथी’ पत्रिका के कार्यकारी संपादक व हिन्दी मगही के समीक्षक नरेन जी के रखवइ। नरेन जी के कलम रचना आउ रचनाकार के शैली पर खूमे उठऽ हइ। बराबर पत्र-पत्रिका में इनखर कटु आलोचना देखे ले मिलऽ हइ। रचनाकार आउ पत्रकार से लेके संपादक आउ संस्था सब्भे के काज के कटु-मधु आलोचना ई बेहिचक रखऽ हका, चाहे केकरो मीठ लगइ चाहे तीत। ई सब्भे के आलोचना के घूंट पिलावऽ हका। एकर बानगी ‘सारथी’ पत्रिका के कय गो अंक में भी खुल के झलकऽ हइ।
    दोसर पंच के रूप में हम मगध विश्वविद्यालय के मगही विभागाध्यक्ष डॉ. भरत सिंह के नाम लेवइ। मगही साहितिक गोष्ठी आउ काजकरम के मोका पर के उनखर संबोधन में आलोचना आउ समीक्षा खुल के सामने आवऽ हइ। रचनाकार के रचना के आउ उनखर आत्ममुग्धता के ऊ नाप के रख दे हका। खुल के ऊ कहऽ हथिन कि मंच पर कविता सुनाके वाह-वाही बटोर लेवे से मगही के कल्याण नञ् भेतइ आउ नञ् तऽ देश के स्तरीय पत्र-पत्रिका में एगो रचना के छप जाए से कोय बड़का रचनाकार भे जइतन। साहित के समृद्धि लेल हर विधा में दमदार काज करइ के जरुरत पर ऊ बार-बार बल दे हका। ऊ कहे में हर जगह प्रखर दिखऽ हका, जउ ऊ रचनाकार के मुंहे पर उनखर कमी के इंगित कर दे हका।
    श्री मिथिलेश अपने आप में एगो संस्था हका। उनखा कारवां बना के चले के सउ दिने के आदत हइ। पोजेटीव पक्ष के उजागर करना उनखर गुण-धरम में शामिल हइ। ई लेल साहितकार के निगेटीव पक्ष पर ऊ चुप्पी साध ले हका आउ पोजेटीव पक्ष के जमके उभारऽ हका। उनखर ई बेस गुण हइ। एकरा पर हमरा जइसन जादे कुछ नञ् कह सकऽ हे। उनखर चुप्पी भी कुछ नञ् कहे के बाद भी बहुत कुछ कह जा हइ। पर ‘सारथी’ के संपादकीय पैनल में उनखर सब्भे के साथ लेके चले के जे गुण झलकऽ हइ, ओइसन भी ठीक नञ् कहल जा रहले हइ, बड़गो संपादकीय पैनल पर कय गो अंगुरी उठइलथिन हे।    
    बिहार मगही मंडप के रामरतन सिंह रत्नाकर पत्रकारिता के जरिये साहितकार के आलोचना करऽ हका। शुरू से पत्रकार रहे के कारन उनखर निगेटीव पक्ष वला आलोचना जादे उभर के सामने आवऽ हइ।
    मगही पत्रिका के ‘पुरोधा’ धनंजय श्रोत्रिय के साहितकारन पर चलावल कलम आउ आलोचना तऽ ऐतिहासिके हे... जेकरा प्रत्यक्ष आउ अप्रत्यक्ष रूप से साहितकार गारिये मानऽ हथिन।
    मगही के आउ व्यक्तित्व में डॉ. लक्ष्मण प्रसाद, शंभू विश्वकर्मा, अशोक समदर्शी, हरींद्र विद्यार्थी सहित कय गो के नाम आवऽ हइ। लेकिन ऊ सब्भे के खरा आलोचना करे के अभी बड़गर जरूरत हइ। ई सोने पर सुहागा के काज करतइ। हम आझ कइसनो लिखल रचना के खाली सार्वजनिक महिमा मंडने करे लगऽ हिअइ। एकरा पीछू रचनाकार के प्रोत्साहित करे के उद्धेश्य भी छिप्पल रहइ पर एकरा पर अंकुश के जादे जरूरत हइ। रचना खरा हइ तऽ सराहे के काज होवे के चाही पर टेबुल डायरी आउ तुकबंदी पर लगाम के जरूरत हइ। उनखा पर जदि भरल सदन में अंगुरी उठावइ के काज अनुचित लगऽ हइ तऽ उनखा अकेले में भी सुझाव देल जा सकऽ हइ।

     ईहां उल्लेख करल गेल नाम के अलावे भी जे समीक्षक, आलोचक आउ भासा के पंचइती करइ वला अप्पन काम पारदर्शिता आउ ईमानदारी से कर रहला हे, हम उनखा भी साधुवाद दे हिअइ। उनखर अंकुश आउ कसौटी के नमन करऽ हिअइ।
   अउ हम आखिर में फेनू ई कहवइ कि मगही के समग्र विकास लेल आउ स्तरीय लेखन लेल साहितकार के पंच-परमेश्वर बन के काज करे सब्भे के करइ पड़तइ, अलगू चौधरी के नियर। जे उत्साह आउ बौसाह से हम्मर दू-चार गो व्यक्तित्व पंच बने के दायित्व निभा रहला हे उनखा हम साधुवाद दे ही। उनखर पंचइती से ही मगही के ऊंचगर मकाम मिलतइ... ई सासवत सच हइ।
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आलेख
                                                      कि हे लघुकथा
                                   उदय कुमार भारती
      घुकथा सूक्ष्म संवेदना से लैस जीवंत प्रवाहमयी गद्य विधा हे। ई हिन्दी-मगही दुन्नूं के नवीनतम विधा मानल जा हे। कालांतर में लघुकथा के शैली आउ कथ्य में बदलाव हो रहल हे। ई निरंतर विकासशील विधा हइ। आझ लघुकथा के कसौटी यथार्थबोध मानल जा हे। केवल दृष्टांतपरक, बोधपरक और नीतिपरक एकर कसौटी नञ् रह गेल हे। ई सामाजिक जीवन के सच्चाई के जादे करीब रहइ वला विधा हइ। ई जेतने छोटा होवऽ हइ ओतने एकरा में एहसास करावे के आउ संवेदना के झकझोरे के शक्ति होवऽ हइ, मानसपटल पर ई बड़गर प्रहार करऽ हइ।
    लघुकथा के लेके साहितकार आउ समालोचक के धारणा में भिन्नता देखे के मिलऽ हइ। डॉ. कमल किशोर गोयनका के अनुसार -‘‘लघुकथा एगो लेखक विहीन विधा हइ।’’ यानी कि एकरा में लेखक के उपस्थित रहे के एहसास नञ् होवे के चाही। दोसर सर्वमान्य तथ्य ई हइ कि ‘‘लघुकथा एगो निदानात्मक रचना हे, उपचारात्मक रचना नञ्।’’ ई सूक्ष्म कथा हइ, विकासशील विधा हइ। भैरवनाथ झा कैरव के अनुसार – ‘‘लघुकथा स्थूल से सूक्ष्म के जतरा हे।’’
   लधुकथा तभिये लघुकथा हइ जउ ऊ भाव संवेदना आउ भासा संवेदना दुन्नूं पर खरा उतरइ। भाव(वस्तु) के साथ भासा(बिंब) भी सशक्त होने के चाही, शैली चाहे कुच्छो होवे रहइ। ई विषय, प्रकृति, कथ्य, घटना, स्वरूप आउ शिल्प सब्भे से लैस रहइ इया नञ् पर एकर अभिव्यक्ति बड़ी दमगर होवे के जरूरत हइ। रचनाकार के एकर शिल्प विधान आउ विशेषता के बड़ी विस्तार से जाने के आउ ओकर बाद रचना करे के जरुरत हइ।
   लेकिन लघुकथा के शिल्प के मूल में एकर लघुते मानल जा हइ। ई केतना लघु होवइ के चाही ई तऽ निर्धारित नञ् हइ लेकिन जादे से जादे शब्द सीमा 200 से 300 मानल जा रहले हऽ। ई सीमा से जादे में भी लघुकथा मिल जा हे। लघुकथा के तीन मूल तत्व रेखांकित कइल जा सकऽ हइः-
1.लाघवः- लाघव भासा विज्ञान में प्रयुक्त होवे वला टर्म हइ जेकर मतलब होवऽ हइ कि रचना में भटकावे वला बेकार के शब्द आउ वाक्य नञ् रहइ। जइसे कोय पकवान बनावे लेल जे सामाग्री आउ बरतन के जरूरत हइ बस ओतने ऊहां पर रहइ आउ कुच्छो नञ्।
नेपथ्यः- लघुकथा के नेपथ्य सहज, स्पष्ट आउ सार्थक होवे के जरूरत हइ। नेपथ्य के प्रति प्रत्यक्ष में सचेतता दिख जाए के चाही।
सम्पूर्णताः- रचना के सउ तरह के तत्व इया सउ तरह के अवयव से युक्त होवइ इया नञ्। पर ओकर शैली, गठन, प्रवाह और प्रभाव सशक्त होवे के चाही। ओकरे बाद ही ऊ संपूर्ण लघुकथा मानल जा सकऽ हइ।

हिन्दी के पहिल लघुकथा
       
       लघुकथा के उद्भव के ऋग्वेद, वैदिक काल के महाभारत आउ पुराण से जोड़ल जा सकऽ हे। कालांतर में अदमी में नीति, धर्म, सद्गुण, सच्चाई जइसन गुण के विससित करइ के लेल हम्मर पूर्वज आउ आर्ष लोगन पंचतंत्र, जातक कथा, हितोपदेश आदि के रचना करलथिन हल जेकर कथानक जनमानस के झकझोर के रख दे हल आउ ओकर मन-मष्तिस्क पर प्रभावशाली संवेदना, चेतना आउ प्रेरणा जगावऽ हल। ईहे कथा के गर्भ आउ भिन्न-भिन्न धारा से लघुकथा के जलम होल हे। पर ऊ कथा में नीति आउ धरम के दृष्टांत जादे छुपल हल। आझ सफल लघुकथा ऊहे हइ जेकरा में यथार्थपरक मानवीय संवेदना के प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति हइ।
     हिन्दी के पहिल लघुकथा पर अभी तक मंथन चल रहले हऽ। तत्कालीन कसौटी आउ दृष्टिकोण के वजह से कय तरह के विसंगति सामने आवऽ हइ। एकरा लेल शोध के जरूरत हइ। पहिल लघुकथा 1916 ई. में सरस्वती पत्रिका में छप्पल पदुमलाल बख्शी के ‘झलमला’ रचना के मानल जा रहले हऽ लेकिन पहिल लघुकथा के दौड़ में शामिल भारतेंदु हरिश्चंद्र के 1876 में छप्पल ‘अंगहीन धनी’, ‘अदभुद संवाद’, माखनलाल चतुर्वेदी के ‘बिल्ली और बुखार’( काल पर संशय की स्थिति), 1901 में छप्पल माधवराव सप्रे के ‘एक टोकरी भर मिट्टी’, 1915 में सरस्वती पत्रिका में छप्पल छब्बेलाल गोस्वामी के ‘विमाता’, 1916 में सरस्वती पत्रिका में छप्पल पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के ‘झलमला’, 1919 में जगदीश चंद्र मिश्र के ‘बूढ़ा व्यापारी’ के नाम आवऽ हइ। एकर बाद जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर के लिखल लघुकथा के नाम आवऽ हइ जे 1926 से 1930 तक छप्पल हे। ऊ में जयशंकर प्रसाद के प्रसाद, ‘गुदड़ साईं’, ‘गुदड़ी के लाल’, ‘पत्थर की पुकार’ प्रेमचंद के ‘बाबाजी का भोग’ आदि के नाम आवऽ हइ। सबसे जादे जयशंकर प्रसाद के लघुकथा देखे के मिलऽ हे। लघु कथा के बढ़ावे में समकालीन रचनाकार जगदीश कश्यप, बलराम अग्रवाल, हरिशंकर परसाई, रमेश बतरा, कृष्ण कमलेश, विष्णु प्रभाकर, विक्रम सोनी, सुकेश साहनी, भागीरथ, सतीश दूबे के नाम आगू हइ। संपादक में कमलेश्वर, बलराम, राजेंद्र यादव, कमल चोपड़ा, सतीशराज पुष्करणा जी के नाम आगू आवऽ हइ।

मगही लघुकथा के इतिहास

    हिन्दी लघुकथा के लेक जे भी भ्रम रहइ पर ओकर इतिहास कुछ हद तक साफ हइ कि ओकर सुरूआत 1876 के आसपास कसौटी पर कसे वला लघुकथा आ चुकले हल। पर मगही लघुकथा के बारे में जे मगही इतिहास के किताब आउ पत्र-पत्रिका में मिलल हइ ओकर अनुसार मगही लघुकथा के इतिहास जादे पुरान नञ् हइ। 1965 के बाद के परकासित लघुकथा आउ लघुकथा संग्रह मिलऽ हइ। मगही अकादमी, बिहार, पटना के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राम प्रसाद जी के पहिल लघुकथा ‘अमरत्व के भूख’ जमशेदपुर से निकसे वाला ‘भोर’ पत्रिका में छप्पल हल ओकरा मगही के पहिल लघुकथा मानल गेल हे। कय गो साहितकार आउ संपादक उनखे लघुकथा के जनक बतइलका हऽ। ऊ लगभग 100 लघुकथा रच के आउ संग्रह निकास के मगही लघुकथा के लेल बड़का काज कइलका हऽ। दूकर नाम डॉ. स्वर्ण किरण के आवऽ हइ। ओकर बादे मगही में केशव प्रसाद वर्मा, डॉ. अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, प्रो. तृप्ति नारायण शर्मा, राम पारिख, प्रो. दिलीप कुमार, प्रो. रामनरेश प्रसाद वर्मा, वीरेंद्र सिंह आजाद, राम विलास रजकण, सुखित वर्मा, अलखदेव प्रसाद अचल, डॉ. उमाशंकर सिंह, अंबिका सिंह, श्रवण कुमार मधुर, अवधेश प्रसाद सिंह, महेंद्र प्रसाद देहाती, रामयतन प्रसाद यादव, ललन कुमर मिक्ष, डॉ. वीर बहादुर सिंह विजय, संजीव कुमार तिवारी, सच्चिदानंद प्रसाद, शिव प्रसाद लोहानी, डॉ. वीर विजय सिंह बेसुध, डॉ. राम विलास रजकण, रामदास आर्य, अरूण कुमार सिन्हा के नाम आवऽ हइ। समकालीन मगही में पवन तनय, वीरेंद्र कुमार भारद्वाज जइसन के नाम आवऽ हइ। अरूण कुमार गौतम, अरूण वर्मा, राजेश मंझवेकर, बैजू सिंह, कृष्ण कुमार भट्टा भी लघुकथा लिखे के दौड़ में शामिल हका।   
मगही के परकासित लघुकथा सेंगरन में डॉ. स्वर्ण किरण के सेंगरन, डॉ. अभिमन्यु प्रसाद मौर्य आउ डॉ. उमाशंकर सिंह के संपादन में छप्पल ‘छत्तीसी’, डॉ. राम प्रसाद सिंह के ‘मगह के आवाज’, संजीव कुमार तिवारी के संपादन में छप्पल सेंगरन ‘धरोहर’ के नाम आवऽ हइ। केशव प्रसाद वर्मा के सेंगरन ‘हाथी के दांत’ के छपे के तैयारी के जानकारी वर्णित मिलऽ हे।
  लघुकथा के विकास में पत्रिका ‘विहान’, ‘अलका मागधी’, ‘मगधांचल’, ‘निरंजना’, ‘मगही पत्रिका’, ‘पाटलि’, ‘टोला-टाटी’, ‘सारथी’ आदि पत्रिका के नाम आवऽ हइ।
    लघुकथा के विकास में आकासवानी पटना के भी जोगदान अहम हइ। एकर परसारन बराबर होते रहल हे। अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच, पटना लघुकथा के विकास लेल 24 साल से काजकरम आयोजित करि के मंच देवे के काम कर रहल हे। एकर अधिकारी सउ साधुवाद के जोग हथिन।    
   आझ मगही लघुकथा के कसौटी पर कसे के आउ प्रखर आलोचना करइ के जरूरत हइ। काहे कि साहितकार लघुकथा के शिल्प, कथ्य, लघुता आउ दोसर गुणधरम के बिना समझले-बुझले कथा लिख रहलथिन हे। छोटगर कहानी-किस्सा लिख के ओकरा लघुकथा के संज्ञा दे रहलथिन हे। कहइं-कहंइ तऽ खुल के नकल भी झलकऽ हइ। एकरा पर अंकुश लगावे आउ रचनाकार के रचनाधर्मिता के प्रखर बनावे के लेल कड़गर आलोचना लिखे आउ करे के जरुरत हइ।
  मगही लघुकथा पर शोध के जरुरत हइ। अउ तक के लिखल मगही कथा के ओकर मानकता आउ कसौटी पर कसे के जरूरत हे। छोटगर कहानी, किस्सा आउ कौंध कथा के सार्थक लघुकथा के संज्ञा देवे के काम उचित नञ् हे। एकरा पर प्रखर आलोचना आउ मंथन के बाद निर्णय लेवे के जरूरत हइ। एकर शोध के बादे ई साफ हो सकतइ कि मगही के श्रेष्ठतम पहिल लघुकथा कउन हे? अभी तक कहइं भी कोय आलेख में ई वर्णन नय मिललइ कि अउ तक के लिखल लघुकथा में श्रेष्ठतम रचना कउन हइ। लघुकथा के इतिहास से जुड़ल इतिहास डॉ. राम प्रसाद सिंह जी के संपादन में छप्पल ‘मगही साहित्य के इतिहास’ सहित दोसर किताब आउ पत्र-पत्रिका में जे मिलऽ हइ ओकरा में डॉ. राम प्रसाद जी के एकर जनक बतावल गेल हे। ऊ मगही के पहिल लघुकथा हे ई तऽ पता चलऽ हे। लेकिन अउ तक के मगही कथा में श्रेष्ठतम पहिल लघुकथा कउन हे ई पता नञ् चल हइ। ई काम के अगुआई भी डॉ. राम प्रसाद जी जइसन प्रखर साहितकार सउ मिलके करतन तबे कुछ भे सकऽ हइ। मगही के कहानी विधा में भी ई काम करइ के जरूरत हे। ऐसन शोध के जोखिम भरल काम करइ के जहमत मगही के कोय साहितकार आउ आलोचक नञ् उठा रहला हे, जइसन कि किताब आउ पत्र-पत्रिका पढ़े आउ देखे ले मिलऽ हे। हमन्हीं साहितकारे सउ कह दे हिअइ कि – ‘‘अजी, मगही के अभी फले-फूले देहो, मगही के समृद्ध होवे देहो।’’ तउ ऐसन फल-फूल आउ समृद्धि कउन काम के जेकरा से साहित साहिते नञ् रहइ? समीक्षा आउ मंथन के समय अभिये हे - लिखे देहो नञ्....लिखे लेल सीखावे के काम भी साहितकारे के हइ । कार्यशाला चलावे के, गोष्ठी में ई बात उठावे के जरूरत हइ। अउ नञ् होतइ तऽ कहिया होतइ?
  अंत में ईहे करवइ कि लघुकथा एगो ‘पंच’ (प्रहार) हइ। जइसे कोय बात के दमदार तरीका से कहे लेल ‘पंचलाईन’ बनावल जा हे, ओसहीं लघुकथा ‘पंच’ आउ ‘कथा’ दोनों के ऐसन समिश्रण हइ जेकरा से जबरदस्त प्रहार होवऽ हइ।
       
                                (इतिहास आउ तथ्य पत्र-पत्रिका आउ पुस्तक के आधार पर लिखल)
                                                                     
                                                                                                        -संयोजक
                                                                           हिन्दी मगही साहित्यिक मंच शब्द साधक, हिसुआ (नवादा)
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आलेख
           
                                       मगही लघुकथा के विकास-यात्रा
                    
                                                 वीरेंद्र कुमार भारद्वाज
        
               अदमी के जलम के साथ ही कथा-कहानी के जलम होएल। माय अप्पन बाल-बच्चा के सुतावे घड़ी लोरी गाके सुनावऽ हल। जउ लइकन-फइकन तनि सरेख हो जा हलन तऽ उनखा खिस्सा कहके सुतावल जा हल – चान-तारा, राजा-रानी, पंडित-जजमान, भूत-प्रेत, चोर जइसन बहुत प्रकार के खिस्सा-कहानी। साथे-साथ घुघुआ मना घुमेरिया, जय कन्हइया लाल की, चंदा मामा दूर के नियर ढेर मनी गीत-गाना भी सुनावल जा हल। ई सउ के मूल में कथा हल। ई तरह से अदमी के विकास के साथे-साथ कथा के भी विकास होएल। एक्कर सबसे बड़गर कारण एकर सरस आउ मनोरंजन होना रहल हे। कथा-विधा के लेल आझ भी ई एगो आवश्यक तत्व के रूप में मौजूद हे। ई कथा से आगे चलके उपन्यास, कहानी आउ लघुकथा के जलम भेल। ई तीनों विधा लगभग समानांतर चलल।
    लघुकथा संभवतः अंग्रेजी के ‘शॉर्ट स्टोरी’ शब्द के सीधा अनुवाद हे। ई वस्तुतः दृष्टांत के रूप में विकसित होएल हे। ऐसन दृष्टांत मनुष्य रूप से नैतिक आउ धार्मिक क्षेत्र में देखे-पढ़े ला मिलऽ हे। पंचतंत्र, हितोपदेश, जातककथा इत्यादि में हम नैतिक दृष्टांत देख सकली हे। ऐसहीं धार्मिक दृष्टांत के अंतर्गत भी लघुकथा के अनेक रूप हमरा देखे-सुने ला मिल जाहे। ई प्रकार से हम कह सकली हे कि पंचतंत्र, हितोपदेश, आउ जातककथा में लघुकथा के बीज पावल जाहे। बाद में आधुनिक संदर्भ में एकरा में कुछ खासियत आउ परिवर्तन देखे ला मिले लगल। प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, जैनेंद्र, अज्ञेय जइसन महान कथाकार लोग ई विधा आउ धारा के एक शक्तिशाली गति प्रदान कएलन। फिर हम सुदर्शन, कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ जइसन रचनाकार के कुछ लघुकथा के रख सकली हे। पर एतना होएला पर भी लघुकथा एक हाशिया के ही चीज भर देखल जा हे। पर आज स्थिति ऐसन न हे। आज लघुकथा तमाम परिधि के तोड़के एक स्वतंत्र आउ सशक्त विधा के रूप में साहित जगत में अप्पन झंडा फहरा चुकल हे। एकरा ई स्थान दिआवे में भैरवनाथ झा ‘कैरव’ के उल्लेखनीय हाथ हे। 1942 ई. में ‘हिन्दी साहित्य साधना की पृष्ठभूमि’ नामक पुस्तक में कैरव जी लघुकथा के रूढ़ अर्थ में स्थिर कएलन कि ‘‘लघुकथा स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा है।’’
    रचना के दृष्टि से लघुकथा में भावना के ओतना महत्व न हे, जेतना कि कोई सत्य के, कोई विचार के, विशेषकर ओक्कर सारांश के महत्व हे। आझ जे लघुकथा के शुद्ध, मानक आउ मौलिक स्वरूप हे, ओक्कर खासियत आउ मान्यता हे कि गागर में सागर भरना। क्षिप्रता सबसे बड़ा आवश्यक तत्व हे। क्षण-विशेष के घटना के नाम हे लघुकथा। एक शब्द भी फाजिल न आवे के चाही। लघुकथा शब्द के कंजूस होवऽ हे। एक शब्द के बचत ला बार-बार उद्योग करऽ हे। उपभोक्तावादी युग में तो एक्कर कंजूसी महादान के काम करऽ हे। लघुकथा में अंतराल-दोष भी बड़का दोष मानल जा हे। एकरा फ्लैश बेक से दूर करल जा सकल हे।
   हिंदी के साथे-साथे मगही, मैथिली, भोजपुरी जइसन क्षेत्रीय भाषा में लघुकथा के विकास होएल। क्षेत्रीय भाषा में लघुकथा लिखे के प्रचलन लघुकथा के लोकप्रियता के कारण ही हो सकल हे। पर क्षेत्रीय भाषा अभी 80% ही लघुकथा के मानक स्वरूप पर लघुकथा लिख रहलक हे। मगही के भी ईहे दशा हे। आझ मगही में लघुकथा लिखे में जे-जे हाथ लगएल हथ ऊमें से बहुते ऐसन रचनाकार हथ जिनका से मानक लघुकथा न लिखल जा हे। ऊ मात्र छोटा आकार-प्रकार जान के लघुकथा के रचना कर रहलन हे। एक्कर सबसे बड़का कारण ई हे कि ऊ लोग मानक लधुकथा के अंदर घुसे के कोरसिस नञ् करऽ हथ। ओक्कर आत्मा, अस्तित्व आ असली स्वरूप के समझले बिना मात्र आकार-प्रकार देख के लघुकथा लिख रहलन हे। आउ दोसर घाटा ऊ बात ई हो रहलक हे कि ढेर मगहियन रचनाकार इनका बड़ा आउ स्थापित रचनाकार मान के इनकर नकल कर रहलन हे। ओहीं पर कुछ ऐसन रचनाकार भी मगही भाषा में लघुकथा लिख रहलन हे, जिनका भले लोग बड़ा न समझथ, बाकी उनकर लघुकथा बिल्कुल चुस्त-दुरूस्त आउ ठोस हे, साथ ही सब तत्वन के प्रमुखता लेले हे। अइसन जागरूक आउ सशक्त मगही लघुकथाकार ऊहे लोग हथ जे प्रायः हिंदी में भी अच्छा लघुकथा लिख रहलन हे आउ अप्पन पहचान बनएले हका।
   मगही लघुकथा लेखन में शुरूआत हिंदी लघुकथा के देखा-देखी से भेल हल। जइसे-जइसे हिंदी लघुकथा जोर पकड़ित गेल, ओइसे-ओइसे मगही में भी लघुकथा लिखे में तीव्रता आवे लगल। कय गो छोटगर-बड़गर रचनाकार लघुकथा लिखे लगलन। मगही पत्र-पत्रिका में लघुकथा छपे लगल। ई पत्र-पत्रिका में ‘विहान’, ‘अलका मागधी’, ‘टोला-टाटी’, ‘पाटलि’ आउ ‘मगही पत्रिका’ मुख्य हे। ई में छप्पल देख के लघु कथाकार लोगन के आउ हौसला बढ़ल आउ लघुकथा लिखे के गति बढ़ा देलन।  फिर रेडियो आउ टेलीविजन में भी लघुकथा के लेके भाग्य आजमाईश कएलन। उनका रेडियो आ टी.वी. दुन्नो में मौका मिलल। अभी तक रेडियो आ टेलीविजन से भी ढेर मनी लघुकथा आउ लघुकथा संदर्भ-विषयक वार्ता आदि प्रसारित भेल हे आ निरंतर जारी हे। दू-तीन गो संपादित पुस्तक भी लघुकथा में आके मगही लघुकथा के इतिहास में बड़का अध्याय जोड़ल हे। इमें, ‘लघुकथा छतीसी’ ,धरोहर  मुख्य हे। जइसन कि नाम से स्पष्ट हे कि इमें छत्तीस लघुकथा हे। एक्कर संपादन, अलका मागधी के संपादक डॉ. अभिमन्यु प्रसाद मौर्य आउ डॉ. उमाशंकर सिंह कएलन हे। ई 1998 ई. में छप्पल। फिर उहे साल संजीव कुमार तिवारी के संपादन में ‘धरोहर’ लघुकथा संग्रह छप्पल। 
   ई सब सामूहिक संग्रह आ संपादन के बाद एक-दू गो व्यक्तित्व संग्रह भी छप्पल हे आ कइएक गो छपे छपे के तइयारी में हे। मगही लघुकथा के विकास में अलका मागधी बढ़-चढ़ के हिस्सा ले रहलक हे। ई अप्पन प्रायः हरेक अंक में तो लघुकथा छापबे करऽ हे, साल में एक बार लघुकथा-विशेषांक भी निकालऽ हे। अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच, पटना 24 साल से पूरे  देश में लघुकथा के एकमात्र सबसे बड़का मंच हे। हर साल ई मंच एगो देश विख्यात सम्मेलन करवावऽ हे। पूरे देश के लघुकथा लेखक समीक्षक पधारऽ हथ। एक्कर जब से  हम(वीरेंद्र कुमार भारद्वाज) साहित्य सचिव होलूं हे, तब से अभिमन्यु प्रसाद मौर्य से विशेषांक निकाले लेल आग्रह करऽ ही आउ मौर्य जी बहुत ही हंसी-खुशी आउ दिलचस्पी से लघुकथा-विशेषांक निकालऽ हथ।  ई सम्मेलन के अवसर पर नामी-गिरामी साहित्यकार से लोकार्पण करबावल जाहे आउ सब में एक-एक प्रति बांटल जा हे। ई प्रकार से पूरे देश के नामी-गिरामी लघुकथाकार, कहानीकार, कवि, समीक्षक के हाथ में अलका मागधी के लघुकथा-विशेषांक जाहे। ऊ पर लोग अप्पन विचार भी भेजऽ हथ। ई में देश-विदेश के प्रमुख रचनाकार के लघुकथा के मगही रूपांतर भी होवऽ हे। एक्कर अलावे कइएक गो ऐसन हिंदी पत्र-पत्रिका हथ, जो मगही लघुकथा के भी महत्वपूर्ण स्थान देवऽ हथ।
    धनंजय श्रोत्रिय के संपादन में दिल्ली से निकसल ‘मगही-पत्रिका’ में कय गो रचनाकार के लघुकथा छपे लगल एकरा से लघुकथा के स्वरूप देशव्यापी होवे के आशा जगल।
    रेडियो आउ टेलीविजन मागधी आउ क्षेत्रीय कार्यक्रम के तहत लघुकथा आउ लघुकथा-वार्ता प्रसारित करबएबे करऽ हे। नालंदा खुला विश्वविद्यालय जइसन कुछेक शिक्षण संस्थान में  लघुकथा अप्पन अधिकार जमएले हे। ईहां पाठ्यक्रम में लघुकथा भी पढ़ावल जा हे।
    ई तरह से मगही लघुकथा आझ तक अप्पन ईहां तक के  यात्रा तय कएलक हे। ई यात्रा बहुत छोटगर यात्रा हे। मगही कथाकार के ई यात्रा के रफ्तार देवे के जरूरत हे। मगही लघुकथाकार आ कहानीकार में ई दम हे ई तऽ स्पष्टे हइ। मगही लघुकथा के भी अपार भविष्य हे। एकरा ला हिन्दी जइसन सशक्त भाषा के लघुकथा के चिंतन-मनन आ अनुपालन के जरूरत हे।
                                                          
                                                                                                                   -खजुरी, नौबतपुर, पटना
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लघु-कथा

                                                                 अतिथि
                                                                                  
                                                          मिथिलेश
       झा जी के बाजारे में जानकारी हो गेल कि घर पर एगो अतिथि अइलन हे। स्वभाव से तुनुकमिजाजी कखने चल जइतन। छहे-छमाहे भूलल-भटकल दर्शन देवे आवऽ हथुन आउ बिना कहले उठ-पुठ के चल दे हथुन।
    झा जी सोंचलन – ‘‘जल्दी काम सलटा लेही। लपकल जाम तऽ दस-पांच मिलिट में तऽ राम-सलाम होइये जात।’’
   उनखर चाल तेज हो गेल। अइसे ऊ शहर में कछुआ चाल चले में बाजी मारले हथ। लोग बाग उनखर फुर-फुर उड़इत देख अकचकइलन, ‘‘ जरूर कोय बात हे। झा जी तो गैंठ कलौआ मधुरी चाल बला सिद्धांतवादी हथ। आज की बात हे कि सिद्धांत ताखा पर धर अइला?’’
    झा जी के बड़की पोती ‘बाल हंस’ पत्रिका ले एक पहरे से घेराव कइले हल। ओकर जबरदस्त घिरकौनी हल, ‘‘ आज नञ् ला देबहो तऽ लिखे-पढ़े नञ् देबो।’’
    झा जी बाल हथ के फेरा में फंस गेला । जे केकरो से पराजित नञ् होवऽ हे ऊ बुतरू से ...। इनखो ऊहे हाल हल। झुंझलाइत झुक गेला। टेबुल पर ‘गुदरी के लाल मेवालाल’ उपन्यास के अधलिखल पांडुलिपि दने हिया हारल सन ताकलका अउ अंगा पेन्ह के छेड़ी उठैलका। छोटकी पोती के भनक लग गेल। ऊ भी आल अउ डट के कहलक, ‘‘हमरा ले टौफी लेले अइहा..... बेस।’’
   पत्रिका के गुमटी घुर दखिनी छोर पर हल। ऊ रपरपाल चलल जा रहला हल। बुढ़ारी के टंगरी। डगमग दाहा नियन दोलल चलल जा रहला हल बजार में तमाशा बनल। पहुंचते खाली पत्रिका लेलका अउ अपना ले खलिया चुनौटी में खैनी वला से चूना भरा के छो महीना वला गोरछनी के रस्ता धरलका। घूम-घूमौआ जिलेबिया गली से पार करइ में जगहे-जगहे ठोकर मिले... उठल-बैठल जन्नी-मरदाना, ढिल्ला हेराबइत बुढ़िया, कित-कित केलइत कमसिन लड़की। हद तो तब होवे, जउ बैडमिंटन से लेके किरकेट के प्लास्चिक बला बल्ला भांजइत खेलाड़ी के झुंड मिल जाए। उनखर चाल सौंसे गली में बरदभुतवा भे गेल। अंतिम कसर मोड़ पर एगो आरूनी भक्त चेला निकास देलक।
 ऊ सत्कार में चाह पीअइ के आगरह करऽ लगल। झा जी अतिथि के सुमरनी फेर के फुर्रत लेलका अउ आगू बढ़ गेला। फेन के घुर के बजार जाए में कहंइ अतिथि  बिदक के चल नञ् देथ, ऊ छो-पांच करऽ लगला। याद पड़ल घर भिर बला टुटपुंजिया खिचड़ी फरोस के दोकान। ऊ भी सस्तउआ मुसहरी लायक सौदा रखऽ हल। सोंचलका, चौकलेट नञ् तऽ लेमूचूस तऽ होइए जात.. ओज्जइ ले लेम। झा जी के धिरजा अउ गोड़ में घिरनी लगि गेल। ऊ फेन सनसनाल छेंड़ी टेकइत आगू बढ़ला। दोकान भिजुन संझौकी भीड़ हल। मजूर ईहे बेला तऽ नोन-तेल खरीदे जुटऽ हे। ओजा एगो परिचित मिल गेला। ऊहो पांच मिलिट लेइये के दम लेलका। मन मसोस के छुट्टी लेलका अउ लमूचूस के साथ धरमदंड में एगो पारले जी लेके घर दने सोझिअइला।
    दुन्नूं पोती सड़क पर बाबा के रस्ता देख रहलन हल। दुन्नूं देकते मातर दौड़ पड़ अउ अप्पन-अप्पन मनबांछित पाके फुदकल इनखा से पहिलइ घर के दरबाजा लांधलक। झा जी भी पिठिअइलो घिसियाल दुआरी भिजुन पहुंचला कि तुनुकमिजाजी अतिथि अलोफ भे गेल। झा जी अवाक् ऊ घरनी के आवाज देलका,‘‘ तनी चोरबतिया देखइहा।’’
   घरनी अतिथि पर भुनभुनाइत – ‘जरलाही आल हल काहे लेल, कते सिहाल नियन सोंचलू हल आझ आल हऽ तऽ रहत पर ओहे हाल.....।’
झा जी कि कहता हल? जे बिजुली अतिथि लेल ऊ घड़फड़ाल घर आ रहला हल ऊ तो बिना उनखा से राम सलाम कइले चल गेल हल।
                                                    
                                                                                                                -अखिल भारतीय मगही मंडप
                                                                                                                       वारिसलीगंज, नवादा
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लघु-कथा
                                सफाई के असर
                                              
                                                   डॉ. सी. रा. प्रसाद

         राजधानी नाम के रह गेल हे । सगरो गंदगी भरल हे । दस बजे दिनो में रोड किनारे लोग झाड़ा फिरइत देखल जा सकऽ हथ । पेशाबखाना पखाना जहाँ-तहाँ बनल हे, लेकिन ओहू में एतना गंदगी कि नाक फट जाय । करमचारी के वेतन देवे ला निगम आउ सरकार के पास का तो पइसे न हे ।
एगो घर के बगल में लोग पेशाब कर दे हलन। एक दिन मकान मालिक उहाँ लिख देलन - "भाई लोग ! ईहां पेशाब न करल जाय।"
बाकि केकरो पर कोई असर न होवल। तब ऊहां लिखायल - "ईहां पेशाब करे वला दंड-जुर्माना के भागी होयतन ।"
तइयो कोई फरक न पड़ल। एन्ने-ओन्ने ताकइत नजर बचा के लोग उहईं पेशाब करिये दे हलन । पेशाब से देवाल के नीचे के मट्टी राख-पतवार गीला रहे लगल। सड़न से बदबू दूर-दूर तक फैले लगल। मकान मालिक के कै गो से बाता-बाती, गाली-गलौज तक हो गेल। ऊ खिसिया के लिखवयलन –‘‘'देखऽ गदहा मूतइत हवऽ!"
तबो जोर से लगला पर रहगीर उहईं पेशाब करे से बाज न आवइत हलन आउ लिखलका के अनदेखा कर दे हलन। तब मकान मालिक एगो गमकल गारी लिख देलन - "अरे मादर ... गदहा ! ईहां मत मूत।"
काहे ला कउनो पर असर पड़ो। पेशाब-पखाना रोकल जा सकऽ हे? कुत्ता सूअर अइसन लोग ओहीं पर पनढार करते रहलन। काहे कि ऊहां कूड़ा-कचरा, फट्टल प्लास्टिक से गंदगी के अम्बार लगल रहऽ हल।
   एक दिन मकान मालिक के का मन में आयल कि ऊ सब लिखल मेटवा देलन। कूड़ा-कचरा बाहर फेंकवा देलन। ऊ जगह के साफ-सुथरा कराके मट्टी भरवा के लीप-पोत के सुन्दर बना देलन। उहाँ दस गो मट्टी के गमला में फूल लगवा के सजवा देलन। नया-नया ईंटा, चूना से लाइनिंग करवा देलन।
  अब उहाँ फूल के खुशबू फैल गेल हे, तुलसी के पौधा लग गेल हे। सफाई के अइसन असर होल कि अब एक्को अदमी ऊहां पेशाब करे के हिम्मत न करऽ हे ।
                                                          
                                                                                                                      -रूकनपुरा, पटना
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लघु-कथा
                                             पवन तनय के दू गो लघुकथा
१.  काल चक्र  
‘तूं लउट जो देवी !
‘नऽ, हरगिज नऽ। हम बिना अप्पन पति के लेले लउटहीं न सकली हे।’
‘ ई संभव न हउ देवी ! इलेल तूं लउट जो !
‘ असंभव के संभव कर देखानी नारी ला मोशकिल न हे। तूं न जाने हें कि हम सावित्री ही। यमराज भिर से अप्पन पति के लउटा लइली हल। तूं तो एगो इंसान हें। तोरा से कउन डर हे?’
‘तोर पति के जिंदगी अब तोर हाथ में न हउ सती नार ! अब एकरा बचा सकलउ बे खाली इहां के पतित सरकार। हम यमराज न ही कि भावना में बहके वचन में बंध जायम। हम किडनैपर ही, एही से एकरा मार के इहां अप्पन आंतक छोड़ जायम। समझले?’
२.  उपभोक्ता
ऊंट पूछलक कछुआ से ‘पीठ पर कउची अलगयले चलइत हें?’
‘ ई में पानी हे। पोखरा में पैरइत-पैरइत जउ पियास लग जाहे तब काम देहे।’ कछुआ समझयलक।
‘आउ कउनो न मिललउ हल सुनावे ला कि हमरा बुरबक बनावित हें? पानीये में रहऽ हें, तइयो तरास जाहें?’ ऊंट टोन मारलक।
‘अइसन बात न हे ऊंट भाई दरअसल एकरा में मिनरल वाटर हे।’ कछुआ बघारलक।
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लघु-कथा
                                                                    अदमी
                                      
                                                      गगनसुत नवीन
      
           झरना के किनारे लगल एगो गुलाब के पौधा एक दिन देखलक कि एगो करिया गोल-मटोल पल्र नीचे पानी में अठखेली कर रहल हे। ऊ तड़ाक से पुछ बइठल – ‘‘तों कहां से आ गेलऽ भाई?’’
पत्थर कहलक – ‘‘आयम कहां से? लहर के थपेड़ा हमरा कर कुचुम से छोड़ाके कहां से कहां पहुंचा दलक हे। हम भाग के मारल ही दोस्त।’’
गुलाब कहलक - ‘‘भाग के मारल तो हम ही, कहीं जाहुं नञ् सकऽ ही। अच्छा होयल कि तों आ गेला। अब हम अप्पन सुख-दुख कम से कम तोरा से बतियते रहम।’’
ओही घड़ी एगो अदमी उहां नहाय ला आयल। ओकर नजर ऊ करिया पत्थर पर पड़ल। नहा के ऊ एगो लोटा में पानी भरि के लेले आयल आउ ऊपर एगो टिल्हा पर जाके पानी छींट देलक। फिन उतर के ऊ करिया पत्थर अठयलक आउ ओही टिल्हा पर ले जाके स्थापित कर देलक। फिर हाथ जोड़ के कहलक – ‘‘बड़ी दिन पर मिललऽ हे साली गराम। केत्ते दिन से खोजऽ बली तोरी।’’
 फिन ऑऊ गुलाब के एकलौता फूल के तोड़ के ले गेल आउ ऊ करिया पत्थर चढ़ा के कहलक - ‘‘भूल-चूक माफ करिहऽ सालीगराम बाबा ! हमरा नियन निरबंश के एगो बंस दे दऽ !’’ एतना कहके ऊ आदमी चल गेल।
 गुलाब के पौधा करिया पत्थर के कहलक – ‘‘एही हे अदमी, जो तोरा जइसन निरबंस से बंस मांगइत हे आउ ओकरा ला हम्मर फलइत-फुलाइत बंस के तहस-नहस करइते हे।’’
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लघु-कथा
                                      भय
                                        अरूण कुमार सिन्हा
        
         गंगाजी में उपलइते-उपलइते एगो अदमी के लहास असमसान घाट पर जइसहीं आ लगल कि आदमखोर कुत्ता कलुआ ओकरा नोचे-खसोटे लगी हुआं पहुंच गेल। लहास के दू-चार बेर ऊ सूंघबे कइलक कि ओकर दिमागे ठंढा गेल। मन मसोस के ऊ जब हुआं से लउटे लगल, तऽ नगीचे के पीपल के पेड़ पर से दूरदरसी गीधराज के अवाज सुनाई पड़ल – ‘‘काहे कालू? ई महाभोज छोड़ के काहे लउट रहलऽ हे? उतरे लगी हमहूं पंख फड़फड़ा रहली हल।’’
 कलुआ मुंह बिचका के बोललक – ‘‘जतरे ठीक नञ् हे गीधराज! ई साला एड्स से मरल हे। सुनऽ ही, ई अइसन रोग हे जे पीढ़ी-दर-पीढ़ी के नास कर देहे। तों अइबऽ त आवऽ!’’
 ‘‘नञ् भाई, नञ्। हमहूं बाल-बच्चेदार ही। अइसन महाभोज खइला से बाज अइली।’’ कहके गीधराज उड़ गेल।
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दू गो अनुवाद लधुकथा

                                                      १. अलगे देस               
                                            
                                                                               इब्ने इंशा
                     
                                       (मगही अनुवाद - उदय कुमार भारती)     

ईरान में के रहऽ हथिन?’’
ईरान में ईरानी कौम के अदमी रहऽ हथिन।’’
इंग्लैंड में के रहऽ हथिन?“
इंग्लैंड में अंग्रेज कौम के अदमी रहऽ हथिन।’’
फ्रांस में के रहऽ हथिन?“
फ्रांस में फ्रांसीसी कौम के अदमी रहऽ हथिन।’’
ई कउन मुलुक हइ?’’
ई पाकिस्तान हइ।’’
ई में पाकिस्तानी कौम के अदमी रहऽ होथिन?’’
नञ् ईहां सिंधी, पंजाबी आउ बंगाली कौम के अदमी रहऽ हथिन।’’
लेकिन सिंधी, पंजाबी आउ बंगाली ई सउ कौम के अदमी तऽ हिन्दुस्तान में भी रहऽ हथिन तउ काहे ले ई अलगे एगो देस बनावल गेलइ?’’
गलती भे गेलई माफ करऽहो अउ नञ् बनइवइ।’’
                
                                     २. वज्रपात

   खलील जिब्रान
                       
                                    (मगही अनुवाद - उदय कुमार भारती)

           तूफानी दिन हल। एगो मेहरारू गिरजाघर के पादरी के सामने जाके बोले लगली- “हम ईसाई नञ् ही, की जिनगी के नरक से मुक्ति ले हम्मरा लेल कोय रस्ता हे?’’
पादरी ऊ औरत के मुख के देखइत बोले लगलथिन - नय, मुक्ति के रस्ता तऽ हम ओकरे बता सकलिए हऽ जे ईसाई धरम के दीक्षा लेलक हऽ।’’
तखनइ बड़ी जोड़ से बादर गड़गड़लइ आउ बिजुरी चमक गेलइ। उहां पर बज्जड़ गिर पड़ल हल आउ सगरो आग पसर गेल हल।
अदमी गिरजाघर दन्ने दौड़े लगल। औरत तऽ बचा लेल गेल मगर तउ तलूक पादरी जर के राख भे चुकल हल। 
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इतालवी लघुकथा
                                               बगावत के वजह
                                             
                                                                            इतालो काल्विनो
                        
                                      (मगही अनुवाद - उदय कुमार भारती)
      
            गो अइसन राज हल, जेमें बड़ी मनी चीज आउ काज करे के मनाही हल। ऊहां जे एक्के चीज के मनाही नञ् हल, ऊ हल गुल्ली-डंडा के खेल खेले के। ऊहे से ऊहां के अदमी के समय जादे गुलिये-डंडा खेले में बीतऽ हल। लोग बाग मैदान में जुटऽ हलथिन आउ खेले में लग जा हलथिन। समय बेसे गुजर जा हलइ। ऊहां के शासक जे भी कानून आउ प्रतिबंध बनैलथिन हल, ओकरा बेस-बेस कारन आउ मजगूत-मजगूत तर्क देके बनइलथिन हल। लोगबाग के उनखर प्रतिबंध से कोय शिकायत करे के इया विरोध करे के कोय कारन भी नञ् हलइ, ईसे जे-जे प्रतिबंध लगते गेलइ, लोगबाग ओकर आदि होते चल गेलथिन। उनखा सउ के ओकर आदी होवे में कोई मोसकिल भी नञ् भेलइ।
      समय बेसे बीत रहले हल। बाद में राजा के ई बुझाल कि हर चीज आउ काज के मनाही के कोय तुक नञ् हे। एत्ते मनाही नञ् होवे के चाही। एकरा खतम कर देवे के चाही, से लेल ऊ राज में ढोलहा पिटवावे के मन बनैलथिन। जहां-जहां पर लोग जुट के गुल्ली डंडा खेलऽ हलथिन ऊहां-ऊहां पर जाके उनखर बराहिल आउ कारिंदा ढोल बजा के चिल्लाय लगथिन - ‘‘भाय हो, जेकर जे मन होवे ऊहे काज करऽहो, अउ सउ काम करे के राजा छूट दे देलथिन हे, जे चाऽहो से करऽहो। ई सुनि के लोग उनखा जबाब देवे लगलन - ‘‘बेस बात हे, हमन्हीं गुल्ली डंडा तो खेलिए रहलिये हऽ, आउ कि...?’’ आउ लोग गुल्ली डंडा खेले में पहिलिये के जइसन मस्त भे गेलन।
    ऐलान करे वला लोगबाग खूमे समझावे के कोरसिस करथिन आउ जे-जे काज पर रोक लगले हल, ओकरा करि के जिनगी में लाभ उठावे के बात कहे लगलथिन। ऊ लोग समझावे के खूमे कोरसिस करलथिन पर लोगबाग रोजमर्रा के तरह गुलिये डंडा खेले में भीड़ल रहथिन।
   जउ शासक के बराहिल आउ कारिंदा थक-हार गेलथिन तउ ऊ राजा के पास जाके सउ बात बतैलथिन - कि लोग-बाग गुल्लिये डंडा खेले में मस्त हथिन। राजा सोंचे लगलथिन आउ कहथिन ‘‘तउ तऽ एक्के गो उपाय हइ कि गुलिये डंडा खेले पर रोक लगा दे हिअइ आउ ऊ पाबंदी लगावे के एलान कर देलका। ईहे पाबंदी राजा लेल बगावत के कारण बन गेल। लोगबाग एतना आक्रोसित भे गेलथिन कि राजे के मार देलथिन आउ फिनू ऊहे काम......
(साभार प्रभात खबर)                                                                                                                                 
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लघु-कथा

                                                          पहिचान
                                   
                                                                                  गोपाल निर्दोष
         
           ऊ रोज नहा धो के एकदम पवित्तर मन से भगवान के मूरत के सामने आंख मून के नञ् जानऽ की मांगऽ हल, भुनभुना हल आउ चल जा हल।
 एक दिन बहुत देरी तक आंख मुनइत खड़ा रह गेल। आंख खोललक आउ भिंजल गियारी से मूरत से गिड़गिड़ा के कहे लगल-
‘‘पिछलका पांच बरिस से हम तोरा से मनगुपते भीख मांग रहलियो हे, अब आउ नञ् सहल जा रहल हे। हमरा तोर किरपा चाही भगमान.....हमरा तोर किरपा चाही।’’
 तखनइ एगो जरी गो चिरइं ऊ मूरत के माथा पर आ के बइठ गेल। ऊ अदमी ओकरा हांकऽ लगल, जोड़-जोड़ से हंसऽ लगल आउ मूरत से कहे लगल-
 ‘‘बुरा नञ् मानिहा, हम तोरा पर नञ् अपने पर हंस रहलूं हे। हमरा कल्हे तलक तोर पहिचान नञ् हल, आझ हो गेल हे। जे अप्पन हिफाजत नञ् कर सके हे ऊ हम्मर की करतइ....? अदमी भगमान के मूरत गढ़लक, ओकरा लेल भरोसा जतइलक आउ ऊहे मूरत के सामने भिखमंगा बन के खाड़ हो गेल।
                                                       
                                                                                                                 सी.पी. निवास,
                                                                                                          मालगोदाम, नवादा(बिहार)
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लघु-कथा
                 
                       राजेश मंझवेकर के दू गो लघुकथा
            
                                                      १. नयका बिहान

         बाउजी के रोज-रोज के डांट-फंटकार से चिढ़ल राकेश आझ घर से भागे के फैसला कर लेलक हल। शांत आउ सून रात के तेज सांय-सांय जारी हल। बकि एकरा से जादे ओकर दिमाग में भांय-भांय हो रहल हल। दबे पांव घर से निकसे के खातिर ऊ केवाड़ी दने बढ़ल। बाउजी के भीतर के दुआरी पर पहुंचल तउ उनखर बोली ओकर कान में सुनाय पड़ल। ऊ ओकर माय से ओकरे बारे में बोल रहलन हल।
  - ‘‘हम रकेशवा के दुसमन नञ् हिअइ राकेश के माय। ओकर जिनगी संवरे, हम बस ईहे चाहऽ हिअइ। हम जानऽ हिअइ, रकेशवा दिल के साफ हे। मेहनती हे। बकि ऊ कोय दिशा लेके नञ् चल रहल हे। कुछ बेस सोच होवे के चाही। हम्मर जिनगी में ऊ सफल हो जाए, हम बस ईहे चाहऽ ही।’’
 राकेश के बढ़ल कदम एकाबारगी रूक गेल। अप्पन बाउजी के ई रूप अप्पन नादानी में ऊ कभियो नञ् समझ पइलक हल।
 अगला दिन एक साथ दू गो भोर होल। एगो सूरज दिन के उजियार कैलक हल। दोसर सूरज राकेश के जिनगी में उगल हल। रोज घर से भोरे-भोरे बाहर निकल के अप्पन चंडाल चौकड़ी में रमल रहेवला राकेश घरे में हल। ई नजारा बरसों बाद हल। ई से घर में सब मौन हला। बाउजी अप्पन भीतर से निकललथिन। बाउजी पर नजर पड़ते राकेश उनखा से लिपट गेल। ठोर बहुत कुछ कहे के कोरसिस में बस लरज के रह गेल। आंख से शबद बन के आंसू झर-झर बहे लगल। ढेर देरी तक दुन्नूं चुपचाप ठाड़ रह गेलन।
 बाउजी कुछ नञ् समझलथिन तइयो संतुष्ट हो गेलथिन कि रकेसवा के जिनगी में नयका बिहान हो गेल हऽ। गुजरल रात के कहानी बस रकेसवा के जिनगी के किताब में सुख्खल गुलाब नियर दब के रहल गेल।

                                                       २. आत्मसम्मान 
        
         कारवला के थप्पड़ ओकर गाल पर झनझना के पड़ल। कारवला एक्कर बाद भी चुप नञ् रहल – ‘‘चलवे के लूर नञ् हउ तउ मोटरसाईकिल लेके काहे निकल जाहीं, आयं?’’ कारवला के अचानक ब्रेक लेवे पर पीछे से ऊ अप्पन मोटरसाईकिल ओकर कार में ठोक देलक हल। दोस ओकर नय हल फिर भी बड़ी बेइजती भेल।  
   कुच्छो करे में असमर्थ रहला पर ऊ बेइज्जती सहि के सोच-विचार में पड़ल आगे बढ़ल। कुच्छे दूर गेला पर ऊ एगो साईकिल से जाके टकरा गेल। बेचारा साईकिलवला धड़ाम से रोड पर गिर गेल। जउ तक ऊ कुछ समझ पावे तउ तक मोटरसाईकिलिया वला लगल ओकरा लपड़ावे। गोस्सा में तमतमाल बात-बोली भी करे लगल – ‘‘सरवा, चलवे के लूर-धेज नञ् हउ तउ रोडवा पर काहे आ जाहीं बे।’’
 सईकिलिया वला कहते रह गेल कि –‘‘भइया हम तो रोड के किनारे खाड़ हनू, तों ही आके ठोक देला आउ तों ही चढ़ल जा रहला हे।’’ अब मोटरसाईकिलिया वला के आत्मसम्मान एक बार फेर से लउट गेल हल। ऊ सान से छाती उतान कइले अप्पन मोटरसाईकिल पर बैठ के आगू बढ़ गेल। कारवला के हाथ से होल बेइज्जती ओकर दिमाग से तबतक उड़न छू भे गेल हल।
                                                    
                                                                                                    -संवाददाता, हिन्दुस्तान
                                                                                                                       हिसुआ( नवादा)
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लघु-कथा
        
                 वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज के दू गो लघुकथा
              
                                                                 १. डाइन
                         
         रवाजा के बाहर गली में एगो लइका के चित्कार सुनके पनपतिआ हड़बड़ा के केवाड़ी खोललक। ऊ देखलक कि गली में एगो एक-डेढ़ बरिस के लइका अप्पन गोर पकड़ के छटपटा रहल हे। बगल से करिया बिच्छी तेजी से दोसर तरफ भाग रहल हल। पनपतिआ अप्पन अंचरा के कोर फाड़ के ऊ लइका के बायां गोर में खून बहइत जगह पर बान्ह देलक। फिर ओकरा अप्पन गोदी में उठाके अप्पन दूध पियावे लगल। बकि ओकर बेदूध छाती बच्चा अप्पना मुंह से उगिल-उगिल दे हल। पनपतिआ के लाख चाहला पर भी ऊ लइका चुप नञ् होल। ई सब करतूत दूर खड़ा एगो अदमी देखइत हल।
   अचानक ढेर मनी अदमी धड़धड़ाइत पनपतिआ भिर चल अयलन। झुंड में आएल ऊ लइका के माय भी हल। कहे लगल – ‘‘ई डाइन हम्मर बेटा के दूध पिया देलक हे। गोर में लत्ता बान्ह के जोग भी कर देलक हे। अब हम्मर बेटा नञ् बचल रे बाप!’’
आउ सच्चो में बच्चा अप्पन माय के छाती से सटइते परान तेयाग देलक।
    पंचायत बइठल। मुखिया जी कहलन – ‘‘गांव के लोग! ई डाइन के ई छठ्ठा केस हे। पहिले ई अप्पन दून्नो बेटा के मार के मंतर के सिद्धि कयलक। अप्पन भतार तक के चिबा गेल हे ई। गांव के भी तीन गो लइकन के अप्पन शिकार बनयलक हे। ई लेल एकर बढ़इत करतूत के देख के पंचायत एकरा लंगटे करके आउ मुंह में कारिख-चूना पोत के गांव के चारों तरफ घुमाके गांव से बाहर निकाले के सजाय देइते हे।’’
    जोरदार थपरी के बीच मरल बच्चा के चचा उठके अप्पन प्रस्ताव रखलन – ‘‘गांव से निकाले से पहिले दस गो अदमी एकरा साथ....।’’
    तमाम दंड पूरा करके पनपतिआ गांव से बाहर निकाल देवल गेल। एगो दयालु मेहरारू पनपतिआ के एगो लुगा दे देलक। पनपतिआ ओही लुगा के अप्पन नरेटी में बान्ह के पेड़ के डउंघी के सहारे लटक के फंसरी लगा लेलक।
               
                                 २. जलाभिषेक
                    
 ‘‘पार लगावऽ दानी बम, भोले बाबा पार करेगा, सिद्धनाथ बाबा की जय’’ आदि-आदि जयकारा लगावित श्रद्धालु बड़गर-बड़गर सीढ़ी, सीधा-तिरछा-सपाट चट्टान के पार करित बराबर पहाड़ के चोटी पर अवस्थित सिद्धनाथ बाबा के मंदिर के तरफ बढ़ रहलन हल। अनंत चतुर्दशी के दिन ऊहां खूब जल चढ़ऽ हे।
 श्रद्धालु सबके हाथ में जल के थैली हल। चाम पका देबे ओला घामा पड़ रहल हल। शरीर पसीना से नदी बनल जा हल। बीच में गेला पर एगो बुढ़िया ‘‘पानी-पानी’’ चिल्लाय लगलन। एक अदमी बुढ़िया के पास के जल से ओक्कर पियास मिटावल चाहल। बुढ़िया सम्हलके अप्पन जल के थैली अप्पन बांह में कस लेल।
 पीछे से आएल एक युवक। थैली के ढक्कन खोलल आ ऊ बुढ़िया के सहारा देके जल पिआबे लगल। एक साथ बोल पड़लन लोग, ‘‘अरे मरे दे बुढ़िया के। अप्पन जल तो खोललन न, तूं काहे ला अप्पन जल बरबाद करित हे। चल, चढ़ाओ सिद्धनाथ बाबा के।’’
 आउ ऊ युवक अप्पन धुन में मस्त हो बुढ़िया के जल पिआवित रहल आ मन-ही-मन बोलित रहल, ‘‘पी लऽ बाबा, सब पी लऽ, आझे तो तूं हमरा से जलाभिषेक लेलऽ हे।’’
                                                          
                                                                                                          -खजुरी, नौबतपुर, पटना                      
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लघुकथा
                                        हाय रे धुरखेली
                                          
                                                                                        दीनबंधु
         
       होली में गांव आल ललितवा के मेहमान पर मोहल्ला के नउजुआन सउ के नजर हल। सब्भे मनमनाल हल कि कल्ह मेहमान के साथे कादो-माटी खेलल जाइत। मेहमान के देखाऽ देवइ कि ईहां के होली कइसन होवऽ हइ?
 बिहान होके जउ कादो-माटी शुरू भेल तउ लखना अप्पन साथी-संगी से कहलक-
‘‘ तरे अउ की सोंच हीं, कादो-माटी खेले ले जे शिकार आल हइ, ओकरा खींच के लावइ ने। चल ललितवा के मेहमान के खिंच के लावऽ हिअइ।’’
ऊ में कयएक गो नउजुआन दारू पीले हल, सउ खींच के मेहमान के गलि में ले आल। अगजा के धुरी लगइला के बाद सउ मेहमान के गोरकी मांटी लपेस देलक। फिनू नल्ली के कादो पोरे लगला। जे दारू पीले हला ऊ सउ मेहमान के नल्ली में गोते के कोरसिस करे लगला। मोहल्ला के नल्ली बड़गर आउ चौड़ा हल। बल-कल से सउ मेहमान के नल्ली में गोत देलक। मेहमान छोड़वे के बड़ी कोरसिस करलका मुदा पांच-छो लइकन कस के गोथारले रहला। कादो पानी मुंह में गेला पर गड-गड़ करऽ लगल। सउ दारू के नीसां वालन कहे लगलन-
‘‘ पहुंनमां हंसऽ हथुन हो।’’ सउ हंसे लगला।
 दू-चार मिलिट गोतला पर जउ बड़-बुढ़ डांटऽ लगलन तउ सउ नउजुआन भागे लगला। मुदा ई कि पहुना तऽ नल्ली में गोताल के गोताले रह गेला।
 सउ जउ पहुना के नल्ली से बाहर निसास के मुंह के धो-धा के साफ करि के पानी के छिंटा मारे लगला तउ तऽ सउ के होसे उड़ गेल.....मेहमान मर चुकला हल।
  नउजुआन के नादानी आउ धुरखेली खेले के विकृत कुरीति के भेंट गांव के एगो बेटी के सुहाग चढ़ चुकल हल।

                                                                                                   -नदसेना, मेसकौर (नवादा)
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लघुकथा
              
                                                            सच के जांच
                                                                          कृष्ण कुमार भट्टा

       गाड़ी जइसहीं नवादा टिसन से खुलल, हम्मर नजर एगो कड़कड़िया सौटकिया नोट पर पड़ल। अभी हम ओकरा उठावे ला करिये रहली हल कि एगो अदमी के लात से ठेला के ऊ आउ करगी लग गेल। थूक बिगे के बहाने हम ऊ नोट उठा लेली। सोंचली कि जेकर होयत ऊ बेचारा के नींद न आयत, ई लागी ठीक पहिचान करके ई रुपइया दे देवे के चाही।
     हम्मर दिमाग में एक बात आयल, फिन हम सौ के नोट जेभी में रख के पचसटकिया कड़कड़िया नोट निकाल के सभे से कहली - "भाई जी, ई रुपइया किनकर हे?"
तीन चार अदमी कहे लगलन - "हम्मर हे ! ई नोट हम्मर हे।"
हम कहली - "केकरो भी होयत, त एक्के अदमी के न होयत? सच-सच बोलऽ, तऽ रुपइया दे देबो।"
बाकि ऊ सब अप्पन दावा पर अड़ल हलन। एतने में एगो अदमी जे दूर में बइठल हल, धड़फड़ायल अयलक, बाकि नोट देख के चुप हो गेल।
हमहीं उनका से पुछली - "का भाई जी, ई नोट तोहरे हवऽ का?"
ऊ अदमी कपस के कहलक - "न भाई जी! ई नोट हम्मर न हे। हम्मर नोट सौटकिया हेरायल हे आउ ई पचसटकिया हे।"
बस, जे भी से सौटकिया नोट निकाल के ऊ अदमी के देके सभे से कहली - "भाई साब! ई नोट इनकरे हे। काहे कि नोट पचास के नञ्, सौ के मिलल हमरा। हम तो सब के जाँच करे के खातिर ई चाल चलली हल।" सब लोग के मुड़ी लाज से झुकल रह गेल।

                                                                                                 -भट्टा, काशीचक (नवादा)
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लघुकथा
                         
                                                             ई कइसन संबंध
                                    
                                                                      विनीत कुमार मिश्र अकेला

          कौलेज में एगो गोष्ठी के आयोजन कइल गेल हल। ओकरा में भाग लेवे ला ढेर मनी छात्र-छात्रा आउ प्रोफेसर लोग आयल हलन। गोष्ठी के विषय हल ‘चरित्र के पतन, कारन आउ उपाय’। एकाएकी सउ लोग अप्पन-अप्पन विचार देइत हलन। श्रोता लोग धेयान लगाके सुन रहलन हल।
      जउ प्रोफेसर लालचन के बारी आयल तउ ऊ कहे लगलन - ‘‘जवान से लेके बूढ़ा तक में पछिम के जीवन-शैली अपनावे के होड़ लगल हे। बड़कन तो पछिम के भी मात कइले हे। छोटकन भी ई होड़ में शामिल होवे लेल जी-जान से लगल हथ। ई तरह से बिना सोंचले-समझले आधुनिकता के तरफ डेग बढ़ावे के परिनाम ई भेल कि अदमी के नैतिक आउ चारित्रिक पतन हो गेल हे। पुरूष आझ औरत के खाली भोग के वस्तु समझ रहल हे। रिश्ता के मरजादा टूट रहल हे। आझ हमन्हीं के अप्पन नजर आउ सोचे के ढंग के बदले के जरूरत हइ। जउ तक ई नञ् बदलत संबंध के पवित्रता विगड़ल रहत। रिश्ता तार-तार आउ कंलंकित होत रहत।’’
उनखर भासन आउ ऐसन पवित्र विचार पर खुमे ताली बजल।
दूसरके दिन दुपहरिया में एगो छात्र प्रोफेसर साहेब से भेंट करेला उनखर घरे गेल। दरवाजा बंद देख के जउ ऊ खिड़की से झांकऽ हे तउ देखऽ हे कि प्रोफेसर साहेब एगो छात्रा के जौरे अप्पन कथन हर औरत भोग के वस्तु हे के साथर्क कर रहलन हे। इनका नीचे दबल बेबसी आउ लचारी के चलते असमर्थ ऊ छात्रा चाह के भी निकल न पा रहल हल।
     जउ ई देखलक कि लड़की विरोध करला पर भी छूट न रहल हे तउ ऊ दरवाजा खटखटावे लगल। दू मिनट के बाद जउ दरवाजा खुलल तउ एही लगल कि ईहां पढ़ाय होत हे। जउ परिचय भेल तउ पता चलल कि ऊ छात्रा उनखर भतिजी लगऽ हे जे बाप के मरला के बाद माय के साथे इहर्इं रहके पढइत हे।
                                             
                                                                                                      -पुरानस करपी, अरवल
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लघुकथा

                               बाबुल के बेटी: कजरी
                      
                                                                ई. अमित कुमार
      
      हाली-हाली बुलल जा रहलखिन हल कजरी के बाउ। दुपहरिया के भरल बजरा में कोय गाम वला देख नञ् ले कि महाजनजी के ईहां जा रहला हें। महाजन जी के घारा में घुस के पुछलखिन-
‘‘मालिक जी हखिन?’’
‘‘बइठथिन ने मालिक जी आ रहलखिन हैं’’। अर्दली बोललक।
बाउजी पसीना पोंछ के बइठ गेला। तेसरकी और छोटकी बेटी कजरी के बियाह में मोटरसाइकिल के मांग होल हल। रहि-रहि के कजरी के माय के कटाक्ष दिल के चुभ रहल हल।
- ‘‘मास्टर बन के की कर लेलहो? तोहरा से तो बेस बिलौक के चपरासी हइ, जे कुच्छो घुसो लेके बाल बच्चा के ठीक से रखो हय। ई तीन गो बेटी के बियाह ई मास्टरी से नय होतो कजरी के बाउ।

 ऊ सोंच रहला हल २५ बरस हो गेल जे समाज, जे पीढ़ी के हम दम लगा के बनैलूं आझ ऊहे समाज आउ ओकर रीत के चंगुल में फंसल हूँ। झुठ बोल के अइलूं हें कि हम अप्पन इंजीनियर चेला से पैसा लेके आवऽ हूं, तों हदिया नञ् कजरी के माय। पर केकरा भिर? कौन मुहं ले के जातूं हल , ई लेल महाजन के पास आ गेलूं। कजरी के माय भी नैहरा गेल हे पइसा के जोगाड़ में।
 महाजन जी आ रहला हल उनखर पीछू दू गो अर्दली मच्छी उड़ावे लेल पंखा हौंक रहल हल। अइते मालिक जी बुझ गेला आउ कहे लगला- ‘‘मास्टर साहेब दोसरकी बेटी के बियाह घड़ी जे रकम लेलहो हल ऊहे तऽ अभी तलुक वापस नञ् भेलइ?’’ गिरवी लेल खेतो नञ् हको?
‘‘मालिक ई मास्टर के इज्जत अपने के हाथ में हकन। अपने ही गरीब के भगवान हथिन। हम भर जिनगी अपने के बाल बच्चा के पढ़ा के रकम चूका देम। हमरे के पढावल ने एगो बेटा इंजीनियर हखिन।’’
 ई पर महाजन जी भेद खोल देलथिन। ऊ कहलथिन – ‘‘कि जी दुन्नूं औरत-मरद आझ सीखा-बुद्धि करि के एकाएकी आ रहलहो हे। तनिके देर भेल हऽ ने, मलकिनी तऽ अइबे करलथून हल जेवर दे के पैसा ले गेलखुन हें। उहो ईहे बात कहलखुन कि मास्टर साहेब जिनगी भर अपने के बाल बच्चा के पढ़ा देथिन। अउ तूं अइला हे तऽ ले जा अपने भी बीस हजार।’’ कइसे तऽ महाजनजी के दिल पसीज गेल।

  कजरी के माय आझ हमारा से झूठे बोलला। नैहरा के बहाना करि के ईहां जेबर रखे आ गेली। साझं के लउटे घड़ी दुन्नुं मरद-मेहरारू एक्के मैक्सी पर बैठला। मास्टर साहेब ताना देवे के अंदाज में पूछे लगला - ‘‘कि जी, नैहरा से बड़ी जल्दी लउट गेलहो।’’ ऊ मने-मन कह रहला हल-
 ‘‘धन्य हका तों कजरी के माय! आझ हमारा बेच के तों अपन नैहरा के इज्जत बढ़ा लेली। अच्छा चलाऽ कम से कम कजरी तऽ खुश रहत।

  दुन्नुं मरद-मेहरारू जउ घर पहुँचला तऽ देखऽ हऽ कि कजरी घर पर नञ् । कजरी के खोज होवे लगल। कजरी तऽ नञ् मिलल, मिलल तऽ ओकरएगो चिट्ठी। लिखल
हल-
 बाउजी आउ माय,
      बड़ी जतन से तों सब हमरा पालला। सउ शौक तों पूरा कईला। बाउजी कहो हला, भगमान हमरा बेटा नञ् देलका लेकिन कजरी हम्मर बेटा से कम नञ् हे। बाउजी हम तोहर बेटा बनइ के कोरसिस कइलियो पर बेटा नञ् बन सकलिअइ। हम्मर बिआह ले तोहन्हीं सउ बेहाल हो रहला हे, ई हमरा से नञ् देखल जा हो। सउ एतना तिल्लक मांगो हो तऽ कजरी के कन्ने से बियाह होतो। बाउजी के कन्धा पर खेललियो, हाथ से पढ़लियो, लगलो कउन कन्धा पर बाउजी ढो के हमरा ले जइता आउ कउन हाथ से अपन बेटा के जरइता। ईहे से गंगा माय के गोदी में जा रहलियो हें। आउ गंगा जी से कहबो की ई जनम में हम कोय पाप नञ् कइलूं हे। अगला जलम हमरा बेटी में नञ् करिहा, बकिर बाउजी आउ माय हमारा ईहे दुन्नुं के दिहऽ। जा हिइओ, अप्पन सउ खेयाल रखिहऽ।
                                                     तोर करेजा
                                                                कजरी
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लघुकथा

                          सोंचल सपना तिनका लेखा बिखर गेल
                                                    
                                                                             सुमन्त
       
             केतना जिद्द करके नौमा में नाम लिखवैली हल। माय-बाबूजी के तो हमरा पढावे-लिखावे के पूरा मन हल, बाकि नाना ई जिद्द पर अड़ल हलन कि जउन एक बेर अइसन लइका हाथ से निकल गेल, तब दोबारे हाथ न लगत। शहर में चार तल्ला मकान, लइका के बाप के सरकारी नौकरी, गॉव में जर-जमीन, लइका भाई में अकेले आउ का चाहि। लाख रूपया बेसी भी लग जाए तऽ सौदा हाथ से न निकले देवे के चाहि। सुन-सुन के मन खराब हो जा हल। तइयो पढाई-लिखाई में कउनो कोर कसर न छोड़ली। दुपहरिया में स्कूल से लौटली तऽ घर में भीड़ हल। नाना दुआरी पर खाड़ हम्मर राह ताक रहलन हल। बेमन से नाना के गोड़ छूली। छूटते कहलन - ‘‘बेटा ! लड़कावालन तोहरा देखे ऐलन हे, जउन पूछतन निमन से जबाब दीहऽ।’’ लगलक कि नाना के नानी इयाद करवा देई, बाकि महसोस के रह गेली। सबकुछ हो हवा गेल। बिआह के दिन तारीख सब रखा गेल। हार-पार के हम बाबूजी से बस एतने हाथ जोड़ के विनती करली – ‘‘बाबूजी ! बेटी पराया होवऽ हे, हमहूं तोहर बेटी ही। मैट्रिक परीक्षा देवे के बाद जहिंआ मन होवे घर से खेद दीहऽ, चल जाएम। जिनगी के सवाल हे-बर्बाद न करऽ। बाबूजी के हम्मर बात लग गेल। मैट्रिक परीक्षा देवे के बाद हाथ पीअर हो गेल। साथे-साथे मन में सोंचल सभे सपना तिनका लेखा बिखर गेल। माय-बाबूजी के दुआरी छूट गेल। ससुराल जाते ससुरार में सारा बोझा लदा गेल। हमरा घर में घुंसते सास के बेमारी उपट गेल। ऊपरे से ओलहाना पर ओलहाना-घर कइसन सुन सन्नाटा लगऽ हे। पास-पड़ोस से केतने बेर कहलन- ‘‘नया युग जमाना के पुतोह दिन-रात दवाई पर दवाई।’’ हार गेली। कोई तरह से साल काटली, गोड़ भारी हो गेल। अब का घर के चहार दिवारी में ता उमर कैद होके रहना हे। सास-ससुर, बाल-बच्चा में अझूराएल जिनगी बस कोई तरह से खटरा गाड़ी लेखा खिंच रहली हे। औरत घर में जे जलम लेली हे।
                                                  
                                                                                                        -सम्पादक-टोला-टाटी (गयाजी)
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लघुकथा

                       डॉ. राम प्रसाद सिंह के दू लघुकथा
                                      
                             १. संस्कार
‘‘रे के मोह तोड़ दे रमा?’’
‘‘तब तो तोरा हमरा घरे आनके रह जाय के चाहो।’’
‘‘नीचे के घऱे हम पर जेवाई, होके रहीं?’’
‘‘तब का हम तोर ‘रखनी’ होके तोरा ही चलीं?’’
ई सुन के मोहन पाड़े के गोड़ तर के जमीन धंसइत लौकल। उनका सपना में भी विश्वास न हल कि रमुनी से अइसन बेलौस जवाब सुनेला मिलत। मोहन पाड़े के रमुनी पर पूरा भरोसा हल। रमुनी भी पाड़े पर जान दे हल। बकि आज के जवाब सुन के पाड़े के दिल धड़के लगल काहे से कि रमुनी के लेके उनखर बदनामी सउंसे गांव में फैल चुकल हल। सब जानऽ हलन कि रमुनी पाड़े ही रह जायत। से उनखा सादी भी न होइत हल। जात-बेआदरी जान गेलन हल कि मोहन रमुनी के रख लेलन हे।
 एक तुरी मोहन फिनो हिम्मत कैलन – ‘‘मान जो हमर जानी, हम कहईं के न रहली घर के न घाट के।’’ बलुक मोहन पाड़े गेला के गला के नीच ई बात उतर न रहल हल।
                                           
                                   २. इमरजेंसी
       
        अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड, दम तोड़इत रोगी के जमात, एस्पेसल यूनिट केयर में एगो मंत्री के अंगुरी में फोरा के अपरेसन।  इमरजेंसी के सब डॉक्टर मंत्री के इलाज में लगल हथ। डॉक्टर के हजूम ऊहां जुमल हे। तब तक इमरजेंसी वार्ड में कय गो रोगी दम तोड़ देलन। एही घड़ी एगो बूढ़ा अप्पन बेटा के लेले रिक्सा से उतरल। बेटा छाती के दरद से कराह रहल हल। कबहियों बेहोस हो जा रहल हल।
 बूढ़ा कंपोटर से बिनती कैलक – ‘‘इमरजेंसी बाबू के बोला दऽ। हम्मर लइका अब तब में हे।’’
 कंपोटर तुरते बोलल – ‘‘फीस के सौ रूपैया जमा कर दऽ। बाबू अभी मंत्री जी के रूम में हथ। उनखर अपरेसन हो गेल हे। आवइत हथुन।’’
 बूढ़ा बोलल – ‘‘हमरा भिजुन एगो भी पइसा न हे, रूपैया कहां से आवत?’’
 ‘‘रहम करके डाक्टर साहेब के जल्दी खबर कर दऽ।’’
कंपोटर कहलक – ‘‘मंत्री के अपरेसन हे इया खेल? अभी उनखा छत्तीस घंटा स्पेशल यूनिट केयर में रहेला हइन। तब तक सब डॉक्टर उहइं रहथुन।’’ 
 एने बूढ़ा के इकलौत बेटा दम तोड़ देलक।
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मगह के आयोजन
 
             मुख्य मंत्री के माय के पुण्यतिथि पर कल्याण बिगहा में काजकरम
        
           पहिल जनवरी 2014 के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के पैतृक गांव नालंदा, हरनौत के कल्याण बिगहा में मगही कवि सम्मेलन आउ लोक कलाकार के जुटान भेल। मोका हल मानिंद मुख्य मंत्री के माय परमेश्वरी देवी के पुण्यतिथि के। मुख्य मंत्री के पुरनका घर के चबुतरा पर कवि आउ कलाकार के मंच जमल। मुख्य काजकरम तऽ मुख्य मंत्री ऊंहा आना आउ माता-पिता के प्रतिमा पर माल्यार्पण करना हल। लेकिन ऊ उपलक्ष्य में कला-संस्कृति युवा विकास विभाग आउ मगही अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में साहित आउ गायन के काजकरम आयोजित कइल गेल हल। मुख्य मंत्री श्रद्धा-सुमन अर्पित करे लेल पहुंचेवला हला से लेल ऊहां सांसद, विधायक, जिला प्रशासन आउ बड़गर-बड़गर गणमान्य नेता आउ लोगबाग के भीड़ जुमल हल।
  मुख्य मंत्री के काफिला जउ ऊहां पहुंचल तउ गायन आउ काजकरम थम गेल, थोड़े देर लेल सउ बन कर देल गेल। मुख्य मंत्री, उऩखर भाय सतीश कुमार आउ बेटा निशांत आवासे भिजुन के देवी स्थान में पहिले पूजा-अर्चना करलथिन। ओकर बाद सामने के बैधराज रामलखन सिंह स्मृति पार्क में जाके ऊंहा स्थापित माता परमेश्वरी देवी के प्रतिमा पर फूल-माला चढ़ा के माथा टेकलथिन। ओकर बाद पिता वैधराज रामलखन सिंह आउ पत्नी मंजू देवी के प्रतिमा पर माल्यार्पण कैलथिन। ई सउ के बाद ऊ ऊहां के मगही काजकरम पर नजर दौड़ैलथिन आउ शुटिंग रेंज में शुटिंग कौशल देखे चल गेलथिन। मोका पर सांसद आर.सी.पी. सिंह, मुख्य सचेतक श्रवण कुमार, अस्थामा के विधायक डॉ. जितेंद्र कुमार, हिलसा के विधायक प्रो. उषा सिन्हा, पूर्व विधायक ई. सुऩील कुमार, विधान पार्षद हीरा प्रसाद बिंद, प्रधान सचिव अंजनी कुमार सिंह, खेल एंव युवा विभाग के सचिव चंचल कुमार सहित, डीआईजी, एसएसपी आउ प्रशासन के बड़गर-बड़गर अधिकारी उपस्थित हला।
  मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा आउ उमेश बहादुरपुरी के मंच संचालन में कविता के दौर चलल। माय परमेश्वरी के कवि लोग अप्पन-अप्पन कविता से श्रद्धा-सुमन अर्पित कइलका। एकर अलावे सम-सामयिक विषय पर कविता पाठ भेल। लोकगायक प्रभाकर जी आउ मनोज जी के टीम बड़-बढियां सांस्क़ृतिक काजकरम प्रस्तुत कइलन। कवि मिथिलेश, दीनबंधु, परमेश्वरी, उमेश प्रसाद सिंह, शफीक जानी नांदा, जयराम देवसपुरी, व्यंग्यकार उदय भारती, रंजीत, कृष्ण कुमार भट्टा, एतवारी पंडित सहित दर्जनों कवि ऊहां पहुंचल हलन। काजकरम में अकादमी से परकासित पुस्तक आउ गीत संग्रह के सीडी खूमे बांटल गेल। पहुंचल कवि, साहितकार आउ लोक गायक के सम्मानित कइल गेल। चुड़ा, दही, भूरा खिलाके विदा कइल गेल। गांव के चुड़ा आउ भूरा के सोवाद के मिठास सउ के बरसों तक ईयाद रहत।
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मगह के आयोजन
         
                          पोवारी गांव में सर गणेश दत्त के जयंती समारोह
         
           11 जनवरी 2014 के नालंदा, हरनौत के पोवारी गांव में सर गणेश दत्त जयतीं के पूर्व संध्या पर भव्य कवि गोष्ठी के आयोजन भेल, जे में अधिकारी, जज, बिहार आउ झारखंड के कय गो विभाग के सचिव सहित गनमान लोगबाग के जुटान भेल। काजकरम के उद्घाटन ब्रहर्षि समाज के अध्यक्ष नवल शर्मा आउ नवादा के जज विष्णुदेव राय जी कइलथिन। अध्यक्षता डॉ. राधारमण उपाध्याय जी कइलथिन जउकि मंच संचालन मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा जी कइलथिन। पहिले सर गणेश दत्त से जुड़ल संदर्भ के चरचा होल। उनखर सेवा, समर्पण आउ साहितप्रेम के बखान करल गेल। वक्ता आउ आयोजनकर्त्ता पहुंचल कवि आउ साहितकार के ह्दय से सोवागत आउ अभिनंदन कइलका। कवि सउ के अंगवस्त्रम् आदि दे के सम्मानित कइल गेल। मोका पर नवादा के न्यायधीश विष्णुदेव राय जी साहितकार के समाज के सबसे बड़का स्तंभ बतैलका। ऊ कहलका कि साहितकार जे समाज में देखऽ हथिन, जे भोगऽ हथिन ओकर जीवंत छवि ई साहित के माध्यम से उजागर करऽ हथिन। कवि आउ साहितकार के काज समाज के सुसंस्कृत करे में सउसे ऊपर हइ। उनखर स्थान ऊंचा हइ। साहित में बड़गर तागत हे जेकरा से ऊ समाज में क्रांति के बिगुल फूंक सकऽ हथिन, विद्रुपता के धारा बदल दे सकऽ हथिनऽ। अन्य संबोधनकर्त्ता आउ पंहुंचल अधिकारी भी साहितकार के काज आउ साधना के सराहलथिन। आयोजक के आयोजन लेल साधुवाद देलथिन।
  दोसर सत्र में कवि सम्मेलन होल। जेकरा में पहुंचल कवि परमेशरी, दीनबंधु, दयानंद बेधड़क, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, जयराम देवसपुरी, उमेश प्रसाद सिंह, रंजीत, कृष्ण कुमार भट्टा, उमेश बहादुरपुरी, खूमे बेस-बेस कविता सुनइलथिन। सरकार, प्रशासन आउ शिक्षा के विद्रुपता पर जमके प्रहार कैलइथिन। बिगड़ल तंत्र आउ भटकल समाज के बखिया उखाड़ देलथिन आउ सुधरइ के संदेश देलथिन। कविता के दू-दू, तीन-तीन दौर चललइ। सम्मेलन एतना जमलइ कि उमड़ल भीड़ के श्रोता जायके नामे नञ् ले रहलथिन हल। बार-बार सुनावे के मांग होते रहलइ।
   ई आयोजन ई. रंजीत के द्वारा कइल गेल हल। उऩखा सहजोग करे आउ काजकरम के बेस बनावे में गंगा विष्णु प्रसाद सिंह, राधा रमण उपाध्याय, राम सज्जन सिंह, शिव शंकर शर्मा, परमानंद सिंह, मनोरंजन प्रसाद सहित गांव के लोग जुटल हलथिन। खूबे बढिया भोज-भात भेज आउ नानभेज दुन्नुं होलइ।
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मगह के आयोजन
         
                   सजल जी के पुण्यतिथि पर साहित समागम
          
         23 जनवरी 2014 के नवादा के जानल-मानल साहितकार विष्णुदेव प्रसाद सजल के पुण्यतिथि मनावल गेल जेकरा में गया, नवादा, शेखपुरा आउ नालंदा के कवि आउ साहतिकार के जुटाल भेल। साहितकार सजल जी के साहितिक श्रद्धांजलि देलथिन। अखिल भारतीय मगही मंडप के जिला शाखा के तत्वावधान में नवादा के इंदिरा चौक के साहु सदन सभागार में उऩखर पांचवीं पुण्यतिथि मनावल गेल। उदघाटन वरिष्ठ साहितकार डॉ. दिवाकर आउ मिथिलेश जी जौरे कइलथिन। एक सत्र के अध्यक्षता डॉ. दिवाकर आउ दोसर सत्र के अध्यक्षता मिथिलेश जी कइलथिन। मंच संचालन शंभू विश्वकर्मा आउ अशोक समदर्शी जी कइलथिन। मुख्य अतिथि मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के मगही विभागाध्यक्ष डॉ. भरत सिंह आल हलथिन। भरत जी सजल जी के व्यक्तित्व आउ कृतित्व पर चरचा करइत मगही साहितकार के ललकारलथिन आउ मगही आंदोलन से जुड़े के प्रेरणा देलथिन। काजकरम के शुरूआत नरेंद्र प्रसाद सिंह आउ रामबली ब्यास के शहीद गीत से होलइ। साहितिक, सांगठनिक आउ मगही आंदोलन के चरचा के बाद कवि सम्मेलन के दौर चलल। मगही के अष्टम अनुसूची में शामिल करे के मांग करल गेल।
  डॉ. दिवाकर सजल जी के लेखन क्षमता के रेखांकित कइलथिन। मगही के आंदोलन आउ भासा के विकास लेल लगल साहितकार के साधुवाद देलथिन। साहितकार के धैर्य आउ कर्मठता के सराहलथिन आउ आगू भी ओहे धैर्य से साहित साधना में जुटल रहे के नसीहत देलथिन, ऊ साहितकार के जीवन शैली आउ समर्पण पर भी अप्पन विचार देलथिन।
  काजकरम में दीनबंधु, परमेश्वरी, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, शफीक जानी नांदा, नरेंद्र प्रसाद सिंह, जयनंदन, परमानंद, कृष्ण कुमार भट्टा, गोपाल निर्दोष, दशरथ प्रसाद, रामस्वरूप दिप्तांशु, दिनेश कुमार अकेला, कुशवंत जी, दिनेश सिंह सहित दर्जनों कवि सजल जी आउ समसामयिक विषय पर काव्यपाठ करके अप्पन-अप्पन मगहिया धार के परिचय देलथिन। बाद में सांस्कृतिक काजकरम होलइ।

मगही मंडप के जिला शाखा के काजकारिनी के चुनाव

काजकरम में अखिल भारतीय मगही मंडप के जिला शाखा के नया काजकारिनी के चुनाव करल गेल। सउ के सम्मति से दशरथ प्रसाद के जिलाध्यक्ष, डॉ. संजय कुमार सिन्हा के सचिव, शंभू विश्वकर्मा के कोषाध्यक्ष बनावल गेल। एकर अलावे समिति के सक्रिय सदस्य के चुनाव होल।
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मगह के आयोजन
               
                  सारथी के 20वां अंक के लोकार्पण
           
           8 फरवरी 2014 दिन शनिवार के वरीय नागरिक संघ कारजालय, नवादा में अखिल भारतीय मगही मंडप, वारिसलिगंज से परकासित आधुनिक चेतनावाही मगही कथा पत्रिका ‘सारथी’ के लोकारपन भेल। काजकरम के मुख्य अतिथि नवादा के न्यायिक पदाधिकारी सबजज कोमल राम और प्रथम श्रेणी के न्यायिक दंडाधिकारी राहुल कुमार हला। सम्मानित अथिति दृष्टि पत्रिका के संपादक आउ दिनकरनामा के रचइता डॉ. दिवाकर आउ मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के मगही विभागाध्यक्ष डॉ. भरत जी हला। अध्यक्षता वरीय नागरिक संघ के अध्यक्ष श्रीनंदन शर्मा  आउ मंच संचालन नागेंद्र शर्मा बंधु जी कइलन। काजकरम के शुरूआत सारथी के संपादक मिथिलेश के संबोधन आउ दीनबंधु के मंगलाचरण से होल। ओकर बाद व्यंग्यकार उदय भारती ‘ किरासन जे नञ् करबावइ’ कविता पाठ से वर्तमान तंत्र पर जमके प्रहार कइलका। उनखर पंक्ति –‘आझ अफसर आउ नेता दुन्नूं किरासन पी रहला हऽ, गऱीब जनता तऽ बिना ढिबरी के जी रहल हऽ’ पर खूमे ताली बजल। ई कविता पाठ के बाद पत्रिका के लोकारपन करल गेल। अतिथि आउ संपादक सब्भे मिल के लोकारपन कइलका। लोकारपन के बाद फिनू कविता पाठ के दौर चलल। कविता पाठ आउ मगही के कय गो विधा के धार देख के मुख्य अतिथि आउ उपस्थित वरीय नागरिक संघ के सदस्य खूमे प्रभावित आउ प्रसन्न होलथिन आउ मगही के विकास लेल अप्पन-अप्पन करतव करे के संकल्प लेलथिन। शंभू  विश्वकर्मा के कविता – ‘रखूं कि गिरा दूं’ खास प्रभावी रहल जेकरा पर श्री मिथिलेश डॉ. दिवाकर के अप्पन विचार आउ आलोचना रखे के प्रस्ताव देलका।
   डॉ. दिवाकर सबसे पहिल ‘सारथी’ पत्रिका के मगही साहित के बड़का देन बतैलका आउ एकरा से जुड़ल सब संपादन मंडल के साधुवाद देलका ओकर बाद शंभू जी के कविता पर अप्पन विचार रखलका। श्री विश्वकर्मा के स्तरीय साहित साधना के सराहइत हिन्दी आउ मगही दुन्नूं में मिसाल कायम करे के बात कहलका। साहित के इनखर पकड़ के रेखांकित कइलका। ऊहां पहुंचल साहितकार के भी अनवरत साहित साधना में जुड़ल रहे आउ मगही के उंचाई देवे लेल समरपित होके काम करे के अपील कइलका।
  डॉ. भरत मगही पत्रकारिता पर विस्तार से चरचा केलथिन। मगही पत्रकारिता के इतिहास आउ आझ तक के निकसल पत्र-पत्रिका पर संक्षेप में विवेचना कइलका। ओकर स्तर, सामाग्री आउ संपादन मंडल से जुड़ल साहितकार से उपस्थित जन के रूबरू करइलका। एकर साथे श्री भरत मगही साहित के हर विधा से समृद्ध करे के निहारा कइलका। रचनाकार के मंच पर कविता सुनाके बाह-बाही लूटे आउ एकाक गो स्तरीय पत्रिका मे अप्पन रचना छपवा के रचनाकार के खुश होवे आउ आत्ममुग्ध होवे से मना कइलका। सच्चा साहितकार बनके भासा के समृद्ध करे लेल साधना करे के नसीहत देलका।
    प्रधान संपादक श्री मिथिलेश बड़ी हुलसल हला। साहित सृजन आउ चेतना जगावे वला ऐसन कोय काज के मोका पर उनखर मुख से एगो अलग तरह के आभा फूटे लगऽ हइ। ऐसन लगे लगे हे जइसे 84 बरस के वीर एगो आउ जंग जीत लेलका। पत्रिका के जीवंत आउ सतत रहे के उनखा फिकिर रहे हे। ईले ऊ पत्रिका लेल स्तरीय रचना आउ सामाग्री जुटावे में साहितकार से सहजोग के निहोरा कइलका। पत्रिका से जुड़ल रचनाकार के सहयोग लेल ह्दय से धन्यवाद देलका। काजकरम के आयोजन में सहजोग लेल वरीय नागरिक संघ के अध्यक्ष श्रीनंदन शर्मा आउ संघ के सब्भे लोगन के धन्यवाद ज्ञापित कइलका। श्री शर्मा मगही के उत्थान लेल हरदम तन, मन से सहजोग देवे के विश्वास दिलइलका।
   काजकरम में दीनबंधु, ओंकार निराला, गीतकार जयप्रकाश, डॉ. किरण कुमारी, जयनंदन, परमानंद, शंभू विश्वकर्मा, कृष्ण कुमार भट्टा, चंद्रभूषण, गोपाल निदोर्ष, डॉ. शंभू, डॉ. संजय, मगही मंडप के जिलाध्यक्ष दशरथ प्रसाद, डॉ. संजय, हरिद्वार सिंह आदि उपस्थित हला।
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मगह के आयोजन
        
               सिकन्दरा महोत्सव में कवि सम्मेलन आउ मुशायरा
          
          10 फरवरी 2014 के जमुई, सिकंदरा में दो दिवसीय सिकन्दरा महोत्सव 2014 के आयोजन भेल। ई काजकरम सिकन्दरा के लेल ऐतिहासिक हल। साहित, संस्कृति आउ सौहार्द सहित कइएक दृष्टिकोण से ई काजकरम सराहनीय हल। दू दिन के ई काजकरम कइएक चरण में बंटल हल। काजकरम के पहिल दिन उद्घाटन सत्र के बाद कवि सम्मेलन आउ मुशायरा के आयोजन हल। ओकर पहिल प्रभात फेरी, ध्वजा रोहण, दीप प्रज्ज्वलन, सोवागत, सोवागत भाषण, अतिथि के संबोधन स्मारिका के विमोचन (सिकन्दरा संदेश) आउ स्वतंत्रता सेना, विशिष्ट आउ मेधा सम्मान के काजकरम भेल।
    ई काजकरम के नींव में सिकन्दरा के हिन्दु, मुस्लिम आउ जैन तीन समुदाय के लोग जुड़ल हथिन आउ तीनों के सौहार्द समन्वय मंच पर खुल के दिखलई। ई हर्षोल्लास, आस्था आउ उमंग से ई काजकरम होलई से कि उहां के जनमानस के ह्रदय से जुगो तक ई भुलाये नञ् भुलतइ। साहित, संस्कृति, प्रेम, भाईचारा, एकता आउ विकास के चाहत, खुल के मंच पर दिखलइ। सिकन्दरा सहित क्षेत्र के सुख-समृद्धि, साहित-संस्कृति के बानगी ऊहां खूब दिखलइ।
     काजकरम में पश्चिम बंगाल, झारखंड, बनारस आउ इलाहाबाद से कवि आउ शायर पहुंचल हलथिन। कवयित्री भी हलथिन। काजकरम के व्यापकता के वजह से सभी से परिचय आउ नाम गांव के ठीक से पता नञ् चल पइतइ। कुछ तऽ अपने के बड़का-राष्ट्रीय कवि भी बुझ रहलथिन हल जेकरा से परिचय बढ़ावे के साहस नञ् जुटा पइलइ।
    एन्ने से मगहिया कवि में हम (उदय भारती), दीनबंधु, रंजीत, दशरथ, कृष्ण कुमार भट्टा, शोभा रानी एतने कवि हलिअइ। हमन्हींये के नेउता मिलले हल, दयाशंकर बेधड़क के भी नेउता मिलते हल पर ऊ नञ् जा पइलथिन। हिन्दी मगही से जादे उर्दू शायर हलथिन। मंच पर पहिल दौर में बड़कन कवि के कविता पाठ भेलइ। हिन्दी आउ उर्दू के कवि के दौर खूब चललइ। हमन्हीं के पीछू बुलावल गेलइ।
    पर हमन्हीं के जउ मोका मिललइ तउ सब्भे मिल के मगहिया धार देखा देलिअइ। रंजीत जी आउ हम्मर (उदय भारती) के कविता पर वाहवाही मिललइ। लोगबाग मंच संचालक के भी बोले लगलन कि ऐसन कवि के पहले पढ़े के मोका काहे नञ् देलहो? दीनबंधु, कृष्ण कुमार भट्टा, दशरथ, शोभा रानी सउ कविता सुना के मगही के लोहा मनबा लेलथिन। रंजीत जी के तो बार-बार सुने के मांग होवे लगलइ। सउसे जादे वाह-वाही उनखे मिललइ। ईहां तक के आयोजन मंडल के एगो महानुभाव दोसर दिन सबेरे हमन्हीं सउ के अप्पन डेरा पर बोला के एक दौर आउ कवि सम्मेलन करइलथिन।
   चूंकि शोभा रानी आउ उनखर पति अनिल कुमार ऊहंई एस. के. कॉलेज में प्रोफेसर हथिन। ई लेल हमन्हीं के आव-भगत आउ सत्कार बेस भेलइ।
 काजकरम में वहां के स्थानीय कवि श्रीधर दूबे, नूतन कुमारी, प्रकाश सिन्हा, श्याम सुन्दर प्रसाद के भी प्रस्तुति बेहतर रहलइ। बाहर से आवल कवि आउ शायर के तऽ बाते की कहना, ऊ तऽ राष्ट्रीय हइये हथिन।
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प्रतिक्रिया मिलल---
1. 
आपकी मगही पत्रिका का ई-संस्करण पढ़ा, मन प्रसन्न हो गया. मथुरा प्रसाद नवीनजी की कविता बेहतरीन लगी. नवीन जी का जीता जागता चित्र आँखों के सामने घूम गया. अहो मिसिर जी पतरा देखो कहिया तक सरकार चलतको मंच पर सुनने का सौभाग्य मुझे प्राप्त रहा है, सब कुछ फ्लैशबैक की तरह कौंधने लगा. इतने अच्छे संकलन के लिए धन्यवाद. भाई बालेश्वर की कविता भी पढ़ी. भाई बालेश्वर के साथ सान्निध्य बैजनाथ बाबू के दालान पर कवि गोष्ठियों में खूब मिलती रही है. यदि संभव हो तो भाई बालेश्वर का मोबाईल नंबर या ई-मेल आई डी दीजिए ताकि मैं अपने पुराने मित्र (हालांकि वे मेरे से बीसेक साल बड़े जरूर होंगे लेकिन मित्रता उम्र का मोहताज नहीं होती शायद) से एक बार फिर बात कर सकूं.
मुकेश कुमार
४२/४१३/ टाईप-३
एकता विहार, सी.बी.डी., बेलापुर,
नवी मुंबई, ४००६१४
महाराष्ट्र
मो. ०९८६९३५३७५९

उत्तर-
प्रियवर मुकेश जी,
       मगही मनभावन के लिए विचार देने के लिए धन्यवाद. निवेदन हे कि इसे पढ़ें
और दूसरों को पढ़ायें. इसके सदस्य बनें और दूसरों को प्रेरित करें. जय
मातृभाषा! जय मगही!

मगही मनभावन के दसवां अंक जारी हो गेल हऽ। गूगल पर magahimanbhavan टाईप
करऽ आउ इन्टर दबावऽ, ओकर बाद जे अंक पढ़े लेल चाहथिन पढ़ सकऽ हथिन। अप्पन
विचार भी देथिन तऊ हमरा प्रेरणा मिलतै।
  - उदय कुमार भारती
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 2.


  आपके संरक्षण में प्रकाशित पहली मगही पत्रिका को पढ़ा। यह अत्यंत सराहनीय कदम है। मुझे यह बहुत अच्छी लगी। जब मैं हिसुआ आया हुआ था तब "प्रसुन "जी के माध्यम से यह पत्रिका की जानकारी प्राप्त हुई थी। आपको बहुत बहुत बधाई ।
-रोहित लोहानी, हिसुआ
उत्तर- मगही की पहली इंटरनेट पत्रिका मगही मनभावन. रोहित जी यदि आपने उसे पढ़ा और पसंद किया है तो धन्यवाद. अगला लघु कथा विशेषांक अंक - 15 आपको जल्द पढ़ने का अवसर मिलेगा. रोहित जी, मगही आपको पसंद है, इसके लिए भी धन्यवाद.

Rohit Lohani --मगही हमारी मातृभाषा भाषा है इसे पसंद करने की कोई आवश्यकता नही अपितु यह हमारे हृदय में रचा-बसा है। इसके साथ हमारी भावनाएँ जुङी हैं।

3. 


<anujlugun@cub.ac.in>
To: shabdsadhak@gmail.com
महोदय ,

नमस्कार !
                  मैं मगही ई-पत्रिका मनभावन पढ़ता हूँ.बहुत अच्छा लगता है क्षेत्रीय भाषाओँ के साहित्य विस्तार से .आप बहुत महत्वपूर्ण और सार्थक जिम्मेदारी निभा  रहे हैं.आपको बहुत बहुत बधाई .
                     मैं मगही भाषा-भाषी नहीं हूँ लेकिन साहित्य में अभिरुचि है.यहाँ केन्द्रीय विश्वविद्यालय ,बिहार में हिंदी विभाग में एक कोर्स मगही -भाषा साहित्य पढ़ाया जाता है .चूँकि मगही क्षेत्र और उसका भाषी नहीं होने के कारण मुझे रचनाओं की उपलब्धता में परेशानी होती है .अत: आपसे सहयोग की अपेक्षा है .
                                                                    सनिवेदन 
                                                                    अनुज लुगुन 

  
Uday Kumar Bharti
<shabdsadhak@gmail.com>
To: "Anuj Lugun (Assistant Professor, Hindi)" <anujlugun@cub.ac.in>
Anuj Lugun (Assistant Professor, Hindi)
<
anujlugun@cub.ac.in> ने लिखा:-
मगही मनभावन आपको पसंद आया इसके लिए धन्यवाद और आभार. आपने अपनी
प्रतिक्रिया दी इसके लिए साधुवाद. आप सबों के उत्साहवर्धन से पत्रिका
संपादन का बल मिलेगा, इसे पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव भेजने की
कृपा करें.
-
उदय कुमार भारती

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रचना साभार लेल गेल

अलका मागधी, मगही पत्रिका, निरंजना

पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात

रचना मगही साहित के प्रचार-प्रसार के लेल ईहाँ रखल गेल हऽ. कौनो आपत्ति होवे पर हटा देल जात. मगही देश-विदेश जन-जन तलुक पहुंचेई प्रयास में सब्भे के सहजोग के जरूरत हइ.

निहोरा

* रचना भेजे में संकोच नञ् करथिनरचना सहर्ष स्वीकार करल जितै.

मगहिया भाय-बहिन से निहोरा हइ कि मगही साहित के समृद्ध करे ले कलम उठाथिन आऊ मगही के अप्पन मुकाम हासिल करे में जी-जान से सहजोग करथिन.

मगही मनभावन पर सनेस आऊ प्रतिक्रिया भेजे घड़ी अप्पन ई-मेल पता जरूर लिखल जायताकि ओकर जबाब भेजे में कोय असुविधा नञ् होवै.

मगही मनभावन ले रचना ई-मेल से इया फैक्स से हिन्दी मगही साहित्यिक मंच ‘शब्द साधक’ के कारजालयहिसुआ पहुँचावल जा सकऽ हे.

शब्द साधक
हिन्दी मगही साहित्यिक मंच
हिसुआनवादा (बिहार)

फैक्स के न.- 06324-263517

http//:magahimanbhavan.blogspot.in







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