जहां हर मजहब के खिलें हैं फूल वह चमन है
हिन्दुस्तान
हिसुआ के शब्द साधक मंच के तत्वावधान में कवि
गोष्ठी और परिचर्चा का आयोजन
राष्ट्रप्रेम, भाईचारा का संदेश देते हुए
विभिन्न रसों की कविताओं का हुआ पाठ
हिसुआ
मानव को मानवता सीखाये वह देश हैं हिन्दुस्तान, हर मजहब का फूल खिले वह देश है हिन्दुस्तान- कवि शफीक जानी नादां की
यह काव्य पंक्ति जब गूंजी तो उपस्थित जन देश के भाईचारे और एकता के कायल हो गये.
उनकी कविता देश की अखंडता और एकता को बचाये रखने के लिए सभी को सोचने पर मजबूर कर
दिया. हिसुआ के हिन्दी-मगही साहित्यिक मंच शब्द साधक के तत्वावधान में आर्य समाज
मंदिर में रविवार को कवि सम्मेलन का आयोजन था. मंच अध्यक्ष दीनबंधु की अध्यक्षता
और व्यंग्यकार उदय भारती के संचालन में कवियों ने देशप्रेम, भाईचारा, शरद ऋतु के आगमन, गांव की जरूरत, राजनीति की विद्रुपता सहित
समसामयिक कविताओं का पाठ किया. यदुलाल आर्य ने क्रोध से विनाश की कविता सुनायी, तो संजय प्रकाश ने शिक्षकों की पीड़ा व्यक्त की. देवेंद्र पांडेय ने
साहित्य से समाज के कल्याण का संदेश दिया. शत्रुध्न प्रसाद और दयानंद चौरसिया ने
समाज और राजनीति की विसंगतियों पर प्रहार किया तो कवि अनिल ने गांव की जरूरत और
आदमी की सोंच के बदलाव को बयां किया. कवि सुंदरदेव शर्मा ने आत्मबोध से जुड़ी
कविता तो कुलेश्वर मेहता ने मंत्री जी के तेवर की कविता सुनायी. टीएस कॉलेज के
हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. नवल किशोर शर्मा ने विविधता में एकता और नये बिहार
गढ़ने की कविता सुनायी. उदय भारती ने जोरू और नेता शीर्षक से व्यंग्यात्मक कविताओं
का पाठ किया. शिक्षक रोहित कुमार पंकज, नरेश प्रसाद, ललित किशोर शर्मा, अधिवक्ता चंदेश्वर प्रसाद
गुप्ता, शशिकांत सिंह आदि ने अपने उद्गार रखे. धन्यवाद
ज्ञापन अर्जक संघ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुमार पथिक ने की. उपस्थित
साहित्यकारों ने मंच का रजिस्ट्रेशन हो जाने के बाद साहित्य को गति देने और
पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन में लगने का निर्णय लिया.
सहिष्णुता के मुद्दे पर नहीं बंटे साहित्कार
दूसरे सत्र की परिचर्चा में साहित्कारों ने
सहिष्णुता और इस तरह के मामलों पर साहित्यकारों को आपस में नहीं बंटने की अपील की.
साहित्कारों को एक होकर साहित्य सृजन में ही लगे रहने का आह्वान किया गया. ऐसे
मुद्दों को राजनीति का रंग दिया जाता रहा है जिसको तूल देकर साहित्य के लिए बाधा
तैयार न किया जाए. बक्ताओं ने कहा कि साहित्यकार,
कलाकार, चित्रकार आदि देश-समाज के सृजनहार हैं न कि इसे तोड़ने वाले.कवि
दीनबंधु, उपेंद्र पथिक, प्रो. नवल किशोर शर्मा, सीपी गुप्ता और उदय भारती
ने अपने विचार रखें.
हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण और प्रभात खबर
अखबार से साभार,
गया एडिसन, दिनांक- 30.11.15
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