मंगलवार, 22 नवंबर 2011

मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-३


मगही साहित्य ई-पत्रिका अंक-३

                      मगही मनभावन

                                मगही साहित्य ई-पत्रिका
अंक-३                                                             माह- नबम्बर
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ई अंक में

दू गो बात…….

कहानी
नहस - शम्भु विश्वकर्मा
सितबिया - डॉ० रामविलास रजकण
कविता-कियारी
आदमीयत - परमेश्वरी
दिपावली मनैलूँ हम - विशुन लाल राज
बाप के अरथी - उदय कुमार भारती
मनमाँ चउन-भउन तू काहे - परमानन्द
जन जिनगी राम के पुकारे - जयप्रकाश
घर आवाऽ परदेशी - कृष्ण कुमार भट्टा
झूमर

कोय नञ् बुझ हई दुख मोर - दीनबन्धु

मगही हायकू

संकलित
व्यंग्य

मंदी - डॉ० भरत सिंह
मगह के आयोजन
बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह के जयन्ती
मगही स्वभिमान रथ निेकलल
हिसुआ के यादगार कवि मगही कवि सम्मेलन
निहोरा
पत्रिका से जुड़ल जरूरी बात
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दू गो बात….
         भासा के सभे विधा से परिपूर्ण हम्मर मगही आझ अप्पन मुकाम हासिल करे में पीछे हे। एकरा संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करे के माँग कईक दशक से हो रहल हे। एकरा ले आन्दोलन चलावइत हम्मर मगही के भारतेन्दु, दधिचि, मगही कोकिल, महाकवि आउ ऐसन कत्ते स्तम्भ, जे एकरा ले अप्पन हड्डी गलैलका, सरग सिधार गेला । उनखर सपना सपने रह गेल। आझ बिहार के पटना, नालन्दा, नवादा, गया, जहानाबाद, अरवल, शेखपुरा, लखीसराय, जमुई, मुंगेर सहित झारखण्ड आउ पश्चिम बंगाल में करोड़ो-करोड़ लोगन के बोली उपेक्षित हे। अप्पन तारणहार के इन्तेजार में टकटकी लगैले हे। एकर विकास हो रहल हे, स्तरीय रचना से एकरा समृद्ध करल जा रहल हे, बोले आउ लिखे-पढ़े वला के गिनती दिनो-दिन बढ़ल जा हे, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय में एकर पढ़ाय चालू हे, वावजूद एकर ई अप्पन सम्मान पावे में पीछे हे। एकरा में हम्मर संस्कार, सभ्यता आउ संस्कृति छिपल हे, एही एकर रक्षक हे। एकरा जोगावे के जरूरत काहे हे ? ई बात के सभे समझ रहलथिन हे। हम्मर भासा नञ बचत, हम्मर संस्कृति बिखर जात, हम्मर पहचान बिला जात।
       आखिर मगही के अप्पन मुकाम कैसे हासिल होत ? रचना परकासन, माँग आउ आन्दोलन, गोष्ठी आउ कवि सम्मेलन, मगहियन के जगउनी इहे सब काफी हे ? इया आउ कुछो कमी हे ? ई बड़गर सबाल हे। लगऽ हे हमनी के शंखनाद, जिनखर कान तक पहुँचे के चाही, उहाँ नञ् पहुँच रहले हे।
       मगही के विकास लेल मगह में सगरो आझ जमीनी काम हो रहल हे। साहितकार, शिक्षक आउ मगहीप्रेमी जमके लगल हथिन, कोय कसर नञ् छोड़ रहलथिन हे, पर मगही के आन्दोलन में आझ ऊ तन, मन, धन से नञ् शरीक हथिन, जेकरा शरीक होवे के अब जादे दरकार हे। मगह क्षेत्र के एतना बड़गर-बड़गर नेता आउ जनप्रतिनिधि के रहते, मगही के ई दशा काहे रहत ? नेता आउ मंत्री के भी एकरा बारे में सोंचे के चाही आउ एकर आन्दोलन में अप्पन लाभ आउ स्वार्थ के त्याग के जुड़े के चाही। लोग-बाग जिनखर घर, समाज, सभ्यता, संस्कृति में मगही रचल-बसल हे, उनखा भी ई आन्दोलन में आगू आवे के जरूरत हे।
       चुनाव रहे, जनगणना रहे इया सरकार के विकास से जुड़ल कोय काम, हम्मर मगही उपर रहे के चाही। सभे में मगही के आन्दोलन के लेल एकजूट होवे के चाही। मगही से लगाव सभे के हे, पर उनखर लगाव आउ भावना खुल के सामने आवे के चाही। ऊहे उभर के सामने नञ् आ रहले हे। जहिया आमजन आउ नेता मन से एकरा में लग जैथिन, तहिये मगही मुकाम हासिल कर लेत।
       मगही माय टुकुर-टुकुर बड़ आसरा से हमन्हीं के ताक रहली हे। प्रदेश के नेता, मंत्री आउ खासकरके बिहार के विकास पुरूष ,जे मगह सपूत भी हथिन, उनखा से मगही के बड़ी आसा हे। ई आसा कैसे पूरन होत ? एकर उपाय मगहियन भाय-बहिन के हाथ में हे।
         
                                                                   उदय कुमार भारती

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कहानी
                                              नहस
                                                   शंभु विश्वकर्मा
     निनानवे के अंक पर फेन काढ़ले साँप ललकी गोटी निंगल के खेलाड़ी के सभे मनसुआ पर पानी फेर देलक। अंक तीन से फेन चढ़ाय सुरू। जानय केतना तुरी कौन-कौन साँप के कौर बनत, सीढ़ी नसीबो होत कि नञ् ? मन के भीतरी उत्साह ललकारे लगल….. वीर तुम बढ़े चलो….। उ दुन्हूँ तरहत्थी से माथा सीसोह के सामने पसार देलक....। कराग्रे बसति लक्ष्मी.....। मुदा सौंसे तरहत्थी कटल छंटल चूल से लेटाल, लोहू से चट-चट, लग रहल हल कोय पखेरु के पाँख चाम समेत ओदार के आल हे। आँख के पुतरी चट-चट चूल पर ठहर गेल, खून बहे के कोय मसोस नञ्। ओकर गोड़ डेउढ़ी देने बड़ रहल हल जैसे बउआ बुले पामें-पाम…..। ओहे चाल से ओकर छाया चल रहल हल ठीक उल्टी दिसा में…..दुर….बहुत दूर……
         अगहन के अंधरिया रात हाँथ के हाँथ नञ् सूझे, मगर फुलिया के मड़ुकी में जलइत ढिबरी अन्हरिया के साथ कबड्डी खेल रहल हल। दरवाजा पर लगल ठठरी से कनकनी चोर नियर घुस के हाजिर। ससुरा ढिबरी के रासा भी जने अदमी देखे ओनय नाक के निसाना बनइले। फुलिआ अभी परसौती हे आउ मड़ूकी सौरी, जहाँ बिहने ढीबरा के ढोढ़ी टुट के गिरल हे। पनरह दिन के ढीबरा के छाती से लगैले फुलिया दिन गिन रहल हल……। मंगल-मंगल आठ, घुर मंगल पनरह, बीसतौरी पुरे में अभी पाँच दिन बाकी, नोमा महिना गोट्टे, कम से कम अठवारा रोज नंहिए जाय में बनत…..। माने कि….उऽ….आऽउँ….उऽआं….ढीबरा माय के छाती में थोथुन मार-मार के थक गेल तब रेके लगल। फुलिया के जोड़ल-नारल हिसाब गड़बड़ा गेल। चुऽ….चुऽ….चुऽ….बाबू हमर गे….पेट नञ् भरलो ? पेट भरतै कि खाक् ! सोंठ के हलुआ ममोसर नञ्….। मसुरी के दाल पर अनेसा, सेहों छठियारिए तक डभकल। डेउढ़ी के जूठा-कूठा तो डेउढ़ी पर जायके बादे ममोसर होत। फुलिया ढीबरा के चुप करै लेल ढेर चुचकार-पुचकार कयलक, मुदा फरिस्ता बुतरु के तो पेट भरे के बादे दुलार सुझत। अजिया के उ एगो धंधरन में जुट गेल….। एगो मलवा में दू-चार ठेपी पानी अंगुरी सहे भर सिरगरम कयलक, ओकरे में अप्पन छाती के दूध गारऽ लगल। कभी दहिना कभी बामा। ढेर  देरी बाद ममता के बाँध फूटल।  दूध के सोवा बून्द बनके मलवा में टपके लगल। एक बून्द….दू बून्द….चार बून्द….दस बून्द….अब नञ्, छाती घाव नियर दुखाय लगल। ओने रेकइत ढिबरा के मुँह  में फेफरी। चम्मच से दूधवला पानी ढीबरा के मुँह में घुटूस। रसे-रसे ओकर लादा चिकना गेल। संतोस नींद के नेउतले फरिस्ता के मासुमियत पर हाजिर। मगर फुलिया उख-वीख में, अपराध बोध से सिकुड़ल।
         बिसतौरी पुरल पनरहियां हो गेल। ललकोरी फुलिया के देह तनी फुरफुराल, परसौती गमक भी खतम। गाहे-बगाहे दूध के लोहरैनी आउ भीतर से कुछ रिसइत लस-लस, फस-फस अभियों डेउढ़ी  में जाय से रोक रहल हल, मुदा पेट माने तब ने। डेउढ़ी के मालिक चलित्तर सिंह भी कहा पठाय देलन हे काम पर आ जो नञ् तो दोसर दाय….। सवा महिना के ढीबरा के गेन्तर में लपेटले करेजा में साटले फुलिया चलित्तर सिंह के डेउढ़ी पर हाजिर। नाया बुतरु के देखताहर नौकर-चाकर आउ खुदे चलित्तर सिंह के कनिआय। भीतर से भर चुरु करुआ तेल लाके ढीबरा के माथा में चपोड़यत चलित्तर सिंह के कनिआय कहलन- नाया बुतरु के तेल नञ् देबे से चूहा-पेंचा भर जाहे। चलित्तर सिंह भी एगो दसटकिया ढीबरा के माथा से ओबार के फुलिया के खोइंछा में रख देलन। फुलिया गद्गद्….मालिक मलकिनी के नेह महिनवारी से भी जादे खुसी दे हे। उत्साह से भरल फुलिया जुट गेल झाड़ु-पोछा में। बउआ के ओसरा में खिड़की से आवयत रौदा में झाप-पोंत के सुता देलक हल आउ कटोरी में एक अधवा दूध भी मालकीन के कृपा से मिल गेल हल। जब रेके, दू चम्मच घुटूस---- ढीबरा फेन सुत जाय। ढीबरा जेतनय देरी नींद में फुलिया के काम ओतने इसोराय।
        चलित्तर सिंह के बैठका मे फुलिया पोंछा मार रहल हल टेहुनियाँ देले आजु-बाजु से लफ-लफ के तिनका-तिनका समेटले। ओकर मान से मालकीन के तेज आवाज टकराल। दूध देवेवाली गोवाली से बतकुचन….काल्ह दूध में बहुत पानी हलउ पटोरनी, निंछंछ पानी जैसे आँख के लोर। ऐसन दूध के कैसन पैसा ? पटोरनी बेटा कीर, भतार कीर खाके कह रहल हल ।आँख समांग किरिया मलकीन हम एक बून भी पानी नञ् मिलैलिओ, हो सको हो पुतहिया तनी-मनी टेहरिया धो के ढार देलको होत। मालकीन कहलन….काल्ह हमर बुतरु जीतन भरलो गिलरस दूध फेंक देलक आउ ठुनके लगल हल- मैया ई दूध नञ् पानी….। दूध नञ् पानी….। सुन के फुलिया के हाथ पोंछा में सट गेल। सौंसे देह गनगना के काठ। कान में एक्के आवाज….दूध नञ् पानी। ऊ ओसरा में सुतल ढीबरा के चहरा देखे लगल। बउआ हँस रहल हल। फेन तुरते काने लगल। फेन तुरते चुप। सायत सपना रहल हे….। भगवान छर रहलथिन हे। तोर मइया मर गेलौ, तब काने लगे। तोर बाप मर गेलौ, तब हँसे लगल। मगर फुलिया के कान में ओहे आवाज दूध नञ् पानी….। ढीबरा के हँसी आउ रोबाय बउअइनी नञ् हे, इ हे उहे दूध में पानी आउ पानी में दूध के हिसाब। ई निमुहियाँ धन अप्पन बात हँसिये कान के ने कहत !
      
        आझ ढीबरा बारह बरीस के हो गेल। चीपड़-चोंइयाँ नियन देह मगर बिरनी नियर फुर्रऽ-फुर्रऽ। चलित्तर सिंह के डेउड़ी के छाड़न-छोड़न आउ जुठ्ठा-कुठ्ठा से पोसाल हल ऊ, मगर होस आवे के बाद नाक-नुकुर सुरू। ढीबरा के पेट अब फुलिया लेल भारी हो गेल। डेउढ़ी के काम ले ओकर समांग भी नञ् चले। अप्पन पेट तो जुठ्ठो-कुठ्ठो से चल जा हे मगर ढीबरा….? फुलिया चलित्तर सिंह के डेउढ़ी मे जाके मालिक से आरजू कयलक---मालिक, अब ढीबरा सेयान होल जा हे ई तोहरे डेउढ़ी में पोसाल। एकर पेट हमरा से कैसे चलत ? एकर खाना खोराकी के सरेजाम भी हो जात हल, तब हम निफिकिर हो जयतूं हल। बदले में डेउढ़ी के छोट बड़ काम करते रहत।
        चलित्तर सिंह कहलन--- देख फुलिया - तूँ ई डेउढ़ी के दाय जरूर हें, मगर यहाँ से तोरा परिवार नियर नेह-सनेह मिललौ। जखनी जे मुँह खोल के कहना चाहे माँगना तोरा पूरा कइलिअउ। आझ तोर ई आरजू भी पूरा होतउ। जो, आझ से ढीबरा इहे डेउढ़ी में रहतउ, खइतउ, पीतउ। तों एकरा से निफिकिर हो जो। तोर समांग नञ् चलौ, तब कोय बात नञ्। ढीबरा के हम दू सो रूपइया महिना देवउ। एकरा से तोरा खोरिस-पोरिस चल जइतउ। फुलिया मालिक के एहसान से दब के सिकुड़ल जा हल, जइसे ओकर तारनहार सामने खाड़। चलित्तर सिंह भी माथा से ढील हो रहल पगड़ी फेन से कसे लगलन, जइसे रैयत के सामने राजा के ताज कसल रहऽ हे।
        ढीबरा के डेउढ़ी से पुरान रिसता। ऊ दिल भर कोय ने कोय काम में जुटल रहे। फूल-पत्ती, झाड़ू-बहारु, कपड़ा-लत्ता, बासन-बरतन जइसे पूरा डउढ़ी के काम एकरे माथा पर।
  एक दिन ढीबरा चलित्तर सिंह के गोड़ मैंज रहल हल। ओकर फुर्ती देख के चलित्तर सिंह कहलन- अरे ढीबरा ! आझ तोरा पर हम बहुत खुस हिअउ। अबरी तोरा नया कपड़ा सिला देबउ, एकदम तोर पसंद के। बोल कइसन कपड़ा लेमे ?” ढीबरा जबाब में मुड़ी गोत देलक आउ ओकर हाँथ चलित्तर सिंह के गोड़ पर तेजी से चले लगल, दवाब भी पहिले से कुछ जादे। लजा हीं काहे, बोल न रे…. ढीबरा के हाँथ तनी देर ले थम गेल आउ दिमाग चल गेल चलित्तर सिंह के बेटा जीतन पर, जे सहर के कान्वेंट स्कूल में पढ़ रहल हल। हाले आल हल गर्मी के छुट्टी में उजरका डिड़ारी वला लाल-लाल टी-शर्ट आउ जाँध से लगायत घुठ्ठी तक कसल जीन्स पेन्ह के। मोहरी दू-तीन तुरी मोरल, तभियो जमीन लोटे। ढीबरा के कंठ फूटल—मालिक ऊ जीतन भैया के जीन्स आउ टी शर्ट----। बाकी बकार मुँहे में।
        “अच्छा तउ तोरा जीतना नियर जीन्स पैन्ट चाही ? मगर ऊ डरेस तो बड़ी महरग होवऽ हे। ढीबरा के चेहरा पर ठिसुअइनी झलके लगल। मगर कोय बात नय ! कुछ दिन आउ ठहर जो, हमर छोठ भाय मेघन के सादी में तोरा जीतना नियर जीन्स टी-शर्ट किना देवउ, ठीक---, अब जो दोसर काम मर गन।
 “जी मालिक !कहके ढीबरा फुर्र से बाहर। अब तो ओकर पैर जमीन पर नञ् रखाय। जने देखे जीतना के जीन्से पैट जनाय। ठोर पर भुलाल-भटकाल गाना के पंक्ति….ढीला करऽ….तनी सा…..। ऊ नाचयत-कूदइत फूल पटावे वला बाल्टी उठा के चभच्चा देने बढ़ गेल। ओकर नजर चभच्चा के ठहरल पानी पर आउ पानी में लउकयत ढीबरा। ओहे उजरका डीड़ार वला टी-शर्ट अउ चुस्त जीन्स पेहन्ले। ऊ पानी में जइसंय बाल्टी डुबयलक….चुभ्….ठहरल पानी थलथलाय लगल….अंदर से ढीबरा भी हिले लगल….टी-शर्ट जीन्स सब अलोप, “कहैं मालिक ठक तो नञ् रहला हे ?” ऊ फेन पानी में झाँके लगल। धीरे-धीरे पानी थीर आउ अंदर के ढीबरा फेन जीन्स पैंट में। चेहरा पर एगो मुस्की आ गेल आउ ठोर पर ओहे….ढीला करऽ….ढीला करऽ….
        समय तो कटिए रहल हल मगर सुस्ती से-गेंठ कलउआ मधुरी चाल- एक-एक दिन लगे एक-एक बरिस आउ रात….? सपना के गोदाम में बस एक्के ब्रांड-टी-शर्ट डेउढ़ी में काम करे के उत्साह भी दोबर। जइसे-जइसे सादी के दिन नगीच ढ़ीबरा के पाँख लगल जाय। मालिक दोसरों के हकावे तब ढीबरा दौड़ के पहिले हाजिर….
        एक रोज ऊ महल्ला में सिनेमा के प्रचार करेवला टेम्पू घुसल। माईक से एलाउन्स कर रहल हल- रोजाना चार शो में शारूख खान का सुपरहीट फिल्म….। ऊ दौड़ के टेम्पू भिजुन चल गेल। ओकर नजर टेम्पू के छत पर सजल पोस्टर से सट गेल जहाँ शारूख खान जीन्स टी-शर्ट पेहेन्ले मुसक रहल हल। दुन्हुँ हाँथ से अप्पन केस सम्हारइत। ढीबरा मनेमन कहलक-आवो दे जेठ-- हम तोरो कर देवौ हेठ। फेन ऊ शारूख खान नियर माथा के केस दुइयो तरहत्थी से आगू से पीडू समेटले मुसकी मारऽ लगल।
          जेठ आ गेल। चलित्तर सिंह के डेउढ़ी पर लगन उताहुल। घर के सब सदस्य व्यस्त कम, व्यस्तता जादे देखा रहल हल। गीत-नाद, लीपा-पोती, डेंन्टिंग-पेन्टिंग सुरू। ढीबरा बिरनी नियर कभी ऊ काम तउ कभी ऊ काम। सुस्ताय के समय में सपना….। मेघन दा के बरियात जायत। उनका साथ अरदली में तो हमरे रहे पड़त। कखने कउन काम अरहा देतन। फेन बरियात में जीन्स….ढीला करऽ….ढीला करऽ तनी सा….। ऊ सुर में कमर पर हाँथ रख के मटकावे लगल। फेन देखे लगल कोय देखलक तो नंय ? ओकर धेयान टुटल कि मालिक बाजार जा रहलन हे। ऊ दौड़ के मालिक के आस-पास। कहंइ हमरो ले जाखिन तब। मालिक के कार धुइयाँ उगलते गेट से बाहर। साथ में मालकीन, मेघन दा आउ जीतन।
       ढीबरा सोच में पड़ गेल-- हमरा नञ् ले गेलन….? खैर, जीतन भैया तो साथे हथ, उनखरे नाप से तो हमरो कपड़ा किना जात। ऊ देहरी पर बैठ के इन्तजार करे लगल….एक पहर….,दू पहर…., तीन पहर…., साँझ हो गेल। ससुरा ई बाजार हे कि चुम्मुक, जे जाय ओकरे साट ले। संझौकी के गाड़ी दुआरी लगल। डिक्की समान से ठसकल। भारा-दउरा, घी-डालडा, कपड़ा-लत्ता। लगऽ हे समूचे बजार किना गेल हे। नौकर- चाकर दौड़ के समान ढोवे लगल। ढीबरा भी वहाँ हाजिर ऊ एक-एक समान पर नजर गड़ैले। जानय कौन पाकिट में हमर जीन्स- पैंट हे। ऊ समान उठावे तब टो-टा के देखे भी।  बढ़िअउंका जीन्स तो कूट वाला पाकिट में रहऽ हे मगर कनौं बुझैवे नञ् करे। सब समान डेउढ़ी के अंगना में रखा गेल। नेउता-नेउतहारिन एक-एक करके समान देखे लगन- ई साड़ी बेटिऔरी, ई घुघटाही, ई पटपराय आउ ई बीस हजरिया बनारसी विहौती साड़ी। मगर ढीबरा के धेयान ऊ पाकिट पर, जे अभी नञ् खुलल हे। एक-एक करके सब पाकिट खुल गेल। घर भर के कपड़ा- लत्ता देख के सब गद्गद्, मगर ढीबरा के….। ओकर चेहरा उतर गेल-- आउ लगे लगल जइासे करेजा तर से कुछ निकल के नीचे ससर रहल हे--आउ पेशाब के रस्ता तर ठहर गेल। अब निकले कि तब….। ऊ धीरज बान्हलक आउ मालिक भिजुन जाके खाड़ हो गेल….। मूड़ी गोत के धीरे से कहलक- जी हम्मर---। ओ--हो तोर तो कपड़वे लेवे ले भुला गेलिअउ।
 अच्छा, कल्ह फेन हम बजार जइवइ। अभी आउ समान लावे ले बाकी हे। तोर कपड़ा भी कीन देवऽ, लेकिन अइसन कर, कल्ह भोरे नउआ हीं जाके अपन बाल बढ़िया से कटा लिहाँ बरियात जइहमी तब अइसने लम्हर चूल में ? ले पाँच रूपइया कल्ह बाल कटा लिंहा।ढीबरा के तो जैसे कोरामिन पढ़ गेल। ऊ पाँच के सिक्का लेके उछलइत-कूदइत फेन बाहर। रात भर ओकर आँख में नींन नञ्। चंचल जी कभी नउआ के दोकान पर, कभी मेघन के बरियात में, तऽ कभी मालिक के बैठका में। अनगुत्ते उठ के ऊ सैलुन में घुस गेल आउ नम्बर लगा देलक। बैठकी बला नउआ कते बढ़ियां केस काटत। फेन ओकरा हीं सीसा भी नञ् रहऽ हे। सैलून के बाते कुछ आउ हे।
  ढीबरा के नम्बर आ गेल। ऊ नउआ से कहलक- जरी ठीक से चूल काटिहा, एकदम सारूख कट, हाँ….फेन ऊ बड़गर सीसा में अप्पन बाल आउ चेहरा देखे लगल। दाढ़ी बनावे लेल नम्बर लगइले दू-चार अदमी ढीबरा के बात सुन के ताके लगल- सरवा लगे हे कइसन आउ चूल कटावत शारूख कट। मगर नउआ के तो पैसा से काम। ऊ गद्दावला कुर्सी पर ढीबरा के बैठा देलक। चद्दर ओढ़ा के शारूख कट सुरू--। कैंची आउ कंधी के टकराहट आउ खच्-खच्--कटइत चूल । ढीबरा के मन में गुदगुदी भर रहल हल। बीच-बीच में मूड़ी उठाके अइना देखे लगे तब नउआ मूड़ी दाब दे। कुछ देर बाद पौंड्स पॅाउडर के सुगन्ध ओकर गर्दन तक लटपटा गेल। बुरूस से बाल झाड़ पोंछ के तैयार--। ढीबरा अइना में कभी आगे कभी पीछे, कभी दायें, कभी बायें देख के सिहा रहल हल। ऊ पाकिट से पाँच के सिक्का निकाल के नउआ के तरहत्थी पर रख देलक। नउआ के तो तरवा के घूर कपार—अरे हमरा कि जजमानी नउआ समझ लेंलां हें। शारूख कट के इहाँ दस रूपइया लगऽ हे। पांच रूपइया में तो माथा घोटा हे, एकउम सफाचट…. ढीबरा हड़बड़ा गेल मगर सम्हरइत बोललक—ठहरो ठाकुर जी बाकी के पांच रूपइया हम मलिकवा से मांगले आवऽ हियो। एतना कह के ऊ बाहर निकले लगल कि ओजा बैठल दू-चार अदमी में से एगो कहलक—अहो ठाकुर, ई छंउड़ा तो चार सौ बीस लगऽ हउ। पैसवा झांट नञ् देतौ। एकराहीं जेतना पैसवा हउ ओतना कामा कर देहीं…. कह के ऊ भींतर से मुस्की छोड़लक। पांच रूपइया में माथा घोटा जा हे तऽ एकरा माथा घोंट दे। एतना सुनते ढीबरा भागे लगल मगर चारो अदमी दउड़ के चोर-चोर करते पकड़ लेलक आउ फेन से ऊहे कुर्सी पर बैठा देलक। ढीबरा छटपटाय--मगर चर-चर अदमी धइले। अब नउआ के भी खेल में मजा आवे लगल फिर तो अस्तुरा निकाल के दू बेरी तरहत्थी पर रगड़लक आउ शारूख कट के मर्दन होवे लगल। भोथर अस्तुरा-- चर्र---चर्र--। मुड़ी हिलावे तब अस्तुरा के धार चाम में घुस के लोहू पीए लगे। हार पार के ढीबरा सांत। तनी देर में पूरा आसमान साफ। माथा से खून रिस रहल हल। लहर भी ओतने, मगर ढीबरा के तो जइसे आझ माय-बाप मरल हल। हाय-मुँह काठ….। ऊ अप्पन तरहत्थी से माथा सिसोह के देखे लगल। ओहे खूनचट्-चट्--लेटाल माथा अइना में देखलक। ढीबरा के तो हतिया मारले हे जइसे। ओकर भीतर से फेन एगो आवाज-- अरे चूल नञ् हे तो की, ई तो फेन जलम जात। मालिक से कहम- जीन्स टी-शर्ट के साथ एगो टोपी भी किना देतन फेन तो ऊहे मजा….
          डेउढ़ी में बाजा बज रहल हल। अंगरेजी बाजा, चमरढोल, सहनाई, आउ मुसहर टोली के आल नेटुआ मानर सब अलगे-अलगे जगह पर अप्पन कला देखा के मालिेक के खुस करे के फिराक में। ढीबरा पहुँचल सीधे मालिेक भिजुन, मन में जीन्स टी-शर्ट के साथ-साथ एगो टोपियो लेल आरजू करइ लेल….। चलित्तर सिंह के नजर ढीबरा पर पड़ल तऽ ओजय से कहलन –अरे….? आंय साबा-- ई की कइलां रे--? सादी बियाह के मोका पर माथा मुड़ा लेना--- ई तऽ भारी नहस होवऽ हे।
अब तूं सीधे अप्पन घर चल जो । सादी के आठ दिन बाद अइहां--समझल्हीं--।चलित्तर सिंह ढीबरा के मइल-कुचइल झोला निकाल के ओकर हाँथ मे थमा देलन, फेन दोहरा देलन- “”सादी तक तूं डेउढ़ी में नजर नञ् अइहाँ।
            ढीबरा महसूस कर रहल हे- फेन ऊहे करेजा से कुछ निकलल- चढ़े लगल ऊपर -घुड़मुड़ियाइत-गोलियाइत…. दिमाग के झनझनावत, फट गेल दिमाग में--आधम-आध होके दुइयो गोली-अटक गेल  दुइयो आँख में….झांस्स….आँख लाल टेस इंगुर….पथराल….दुआरी बंद….लउट गेल दुइयो-कंप गेल बरम्हांड-अटक गेल एगो ओजइ….दोसर ससर गेल….सरकइत अँटकल करेजा में भारी….लोथ-करेजा के छेदले-चीरले ससर रहल हे…. कठुआल ठाढ़ हे ढीबरा-तनी-सा कंधा सिकुड़ऽ हे, बाकि ऊ जाके पेशाब के रस्ता में अटक गेल- जोर लगइले हे ढीबरा रोकइ लऽ, मगर अबरी ऊ नञ् रूकल….जाँध से टघरइत टेहुना….टेहुना से घुट्ठी--घुट्ठी से तरवा….तरवा चपचपा गेल-आउ चपचपा गेल डेउढ़ी के चौखट-बढ़ गेल डेग-एक डेग-एक पाँव के छाप, दोसर डेग-दोसर पाँव के छाप….डेगे-डेग….छापे-छाप….छपित भे गेल- समय के छाती पर- जेकरा माटी सोख के सहेज लेलक।
                                                            - इन्दिरा चौक, नवादा
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    कहानी
                           सितबिया
                                         डॉ० रामविलास 'रजकण'
    पन मरद के बीस सरसा सजा सुन के सितबिया के आँख तर अन्हार पसर गेल। ओकर माथा चक्कर काटे लगल आउ ऊ कचहरी के फरस पर गिर पड़ल। कटघरा में टुकुर-टुकुर मटी के मूरति अइसन चन्दू अप्पन मेहरारू के ताक रहल हल। ओकर मन के परदा पर सिनेमा जइसन रील घूम रहल हल-- ऊ अपन बहिन के ससुरार में पैमार नदी के अरार पर बइठल हे। पूरब में लाली धबे लगल हे। गाँव के पनिहारिन अपन-अपन घइला में पानी लेके घर चल गेलन हे। एगो गोर-नार छोकड़ी काँख तर गगरी लेले मचलइत पनघट पर पहुँचल हे। आज ऊ पानी लेबे में पिछुआ गेल हे। सोंच रहल हे माथा पर गगरी के उठाबत ? ऊ एने-ओने घुर के ताकलक तो देखऽ हे -- नदी के अरार पर कउनो अइठल हे।
     “के बइठल हऽ जी ? हम्मर माथा पर गगरी उठा दऽ।
कोयल अइसन मीठ बोली सुन के चन्दू पनघट पर आ जाहे। कभी ऊ सितबिया के छरहर देह देखऽ हे तो कभी लेमो अइसन उभरल उरोज। सितबिया कह रहल हे- गगरी उठा दऽ। हमरा देरी हो रहल हे। मइआ अनेसा में होत कि छउड़ी की कर रहल हे ?”
हमरा तोर मइया से कुछो लेबे-देगे ला न हे। हम तोरा से गगरी उठाई लेबो- चन्दू मुसकइत बोलऽ हे।
    “मजाक मत करऽ-एक चूरू पानी लेके सितबिया चन्दू देले फेंक के कहऽ हे- गगरी उठाई एक पसेरी बालू देबो। तोर गाँव में बालू न होवऽ हे। भूँजा भूँजू ला ले लिहऽ।
चन्दू सितबिया के माथा पर गगरी उठा देहे।
सितबिया के बाँह पकड़ के ओकिल साहब ओसरा में लाके कहऽ हथ- हम एक हफ्ता में उपरलका अदालत में अपील करे जा रहली हे। चन्दू के बीस बरसा सजा हाईकोर्ट में टूट जइतई।
     सितबिया अपन अचराके कोर से पसेनला पोंछे लगऽ हे। कचहरी से बस स्टैन्ड ऊ पइदले आवऽ जा हल मगर आज गोड़ उठ न रहल हे। ऊ भीतर से टूट गेल हे। पचकठवा पोसताड़ी बेचलो पर भी चन्दू के सजा होइए गेल। ऊ केतना लोग से जज साहेब के पैरबी करे ला कहलक हल मगर कउनो अदमी न सुनलन। कागज देख के कोट में बहस करे के अलावे ओकिल साहब से कुछो पैरबी न भिड़लन। सितबिया गोड़ घसिअइते बस स्टैन्ड आ गेल। ऊ गया से सरबहदा जायवाला एगो बस के जनाना सीट पर बइठ जाहे। ओकर आँख के सामने बीतल घटना घुमड़े लगऽ हे। होली के दू दिन पहिले सितबिया नहिरा से ससुरार आ गेल हे। जउन अदमी के ताड़ी-दारू से परहेज हे ऊ भी फगुआ के में भांग खा के बउड़ाहा बन गेलन हे। चन्दू पर भी फगुआ के रंग चढ़ल हे। ऊ मस्ती में ढोलक बजा-बजा के नेटुआ अइसन नाच रहल हे। झूमटा महतो जी के दलान से निकल के गली-गली में घूम रहल हे। टोला-पड़ोस के लोग ठहाका मार के चन्दू के हौसला बढ़ा रहलन हे। एक अदमी जोर-जोर से गला फाड़ के संगतिया जउरे गा रहल हे--
अरे एक बर लूटे फेंकू बाबू, दोबर चन्दूआ रानी,
तेबर लुटे रग्घू बाबू, गउआ के जुआनी। जोगिरा स-र-र-र-र-रऽ।
चन्दू दुनिया के सुध भुला के नाचे-गावे आउ बजाबे में मसगूल हो गेल हे। झुमटा ओकर घर के अगाड़ी में आके रूक गेल हे। हो, हो, हो।
हो, हो, चन्दूआ के मउगी बड़ी रे छिनार।
हो, हो, बड़ी रे छिनार।
गली, गली खोजऽ हे लहुरा भतार।
हो,हो,हो चन्दुआ के मउगी।
केवाड़ी खोलिहऽ भउजी। हम ही जगू। चन्दू भइया के लंगोटिया इयार, रंग आउ अबीर लेके अइली हे- जगू बोलऽ हे।
       केवाड़ी खुल जा हे। जगू सितबिया के गाल में गुलाल लगाबइत कह रहल हे- भउजी के देह फूल अइसन सुकुमार आउ गाल रसगुल्ला अइसन मीठा हे। नोंक-झोंक चल रहल हे। जगू सितबिया के अँचरा खींचे लगऽ हे, इतने में चन्दू आ जाहे। ओकर आँख में खून उतर के अपन रंग देखावऽ हे- जगू बाबू। भला चाहऽ हऽ तऽ सितबिया के छोड़ दऽ। आँख के सामने हम्मर जोरू के इज्जत से खेल न करऽ।
तू कहिना से इज्जतदार बनलँऽ हे रे चन्दुआ। तोर बाप हम्मर कमियां। तोर माय हम्मर बाप के रखनी- जगू बड़बड़ा हे।
        चन्दू अप्पन घर से पसुली निकाल के कहऽ हे-- अरे जगुआ । हम्मर घर से भाग न तो तोर मुड़ी छोप लेबऊ। बड़ी सहलिअऊ। अब न सहबऊ। ई साल खून के होली खेलबऊ।
झुमटा के रंग उखड़ जाहे। आवारा छोकड़ा माथा पर गोड़ रख के रेस के घोड़ा अइसन गली से भाग रहलन हे। जगू भी नौ-दू-ग्यारह हो जाहे। चन्दू के आँख में इंगोर बरस रहल हे। ऊ सितबिया से कह रहल हे- तू केबाड़ी न खोलतँऽ हल त ई तमासा काहे होवत हल ? का जगुआ से देह रगड़ावे ला तोर जुआनी जोर मार रहल हल ?”
ऊ चट्-चट् दू तमेचा अपन मेहरारू के गाल में जड़ दे हे। सितबिया फफक-फफक के रोबे लगऽ हे।
अदालत के कटघरा से निकस के चन्दू पुलिस के गाड़ी में बइठ गेल हे। ओकर आँख के सामने अनेक फोटू नाच जाहे।
        चन्दू के बाप नन्दू मर गेल हे। ओकर लास अँगना में पड़ल हे। कफन, घी आउ धूप के फिकिर में ओकर माथा चकरा रहल हे। अप्पन कमियाँ के मउअत के खबर सुन के चन्दू के ढाढ़स देवे ला सुखलाल गोप आ गेलन हे- बेटा अप्पन मन के छोटा न कर। हम बच रहलियो हे। बाप के सराध में जे खरचा होतउ ओकर बेवस्था हम कर देबो। ई लऽ पाँच सौ रूपइया। अपन बाप के रंथी बढ़िया से सजावऽ।
नन्दू दास के रंथी घर से बाहर निकल रहल हे। टोला-पड़ोस के औरत-मरद सरधा के फूल चढ़ा रहलन हे। अप्पन-अप्पन बेटा के तबीज बनावेला। दरजनो लोग राम नाम सत्य हे के आवाज अलापइत रंथी लेके मरघट पर पहुँच जा हथ। कुछ ही घंटा में नन्दू के लाश जर के भस्म हो जाहे।
        चन्दू उतरी पेन्ह के घर आ जाहे आउ सुखलाल गोप के करजा लेके अप्पन बाप के श्राद्ध ठाठ से करऽ हे।
                                                                                                                                                                                    कुछ रॊज के बाद सुखलाल गोप कहऽ हथ- चन्दू तोर बाप के श्राद्ध में हम्मर पाँच हजार रूपइया खरच हो गेल हे। हम एक-एक पइसा के पूरजा रखले हिअउ।
         अप्पन बाप के श्राद्ध संस्कार में खरचा के हिसाब सुन के चन्दू के लिलार से पसेना चुअऽ हे। ऊ मेहराइल आवाज में बोलऽ हे- हम सऊँसे महिसत बेच देबई तइयो पाँच हजार रूपइया हमरा से न जुमत। तू ही कउनो उपाय बताबऽ जेकरा से तोहरा करजा हम चुका सकऽ ही।
तू अप्पन बगइचा बेच के हम्मर करजा चुका दे।
बगइचा लगाबे में हम खून-पसेना एक कइली हे। ऊ हम्मर जान से भी जादे कीमती हे।
अब हम कुछ न कहबऊ। पत महीना पाँच रूपइआ सैकड़ा के हिसाब से सूद-मूर चुका दिहऽ।
तोहर केबिन के आरी के बगल में हम्मर दू कट्ठा खेत हे। तू ही बाजिव कीमत समझ के हमरा से जमीन रजिस्टरी करा लऽ।
ऊ खेत के तीन हजार रूपया से जादे कीमत न लगत। जे किसान एकरा से जादे दाम दे सकऽ हथ, उनके ही ऊ जमीन बेच के हम्मर करजा चुका दे।
कउनो किसान चन्दू के साथ सहानुभूति न देखावऽ हथ। हार-पार के ऊ जमीन तीन हजार रूपइया में सुखलाल गोप के रजिस्टरी कर देहे। बाकी रूपइया चुकावे के एवज में चन्दू सुखलाल गोप के हरवाहा बन जाहे। एक रोज सुख लाल गोप कहलन हे- चन्दू दू हजार रूपइआ करजा चुकावल तोरा से पार न लगतऊ। तू भिखारी महतो के दू जोड़ा बैल सूरजपुर से ला दे। तोर सब करजा माफ हो जइतऊ।
चोरी करे के लत हमरा न हे सरपंच साहब।
तब तू जिनगी भर हम्मर हरवाहे बनल रहबेंऽ। बीडीओ, इंजीनियर, अफसर सभे लूट के कमाई खा हे। तू भी लूट के सरीकदार बन। जेतना रूपइया के माल लूट के लइमेंऽ, ओकर में आधा हम्मर आधा तोर।
कमइते-कमइते देह के हड्डी गल जइतउ तइओ करजा न चुकतऊ।
चन्दू के दिमाग पर पिचाश संस्कृति के लतरी पसर जाहे। ऊ सरपंच साहब के हामी भर देहे।
       रात के घुच्च अन्हार। सुरजपुर के भिखारी महतो के गउसाला में दू अदमी बन्दूक लेले खड़ा हे। चन्दू मकान पर चढ़ के अँगना में कूद जाहे। ऊ केबाड़ी आउ बैल के पगहा खोल के देहे। बन्दूकधारी अदमी एने-ओने देख के बैल के हँकावऽ हे। चन्दू बैल के पीठ पर सट्-सट् मारऽ हे आउ रात के अन्हार में बैल लुदकुनिए दोड़ेऽ हे। बिहने सभे बैल सुखलाल गोप के गउसाला में बँधा जाहे। सरपंच साहब चन्दू के हाथ में दू सौ रूपइया थमा के कहऽ हथ- पनहा मिलला पर तोरा आउ रूपइया मिलत।
       चन्दू बैल के साथ रह के बैल बन जाहे। दिन भर खून- पसेना एक कइला पर दू किलो अनाज आउ रात में बैल खोल के लावे में दू सौ रूपइया लेके ऊ अप्पन घर जाहे। सितबिया गेहूँ के रोटी आउ झींगी के तरकारी थारी में परस के ले आइल हे। चन्दू अप्पन मेहरारू से कह रहल हे-सरपंच साहब भर बरसात अप्पन बइठके में रात के सुते ला कहऽ हथिन। बैल के सानी-पानी देबे में दिक्कत होबऽ हई।
अन्हार रात में अकेले में हमरा डर लगऽ हे।
डेराय के कडनो बात न हे। हम कुछे दिन सरपंच साहब के बइठका में रहबई। नौकर आ गेला पर हमरा छुट्टी मिल जात।
जहिना से अदरा चढ़ल हे, गुंडा-बदमास आउ चोर-डकैत के दिनोदिन बढन्ती हो रहल हे। हल्ला-गुदाल सुन के केबाड़ी खोलऽ ही त सउँसे बदन काँपे लगऽ हे।
 तोर घर में रखले का हे ? बकरी-पठरू चोराबे ला रात के कउनो सेन्धमारी न करत। तू निफिकिर होके सुतिहऽ।
सितबिया पलंगरी पर सुत जाहे। हौले-हौले हाथ फेर के चन्दू ओकर देह के अपन बाँह में जकड़ लेहे।
       पतन के राह चिकन होवऽ हे। पहिले तो ओकरा पर चले में मजा आवऽ हे। जब गोड़ पिछुले लगऽ हे, तब अदमी औधे मुँह गिर जाहे। चन्दू बैल खोलवा चोर से अब डकैत बन गेल हे। अरउआ के जगह ओकर हाथ में बन्दूक रहऽ हे। चन्दू के दुसाहस के कहानी जिला जेवार में फैल जाहे। डकैत के माल पचावे में सुखलाल गोप भरपूर मदद करऽ हथ।
       एक रात चन्दू डकैती के काम में जुटल हे। गाँव के लोग बहादुरी से डकैत के मुकाबला कर रहलन हे। अप्पन सम्पत्ति बचावे ला एगो मेहरारू छत पर से गुहार कर रहल हे। आवाज सुन के चन्दू बन्दूक के निशाना ले लेहे। औरत के छाती में गोली लग जाहे। गाँव के एगो रायफलधारी अन्धाधुनध गोली चलावऽ हे। चन्दू जख्मी होके कटल पेड़ नियन जमीन पर गिर पड़ऽ हे। ओकर संगी-साथी टाँग के घर ले आवऽ हे। सुखलाल गोप एगो कम्पोटर लेके अधरतिए में चन्दू के मलहम पट्टी करावे जा आ जा हथ। ऊ सितबिया के दिलासा देके कहऽ हथ- चन्दू के कुछो न होवत। थाना से लेके कोट तक हम्मर जमात के लोग दौड़-धूप कर रहलन हे। पुलिस चन्दू के पकड़ियो लेते तब हम ओकरा जमानत पर छोड़ा लेबई। तोरा कहुँ भी जाय न पड़त।
सितबिया अप्पन मरदाना के गोड़ पर माथा रख के लोर बहावऽ हे। टोला-पड़ोस के लोग सब कुछ समझला पर भी चुप रहऽ हथ।
       डकैती आउ हत्या के मोकदमा थाना में दर्ज हो गेल हे। चन्दू के छूटल गमछा आउ जूता के सूँघ के एगो खोजी कुत्ता सितबिया के घर में आ जाहे। ओकर पीछे पुलिस आउ अदमी के लम्हर जमात हे। थानेदार चन्दू के घर के तलासी लेहे। कोना में एगो गैरलाइसेन्सी बन्दूक थमा जाहे। पुलिस बेहुदा सवाल के झड़ी लगा देहे। चन्दू अपन ठोर के सी लेलक हे। सिमबिया के मुँह से भी एक्को बकार न निकल रहल हे। एगो सिपाही चन्दू के जमीन पर पटक देहे आउ जूता पेहेन्ले ओकर छाती के हुमचऽ हे। सितबिया के देखल न जाहे। ऊ अप्पन चेहरा के दून्हू तरहत्थी से छिपा लेहे। दरोगा चन्दू के जोरू के गुप्तांग में बन्दूक के कून्दा ठूँसे के धमकी देहे तइयो ऊ अप्पन जमात के कउनो साथी के नाम न बतावऽ हे। सितबिया महसूस करऽ हे- उतना भारी बेईज्जती तो दुशासन भी भरल सभा में द्रौपदी के न कइलक होत।
      तीन साल के मोकदमा चल रहल हल। चूहा के बिल में जइसे भरल ड्राम पानी घुस जाहे ओइसे ही सितबिया के बगइचा के आम, महुआ आउ सीसम के पेड़ दरोगा, दलाल आउ वकील के पेट में समा गेल। सितबिया के अनुभव हो गेल कि अदालत में असलियत के जीत न, पइसा के जीत होवऽ हे।
खिजरसराय, टेउसा होते मोटर बाला बिगहा में रूक गेल हे। सितबिया एगो बूढ़ी औरत के अप्पन सीट पर बैइठा के उतर जाहे। दिन लुकलुका रहल हे। ऊ एक्सप्रेस गाड़ी नियन लपकइत जा रहल हे। रात भींगला पर सिमबिया अप्पन गाँव के बघार में पहुँच जाहे। पीपर के पेड़ तर ओकरा जोधन के आवाज सुनाई पड़ऽ हे- सुखललवा हतामजादा हे। ऊ हम्मर बाप के दारू पिला के घर लिखा लेलक हे। हम ओकरा जिन्दा रहे न देबई। सितबिया बोलऽ हे- लगऽ हे, आज जादे पी लेलऽ हे।
       “नऽ चाची हम निसा में न बोल रहलियो हे। जब तक हम सुखललवा के कत्ल न करबई तबतक चैन न लेबई। तू ही कहऽ। अब हम कहाँ रहिअई ? बहिन के रोकसदी में बाबूजी एक हजार रूपइया करजा लेलथिन हल ओकर एवज में सुखललवा बीस हजार रूपइया के खपड़ैल मकान दारू पिला के रजिस्टरी करबा लेलक। ई गाँव में सरपंचवा से बढ़ के कोय भी अत्याचारी न हे। ऊ पाँच साल में एक हजार रूपइया के उनइस हजार रूपइया सूद लेलक हे।
      “तू हम्मर घर में रहिहऽ। सोनूआ के बाबूजी के बीस बरसा सजा हे गेल हे।
हम तोर घर में न रहबो। सुखललवा के जान मार के हम चन्दू चचा जउरे जेल में रहबो। नक्सलाइट बन गेलियो हे, नक्सलाइट।
सितबिया कहऽ हे- हमरो मरदाना के सुखललवा बरबाद कइलक हे। हम तोहरा साथ देबो। हमरा ला जिनगी में सुख लिखल न हे। मइया खोंइछा में दुख बाँध के चलइलक हे।
 सरपंचवा के आतंक मेटावे ला तोरे अइसन औरत के जरूरत हे।
     “हम सुखललवा के का कहियो ? हम्मर मरदाना भी हमरा कम दुख न देलक हे। ऊ निर्दोष औरत के मडर करके हम्मर दुख के बढ़ौलक हे।
ऊ जगुआ के जान मार के जेल जाइत हल तब हमरा कुछो दुख न होवत हल।
    “जे होवे के हल हो गेल। असली जंग के सुरूआत अब होयत।
जोधन के बात सुन के सितबिया के मन में निराशा के कूहा फट जाहे। ऊ कहऽ हे- चन्दू हाड़-मांस के बेडौल ठठरी हल। एगो नकली मरद। असली मरद तू हँऽ। अब हम कउनो वकील से मोकदमा जीते ला हाईकोट में अपील करे ला न कहबई। तू हम्मर हारल मोकदमा जीता देबऽ।
         “हम कउनो एडवोकेट आउ जज न ही जे तोर हारल मोकदमा जिता देबो। हम लाल सेना के सिपाही ही। सेनापति के इशारा पर युद्ध करे के हाल जानऽ ही। तू सितबिया न, हमरा ला सीता माय हँऽ। सीता के मान-मरजादा ला हनुमान के लंका में आग लगावे पड़ल हल। लंका जर के खाक हो गेल हल आउ सीता माय अप्पन तेज से बच गेलन हल। तूहूँ भी अप्पन तन आउ मन में तेज लावऽ।
          जोधन गाँव में आग लगा चुकल हे। सुखलाल गोप के दू मंजिला मकान तहस-नहस हो गेल हे। पुलिस सितबिया के गिरफ्तार करके जीप पर बइठा लेलक हे। सितबिया सिंहनी नियन जीप पर बैठ के कह रहल हे- हम्मर बेटवा के गिरफ्तार कर लऽ दरोगा जी। आग लगावे ला दुकान से दिया सलाई ओही लइलक हल। दरोगा सात साल के बुतरू के गिरफ्तार करे से इनकार कर देहे। सितबिया भीड़ में हर लोग के गौर से दंखऽ हे। जहिना ऊ नहिरा से ससुरार आयल हल ऊ दिन भी एतना भीड़ ओकरा देखे ला न जुटल हल।

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कविता-कियारी
आदमीयत

                 परमेश्वरी

आवो हमरा अँगना में, हय बात बहुत बतियावय के।
उजरल पगड़ी हय हिमगिरि के, ओकरा हय सोरियावय के।।
बात तनी-गो तोरा लगइ हो, लगल करो,
ताली पीट के खूब हँसइ हो, हँसल करो,
खूब अन्हार घर में तरबार जों तानो जो,
अपनै कटतो हाथ पाँव, खूब कानो जो,
हमरा हई तरबार नया ई बिजली सन चमकावइ के।
दानवता के सीस काट के हिन्द के भाल सजाबइ के।।
बेल-बबूर में सब दिन काँटा हल‍ काँटे हय,
ताड़-खजूर तो सब दिन नंगा हल, नंगे हय,
अब अदमी के देह में काँटा उगे लगल,
अगल-बगल के लोग बेद के गड़ो लगल,
हमरा हई ई काँटा सब के झाड़-झंखाड़ कटवावइ के।
पीपर नंगा हो गेल हे, ऊ पीपर के हरियाबइ के।।
बाध तो सब दिन नरभच्छी हल, रहल करे,
सर्प दंस से लोग मरइ हल, मरल करे,
अब अदमी हो गेल बाध, भच्छ सब मानव हो गेल,
अब अदमी हो गेल सर्प, दंस मानवता हो गेल,
हमरा हई नरभच्छी नर के माथा के सरियाबइ के।
हमरा हई नर नाग के ऊ बि‌दन्त तनी बिहियावइ के।।
जे- जे अइबा साथ आग मुठ्ठी में बान्हो,
जे-जे अइबा साथ नाग पगड़ी में बान्हो,
झुक जइतइ आकास चरन तब हम बिगुल बजइबइ,
हम अप्पन पैगाम क मितबा मंजिल लक पहुँचइबइ,
हमरा हई मरइत मानवता के अब फेर जिलावइ के ।
हे परमेसरी गीत लिखें तों जीवन के सोझरावइ के।।

                      --लोदिया, लख्खीसराय
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कविता-कियारी
दीपावली मनैलूँ हम

                विशुन लाल राज

गेल दशहरा दुर्गापूजा, दीपावली मनैलूँ हम,
घर में लक्ष्मी ढुकवे खातिर, दीया खूब जरैलूँ हम।
गोबर से अंगना निपवैनूँ, गंगाजल छिड़कैलूँ हम,
धूप दीप नवेद चढ़ैलूँ, जग के रात बितैलूँ हम।
गेल दशहरा दुर्गापूजा, दीपावली मनैलूँ हम।।
पर नञ् जानू धन के देवी, काहे हमरा से रूस गेली,
लगे हे हमरा छोड़ के फिर कोय, बड़के घर में धूस गेली।
एहे बात के दुख हे भारी, हिरदा बड़ी कचोटे हे,
लक्ष्मी से निमन हे दलिदरा, जे हमनी घर में लौटे हे।
ओकरे घर से भगवे लागी, लक्ष्मी पूजा कैलूँ हम।
गेल दशहरा दुर्गापूजा, दीपावली मनैलूँ हम।।
जेकर घर में घुसल दलिदरा, ओकरे घर काहे ऐती,
धनघर के घर बन्धिक खरदल, ओकरे घर पहले जैती।
जे इनका बक्सा में धर के, ताला रोज लगावऽ हे,
अपने खाहे मेवा इनका, धूप के धुआँ पिलावऽ हे।
अपने भूखले रहके इनका, घी के लड्डू खिलैलूँ हम।
गेल दशहरा दुर्गापूजा, दीपावली मनैलूँ हम।।
लक्ष्मी के तो रूप कते हे, जन, धन, लक्ष्मी, गाय भी लक्ष्मी,
बेटी लक्ष्मी, पुतहु लक्ष्मी, घर के बूढ़ी माय भी लक्ष्मी।
हमरा घर तो चर-चर लक्ष्मी, एकक करके ऐले हे,
जहिया से चारो ढ़ुकली हे, घर में आग लगैले हे।
सास-ससुर के झाड़ू मारे, ऐसन लक्ष्मी पैलूँ हम।
गेल दशहरा दुर्गापूजा, दीपावली मनैलूँ हम।।
                          --हिसुआ, नवादा
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कविता-कियारी
बाप के अरथी

          उदय कुमार भारती

आझ ऊ अप्पन बाप के अरथी सजा रहल हे।
किसिम किसिम के फुलबा के सेज बना रहल हे।
आझ ऊ अप्पन बाप के ……..।।
पीठ पर पिल्लू भरल बड़गो-बड़गो घाव हल,
इले ठठरी पर मखमल के गद्दी बिछा रहल हे।
आझ ऊ अप्पन बाप के ……..।।
जे तन अंजुरी भर तेल ले लिलकते रहल,
ऊहे तन पर हरदी आउ चन्दन के लेप लगा रहल हे।
आझ ऊ अप्पन बाप के ……..।।
जे मनुआँ घी के स्वाद ले तरसते चल बसल,
ओकर तन के जलावे ले कन्टर भर घी मँगा रहल हे।
आझ ऊ अप्पन बाप के ……..।।
जिन्दा बाप के दवाय ले फूटल कौड़ी नञ् निकल हल,
बाप मरल तऊ देवदार आऊ चन्दन मँगा रहल हे।
आझ ऊ अप्पन बाप के ……..।।
कय बरस से ओकर बाप नरक के कीड़ा चुन रहल हल,
आझ बेटा अनखा सरग ले जा रहल हे।
आझ ऊ अप्पन बाप के ……..।।
कलजुगिया सपूत हे ई गम से अभिभूत हे ई,
दुआरी पर ढोल आउ तासा बजवा रहल हे।
आझ ऊ अप्पन बाप के ……..।।
सबके मुँह बन्द करे ले जानऽ हे ऊ, समाज के नस पहचानऽ हे ऊ,
दोस्त-आरन ले विस्की आउ रम के बोतल मँगा रहल हे।
आझ ऊ अप्पन बाप के ……..।।
बढ़ जात आउ थोड़ा रूतवा ओकर जमाना में,
दिल खोल के अखनी 'उदय भारती' पैसा लूटा रहल हे।
आझ ऊ अप्पन बाप के ……..।।
                 -- हिसुआ (नवादा)
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कविता-कियारी
मनमा चउन-भउन तूँ काहे।

              परमानन्द सिंह

मनमा चउन-भउन तूँ काहे।
जे हो रहल देखहो गुम-सुम, कउन दिशा ले जाहे।।
मनमा चउन-भउन तूँ काहे।
जे युग मे जी रहलें हें तूँ, पूँजीबाद कहा हे।
भ्रष्टाचार के माय हके ई, भ्रष्टे एहाँ पुजा हे।
मनमा चउन-भउन तूँ काहे।
भ्रष्टाचार अपराध के जननी, लर-पर-लर जुर जाहे।
भाग आउ भगवान नाम पे, जनता खुदे लुटा हे।।
मनमा चउन-भउन तूँ काहे।
के हम्मर हक मार रहल नञ्, आँखो छइत लखाहे।
समझावे गर कोय जो एकरा, उल्टे उहे डँटा हे।।
मनमा चउन-भउन तूँ काहे।
पूँजीबादी चका-चौंध से, अँखिया चोन्हिया जाहे।
बस केबल अपन ई देखई भर, दृष्टी बचल रह जाहे।।
मनमा चउन-भउन तूँ काहे।
घर-परिवार गाँव देश हित, सब नीचे चँप जाहे।
पइसा के आगे सब, रिस्ता-नाता भी छुट जाहे।।
मनमा चउन-भउन तूँ काहे।
कोय करम कर जोड़े जे पइसा, लुरगर उहे कहा हे।
परमानन्द बहू-बेटी भी, चढ़ बजार बिक जाहे।।
मनमा चउन-भउन तूँ काहे।
                      --पाली, काशीचक, नवादा
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कविता-कियारी

जन जिनगी राम के पुकारे

                        जयप्रकाश

अलसाल नैतिकता, मानवता झूप रहल,
संवेदना घोंघर पारे।
जन-जिनगी राम के पुकारे।।
धन के पूजा-पाहूर, धन पर धेयान हई,
घर-घर में आग लगल, अकबक परान हई,
नाता रिस्ता दरकल, जिनगी में चहल-पहल,
अब नञ् नयनमा निहारे।।
जन-जिनगी राम के पुकारे।।
हो रहल अब आस दूबर जिनगी के,
विश्वासघात कह कि रोकत चिनगी के ?
हिंसा उमताल, कते अँखियन से लोर बहल,
दरद हाथ दया ले पसारे।।
जन-जिनगी राम के पुकारे।।
अब नञ् परेम, कने उपहल हहर के ,
सहयोग-ममता रे कलपे कहर के,
टूटल पाँख सरघा के, डर-भय से रहल दहल,
जन- जीअत केकर सहारे ?
जन-जिनगी राम के पुकारे।।
अब विचार बिलखऽ हई, भावना उदास हई,
जन-समाज पगलाल, धन के जे दास हई,
धरम-करम ताखा पर, संस्कार महल-ढहल,
जय के बढ़ सेकरा सम्हारे ?
जन-जिनगी राम के पुकारे।।
                     --ग्राम- केन्दुआ, पो०- ओढ़नपुर, जिला- नवादा
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कविता-कियारी
घर आवा परदेशी

                  कृष्ण कुमार भट्टा

आधी-आधी रतिया पपीहरा सोर मचावे।
पिया तोहरा बिना निंदियो नञ् आवे ।।
गोड़ लगी बउआ के बाबू, दिल में नय हे काबू,
केतनउ घीरज बाँधऽ हियो, तइयो मन बेकाबू।
मिलते चिट्ठिया सुनऽ पियाजी, करो आवे के तैयारी,
एक महिना के छुट्टी लेके, जल्दी पकड़ गाड़ी।
कि घर आावा परदेशी, कि घर आवा परदेशी।।
कहला हल माघे में आइब, फागुन घर में बिताइब,
तोरा लागी पायल, कंगन, झुमका लेले आइब।
कहके हमरा तो कि-कि गेला, ओकरा पुरा नय कइला,
बितल जाहे चैत महीना, तइयो नय तों अइला।
कि घर आवा परदेशी कि घर आवा परदेशी।।
रोजे-रोजे तोहरे बालम, सपना हम देखऽ ही,
रात-दिन तोहरे याद में, डूबल हम रहऽ ही।
रतिया के हम तड़प-तड़प के, करबटिया फेरऽ ही,
कहियो-कहियो अधरतिये, खिड़की खोल के देखऽ ही।
कि घर आवा परदेशी, कि घर आवा परदेशी।।
छोटका बउआ डेगा-डेगी, देखऽ देबे लागल,
दउड़ले बुले अंगना ओसरा, पापा कहे लागल।
धइल-धरावल पानी बरतन, गिरादे हके जाके,
हम कहो ही पापा अइलन ,दौड़ के गल्ली ताके।
कि घर आवा परदेशी, कि घर आवा परदेशी।।
                 --भट्टा, काशीचक (नवादा)
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झूमर
कोय नञ् बुझ हइ दुख मोर, सुनै साजनी गे

                     दीनबन्धु

कोय नञ् बुझ  हई दुख मोर, सुनै साजनी गे।
कोय नञ् बुझ  हई दुख मोर, सुनै साजनी गे।।
रोजे-रोजे हरबा-कुदरबा चलावऽ ही, ढेलवा-चपड़वा से फोर।
तइयो भी भुखिया से अतरी मरोड़ऽ हे, अँखिया से बरसे हे लोर।।
दिन-दिन भर खट-मरके गेलूँ हवेलिया, खटकिन किसैनी मुँहजोर।
सनियो पानी कैलूँ बासी-कुसी खिलवे, एक लोरा एक कोर।।
कोय नञ् बुझ हई दुख मोर………।।
हेलते रोहन अदरा धनमा हे बुनलूँ, अरिया-पगरिया तर कोड़।
सऊँसे मोरिअरवा के गरदा बनैलूँ, दौंगिया परंगवा पड़ोर।।
फारनी असढ़वा सवनमा में कादो, टुटल-फूटल अरिया जोड़।
नदिया गोमाम टेंड़ुआ बाँध ही गंडी, मोरिया कबाड़ूँ बलजोर ।।
कोय नञ् बुझ हई दुख मोर………।।
खेत-खेत हरियर तूँ करहीं रोपनियाँ, फोहवा बुतरुओ के छोड़।
सवने के अन्दर में करूँ बनोसारी, तइयो कहावूँ कमचोर।।
भादो आसिन कातिक पनछन्ना घूम्मू, मड़ुआ मकइया सहजोर।
नगदी मछलिया किसनमा के देही, हम चाटूँ पोठिया के झोर।।
कोय नञ् बुझ हई दुख मोर………।।
अगहन के आठ सगरो हल-हल्ली जाड़ा, होले जाहे देहियो कमजोर।।
धानो काटूँ ओने गोहमों लगावूँ, सऊँसे खरिहानी पड़ोर।
बोझा के डिया सगरो लगलो जब पूँजिया, गिरहस के मन भेल मोर।।
कोठी भाड़ा भरलय अनघन से घरवा, हमरा हीं हड़ियाखखोर।
कोय नञ् बुझ हई दुख मोर………।।
खखरी पटपरिया मिलऽ हे मजुरिया, चउरा मिलऽ हे पछोर।
गिरहस के अँगना मे चूड़वा बुनल हे, हम्मर बुतरुअन बटोर।।
पूसा माघा फागुन सरसो मसुरिया, जाड़ा गिरल हड़फोर ।
बूँटा, केरैया, रहड़ियो काटलिअय, हमरा खरथूया के झोर।।
कोय नञ् बुझ हई दुख मोर………।।
होली हवेलिया पूआ-पूड़ी बनलय, भभरा फुलौड़ी चिजोर।
हमरो वासी-कूसी होलय नेमनिया, भिनसरवे दुअरा अगोर।।
आधा चैता सगरो गोहमा कटनियाँ, खरिहानी थ्रेसर के शोर।
बैशाख जेठ सगरो लगन पसरलो, अखनै तू भेली ललकोर।।
कोय नञ् बुझ हई दुख मोर………।।
सालो भर खटला पर दुरछी होवऽ ही, सरकारो नीतिया के चोर।
दीनबन्धु अभियो ने परचो नञ् मिललो, इन्दिरा आवास में चटोर।।
कोय नञ् बुझ हई दुख मोर, सुनै साजनी गे।।
 कोय नञ् बुझ हई दुख मोर………।।

                          --नदसेना, हिसुआ (नवादा)
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मगही हायकू

                                                                      साँप जहर      
निकालऽ हे दाँत से
नेता बात से ।
            --प्रो० रवि किरण

नेता विहिन
बड़ सुन्दर लगे
हम्मर गाँव।
              --प्रो० सुखित वर्मा

भूखल प्रजा
मोटायल हे राजा
ढीला सासन ।
             --श्रवण कुमार मधुर


नेता के नाम
हो गेल बदनाम
पीयल जाम।
                 --अरूण कुमार गौतम

जात-पात के
जहर पिला नेता
पावे कुरसी।
                --डॉ० गोपाल पाण्डेय

नेता के खेल
घोटाला आउ जेल
लोकतंत्र में।
               --डॉ० चन्द्रशेखर सिंह

नेता के आगे
रोबित कानित हे
मगरमच्छ ।
                    --प्रो० अवधेश कुमार सिन्हा

असली नेता
जे लड़ाई लगावे
बात बनावे ।
              --प्रो० दिलीप कुमार

जादे नेता से
देश उजड़ जा हे
गुटबंदी से ।
                  --डॉ० राम विलास रजकण

डंका के चोट
नेता ला युगधर्म
वादा के खिलाफी।
               --डॉ स्वर्ण किरण

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व्यंग्य
                     मंदी
                                 डॉ० भरत सिंह
     र दिन ईंट पाथर सन दनादन खबरियन बरसावइत चेनलवन आउ अखबरियन से जानकारी मिलल कि सऊँसे दुनियाँ में मंदी महामारी नियन पसरल हे। ढेरो देश एकर संक्रमण के चपेट में आयल हे। अमेरिका नियन दादा देस के भी कत्ते महिन्ना से बोखार चढ़ल हे, रह-रह के ओकरा जुआर आवइत हे। हर देस के नब्ज मंदी मंद कर देलक हे। अलबत्ते अप्पन भारत देस ई इनफेक्शन से एक हद तलक बचल हे। बचपन में सरकारी सब्सिडियन के घोर टीकाकरन के लाभ लेवे ओली अउ जुआनी में नित नेशनलाइजेशन के स्वास्थ्य बढ़बैलन टॉनिक पीएओली हम्मर भारतीय अर्थ-व्यवस्था तनी-मनी जुकाम इया छी-छूँ के बाद लगभग तंदुरूस्त हे अउ मंदिअन से ग्रस्त मुलुकबन दने निहारइत मंद-मंद मुसुकइत हे।
      ओइसे भी हमरा मंदी से घबड़ाय के कोय जरूरत नञ् हे। हमरा ही प्रगैतिहासिके काल से मंदी के महातम बेगर कोय कोर-कसर के स्थापित हे। हम्मर देउतन हरसट्ठे मंद-मंद स्मित पहमाँ अप्पन भगतन के आह्लादित करइत रहलन हे। हम्मर जंगलवन, कुंजवन अउ बाग-बगइचन में मलय परबत से सर-सर ससरेओली सुगंधित पवन हमेशा से मंद-मंद संचरन करइत सन-सना रहल हे। हम्मर पोखर पोखरियन, ताल-तलैइन, सोता-झरनन से हरदमें से मंद-मंद ध्वनि गुंजइत प्रवहमान रहल हे। हम्मर सुकुमारी चद्रमुखी, पद्मिनी नायिका हरदम मंद-मंद मुस्कान बिखेर के एने-ओने कमल खिलौले रहलन हे। अप्पन रसे-रसे आन-जान के ओजह से ओखनिन गजगामिनी कहला गेलन। एखनिन जब भी मंद-मंद स्वर से कुछ कहलका-टुभकलका तऽ बुझाइल कि फूल बरसइत हे, अउर त अउर जब भगवान राम बनवास गेलन हल तऽ रिसि बाल्मीकि के मुताबिक ऊ भी मंद-मंद पलान कैलका हल। जब हमरा मंद-मंद अदउ से एत्ते नीक लागइत हे तऽ अब मंदी ला भय-भ्रम, भ्रान्ति काहे ?
     एतने नञ् हमरा भिजुन मंद-मंद खातिर हठुआ मनी पर्यायवाची शब्द हे। एहमें धीरे-धीरे , सले-सले, रसे-रसे, गते-गते, आहिस्ते-आहिस्ते, रफ्ता-रफ्ता जादे प्रचलित हे।
नामी गिरामी अक्खड़़ भगत संत कवि कबीर के कहलाम हे- धीरे -धीरे रे मना, धीरे ही सब होय। मगहीयन सास अप्पन पुतोह के समझा रहलन हे- बहुआ धीरे-धीरे चलिहऽ ससुर गलिया, हो भैंसुर गलिया, बहुआ सास से बोलिहऽ अमीर बोलिया।
      पुतोह दुआरी लगो हे तऽ परीछे खनी सास रेघ दे हथ- इहाँ नैहर न हौ ससुरार दुलहिनियाँ धीरे-धीरे चलऽ, इहाँ ससुर जी के राज दुलहिनियाँ धीरे-धीरे चलऽ। मेहरारू के मिजाज गरमा गेल तऽ मरद ओकरा समदे हे- धीरे -बोलूँ जे धानी धीरे बोलूँ, अउरो गंभीरे बोलूँगे, धानी दुअरे पर लागल हे कचहरिय…. इयार लोग ठूठ मारौ गे धानी….
मगही के सेसर कवि अउ गीतकार घमंडी राम के तऽ नायिक छटपटाइत हे। चैता गीत में एकर बानगी देखन जाय-
धीरे-धीरे उठऽ हइ दरदिया हो रामा, पिया निरमोहिया।
      गया जिला परेवा बासी कवि लाल बजीरदास के कहलाम हे- दूध पिलाव मातु यशोदा से एरी गोरी रे।
होले- होले के भी व्यापक प्रयोग भेल हे। केसोपुर, जमुईवासी मगही कवि अर्जुनदास के नायिक टुभको हथ- हौले-हौले घूंघट पर खोलीहऽ मोर साजना- । अब तनि उनखर नायक के जबाव पर गौर कैल जाय-हौले- हौले जहर काहे घोललऽ नयनवाँ बेदर्दी। मगही के भारतेंदु डॉ० श्रीकान्त शास्त्री सले-सलेप्रयोग में माहिर हथ- सले-सले सरकम सूरज सवरिया ,सले-सले दमकल रात। सलेसले तनि गेलइ तमुआ तननिया, सले-सले जुमल बरात ।मगही के नामी कवि सरस दुबे सरस गावो हथ -रसे-रसे डोलल दक्खिन के मंद पवन के पलना। रतिये भेल पथार घांस पर, मोती भर-भर डलना।। मगही के दधिची श्रीनंदन शास्त्री गते-गते सुगबुगा हथ- गते-गते बोल गे सजनी कोय न सुनले हम्मर बतिया।
    मगही के सूफी संतन आउ गजलकार सभे मंद-मंद के अछुता आखिर काहे छोड़तन हल ? ओखनिन आहिस्ता-आहिस्ता प्रयोग करे में अप्पन कमाल दिखौलन हे- मुहब्बत रंग लावा हे मगर आहिस्ता-आहिस्ता। भीखमंगवन भी रेलगाड़ी के हर डिब्बा में घूम-घूम के सुनावो हे रफ्ता-रफ्ता देखऽ आंख मोर लड़ल हें।
      संस्कृति अउ साहित्य पर ही नञ् बलुक ई मंद-मंद प्रवृति के हम्मर जन-जीवन पर भी गहरा असर पड़इत हे। जनसंख्या, महरगी, बेकारी, घुसखोरी, बेइमानी छोड़ सभे कुछ मंद-मंद गति से सरक रहल हे। आवऽ तनि नजर घुमावऽ बउ देखऽ कि विकास होइत हे मुदा मंद-मंद, अच्छरकटुयन में बोध बढ़इत हे, मुदा गते-गते। जागरूकता आ रहल हे, मुदा हौले-हौले। हर अदमी सभ्य हो रहल हे मुदा सले-सले। हर अदमी के आमद बढ़इत हे, मुदा सने-सले। हिंसा सगरो कमइत हे, मुदा आहिस्ता-आहिस्ता। नव निरमान चल रहल हे मुदा रफ्ता-रफ्ता।
     आझ हम धीरे-धीरे के एत्ते दीवाना ही कि सड़कियन, चउरहवन पर बड़का-बड़का बोर्ड टंगल हे- धीरे-धीरे चलऽ आगे तीखामोड़ हे धीरे चलऽ। एही ओजह हे कि हम्मर टरेनवन भी मंद-मंद गति से चलइत-चलइत रहियन में सभे टंगल बोर्ड पढ़इत एत्ते लेट हो जाहे कि सबरियन के पलेटफारम पर लोघड़-पघड़ करकेँ टरेन के दंतजार करे पड़े हे।
     हम्मर लोक जीवन में ई हौले-हौले, सले-सले, गते-गते खूबे सराहल गेल हे। हौले-हौले बोलऽ, ‘सले-सले बतियावऽ, ‘गते-गते पढ़ऽ। हौले-हौले ममोरे अउ कमर धर पछोरे, ‘जल्दी के काम सैतान के,’ हबर-दबर के धानी-आधा तेल आधा पानी, जइसन ढेर मुहाबरा अउ कहाउत हम्मर लोक जीवन में प्रचलित हे। आउरो देखल जाय…. हम्मर पंचतंत्र में तेज गति से भागे वाला खरगोश के मंद-मंद गति से चलेओला कछुवन से हारइत-पछड़इत दरसावल गेल हे। मगही कोकिल जयराम सिंह तऽ चलिहें थम-थम गोरी पिच्छुल हो गेलौ अंगना गावइत अप्पन नायिका के हौले-हौले चले के सलाहो देइत हथ। अरे बाप रे बाप। हौले-हौले पोरसा भर के हो गेल हे, एकरा नान्ह करना बड़ी कठिन हे।
     अब तोहनिये बतावऽ, हम्मर जीवन के हर दिशा में अप्पन हाजिरी दर्ज करावेओला मंदी में आखिर का बुराई हे ? अजी मंदी शब्दे अपने आप में कमाल के हे। एकरा अक्ल  के साथ जोड़वा त अक्लमंदी बन जा हे, ‘हुनर के साथ लगा देवा तऽ हुनरमंदी हो जा हे आउ अगर ई नियाज के साथ लगल त ओकरा नियाजमंदी कर दे हे। अगरचे अपने एकरा हम्मर रजा के साथ जोड़ देम तऽ ई मामले में अपने के रजामंदी भी मिल जात।
      आवऽ तनी मंदी के सरूप पर कुछ फुसफुसा लेल जाय। आझकल राजनीति में भी मंदी छा गेल हे। कमचोर, भगोड़ा, लालची, लुटेरा ही रातनीति कर रहलो हे। एक जमाना हल जब चरित्रवान, ईमानदार, कर्मठ, जुझारू अदमी गाँव, इलाका, समाज आउ देस के उठान ला राजनीति करो हलन। अब अप्पन तोंद ऊँचगर होलय, माय बेटी बेआबरू हो जाथ, गरीब गरीबे बनल रहे, अपहरन उगो घंघा बन जाय एकरा ला राजनीति होवो लगल। देस भगति केकरो रग में नञ् समा रहलो हे, गाँधीगिरी खतम हो रहले हे, मतलब ई कि अब राजनीति में भी मंदी छा गेल हे।
    साहित के कियारी में लोक-राग, लोक-घुन आउ लोक- तत्व में मंदी अप्पन खुट्टा गाड़ देलक हे। गते-गते लोग मुँह मोड़इत हथ। आदर्श अउ यथार्थ कम परोसल जा रहलो हे। पाठकीय संकट गहरा गेलो हे। विज्ञान के चकाचौंध में बुतरून सुवइत हो, अप्पन अंगना में पछियारी साहित खूबे पसर रहलौ हे, आवऽ देखऽ योगेश जी लिखलन हें कि- कौआ- बगेरी पर सोध कैल जाहे , सूर तुलसी पड़ल गेन्हा हे। सत् साहित के बड़ कमी हे, हलुक साहित परोसल जा रहल हे, जह में नैतिकला, आदर्श अउ ईमान से सनल व्यक्तित्व अउ मानसिकता बने के कमे गुंजाइस हे। हम्मर मन में -मेल, ‘-नेट, ‘-गवर्नेस आवे से खटका लगइत हो कारन पुरखन के रचल पोथियन पढ़ के आउ ज्ञानी विद्वान बनैओला लइकन के अभाव लौकइत हे। साहित के कियारी में भी सगरो मंदी अप्पन घौंस जमा रहलो हे।
     हम्मर कला के पुरान रंग-ढंग देख दुनिया चौको हल। मुदा कला के रंगल कत्ते पोथी दुनियाँ के हर कोना में लोग हम्मरे अंगना से ले जाके अमीर हो गेलन अउ हमरा हीं दलिदरा आ गेल। अब मिथिला पेंटिंग, ‘पटना पेंटिंग, ‘गया पेंटिंग गायब हो गेल। उहाँ  भी मंदी  छा गेल हे। ई मंदी कइसे मिटत एकरा पर केकरो फिकिर नञ् हे। तिरंदाजी, पहलवानी, मुक्केबाजी, घुड़दौड़ में भी मंदी आ गेल हे। लोककला, लोकसंगीत, लोकउद्योग में भी मंदी छायल हे। लोकनाट्य लोकरंग में एते मंदी हे कि अब सूच्चा कहें नञ् लौकइत हे। पछियारी हवा के झोंका में सभे उड़िया गेल हे।
     हम्मर ई मंदी-विवेचन के अगरचे अपने पर अबहियो कोय प्रभाव नञ् पड़ल हे तऽ आवऽ मंदी के तरबगर विवेचन खातिर अपने के एगो अप्पन गोंइयाँ हीं ले चलऽ ही। हथ ऊ अर्थशास्त्री--- मुदा हमरा ऊ हमेसे व्यर्थशास्त्री ही बुझा हथ। फिनो एक दिन उनखा से मन मार के पूछ लेली- सर जी, ई जे चार थुफेकन मंदी-मंदी के अखंड जाप करठत चलइत हथ-आखिर ई हे का ? अपने तऽ, ‘अर्थ के शास्त्री ही--- मंदी पर तनी मंद-मंद रोसनी तऽ डाली--।
    अर्थयास्त्री महोदय जँ हमरा अप्पन गोड़वन में प्रश्नवाचक-कम-उत्तरवाचक के मुद्रा में दंडवत पड़इत देखलन त उनखर सप्लाई डिमांड ग्राफ जइसन चेहरा पर अर्थशास्त्रीयन सन मंद-मंद मुस्कान पसर गेल। ऊ हमरा उठौलन अउ अप्पन रिजर्व बैंक सन कोर कठोर सीना से साटे के कोसिस कैलन मुदा मुद्रा-स्फिति-सन फूलल जा रहल उनखर लादा बीच में आ गेल।
खैर। ऊ गला खखार के साफ कैलन, नरेटी मे अंगुली डाल ओंय-आंय कैलन, एतने नञ् अप्पन(अर्थं) शास्त्रीय संगीत के सुरीली तान छेड़लन- मितवर ! मंदी के अर्थ हे कि जनता सयानी हो गेल ह….। सही मायने में बड़ मुलुकवन के नामी-गिरामी कंपनियन बड़गो बैंकवन से हठुआमनी कर्जा ले उत्पाद बनौलन अउ बड़गो बाजारन में ओकरा ढेरिया देलन….। फिन बड़ चैलनवन अउ अखबरियन में विज्ञापन देल गेल ताकि जनता के बड़ा वर्ग में अप्पन उम्पाद जादे मुनाफा में बेचल जा सके। मुदा लोग सयान ठहरलन। ओखनिन दाव अउ सब्जबाग के फेरा में न पड़लन अउ बजरियन में बड़गो खरीदारी न कैलन-एकरे से बड़ा-बड़ा मैन्युफैक्चर्स बड़ी घाटा में आ गेल….एही ओजह से करजा न फिरल त नामी-गिरामी बैंक डूब गेल। आखिर हम गावे लगली अप्पन गीत- केकरो सुनैयो भइया अप्पन विपतिया देखतौ के दुरगतिया के छोर।
    मंदी के ई बड़ कमाल से लथ-पथ रूप के हम दही में पड़ल बड़ा सन उभ-चुभ देख अचरज में पड़ली।
    ऊ आगे बोललन- मंदी होय इया न होय….जनता के बड़ा वर्ग के बड़ी संघर्ष भरल जिनगी जीए पड़ो हे। ओकर जीवन में बड़ा हिस्सा में कोय जादे बदलाव नञ्  आवे हे इया बड़ा तफरका नञ् पड़ो हे….जादे असर पड़े हे बड़-बड़ ब्रान्डन पर….जब ओकरा मुनाफा न मिल पावो हे त समझहु कि मंदी हे….अप्पन बड़-बड़ छँटनी कर दे हे अउ बड़-बड़ तनखाभोगी बड़ा-बड़ा एक्जीक्यूटीव खड़े-खड़े बेरोजगार हो जा हथ….
    एतना कह के ऊ मंद-मंद मुस्कुरा लगलन उनखर चवनियाँ मुस्कान में आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री घुल मिल के-- राधा मंद-मंद मुस्कायी गावे लगलन। हम मंद-स्वर में उनखा थैंक यू कहली अउ उनखर घर से अप्पन घर दने गते-गते बड़ गेली। अब सायत अपने के हिरदा में भी मंदी के भय तेजी से मंद पड़े लग गेल होत।
                                                   -अध्यक्ष, मगही विभाग
                                                    मगध विश्वविद्यालय, बोधगया
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मगह के आयोजन
     
          बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह के जयन्ती समारोह
                            बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह के १२४ वां जयन्ती समारोह २१ अक्टूबर २०११ के नवादा जिला के नरहट प्रखण्ड के खनवाँ गाँव में मनावल गेल। ई काजकरम इले महत्वपूर्ण हो जाहे काहे कि एक तो मगह-सपूत बिहार केसरी के जयन्ती, दूजे मगही साहित से जुड़ल । मगही कवि सम्मेलन के साथ प्रतिभावान मगहिया के सम्मान आउ मगही के विकास के संदेश से ई काजकरम ओत-प्रोत हल। बिहार केसरी के जलमस्थान पर उनखर जयन्ती के आयोजन होवे से ओसहीं काजकरम के महत्ता बढ़ल हल। काजकरम एयर कंडीशन हॉल में न होके ग्रामीण परिवेश में ग्रामीण लोग के द्वारा गाँव के खेत-खलिहान में हल, उनखर गर्भगृह में हल। लोगबाग भी मानऽ हथ कि जयन्ती जलमस्थाने पर मनावे के औचित्य हे, पटना आउ कृष्ण मेमोरियल हॉल में मनावे से श्री बाबू के आत्मा के जादे सान्ती नञ् मिलत, जेतना कि उनखर गाँव में । उनखर आत्मा तो गाँव आउ ग्रामीणे में बसऽ हल।
 काजकरम के आयोजक
             श्रीकृष्ण फाउन्डेशन आउ खनवांवासी के सहजोग से काजकरम के आयोजन होल। फाउन्डेशन के संयोजेक संतोष कुमार के ई इच्छा हल कि श्रीकृष्ण खनवां के सब के हलन। ईले ई काजकरम में एगो रूपइया भी गाँववासी के लगे, मगर जरूर लगे। गाँववासी के साथे-साथ अनुग्रह नारायण सिंह, कपिलदेव सिंह, पुरूषोत्तम कुमार, मुखिया बेबी देवी, सरपंच रूमा देवी, मधुसूदन, परमानन्द, चन्दन, विकास, रंजीत, मनोज, सतीश काजकरम के बेहतर बनावे में जुटल हलन।
मोका पर जे खास होल
          बिहार के पहिल मुख्य मंत्री श्रीकृष्ण बाबू के जलमस्थली पर्यटक स्थल के रूप में विकसित होवे, खनवाँ में उनखर आदम कद प्रतिमा लगे, जलमस्थल के सरकारी संरक्षण मिले, खनवाँ आदर्श गाँव होवे ऐसन कय योजना के पहल के लेल काजकरम के आयोजन हल। ऐसने आकांक्षा लेल श्रीकृष्ण खनवाँ बेबसाइट लाँच करल गेल। खनवाँ के विकास के पहल के इन्टरनेट से जोड़ल गेल। खनवाँ के आदर्श गाँव बनावे के योजना में समिति के गठन कैल गेल।
काजकरम आउ सम्मान
             काजकरम के मुख्य अतिथि क्षेत्र के सांसद भोला सिंह हलन। अध्यक्षता देवेन्द्र सिंह आउ मंच संचालन फाउन्डेशन के संयोजक संतोष कुमार जी कैलन। सांसद भोला सिंह खनवाँ के दादी माँ कहके इहाँ से बिहार के राजनीति जलम लेवे के बात कहलन। श्रीकृष्ण बाबू के चाँद-सूरज के संज्ञा देलन। खनवाँ के विकास के आश्वासन देलका। उनके हाथ से बेबसाइट लाँच करल गेल। मगही साहित से जुड़ल रामरतन सिंह रत्नाकर, उदय कुमार भारती के बिहार केसरी सम्मान से सम्मानित करल गेल। कवि मिथिलेश के भी सम्मानित करल गेल, पर ऊ काजकरम में नञ् पहुँचला हल। मोका पर आउ मगध के दर्जनों प्रतिभा के सम्मानित करल गेल।
मगही कवि सम्मेलन
         मोका पर मगही के कवि के जुटान होल। कुछ कारण के चलते कवि सम्मेलन मंच से हट के फाउन्डेशन के कारजालय में होल। दर्जनो कवि श्रीकृष्ण बाबू के व्यक्तित्व आउ कृतित्व के चर्चा, खनवाँ के उपेक्षा आउ भविष्य में विकास के कामना कविता में कैलका। दीनबन्धु के सोहर खूमे सराहल गेल, जे श्रीकृष्ण बाबू के जलम से जुड़ल हल। झूमर, सोहर, गीत, ग़ज़ल, हास्य, व्यंग्य के दौर चलल। फाउन्डेशन संयोजक संतोष कुमार के संचालन में दीनबन्धु, जयराम देवसपुरी, व्यंग्यकार उदय कुमार भारती, शफीक जानी नादाँ, कृष्ण कुमार भट्टा, ओंकार शर्मा, डॉ० संजय‍, दीप्तांशु गाँववला के खूमे झूमैलथिन। खास अतिथि रामरतन सिंह रत्नाकर मौजूद हलथिन।
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मगह के आयोजन
            
                मगही स्वभिमान रथ निकलल
                   गही भासा के विकास आउ प्रचार-प्रसार के कड़ी में मगह के भूलल-बिसरल विधा के जोगावे ले, अप्पन भासा के प्रति स्वभिमान जगावे के लेल बिहार मगही अकादमी के तरफ से मगही स्वभिमान रथ निकालल गेल। एकर सुरूआत महाकवि डॉ० योगेश्वर प्रसाद योगेश के जयन्ती के पवित्तर अवसर पर नीरपुर अथमलगोला से होल। २३ अक्टूबर २०११ के महाकवि के जयन्ती समारोह के बाद ई रथ चलल। दिन आउ रात नगर, गाँव, जिला में ठामे-ठामे रूक-रूक के अप्पन माटी के भासा के प्रति स्वभिमान जगइलक। २३ तारीख से ले के ३ नबम्बर २०११ तक मगही के दीया मगह में चहूँओर जलल। जहाँ-जहाँ से रथ गेल, ऊहाँ-ऊहाँ क्षेत्र के साहितकार, मगहीपरेमी आउ मगहिया भाय-बहिन ओकर सोवागत आउ अभिन्नदन कइलन। अभियान के बड़गर प्रभावकारी नतिजा सामले आल। मगहियन के मन के कुंठा दूर भेल। भासा के विकास  के चरचा, विचार गोष्ठी आउ कवि सम्मेलन से एगो अलग किसिम के जागरूकता आल। लोग-बाग बड़ी उत्साह से एकर आयोजन आउ सहयोग में जुटलथिन। बड़ी जगह दोबारा आवे के नेउता मिलल। लोग-बाग के लगलै के मगही के विकास लेल अब सार्थक कारज के सुरूआत हो गेल हे आउ ऊ दिन  अब दूर नञ् हे जऊ मगही के अप्पन मंजिल मिलत। मगहियन मगही आन्दोलन में सहयोग देवे के संकलप लेलन आउ भासा के प्रति बाल-बच्चा के रूची जगावे के बात कहलन।
रथ के साथे चलेवला टोली
         बिहार मगही अकादमी के माननीय अघ्यक्ष उदय शंकर शर्मा के नेतृत्व में कवि परमेसरी, दीनबन्धु, उमेश बहादूरपुरी, भाई बालेश्वर, धनंजय श्रोत्रिय, कृष्ण कुमार भट्टा, डॉ० भरत, मुद्रिका प्रसाद, बासुदेव प्रसाद रथ पर सवार होके अभियान पर हलन। राह में बारी-बारी से साहितकार रथ पर चढ़ते-उतरते रहलथिन, लेकिन जतरा में परमेसरी, उमेश जी, भट्टा जी, दीनबन्धु जी लगातार साथे रहलथिन।
काजकरम जहाँ-जहाँ भेल
२३ अक्टूबर २०११----नीरपुर, अथमलगोला, पुन्यार्क दुर्गामठ, पंडारक, पटना । 
२४ अक्टूबर २०११----रेलवे कॉलोनी, फारसी महल्ला, बाढ़, उत्क्रमित मध्य विद्यालय, मराची, पटना, डाक बंगला, बड़हिया ।  
रात में  मध्य विद्यालय, लोदिया, ल‌ख्खीसराय।
२५ अक्टूबर २०११----हनुमान मंदिर, चेवाड़ा, शेखपुरा, घरसेनी गाँव, ओढ़नपुर, नवादा में रात्रि विश्राम।
२६ अक्टूबर २०११----मकनपुर, वारिसलीगंज,अखिल भारतीय मगही मंडप कार्यालय, वारिसलीगंज, रात्रि में अपर समाहर्त्ता के आावास पर उपविकास आयुक्त समेत अघिकारियों के उपस्थिति में।
२७ अक्टूबर २०११-----विष्णुदेव प्रसाद सजल के आवास, नवादा, संध्या पाँच बजे से आधी रात तक शब्द साधक मंच के तत्वावधान में आर्य समाज मंदिर हिसुआ (नवादा) में।
२८ अक्टूबर २०११----कारीशोवा मगही कोकिल जयराम सिेह के आवास के समीप, पुरा, वजीरगंज (गया), मगही विकास मंच, डेल्हा पर, गया रात्रि विश्राम राजापुर डॉ० भरत के आवास।
२९ अक्टूबर २०११----इमलिया चक, चाकन्द बेलागंज, गया, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, गया, रात्रि विश्राम लार्ड बुद्धा पब्लिक स्कूल, औरंगावाद, काजकरम सुबह में ।
३० अक्टूबर २०११----पीपरा, बारूण, औरंगावाद, रात्रि विश्राम मायर, शमशेर नगर, औरंगावाद।
३१ अक्टूबर २०११----शमशेर नगर मेंदोसर जगह पर, दाउदनगर, रात्रि विश्राम ,जहानावाद।
१ नबम्बर २०११----मगही विकास मंच, जहानावाद, रात्रि में बड़गाँव, नालन्दा।
२ नबम्बर २०११----मगही साहित्य सम्मेलन, अछुआ , पालीगंज, खोरइठा संत राम नगिना सिंह मगहिया के गाँव में, आर्य समाज मंदिर, विक्रम।
३ नबम्बर २०११----मैना कुवँर रोजगारोन्मुखी बालिका उच्य विद्यालय, बराप, विक्रम(पटना)।
         एकर बाद मगही अकादमी शास्त्री नगर, पटना वापस लौट के अभियान के समापन भेल।
स्टॉल लगा के मगही साहित बेचल गेल
        अभियान में मगही अकादमी बिहार के ओर से पहिले के परकासित नामी-गिरामी साहितकार के पुस्तक के स्टॉल काजकरम स्थल पर लगा के मगही के किताब के बेचल गेल। काजकरम में पहुँचल लोग-बाग से मगही साहित खरीद के पढ़े के निहोरा  करल गेल। मगहियन के अप्पन-अप्पन घर मे कम से कम एगो मगही के किताब रखे के करबद्ध निहोरा करल गेल। ई से मगही के किताब के बिक्री होल आउ मगही साहित जगह- जगह पहुँचल।
निहोरा-पतरी बँटल
        अकादमी के तरफ से सा मागधी मूल भासा नाम के निहोरा-पतरी बाँटल गेल। पतरी में मगहियन भाय- बहिन से भासा के विकास के आह्वान, एकर पुरनका स्वर्णिम इतिहास आउ विरासत के सहेजे के निहोरा के साथे-साथ मगही के भारतेन्दु श्रीनंदन शास्त्री, मगही कोकिल जयराम सिंह, बाबुलाल मधुकर, महाकवि योगेश्वा प्रसाद योगेश के दमदार पंक्ति आउ कविता छपल हल।
मगही के भूलल-विसरल विधा के सेंगरन होल
        मगह के भूलल-विसरल, विलुप्त होल जा रहल विधा आउ संस्कार से जुड़ल कय तथ्य आउ रस्म-रिवाज के सेंगरन करल गेल। मगह के झूमर, भैया दूज, सोहर, सतईसा, तीज, जैसन संस्कार गीत के गावे-वजावे वला कलाकार के चिन्हित करल गेल। वानगी के तौर पर ओकर गीत, झूमर, सोहर के रिकार्ड करल गेल। इसकुली  छात्र-छात्रा के मगही में सभे संस्कार गीत गावे, नाटक, प्रहसन, रूपक के प्रस्तुत करेले उत्साहित करल गेल।
दिवंगत साहितकार के गाँव जाके सरधासुमन
        ई जतरा के सबसे जे खास होल, ऊ हल मगही के दिवंगत साहितकार के गाँव जाके साधासुमन चढ़ावे के काम। दिवंगत साहितकार के प्रति एगो ई बड़का सरधांजली हल। गाँववला के ई से गौरव मिलल आउ मगही के प्रति सरधा जगल। जतरा में मथुरा प्रसाद नवीन, विष्णुदेव प्रसाद सजल, मगही कोकिल जयराम सिंह , संत राम नगीना सिंह मगहिया आउ कईक साहितकार के गाँव जा-जाके उनखर परिजन से मिलल गेल। उहाँ काजकरम के आयोजन करल गेल। उनखर विखरल साहित के जोगावे के संकल्प, उनखर स्मृति में प्रतिमा लगावे के आसवासन देल गेल।
       ई ऐतिहासिक परयास मगही के विकास के पहल में मिल के पत्थर साबित होत।
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मगह के आयोजन

         हिसुआ के यादगार मगही कवि सम्मेलन
                        गही स्वाभिमान रथ के सोवागत आउ अभिनन्दन के मोका पर हिसुआ में जे काजकरम होल ओकरा यादगार काजकरम मानल जा सके हे। हिसुआ क्षेत्र में ऐसन बड़गर भासा आउ संस्कृति से जुड़ल गोष्ठी आउ रोचक मगही कवि सम्मेलन पिछलका कईक साल से नञ् भेल हल, जऊकि हिसुआ में हिन्दी-मगही से जुड़ल काजकरम महीना दू महीना बाद होइतहीं रहऽ हे। मगही हिन्दी साहित्यिक मंच शब्द साधक के तत्वावधान में काजकरम के आयोजन २७ अक्टूबर दिन गुरूवार देवाली के दोसरका रोज आर्य समाज मंदिर, पाँचू में सांझ के ५ बजे से शुरू होल।
पहिल सत्र
           काजकरम के शुरूआत मु‌‌ख्य अतिथि मगही अकादमी के माननीय अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहितकार पत्रकार रामरतन सिंह रत्नाकर, कवि परमेसरी, दीनबन्धु, मगही पत्रिका के संपादक धनंजय श्रोत्रिय संयुक्त रूप से दीप जला के कैलन। काजकरम के अध्यक्षता क्षेत्र के वरिष्ठ कवि दीनबन्धु आउ मंच संचालन उदय कुमार भारती कैलन। उदय भारती के अतिथि के सोवागत आउ विषय प्रवेश के बाद मिथिलेश कुमार सिन्हा मगही साहित में हिसुआ के योगदान पर चरचा कैलन। ओकर बाद  प्रो० नवल किशोर शर्मा,अशोक समदर्शी, डॉ० संजय, श्री धनंजय, श्री रत्नाकर आउ मुख्य अतिथि श्री शर्मा मगही भासा के विकास पर अप्पन-अप्पन विचार देलथिन। मगही आन्दोलन में सभे मगहियन के जुड़े के निहोरा, मगही के स्वर्णिम इतिहास, एकर भूलल-विसरल जा रहल संस्कृति, लोकप्रियता, देश भर में बोले-चले वला आउ मगह के घर-घर में कइसे रचल-बसल हे एकरा सभे सम्बोधित करे ओला अतिथि रेखांकित कैलथिन आउ मगही अपनावे के प्रेरणा जगैलथिन। भासा के विकास ले जनप्रतिनिधि के आगे आवे, विधायक-मंत्री के सरकार तक बात पहुँचावे ले धिक्कारल गेल। मगह के बड़गर, नामी-गिरामी, ओजनदार नेता आउ मंत्री के रहते हम्मर मगही भासा काहे उपेक्षित रहल। ऐसन जुड़ल तथ्य आउ सवाल से उपस्थित जन-मानस के झकझोरल गेल।
सम्मान
              शब्द साधक मंच के ओर से मुख्य अतिथि उदय शंकर शर्मा, विशिष्ट अतिथि रामरत्न सिंह रत्नाकर, वरिष्ठ कवि परमेसरी, आउ मगह  के लेल समर्पित होके काम करे वला मगही पत्रिका के सुपादक धनंजय श्रोत्रिय के अंगवस्त्रम् देके सम्मानित कैल गेल। सम्मान अंचलाधिकारी शैलेश कश्यप आउ अध्यक्ष दीनबन्धु के कर कमल से देल गेल। एकर बाद दोसर सत्र के शुरूआत होल।
दोसर सत्र
                 दीनबन्धु के सरस्वती  वन्दना से दोसर सत्र कवि सम्मेलन के शुरूआत होल। ओकर बाद झूमर, सोहर, गीत, ग़ज़ल, हास्य व्यंग्य के जऊ फुहार चले लगल तऊ परिसर में खचाखच भरल श्रोता वाह-वाह कर उठलन। दीनबन्धु जी आउ नरेन्द्र जी के झूमर पर श्रोता झूम उठलन। परमेसरी के गीत, अशोक समदर्शी के ग़ज़ल, सबके दिल के छू गेल। उदय भारती आउ जयराम देवसपुरी के हास्य व्यंग्य के तीर खूमे सराहल गेल। शफीक जानी नाँदा, गोपाल निर्दोष, अरूण देवरसी, कृष्ण कुमार भट्टा, सावन कुमार, महेश प्रसाद सिंह, सादिेक नवादवी के कविता सभे के प्रभावित कइलक। झारखण्ड में कार्यरत बीसीओ युगल किशोर राम, प्रवीण कुमार पंकज आउ ओंकार शर्मा के रचना एगो नया प्रभाव छोड़लक। अधरात तक श्रोता मगही के हर विधा के प्रस्तुति से अघैते रहलन। मगही के लुप्त होवइत विधा पर एगो नगर में एैसन आयोजन पर श्रोता के साहित पियास आउ बढ़ गेल। श्रोता उठे के नाम नञ् ले रहलथिन हल। दीनबन्धु, देवसपुरी, नरेन्द्र, मगही अकादमी के अध्यक्ष शर्मा जी के दोबारा-तेबारा सुने के आग्रह होते रहल। मगह के पटना, नालन्दा, गया, शेखपुरा, लख्खीसराय, नवादा के जुटल कवि मगही साहित के रस से पूरे सदन के सराबोर कर देलथिन आउ ओकर प्रभाव के लोहा मनवा लेलथिन। हिसुआ क्षेत्र के जुटल हिन्दु, मुसलमान, जैन सभे वर्ग के गणमान्य समाजसेवी, बुद्धिजीवी, प्रोफेसर, शिक्षक, मगही प्रेमी आउ साहितकार जमके मगही फुहार के आन्नद लेलन।
              काजकरम के समापन पर उदय भारती हिसुआ के सशक्त कलमकार विशुन लाल राज के याद करैत हिसुआ के साहित विकास में उनखा योगदान के चरचा कइलका। उनखर याद से आँख भरभरा उठल।
रात के विश्राम के घड़ी आउ सुबह के नास्ता से पहिले भी बैठकी लगल आउ काव्य फुहार के दौर चलल। मगही से नया-नया जुड़े ओला लोग-बाग के आन-जान दिल के ग्यारह बजे तक चलते रहल।
           मगही अकादमी के ओर से लगल स्टॉल से मगही साहित के अच्छे बिक्री होल।


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निहोरा
. मगही मनभावन पर सनेस आउ प्रतिक्रिया भेजे घड़ी अपन ई-मेल पता जरूर लिखल जाय, ताकि ओकर जबाब भेजे में कोय असुविधा नञ् होवै।
२. मगही मनभावन ले रचना ई-मेल से इया फैक्स से चाहे हिन्दी मगही साहित्यिक मंच शब्द साधकके कारजालय, हिसुआ पहुँचावल जा सकऽ हे।
शब्द साधक
हिन्दी मगही साहित्यिक मंच
हिसुआ, नवादा (बिहार)
shabdsadhak@gmail.com

. रचना मगही साहित के प्रचार-प्रसार के लेल इहाँ रखल गेल हऽ। कौनो आपत्ति होवे पर हटा देल जात। 

रचना साभार लेल गेल
हायकू-- निरंजना, अक्टूबर २००१, मगही अकादमी, बिहार।
सितबिया--कथा सागर, संपादक-प्रो० दिलीप कुमार, प्रकाशक-मगही साहित्य सम्मेलन, अछुआ, पटना।
                   
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1 टिप्पणी:

  1. उदय जी तोहर ई प्रयास बड़ी हरियर हआय एकरा से हमरा अयसन मगही के नयकन के बल मिलो हय , अपन कोशिश बढ़ैते रह्खिन , हमरा अर से जेतना मदद होतेई कर्वेई , बड़ी अच्छा लगो हय जब अपन बोली के नेट पर देखो हियेई

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