सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-५,६

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-५,६
मगही मनभावन
मगही साहित्य ई-पत्रिेका
  वर्ष-२               अंक-५,६          माह-जनवरी,फरवरी २०१२
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दू गो बात.......
सम्पादकीय.....
चन्दा आउ लेखन
कहानी
धरम-करम – भरत सिंह
अँचरा भर लोर - बैजू सिंह
लघुकथा
राजा की खा होतय
कविता-कियारी
गीत - जानकी बल्लभ शास्त्री
अझका आरती – दीनबन्धु
अमन के गीत – ओंकार निराला
चेतवा तउ चेत जा – जयनन्दन
झुमर – वीणा मिश्रा
मुक्तक – सरस दूबे सरस
मगही हाइकु
हाइकु – अभिमन्यु प्रसाद मौर्य

व्यंग्य
चुनाव लड़ऽ तउ एमपी लेल - उदय कुमार भारती
फालतू के परब हे बेलेंटाइन डे – सुमंत
मगह के आयोजन
कोलकाता के मगह महोत्सव
हिसुआ के बिहार शताब्दी पुस्तक मेला
तपोवन महोत्सव
कारू गोप विशेषांक मगही संवाद पत्रिका के लोकार्पण
विविध
पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
निहोरा
रचना साभार लेल गेल

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दू गो बात.......
        व्यस्तता, कुछ कठिनाय आउ पत्रकारिता के बढ़ल काम के चलते जनवरी आउ फरवरी के संयुक्त अंक लेके अपने सभे के सामने हाजिर होलिये हऽ। देरी लेल माफी चाहऽ ही। अपने सभे के स्नेह आउ आशीर्वाद से हमरा बल मिलतै। ई यज्ञ में अपने सभे के आहुति मिलतै, ई आशा आउ विश्वास है। रचना भेजथिन आउ मगही के पाठक बढ़वे के काम करथिन। अपने के जोगदान से मगही आगू बढ़तै।
                                                              उदय कुमार भारती
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सम्पादकीय....
चन्दा आउ लेखन
               ड़ साहितकार बने के हो, तऽ चन्दा दा दिलखोल के। चन्दा देवऽ तऽ खाली बड़ साहितकारे में नञ् गिनैवा बलूक तोहर साहित के स्तर भी असमान चुमे लगतो। तोहर साहितकारी के चरचा चन्दा लेवे वला दिल खोल के करथून। तोहर नाम के आगू-पीछू साहित के बड़का-बड़का विशेषण लग जैतो। जे पहचान तोहरा साहित लिखे से नञ् मिल पैलो, ऊ पहचान तोहरा चन्दा देवे से मिल जैतो। दमगर रचना के लिखताहर जदि अपने हका  तउ आवऽ बेस, तोहरा दोबर लाभ मिलतो। रचना के एक्सट्रा मार्किंग जे अलगे से जुटतो। तोहर पहचान झमटगर साहितकार समाज में चाँद-सूरज जैसन होतो आउ जउ बड़के साहितकार तोहरा मान देवे लगथुन तउ ई छोटकन-टूटपुंजियन साहितकार के की विसात?
                  हाँ भाय लोगन! आझ साहित में ऐसने दौर चल रहलो हऽ। जैसे हम्मर देश, हम्मर सरकार, राजनीति जुगाड़ से चल रहलो हऽ। ओसहीं अब साहित भी जुगाड़ से चले लगलो हऽ। जुगाड़ भिड़इवा तऽ बड़का साहितकार बन जैबा। चाहे तोहर रचना निमर रहो - जुगाड़ संस्कृति अपनावऽ, जलदिये तोहरा साहित विभूषण आउ पद्मश्री सम्मान मिल जैतो। पइसा लेके तऽ आझ डि०लिट् के उपाधि मिल जाहे। तोहरा साहितकार बनावे ले दू-चार गो रचना नञ् लिखात? आउ चन्दा लेवे वला एतना महारथी होवऽ हथिन कि तोहरा नाम देवे ले साहितो के जुगाड़ कर देथुन।
              हाय रे हम्मर साहित! तोरा हमहीं गबड़ा में गिरा रहलियो हऽ। हम्मर मईया, तोरा हमहीं नोच-नोच के खा रहलियो हऽ। तोरा भंजा रहलियो हऽ। तोरा भी हम बाजार चढ़ा देलियौ। तोरा बजारवाद के कठपुतली बना दैलियौ। कोय दूसर नञ् हमहीं तोर बेटा....तोर सृजनहार....तोर रक्षा करैवला। हमहीं भक्षक के रक्षक बनल हियौ। हम ओसनके के संपोषित कर रहियो हऽ। जे हमरा जुगाड़ से साहितकार बना देय। हम्मर नाम के पोस्टर सटा देय। भले दरजन भर बेस साहितकार के मुड़ी मचोरा जाय। ओकर साहित में दीमक लग जाए। लेकिन माथा के ऊपर से निकल जाय वला साहित, साहित के मटियामेट करे वला हम्मर साहित छप जाए। चाहे कितनो चन्दा देवे पड़े....छपम तो हमहीं।
                आझ पगडंडी के साहितकार के नोटिस के ले हे। झमटगर-झमटगर साहितकार खाली अपने डफली बजा रहला हऽ। उनखा माला पेन्हे आउ शॉल ओढ़े के शौक बढ़ले जा हे। ऊ अप्पन पीढ़ी-अप्पन विरासत सम्हारे वला के नञ् तैयार कर रहला हऽ। अप्पन वंश नञ् बढ़ा रहला हऽ। ऊ पूर्वज केकर बदौलत कहैता? उनखा से ई के पूछे? उनखा तो बुतरूअन साहितकार फुटली आँख नञ् सोहा हे। हाँ जे उनखर झोला ढो रहल हऽ, ओकरा कुछ तर जाय के चानस हे। जे संपादक के झोला ढो रहला हऽ, उनखा भी अमर होवे के रस्ता साफ हे पर ओइसन कय गो हथिन कुछ के निखरे के मोका मिल रहल हऽ। कुछ के ओइसनों जुगाड़ से चाँदी हे, लेकिन हम आम बात करऽ ही।
                आझ कय गो नयका लिखताहर उभर रहलथिन हऽ? ई जुगाड़ संस्कृति हम्मर नयका पीढ़ी के नञ् पनपे देत। ई बजारवाद गरीब-गुरबा लिखताहर के पटल पर नञ् आवे देत।
            हम्मर झमटगर साहितकारन बजारवाद के शिकार हो रहला हऽ। ऊ मंच पर बजारवाद के खिलाफ बोलऽ हका, लिखऽ भी हका, लेकिन बजारवाद के अपने शिकार हका। बड़का-बड़का पत्रिका में छपे के हिंछा ऊ रखऽ हथिन, पर छोटगर-छोटगर पत्रिका में रचना देवे में उनखा मान-हानि होवऽ हई। उनखर स्तर गिर जा हे। बजारवाद के खिलाफ लिखते-लिखते ऊहो पूँजीवाद के शिकार हो गेल हे। पैसा ले काम करे लगला... नामे ले मरे लगला हे। साहितकार के धरम ऊ भूला गेला। आउ सच्चे नागार्जुन, निराला के पद्चिह्न पर चलके ई भौतिकवादी जुग में साहितकार के की हासिल होत? हम्मर नयका पीढ़ी गूढ़ आउ तथगर-ऊँचगर बात लिखे तउ ऊ हावा में उड़ा देल जा हे। बड़का लेबुल लगल साहितकार केतनो सड़ल चीज, असमानी रचना करे तउ ओकर जुगाड़ु संस्कृति के लोगबाग मुक्त कंठ से प्रशंसा करऽ हथिन।
           ....तों कैसे पनपम्हीं? तोर लेखन पर आलोचना आउ विश्लेषण लिखाय लगत, समीक्षा होवे लगत, तउ उनखर कुरसी नञ् छिना जात।....बेटवा  तों बेटवे रह, बाप नञ् बन। हम्मर बस चलउ तउ तोरा नसबंदी अभीए करा दियौ।....वंश के चिराग तों अभी नञ् रोशन हो, अभी हमरे रोशनी से दुनियाँ जगमगा हे...हम टिमटिमा रहलियो हऽ, तभियो तों शोर कर कि देखऽ इहे रोशनी....इनखे रोशनी से सौंसे जहान जगमगाल आउ जगमगा रहल हऽ....ऐसन रोशनी भूतो न भविष्यति....रोशनी हल तउ बापे में। बाप तउ बापे हथ....उनखा पूजना बेटा के धरम हे....मुदा बापो के करतप होवे हे कि बेटन के भविस बनावे।
             तउ हे बाजारवाद के पोषताहर! चन्दा लेवे वला के संपोषण! चन्दा देके छपे वला झमटगर साहित विधाता! अब अपने साहित के मारऽ या तारऽ। सउ तोहरे हाथ में हो। पर एतना जरूर कहवो कि ई चाल से साहित मटियामेट हो जइतो। कमायवला कमाय लेथुन। ऐसन करम से तोहर साहित के स्तर नञ् बढ़तो, बलूक झूठ वाह-वाही में तोहर पोल खुल जइतो। तोहर वजन कसौटी के तराजू पर करे वला भी ईहे समाज में बैठल हथुन। चन्दा देके जदि दोसर ले कुछो काम करवऽ तो पुण्य मिलतो।                   
              चन्दा से जदि भुइंया में गिरल, मुसहरी में पड़ल, कादो-माटी में लेटाल, तंगी के दलदल में धंसल साहितकार आउ ओकर साहित के निखारे के काम करवऽ तउ तोहर नाम लेवे वला, तोहरा पूर्वज कहेवला वंश-बुनियाद तैयार होतो। वंश बढ़ावऽ–बुनियाद मजबूत करऽ।
                माफ करिहऽ....ई थोड़े मन के साहित्यक भड़ास हलो जेकरा आझ कलम से निकाल लेलियो। नञ् तऽ ऐसन हम लिखे नञ् चाहऽ ही। हमरा बड़ी पाप लगत....ई दुरंगी संसार में जे होवे, हम्मर बाप के की....कुछ साथी-दोस के चाल चलन जब बरदास नञ् होवे हे तउ ऐसन लिखे पड़ऽ हे।
                                                          उदय कुमार भारती

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कहानी
अँचरा भर लोर
                                                बैजू सिंह
         डोली से पाँव उतारके हल कजरी। मेहरारू में खुसुर-फुसुर होवे लगल-“कनेमा करिया बुझाइत हई गे। गोड़वा तो लगऽ हई अलकतरा में डूबल हई। मुँहमा कइसन होतई ?”     
  होतई भकचोधर आउ का? ओडिया भर तिलक भी लेतन आउ इन्नर के परी दुल्हन भी?” गोड़ उचका के रनिया बोलल।
  गोड़वे एतना करिया हई, त मुँहमा का गोर होतई?”
  का जानी होतई गे! आधा गोर आधा करिया झींगनी आँख में हँसइत टपकल।
 होतई भाई! गउरा महादेव। अगरी दीदी अगरा के चहकल हल।
 अगल-बगल के मेहरारू हँसे लगलन। सास आउ ननद के कान खड़कल। गीत गावे ओलीन के गीत लड़खराय लगल। सब जल्दी-जल्दी दुल्हन के मुँह देखेला बेचैन होवे लगलन।
 जइसे-तइसे चुमौना के बाद बीच अंगना में दुल्हन के मुँह उघारल गेल। देख के लोग के ठकमुरकी लग गेल। लइकन के तो घिघ्घी बंध गेल। डर के मारे ऊ सब माय के अँचरा तर लुकाय लगलन। मरद लोग आँख फाड़-फाड़ के देखइत हलन। साक्षात् काली माई। कुरूपता के मुरती। बड़की-बड़की आँख, चेहरा पर कहीं-कहीं मस्सा के टिल्हा, ओठ मोट-मोट लटकल।
  सास आउ ननद तो चुमौना के थाली अंगना में फेंक के घर में घुस गेलन। दुल्हा चुपचाप सिर नीचा कयले अंगना में बइठल रहल, मानो धरती में समायल जाइत हल।
  कजरी के आँख से आँसू के बरसात हो रहल हल। सउँसे घर-अंगना में सन्नाटा फैल गेल। मरेवला रोवाई कोनसी घर से गूँजे लगल। कजरी के सास आउ ननद कजरी के माय-बाप के गाली देइत छाती पीट-पीट के रोवे लगल।
  कजरी के ससुर डेओढ़ी में हारल जुआरी जइसन बइठल रह गेलन। जइसे सबके मुँह सिया गेल होवे। अजनिया-बजनीया, हित-नाता, सब बिना नेग-जोग के चुप हर गेलन। सउँसे ताम-झाम बन्द हो गेल।
  गाँव में उदासी छा गेल। गते-गते अंधेरो पसरे लगल। इहाँ तक कि रात हो गेल। दुल्हा कबे अंगना से उठ के चल गेलन हल। कजरी नि:शब्द पत्थर के मुरती के तरह अंगना में बइठल रह गेल।
  ऊ जाइत भी हल त कहाँ जाइत हल सउँसे संसार तो ओकरा लागी खाली हो गेल हल। एक तो बेटी! ओकरा पर बदसूरती के अभिशाप। धरती भी ओकरा न लीलइत हलन। ओकरा से अच्छा तो सीताजी हलन जिनका धरती फट के अपना में समा लेलक हल।
  सउँसे रात कजरी भुक्खे-पियासे अंगना में बइठल रह गेल। कउनो ओकरा नजदीक न आयल।
  गाँव के समझावे-बुझावे पर ओकर ससुर ओकरा नइहर पहुँचा देलन। एकर बाद कजरी फिर कभी  ससुरार न आयल। लाख समझावे-बुझावे, कोशिश-पैरवी करे के बावजूद कजरी के ससुरार वालन ओकरा न स्वीकारलन।
  सब अपमान सहके कजरी अप्पन पैर पर खाड़ होवे लगल। अपमान के घूँट ओकर करेजा में बिख जकत घुल गेल हल। अपमान तो ऊ बचपने से सहइत आवित हल। बचपन में ओकरा संगी-साथी अपना साथे खेले भी न दे हलन। करिअट्ठी-करिअट्ठी कहके चिढ़ावऽ हलन। जहाँ भी ऊ लइकन के झुण्ड में पहुँच जा हल, लइकन एक स्वर में गावे लगऽ हलन-
  काली कलूटी, बइगन लूटी।
  काली के संगे, बइगन बने।
  ऊ चुपचाप अलग-थलग, खाड़-खाड़ लइकन के खेल देखइत रहऽ हल। शुरू-शुरू में लइकन द्वारा करिअट्ठी कहला पर ऊ लइकन से मारा-मारी भी कयलक हल, पर घर आवे पर माय से पिटायल हल-तूँ ऊ सब भिर जाहें काहेला गे? करिअट्ठी! ऊ सब तो गोर हई, दीया जकत बरइत। तोरा छुआए से करिया हो जयतई।
 फिर माथा पर हाथ धरके ओकर मइया रोवे लगऽ हल-तूँ जनमले हल गे करिअट्ठी काहे ला? तोरा कउआ-कुत्ता भी तो न पुछतउ गे। एक तो करिअट्ठी, ओकरा पर सकल-सूरत भी बनमानुष जकत। कउन भगवान गढ़कउ हल तोरा हमरा ला?  मरबो तो न करबे, तोरा ला टुनकिओ न अलउ।
बात-बात में मइया ओकरा करिअट्ठी, त बदसकली कहे। ऊ धीरे-धीरे सब से अलग-थलग रहे लगल। एकान्त ओकर दिनचर्या हो गेल। भाई के किताब देख-देख के ऊ सबसे अलगे कोना में बइठे। चुपचाप अप्पन पाठ इयाद करइत रहे। एकाध गलती पर गुरूजी भी जब कभी ओकरा करिअट्ठी कह देथ, तब ऊ जादे सतर्क हो जा हल आउ कोशिश करऽ हल कि कउनो गलती न होवे, ताकि फिर गुरूजी ओकरा करिअट्ठी न कह देथ।
  पाठशाला के आंगन में खेलइत लइकन के ऊ बड़ी मासूम आउ ललचाइत नजर से देखे आउ सोचऽ हल कि हमरो खेले देइत हल। ऊ लइकन के खेलइत देखइत-देखइत कल्पना में सब लइकन से सब खेल जीत जा हल आउ मुस्कुराये लगऽ हल।   
 मास्टर साहेब कभी-कभी ओकरा अलग-थलग देख के डाँटय-तूँ अलगे काहेला खाड़ रहऽ हें ? तोरा न खेलल जाउ? तब ऊ नींद से जाग जा हल। चुपचाप जाके पाठशाला के पिछुत्ती जहरकनइली के झाड़ी में बइठ जा हल।
         गाँव-घर के लोग भी ओकरा कहऽ हलन-ई करिअइट्ठी से कउन बिआह करतई। एतना करिअट्ठ आउ बदसकल हम्मर गाँव में कउनों न हे। करिओ लेतई कहीं धोखा से कउनो बिआह, त रखतइ न।
       न रखतई भाई! अब पहिलका जमाना न हई। पहिले समाज में सब निबह जा हलई, कान-कोतर, लुल्हा-लंगड़ा सब। अब लोग बेदर्द हो गेलन हे। निम्मन–निम्मन तो मारल चलइत हथ। सब के चाही गोर, सुत्थर, इन्नर के परी मेहरारू, ऊपर से ढेर मानी दहेज भी।
 का जानी खूब पइसा देवे से रख लेतई।
 हो सकऽ हई। लोग लमहर साँस लेके रह जा हलन। कजरी के ई सब सुनइत-सुनइत मन कइसन तो हो जा हल। जहाँ भी दु-चार लोग के नजदीक खाड़ हो जा हल, एही तरह के बात सुने ला मिलऽ हल। कउनो हित नाता भी गाँव में आवथ आउ कजरी पर नजर पड़ जा हल, त ऊ पूछे लगऽ हल- ई केकर बेटी हई जी। कउन कोइला खदान से निकललई हे? बाप रे! गोड़-हाथ के तलवा-तलहत्थी तक करिया हई । कउन कररतई बिआह?”
         बिआह, बिआह, बिआह कजरी के मन बेचैन हो जा हल। का बिआहे दुनिया में सबकुछ हे? कजरी सोचऽ हल-“न बिआह होयत, त का होयत?” ऊ कहेवाला से पूछेला चाहऽ हल, बाकि पूछ न सकऽ हल। हीन भावना ओकरा मन में एतना जड़ जमा लेलक हल कि जब ओकर बाप दूर देश में काफी दउड़-धूप के बाद, काफी दहेज देके एगो लइका ठीक कयलन हल, तइयो मुँह बंदे रखलक हल।  
      ऊ ई बिआह के परिणाम जानऽ हल। जान हल कि ई अपमान के बिख ओकरा पीये पड़त। तइयो ऊ अप्पन माय-बाप के संतोष लागी चुप रहल हल। न भी चुप रहत हल तब भी तो ओही होतइ हल, जउन होलइ।
   एही ससुराल के आंगन में जब ऊ रात भर बइठल रह गेल हल, त ई मनसूबा बनौलक हल कि अब ऊ ई दुनिया के आगे आउ मुँह न छिपावत। ऊ दुनिया आउ जमाना के देखा देत कि देख  हम्मर मुँह, ईश्वर कुछ सोचहीं के हमरा बनौलन हे। हमरा पर काहे ला हँसऽ ह?
      ऊ सबेरे पहर ससुराल के आंगन से उठल आउ बिना घूंघट के ससुर के पाँव छूके चुपचाप सिर ऊँचा करके डोली पर बइठ गेल। जाइत-जाइत ससुर से बोललक हल-पिताजी! अबतो हम्मर दूगो पिता हथ, एगो जनमदाता आउ एगो जनमदाता आउ एगो करमदाता। एतना करिहऽ कि हम्मर तिलक-दहेज वला रूपइया-पइसा, सर-समान लउटा दीहऽ, ताकि ओही पइसा से हम अप्पन जीवन निबाह सकी। हम जानित ही कि अब ई घर में हम कभी न आयम, पर जहिना तोहनी के हम्मर जरूरत पड़तो, जरूर इयाद करिहऽ। जनम लेला के खातिर तो हमरा जीहीं पड़त, त जरूर जीयम। 
      घरे लउटला पर भी जब ओकर माय ओकरा कोसइत हल, तब ऊ दृढ़ता पूर्वक कहलक- माय! अबतक तो तूँ हमरा काफी कोसलें, बाकि अब छोड़। जनम देले हें, त अब खाली एतना कर दे कि हमरा पढ़ा-लिखा दे। ताकि हम केंकरो पर बोझ बनके न रहीं।
      कजरी ओही दिन से मन लगाके पढ़े लगल। मैट्रिक पास तो हइये हल, आगे भी पढ़इत-पढ़इत अस्पताल के नर्स बन गेल। रात-दिन अब ओकर समय रोगी के सेवा में ही बीते लगल। अनेक सेवा संस्थान से ऊ जुड़ गेल हल। करूपता में छिपल ओकर स्वच्छ ह्रदय मनुष्यता के जल से लबालब भर गेल हल। ऊ आसन्न रोगी, पीड़ित मानवता, अपाहिज लइकन के घर हो गेल हल। ओकर ममता रूपी आँचल में अनेक पशु-पक्षी भी आश्रय ले लेलन।
      सहयोगी डाक्टर-डाक्टरनी सलाह दे हलन ओकरा कि ऊ अप्पन चेहरा के प्लास्टिक सर्जरी करवा लेवे, काहेकि अनजान रोगी पहिले-पहल ओकर चेहरा देख के डर जा हलन आउ घृणा से परे हटे लगऽ हलन। बाकि ऊ केकरो सलाह न मानलक। ऊ अप्पन रूप के प्रतीक मानऽ हल। ऊ लोग के देखावल चाहऽ हल कि ईश्वर जे कुछ भी मनुष्य के दे हथ, ओकरे से ऊपर उठें के चाही। असली सुन्दरता मनुष्य के रूप न, गुण होवे के चाही। जउन रोगी पहिले ओकरा से डेरा हल आउ घृणा करऽ हल, बाद में ओही ओकरा माय समान आदर करे लगऽ हल। एक बात आउ हल, ओकर कुरूपता ओकर चरित्र के ढाल भी हल।
        जउन समाज ओकरा अँचरा भर लोर प्रदान कयलक हल, ऊ समाज के ऊ अँचरा भर फूल प्रदान करित हल। कउनो ओकर कृपा कोर से वंचित न हलन। गाँव-घर, अड़ोस-पड़ोस, भाई-भउजाई, माय-बाप, सब के ऊ अप्पन आँचल के छाँव देले हल। माय-बाप तो तीन-तीन बेटा-पुतोह से तिरस्कृत होके ओकरे पास आके रहे लगलन हल।
        सब अरमान में एगो अरमान बाकी रह गेल हल- सास-ससुर आउ पति के सेवा। ऊ अप्पन कृपा कोर से केकरो वंचित न रहे देवल चाहऽ हल। हलाकि ऊ ससुराल के घर-आंगन, पति, सास-ससुर, ननद-ननदोई देखलक भी न हल। सुनऽ हल कि ओकर पति दूसर सुन्नर मेहरारू से शादी कर लेलन हे। सास-ससुर ओकर सुध कभी न लेलन। फिर भी ऊ मांग भरऽ हल, तीज-त्योहार करऽ हल। पति के मंगल कामना ला व्रत रखऽ हल आउ मनवऽ हल कि कब ओकर मनोकामना पूरा होवे कि भर नजर ऊ अप्पन पति के देखे, भले ही पति के आँख में ओकरा लागी घृणा ही काहे न होवे।
     लोग के मुँह से जब ऊ अप्पन प्रशंसा सुनऽ हल, तब ओकर मन तरसे लगऽ हल कि काश, एही प्रशंसा ऊ अप्पन सास, ससुर आउ पति के मुँह से भी सुनतक हल। ऊ अँचरा भर लोर अँचरा भर फूल के रूप में अप्पन सास-ससुर आउ पति के चरण में समर्पित करल चाहऽ हल । एही ओकर अन्तिम इच्छा हल । देखऽ, पूरा होवे हे कि न।
                                                            -कल्याणपुर, डेल्हा, गया
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  कहानी
धरम-करम
                                                                                  डॉ० भरत सिंह
      पंकज जहिया से मेडिकल के आखरी डिगरी ले लेलक तहिया से घर परिवार, हित-कुटुम, गाँव-गिराँव में बिआाह के चरचा होवे लगल। ओकर बाप शेरघाटी के सरकारी कउलेज में प्रोफेसर हलन। इलाका के हर अदमी उनखा आदर के भाव से ईश्वरी चा कहऽ हल। छो बच्छर पहिले ईश्वरी चा के काल अप्पन गाल में दबा लेलक। एक रोज पंकज जब दरोजा में बइटल अखबार बाँचइत हल तब ओकर मौसा रामकृपाल पूछलन- अब तोर पढ़ाय खतमे हो गेलो अउ कत्ते अदमी हमरा रिस्ता जोड़े ला तंग करइत हथ। दु-चार लोग अप्पन बेटी के जलमपतरी अउ डिगरी के कागज ओगैरह भी थम्हा देलन हे।
                पंकज टुभकल- अभी हम बिआह के जाल में न फँसे ले चाहऽ ही। रामकृपाल के जेठसाली अउ पंकज माय सचिंता बोललन- केतना लोग हमरो से लड़की देखे ला आरजू-मिन्नत कर रहलन हे। अगर बिआह करे के तोर इरादा हे त लड़की देखे ला दिन तय कैल जा सकऽ हे।
  “जउन लड़की के न हम जानऽ ही् न पहचानऽ ही ओकरा से अिआह करके हम अप्पन जिनगी के गाड़ी कइसे चला सकऽ ही- पंकज बोलल।
  “अइसन सवाल तो लड़की भी कर सकऽ हेरिस्तेदार-परिवार आउ जान-पहचान वला लोग पर भरोसा करिये के बिआह तय होवऽ हे। बेस घरतन-मन से सुत्थर लइकी आउ अच्छा दहेज पर लात मारना त तोर बेवकुफिये होवत- सचिंता बोलल। हर दिन कत्ते अदमी हम्मर दुआर से लौटइत हथ आउ सब्भे तोर माथा पर मौर टँगल देखे ले चाहऽ हथ। तूँहीं कहऽ हम ओखनिन के का जबाव लगाबी?”
   “तू कह दिहऽ, पंकज अप्पन मरजी से बिआह करत। कहइत पंकज दरोजा से बहरा गेल। सचिंता अप्पन बेटा से मनमाकुल जबाब नञ् पाके झमायल मन से चुप हो गेल। उहँय बैठल सचिंता के भाय रापुकार के भी अप्पन भगिना के बेरूखा बात सुन ठकमुरकी मार देलक।
                   दोसर दिन पंकज घर में बिन कहले-सुनले हजारीबाग नेशनल पार्क घुमे ला चल गेल। ओकर मन में मौजूद अब ई बात बादर बन के घुमड़ रहल हल। ऊ सोचइत हल- हम्मर निजी मामा में परिवार के लोग काहे दखल दे रहलन हे? मौसा अप्पन  अहम के सामने केकरो बात सुने ला तइयार न हथ। मइया के त समझदारी होवे के चाही। ओहु अप्पन मन में हिंदू-मुसलमान के देबाल खड़ा कर देलक हे। ओकर मन में किसिम-किसिम के विचार उठइत हल। ऊ अप्पन मन के तनाव कम करे ला एगो गिरल अशोक के पेड़ के डार पर ओठंगइत बैठ गेल। रंग-बिरेग के खुसबुदार खिलल फूल से आसपास महमहा रहल हल। भौरन के गुनगुनाहट से गीत फूट रहल हे। ऊ अप्पन जिनगी के नया मोड़ देवे के कल्पना में डूब गेल हल। एही बीच सलीमा के देख ओकर धेयान टूट गेल। हथजोड़ी करके सलीमा भी पंकज के बगल में बैठ गेल। फेर थोड़े देर बाद ऊ पूछलक – “हमरा बारे तोहर परिवार के का विचार हे?”
   “हम्मर परिवार में बिआह के चरचा हो रहल हे। मगर तोरा तरफ से ओकालत करे वला कउनो अदमी लउकत न हथ।
   “हम्मर अब्बाजान के पास बिआह करे ला ढेरो प्रोफेसर, इंजीनियर, डॉक्टर आउ ठेकेदार के दलाल घूम रहलन हे। ऊ आजीज होके ई मामला के तय करे ला हम्मर मर्जी पर छोड़ देलन हे।
तूँ का मन बनौलऽ हे- पंकज पूछलक।
हम्मर मन में तोहर सुंदर चेहरा के अलावे दोसर मूरत न लौकइत हे।
   “हमहूँ तोरे से बिआह करे ले मन बनौले ही, मगर…. कहइत पंकज के गियारी में कुछ सबद अँटक गेल।
   “अगर-मगर कुछ नञ्साफ-साफ बात करऽ।…..का धरम के देवाल ढाह हम-तूँ दिल न मिला सकऽ ही?” सलीमा पंकज के पुठ्ठा पर हाथ रख के बोलल।
   “हम तोर नेह के डोर में बँध के अप्पन घर से नाता तोड़े के मन बना लेली हे। तोरा अलावे हम कउनो दोसर लड़की से विआह न करम। खालिदसुमनरणजीत धरम के देवाल ढाह के बिआह करे ला हमरा रोज-रोज उसकावऽ हथ। पटना मेडिकल कउलेज में हम्मर हौसला के तूँ जत्ते बुलंद कइलऽ हे ओकर बखान हम न कर सकऽ ही। आझ हम तोहर हाथ पकड़ के वादा कर रहली हे कि हम्मर तोर बिआह में मजहब रोड़ा न बनत।
   “तोरा त कुछ-कुछ लस-फुस बबीता से भी चल रहल हल?”- सलीमा पुछलक- का ऊ तोर प्रेम के ठोकरा देलको?”
   बबीता के बाबूजी हरिजन अफसर हथ। पंकज बोलल- ऊ बबीता क बिआह कउनो हरिजन डॉक्टर से तय कर देलन हे। ओकर बाबूजी के कहनाम हे दोसर जाति से बिआह करे पर हरिजन के बेटा-बेटी आरच्छन के लाभ से कट जइतन।
   हम तोरा जउरे लाभ-हानि के तराजू पर तउल के रिस्ता न जोड़ रहली हे। सलीमा बोलल- इंदिरा आउ सोनिया के बतावल राह पर चलिये के हम मजहबी नफरत मेटा सकऽ ही, अदमी के दिल-दिमाग में हैवानियत के रोग-मुहब्बत के खुसबू से दूर हो सकऽ हे।
              परेम जात आउ धरम न चीन्हऽ हे। परेम आउ सेवा मानवता के अनमोल गुन हे।पंकज बोलल हम तूँ समाज के रोग के इलाज करके सेवा-सुगंध जग में बाँट सकऽ ही।
   ई त भविस के बात हे। पहिले तो बिआह में मसला तय करे पड़त- सलीमा अप्पन दिल के बात उगल देलक।
  ई कउनो भारी मसला न हे। अभी चल के हम-तूँ कोर्ट मैरेज कर ला।”- पंकज बोलल।
             सलीमा पंकज के गियारी में लपट गेल। जब दू परानी के मन एक्के ढंग से सोचे-समझे लगऽ हे अउ एक्के राह के बटोही बन जाहे जब दुनहु नेह के डोर में अपने-आप बन्ह जा हथ। सलीमा अउ पंकज के मन के पिआस अशोक के गिरल डाढ़ भीर बुझा गेलजेकरा ला ढेर दिन से दुन्हुँ छटपटाइत हलन।
            पंकज अउ सलीमा के सादी अदालत में हो गेल। दुन्नो के हित-कुटुम ई बिआह के पुरजोर विरोध कैलन। सचिंता कहलक- अइसन बेटा के जलमें से अच्छा हल हम बाँझ रह जैतूँ हल। बेधरमी-बेटी के पुतोह बनावे के दिन न देखती हल।
             पंकज के बहिन अमीता बोलल-हम मलेच्छ भौजाय के घर में ढुके न देम। ओकर बनावल अउ परोसल हम न खायम। रामकृपाल त पंकज के गिनती कपूते में करे लगलन।
          पंकज-सलीमा नरसिंग होम खोल अप्पन जिनगी के गाड़ी खींचे लगल। सलीमा अप्पन मरद के तहेदिल से मदद करे लगल। डॉ पंकज फुरसत के घड़ी में रिसर्च के काम में मसगुल रहे लगलन। एक दिन नरसिंग होम में एगो अइसन रोगी पहूँचल जे अप्पन जिनगी के आखरी दम तोड़इत हल। सलीमा अउ डॉ० पंकज ओकरा जी-जान से सेवा कैलन। दावा रोगी के देह में जादू सन असर डाललक। जान बचावे के खुसियाली में मरीज के बाप डॉ० पंकज के एगो गाय भेंट कैलक। डॉ० पंकज गाय के लौटावइत कहलक- रोगी के इलाज अउ सेवा हम्मर धरम हे। तू ई गाय के दूध पिला के अप्पन बेटा के निरोग रखऽ।
           डॉ० पंकज के उदारता, सज्जनता के खिस्सा गाँव व सहर में होवे लगल। जूड़ीताप बुखार के दवा खोजे में महारत हासिल करे के चलते डॉ० पंकज जन-मन के कंठहार बन गेलन। मीडिया अउ पत्रिका में डॉ० पंकज के नाम खूबे सराहल गेल। रामकृपाल के घरनी मनिया भी अनजानल रोग से हरसठ्ठे परेसान हल। एक दिन सचिंता से रामकृपाल डॉ० पंकज के जस-गाथा गावे लगल। अप्पन पूत के बड़ाय सुन के सचिंता के हिरदा पसीजे लगल। जेठसाली सचिंता के कहला पर रामकृपाल अप्पन सढ़बेटा डॉ० पंकज के पास गेलन।
            बदलल समय मोताबिक मौसा के गोस्सा ओइसहीं ठंडा होवे लगल जइसे लोछियाल गेहुँअन नट के जड़ी देख मन मार लेहे। डॉ० पंकज मौसा के देख ओसहीं नितरा गेल जइसे मोर सावन में नितरा हे। सलीमा भी मौसा के गोड़ लगल। असीस मिलल। कते किसिम के मिठाय अउ चाय नास्ता परोसल गेल। नास्ता कैला पर डॉ० पंकज आवे के कारन पुछलक। रामकृपाल ओकर मौसी के रग-रग में भींजल रोग के बात कहलन त डॉ० पंकज सलीमा से कहलक- मौसा तोहर लेताहर बन के अयलथुन हे। तूँ चलऽ माय अउ मौसी के असीस ले लऽ। तोरा देखइत मौसी के मन चंगा हो जात। सलीमा बोलल- तोहर माय-मौसी त हमरा बेधरमी के बेटी समझऽ हथ। ओखनिन हिंदू-धरम के पुजारी हथ अउ हम इस्लाम धरम के। दुन्हुँ एक घर में कइसे रहम?”
   धरम त विसवास के चीज हे अउ अदमी के सबसे बड़ा धरम हे दीन-दुखी के सेवा। मौसा बोललन।
    डॉ० पंकज कहलक- हिन्दू अउ इस्लाम के बात बिसर के इंसानियत के बात करऽ। तूँ परेम अउ सेवा से हम्मर माय अउ मौसी के दिल जीत लेवऽ तब हम तोहर लोहा मान लेव।
    सलीमा बोलल- माय के मन के सुक्खल नदी तोहर मुहब्बत के बाढ़ देखे ला छछनइत हे। हमरो आँख उनकर दरसन ला तरसइत हे। हाली सन चले के तइयारी करऽ।
             डॉ० पंकज गैरेज से कार निकाले ला डराइवर के कहलक। सलीमा कुछ सौगात अउ दवा त कार में लादिए लेलक मुदा एक बोतल गंगा जल भी गाडी में रख लेलक। डॉ० पंकज बोलल-ई बोतल के का जरूरत हे?” सलीमा बोलल- जब हम सास के गोड़ लागम तब तूँ ई बोतल के पानी ऊ सब पर छींट दीहऽ। ई गंगाजल में छुआछुत के कीड़ा मारे के अजगुत तागत हे।
  डॉ० पंकज कहलक- तू मजाक करऽ हऽ।
   सलीमा कहलक- हम मजाक न कर रहली हे। जब रेयान के छुए से देवालय असुद्ध हो जा हे, तब का तोहर परिवार के लोग मलेच्छ के बेटी से छुअैला पर असुद्ध न होतनगंगाजल में त ई तागत हे कि ऊ पत्थर अउ अदमी दुन्हुँ के पवित्तर कर दे हे।
                                                       -विभागाध्यक्ष, मगही विभाग
                                                       मगध विश्वविद्यालय, बोधगया
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लघुकथा
राजा की खा होतइ
                                                                                           रवीन्द्र कुमार
·     *  आजादी के तीन बरिस पहिले-
  एगो मुसहर अप्पन बेटा, सहदेआ जोरे सुत्तल हे। पाँच-छो बरिस के सहदेउ अप्पन बाप के मुँह नोचले हे। बाप से पुछले हे - एहो बाबू! एहो बाबू! राजा की खा होतइ हो बाबू?
  रोज रात के एक्के सवाल। बाप की जबाब दे? तंग आके एक रात बोलल - राता की खा होतइ- कोदो? अरे राजा खा होजइ- रसिया आउ उप्पर से मोट छलगर दूध।
  बुतरू के जबाब मिल गेल हल। रसिया आउ उप्पर से मोटगर छलगर दूध के सपना देखइत-देखइत ऊ सुत गेल हल।
·       * आजादी के बीस बरिस बाद -
   सहदेउआ अब सहदेव अन गेल हल। ऊ बन गेल हल दरोगा। आझ गाम आ रहल हल। मुसहर टोला में चउतरफा खोसी आउ उत्साह के माहौल हल।
   सहदेव पुलिस के डरेस में गाम पहुँचल। कोय परनाम करे, तो गोड़ लगे। सहदेवो खोसी से गदगद्। एगो भीड़ जमा हो गेल।
   सहदेव के बाप तो नञ् बचऽ हलन, मगर एगो चच्चा बचऽ हलन। उत्साह में ऊ बोललन - एहो हाकिम! आझ तो हमनी के जलसा के दिन हे। सभे एके जउरे खायम। खाय के इंतेजाम हमनी कयली हे। मगर दरूआ के खरचा तोरे देबे पड़तउ।
   सहदेव पेसोपेस में पड़ गेल। कहलक - एहो चच्चा! हमनी के खाए-पीए पर पाबंदी हे। सेही से हम खाय तो नञ् सकम् मगर दरूआ के खरचा हम दे रहली हे।- ई कह के पाकिट से दूगो नंबरी ऊ चच्चा दन्ने बढ़उलक।
   चच्चा के आँख आग नियन जल उठल। भीड़ दन्ने मुँह करके बोलल - की तो ओकरा अप्पन घरबो में खाय-पीए पर पाबंदी लगल हे? अरे हमनी जउरे ऊ नञ् खाय-पीए चाहऽ हउ। ई अप्पन जात बदल लेलकउ......
एकर नोट कोय नञ् छुइहाँ........।
   जमा भीड़ फट गेल। भीड़ जउरे चचवा भुनभुनाइत जा रहल हल - तनी गो हल तो रतिया में रोजे अप्पन बप्पा से पूछऽ हल - राजा की खा होतइ हो बाबूआझ साला अपने राजा हो गेल। अब हमनी के ऊ की गोदानतउ?
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 कविता-कियारी

गीत
                        आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री
ई रस्ता हो तोहरे बतायल बटोही,
बहुत दूर से चलके आयल बटोही।
न मंजिल से जुड़लो न मंजिल बनैलको,
चलैलको बहुत, हो लजायल बटोही।
ई देवता हो नयका, पुरनका भजनियाँ,
बहुत बेर के हो सुनायल बटोही।
उमड़लो-घुमड़लो गरजलो-तरजलो,
ई बदरा न बरसे के कायल बटोही।
तोहर मन के मुँह हो तोहर मन के दरपन,
निहारऽ, हो दिओ बुझायल बटोही।
तनी मुसकुरावऽ, ठहाका लगावऽ,
तोहर मुँह हो अपने बनावल बटोही।
सिरिफ आदमीयत न हो, आउ सब हो,
ई कैसन जमाना हो आयल बटोही?
सुरुज आउ चनरमा के रोसनी करे का,
दिया आत्मा के बुझाइल बटोही।
सिवाला में अप्पन करावइत पूजा,
ई जुगधर्म तोहर चलायल बटोही।

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अझका आरती
भये प्रकट घोटाला
                                           दीनबन्धु

भये प्रकट घोटाला आउ हवाला, दिन-दिन भ्रष्टाचारी।
नेतन सब मोटा गिरहस छोटा, दुखित भये नर नारी।।
ठीका आउ कोटा दुन्नु खोटा, पुल सड़क बेचारी।
जनता चिचिआना देय न काना, रजनीति लाचारी।।
नक्सल रनवीरा करत अधीरा, जब-जब होय भिड़ंता।
हरिजन दस मारे बीस सो नारे, कोय नञ् कहीं सुनंता।।
घर-घर हथियारा बम्म बजारा, परतछ कुछे छिपंता।
जंगल के राजा भेंड़ समाजा, जाति ही जाति रटंता।।
धन-धन ई धरती उपजल परती, पानी नहीं खून धार बहै।
बेबस सब लोगा मारक रोगा, विन दवाई के रोगी रहै।।
सिच्छा के धंधा होल हे बंदा, पछुआ हवा में लोग बहै।
अगुआ हे अंधा गोरखधंधा, के केकरो कुछुओ कहै।।
अफसर बौराना भेल तुफाना, गरव में फूल के कुपा।
सब कोट कचहरी होल हे बहिरी, बनल सभे बहुरूपा।।
बैठल जे गद्दी माने जद्दी, रयफलधारी भूपा।
करे मनमानी काटे चानी, कुछ सोझे कुछ चूपा।।
दोहा- नेता जी सब लंठहित्, लीन्हे गद्दी सम्हार।
पर उपकारी दीनबंधु, गिरे मुँह के भार।।
प्रनाली प्रजा तंग कर जय।
                                                                                 ग्राम- नदसेना, पोस्ट-सराय
                                                 जिला-नवादा (बिहार)

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कविता-कियारी

झुमर

             वीणा मिश्रा

हेलते अगहनमा, काटे लगवय धनमा।

से पूरा होतय ना, आज हमर सब सपनमा।।

दिनमा में चैन न, रतिया में नींद कहाँ?
अन्नपूर्णा खेत में, खेतिहर बेचैन इहाँ।
खेतवा में धान पकल, आशा जगल मनमा।
से पूरा होतय ना, आज हमर सब सपनमा।।
अबकी जब पैदा होतय सहेजम दलान में;
करजा हे माथा पर, आशा खलिहान में।
पकल-पकल धान देख के जुड़ायल हमर मनमा।
से पूरो होतय ना, आज हमर सब सपनमा।।
हम सब किसान ही, छल-बल न कल हे;
धरती हमर माय बस, यही हमर बल हे।
धान के कियारी हमर जिनगी के ठेकनमा।
से पूरा होतइ ना, आज हमर सब सपनमा।।
असरा हमर साथी हे, जे धरती के सुहाग हे;
भारत हमर देश हे, इहे बड़ी भाग हे।
ई माटी हमर जान हे, इहे हमर तनमा।
से पूरा होतय ना, आज हमर सब सपनमा।।
                              शिक्षिका
                                  इण्टर विद्यालय, हिसुआ, नवादा
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कविता-कियारी
अमन के गीत
                                      -डॉ0 ओंकार निराला
गीत गाबऽ हे साथी अमन के।

न मुरझाय गुल ई चमन के ।।

न खेलऽ होली खून के हे दोस्त,

ई खून हय कोय माय-बहन के


गीत गाबऽ.......... ।
कुदरत के करिश्मा हय हिन्दोस्ता ।
हर औलाद एकर हय पासवाँ ।
नहावऽ मोहब्बत के दरिया में,
ई धार हय गंगो-जमन के ।
गीत गावऽ........... ।
              -प्रोफेसर कॉलोनी
                 मिर्जापुर ,नवादा-805110
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कविता-कियारी
चेतवा तउ चेत जा
                   
                         जयनन्दन सिंह

ई शोक हे अशोक के, की ई विजय के हार हे?
ई अंत हे हेमंत के, की बारूदी वेयार हे?
अजीब गंध हे इहाँ, ई माँस-खून से सनल,
हे हाड़-गोड़ से भरल, ई रोड के किछार हे।
कि जम गेलइ हें ठंढ में, ई देह के गरम लहू,
राह में पसर गेलइ, लगे हे
मिल गेलइ हें खून हमर, तोर लाल खून से,
खून-खून में देखऽ, आझो पियार हे।
धुआँ-धआँ से भर गेलइ, ताज हमर देश के,
नरीमन के हाउस में तोर दुराचार हे ।
जड़िये से हिल गेलइ, देवाल ओवेराय के,
मार के तों मर गेला, ई कइसन अन्हार हे ।
हड्डी भी दे देलका, असुरन के मारे ले,
उनके हम बेटा ही, ऊहे संस्कार हे ।
हम जीअऽ ही दोसर ले, हम मरऽही दोसरा ले,
हमर रोम-रोम पर मानउता के अधिकार हे ।
शांति के ले उकवारी, सत आउ अहिंसा के,
पथ-प्रशस्त हम करऽ ही, बात तों विचार ले ।
साले-साल जारऽ ही, होली में नफरत के,
प्रेम के इंगोरा में, तों भी अपन जार दे ।
मार दे तों मन के इरखा के कार नागिन के,
बैर-भाव, गोस्सा के विखधर के मार दे ।
हम तोरा से नञ् डरवउ, हम तोरा से नञ् मरबउ,
अमरित हे ढोढ़ी में, सात्विक विचार हे ।
चेत में तउ चेत जो, अबकी धिरकइवउ नञ्,
दू डेग में हो जइवउ, लाहौर के पार हे,
रह जइमें खोजते तों देश के गलोब में,
कने हे सिंध आउ कन्ने कंधार हे।
                             -शेखोपुरसराय, शेखपुरा

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कविता-कियारी   
मुक्तक
तीन गो मुक्तक
               सुरेश दूबे 'सरस'
1.
जिनगी तो सुख-दुख के भरल-पुरल दउरी हे,
गरमी के लूक लगल, तूअल अमउरी हे;
तुरते में सोना औ तुरते में मट्टी हे,
जिनगी तो जइसे भगवान के बनउरी हे।
2.
जिनगी तो कबिरा के उलट-पुलट बानी हे,
जिनगी तो राजा हरिचंद के कहानी हे;
जिनगी तो भारी हे बड़का पहाड़ नियन,
जिनगी तो बरसाती नदिया के पानी हे।
3.
जिनगी तो जंगल के फूल नियन पसरल हे,
जिनगी तो रस्ता के धूल नियन लसरल हे;
रस्ता ऊ जे कउनो खेत में भुला जाहे,
जिनगी तो रउदा में छाँह नियन ससरल हे।

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कविता-कियारी   
                                     हाइकु
                                  -डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य
 १. जगली सभे
     जगउनी कैलन
    कृष्णदेव जी।
  २. फिन तूँ जागऽ
    भुरूकवा उगल
   रास बिहारी।
. बेस कहानी
       तारकेश्वर जी के
   नैना काजर।
. करऽ निहोरा
     मगहियन सबके
दुबे सुरेश।
. देखऽ सुजाता
    नाटक रचलन
    कवि हंस जी।
. उपन्यास हे
      जयनाथ पति के
   पढ़ऽ सुनीता।
.  मगही लहर
     बहयलऽ सगरो
    त्रिवेणी शर्मा।
. गाँव भर में
     संझउती देखावऽ
     गोविन्द प्यासा।
. तनि सुनावऽ
      तीत मीठ ग़ज़ल
    दीनबन्धु जी।
१०. कहानी कहऽ
      दयानन्द बटोही
  कफनचोर।
११. मान बढ़ैलऽ
       प्राणी महासंघ के
     मुनिलाल जी।
१२. सँवली पढ़ऽ
       उपन्यासकार के
   शशिभूषण।
१३. पढ़के देखऽ
     ग़ज़ल नाम हे
       जी मृत्युंजय के।
१४. पढ़ कविता
     मधुर सौगात
      श्रवण जी के।
  १५. दिल के घाव
       भरहुँ न पैलन
      घमंडी राम।
  १६. बच गेलऽ कि
         दमाही में जोतल
        बोलऽ विद्यार्थी।
१७. घरनी कहे
       मत जा परदेश
      किंकर जी से।
१८. चलबऽ देखे
       हरिनन्दन जी के
    अप्पन गाँव।
१९. एही होवऽ हे
       विधाता के विधान
   प्रभात वर्मा।
२०. तनि सुनावऽ
      पपिहरा के गीत
   भाई देहाती।
२१. लिखबे कैलऽ
     बकरी पर लेख
   राम विनय।
२२. केत्ता कयलऽ
    उकटा पुरान तूँ
हे अवधेश
२३. कैलन चोट
      गौरी शंकर सिंह
  समाज पर।
 २४. भाई दिलीप
      बदलल समाज
     देखऽ कितना।
        [उपर के हाइकु में डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य मगही के २४ गो साहितकार के परिचय देलन हऽ। हरेक साहितकार के लिखल कोय किताब चाहे उनका द्वारा संपादित पत्र-पत्रिका के नाम एकरा में शामिल हई।]
                                                   - संपादक, अलका मागधी
                                                    राम लखन महतो रोड
                                                    पुराना जक्कनपुर, पटना
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व्यंग्य 
                    चुनाव लड़ऽ तऽ एमपी लेल
                                                      उदय कुमार भारती
            म्मर लोकनाथ बाबू के एन्ने चाल-ढ़ाल, पहनावा-ओढ़ावा में बहुते बदलाव आ गेल हऽ। दोस-मोहिम आउ चौक-चौराहा पर उनखे चरचा हो रहऽ हे। अखनी ऊ चारो बगल छाल हका। चाय के दोकान में मोफिल जमैले रहऽ हका। आवेवला परचित आउ गनमान्य के बोला-बोला के चाय पिला रहला हऽ। बेसी मूड में रह हका तऽ चाय के साथ पकौड़ियो मँगा दे हका। कोय दमगर गनमान्य आ जाय पर उजर चाहे करिया रसगुल्ला के भी दौर चल जाहे। सबेरे आउ दिन-दुपहरिया के घर के बैठका पर चौकड़ी जमे से अलग। आवे-जाय वला के ताँता लगल रहऽ हे। घरे के भीतर से आधा-आधा घंटा में चाय बनके आवऽ हे। दोसर के काम आउ उपकार ले अखनी दुन्नु पैर उठैले रहऽ हका। दादा-भैया के बिलौक के काम रहे चाहे बैंक के तुरते सधावे में लग जा हका। लोन-ऊन, दाखिल खारिज ऐसन पैरबी ले तुरते दौड़ जा हऽ। जे अखनी उनकर दुआरे आवऽ हेखाली हाथ नञ् लौटे हे। सबके काम सधा रहला हऽअपने चाय पिला के। सांझकी के दू-चार गो लगुआ-भगुआ के साथे चौक पर लक्ष्मी होटल पहुँच जा हका आउ घंटो बैठकी के दौर चल‌ऽ हे। चाह-पानी के बाद पान के गुमटी पर मजमा....पान के गिलौरी पूछ-पूछ के खिलावे के दौर। राजो पान वला भी अखनी लोकनाथ बाबू के जादे तबज्जो दे हे। उनखा आवे से दर्जनो जोड़ा पान जे मिनटे में बिक जाहे।
       परसों ऊ मटका के कुरता, ननकिलाट के चूड़ीदार पयजामा पहिनले आउ उपर से बंडी डालले चाय दोकान पर पहुँचला। हम आउ कथित जी हुआँ पहिले से जमल हलूँ। हमरा से रहल नञ् गेल।
       हम पूछ बैठलूँ-ई नयका लिबास कुछो आउ संकेत कर रहल हऽ लोकनाथ बाबू। लगऽ हे दाल में कुछो काला हैकउनो बड़का तीर मारे के इरादा बुझा रहल हऽ। जरी अप्पन भेद हमरो बतावऽ। पत्रकार से कते छिपैवऽ? हम्मर जरूरत तऽ तोहरा पड़बे करतो।
       मुँहमा पर चव्वनियाँ मुस्कान फेरले लोकनाथ बाबू हमरा भीरी बैठ गेला आउ कहे लगला- अपने सभे के सहजोग करे के समय अब नजदीक आ रहल हऽ भाय साहेब। अपने सब के आशीर्वाद चाही। हम तऽ एमपी के चुनाव में खड़ा होवे के पूरा मन बना लेलियो हऽ। अपने सभे के शरण में अब हियै। नया जायलो गाड़ी खरीदे के जुगाड़ भीड़ा लेलियो हऽ। फायनेन्सर मिल गेल हऽ। अप्पन पाँचो भाय के नाम से बन्दूक के लाइसेंस लेल अप्लाई भी कर देलियो हऽ। आठ-दस लाख में तऽ चुनाव जीतिये जाम। भोट जुटावे के काम अपने लोगन पर छोड़ देलिये हऽ। तोहरा ऐसन दिग्गज-दिग्गज के हाथ हम्मर माथा पर रहतय तऽ हमरा के हरावत?
       हम्मर बगल मे बैठल कथित जी भीतर के बात टोह लेवे के ख्याल से अप्पन पुरनका अन्दाज में सबाल दाग देलका—ऐसन कि एकबैक हो गेल कि तू मुखियाविधायक से खड़ा नञ् होकेएकदमे एमपी लेल खड़ा होवे के फैसला कर लेलहोनेता तऽ तू हो गेला ई मानऽ हियो, लेकिन एतबर ऊँचगर छलाँग एके बेरी?”
       लोकनाथ बाबू लम्हर साँस छोड़यत गंभीर होके बोले लगलन—कथित जी चुनाव लड़ऽ तऽ एमपी लेल। एक बेरी एमपी बन जाय के बाद सात पुश्त तक कौनो रोजगार करे के जरूरत नञ् पड़तमंत्री बन जाम तऽ सभे सपना पूरा। एकाक घोटाला के तऽ कामे हे। हम्मर किस्मत में एकाक गो तऽ जरूरे गिरत। विभाग के एकाक मद तऽ रंगा करे के मोका जरूरे मिलत। चुनाव जीतते  भाग खुले लगऽ है। गठबंधन के सरकार बने हे। गड्डी के गड्डी तऽ इहें से मिले के रस्ता खुल जा हे। पाँच साल में कय बार सरकार के कुरसी डगमगा हे। विश्वास मत होवऽ हे। एक बार के विश्वास मत के तीन-तीन आउ पँच-पँच करोड़ रूपैया मिलऽ हे। पाँच बरिस में जदि दस बार सरकार गिर गेल आउ भोटिंग के बारी आल तऽ पचास करोड़ चित। पचास करोड़ विश्वास मत में आउ एकर अलावे केतना नोट बरसऽ है, अपने सभे नञ् जानऽ हथिन? वेतन, भत्ता आउ ताउमर के पेंशन तऽ उपर से। एन्ने भले घोटाला आउ घूसखोरी में कुछो सांसद आउ मंत्री धरा गेला, लेकिन सभे के साथ ऐसन थोड़े होवऽ है? सब स्टिंग आपरेशन में थोड़े फँसऽ हे? वोटिंग ले, केकरो पक्ष में बोले ले, कोय मुद्दा उठावे लेल एते पइसा कउन पेशा में मिलत कथित जी? कमइते-कमइते घिस जइवऽ पर सांसद आउ मंत्री जैसन रूतबा आउ पइसा नञ् कमा पइवऽ। आउ पाँच- दस सांसद के समर्थन मिल गेलो तऽ राजे-राज। कुरसी हिलावे आउ गिरावे के चाभी हमरे पास। सरकार के नाक में दम करे आउ कोय अहम फैसला नञ् लेवे देय में हम्मर भूमिका सबसे अहम। मोका मिलत तो बाप-दादा के नाम पर एकागो बन्दरगाहहवाई अड्डास्टेडियम इया कौलेज खोलवावे के काम सुनिशचिते समझऽ।
      कथित जी फेनो पूछ बैठला- कौने पार्टी के टिकट के जुगाड़ बइठा रहला हऽ लोकनाथ बाबू? आउ मुद्दा की बनइवा?”
     लोकनाथ बाबू विहँस के कहलका- पार्टी के की पूछऽ हऽ? अभी तऽ रोजे हावा बदलऽ हे। कहियो दलित-ब्रह्मण भाय-भाय, तऽ कहियो मनमोहन आडवाणी दुनहुँ हरजाय। अल्पसंख्यक लेल दोतरफा पासा। आज तऽ कोय चोला पहिन ला, नोट लूटावऽ, जुगाड़ भिड़ावऽ, भोट जुटावऽ। आउ मुद्दा के बात मत करऽ। आझ तोहरा ऐसन अदमी मुद्दा पूछथिनअभी महगी आउ भ्रष्टाचार से बड़का मुद्दा की बन सकऽ हेएकर मुद्दा उठाके अदमी अखने जमीन से असमान पर पहुँच रहल हऽ, हमरा तऽ चुनावे जीते ले हे। चुनाव तऽ भ्रष्टाचारे के मुद्दा बना के जीतम, बाद में हम भले केतनो भ्रष्टाचार करी। आउ कथित जी २१वीं सदी के सांसद आउ मंत्री के सोलहों कला आउ बारहों लक्षण हमरा में मौजूद हे। खाली तोहर आशीर्वाद चाही।
                                                        शब्द साधक
                                                   मगही हिन्दी साहित्यिक मंच
                                                        हिसुआ, नवादा
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व्यंग्य              
                 फालतू के परब हे बेलेंटाइन डे
                                      -सुमंत
         बापे किरिया, सच बतलइयो-प्यार, मोहब्बत के परब बेलेंटाइन डे हे एकदम से फालतूफालतू। भले परेम के गुरू घंटाल डॉ मटुकनाथ शिव-पार्वती के लव मैरेज, राम-सीता के परेम बिआह, दुष्यंत-शकुंतला के लव मैरेज....कह सुन के अप्पन करेजा ऊँच करे के कोशिश करथन। बाकी हे ई बात के बतंगड़े। हम पूछऽ ही- परेम कउनो एक दिन के चीज हे का? पंडीजी झूठो न कहऽ हथन। रिश्ता, नाता पाहेलही से फिक्स होवऽ हइ। लाख आदमी लइका-लइकी के बिआह ले गोड़-हाथ मारे, बाकी अंतिम में बिआह ओहईं होवे हे, जहाँ विधाता के कलम से लिखल रह हे। अब इ 14 फरवरी के बेलेंटाइन के ढिंढोरा झूठो न पीटा हे? एकरा से समाज में गंदगी फैलऽ हे, जेकरा अंगरेजी में सोसल करप्शन कहल जाए त अदमी सभे के सोझे समझ में आवत। बेलेंटाइन डे के नाम पर का होव हे? जवान लइका-लइकी नुक्का-चोरी एक दोसरा के गुलाब के फूल, चॉकलेट, ग्रीटिंग्स, दिल वाला खेलौना....लेव-देव हथ। बुझा हे- जेहे से की सामने में प्यार नुकाएल हे। बेसी करके पच्छिम के ई परब टिपोरी लइका-लइकी मनावऽ हथ। दोकनदार सभे के का हे समान बिके के चाही। एक के माल-प्यार में अन्हरायल 10–20 में खरीदतन कि 100–50 में का पता?  खैर! दिन पर दिन ई परब सुरसा के मुँह लेखा हवाड़ होएल जा रहल हे। बाकी कल के लेल ई हे-बड़ी डेंजरस। भारतीय सभ्यता-संस्कृति में परेम हलुमान जी के पोछिया से लम्हर हे। माय-बेटा के परेम, बाप-बेटा के परेम, भाई-भाई के परेम, भाई-बहन के परेम, दादा-दादी, नाना-नानी के परेम, मौसा-मौसी, फुआ-फूफा, मामा-मामी... माने ओड़िया से तीन वर आउ बेलेंटाइन डे में खाली परेमी, परेमिका के परेम। इहां परेम ओइसहीं सिकुड़ल हे, जइसे दिल। तइयो नौजवान दीवाना बनल हथ। मगहिया भाइ बहिन! सावधान! बेलेंटाइन डे पच्छेया हावा हे, ईमे उड़िआए के कउनो जरूरत न हे।
                                                       संपादक
                                                       टोला-टाटी, गया
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मगह के आयोजन
    कोलकाता के मगध महोत्सव
   
             18 दिसम्बर 2011 दिन एतवार के मगध नागरिक सेवा संघ कोलकाता के तत्वावधान मे शरत सदन हॉल नं0-2,हावड़ा मैदान में मगध महोत्सव के आयोजन करल गेल। कार्यक्रम के शुरूआत कोलकाता के उपमेयर फरजाना आलम आउ विशिष्ट अतिथि प्रभात खबर के स्थानीय संपादक तारकेश्वर मिश्रा जौरे कैलथिन। काजकरम के अध्यक्षता सेवा संघ के संस्थापक आउ अध्यक्ष पारस कुमार सिंह जी कैलथिनजवकि मोका पर अतिथि के रूप में बिहार मगही अकादमी सदस्य उदय कुमार भारतीप्रभात खबर के निर्मल मिश्रादैनिक जागरण के सुनिल शर्मा, आनन्द वितान के डायरेक्टर नरेश रॉय, दैनिक विश्वामित्र के वरिष्ठ पत्रकार बलराम सिंह, गिरीश टांक, हावड़ा के वार्ड पार्षद प्रसादी राम वगैरह मौजूद हला। मगही के राष्ट्रीय पहचान दिलावे ले आउ मगही के संविधान के आंठवी अनुसूची में शामिल करे के आन्दोलन के लेल आयोजित करल गेल काजकरम के सम्बोधन भाषण में उपमेयर फरजाना आलन कहलकी कि मगह हम्मर देशे के नञ् बलूक सौंसे जहान के राह देखैलक हऽ। मगह के पुरनका इतिहास आउ संस्कृति के सीखे-समझे ले विदेशी इहाँ शोध करे आवऽ हथिन आउ हमनी अप्पन भासाअप्पन पहचान भूला के विदेशी भासा के देने भाग रहलिए हऽ। ऊ आगे कहलकी कि मगह के संस्कृति आउ मगही भासा के राष्ट्रीय पहचान मिले के चाही। ऊ देश के नेता के आगू आवे के आह्वान कैलकी आउ बिहार के सीएम से कुछ करे के आशा जतैलथिन। ऊ कहलकी कि पावन मगह हम्मर जलमभूमि हे, ओहीं से पढ़-लिख के आझ कोलकाता के अप्पन करम भूमि बनैलूँ हऽ। अपने के मगह के बेटी बतैते ऊ मगही आन्दोलन में हरदम शरीक होवे के बात कहलथिन।
        प्रभात खबर के संपादक तारकेश्वर मिश्रा मगही के पहचान ले प्रयास करैत मगध नागरिक सेवा संघ के प्रयास के सराहना करलथिन आउ मगही समुद्र के लोगन के अप्पन धरती के भासा आउ संस्कृति पर गर्व करे के नसीहत देलथिन। ऊ कलम के जोर से मगही के पहचान दिलावे के मुद्दा के राष्ट्रीय स्तर तक उठावे के बात कहलका। मगही के अझका प्रगति पर रोशनी डाले के बाद मगही अकादमी के सदस्य उदय कुमार भारतीअप्पन हास्य व्यंग्य के कविता से देश के अझका हालत पर जमके प्रहार कैलका। बाबा रामदेव आउ अन्ना हजारे के आन्दोलन के समर्थन करैइत केन्द्र सरकार के धरना पर लाठी भांजे के विरोध जतैते ओकर निंदा कैलका।
        संघ के अध्यक्ष पारस जी मगही के सम्मान दिलावे ले बिहार आउ पश्चिम बंगाल में आन्दोलन के तेज करे आउ इकरा में समर्पित होके मगहियन के जूटे के आह्वान कैलका। पहुँचल अतिथि के अलावे विश्वामित्र के वरिष्ठ पत्रकार बलराम सिंह, गिरीश टांक, वार्ड पार्षद प्रसादी राम, केदारनाथ सिंहराजेश शर्मामहासचिव उदय शर्माभाजपा नेता संजय सिंह आउ दरजन भर गणमान काजकरम के सम्बोधित कैलका।   
स्मारिका के लोकार्पण, काजकरनी के गठन
        मोका पर मगध नागरिक सेवा संघ के तरफ से परकासित सलाना स्मारिका मगह के आवाज के लोकार्पण करल गेल। मगही साहित के हरेक विद्या से भरल पूरल आउ संघ के लेखा-जोखा आउ कार्यकलाप के प्रतिवेदन वला ई स्मारिका आकर्षण गेटअप मेकअप में हल जेकरा से संघ के मगहिया आउ मगही के प्रति समर्पण आउ काम झलक रहल हल।
         एकर बाद संघ के काजकरिनी के गठन करल गेल जेकरा में पारस कुमार सिंह जी के अध्यक्षउदय शर्मा के महासचिवकेदारनाथ सिंह आउ सत्यनारायण शर्मा के उपाध्यक्ष,चमारी शर्मा के कोषाध्यक्ष बनावल गेल।
मगहिया छात्र प्रतिभा के सम्मान
         मगह के बेटा-बेटी जे बिहार आउ पश्चिम बंगाल में मैट्रिक-इंटर के परीक्षा में ऊँचगर अंक लैलकाओइसन 12 प्रतिभावान के सम्मानित कैल गेल। सम्मान पाके मगह के ई प्रतिभा फूले नञ् समा रहला हल आउ जिनगी में कुछ कर के देखावे के अप्पन संकल्प  दोहरा रहला हल।
रंगारंग सांस्कृतिक काजकरम
        काजकरम के आखिर सत्र में सांझ से रंगारंग सांस्कृतिक काजकरम के आयोजन भेल जेकरा में बंगाल के कलाकार मगह के लोक आस्था से जुड़ल कई गो मन के लोभावे वला प्रस्तुति कैलका। छठ परब के नाटिका के हुबहु प्रस्तुति सभे के खूबे बेस लगल, एकर अलावे संस्कार गीत, देवी-देवता के भाव-भंगिमा के प्रदर्शन, नृत्य, छोट-छोट नाटक प्रहसन पर पूरा सदन भाव विभोर हो गेल। मगह के ऐसन जीवन्त संस्कार आउ लोक गायन सभे के मन के झकझोर देलक। उपस्थित मगहिया के लगल कि हम्मर माटी से जुड़ल ई सभे संस्कारसंस्कृति कत्ते बेस हे,जेकरा भूला के हम ठीक नञ् कर रहलूँ हऽ। एकरा जोगा के रखे के प्रेरणा सभे के ह्रदय में जगल।
        आउ आखिर में धन्यवाद ज्ञापन के बाद काजकरम के समापन भेल। बंगाल के धरती पर मगह के आवाज चहूँ दिशा में गूँजल ई काजकरम मगही के इतिहास के मील के पत्थर से कम नञ् जानल जात।
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मगह के आयोजन
हिसुआ के बिहार शताब्दी पुस्तक मेला
           23 दिसम्बर 2012 के हिसुआ के इण्टर विद्यालय में बिहार शताब्दी  तीन दिवसीय पुस्तक मेला के शुरूआत होल। मेला के उद्घाटन बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी कैलका। श्री चौधरी अप्पन सम्बोधन में कहलका कि बिहार में अब माहौल बदल रहल हऽ। हिसुआ जैसन प्रखंड में ऐसन पुस्तक मेला के आयोजन बड़गर बात हे। ई बिहार के गुणात्मक आउ सकारात्मक परिवर्तन हे। हिसुआ में जे ज्ञान के रौशनी जलले हऽ, ऊ दीपक में हम तेल डाले अइलिये हऽ। अतिथि लोजपा नेता मसीहउद्दीन कहलन कि हिसुआ ऐतिहासिकधार्मिकआउ साहित्यिक नगरी हे। ई बौद्ध सर्किट से जुड़ल हेएकरा अनुमंडल बनावल जाए। मेला के स्वागताध्यक्ष स्थानीय विधायक अनिल सिंह कहलका कि जहाँ अपराध कभी पनप हल ओहाँ अब पुस्तक मेला लगे लगल हऽ। हम्मर हिसुआ अब विकास के मुख्य धारा से जुड़ गेल हऽ। ऊ वर्तमान सरकार के काम के सराहना करैत, भेदभाव मिटावे के आह्वान कैलका। मगही पत्रिका के संपादक धनंजय श्रोत्रियमेला संयोजक शैलेन्द्र कुमार आउ कय मंचासिन अतिथि सभा के संबोधित कैलका।
         मगही कवि नरेन्द्र सिंह मगही कविता हमरा काहे कोय लजैतय बिहरीया कह के ना..’ गाके सबके मन मोह लेलका। विधायक अनिल सिंह के अध्यक्षता आउ मिथिलेश सिन्हा के मंच संचालन में काजकरम भेल। शिक्षिका वीणा मिश्रा के देखरेख में छात्रा सांस्कृतिक काजकरम पेश कैलक। मोका पर प्रोo भारत भूषण, प्रो गणेश शर्मा, प्रो नवल किशोर शर्मा, प्रमुख रंजन कुमार शाही, बीस सूत्री अध्यक्ष वीरेन्द्र कुमार सिंह, अपर समाहर्ता शैलेन्द्र कुमार, बीडीओ, बीएओ मौजूद हलथिन।
दोसर दिन
        मेला के दोसर दिन व्याख्यान आउ भव्य कवि सम्मेलन के आयोजन करल गेल। साहित संकट आउ समाधान पर व्याख्यान में प्रदेश के दिग्गज के जुटान भेल। पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री सुरेन्द्र प्रसाद तरूण, कथाकार व पत्रकार अवधेश प्रीत, कथाकार संतोष दीक्षित, इतिहासकार भोला झा, कार्टूनिस्ट पवन समेत दर्जनों अतिथि आउ साहितकार चर्चा कैलथिन। श्री तरूण मेला के ऐतिहासिक आउ प्रेरणादायी बतावइतपुस्तक संस्कृति पैदा करे आउ पढ़े पर जोर देलका। साहितकार आउ पत्रकार के साहित्य संस्कृति के जीवंत रखे में मदद के अपील कैलका। श्री प्रीत कहलथिन कि साहित संकट नञ् पाठक संकट हे। बिहार में किताब पढ़े वला बहुत जादे लोग हथिन। जदि बिहार किताब पढ़े ले बन्द कर दे तउ दिल्ली के हिन्दी प्रकाशन बन्द हो जात। ऊ कहलथिन कि साहित आगू आगू मशाल लेके चलऽ है। एमबीए आउ आइपीएस बन के भी लोग साहित लिख रहलथिन हऽ। अध्यक्षता सुरेन्द्र प्रसाद तरूण आउ मंच संचालन मेला संयोजक शैलेन्द्र कुमार कैलथिन, अतिथि के शॉल, प्रतीक चिह्न देके सम्मानित करल गेल।
छायल रहलन कार्टूनिस्ट पवन
       मेला में पहुँचल अतिथि कार्टूनिस्ट पवन सगर छायल रहलन। छात्र-छात्रा आउ युवा उनखर आटोग्राफ लेवे लेल उमड़ पड़लन। प्रोजेक्ट इण्टर विद्यालय के छात्रा पवन के कार्टून के पेपर कटिंग भेंट कैलकी। पत्रकार राजेश मंझवेकर पवन के बनावल कार्टून के पुरान पत्र-पत्रिका भेंट कैलका। श्री पवन व्यंग्यकार उदय कुमार भारती के हाथ से शॉल आउ प्रतीक चिह्न देके सम्मानित कैल गेला।
कवि सम्मेलन होल
       दोसर सत्र में भव्य कवि सम्मेलन के आयोजन भेल, जेकरा में कवि अप्पन काव्य फुहार से रंग जमा देलका। मुख्य अतिथि विधायक अनिल सिंहरजौली एसडीपीओ सैफुर्रहमान आउ वरीय पत्रकार अवधेश प्रीतडॉ संतोष दीक्षितलोजपा नेता मसीहउद्दीन के रहैत कवि दीनबन्धु, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, आकाशवाणी के ओमप्रकाश जमुआर, नरेन्द्र सिंह, शंभु विश्वकर्मा, अशोक समदर्शी, रंजीत, उमेश बहादुरपुरी, नागेन्द्र सिंह, जयनन्दन, दयानन्द बेधड़क, अरूण देवरसी, युगल किशोर राम, ईश्वर प्रसाद मय, प्रवीण कुमार पंकज, कृष्ण कुमार भट्टा, वीणा मिश्रा जैसन दरजनो-दर्जन कवि समा बाँध देलका, संचालन धनंजय श्रोत्रिय जी कैलका।
तेसर दिन समापन
           तेसर दिन दोसर सत्र समापन समारोह के भव्य आयोजन भेल। वीरायतन के माता आचार्य श्री चन्दना जी आउ डीडीसी रामजी प्रसाद काजकरम के मुख्य अतिथि हला। माता चन्दना जी कहलकी कि ज्ञान से ही जग के कल्याण होतै। ज्ञान फैलावे के जरीया किताब हे। किताब मानव से मानव के प्रति प्रेम के सिखावऽ हे। हिसुआ में जे ज्ञान के दीप जलले हऽ ओकर रोशनी सगरो फैलते। डीडीसी राम जी प्रसाद कहलका कि नवादा जिला के हिसुआ मगह के साहित्यिक आउ सांस्कृतिक नगरी हे। विधायक अनिल सिंह युवा के देश के भविष्य बतैते पुस्तक मेला के लाभ लेवे के बात कहलका आउ आगू भी एकरा आयोजन करे के आश्वासन देलका। मोका पर वातायन प्रकाशन के राजेश शुक्ला, काउंसेलिंग विशेषज्ञ आर एम मिश्रा, प्रवीण कुमार प्रेम, श्रवण वरनवाल, पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष दिलीप कुमार, नपं अध्यक्ष गीता देवी आदि जूटल हलथिन। मंच संचालन मिथिलेश कुमार सिन्हा आउ धन्यवाद ज्ञापन शैलेन्द्र कुमार कैलका।
कैरियर काउंसेलिंग आउ क्विज प्रतियोगिता
     तेसर दिन कैरियर काउंसलिग आउ क्विज प्रतियोगिता के काजकरम होल। पटना से पहुँचल आर एस मिश्रा आउ दलसिंहसराय के पहुँचल प्रो0 प्रवीण कुमार विद्यार्थीगण के इंजीनियरिंग आउ मेडिकल प्रवेश के सफलता के गुर सिखैलका। प्रोजेक्टर से सफलता के तकनीकी सूत्र सिखावल गेल। एकरा से पहिले पंकज राज आउ अमिताभ बच्चन के निर्देशन में क्विज प्रतियोगिता होल। बेहतर करे वला विद्यार्थी के पुरस्कार देल गेल।
मेला के आयोजन समिति
         शैलेन्द्र कुमार पटना आउ हिसुआ के मिथिलेश कुमार सिन्हा के संयोजन में मेला के स्वाताध्यक्ष स्थानीय विधायक अनिल सिंह के बनावल गेल हल। जिला के अधिकारी एकर संरक्षक मंडल के सदस्य हला। जउकि आयोजन समिति में डॉ गणेश शर्माडॉ भारत भूषणडॉ मनु जी रायप्रो बीके चौधरीपत्रकार राजेश मंझवेकरव्यंग्यकार उदय कुमार भारतीपत्रकार आलोक कुमार, पत्रकार अशोक कुमार, साहित सेवी प्रवीण कुमार पंकज, निसार अहमद, अमिताभ बच्चन, विपीन कुमार श्रीवास्तव, समेत 24 गणमाण्य के रखल गेल हल।
मेला में पहुँचल प्रकाशक
         मेला में राष्ट्र और प्रदेश स्तर के प्रकाशक के स्टॉल लगल। वाणी प्रकाशन, राजकमल प्रकाशनगायत्री शक्ति पीठमगही पत्रिकागीता प्रेस गोरखपुरजानकी प्रकाशन,ललित प्रकाशन, साहित्य दर्पणसाहित्य सुन्दरी, उपहार प्रकाशनवैदिक आर्यसमाजी साहित के दर्जनों प्रकाशन के स्टॉल लगल। खरीददार के बेस भीड़ उमड़लल आउ किताब के खूबे बिक्री होल। गायत्री परिवार के रामानुज शर्मा उर्फ चालो सिंह के चलंत बुक स्टॉल आकर्षण के केन्द्र रहल। ऊ कोट पर गायत्री साहित सजा के बेच रहला हल।
         हिसुआ के ई बिहार शताब्दी पुस्तक मेला क्षेत्र के साहित-संस्कृति लेल मील के पत्थर साबित होल जेकरा से हिसुआ के ऐतिहासिक महत्ता आउ बढ़ल। ई आयोजन जब तलक चाँद-सूरज रहत इयाद करल जायत।
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मगह के आयोजन                     
तपोवन महोत्सव होल
       शनिचर 14 जनवरी 2012 तिलसकरात के दिन गया के मोहड़ा प्रखण्ड के तपोवन में तपोवन महोत्सव के आयोजन भेल। काजकरम मगही लोक संस्कृति पर केन्द्रित हल जेकरा में भव्य कवि सम्मेलन नाटक आउ सांस्कृतिक काजकरम के प्रस्तुति मगही कवि साहितकार आउ लोक कलाकार कैलथिन। मकर मेला सह महोत्सव के उद्घाटन मुख्य अतिथि बिहार के अनुसूचित जाति सह अनुसूचित जनजाति कल्याणमंत्री जीतन राम मांझी आउ उद्घाटनकर्ता जदयू के मुख्य सचेतक श्रवण कुमार जौरे कैलका। अध्यक्षता अतरी विधायक कृष्णनन्दन यादव आउ मंच संचालन बीस सूत्री अध्यक्ष सुबोध पाण्डेय जी कैलन। श्री जीतन राम मांझी कहलका कि ऐतिहासिक तपोवन बुद्ध के तपोस्थली हेई परम पावन भूमि के पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करे में हम्मर सहयोग रहत। बाबा दशरथ मांझी के करम से एकर महत्ता आउ बढ़ गेल हऽ। मुख्य सचेतक आउ विधायक भी तपोवन के महत्ता के रेखांकित करैत एकरा पर्यटन के मानचित्र पर लावे में सहयोग के बात कहलका। दोसर वक्ता के माँग के देखइत अतिथिगण ई महोत्सव के सरकारी महोत्सव बनावे के पहल करे के बात कहलन। गया डीएम वन्दना प्रेयसी, एसडीओ, अपर समाहर्ता, बीडीओ, सीओ पहुँचल सभे अधिकारी ई सांस्कृतिक धरोहर के रक्षा के अप्पन कर्तव्य बतैलका आउ यथा संभव कुछ न कुछ करे के वचन देलका।
      सभा के भाजपाध्यक्ष रमेश सिंह, एसडीओ मो नैयर इकबाल, अपर समाहर्ता दिनेश कुमार, बीडीओ प्रशांत वर्मासीओ योगेशचन्द्र मिश्राअजीत सिंहमुखिया मुकेश कुमारनौशाद आलम आदि सम्बोधित कैलन।
लोक संस्कृति के जीवन्त काजकरम
     लोक संस्कृति के ई महोत्सव जीवन्त काजकरम हल। गया के कवि सुरेन्द्र सिंह सुरेन्द्र के संयोजन में इहां मगह लोक कलाकार आउ कवि के जुटान होल। लोक कलाकार वासुदेव प्रसाद, शिव प्रसाद सिंह आउ वंशीशरण के नाटक सभे के खूबे मन मोहलक। प्रेमचन्द के लिखल नाटक सद्गति के मंचन करके वासुदेव बाबू काजकरम में छा गेला। विरहाझूमरसोहर के गायन सराहल गेल।
कवि सम्मेलन
       उद्घाटन आउ सम्बोधन के बाद अतिथि के उपस्थिति में कवि सम्मेलन होल। कवि सुरेन्द्र सिंह सुरेन्द्र के मंच संचालन के मगही के हरेक विधा के कविता पाठ होल। कवि गीतगजल, हास्य-व्यंग्य से सभी के सरावोर कर देलन। बिहारी के देश के प्रगति में योगदान आउ बिहार गौरव पर कवि लोग बेस-बेस कविता सुनैलथिन। अशोक समदर्शीशिव प्रसाद सिंहव्यंग्यकार उदय कुमार भारती, नरेन्द्र प्रसाद सिंह, कन्हैया लाल मेहरवाल, राम कृष्ण जी, अशोक अजाँस, वासुदेव मगहिया, सुरेन्द्र सिंह सुरेन्द्र, सुमन्त, अप्पन कविता से खूबे वाहवाही बटोरला।
की हे तपोवन
               तपोवन आदि काल से ऋषि-मुनि सिद्ध संतन के तपस्थली हे। यहाँ ब्रह्मा के चार मानस पुत्र सनक, सनन्दन, सनातन आउ सनत कुमार के आश्रम हल। उनखे तप साधना के फल यहाँ के चार गर्म जल के कुंड हेजे क्रमश उनखे नाम से हे आउ शिव जी स्थापना गंगा सागर जाय के कर्म में कपिल मुनि कैलका। एहञ् कन्व ऋषि के आश्रम हल जिनखर पालित पुत्री अनुसूइया प्रियंवरा आउ शकुन्तला हलथिन। अनुसूइया महर्षि आर्ष के पत्नी हलथिन जिनखर नाम से आझो अतरी में एगो टिल्हा आर्ष मुनि के आश्रम के भग्नावशेष मानल जाहे। इहें माता अनुसूइया से वनवास काल में भगवान राम लक्ष्मण के साथ माता सीता जी पति व्रत धर्म के शिक्षा लेवे ले ऐलथिन हल। इहें माता अनुसूइया के पुत्र दुर्वासा हलथिन। कन्व ऋषि के छोटकी पालित पुत्री शकुन्तला के गंधर्व विवाह एहञ् राजा दुष्यन्त से होल हल आउ दुर्वासा मुनि के श्रापवश शकुन्तला के राजा दुष्यंत भुला गेलथिन। लेकिन दुर्वासा श्राप देवे के वाद शकुंतला के विनय पर वरदान देलथिन कि जब तूँ राजा दुष्यन्त के देल कोय चिन्ह प्रमाणस्वरूप देबी उनखर स्मरणशक्ति लौट जात अउ ऊ तोरा अपना लेता। आउ ओहे होल भी।
              तपोवन में ही 84 सिद्धन के आश्रम हल जेहमे सरहपाद(सरहप्पा) वसप्पा, कनरीपा, लुइप्पा आदि प्रधान सिद्द संत हलथिन। श्री राम सीता आउ लक्ष्मण तपोवने से राजगृह गेलथिन तबे राजगीर में राम कुंडसीता कुंडलक्ष्मण कुंडहनुमान कुंड हे। महाभारत काल द्वापर में भगमान कृष्णअर्जुन आउ भीम गया से तपोवन होतै राजगीर के दक्षिणी द्वार से जरासंध के पास गेलथिन हल। जेठीयन से जेठीमधु के वन हल, अरय गाँव अरण्यक वन के साक्षी हे।
             मगह में तपोवन के खूबे ऐतिहासिक महत्व हे। गौतम बुद्ध बोधगया से राजगीर जायके बीच में धर्मवन जेकरा तपोवन कहल जाहे, ठहरलथिन हल। इहाँ तांत्रिक तपस्वी कश्यप के आश्रम हलै। उहे आश्रम में बुद्ध प्रवास कैलन हल। बुद्ध के संगति के असर ऐसन होलय कि कश्यप अपन चेला-चपाटी के साथे बुद्ध के शरण में चल आल हल।
   तपोवन के पहाड़ी आउ उहाँ गरम पानी के स्रोत प्रकृति के अनुपम उपहार हे। इहाँ गरम पानी के कुंड हे। तीन-चार गो गरम कुंड रखरखाव के चलते लुप्त होवे के कगार पर हे। तपोवन मगह के लोक आस्था के महान पावन स्थल हे। प्रकृति सौन्दर्य आउ पहाड़ी के कारण ई अनुपम लगऽ हे।
   एही कारण ऐसन जगह पर तिलसकरात के दिन महोत्सव के आयोजन कैल गेल, ई जगह पर मकर मेला लगे के चलन आर्ष युग से ही मानल जा हे। हमनी के पूर्वज तिलसकरात के दिन राजगीर आउ तपोवन के गरम कुण्ड में स्नान करके एहीं खिचड़ी बना के खा हलथिन।
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मगह के आयोजन
कारूगोप विशेषांक मगही संवाद पत्रिका के लोकार्पण
        20 जनवरी 2012 दिन शुक्रवार के वरीय नागरिक संघ के कारजालय नवादा में कारू गोप विशेषांक मगही संवाद पत्रिका के लोकार्पण समारोह के आयोजन भेल। काजकरम के अध्यक्षता वरीय नागरिक संघ के अध्यक्ष श्री नन्दन शर्मा कैलथिन जवकि मंच संचालन पत्रिका के संपादक आउ बिहार मगही मंडप के अध्यक्ष रामरतन सिंह रत्नाकर कैलन। मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहितकार डॉदिवाकर अप्पन सम्बोधन में कहलथिन कि मगही साहित्य के समर्पित सेवा रत्नाकर जी कर रहला हऽ। मगह के लोक कवि कारूगोप के स्मृति अंक के निकाल ई बड़का बेस काम कैलका हऽ। एकर पहिले भी ई मगही के श्री नन्दन शास्त्रीमगही कोकिल जयराम सिंह, महाकवि योगेश्वर प्रसाद योगेश जैसन कयगो कवि के स्मृति आउ सम्मान के समाज के आगू लैलका हऽ। हम इनखर प्रयास आउ काम के नमन करऽ हियै। वरीय नागरिक संघ के अध्यक्ष श्री शर्मा कहलन कि बिहार मगही मंडप शताब्दी साल में नागार्जुन के साथे कारू गोप के स्मरण करके समाज के जगावे के काम कैलका हऽ। डॉo ओंकार निराला मगही भाषा के लगातार विकास के ऊँचाई पर बढ़ल जाय के बात कहलका। ऊ मगहियन के जौर होके मगही के विकास ले आउ काम करे के आह्वान करलका। ऊ कहलका कि मगही अब खाली भासा के भाव नञ् हेएकरा में अब रोजगार के भी अवसर हे। रामरतन सिंह रत्नाकर मगही के संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करे ले प्रदेश के मंत्री आउ नेता के कर्तव्य के बोध करैलका।
        डॉo दिवाकरश्रीनन्दन शर्माडॉ ओंकार निराला आउ रामरतन सिंह रत्नाकर जौरे बिहार मगही मंडप द्वारा परकासित नागार्जुन आउ कारू गोप विशेषांक मगही संवाद पत्रिका के विमोचन कैलका।
       ओकर बाद काजकरम में पहुँचल मगही कविगन कवितापाठ करके नागार्जुन आउ कारू गोप के साथे-साथ मगह के गौरवमय संस्कृति के गुणगान कैलका। मोका पर डॉ ओंकार निराला, व्यंगकार उदय कुमार भारतीडॉ संजय कुमारशफीक जानी नादांरामस्वरूप सिंहरामशरण प्रसाद सिंह, शिवदानी सिंह, जागेश्वर प्रसाद सिंह, राम चरित्र सिंह वगैरह मौजूद हलथिन।
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शब्द साधक
हिन्दी मगही साहित्यिक मंच
हिसुआनवादा (बिहार)

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रचना साभार लेल
अँचरा भर लोर - मगही कहानी संग्रह अपराजिता से।
लघु कथा - समकालीन मगही साहित्य जनवरी 2003 से।
मुक्तक, गीत - पुरहर पल्लो से।
हाइकु - अलका मागधी से। 

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