शुक्रवार, 30 मार्च 2012

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-७

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-७
मगही मनभावन
मगही साहित्य ई-पत्रिेका

        वर्ष -                                 अंक -                           माह - मार्च २०१२

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ई अंक में
दू गो बात.......
हमरा हाईलाइट तों करऽ, तोहरा हम
कहानी
भउजी - दीनबन्धु
हम्मर बाँट दऽ - दिलीप कुमार
एकांकी
सुजाता के खीर – केशव प्रसाद वर्मा
कविता-कियारी
विपतल के बोल – श्रीनन्दन शास्त्री
एको नञ् सुझै उपैया हो भैया – रामाश्रय झा
तोहर इयाद – केसरी कुमार
रिलीफ – केसरी कुमार
मोबाइल - रंजीत
मगही क्षणिका
संकलित
मगह के आयोजन
प्रगतिशील लेखक संघ के जिला सम्मेलन
मगही पत्रिका का वसंतोत्सव
पटना के मगही हास्य कवि गोष्ठी
हिसुआ के मूर्खानन्द आउ हास्य कवि सम्मेलन
विविध
पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
निहोरा
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दू गो बात.....
     मगही मनभावन के सतवां अंक लेके खाड़ हियै। ई अंक में भी मगही के अक्षत आउ फूल नियर दुगो कहानी, एगो एकांकी, पाँच गो कविता, मगही क्षणिका आउ चार गो मगह के काजकरम के रिपोर्ट लेके हाजिर होलिये हऽ। मगही के नयका आउ पुरनका लिखताहर के लेखनी के दम से परिचय करावे के हम्मर ई प्रयास केतना सार्थक हइ, ई अपने सभे जानथिन। हमरा तऽ साहित कर्म आउ पूजा से मतलब हइ।
   दीनबंधु के बहुत पहिले लिखल भउजी कहानी आउ दिलिप कुमार के लिखल प्रसिद्ध कहानी हम्मर बाँट दऽ बेस लगतै हमरा आसा हइ। केशव प्रसाद वर्मा मगही के ख्याति प्राप्त एकांकी के लिखताहर हथिन। सुजाताके खीर उनखर चर्चित एकांकी हे। हिन्दी के प्रकाण्ड विद्वान केसरी कुमार के के नञ् जानऽ हे, जिनखर शोध निर्देशन में कय दरजन विद्यार्थी पी.एच.डी. कैलका होत, जेकर गिनती नञ्।पटना विश्वविद्यालय से हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद से सेवा निवृत होवे वला ई विद्वान मगही के सेवा खूबे कैलथिन हऽ। उनखर रचना तोहर इयाद आउ रिलीफ इहां वानगी लेल देल गेल हऽ।
     मगही के दधिचि श्रीनन्दन शास्त्री के अमर रचना विपतल के बोल से रूबरू होबे के अपने सभे के मोका हे, आउ देखहो कि हम्मर खाँटी मगहिया साहित के कैसन धार हइ।
  अप्पन विचार आउ टिप्पणी के सनेस भेज के हमरा कृतज्ञ करहो। इमे आउ कैसन रचना देल जाय ई सुझाव देवे के किरिपा करथिन।
                                                 उदय कुमार भारती
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 सम्पादकीय.........       
            हमरा हाईलाईट तों करऽ, तोहरा हम
     उपर देल गेल शीर्षक कुछ अटपटा जरूर लग रहल हऽ, लेकिन अझका जुगाड़ संस्कृति के दौर में साहित में इहे प्रचलन घूस गेल हऽ। हम साहितकार एक दोसर के हाईलाइट करे में लगल ही। हमरा हाईलाइट तों कर रहला हऽ आउ तोहरा हम। हम्मर मुँह से तोहर साहित में तीर मारे के गरूड़पुराण हो रहल हऽ आउ तोहर मुख से हम्मर ऊँचगर साहितकारी के चरचा। बेचारा साहित करगी में खाड़ अप्पन बदकिस्मती आउ दुर्दशा पर आँसू बहा रहल हऽ। साहितकार साहित ले सोचतन तऊ उनखा की मिलत? बड़ाय करे आउ बड़ाय लिखे में जुटल रहतन तउ लोकप्रियता मिलत, उनखर महत्वाकांक्षा सधत, उनखर गुट बनत, उनखर बहुमत बढ़त। साहितकार के साहित के समन्दर में गोता लगा के मोती चुने से जे ऊँचाय नञ् मिल पइलक।ऊ ऊँचाय जऊ जुगाड़े से मिल जा हे तऊ की हरज? आझ कम इनपुट में जादे आउटपुट पाने के दौर जे चलल हे। दौर के मुताबिक चले वला के मंजिल मिलऽ हे।
मंजिल मिलतो, ऊँचाय मिलतो, लेकिन साहित.....?
    अत्मा पर हाथ धर के सोचऽ कि साहितकार कने जा रहला हऽ? कौन राहे? अभी तऽ जे साहित के दुर्दशा हो रहलो हऽ....ऊ तो होईये रहल हऽ। एकर दुरगामी परिणाम की होवत?
   नवोदित साहितकार के देखऽ, उनखा तो आउ ज्यादे हाईलाइट होवे के रोग लगल हे। ऊ चाहऽ हथिन कि हम खाली सुर्खिये में रहिये। काहे नञ् हम्मर रचना साहित के मटियामेट करे वला रहै, लेकिन एकर चरचा मंच से होवै, एकरा पर आलोचना लिखल जाए। आउ अखनी जुगाड़-भिड़ा के, बड़कन आलोचक के चमचई करके हाथ-पैर जोड़ के आलोचना भी लिखवा ले हथिन। लेकिन एकर परिणाम की होतय? जऊ तलक लिखताहर के ओकर साहित के स्तर, सृजन के कमी से दोचार नञ् करावल जाइत, तऊ तक ओकर साहित नञ् निखरतै। हम ई मामला में प्रो. डॉ. भरत सिंह, नरेन, हरीन्द्र विद्यार्थी, शम्भू विश्वकर्मा, अशोक समदर्शी जैसन साहितकार के दाद देवै, जे साहितकार के जरी कड़वा घूटे पिलावऽ हथिन।
    मंच पर देखऽ झूठो बड़ाय, हमरा से तोहरा कुच्छो लाभ हो, तोहर झोला हम ढो रहलियो हऽ, तउ तों लग गेला हँसुआ के विआह में खुरपा के गीत गावे तों हम्मर बड़ाय में सरंग-पाताल एक कर देला। आउ हमरा मोका मिलल तउ हम तोहर बड़ाय में खण्ड काव्य शुरु कर देलूँ। साहितकार के मुड़ी तखनी आउ शरम से झूक जाहे जब मंच पर बड़का-बड़का साहित साधक बइठल रह जा हका आउ अध्यक्षता ले केकरो आउ नाम प्रस्तावित करऽ देल जाहे। ई साहितकार के तौहिन नञ् हे, बलूक मंच आउ साहित के तौहिन हे। कोय मंच के काजकम में ओकर स्थायी अध्यक्ष के अध्यक्षता शोभऽ हे, लेकिन दोसर जगह पर हम्मर आदरजोग आउ पूजेजोग साहित साधक के ही अध्यक्षता में काजकरम करावे के हम्मर धरम हे।  साहितकार के ओकर साधना, सृजन आउ साहित के स्तर से सम्मान मिले के चाही।
   हम्मर मगही दो-चार गो अधकचरा रचना लिखेवला के हाईलाईट करे से नञ् आगू बढ़त। साहितकार बनावे ले लिखताहर के तपावे पड़तै, उनखा साहितकार बनावे लेल उखड़-खाबड़ काँटा भरल रस्ता पर दौड़ावे पड़तै, पैर घिसियाले पड़तै। हम्मर बहुतो साहितकार अप्पन साहितिक आलोचना से अकबका जा हथिन, संतुलन खो दे हथिन। लेकिन ई सच हे, आलोचना के कसैला घूँट और इंजेक्शन से ही उनखर साहित निखरतै। सुनहो आउ गुनहो...आलोचना के सोवागत करहो...आउ अप्पन लेखनी के साहित के स्तर के समान्तर खड़ा करे के कोरसिस करहो....तबे तोहर साहित निखरतो। सोना तपे से ही निखरऽ हे। आलोचक सुहागा के भी काम कर हथिन आउ आँच पर  तपावे के काम भी।
 सारथी पत्रिका के एगो अँक में नरेनजी के लिखल टिप्पणी बड़ी बेस लगल। ऊ कय गो कहानीकार के कहानी के कथ्य, प्रवाह, धरातल और ओकर समकालीनता पर सवाल उठैलका हऽ। कहानी के कसौटी पर उतारके ओकरा पर टिप्पणी कैलका हऽ। परमेश्वरीजी जैसन लिखताहर के भी नञ् छोड़लका हऽ।
  आवऽ हमन्हीं भी सच कहे के हिम्मत जुटावूँ, संकल्प लूँ आउ केकरो झूठे बड़ाय करके अपने हाईलाईट होवे के हिंछा तेयागूँ।
                                                        उदय कुमार भारती   
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कहानी
                                 भउजी
                                                             दीनबंधु
        केकरो भउजी कहते, चाहे अपने इयाद करते, एग्गो सुथ्थर जन्नी के चेहरा आगू में खड़ा हो जाहे। ममता के मूरुत, लमगर गठल देह, कजराल आँख, नाक खड़ी, ठोर लाल, गोर-नार कुल मिला के देवी के रूप नियर, सोहनगर।
   जब हम्मर छोट भाय आउ बहीन जरी-जरी गो हल, आउ हम भी कम-होसे हलूँ, तहिने हम्मर बाबूजी हमनी के छोड़ के सरग चल गेल हल। साल लगते माय भी साथ छोड़ के बाबूजी के राह धर लेलक।
   मरे से पहले भउजी के बोला के, मइया हमनी भाय-बहीन के हाथ धरावइत कहलक हल- कनिआय ई सब तोरे बाल-बुतरू हे, भगवान तोरे कोख से तो नञ् देखइलका, अइसीं अतमा सिहाले जा रहल हे, मुदा ई सब के माय-बाप अब तूँही हऽ। एतना कहते-कहते माय के मूँडी ऐंठ गेल हल। भउजी बुक्का फार के रो पड़ली हल- मईया जी मईया हमनिओं भाय-बहीन लोट-लोट के काने हल। रो-धो के काम-किरिआ खतम होल हल। घर के तरी-घरी पहिते से लगले हल, ई ले काम-किरिआ भउजी बड़ी लकधक से कइलकी हल। पछिम पटी ओसरा में गरूड़पुराण के कथा पंडितजी कहऽ हला, अउ साँझ के कागवली देवे ले जा हलूँ। हमरा खाय ले भउजी लिट्टी-दूध अउ चीनी दे हली। काम-करमठ भेल, सेजिया दान अउ एकैसो पात लगल हल, पिंड परधान होले हल, ढोल बाजा बजल हल। बड़ी भीड़-मेला अइसन।
  हम भउजी से पूँछलूँ हल- अञ् भउजी ई सब काहे ले होवऽ हय। रोते-रोते भउजी बोललकी हल- अजी बाबू ई सब कयला से परानी के मुक्ति मिलऽ हे। ऊ सब बात हमरा समझ में नञ् आल बकि जइसे-जइसे सब बतावथ, हम कइले जा हलूँ काहे कि माय के मुक्ति जे होवत हल, अउ भउजी के कहना तो हम टारिये नञ् सकेऽ हलूँ।
  सब कारज हो गेला पर बाबाजी दछिना ले कहतथिन। भउजी बोलली- एकामन रूपइया देम। बाबाजी तुनक के खड़ा हो गेला। सकलो कारज के एक सो एकामन से कम नञ् लेम। आखिर अकलू काका, आउ सब नाता-कुटुम के कहला से, बात एक सो एक पर तय होल, सब धमा-कुचड़ी करके खैलका, अउ बाबाजी सब मोटरी बाँध-बाँध के घरे भी ले गेला, मुदा भउजी के हम कखनियों नञ् खाइत देखलूँ। हम कहवो करियय तो कौर-घोंट खाके पानी पी लेथ।
  एकर बाद हमर नाम गाँव के हाई स्कूल में लिखा देल गेल। छोट भाय अउ बहीन मिडिल इसकूल में पढ़े लगल। ई तरह, हमनी के टैम से खाना-कपड़ा अउ किताब-कोंपी के इंतजाम में भउजी कोय कसर नञ् करथ, बाबूजी के पाँच-छो बिगहा जमीन हल, सेकरा जन-मजूर अउ अपन मेहनत दिमाग से आबाद करा लेथ। खाये-पीये ले कोय होल से सालो-माल पूरा हो जाय। बकि उपरी खरचा ले तो कुछ चाहबे करी। अब पहिले के पैसा-कउड़ी खतम हो गेल हल। एक दिन भउजी हमरा से बोलली, एजी बाबू मँझला तू एगो काम में हमर कुछ मदत करवा हम कहलूँ - की भउजी?
  ऊ बोललकी - हम चाहऽ हूँ, एगो जर्सी गाय लेवे ले, तूँ खाली ओकरा खिलाबे बाँधे में मदत करिहऽ।
  हम कुछ दूध घरे में रखके बाकी टोला-टाटी में बेच देम, जेकरा से घर के आमदनी बढ़त। हम डेरायत-डेरायत पुछलूँ हल- अञ् भउजी मुदा, पैसा कहाँ से अइतइ?
  भउजी बोललकी हल - हम सब करम ने जी। अब तूहूँ तो सरेख हो गेला हऽ तोहरा से की छिपाना। एक दिन चलिहऽ बजार। हमरा पास कुछ जेवर हे नैहरा के, ओकरे बेच के गाय लाम।
  सच्चो एक दिन भउजी के साथे हम बजार गेलूँ हल, हिसुआ, महाजन के दोकान। जेवर बेचला पर ढेरमनी पैसा भेल हल। बेसे बेसे जेवर में भी टाँकी बाद हो गेलइ हल।
  हम पुछलूँ - अञ् भउजी ई टाँकी की होवऽ हइ?
  ऊ बोललकी - ई सब सेठ-महाजन के बनौरी हय जी। जखने जेवर खरीदऽ तखने टाँका-टाँकी नञ् होवे अउ जखने बेचऽ तखने रूपइया में चार आना, पाँच आना टाँकी बाद कटवे करत। कोय दोकान में जा बात सगरो एक्के हे। आखिर एखनिन के तोंद अउ तल्ला बढ़तइ कइसे।
  एक दिन हाट से गाय आ गेल। घर बैठले दूध बिके भी लगल, हमनी के भी दूध-दही खाये ले मिले। अइसे कुछ बरिस बितैत कौलेजो के मुँह देख लेलूँ। सब कहे तोर भउजाय नञ् देवी हथुन। हम कही – ऊ हमर भउजाय नञ्, माय हथ। भउजी जो सुन लेथ, त ऊ गोसाथ - हमरा माय नञ् कहऽ बाबू, गारी परऽ हे। हम भउजाय ही, अउ भउजिये कहावे चाहऽ ही।
  हाँ, तोहनिन हमर बाल-बुतरू निअन हऽ। भगवान हमरा नञ् देलथिन तउ सेकरा से की।  तोहनिन तो हऽ ने।
  कुछ बरिस बाद कौलेज से पास कइला पर हमरा नौकरियो हो गेल, तेकर बाद हमर सादी, हमर छोट भाय के सादी, फिन बहीन के सादी, सबके घर बस गेल, मुदा भउजी के घर भउजी के आँख सगरखनी भईये के असरा में दुआरिये पर टँगल रहे। काहे कि माय-बाबू के बचते, बड़का भईया जे घर से भागला हल, से आज तक ले लौटके नञ् अइला। सब कहे कि उनखर काम किरिया कर दा, मुदा भउजी कहथ, नञ् हम अप्पन हाँथ से अप्पन सेनुर नञ् पोछम। कम से कम उनखर नाम से माँग तो टीकऽ ही।
  हमरा इयाद हे तनी-तनी, भइया खूब मोंट-घोंट गठल सरीर के जवान हला। ऊ कविता, कहानी लिखऽ हला, गाना-बजाना में भी इलाका में नामी हला। डरामा के खूबे करऽ हला। जखनी राजा के पाठ करथ, तो लगे कि सच्चों के राजा रहथ। मुदा एक दिन बाबू जी खूब डाँटलथिन कि ई सब नाँच डरामा, गाना-बजाना अउ कविता-कहानी से तोर जिनगी नञ् कटतउ। एकरा से समाज आउ सरकार कुछ मदत नञ् करतउ। जीये के हउ तो कुछ करहीं परतउ।
  एहे सब गोसा-पित्ता में भइया, जे घर छोड़ के गेला, से आझ तक ले सब परिवार आँख फारते हे। माय-बाबू जी गुजर गेला, मुदा भउजी के आँख में असरा के दीआ जरते हल। अप्पन आँख में सपना-भरले हली, हमनी बेअसरा हो गेलूँ हल। हमरा नौकरियो होला कत्ते साल बीत गेल। बालो बच्चा होल। हम भउजी के केतना बेरी कहलूँ - भउजी हमरे साथे रहऽ, मुदा भउजी के घर-दुआर, खेत-बारी के ममता बाँध ले हल आउ असरा के डोरी पकड़ले हली भउजी, भइया के आबे के इंतजार में।
  छोटका भाय बँटवारा करके अलगे रहऽ लगल अप्पन हिस्सा ले के। घर में डरवार पड़ गेल। मुदा भउजी अप्पन आउ हम्मर हिस्सा के दुआरी पर दीआ बार के ढेर रात ले बैठल रहथ। एकदम अकेले रह गेली हल भउजी।
  हम महीने-महीने घर खर्चा ले भउजी के पास कुछ पैसा भेजऽ हलूँ, मुदा एतना से भउजी के गुजारा होवऽ हल कि नञ्। भउजी कभी अप्पन अभाव के सिकायत नञ् तो केकरो से करथ नञ् तो हमरा से।
  हमर औरत सहरे में एगो मकान ठीक कइलकी हल आउ कहलकी हल - अजी सुनऽ हऽ हम्मर तो विचार हे कि घर के अप्पन हिस्सा के खेत मकान बेच के यहीं सोमर साव वाला मकान ले लेवल जाय। हम कहलूँ - अञ् भाय भउजी से बँटवारा करे कहऽ हऽ?  घर में एगो आउ दरबार देवे कहऽ हऽ। जे भउजाय हमरा माय नियन पाललकी उनखा से हम कइसे ई सब कहम?
  हम्मर औरत थोड़े तुनक गेली हल - भला ऊ टाल नियन घर लेके की करती खेतो बारी के देख-रेख तो नञ् होवे। हम कहलूँ हल - अजी जब देहे निरोग नञ्, तो खेत बारी घर दुआर कैसे देखती?
  हम्मर अउरत समझाबत बोलली - गाँव जा आउ उनखा समझा-बुझा के यहाँ ले आवऽ आउ फेन धीरे-धीरे हम बिच्चे में बात काटइत बोललूँ हल - हम उनखा कुछ ऩञ् कह सकऽ ही आउ अप्पन पुस्तैनी घर मकान नञ् बेचम, भले हमरा सहर में मकान होवे या नञ्।
  फिर भी औरत के जिद के आगू उनखा संतोष देवे ले घर चल देलूँ हल। सोचलूँ कि एहो असथिर हो जइती आउ तनी भउजिओ के देख आम।
  गाँव ऐते लोग कहलका हल कि तोहर भउजाय बड़ी जोर से बिमार हथुन। टोला-परोस के अदमी उनखा ले खाये-पीये के इंतजाम कर रहला हे, मुदा तोहर छोट भाय के परिवार तनी एक नजर ताकवो नञ् करथुन। ऊ सह के सिकायत हे कि ऊ सब दिन मँझले के भजलथिन।
  हम धीरे-धीरे घर पहुँचलूँ हल, हमरा मने गलानि हो रहल हल कि काहे नञ् भउजी के समझा-बुझा के सहर ले गेलूँ केतना तकलीफ सहलथिन, धन-चीज रहते।
  हमरा घर हेलते टोला-पड़ोस के अदमी साथे-साथे ढेर मनी बुतरून भी घरे आ गेल हल। हम भउजी के जाके परनाम कइलूँ हल। भउजी भभकइत दीआ नियर कभी बंद कर देलकी हल। हम कलपइत भउजी के हाँथ पकड़ के कहलूँ हल - हमरा साथे सहर चलऽ भउजी, ओंहैं तोहर इलाज करइवो, दवा-दारू से ठीक हो जैवी।
  भउजी हौले से हँसली हल, आउ बोललकी हल - अञ् बाबू, एहाँ तोर भईया के असरा के देखत ही, रूसल के के मनावत, हो सके ऊ जो कभी आइये जैता।
  एतना कहते-कहते भउजी के हालत आउ खराब होवे लगल हल, हम फूट-फूट के काने लगलूँ हल। जहाँ तक गाँव में दवा-दारू मिलत, उपाय करावल गेल। भला रात में निठाह देहात से कहाँ ले जा सकलूँ हल।
  कयसूँ-कयसूँ रात बीतल, भोरे हम भउजी के उठावे गेलूँ हल, अउ कहे ले सोंचलूँ हल कि सहर चलऽ, बकि ई कि ऊ तो दुआरी पर औंधे मुँह गिरल हली अउ बहरी दुआरी के केबाड़ी खुलल हल। लगे कि कोय सपना में उनखा हँकयलक होत अउ ऊ नींदे में दौड़ल दुआरी दने चल गेली हल। हम फूट-फूट के काने लगलूँ हल, गाँव घर के लोग बाग अइला, ठठरी बँधाल अउ राम नाम सत्त हे....के टेर लगल हल फेन ओहे विधान भोज-भंडारा। हम एकदम टूट गेलूँ भरल परिवार में अकेला।
  अब हम सहर में मकान न बनाके गामे में घर बनावे के सोचलूँ हल, जेकरा में हमर कहला पर भउजी के एगो सुथ्थर मुरूत बनल हल, दुआरी पर दीआ जरा के असरा में ठाढ़ एगो प्रतिक्षारत नायिका के मुरूत। घर अउ मुरूत बन गेल बकि हमर आँख सावन-भादो हो गेल हल अउ टोला-पड़ोस के भी आँख बरस रहल हल। हमर छोट भाय भी परिवार के साथे आके भउजी के मूरूत के आगू हाँथ जोड़ले हल अउ हमर औरत भी अपन अँचरा से भउजी के गोड़ पोछ ले हल।
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 कहानी
                    हम्मर बाँट दऽ
                                     दिलीप कुमार    
      रात के दस बज रहल हल। लोग खा-पीके सुतेला सोचहीं रहलन हल कि एकाएक हल्ला होयल- हम्मर बाँट दऽ! साथे रहे से कउन फायदा हे, जब रोज-रोज हल्ले होवऽ हे। कभी दूध ला, कभी कपड़ा ला, कभी सोडा-साबुन ला। सब कोई अपने मन के राजा हथ, त ई घर में साथे रहे से कउन फायदा हे? सुख होवे इया दुख, भले हम अलगे रहम। नरेश बाबू के मरला पर उनकर लइकन में जुदाई के कोहराम मचे लगल।
 नरेश बाबू गाँव के सबसे बड़का अदमी हलन। उनका तीन गो लड़का आउ एगो बच्ची हइन। नरेश बाबू तीनों लइकन के समान रूप से देखऽ हलन। बच्ची के भी बेटा से कम न समझऽ हलन। ओकरो पढ़ा-लिखा के बढ़िया घर में शादी-बिआह कर देलन। बच्ची के नाम सीमा हइ। सीमा बड़ी सुन्दर आउ पढ़े-लिखे में तेज हइ। बी.ए. पास कयला के बाद ऊ एगो हाई स्कूल में शिक्षिका हे।
 नरेश बाबू के बड़का लड़का के नाम रमेश, मंझिला के महेश आउ छोटका के सुरेश हे। रमेश स्वभाव से गंभीर, पढ़े-लिखे में तेज दिमाग के हथन। मैट्रिक परीक्षा पास करइते उनका अस्पताल में सरकारी नौकरी हो गेल। आज ऊ बड़का बाबू के नाम से जानल जा हथ। पूरा अस्पताल के देख-रेख इनकरे हाथ में हे। रूपइया-पइसा कमा के गरदा कयले हथ। रूपइया-पइसा के कोई गिनती न हे, आवइतो हे आउ जाइतो हे।
 महेश बाबू भी आई.एस.सी. पास करके कम्पोटर के टरेनिंग कयलन। एक्के साल बाद उनको नौकरी सरकारी अस्पताल में कम्पोटर के पद हो गेल। उनकर भाग भी चमक गेल। वेतन के अलावे ऊपरी आमदनी भी सुरू हो गेल। सचे कहल गेल हे कि भागवला के भूत हर जोतऽ हे आउ धनेवला के धन होवऽ हे।
 जब दुन्नो बेटा के नौकरी लग गेल तब नरेश बाबू के बोली डोली पर चले लगल। ऊ मौज-मस्ती में रहे लगलन। सुरा आउ सुन्दरी के अभाव न हे। एक बोलावऽ तेरह आयत। जीवन के सच्चा आनन्द एकरे मान के नरेश बाबू चले लगलन।
 बाबूजी के ई दशा देख के तीनों लइकन उनका से घिरना करे लगलन। लाख समझावल-बुझावल गेल, लेकिन नरेश बाबू अप्पन आदत न छोड़लन। रमेश बाबू आउ महेश बाबू तो अप्पन-अप्पन पूरा परिवार लेके नौकरी पर चल गेलन। बाकि सुरेश बाबू का करतन ऊ तो अभी मैट्रिक में पढ़ऽ हथ। पढ़े-लिखे में भी बहुत कमजोर हथ। नरेश बाबू देखलन कि छोटका लड़का मैट्रिको पास न करत, ई लेल ओकर शादी जल्दीये में कर देलन।
 सुरेश बाबू के औरत देखे में तो बड़ी सुन्दर हे, बाकि भीतर से एकदम कड़ा पानी के। जब नरेश बाबू कभी पीके आवऽ हथन तब सुरेश के औरत उनका पर फेकारिन जइसन टूट पड़ऽ हे। एतने नऽ, कभी-कभी खाना भी बन्द। बेचारे शराब के निशा में भुक्खे रात भर बकइत रह जाथ। सुरेश बाबू के भी औरत पर बस न चले। उनकर भी बोलती बन्द कयले रहऽ हे ऊ।
 सुरेश बाबू के घरनी के नाम करीमनी हे। लड़े में बेजोड़, बोले में मुँहफट, जवाब देवे में ताबड़तोड़, ऊँच-नीच के ग्यान न, सोचे के शक्ति न, जे ही से हमहीं। लड़े लगतन त बोलइत-बोलइत मुँह से गाद निकले लगत। पति के तो एगो पइसो भर न समझे। गाँव-घर के औरतियन सरकार के मुखिया भी हथ। खाय-पीये में चटोर, कपड़ा-लत्ता पहिने में शौखीन, खाना में दाल-भात के साथे कम से कम तीन गो तरकारी आउ पापड़-दनउरी जरूर रहत। घर में कोई खाय इया मत खाय, करीमनी जरूर खायत। घर में कोई कमी हो गेल, त समझ ल कि महाभारत हो जायत। ओकर कहनाम हे कि हम मरम त लेले जायम?
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                रमेश बाबू आउ महेश बाबू पाँच साल से घरे न अयलन। घर के चिन्ता भुला गेलन। अप्पन-अप्पन लइकन के पढ़ावे-लिखावे में भिड़ल हथ। बाबूजी के बेओहार से दुन्नो बेटा पाँच साल से घर न अयलन। लेकिन सुरेश के औरत करीमनी नरेश बाबू के पता बुझा देलक। बेचारे अप्पन छोटकी पुतोह से पानी-पानी हो गेलन। एतना तक कि खाना-पीना बन्द होवे के नौबत आ गेल। खाना में कटउती हो गेल। कुच्छे दिन के बाद नरेश बाबू अप्पन तीनों बेटा आउ एकलउती बेटी सीमा के छोड़ के दुनिया से चल गेलन। ई समाचार रमेश बाबू आउ महेश बाबू के मिलल तो दुन्नो पूरा परिवार के साथे गाँव पर अयलन। पिताजी के वियोग में दुन्नो भर जीउ रोयलन।
   अन्त में जब दुन्नो भाई नौकरी पर जाय लगलन त छोटका भाई सुरेश के बोलाके कहलन- बउआ सुरेश बाबूजी तो दुनिया से चलहीं गेलन। हमनी दुन्नो भाई के नौकरी लगल हे, तूहीं एगो बचल हऽ। ई लेल घर के मालिक आज से तूहीं रहऽ। सब सम्पत्ति के लेखा-जोखा तोरे करेला हवऽ। एतना कहके दुन्नो भाई अप्पन-अप्पन परिवार के साथे घर से विदा हो गेलन।
 सुरेश बाबू अप्पन भाई के बात समझ गेलन आउ ईमानदारी से घर चलावे लगलन। सुरेश बाबू के औरत करीमनी बड़ी खुश रहे लगल। मने-मन सोचे लगल कि पूरा घर के मालिक हमरे मरद हे। एक दिन करीमनी अप्पन मरद से कहलक- तोर दुन्नो भाई नौकरी करऽ हथुन। लेकिन एक्को पइसा बिना माँगले न दे हथुन। जरूर बचावऽ हथ आउ बैंक में अप्पन बेटा-बेटी ला जमा करऽ होयतन। हमनियो रूपइया-पइसा बचावऽ आउ बैंक में जमा करऽ!’
 वास्तव में सुरेश बाबू ईमानदार हथ, भाई के साथे गलत काम करेला तइयार न हथ। बाकि औरत जबरदस्त मिल गेल, तब ऊ करथ का फिर भी ऊ मन में सोचले हथ कि जब दुन्नो भइया हमरा घर के मालिक बना देलन हे, त साले-साल के आमदनी आउ खरचा जरूर रखम। ई बात सुरेश बाबू के दिल में चक्कर काटइत रहऽ हे।
 कइएक साल के बाद रमेश बाबू आउ महेश बाबू गाँव अयलन। सुरेश बाबू अप्पन ईमानदारी के सही-सही परिचय देलन। दुन्नो भाई बड़ी खुश होलन। खुश होके कहलन- भाई सुरेश बिगड़ल घर के तूँ जरूर ठीक कर देबऽ। हमरा तोरा पर भरोसा हे आउ भरोसा के फल मिलइत हे। हमनी भविस में भी एही आशा रखम।
 तीनों भाई आपस में दूध-चीनी लेखा घुल-मिल गेलन। दिन पर दिन घर के तरक्की होवे लगल। करीमनी एक दिन अप्पन मरद के फिन समझैलक- देखऽ दुन्नो भाई तो नौकरी करऽ हथुन आउ एक्को पइसा न भेजऽ हथुन। का उनकर सब पइसा परिवार चलावे में खतम हो जा हइन? जरूर ऊ अप्पन बाल-बच्चा ला बचाके बैंक में रखऽ हथुन। लेकिन आज से तूँ एक्को पइसा बचाके न रखलऽ। हमनी के बाल-बच्चा कइसे रहत? ऊ लोग के बाल-बच्चा अमीर हो जायत आउ हमनी के गरीब। देखऽ, हम्मर बात मानऽ न तो एक दिन अइसन समय आवत कि तूँ अफसोस करबऽ।
  देखऽ सुमनी के माय हम्मर भाई अइसन न हथ कि ऊ हमरा से लुका-छिपा के धन रखतन। हमनी तीनों भाई के मन में गलत विचार न उठ सकऽ हे। ईमानदारी भी एगो चीज होवऽ हे, एकरा लोग कइसे भूल जायत एकरे पर धरती ठहरल हे, न तो अबले रसातल में चल जाइत हल।
                                         *******
 सुनइत ह सुमनी के बाबू कल्हे हम नइहर जायम।
 का बात हे सुमनी के माय तूँ एकाएक नइहर के जतरा कइसे बना लेलऽ।
 बात कुच्छो न हे, मन उचट गेल हे।
नइहर में जाके करीमनी अप्पन भाई झगरू से कहलक- भइया! हम्मर मरद के कुच्छो समझ में न आवऽ हे। बड़ी समझइली-बुझइली, लेकिन एक्को बात माने ला तइयार न हथ। भाई आउ भउजाई के रट लगावइत रहऽ हथ। केतना बार समझइली कि तोर दुन्नो भाई नौकरी करऽ हथ आउ जरूर बैंक में रूपइया जमा कर होयतन। लेकिन ई बिसवासे न करऽ हथ। हम कहली कि न हवऽ त कुच्छो रूपइया हरेक साल बचयले जा। बैंक में जमा न करबऽ त हम्मर भइया झगरू हीं जमा कयले जा। बोलऽ झगरू भइया तोरा हीं से हम्मर पइसा कहाँ जायत? जब हमनी हीं जुदागी होयत तब दू-चार साल के बाद ऊ पइसा धीरे-धीरे करके ले जइती हल। बोलऽ भइया! एकरो से बढ़िया बात होवऽ हे?’
 देख बहिन! एही सब न ऊँच खानदान के देन हे। सुरेश पहुना के कउची बुझा हइन? दिन रात भइया-भउजी के नाम जपइत रहऽ हथ। आगे के बात भी तो सोचे के चाहीं न। बहीन,तोर दिल-दिमाग बड़ी तेज हउ। अइसन बात तोर दिमाग में भगवान कइसे समा देलथुन। तोरे चलते ऊ घर चल रहल हे बहिन, न तो अकेला ऊ घर चउपट हो जाइत हल। तनि ठहर बहिन! एगो चिट्ठी लिख के सुरेश पहुना के बोलावऽ ही। उनका जबले समझावल न जायत, ऊ न समझतन।
 चिट्ठी लिखके सुरेश पहुना के बोला लेवल गेल। भाई-बहिन दुन्नो मिलके सुरेश बाबू के दिल-दिमाग बदल देलन। बँटवारा के जोरन पड़ गेल। झगरू बेहद खुश हल कि हमरे पास अब बहिनियाँ ढाला रूपया जमा करत। ई रूपइया से हम्मर सब काम धकाधक चलत। पइसा के अभाव में हम्मर कोई काम न रूकत।
 सुरेश बाबू अप्पन औरत के बात पर भाई से बेइमानी करे लगलन। हरेक साल दुन्नो भाई के घाटा देखावे लगलन, तइयो दुन्नो भाई एकरा पर धेयान न देलन। बाकि जब खेत-बधारी बेच के भी ससुराल में रूपइया जमा करे लगलन, तब दुन्नो भाई सोचे लगलन कि अइसन बात काहे होइत हे?
 मौका मिलला पर रमेश बाबू गाँव अयलन। अप्पन छोटका भाई सुरेश से पूछलन- अइसन घाटा काहे हो रहल हे एकर कोई उपाय करल जाय कि भविस में घाटा न होय।
 दुन्नो भाई अपने में राय-सलाह करहीं रहलन हल कि सुरेश बाबू के घरूआरी रमेश बाबू पर फेकारिन जइसन टूट पड़ल आउ हल्ला करके कहे लगल- का समझलऽ हे हमनी के, एकदम से हरवहे दिन-रात काम करइत-करइत हमनी मरल जाइत ही। बेटा-बेटी के दुन्नो सांझ खाना भी नसीब न हे आउ अयलऽ हे पिंगिल पढ़े। तोहनी दुन्नो भाई के बाबूजी पढ़ा-लिखा के नौकरी लगा देलथुन, तऽ गोल-गोल बोली निकलइत हवऽ। इनका ला बाबूजी न हलथिन दुरंगहा तो इनकर बापे हलथिन, न तो एहि नतीजी होतइ हल। तूँ लोग एतना पइसा कमा हऽ, एक्को पइसा आज ले न भेजलऽ हे। कइले घर-दुआर चलत, से तूहीं बतावऽ तोर बेटा-बेटी सनजेवियर इसकूल में पढ़ऽ हवऽ आउ हम्मर बेटा-बेटी के घटिहों इसकूल नसीब न हे। हम्मर मरदे ठीक रहत हल तऽ अहि हालत होइत हल?
 सुरेश बाबू के औरत के मुँह से ई सब बात सुन के दंग रह गेलन। आज ले ई औरत हमरा सामने न होवऽ हल आउ आज सीधे भीड़ गेल। हो न हो सुरेश के देन हे ई सब। सुरेश बाबू एक्को बोली न बोललन। रमेश बाबू सीधे नौकरी पर चल गेलन आउ अप्पन पूरा परिवार के साथे गाँव पर लउट अयलन। चिट्ठी देके महेश बाबू के भी बोला लेवल गेल।
 घर में परिवार के संख्या बढ़ गेल। खाय-पीये लागी झगड़ा पसर गेल। कहियो तरकारी ला, कहियो दाल ला, कहियो तेल ला, कहियो साबुन ला। दिन-पर-दिन झगड़ा बढ़इत गेल। जइसन सुरेश बाबू के औरत ओइसने रमेश बाबू के औरत। रमेश बाबू औरत के दाबले रहऽ हलन, ई लेल ऊ कुछ बोल न पावऽ हल। बाकि अइसन समय में ऊ भी अप्पन औरत के लगाम ढीला कर देलन। औरतियन सरकार में होवे लगल महाभारत। उलटन-पुलटन जम के होवे लगल।
 अन्त में सुरेश बाबू कहलन- भइया भउजी के बात हमरा बरदास न होइत हे।
  रमेश बाबू कहलन- काहे हो भभु के बात हम बरदास करूँ?
   तोहनी पइसा ओला ह तोहनी के गरमिये दूसर हवऽ। बाकि एकरा ला हमरो गम न हे। हम गरीब ही तो गरीबे रहम। भउजी के बात हमरा बरदास न होइत हे, हम्मर बाँट दऽ।
   खैर तोर मुँह से अवाज निकलइत हे तो जरूर होयत।
तीनों भाई में बँटवारा हो गेल। बँटवारा के बाद रमेश बाबू आउ महेश बाबू अप्पन परिवार के साथे नौकरी पर चल गेलन। दुन्नो भाई खेती-बारी मनी-बटइया पर लगा देलन, ई लेल कि खेतो एक्के बिगहा रह गेल हल। सब खेत तो सुरेश बाबू पहिलहीं रूपइया अप्पन साला झगरू के पास जमा कर देलन हल।  
 बँटवारा से करीमनी बड़ी खुश हल। बँटवारा के बाद करीमनी अप्पन भइया झगरू से मिलल आउ कहलक- आजतक जेतना रूपइया तोरा पास जमा कइली हे, से सब दे दऽ।
  बहिन करीमनी तूँ ई का बोलइत हें? हमरा तूँ पइसा देले हें?’
 भइया के सीधे उलटइत देख के करीमनी जोर-जोर से रोवे लगल। अन्त में सुरेश बाबू आउ झगरू में गाली-गलौज भी होयल, बाकि रूपइया न मिलल। पइसा के चलते भाई-बहिन के नाता हमेशा ला टूट गेल। बेचारी करीमनी दिन-रात सोच रहल हे कि काहेला अइसन काम कइली कि घरहुँ के आटा गील हो गेल।
 रमेश बाबू आउ महेश बाबू दिन पर दिन पइसा-कउड़ी के मामला में ऊपर बढ़इत गेलन आउ सुरेश बाबू नीचे माहे गिरइत गेलन। बेटा-बेटी के भी उचित ढंग से पढ़ा-लिखा न सकलन। दिन-रात सुरेश बाबू सोचइत रहऽ हथ कि औरत के फेर में हम्मर घर चउपट हो गेल। भइया-भउजी से हम झुट्ठो अलगे हो गेली।
 अन्त में अइसन समय आ गेल कि दुन्नो बेकती आउ बाल-बच्चा भुक्खे मरे लगलन। रमेश बाबू आउ महेश बाबू जब गाँव अयलन तब देखलन कि सुरेश अप्पन परिवार के साथे दाना-दाना ला मुँहताज होयल हे। सुरेश दुन्नो के देखइत बारी-बारी से दुन्नो भइया के गोड़ पर गिर गेलन आउ भोंकार पार कर के रोवे लगलन। सुरेश के रोवाई सुनके आउ दशा देख के दुन्नो भाई के रहल न गेल। तुरन्त पूछ देलन- बउआ सुरेश! तोरा का तकलीफ हउ?’
 सुरेश अप्पन औरत के कारनामा बेयान कर देलन आउ जोर-जोर से रोवे लगलन। सुरेश के औरत करीमनी भी रमेश बाबू आउ महेश बाबू के औरत के गोड़ पकड़ के रोवे लगल आउ माफी माँगे लगल- दीदी, माफ कर द हमरा से भारी गलती भेल हे जेकर सजाय हम भोग लेली। दीदी कहला पर दुन्नो गोतनी करीमनी के गोड़ पर से उठा के छाती से लगा लेलन।
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एकांकी
                     सुजाता के खीर
                                       केशव प्रसाद वर्मा 
                              (1)
[उरूवेला परदेश....सेनानी गाँव.....बईसाख पूरनिमा...भोर के समय....सुजाता....सेनानी नाम के कुनवी परिवार के अति सुन्दरी कन्या अप्पन घर के आगे के ओसारा में छोटेगो पिठीका पर बइठल हे, अति चिक्कन रेशमी पीयर साड़ी में सुजाता के अंग-अंग चमक रहल हे-]
 सुजाता के आगे एगो ऐनक रखल हे। ऐनक के पासे डलिया में मोतिया, बेला, जूही, चमेली के खिलल आऊ अध खिलल फूल भरल हे। आऊ सुजाता अप्पन सिंगार करे में लीन हे। अप्पन माँग जूही के कली से सजा लेलक हे...जेकरा किनारे से लाल सिन्दुर...रेखा झाँक रहल हे...धप्-धप् उज्जर मेघ-खण्ड के किनारे से झाँके ओला लाल किरींग नियर...सुजाता अप्पन बँधल जूड़ा में मोतिया आऊ बेला के कतार बना के खोंसे में तल्लीन हे।]
         [अचानक पूर्णा आजाइत हे....पूर्णा सुजाता के अप्पन दासी
           आऊ सखी हे...पूरा विश्वासी...पूर्णा आवइते कहलक]
पूर्णा – भद्रे!  कपिला गाय दूहा गेल।
सुजाता - तो जा, चाँदी के नया बर्तन में लेके ओकरा गरम करऽ।
पूर्णा - ऊ तो गरम होइत हे।
सुजाता – तो जा, समजीरवा चाऊर दू मुट्ठी डाल दऽ। हम आवइत ही ओकरा में    
        केसर-कुसुम डाल के मधुर खीर बनायम। अब खाली हमरा पाँवे शरे ला
        बाकी हे।
               [पूर्णा जायल चाहीत हे...ओकरा रोक के]
     आऊ सुनऽ, पटबेहर पर आलता आऊ उबटन रखल हे, दे जा। 
[पूर्णा चल गेलसुजाता अप्पन जूड़ा में फूल के बनल कतार लगावे लगलकतार में से कुछ बेला के कलि बिखखर के गिर गेल। सुजाता अप्पन जूड़ा खोल देलक खुलल जूड़ा नागीन नियर लटके कटि के पास लोटे लगलओकरा में मोतिया के फूल गूँथ के लुभावना बना देलक ऊ-तब-तक पूर्णा आजाईत हे—सुजाता पूछ देलक...]
सुजाता  - आलता आऊ उबटन ले आयल हे?
पूर्णा    - बाकी उबटन में चंदन के गन्ध न हे!
सुजाता  - तो काहे न ओकरा में खस के चूरन मिला देलऽ?
पूर्णा    - ई तो हम पहिले ही मिला लेली हे।
सुजाता  - तूँ बड़ी चतुर हऽ पूर्णा!
पूर्णा  -एकरा में चतुराई के का बात हे? हम्मर सखी सुजाता अप्पन सिंगार                  
         करे आउ उबटन लगल शरीर से खस के गंध न आवे तो सब सिंगार     
         फीका! फूल के मोल तो हे जरुर बाकि बिना सुगंध के कहवाँ?

सुजाता  - तो सिंगार के बाद सुगंधित उबटन जरूरी हे?
पूर्णा    - जदी सोना में सुगंध आ जाय तो का पूछे के?
सुजाता  - पूर्णा! तूँ बता सकऽ ह हम्मर भरल माँग में जूही के एकावली कइसन
         लग रहल हे?
  पूर्णा  - भोर के समय बादर के ओट से झाँके ओला लाल किरिंग नियर।
सुजाता  - आउ कान से पास झूले ओला कुन्तल में छिपल कुण्डल?
 पूर्णा   - ई तो कार-मेघ के हिरदा फाड़ के चमके ओला दामिनी हे।
सुजाता  - तूँ बोलहूँ में बड़ी चतुर, हऽ पूर्णा तूँ बताव तो हमनी सिंगार काहे करऽ
         ही?
 पूर्णा   - [चुप]
 सुजाता - बोल पूर्णा बोल हमनी सिंगार काहे करऽ ही?
 पूर्णा   - [फिनो चुपे रहऽ हथ]
 सुजाता - तूँ न बोलबऽ पूर्णा तोरा बतावे पड़तवऽ।
 पूर्णा   - हम का जानी, भद्रे!
 सुजाता – तूँ न जानवऽ पूर्णा? हम जानीत ही। बताऊँ?
 पूर्णा   - बताबऽ न।
 सुजाता – देख, मन के मुराद मिल जा हे इया मिले के उम्मिद रहऽ हे तब लोग
         खुश रहऽ ह आऊ सिंगार तो ओही खुशी के परकाशन हे।
 पूर्णा   - हम समझ गेली तोरा पुत्र-रत्न मिलल हे।
 सुजाता – हँ,सखि हम एगो वट-वृक्ष से प्रार्थना कइली हल आऊ मनउती मानली
         हल........।
पूर्णा   - का?
सुजाता – कि बयस प्राप्त होयला पर हमरा सुन्दर बर आउ घर मिले।
पूर्णा   - ई तो तोरा मिलही गेल, भद्रे!
सुजाता – एतने न रे सुजाता, तोर सखी तो इहां, मानलक हल कि गरभ से हमरा  
        सुन्दर पुत्र-रत्न प्राप्त होयत तब हरेक साल बइसाख पूरनिमा के दिन
        हम वट-देवता के सहस्त्र-खर्व-खीर से बलि पूजा करम।
पूर्णा   - तो आज ओही दिन हे?
सुजाता – हँ रे, बइसाख पूरनिमा.....सुजाता के पूजा के दिन ...... ले सब सिंगार
        पटार के चिज सरीया के रख दे। हम्मर पूजा के समय हो गेल। एकर    
        अब तइयारी करूँ।
    [पूर्णा सिंगार के समान सरीयावे लगल-सुजाता उहाँ से उठ के चल देलन।]
                             (पट परिवर्तन)

                                                      (2)

      [उरूवेला के निरंजना तट….अतिरमणीक परदेश….बोधिसत्व के तपो भूमि...]
  [ बोधिसत्व ऊहँवे निकुँज में एगो वट-वृक्ष के नीचे पद्मासन लगा के बइठल हथअकेले….धेयान में लीन।
  उनकर कंचन-काया सूख के ठठरी हो गेल हे बाकी तपाग्नि में तपल-काया से सोना नियर दिव्य-आभा निकल के वट-वृक्ष के उजागर कर रहल हे।
  आज बोधिसत्व अगम महाशून्य समाधि तेयाग के संप्रज्ञात समाधि भूमि में आ गेलन हे—कठिन तप के कलेश आऊ ज्ञान प्राप्त न होय के दुख से अति चिन्तित होके बुदबुदा रहल हथ।]
बोधि सत्व- कौंडिन्य! ........कौंडिन्य!! ........तूँ चल गेलऽ........अब तो हम अगम    
          महाशून्य समाधि छोड़ के संप्रज्ञात-समाधि भूमि में आ गेली हे......
          तूँ तो हमरा जल आऊ मूँग के रस से तृप्त कयलऽ हमरा साथे रहे  
          ओला पाँचो ब्रह्मचारीओ तो चल गेलन ...... काहे न जाय......हमरा
          ज्ञान न प्राप्त भेल! .......का प्राप्त हो वो?........ रेचक ,कुम्भक,पूरको
          परे प्राण शून्य के महासमाधि लगइली........बेकार! .......कठिन तप से
          तो एही सिखली कि काया कलेश से ज्ञान न मिलत........ हम जान
          गेली अत्यन्त दुख आउ अत्यन्त सुख दूनों ज्ञान के मार्ग में बाधक
          हे.... तो?
 [अचानक बोधिसत्व मौन हो जाइत हथ-सुजाता आउ पूर्ण के परवेश—सुजाता के एक हाथ में उत्तम सोना के थाली में परोसल खीर हे आऊ दोसर हाथ में सोने के झारी में शीतल जल—दूर से ही देख के...]
सुजाता – देख! पूर्णा देख!! .......कइसन शांत हे ई निरंजना तट!.... एकर कल-कल
       ध्वनि से ई उरूवेला प्रदेश कितना संगीतमय बन रहल हे।
 पूर्णा  - हँ सखी! पंछियन के करलव तो एकरा आऊ मुखर बना देलक हे।
सुजाता – ओही वट-देवता हथ जिनका हम पूजम।
 पूर्णा  - सखी! पेड़ के जड़ में ओंगठ के पद्मासन लगयेल हथ?
सुजाता - लगइत हथ कि वट-देवता शरीर धारण करके वट-वृक्ष के नीचे हम्मर 
        पूजा लेवे ला बइठल हथ।
पूर्णा   - तऽ जल्दी चलऽ। हम्मर तऽ कलेजा धक्-धक् करे लगल।
सुजाता ई डरे के बात है कइसन निमन हे कि खुद वट-देवता आके हम्मर पूजा
        लेवे ला तइयार हथ। तूँ इहँई ठहर। पूजा चढ़ा के आवइत ही।
    [पूर्णा वृक्ष से दूर ठहर जा हे—सुजाता वट-वृक्ष के समीप जा के हाथ के थाली आऊ झारी भूमि पर रख देलक आऊ दूरे से माथा झूका के अप्पन इष्ट-देव के प्रणाम कयलक फिनु एक हाथ में थाली आऊ एक हाथ में झारी लेले खड़ा रहल—पूजा गरहन करे के आशा में।
   समाधि में लीन बोधिसत्व सुजाता के भावना समझ के श्रद्धापूर्ण भेंट गरहन करेला अप्पन भिक्षा-पात्र उठावल चाहलन बाकी पास में न रहे के कारण प्रेम पुलकित सुजाता के खीर-भरल-थाली आऊ जल-भरल-झारी लेवे ला अप्पन दून्नों हाथ उठा देलन—सुजाता बोधिसत्व के कर-कमल में अप्पन पूजा चढ़ा देलन। बोधिसत्व समाध तेयाग के अमरित-भरल दृष्टि सुजाता पर डाल देलन—सुजाता के समझ में आयल—देवता वर माँगे ला कह रहल हथ—ऊ भाव विह्वल हो होल देलक]
सुजाता – देव! अपने के किरपा से हम्मर मन-कामना पूरा भेल। पुत्र-रत्न से हम्मर
        गोदी भर गेल। हम मनौती मानली हल कि कामना पूरा होय पर सौ-गऊ
        खर्च से खीर बना के अप्पन देवता के अरपन करम। हम्मर पूजा गरहन
        कयल जाय। जइसन हम्मर मनोरथ पूरा भेल वोइसहीं अपनहुँ के पूरा
        होय।
 [बोधिसत्व हल्का मुसका के सुजाता के आशीर्वाद गरहन कयलन आऊ सुजाता थाल सहिते खीर दाम करके चल गेलन।]
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कविता-कियारी
                                विपतल के बोल
                                 श्रीनन्दन शास्त्री
जब देह जरै हे त बोलऽ ही।
तू भले चाँद पर मौज करऽ,
हम आग के धाह में खौलऽ ही॥जब...॥
अब-तब में ज्ञान प्रान हमर होइ हय,
अस-बस में जान हमर होइ हय।
जब मरदन मान हमर होइ हय,
तब मुँह तनिक हम खोलऽ ही॥जब...॥
मसजिद में अब हइ खुदा कहाँ,
मन्दिर में अब भगवान न हे।
हम खोज खोज के हार गेलूँ,
दुनिया में अब इन्सान न हे।
इंसा के भेस में इंसा सब,
इंसा इंसा के खुनिया हय।
अब आग लगल संसार में हय,
घर-घर में हर परिवार में हय,
के नवका दुनियाँ बनवे हय,
सब तो लागल संघार में हय,
हम जारऽ ही अनका के घर
अनका हम्मर घर जारय हे।
हम फाड़ऽ ही अनका सिर,
अनका हम्मर सिर फाड़य हे।
ई खुनी रंग दुनियाँ के देख,
पीपर पत्ता सन डोलऽ ही॥जब...॥
सतजुग से हमें सतायल हलों,
त्रेता के हमें रोलायल हलों।
द्वापर में दमन के चक्की में,
धरती तर हमें दबायल हलों।
कलजुग के हाल तो मत पूछऽ,
कि केतना हमर तबाही से ,
एकरा से जादा की कहिओ,
इतिहासे हमर गवाही हे।
धन-धान तो कत्ते लुटलक हल,
सम्मान हम्मर ई लूटय हे।
द्वापर साड़ी पर टूटै हल,
कलजुग इज्जत पर टूटै हय।
सिया हरन कैलक त्रेता,
सूना जंगल में चोरी से।
लाखों सीता के लाज रोज,
लय हे कलिजुग बरजोरी से।
खम्भा में बाँध देलक सतजुग,
छन भर के लिये प्रह्लाद हमर।
संकट सूली पर चढ़ा देलक,
कलजुग पूरा परिवार हमर।
द्वापर से हजार गुना,
कलि हमरा रोज सतावय हे।
ऊ थन से जहर पिलावय हल,
ई पवन में जहर मिलावय हे।
हम खोल सकऽ ही मुँह के नय,
छाती पर भोंकल भाला हे।
त्रेता में तन पर नाग फाँस,
कलिजुग में मुँह पर ताला हे।
कलिजुग के करनी देख-देख,
थर-थर सतजुग थर्रावय हे।
ऊ अप्पन पूत जरावय हल,
ई सउँसे जग के जरावय हे।
सुंभ अउ निसुंभ के दुनियाँ भी,
हम ई दुनिया में देखलूँ हे।
रक्तबीज जइसन खुनियाँ भी,
ई दुनिया में देखलूँ हे।
हम इहे आँख से देखलूँ हे,
मधुकैटभ जइसन उत्पाती।
महिसासुर जैसन लड़वैया,
भस्मासुर सन विस्वाघाती।
हिरण्यकसिपु हिरनाच्छ राज,
में भी हम कुछ-कुछ सुखी हलों।
धरती चोरीं के दिन भी नय,
धरती पर इतना दुखी हलों।
रावन के लूट से घर-घर में,
झड़ गेल हमर चानी-सोना।
हम टैक्स लहू तक देलों हल,
करके छनभर रोना-धोना ।
दिन-रात आहि, दिन-रात आहि,
हम आज तलक नै देखलूँ हल।
ई आहि-आहि ई पाहि-पाहि,
हम आज तलक न देखलूँ हल।
छीन लेलन हमर सब दूध-दही,
जब राजा कंस कसाई भेल।
जरासंध सिगुपाल अउ कौरव,
आततायी सब भाई भेल।
तखनों हम कुछ-कुछ सुखी हलों,
तखनों नय हम एतना दुखिया।
तखनो नय ई दुर्गति हम्मर,
तखनों हम अखने से सुखिया।
तक्खने जे हम्मर दुस्मन हल,
ऊ दिढबर हल हमरा अर हे।
सुन-सुन के तूँ अचरज करबे,
हिरनाच्छ मरल एक सूअर से।
पानी के फेन से नंबूची,
मर गेल ई के नै जानय हे।
अदमी हड्डी के मार से मरल,
वृत्तासुर सब कोय मानय हे।
खुलते ही आँख सब सगरपूत,
खुलते ही आँख जरि काम गेल।
बस,एक बान से छन भर में
त्रिपुर के काम तमाम भेल।
कि हजार हाथ वाला के भी,
फरसा से कटते देखलूँ हम।
एकइस बेर ई धरती से,
दुस्सासन उठते देखलूँ हम।
आधा अदमी अउर आधा पसु,
हिरनाकुस के मरवैया हल।
दू गो अदमी अउ बन्दर सब
रावन के नास करैया हल।
मुक्का के मार से कंस मरल,
सिसुपाल मरल एक थाली से।
पूतना, केसी, चानूर मरल,
खेलित-खेलित वनमाली से।
अठारह अक्षौहनी सेना के,
कुरुक्षेत्र में लड़ते देखलूँ हल।
अठारह दिन के जंग में हम,
एक-एक के मरते देखलूँ हल।
हम जुग-जुग से लड़ते अयली,
तब भी कलजुग नय डोलय हे।
हम डाढ़-डाढ़ चढ़ि दौड़ऽ ही,
ई पात-पात चढ़ि बोलय हे।
अन्धेर लगऽ हे तखनों अउ,
अखनौ के समय जब तौलऽ ही।
जब देह जरय हे तऽ बोलऽ ही॥
तू भले चाँद पर मौज करऽ,
हम आग के धाह में खौलऽ ही॥जब...॥
[श्रीनन्दन शास्त्री के ई अमर रचना के सो-सो बार सलाम।]
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 कविता-कियारी
                       तोहर इयाद
                              केसरी कुमार
जब मंदिर के घंटी भोर में बजे हे,
जब जाड़ा के पीयर धूप
कमजोर परसौत अइसन लगे हे
जब अधरतिया के अन्हरिया में
कोई रेलगाड़ी चले हे
तब तोर बहुत इयाद आवे हे
बल्कि बरतन-बासन से टकराइत चूड़ी
सौरी में रीतल जवानी
गिरजाघर के मोमबत्ती अइसन घुलइत
हड्डी-हड्डी देह आउ मांग पर सेनुर के
मद्धिम मसाल लेले
एक पूरा सिलहटी जुलूस के
इयाद आ जा हे
लेकिन अद्भुत हे बात
कि कभी एतना अकेला भी न होइत ही
कि चित्त बिना विरोध के सम हो जाय
आँख बिना दिरिस के थिर हो जाय
अइसन जोग कहाँ पाऊँ?
होय लगली हल जड़, पत्थर
लेकिन तब
कोई अहिल्या
आके छू जाहे, आउ
सब कुछ हो जाहे
बेमतलब
जइसे अभी-अभी
सूरज के खरोच लगल, लेहू-लुहान
साँझ के देख के, मन में जे उमसल
उ सब के सब
हो गेल निररथक, जब
तुरते अचानक हलुक-हलुक
बादर आ बरसल आउ
हमरा लगल कि ओही परबइतिन
गंगा नेहायल अपन मेघ-कुंतल के
अइसन झटकलन कि उनका से
गिरइत बून-बून टीन के छत
बजा-बजा के कहइत हे
गली-गली
हम तो अइते हली।
[उनखर इयाद में]
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कविता-कियारी
                         रिलीफ
                                केसरी कुमार
हम्मर मीत चनेसर अयलन
पुछली-कइसन हाल-चाल हे?
कहलन-भइया,धान बाढ़ में दह जाय से सब बेहाल हे।
पीठ परे कटेसर अयलन
कहलन-सब कुछ ठीक-ठाक हे।
हमनी के हे तीन फसल- एक हे रब्बी, एक खरीफ,
इ दुन्नो के ऊपरे जे हे
ओकरे मरदे नाम रिलीफ।
सूखा पड़े इया आवे बाढ़
रब्बी मरे इया मरे खरीफ।
बिधना एतना दया करे कि
आ जाये हर साल रिलीफ॥
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कविता-कियारी
                    एको न सुझे उपैया हो
                                    डॉ.रामाश्रय झा
एको न सुझे उपैया हो भैया
एको न सुझे उपैया।
जिनगी भर हम कैलूँ कतनौ जतनमा,
जाड़ा औ गर्मी में सिझलै बदनमा,
देहिया में बस्तर न पेटवा सुअनमा,
दुखवे में बीतल समैया हो भैया,
एको न सुझे उपैया॥1॥
मालिक तगादा में धैले निरेटिया,
फट्टल फरकवा में निकसऽ हय बेटिया,
गउमा में मुखिया मरमियो न जाने,
खट-खट के मरलै कनैया हो भैया,
एको न सुझे उपैया॥2॥
बरसऽ हमर अँखिया औ बरसे बदरिया,
चूअऽ है टपेटप फुसवा छपरिया,
भींजल हय मटिया पुरनकी देवलिया,
होवे भले नैं परलैया हो भैया
एको न सुझै उपैया॥3॥
पसुओ से बत्तर हय हमरो जिमनमा,
दू दिन के सुखवा ल छछने परनमा,
घरवा में ठुनकऽ हय छोटकी पुतहुआ,
हुँकरे खड़ी धेनु गैया हो भैया,
एको न सुझे उपैया॥4॥
भुखवा के मातल सुतलै बुतरुआ,
सुखवा के मुखवा न देखलक दुलरुआ,
हम्मर झोपड़िया में कुच-कुच अन्हरिया,
मुखिया हीं बज्जै बधैया हो भैया॥
एको न सुझे उपैया॥5॥
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कविता-कियारी
                      मोबाइल
                                रंजीत
ई मोबइलबा हमरा ले काल हे।
सबसे बड़का ई जी के जंजाल हे।।
जइसीं आंख लगे बजऽ हे टनाटन,
मैसेज आउ मिस कॉल आवे दनादन।
गलती से बटम दबे तऽ पॉकेट कंगाल हे।
ई मोबइलबा हमरा ले काल हे।।
हम लगैते-लगैते हो जाहुँ पस्त,
इस रूट की सभी लाइनें हइ व्यस्त।
कृपया कुछ देर बाद डायल करें, चाल हे।
ई मोबइलबा हमरा ले काल हे।।
हम्मर मेहरी के ई बड़का अस्तर बुझा हे,
लाइन पर कभी माय तऽ कभी भौजाय हे।
हम्मर आधा कमाय एकरे में समाल हे।
ई मोबइलबा हमरा ले काल हे।।
मोबाइल खरचा के एक दिन देलुँ बीबी के ताना,
मोबाइले से केस दरज करा देलखुन थाना।
कुरकी आउ जब्ती के वारंट भी आल हे।
ई मोबइलबा हमरा ले काल हे।।
लुचबन-गुंडवन ले ई बड़का फंडा,
केकरो नञ् फेंट लगै ओकर धंधा।
घरे बैठल ऊ पहुँचल भोपाल हे।
ई मोबइलबा हमरा ले काल हे।।
केकरा नञ् एकरा से पड़ल हे वास्ता,
खिलौनों से इतो हो गेल हऽ सस्ता।
कलम नञ् कूपन के बिक्री बबाल हे।
ई मोबइलबा हमरा ले काल हे।।
केतना तेजी से बदल रहल दुनिया के ट्रेंड,
लड़की के बॉय आउ लड़का के गर्ल फ्रेंड।
लड़का-लड़की के बीचे मोबाइबे दलाल हे।
ई मोबइलबा हमरा ले काल हे।।
बुतरू अखनी जलमे हे लेलहीं मोबाइल,
धरती से करे हे ईश्वर के डायल।
हेलो गॉड स्वर्ग के अप्सरा से नर्से कमाल हे।
ई मोबइलबा हमरा ले काल हे।।
एक दिन बीईईओ साहब कैलखुन फोन,
तोहर स्कूल में झरल हे नोन।
विद्यार्थी कैलको फोन पनटिटोर दाल हे।
सबसे बड़का ई जी के जंजाल हे।।
ई मोबइलबा हमरा ले काल हे।।
                                              ग्राम+पोस्ट-पोआरी
                                              हरनौत, नालन्दा
                                                मो0-9931531851
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मगही क्षणिका
एगो टोपीधारी
गली-कुच्ची में बुढ़वन के
गोड़ छुवइत हल।
दोसरका पुछलक
का राम राज आ गेल
तेसरका टुभकल
न, वोट नगीच आ गेल।
                    -डॉ राम प्रसाद सिंह
असली नेता आउ नकली नेता में
न हे भेद
बाकि कुर्सी बदलइते
हमरा हो जाहे खेद।
                -केशव प्रसाद वर्मा
नेता लमहर मदारी
ध्यान रहे
बन्दर न बन जा।
                     -डॉ राम गोपाल पाण्डेय
नेता तो नेता हे
चमचा के चाँदी हे
लुटबऽ तऽ लूटऽ
चुनाव के आँधी हे।
                 -महेन्द्र प्रसाद देहाती
पीए ओलन मधुशाला में
गाड़ले हथ झंडा
पीलन बाकि छक-छक करके
मंत्री, संतरी, पंडा।
                        -प्रो. दिलीप कुमार
अपहरण के धंधा में
मोट हे कमाई
मिले अगर संरक्षण
राजनीति के भाई।
                 -अछूत भानु
चोरी, घुसखोरी के
सगरो हे राज
केकरा कहल जाय
कि ऊ रह गेल साध।
                 -राम पारिख
कोढ़ में खाज
ग़जब रेवाज
केकरो न परहेज
वाह दहेज।
                    -प्रो. अवधेश कुमार सिन्हा
बेटा मांगऽ हे दूध
तब ओकरा
चाय दे के फुसलाई
कारण हे मंहगाई।
                     - प्रो. दिलीप कुमार
सुन्दरी बोलल
हम्मर पेट में
ई कोइ बात हे
एकर उपाय गरभपात हे
आउ शादी
त परेमी बोलल-
अभी जल्दीबाजी का हे।
                    -डॉ उमाशंकर सुमन
फिकिर में आँख धंसल
गाल पचकल
भेल हाथ-गोड़ सिरकी
जुवन ढहौना के कहलक
बड़ रास आयल।
                    -डॉ. रामगोपाल पाण्डेय
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मगह के आयोजन
                प्रगतिशील लेखक संघ के जिला सम्मेलन
        5 फरवरी 2012 के प्रगतिशील लेखक संघ के छठा जिला सम्मेलन कॉमर्स कोचिंग संस्थान नवादा में भेल। काजकरम के शुरुआत संघ के राज्य सचिव मंडल के सदस्य सह पर्यवेक्षक अरूण हरिलीवाल के हाथ से भेल। अध्यक्षता प्रलेस के जिलाध्यक्ष शम्भू विश्वकर्मा जी कैलका। पहिले सत्र में समकालीन सन्दर्भ में प्रगतिशील चेतना विषय पर गोष्ठी शुरु भेल। साहितकार मिथिलेश कहलका कि यथार्थवाद के पर्याय हे प्रगतिशीलता। माटी से जुड़ल रहे वला साहितकार ही सच रचना कर सकऽ हे।
   साहितकार के साहित लिखे से पहिले प्लॉट के गर्भ में जाय पड़त, ओकर संवेदना से जुड़े पड़त, तबे उनखा में ऊँचगर साहित के धारा फूटत। श्री मिथिलेश लेखक के सभ्यता, संस्कृति आउ यथार्थ से जुड़ के प्रगतिशील रचना करे के आह्वान कैलका। पर्यवेक्षक अरूण हरलीवाल समुद्र मंथन के प्रगतिशील मिथक बतैलका आउ ओकरा से प्रेरणा लेवे के साहितकार के नसीहत देलका। मंथन सृष्टि के आरम्भ से ही चलल रहल हऽ। अदमी अप्पन कर्म, सहकार, चेतना से प्रगति पैलक। विकास समुद्र मंथन के जैसन हे। ऊ कहलका कि मेहनत के काम अनपढ़ आउ मूर्ख के जिम्मे हइ, जऊकि आराम के काम चन्द लोगन के हाथ में हे। ऊ श्रम के सम्मान दिलावे के बात कहलका।
   भारतीय संस्कृति के प्रतिस्थापित करे ले, ओकरा बचावे वला रचना लिखे के आह्वान कैलका। शहरी गरीब संघ के अध्यक्ष दिनेश सिंह कहलका कि देश में पूँजीपति आउ सामंतवादी दोनों मिल के शासन कर रहला हऽ। अंधविश्वास तोड़ के, पश्चिमी सभ्यता छोड़ के किसान, मजदूर, गरीब दबल-कुचलल से जुड़ के ही देश के प्रगति सम्भव हे।
 इनखर अलावे दीनबन्धु, नरेन्द्र सिंह, सरुण कुमार, डॉ. संजय कुमार, वीणा मिश्रा, डॉ. ऋतु सिन्हा, शम्भु विश्वकर्मा विषय पर चरचा कैलका।
दोसर सत्र
    दोसर सत्र में जिला काजकरिणी के गठन भेल। जेकरा में मिथिलेश, दीनबन्धु, जयप्रकाश आउ उमाकान्त राही के संरक्षक बनावल गेल। एकर अलावे नौ सदस्य के कमिटि बनल, जेकरा में नरेन्द्र प्रसाद सिंह के अध्यक्ष, अशोक समदर्शी के सचिव, कृष्ण कुमार भट्टा के सहसचिव, डॉ. संजय कुमार के कोषाध्यक्ष आउ व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, शम्भु विश्वकर्मा, परमानन्द, डॉ. ऋतु सिन्हा, डॉ. वीणा मिश्रा, नागेन्द्र शर्मा बन्धु और शफीक जानी नादां के सदस्य चुनल गेल।
तेसर सत्र
तेसर सत्र में समसामयिक विषय पर कवि सम्मेलन भेल जेकरा में दीनबन्धु, वीणा मिश्रा, उदय भारती, अशोक समदर्शी, कृष्ण कुमार भट्टा, शफीक जानी नादां, नागेन्द्र प्रसाद बन्धु समां बांध देलका।
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मगह के आयोजन
                 मगही पत्रिका का वसंतोत्सव
        3 आउ 4 मार्च 2012 के बरबीघा के एस के आर कॉलेज में मगही पत्रिका परिवार के तरफ से वसंतोत्सव के आयोजन करल गेल। काजकरम के उद्घाटन प्राचार्य डॉ. गजेन्द्र शाही, प्रो. भवेश चन्द्र पाण्डेय, डॉ. दिवेश चन्द्र मिश्र, प्रो. वीरेन्द्र पाण्डेय, आउ मुख्य अतिथि पुणे के ई. नारायण प्रसाद जौरे कैलका।
   काजकरम के पहिल सत्र में मगही के विकास के दशा-दिशा पर गोष्ठी के शुरुआत भेल। कथाकार मिथिलेश मगही माटी आउ जन संवेदना से जुड़ के स्तरीय साहित लिखे के आह्वान कैलका। मुख्य अतिथि ई. नारायण प्रसाद मगही के चाही मगहिये के व्याकरण विषय पर अप्पन विचार रखलका। मगही के गद्य-विद्या के समृद्ध करे के साहितकार से आह्वान कैलका। उनखर अनुसार मगही जब गद्य-विद्या से समृद्ध होत तभिये मगही के व्याकरण तैयार होत। साहितकार घमंडी राम मगही कहानी एक विधा आउ सृजन पर अप्पन विचार देलका। प्रो. डॉ. भरत सिंह के लिखके भेजल मगही उपन्यास रचना आउ विकास के पढ के सुनावल गेल। काजकरम के अध्यक्षता मगही पत्रिका के संपादक धनंजय श्रोत्रिय आउ संचालन कवि अरविन्द मानव जी कैलथिन।
  दोसर सत्र में संध्या के कवि सम्मेलन भेल। जेकरा में कवि दीनबन्धु, प्रो. ओंकार निराला, वीणा मिश्रा, जयराम देवसपुरी, रंजीत, एतवारी पंडित, उमेश बहादुरपुरी, कृष्ण कुमार भट्टा, अरविन्द मानव, रामचन्द्र सभे मगही के गीत, गजल, झूमर, हास्य व्यंग्य के समां बाँध देलका। आझ के बिगड़ल सभ्यता संस्कृति, कुरीति, भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक चरित्र पर जमके प्रहार करल गेल।
   4 मार्च के तेसर सत्र में प्रो. प्रेम कुमार झा प्रेम, ई. नारायण प्रसाद आउ घमंडी राम मगही के दशा-दिशा आउ शोध कारज पर अप्पन गूढ़ विचार देलका।
    काजकरम के स्वागताध्यक्ष उमेश बहादुरपुरी जी हला जऊकि आयोजन में एस.के. आर. कॉलेज के प्रोफेसर आउ शिक्षक जुटल हला। काजकरम में हिसुआ के पत्रकार राजेश मंझवेकर, उमेश बहादुरपुरी, कृष्ण कुमार भट्टा जैसन समर्पित सहयोगी तन, मन, धन से जुड़ल हला। कृष्ण कुमार भट्टा के मगही एलबम घर आवा परदेशी चरचा में रहल।
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मगह के आयोजन
               पटना के मगही हास्य कवि गोष्ठी
      4 मार्च 2012 दिन रविवार के कमलेश उत्सव हॉल, रामकृष्ण नगर, पटना-27 में होली मिलन समारोह सह मगही हास्य कवि गोष्ठी के आयोजन भेल। काजकरम के उद्घाटन बिहार के खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के मंत्री श्याम रजक जी दीया जरा के कैलका। किसान आयोग के अध्यक्ष सीपी सिन्हा, महादलित आयोग के अध्यक्ष उदय मांझी, सदस्य तूफानी राम, बाल संरक्षण आयोग के सदस्य शिव शंकर निषाद, अनु. जाति आयोग के अध्यक्ष विद्यानन्द विकल, एमएलसी वाल्मीकि सिंह अतिथि के रूप में उपस्थित हला। शुरूये में सत्येन्द्र भूषण कुमार होली गावे से काजकरम में रंग जमा देलका। दिनेश पासवान के ढोलक, विंध्याचल सिंह के हारमोनियम, सुधीर कुमार, यमुना प्रसाद, रविन्द्र प्रसाद, अवधेश कुमार के जब झाल बजे लगल तउ होली के धूम मच गेल। फूल-माला से अतिथि के अभिनन्दन आउ सोवागत के बाद रंग-गुलाल लगाके होली के मुबारकबाद देल गेल। ओकर बाद भक्ति, श्रृंगार के होली के समां बंध गेल।
मगही हास्य कवि गोष्ठी
    मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा के अध्यक्षता आउ संचालन में रंगारंग मगही हास्य कवि गोष्ठी सुरु होल। कवि परमेश्वरी के चहकदार कविता से गोष्ठी उफान पकड़लक। नवादा के दीनबन्धु, शफीक जानी नादां, नालंदा के जयराम देवसपुरी आउ रंजीत, जहानाबाद के चितरंजन, उदय शंकर शर्मा के काव्य फुहार पर खूबे वाह-वाही मिलल। सदन में बैठल पटनिया के जादे ताली ऐखनिये बटोरलका। व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, हरीन्द्र विद्यार्थी, राकेश प्रियदर्शी, राम नरेश नीरस, अरविन्द औजम, महेन्द्र प्रसाद देहाती, एतवारी पंडित, विश्वजीत कुमार अलबेला के प्रस्तुति सराहल गेल।
काजकरम के आयोजन
   काजकरम के आयोजन में जदयू काजकरता जुटल हला। ढेलवां के मनोज कुमार गुड्डु के नेतृत्व में आयोजन में फुलवारी जदयू के ई. अशोक कुमार, भूपतिपुर के जितेन्द्र कुमार सिन्हा, ढेलवां के अभिषेक कुमार मंटू, रामकृष्ण नगर के विनय कुमार झुन्नु, जदयू राष्ट्रीय परिषद् के सदस्य बिन्देशवरी सिंह, फूलवारी के फजल इमाम जूटल हला जऊकि सोवागत समिति में ढेलवां के शिव शंकर सिंह, भूपतिपुर के रविन्द्र कुमार सिंह, ई. बी.बी. सिंह, कृष्णदेव सिंह, रणवीर सिंह, सत्येन्द्र भूषण, डॉ. रमेशकान्त सिन्हा, रामकृष्ण नगर के राजीव रंजन, राष्ट्रीय एकता मंच के श्लोक कुमार, वृजभूषण सिंह, शेखपुरा के लल्लू सिंह, फूलवारी के रमेश कुमार जुटल हला।
सम्मान
    मगही अकादमी उदय शंकर शर्मा के खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री श्याम रजक प्रतीक चिन्ह देके सम्मानित कैलथिन। मगही के विकास ले हर सहयोग के आश्वासन देल गेल। एकर बाद सामूहिक सहभोज के काजकरम चलल।
   मगही कवि के प्रस्तुति आउ मगही साहित्य के प्रभाव के मुक्त कंठ से सराहल गेल।
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मगह के आयोजन
           हिसुआ के मूर्खानन्द आउ हास्य कवि सम्मेलन
      8 मार्च 2012 के हिसुआ नगर पंचायत के वार्ड न.17 दुर्गा मंडप भवन में होली के मोका पर मूर्खानन्द आउ हास्य कवि सम्मेलन के आयोजन करल गेल। काजकरम पत्रकार परिषद् हिसुआ के तत्वाधान में वार्ड पार्षद पवन गुप्ता के सौजन्य से होल। काजकरम होली गायन से शुरु होल। ढोल, झाल, मंजिरा, हारमोनियम लेके पत्रकार आउ साहितकार जूट गेलथिन आउ जमके होली गावे लगलथिन। थाली में सजल रंग-बिरंगा गुलाल से सभे पर होली के रंग चढ़ावे के दौर शुरु होल। एक दूसरे के माथा, मुँह, निनार में मुट्ठी-मुट्ठी भर अबीर लपेस के आनन्द सब लेवे लगलथिन। खूबे होली चलल, सभे झुमलथिन। पत्रकार विजय कुमार के हारमोनियम बजावे आउ पत्रकार ओंकार शर्मा के होली गावे के अंदाज खूब सराहल गेल।.
मूर्खानन्द सम्मेलन
      दोसर सत्र में मूर्खानन्द सम्मेलन शुरु होल। मूर्ख के उपाधि देवे आउ चूड़ी, सिन्दुर, फूलगोभी, लहठी, टमाटर, गोयठा, बिस्कुट से बनल किसिम-किसिम के माला पहना के चुनल महामूर्ख के स्वागत करे के दौर चलल। वार्ड पार्षद पवन गुप्ता के चौपट वार्ड पार्षदाधिराज आउ समाज सेवी चन्द्रिका प्रसाद के महामूर्खाधिराज के उपाधि से नवाजल गेल। पत्रकार राजेश मंझवेकर के मूर्ख शिरोमणि, अशोक सिंह के  मूर्खाधिपति, आलोक कुमार के मूर्खाधीश्वर, सर्वेश कुमार गौतम को चौपट ऑफ द इयर, तुलसी प्रसाद के मूर्खाकुल भूषण, विजय प्रसाद के शिथिलानन्द के उपाधि देल गेल। पत्रकार ओंकार शर्मा, सुनील चौधरी, राजेश चौधरी, प्रेम कुमार के महामूर्ख के उपाधि देल गेल। साहितकार मिथिलेश कुमार सिन्हा आउ अरुण देवरसी के साहित गारतकरता के उपाधि से विभूषित करल गेल। अतिथि के सोवागत आउ दुरागत प्रवीण कुमार पंकज आउ उदय कुमार भारती मिल के कैलन।
    पत्रकार उदय भारती, राजेश मंझवेकर, अशोक सिंह, सर्वेश गौतम आउ उपस्थित वक्ता होली के ई काजकरम के महत्ता आउ एकरा में छिपल चुहल, हास्य व्यंग्य आउ गुदगुदी के चरचा कैलन।
 उदण्ड बेहुदा भारती के संपादन में निकालल गेल होली विशेषांक समाचार पत्र उत्पात खबर उपस्थित जन में बाँटल गेल। हास्य व्यंग्य आउ गुदगुदी से भरल नगर आउ क्षेत्र के एक से बढ़ के समाचार सभे के खूब रोचक लगल।
 कवि सम्मेलन
    तेसर सत्र में हास्य व्यंग्य आउ होली के धमाल से भरल कविता के दौर शुरु होल। ई मोका ले उदय भारती हिसुआ के पत्रकार,साहितकार आउ समाजसेवी ले खास तरह के ई होली में सुनऽ हम्मर पत्रकार के राशि... कोय लेथुन अब कंठीमाला, कोय जैथुन अब काशी नाम से होली के राशि ज्योतिषाचार्य बेहुदा भारती के नाम से बनैले हला।
 जय हो राशि होली के – हेस, नेस, मैथुन, मूला आउ जय हो राहु,काहु की गर्क, सुकन्या, हिंग, लिंग आउ जय हो गूगल, याहू की। एक बार बोलऽ... ज्योतिषाचार्य बेहुदा भारती की जय- के…..जउ फुहार चले लगल तउ ठहाका आउ होली के उमंग के नशा चढ़े लगल। राशि में पत्रकार के होली में गंजन होवे के मजेदार चरचा हल।
 प्रवीण कुमार पंकज...के उदय भारती पर बौछार-साला हम्मर साढ़ू के समान के हो-काशी से उत्तम हम्मर ससुराल हो-सभे के झुमे पर बाध्य कर देलक। मिथिलेश कुमार सिन्हा उदय भारती पर खूबे तीर चलैलका। अरूण देवरसी, शफीक जानी नादां, ओंकार शर्मा जैसन कवि मिलके होली के मस्ती आउ हास्य व्यंग्य के समां बाँध देलका। मंच संचालन उदय भारती आउ धन्यवाद ज्ञापन राजेश मंझवेकर कैलका।
हिसुआ में मूर्खानन्द सम्मेलन मनावे के परम्परा
    हिसुआ में होली के मोका पर ऐसन सम्मेलन करे के परम्परा बहुत पहिल से चलल आ रहल हऽ। ई काजकरम होली के अगजा रोज मनावल जाहे। अगजा के दिन उदय कुमार भारती के जलम दिवस होवे के कारण उदय भारती के जन्मोत्सव आउ होली मिलन समारोह साथे मनावे के परम्परा शुरु होल। हिसुआ के प्रखर कवि विशुन लाल राज ई काजकरम के शुरुआत के जड़ में हलन। अभिलाषा मंच से मिथिलेश कुमार सिन्हा, अरुण देवरसी, प्रवीण पंकज, उदय भारती, देवेन्द्र विश्वकर्मा के सहयोग से ई काजकरम कै साल चलल। ओकर बाद हिन्दी, मगही साहित्यिक मंच शब्द साधक के बैनर से होवे लगल। एन्ने कै साल से काजकरम पत्रकार परिषद् के ओर से मनावल जा रहल हे। व्यंग्यकार उदय भारती के जलम दिन होवे से काजकरम में जादे तीर उदय भारती आउ उनखर पत्नी पीड़ा पर चलऽ हे। उदय भारती सभे पर तीर छोड़ऽ हका आउ सब उदय भारती पर, ई उदय भारती के 50वाँ जन्मोत्सव हल।
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पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
रचना मगही साहित के प्रचार-प्रसार के लेल इहाँ रखल गेल हऽ। कौनो आपत्ति होवे पर हटा देल जात।
निहोरा

मगहिया भाय-बहिन से निहोरा हई कि मगही साहित के समृद्ध करे ले कलम उठाथिन आउ मगही के अप्पन मुकाम हासिल करे में जी-जान से सहजोग करथिन।

* मगही मनभावन पर सनेस आउ प्रतिक्रिया भेजे घड़ी अपन ई-मेल पता जरूर लिखल जायताकि ओकर जबाब भेजे में कोय असुविधा नञ् होवै।

मगही मनभावन ले रचना ई-मेल से इया फैक्स से चाहे हिन्दी मगही साहित्यिक मंच ‘शब्द साधक’ के कारजालयहिसुआ पहुँचावल जा सकऽ हे।

शब्द साधक
हिन्दी मगही साहित्यिक मंच
हिसुआनवादा (बिहार)

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रचना साभार लेल गेल

सुजाता के खीर - सोना के सीता (एकांकी)- केशव प्रसाद वर्मा।
हम्मर बाँट दऽ - कथा आलोक ( कहानी संग्रह) -दिलीप कुमार।
विपतल के बोल, मगही क्षणिका - निरंजना (पत्रिका)।
तोहर इयाद, रिलिफ -केसरी कुमार के मगही कविता से।